Bihar Board Class 8 Hindi Solutions Chapter 19 जननायक कर्पूरी ठाकुर

Bihar Board Class 8 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 3 Chapter 19 जननायक कर्पूरी ठाकुर Text Book Questions and Answers, Summary.

BSEB Bihar Board Class 8 Hindi Solutions Chapter 19 जननायक कर्पूरी ठाकुर

Bihar Board Class 8 Hindi जननायक कर्पूरी ठाकुर Text Book Questions and Answers

प्रश्न – अभ्यास

पाठ से

प्रश्न 1.
कर्पूरी ठाकुर अपने परिजनों को प्रतीक्षा करने के लिए क्यों कहते
उत्तर:
संभवतः कर्पूरी ठाकुर के परिजनों की यह आकांक्षा होगी कि कर्पूरी पढ़-लिखकर हमें गरीबी से निजात दिलायेगा। सारे सुख-साधन प्राप्त होंगे। लेकिन जननायक के लिए सम्पूर्ण देश परिवार था। उन्होंने देश की जनता को पराधीनता की बेड़ी में जकड़ा देखा जो उनके लिए असहनीय था। इसीलिए उन्होंने अपने अल्फाज में कहा था जब तक देश के प्रत्येक निवासी

को सम्मानजनक और सुविधासम्पन्न स्वाधीन जीवन-यापन का अवसर नहीं मिलेगा, तब तक मेरे परिजनों को भी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।

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प्रश्न 2.
मैट्रिक के बाद उच्च शिक्षा के लिए उन्हें कहाँ और किस प्रकार जाना पड़ता था ?
उत्तर:
मैट्रिक परीक्षा पास कर उच्च शिक्षा के लिए दरभंगा के चन्द्रधारी .मिथिला कॉलेज में दाखिला पाया जहाँ उनको प्रतिदिन पहुँचने के लिए कुछ दूर पैदल तथा 50-60 किलोमीटर दूर मुक्तापुर से दरभंगा ट्रेन से जाना-आना पड़ता था।

प्रश्न 3.
कर्पूरी ठाकुर को कौन-कौन कार्य करने में आनन्द मिलता था ?
उत्तर:
कर्पूरी ठाकुर को चरवाही करने, ग्रामीण गीत गाने, डफली बजाने तथा पीड़ितों की सेवा करने में आनन्द आता था।

प्रश्न 4.
सचिवालय स्थित कार्यालय में पहले दिन उन्होंने कैसा दृश्य देखा तथा उस पर उन्होंने क्या निर्णय लिया?
उत्तर:
1952 में जब विधायक बने थे तो कर्पूरी जी ने सचिवालय स्थित अपने कार्यालय के लिफ्ट पर लिखा देखा- “Only for Officers” यह देखकर सचिवालय में इस सामंती प्रथा को समाप्त कर आमलोगों के लिए लिफ्ट का प्रयोग करवाया।

पाठ से आगे

प्रश्न 1.
अपने अध्ययन के दौरान आपको किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है ?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
आपको दिन भर में बहुत सारे काम करने पड़ते हैं । यथा-कॉमिक्स
पढ़ना, खेलना, छोटे भाइयों की देख-रेख करना, खाना बनाने में सहयोग करना, परीक्षा की तैयारी करना, सोना आदि । आप किन
कार्यों पर कितना समय देंगे और क्यों?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

व्याकरण-

1. अनेक शब्दों के बदले एक शब्द
भाषा की सुदृढ़ता, भावों की गंभीरता और चुस्त शैली के लिए. यह आवश्यक है कि लेखक शब्दों के प्रयोग में संयम से काम लें ताकि वह विस्तृत विचारों या भावों को थोड़े-से शब्दों में व्यक्त कर सकें। ‘गागर में सागर भरना’ कहावत यहीं चरितार्थ होती है। विस्तृत विचारों या भावों को थोड़े शब्दों में ‘अनेक शब्दों के बदले एक शब्द ”की जानकारी से प्रस्तुत की जा सकती है।
जैसे

  1. जो दीनों के बंधु हों – दीनबंधु
  2. विभिन्न विषयों पर विचार करनेवाला – विचारक ।
  3. सामाजिक कुरीतियों को दूर करने वाला – समाज-सुधारक ।
  4. बिना शुल्क का – नि:शुल्क

2. राजा का पुत्र – राजपुत्र
विद्या का आलय – विद्यालय
रसोई के लिए घर – रसोईघर

उपर्युक्त उदाहरणों में हमने देखा कि दो शब्दों के बीच एक विभक्ति का प्रयोग किया गया है। विभक्ति लोप के बाद दोनों शब्द मिलकर एक शब्द हो गए हैं। ऐसे ही संयुक्त शब्दों को समास कहते हैं।

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3. निम्नलिखित शब्दों में से विभक्ति हटाकर एक नया शब्द बनाइए।
प्रश्नोत्तर:

  1. जनों के नायक – जननायक
  2. भूमि का सुधार – भूमि सुधार
  3. गृह में प्रवेश – गृह प्रवेश
  4. शक्ति से हीन – शक्तिहीन
  5. देह से चोर – देहचोर
  6. लोगों के नायक – लोकनायक ।

गतिविधि

प्रश्न  1.
चारावाही/रोपनी के दौरान आपके क्षेत्र में गाये जानेवाले गीतों में से कोई एक गीत लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
अपने गाँव-जवार के किसी गायक या वादक से मिलकर उनके अनुभवों को सुनकर अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

जननायक कर्पूरी ठाकुर Summary in Hindi

जीवनी – गरीबों के मसीहा, विलक्षण व्यक्तित्व के धनी जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी, 1921 को पितौझिया गाँव, जिला-समस्तीपुर, बिहार में हुआ था। . इनके पिता गोकुल ठाकुर एवं माता रामदुलारी देवी थी। गरीब परिवार के बच्चों की तरह इनका बाल्यकाल खेल-कूद तथा पशुओं के चराने में बीता ।

6 वर्ष की आयु में 1927 ई. में इनका विद्यारम्भ गाँव के पाठशाला से हुआ। पाठशाला से आने के बाद भी वे पशुओं को चराते थे। चरवाही में ग्रामीण गीतों का उपयोग भी करते थे । गीत गाने के साथ डफली बजाने का भी शौक था जो विधायक बनने के बाद भी शौक बना रहा।

1940 में मैट्रिक परीक्षा पास कर इन्टर की पढ़ाई के लिए 50-60 किलोमीटर दूर दरभंगा में नामांकन करवाया। कुछ दूरी पैदल फिर रेल से प्रतिदिन कॉलेज किया करते थे।

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1942 में आई. ए. परीक्षा उत्तीर्ण कर स्नातक में नामांकन करवाया लेकिन 1942 की अगस्त-क्रान्ति से वे बच नहीं सके । क्रांति में सक्रिय भागीदारी देने लगे।

उन्होंने अपने परिजनों को प्रतीक्षा करने के लिए अपने शब्दों में कहा था-“हो सकता है कि विद्याध्ययन के पश्चात् मुझे कोई पद प्राप्त हो जाय । मैं बहुत आराम और ऐश-मौज में दिन बिताऊँ। बड़ी कोठी, घोड़ी-गाड़ी, नौकर इत्यादि दिखावटी के सभी समान मुझे उपलब्ध हो । पर मुल्क का भी मुझ पर कुछ दावा है । भारत-माता स्वतंत्रता की पीड़ा से कराह रही है और मैं पढ़ाई जारी रखू यह मुमकिन नहीं । जब तक देश के प्रत्येक नागरिक को सम्मानजनक और सुविधा सम्पन्न स्वाधीन जीवन-यापन करने का अवसर नहीं मिलेगा तब तक. मेरे परिजनों को प्रतिक्षा करना होगी।

1942 में पढ़ाई छोड़ जयप्रकाश नारायण के “आजाद दास्ता” के सदस्य बन गये । आर्थिक स्थिति से निजात पाने के लिए उन्होंने 30 रुपये के वेतन पर गाँव के स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर नौकरी की। दिन में नौकरी और रात में “आजाद दस्ता” के कार्य बखूबी निभाने लगे। 23 अक्टूबर, 1943 को रात्रि में गिरफ्तार होकर पहली जेल-यात्रा की। दरभंगा जेल पुनः भागलपुर जेल में भी कुछ दिनों तक जीवन बिताया।

स्वतंत्रता के बाद 1952 में जब प्रथम आम चुनाव हुआ तो कर्पूरी ठाकुर ताजपुर (समस्तीपुर) विधान सभा क्षेत्र में सोशलिस्ट पार्टी की ओर भारी बहुमत से विधायक चुने गये तथा 1988 तक विधान सभा में रहे। इस दौरान वे विधान सभा के कार्यवाहक अध्यक्ष, विरोधी दल के नेता, उप मुख्यमंत्री तथा दो बार मुख्यमंत्री बने।

जननायक को गरीब एवं पीड़ितों की सेवा में बड़ा आनन्द आता था। एक बार 1957 की बात है जब गाँवों का दौरा कर रहे थे। उसी दौरान उन्होंने देखा कि एक आदमी हैजा से पीड़ित है और मरने की स्थिति में है। अस्पताल -5-6 किलोमीटर दूर है। यातायात का कोई साधन नहीं । कर्पूरी जी ने उस

पीड़ित को अपने कंधे पर उठाकर दौड़ते हुए चलकर अस्पताल पहुँचाया था। . 1952 की ही बात है जब उन्होंने विधायक बन सचिवालय में पहुंचे तो लिफ्ट पर लिखा देखा-“Only for Officers” यह देखकर ही उन्हें सचिवालय में सामंती प्रथा की बू आ गई और वे इस प्रथा को अंत कर आम लोगों को लिफ्ट से आने-जाने के लिए प्रयोग करवाया।

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वे 1967 में उप मुख्यमंत्री, 1970 में और 1977 में मुख्यमंत्री पद को विभूषित किया । दलगत नीति के कारण 12 अगस्त, 1987 को विपक्ष के नेता के पद से इनको हटा दिया गया। 17 फरवरी, 1988 को हृदयाघात के कारण इनकी मृत्यु हो गई।

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