Bihar Board 12th Hindi 50 Marks Model Question Paper 2

Bihar Board 12th Hindi Model Papers

Bihar Board 12th Hindi 50 Marks Model Question Paper 2

समय 1 घंटे 37.5 मिनट
पूर्णांक 50

परीक्षार्थियों के लिए निर्देश

  1. परीक्षार्थी यथा संभव अपने शब्दों में उत्तर दें।
  2. दाहिनी ओर हाशिये पर दिये हुए अंक पूर्णांक निर्दिष्ट करते हैं।
  3. उत्तर देते समय परीक्षार्थी यथासंभव शब्द-सीमा का ध्यान रखें ।
  4. इस प्रश्न-पत्र को पढ़ने के लिए 7.5 मिनट का अतिरिक्त समय दिया गया है।
  5. यह प्रश्न-पत्र दो खण्डों में है-खण्ड-अ एवं खण्ड-ब ।
  6. खण्ड-अ में 25 वस्तुनिष्ठ प्रश्न हैं, सभी प्रश्न अनिवार्य हैं । (प्रत्येक के लिए 1 अंक निर्धारित है), इनका उत्तर उपलब्ध कराये गये OMR शीट में दिये गये वृत्त को काले/नीले बॉल पेन से भरें। किसी भी प्रकार के व्हाइटनर/तरल पदार्थ/ब्लेड/नाखून आदि का उत्तर पत्रिका में प्रयोग करना मना है, अथवा परीक्षा परिणाम अमान्य होगा। 6. खण्ड-ब में कुल 5 विषयनिष्ठ प्रश्न है। प्रत्येक प्रश्न के लिए 5 अंक निर्धारित है।
  7. किसी तरह के इलेक्ट्रॉनिक यंत्र का उपयोग वर्जित है।

खण्ड-अ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्र. सं. 1 से 25 तक के प्रत्येक प्रश्न के साथ चार विकल्प दिए गए हैं, जिनमें से एक सही है। अपने द्वारा चने गए सही विकल्प को OMR शीट पर चिह्नित करें। (1 x 25 = 25)

प्रश्न 1.
“आज खाय और कल के झक्खे, ताके गोरख संग न रक्खें।”-किस पाठ से उद्धृत है ?
(a) गौरा
(b) मंगर
(c) पंच परमेश्वर
(d) रवीन्द्रनाथ ठाकुर
उत्तर:
(b) मंगर

Bihar Board 12th Hindi 50 Marks Model Question Paper 2

प्रश्न 2.
‘भारत की आत्मा कहाँ निवास करती है ?
(a) गाँवों में
(b) शहरों में
(c) नगरों में
(d) महानगरों में
उत्तर:
(a) गाँवों में

प्रश्न 3.
‘रहीम’ किस राजा के दरबारी कवि थे ?
(a) महाराणा प्रताप
(b) बाबर
(c) अकबर
(d) राजा जय सिंह
उत्तर:
(c) अकबर

प्रश्न 4.
“गौरा” की लेखिका कौन हैं?
(a) महादेवी वर्मा
(b) ममता कालिम
(c) ऊषा प्रियंबदा
(d) अमृता प्रीतम
उत्तर:
(a) महादेवी वर्मा

प्रश्न 5.
‘बेटा, खुदा से डरो । पंच न किसी के दोस्त होते है न किसी के दुश्मन।” किस पाठ से उद्धृत है ?
(b) ठिठुरता हुआ गणतंत्र
(c) मंगर
(d) पंच परमेश्वर
उत्तर:
(d) पंच परमेश्वर

प्रश्न 6.
कथा सम्राट प्रेमचंद का जन्म स्थान कहाँ है ?
(a) इलाहाबाद
(b) कानपुर
(c) वाराणसी
(d) लमही
उत्तर:
(c) वाराणसी

प्रश्न 7.
इनमें से रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना कौन-सी है?
(a) पंच परमेश्वर
(b) कफन
(c) गौरा
(d) मंगर
उत्तर:
(d) मंगर

प्रश्न 8.
“जीवन का झरना’ कविता के कवि का नाम लिखें
(a) सुमित्रानंदन पंत
(b) निराला
(c) आरसी प्रसाद सिंह
(d) प्रसाद
उत्तर:
(c) आरसी प्रसाद सिंह

प्रश्न 9.
‘कलम का जादूगर’ किस रचनाकार को कहा जाता है
(a) प्रेमचंद
(b) माखन लाल चतुर्वेदी
(c) रामवृक्ष बेनीपुरी
(d) रामधारी सिंह ‘ दिनकर’
उत्तर:
(c) रामवृक्ष बेनीपुरी

Bihar Board 12th Hindi 50 Marks Model Question Paper 2

प्रश्न 11.
‘गिरीश’ शब्द का संधि-विच्छेद क्या होता है ?
(a) गिरी + ईस
(b) गिरि + इस
(c) गिरी + ईश
(d) गिरि + ईश
उत्तर:
(d) गिरि + ईश

प्रश्न 12.
‘आविष्कार’ का संधि-विच्छेद क्या होता है?
(a) आवी: + कार
(b) आविष + कार
(c) आविः + कार
(d) आवि + षकार
उत्तर:
(d) आवि + षकार

प्रश्न 13.
‘हाथ खींचना’ मुहावरे का अर्थ होता है
(a) साथ देना
(b) साथ लेना
(c) अलग करना
(d) अलग होना
उत्तर:
(c) अलग करना

प्रश्न 14.
‘सजीव’ शब्द का विलोम क्या होता है?
(a) निर्जीव
(b) मरण
(c) जीवन
(d) अजीव
उत्तर:
(a) निर्जीव

प्रश्न 15.
‘आकाश’ शब्द का पर्यायवाची क्या होगा?
(a) तिमिर –
(b) नभ
(c) दृष्टि
(d) चाँद
उत्तर:
(b) नभ

प्रश्न 16.
‘संज्ञा’ के कितने भेद होते हैं ?
(a) तीन
(b) चार
(c) पाँच
(d) छः
उत्तर:
(c) पाँच

प्रश्न 17.
‘सर्वनाम’ के कितने भेद होते हैं ? ।
(a) तीन
(b) चार
(c) पाँच
(d) छः
उत्तर:
(d) छः

प्रश्न 18.
‘वाक्य’ के कितने भेद होते है?
(a) दो
(b) चार
(c) तीन
(d) पाँच
उत्तर:
(d) पाँच

Bihar Board 12th Hindi 50 Marks Model Question Paper 2

प्रश्न 19.
“क्रिया’ के कितने भेद होते हैं?
(a) पाँच
(b) दो
(c) सात
(d) आठ
उत्तर:
(b) दो

प्रश्न 20.
‘जी’ शब्द का लिंग निर्णय करें
(a) पुलिंग
(b) उभय लिंग
(c) स्त्रीलिंग
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 21.
‘शिक्षा’ शब्द का लिंग निर्णय करें
(a) पुलिंग
(b) स्त्रीलिंग
(c) उभयलिंग
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) स्त्रीलिंग

प्रश्न 22.
‘अवश्य’ शब्द का विशेषण क्या होता है ?
(a) अनावश्क
(b) अति आवश्यक
(c) आवश्यक
(d) अधिक आवश्यक
उत्तर:
(c) आवश्यक

प्रश्न 23.
‘नीति’ शब्द का विशेषण क्या होता है ?
(a) नेतिक
(b) नीतिज्ञ
(c) नैतिक
(d) राजनैतिक
उत्तर:
(c) नैतिक

प्रश्न 24.
‘लिंग’ के कितने भेद होते हैं ?
(a) दो
(b) आठ
(c) चार
(d) पाँच
उत्तर:
(a) दो

Bihar Board 12th Hindi 50 Marks Model Question Paper 2

प्रश्न 25.
‘वचन’ के कितने भेद होते है ?
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पाँच
उत्तर:
(b) तीन

खण्ड-ब :

गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न

विषयनिष्ठ प्रश्न कुल 25 अंकों का होगा।

प्रश्न 1.
भावार्थ लिखें – 5
भू पर नहीं, मनों में हो, बस कहीं शेष भारत है।
भारत एक स्वप्न, भू को ऊपर ले जाने वाला,
भारत एक विचार, स्वर्ग को भू पर लाने वाला ।।

अथवा, भावार्थ लिखें –
रहिमन वे नर मर चुके, जो कहुँ माँगन जाहिं ।
उनते पहले वे मरे, जिन मुख निकसत नाहिं ।
उत्तर:
उक्त काव्यांश ‘हिमालय के संदेश’ शीर्षक कविता से उद्धृत है । इनके रचयिता राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर है। कवि दिनकर ने भारत की चेतना और संवेदना से युक्त व्यक्तिगत का बोध कराते हुए कहते हैं कि भारत एक स्वप्न है जो भूवासियों को ऊपर ले जानेवाला है। इसी प्रकार भारत स्वर्ग को . भूमि पर लानेवाले एक विचार का नाम है। इसकी भावनाओं और दर्शनों में मनुष्य को जगाने की शक्ति है।

अथवा, रहीम कवि कहते हैं कि वे नर मर चुके हैं, जो कहीं कुछ माँगने जाते हैं। माँगने से मनुष्य का मान-गौरव नीचे गिर जाता है। लेकिन, उनके भी पहले वे नर मर चके हैं, जो माँगने पर नहीं कह देते हैं। अर्थात् यदि किसी ने विवशतावश कुछ माँग ही दिया है तो उसे दे देना चाहिए।

प्रश्न 2.
महादेवी वर्मा रचित ‘गौरा’ शीर्षक पाठ का सारांश लिखिए। 5
अथवा, हजारी प्रसाद द्विवेदी रचित ‘रवीन्द्रनाथ ठाकुर’ शीर्षक पाठ का सारांश लिखिए।
उत्तर:
इस निबन्ध में महादेवी वर्मा गाय का गण और सौन्दर्य का सजीव वर्णन किया है। गौरा’ उस गाय के नाम हैं जो लेखिका को अपनी बहन से उपहार के रूप में मिला था। गौरा के पुष्ट लीचले पैर, भूरे पुढे, चिकनी भरी हुई पीठ लम्बी सुडौल गर्दन, निकलते हुए छोटे-छोटे सींग, भीतर की लालिमा की झलक देते हुए कमल जैसी दो अधखुली पंखुड़ियों जैसे कान, लम्बी और अन्तिम छोर पर काले सघन चामर का स्मरण दिलाने वाली पूँछ, सब कुछ साँचे में ढला हुआ सा था । गाय को मानो इटैलियन मार्बल में तराशा गया हो।

हालाँकि खाद्य समस्या लेकर लेखिका को पशु-पक्षी पालना पसंद नहीं था परन्तु गौरा के अप्रतिम सोन्दर्य से अभिभूत होकर उन्होंने उसे पालने का निश्चय किया ।

घर पर गौर के आने पर उसकी आरती उतारी गयी । वह कुछ दिनों में परिवार के सदस्य और सेवकों से हिलमिल गयी । अन्य पशु-पक्षी अपनी लघुता और उसकी विशालता का अंतर भूल गए । कुत्ते-बिल्ली उसके पेट के नीचे और पैरों के बीच खेलने लगे । शीघ्र ही सजग, साकांक्ष गौरा सबको आवाज से नहीं पैर की आहट से भी पहचानने लगी । मोटर के फाटक में प्रवेश करते ही वह बाँ-बाँ की ध्वनि से लेखिका को पुकारने लगती थी । लेखिका के चाय, नाश्ता तथा भोजन के समय से भी वह इतनी परिचित थी कि थोड़ी देर कुछ पाने की प्रतीक्षा करने के बाद रंभा-रंभाकर शोर मचा देती थी । एक वर्ष पश्चात् गौरा ने एक स्वस्थ और सुन्दर बच्चे को जन्म दिया । गेरू रंग ‘ के बछड़े में माथे पर पान के आकार का सफेद तिलक और चारों पैरों में खुर के ऊपर श्वेत वलय ऐसे लगते थे जैसे गेरू की बनी किसी बछड़े की मूर्ति को रजत आभूषणों से अलंकृत कर दिया हो । बछड़े का नाम लालमणि रखा गया जिसे प्यार से ‘लालू’ नाम से सम्बोधित करते थे ।

गौरा प्रात:-सायं मिलाकर बारह किलो दूध देती थी । लालमणि के लिए । कई सेर छोड़ देने पर भी इतना अधिक शेष रहता था कि उस दूध की चाहत | में आसपास के बालगोपाले से लेकर कुत्ते-बिल्लियों तक एक पंक्ति में बैठ

जाते थे । दूध दूहने के उपरांत नाप-नापकर सबके पात्रों में दूध डाल दिया जाता था, जिसे पीने की बाद गौरा के चारों ओर उछलने-कूदने लगते । जब तक वे सब चले न जाते गौर प्रसन्न दृष्टि से उन्हें देखती थी ।

किन्तु अंत में एक त्रासद घटना घटी । गोरा ने खाना पीना कम कर | दिया । पशु-चिकित्सक आए । पता चला कि गाय को सूई खिला दिया गया है । अतः कुछ दिन के बाद गाय मर गयी।

इस प्रकार एक नया सत्य का रहस्योद्घाटन हुआ, जिसकी कल्पना लेखिका के लिए संभव नहीं था । अक्सर ग्वाला ऐसे घरों में जहाँ उनसे अधि क दूध लिया जाता है गाय का आना सह नहीं पाते । अवसर मिलते ही वे गुड़ में सूई लपेटकर खिला देते हैं । गाय के मर जाने पर पुनः वे दूध देने लगते हैं । मर्माहत लेखिका आह भरते हुए कहती है-ओह मेरा गोपालक देश ।

अथवा, कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर शीर्षक निबन्ध के लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के लेखन समता एवं व्यक्तित्व का सजीव चित्रण और मूल्यांकन प्रस्तुत किया है । इस निबन्ध में उन्होंने विश्व कवि के व्यकितत्व के उन तमाम पक्षों पर प्रकाश डाला है जो सामान्य लोगों के दृष्टि से ओझल हो जाते हैं । आचार्य द्विवेदी के अनुसार रवीन्द्रनाथ ठाकुर की महानता का आधार अनन्य भाव से सरस्वती की उपासना है । उनकी उपासना का एक मात्र लक्ष्य मानवता की सेवा है । इसी कारण वे बिना किसी शैक्षिक डिग्री के ही विश्व कवि बनने का गौरव हासिल किया ।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म 1861 ई. में हुआ था । वे बाबू द्वारकानाथ ठाकुर के पौत्र और महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर के पुत्र थे । उनका वंश अपनी विद्वता के लिए चिरकाल से प्रसिद्ध है। इस परिवार में अनेक धार्मिक, दार्शनिक, साहित्यसेवी और शिल्पकार पुरुषों ने जन्म लिया है रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बचपन में ही माता का देहान्त हो गया । अतः वे महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकर के निगरानी में पलने-बढ़ने लगे । स्कूल की साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद घर पर ही स्वाध्याय करने लगे। – कहा जाता है कि ‘होनहार बीरवान के चिकने पात’ शायद उनपर पूरी

तरह लगा होती है। 16 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने पद्य और गद्य दोनों | विद्याओं में अपनी नैसर्गिक साहित्य रचनाशीलता का परिचय दे दिया था ।

वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । उनका संगीत विद्या पर भी अच्छा पकड़ था । वे खुद गीत की रचना करते थे । वे पिता को गीत गाकर सुनाते थे। उनके गाने से प्रसन्न होकर पिता ने उनको ‘बंग देश की बलबल’ की उपाधि दी थी।

बंगला साहित्य की जिस विद्या में उन्होंने हाथ डाला. उसी में उन्हें सफलता मिली । उसमें आध्यात्मिकता भी पायी जाती है। उन्होंने बहत काल तक ‘भारती’, ‘बालक’, ‘साधना’ और बंग-दर्शन नामक बंगला की मासिक पुस्तकों का सम्पादन भी किया ।

रविन्द्र बाबू की भाषण कला भी अद्भुत थी । श्रोता मंत्र मुग्ध होकर उनके भाषण सुनते थे। रवीन्द्रनाथ बहुत बड़े देशभक्त थे । स्वदेश भक्ति पर अनेक कविताएँ लिखी हैं। उनकी स्वदेश भक्ति संकीर्ण नहीं थी । विदेशियों के प्रति भी वे सम्मान के भाव रखते थे । वे मानव मात्र से प्रेम करते । वह वास्तव में मानव सेवा प्रति, कल्याणकारी परोपकार और सरस्वती की सेवा करने की भावना से काम करते रहे ।

Bihar Board 12th Hindi 50 Marks Model Question Paper 2

प्रश्न 3.
सभी प्रश्नों के उत्तर दें – 5
(a) ‘हिमालय का संदेश’ कविता के कवि कौन हैं?
(b) ‘सुन्दर का ध्यान कहीं सुन्दर’ कविता के कवि का नाम बतावें।
(c) ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’ के रचनाकार कौन हैं?
(d) ‘इस देश में जो जिसके लिए प्रतिबद्ध है, वही उसे नष्ट कर रहा है।” किस पाठ से उद्धृ है।
(e) ‘पंच परमेश्वर’ के लेखक कौन है ?
उत्तर:
(a) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(b) गोपाल सिंह ‘नेपाली’ ।
(c) हरिशंकर परसाई ।
(d) ठिठुरता हुआ गणतंत्र ।
(e) प्रेमचंद ।।

प्रश्न 4.
संक्षेपण करें – 5
वैदिक युग में जाति-विभाजन नहीं था। स्त्रियाँ शिक्षित होती थी। कृषि उन लोगों का प्रधान व्यवसाय था। आर्य गाँव बनाकर रहते थे। राजा लोग सुनहरे वस्त्र और भूषण पहनकर राज-काज करते थे। नगर की रक्षा के लिए, गाँव रक्षा के लिए राजा के अधीन रक्षक नियुक्त होते थे। मनुसंहिता जिस समय लिखी गयी थी, उसी समय हिन्दुओं में जाति-विभाजन हुआ था।
उत्तर:
बहरों को कान और लंगड़ों को चलने की क्षमता प्रदान की है। आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कंप्यूटर का इतना हस्तक्षेप हो गया है कि आधुनिक युग – कंप्यूटर का युग कहा जाने लगा है । इसकी लीलाएँ देखकर स्वतः ही दाँतों तले उँगली दब जाती है। कभी-कभी तो इसके कार्यों को अपनी आँखों से देखकर भी विश्वास नहीं होता । इसकी सहायता से मानव अंतरिक्ष में घूम आया है। चंद्रमा का मस्तक चूमने में सफल हुआ है। पृथ्वी की परिक्रमा कर पाया है । इतना ही नहीं विभिन्न ग्रहों की जानकारी पलक झपकते ही प्राप्त कर लेता है।

जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जहाँ इसका महत्त्व दिखाई नहीं देता है।। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इसका अभूतपूर्व योगदान है । इसके कारण सूचना के द्वारा आप अपने घर में बैठकर स्थानीय कॉल पर अमरीकी या किसी अन्य देश से बात कर सकते हैं। दुनिया भर की जानकारी आप मिनटों में प्राप्त कर सकते हैं । इसके कारण दुनिया मुट्ठी में सिमट गई है । संसार का वैश्वीकरण हो गया है । आज यह वैज्ञानिक यंत्र न रहकर मानव मस्तिष्क बन गया है।

सुपर कंप्यूटर ने तो गणना के क्षेत्र में कल्पनातीत उन्नति की हैं । परमाणु तकनीकी की अपेक्षा सुपर कंप्यूटर का महत्त्व अधिक है । सुपर कंप्यूटर ‘परम-1000’ एक सेकेंड में एक खरब गणितीय गणनाएँ कर सकता है । यह मौसम का पूर्वानुमान लगा लेता है । प्राकृतिक गैस तथा खनिज पदार्थों के भंडारों का पता लगाने में यह अनोखा मददगार होता है । दूर संवेदी आकलन करने में तो इसके कहने ही क्या ? यह समय-समय पर भौगोलिक सचनाओं से संबंधित जानकारी देता है । इसके साथ-साथ सामरिक क्षेत्र में भी हमने लंबी छलांग लगा ली है। कंप्यूटर के निर्माण से हम जीवन के हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गये हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में कंप्यूटर अब अनिवार्य-सा हो गया है । इसने विद्यार्थियों को भारी बस्ते से मुक्ति दिला दी है । आज विद्यार्थी अपनी पूरी शिक्षा कंप्यूटर के माध्यम से कर सकते हैं। यदि आपके कंप्यूटर घर में ही है तो आपको विद्यालय जाने की आवश्यकता ही नहीं है । जिस विषय की पढ़ाई करनी हो उस विषय के वेबसाइट पर चले जाइए । विद्यालय की भाँति उसमें भी अध्यापक आपके प्रश्नों का समुचित उत्तर देगें । बाजार में भी विषयों की सी० डी० और फ्लॉपी मिलती हैं। अतः विद्यार्थियों के लिए अब शिक्षा प्राप्त करना आसान ही नहीं बल्कि सस्ता भी हो गया है ।इसके द्वारा विद्यार्थी विभिन्न प्रयोग करते हैं । इसी के द्वारा विद्यार्थियों और अन्य परीक्षार्थियों की उत्तर पुस्तिका जाँची जाने लगी है । इससे जाँच प्रक्रिया भी पूर्णतः सही होती है।

चिकित्सा के क्षेत्र में कंप्यूटर चिकित्सक का कार्य करने लगा है । इसके द्वारा बीमारियों का पता लगाया जाता है। शरीर के विभिन्न अंगों की जाँच ‘की जाती है। बीमारियों के इलाज के लिए दवाइयाँ बताने का कार्य भी कंप्यूटर करता है । इस क्षेत्र में कंप्यूटर ने एक अनोखी पद्धति का भी आविष्कार किया है जिसका नाम ‘मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन’ है ।

प्रायः विकसित देशों के डॉक्टरों के पास समय का अभाव होता है । वे दवाइयों के पर्चे बनाकर नहीं दे सकते । वे निर्धारित दवाइयों को केवल मुँह से बोल देते हैं । इन बोलों को निर्धारित मेडिकल की भाषा में अनुवांछित कर मरीज को दे दिए जाते हैं । कुछ समय पहले ही कंप्यूटर ने ‘जीनोय पद्धति’ को भी विकसित किया है जिसमें पैदा होते ही भविष्य में होने वाली बीमारियों का पता लगाया जा सकता है। बीमारी का पता चलने के बाद शीघ्रतिशीघ्र उसका उपचार भी किया जा सकता है। यह कहना अनुचित न होगा कि कंप्यूटर ने मानव की औसत आय को भी बढ़ा दिया है।

Bihar Board 12th Hindi 50 Marks Model Question Paper 2

प्रश्न 5.
किसी एक पर निबंध लिखें – 5

  1. कंप्यूटर
  2. दहेज कुरीति
  3. समय का महत्त्व
  4. होली
  5. भ्रष्टाचार

उत्तर:
(i) कंप्यूटर –  ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में क्रांति ला दी है। रेलगाड़ियों और हवाई जहाजों का आरक्षण इसके द्वारा ही होता है । वायुयान का संचालन भी यह एक चालक की भाँति करता है। चालक को केवल बटन दबाने की आवश्यकता होती है । गति और दिशा का निर्धारण भी यही करता है । मुद्रण के क्षेत्र में इसका योगदान असीमित है । पुस्तकों, समाचार-पत्रों की छपाई का काम इसी के द्वारा होता है । यह कार्य की सुचारु रूप से ही नहीं करता बल्कि

शीघ्र भी करता है । रेडियो, टेलीविजन के कार्यक्रमों, के प्रसारण में भी यह महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है ।

अंतः में मैं यह कहना चाहूँगा कि कंप्यूटर का उपयोग-प्रयोग वैज्ञानिक और व्यापारिक प्रक्रियाओं में कितना ही क्यों न बढ़ जाए, किन्तु वह मानव-मस्तिष्क का स्थान नहीं ले पाएगा। कंप्यूटर केवल वे ही परिणाम और सूचनाएँ दे सकेगा जिनका आँकड़ा ध्यानपूर्वक उसमें भरा जाएगा । थोड़ा-सा भी ध्यान चूकने से यह परिणाम विपरीत देने लगेगा । मानव-मस्तिष्क की तरह अनुभूति-जन्य काव्य की सृष्टि नहीं कर सकता, सौंदर्य को संपादित नहीं कर सकता । फिर भी मनुष्य के जीवन को अधिकाधिक सुविधापूर्ण बनाने के लिए कंप्यूटर में अनेक संभावनाएँ विद्यमान हैं । इसकी उपलब्धियाँ अगणित हैं । यदि यह नहीं रहा तो जीवन नीरस और असुविधाजनक हो जाएगा ।

Bihar Board 12th Hindi 50 Marks Model Question Paper 2

(ii) दहेज कुरीति – यों तो हमारे देश में कई ऐसी प्रथाएँ प्रचलित हैं जिनके भीतर न जाने कितनी बुराइयाँ भरी-पड़ी हैं, लेकिन समाज में कोढ़ में खाज की तरह जो कुप्रथा सबसे घृणित, त्याज्य एवं शर्मनाक है, वह है-दहेज-प्रथा । इस कर्लोकत कुप्रथा ने हमारे पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में सड़ांध की ऐसी विषैली स्थिति उत्पन्न कर दी है कि हमारा संपूर्ण जीवन इससे विषाक्त हो गया है। इससे हमारे लाक-जीवन की सारी मर्यादाएँ खंडित हो गयी हैं। हमारे सामाजिक जीवन के पारंपरिक आदर्शी के सामने प्रश्न-चिह्न-सा लग गया है। यही कारण है कि बहुविध राजनैतिक,

धार्मिक, आर्थिक और राष्ट्रीय समस्याओं की भाँति यह भी एक गंभीर समस्या | बन गयी है।

दहेज-प्रथा की वर्तमान विकृति का मूल कारण नारी के प्रति हमारा परंपरित दृष्टिकोण है। एक समय था जब हमारी स्वस्थ दृष्टि पुत्री और पुत्र में कोई अंतर नहीं मानती थी। परिवार की गोद में कन्या के आगमन को लक्ष्मी का शुभ पदार्पण माना जाता था। लेकिन, धीरे-धीरे समाज में नारी के अस्तित्व के संबंध में हमारे विचार विकृत होने लगे। उस कविचार को कालिमा की छाया दिन-ब-दिन भारी होकर और भी गहरी पडती गयी और नतीजा यह हआ कि घर की लक्ष्मी तिरस्कार की वस्तु समझी जाने लगी।

आज दहेज-प्रथा की विकृति उच्चवर्ग के साथ-साथ मध्यम तथा निम्नवर्ग के लोगों के जीवन में भी उतर आयी है। उच्चवर्ग तथा कुछ हद तक साधारण वर्ग इस कुप्रथा के कुपरिणाम का वैसा भोगी नहीं है जैसा कि मध्यम वर्ग। उसके लिए कुप्रथा तो कोढ़ की खाज की तरह हो गयी है। यही कारण है कि आज दहेज-प्रथा के भयंकर कुपरिणाम चतुर्दिक तांडव कर रहे हैं। इस कुप्रथा ने आज हमारे पारिवारिक और सामाजिक जीवन में ललनाओं की, बालाओं की, बहन और बेटियों की स्थिति बडी ही दुर्बल और शोचनीय बना दी है। यदि समय रहते इस प्रथा पर पूर्ण रूप से नीयत साफ कर रोक नहीं लगायी गयी, तो समाज पूर्णरूपेण विशृंखलित हो जायेगा। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि इस प्रथा के उन्मूलन के लिए हर संभव प्रयास किये जाएँ।

(iii) समय का महत्त्व – मनुष्य बली नहीं होता है, समय होत बलवान’ हम भले ही विश्राम करें किन्तु समय विश्राम नहीं करता । भारत में समय को काल या महाकाल कहा जाता है । इसे एक देवता भी माना गया है । काल का चक्र अबाध-गति से चलता रहा है । जिस प्रकार परमात्मा अनादि

और अनंत हैं, उसी प्रकार काल भी अनादि और अनंत है। मानव जीवन के रूप में हमें इस अखंड काल का एक छोटा-सा भाग मिलता है । सचमुच समय बड़ा मूल्यवान है। शायद प्रत्येक खोई वस्तु पुनः पाई जा सकती है किंतु समय कभी नहीं पाया जा सकता । घड़ी की प्रत्येक टिक्-टिक् एक-एक सेकेंड के बीतने का अहसास कराती है। पलकें पल-पल का हिसाब कर रही हैं। उगता और डूबता सूरज एक-एक दिन बीतने की घोषणा कर रहा है । हर मौसम एक बार आकर कह जाता है कि एक साल और बीत गया । जोसेफ हाल ने एक बड़े ही पते की बात कही है-‘प्रतिदिन एक लघु जीवन है और हमारा सारा जीवन मात्र एक दिन की पुनरावृत्ति है ।

अतः प्रतिदिन इस तरह जिओ मानो वह अंतिम ही हैं।

समय का इससे सुंदर मूल्य नहीं आंका जा सकता । इसकी उपयोगिता ही इसकी व्याख्या है। हमारा प्रत्येक क्षण एक दिन है और प्रत्येक दिन अपने आप में एक जीवन-खंड है । जीवन के एक खंड को व्यर्थ करने वाला बहुत बड़ी पूँजी को गँवा डालता है। दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान की करुण असफलता का कारण भी यही था । शेरशाह सूरी द्वारा हुमायूँ की पराजय का कारण भी यही था । जो समय हुमायूँ ने आराम-तलबी में बिताया उसी का सूरी ने सर्वाधिक प्रयोग किया। इसी तरह इतिहास की कितनी ही घटनाएँ इस बात की गवाह है कि समय की उपेक्षा करने वालों को समय ने कभी क्षमा नहीं किया । औरंगजेब ने अपने वसीयतनामा में लिखा था-‘समय का प्रत्येक पल बहमल्य है । वो व्यक्ति वक्त की गफलत न करता तो मेरा शत्रु शिवाजी यों सहज ही छूटकर नहीं जा सकता था और मुगल साम्राज्य के लिए वह यों सिर दर्द न बन सकता था ।’

कहावत है – समय धन है । हमें इसे अपने हृदय की गहराई तक उतार लेना चाहिए । यह मणि-माणिक्यों से भी बहुमूल्य हैं । एक-एक क्षण गँवाना मानो एक रत्न का फेंकना है।
महात्मा कबीरदासजी ने दो पंक्तियों में कितनी बड़ी बात कह दी हैकाल करे सो आज कर, आज करे सो अब पल में परलै होएगी, बहुरि करोगे कब ॥ योगी वशिष्ठ ने भी समय के सदुपयोग की ओर संकेत किया है

कार्यमण्यपि काले तु कृतमेत्युपकारताम् महानत्युपकारोऽपि रिक्ततामेत्यकालतः ॥

अर्थात् समय पर किया हुआ थोड़ा-सा कार्य भी बहुत उपयोगी होता है और समय बीतने पर किया महान उपकार भी व्यर्थ चला जाता है ।

मेसन ने कहा है-‘जिस प्रकार स्वर्ण का प्रत्येक अंश मल्यवान होता है उसी प्रकार समय का प्रत्येक भाग बहुमूल्य होता है ।’ अतः स्पष्ट है कि समय अत्यंत मूल्यवान है । समय का सदुपयोग जीवन में सफलता की कुंजी है । किसी की प्रतीक्षा नहीं करता । यह केवल उसी का साथ निभाता है जो इसकी पहचान करके इसका सदुपयोग करता है । जैसे कमान से छूटा हुआ तीर वापस नहीं आ सकता, पका हुआ फल भूमि पर गिर जाने पर दुबारा डाली पर नहीं जोड़ा जा सकता ठीक उसी प्रकार एक बार समय हाथ से निकल जाने पर दुबारा प्राप्त नहीं कर सकते । इस विषय में श्री मन्ननारायण ने एक बार अपने लेख’ समय नहीं मिला’ में लिखा था ‘समय धन से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है-परंतु क्या हजार परिश्रम करने पर भी चौबीस घंटों में एक भी मिनट बढ़ा सकते हैं । इतनी मूल्यवान वस्तु का धन से फिर क्या मुकाबला ।’ अत: समय तो अमूल्य है । इसकी तुलना धन से कभी नहीं की जा सकती ।

जो लोग समय का दुरुपयोग करते हैं, वे अपने जीवन को व्यर्थ गवाँ । देते हैं। __कहा गया है-‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत’ इसलिए जब समय रूपी चिड़िया जीवन रूपी खेत में से सारे दाने चुग जाए तब पछताने से क्या लाभ । कौन नहीं जानता की नेपोलियन की सेनापति ग्रुशी के केवल पाँच मिनट के विलंब से नेपोलियन को पराजय का मुख देखना पड़ा । समय पर सचेत न होने के कारण भारतीय वर्षों तक विदेशियों के गुलाम रहे। समय का उचित उपयोग ही नहीं किया तो बाद में भले ही कितने प्रयत्न करो, क्या लाभ’ ।

(iv) होली – होली मेरा प्रिय त्योहार है। यह अपनी झोली में रंग और गुलाल लेकर आती है। यह उल्लास, आनंद और मस्ती का त्योहार है।।

होली चैत मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है । इसके एक दिन पहले (प्रायः) होलिकादहन होता है। होलिकादहन की पीछे होलिका (हिरण्यकश्यपु की बहन ) हिरण्यकश्यपु और उसके विष्णुभक्त पुत्र प्रह्लाद की जो पौराणिक कथा है, वह सर्वविदित है ।

समाजशास्त्रियों का कथन है कि कृषि-प्रधान देश भारत के सारे पर्व फसल के साथ जुड़े हुए हैं । होली रबी फसल की आशा (की खुशी ) में मनाई जाती है । ‘अगजा’ के दिन ‘संवत’ में लोग गेहूँ की कच्ची बालियाँ भूनकर खाते हैं। ‘होली’ का अर्थ दुग्धपूर्ण अनाज का भूना हुआ रूप होता है । ‘अगजा’ (होलिकादहन ) के दिन गाँवों और शहरों में निश्चित स्थान पर होलिकादहन होता है । निश्चित समय पर लोग एकत्र होते हैं । बच्चों द्वारा एकत्र किए गए लकड़ी-गोयठे और घास-पात में आग लगाई जाती है । आग लगते ही लोग ढोल पर थाप दे-देकर होली गाने लगते हैं । अजीब आनंद का वातावरण छा जाता है। वहाँ हँसी-ठिठोली भी खब होती है। कभी-कभी बच्चे और युवक अतिरिक्त उत्साह में किसी को चौकी या झोपड़ी ही ‘अगजा’ में डाल देते हैं । यह अशोभनीय है । इससे रंग में भंग होता है।

दूसरे दिन खूब धूमधाम से होली शुरू होती है । रंग, गुलाल, नए वस्त्र और रंग-अबीर से रंगे-पुते मुस्कुराते-हँसते चेहरे-यही है इस पर्व की पहचान । घर-घर तरह-तरह के पकवान पकते हैं। सभी एक-दूसरे से आनंदविह्वल होकर मिलते हैं। इस दिन कोई किसी का शत्रु नहीं होता । भांग और शराब पीकर तथा लोगों पर रोड़े-भरी कीचड़ फेंककर इस त्योहार का मजा किरकिरा नहीं करना चाहिए। जीवन में रस का संचार करनेवाली होली का अभिनंदन तभी सार्थक होगा जब हम संप्रदाय, जाति, धर्म तथा ऊँच-नीच की भावना और विद्वेष से ऊपर उठकर सबको गले लगाने के लिए तैयार होंगे।

Bihar Board 12th Hindi 50 Marks Model Question Paper 2

(v) भ्रष्टाचार – आजकल धन संग्रह एवं आवश्यक वस्तुओं के संग्रह की प्रवृत्ति बढ़ गयी है। यह एक ऐसी वस्तु है जो अत्यन्त विवेकी, शिक्षित एवं ईमानदार व्यक्ति की मति को भ्रष्ट कर देती है और मति-भ्रष्ट की बुद्धि विपरीत हो जाती है, किसी कार्य को करने में वह किंकतर्व्यविमूढ़ हो जाता है । समाज में असीम मान-प्रतिष्ठा को रखने वाले बड़े-बड़े व्यक्ति तथा साहूकार लोग आवश्यक वस्तुओं का संग्रह कर लेते हैं। इसी कारण नव वस्तुओं का अभाव हो जाता है । जनता सदैव त्याग, सेवा और परोपकार की प्रेमी होती है। जो व्यक्ति इन कार्यों को करते हैं, भ्रष्ट उपायों के द्वारा प्राप्त धन को निर्धनों में वितरण करते हैं, सार्वजनिक स्थलों का निर्माण कराते हैं उनमें अपने धन के मोत को छिपाने का स्वार्थ होता है।

‘आज हम नैतिक जीवन से बहुत दूर चले गए हैं । नैतिक आचार तो मानव समाज का भूषण माना जाता है । कहा भी गया है-“आचारः परमो धर्मः । अर्थात् आचार ही सबसे बड़ा धर्म है। प्राचीनकाल में सभी लोग इसको नैतिक जीवन का अनिवार्य अंग समझते थे । परन्तु आज नैतिकता का अभाव उसी प्रकार है जिस प्रकार शिशु-पाषाण । कारण यह है कि वर्तमान परिस्थितियाँ ऐसी हो गयी है जिनमें ईमानदारी, सत्यता, दान, कर्तव्यपरायणता का स्थान शून्य के बराबर है। कोई भी कार्य आज बिना रिश्वत और सिफारिश के सिद्ध नहीं होता । रिश्वतखोरी तो भारतीय समाज में ऐसे घुल गयी है जैसी पानी में नमक का घोल । इसी के कारण प्रतिष्ठित पदों पर योग्य व्यक्ति का स्थान नगण्य है।

आज आर्थिक दृष्टि से भी हम गिरे हए हैं. क्योंकि गलत तरीके से प्राप्त धन किसी भी शुभ कार्य में नहीं लगता, यह धन तो धनी लोगों के लिए आराम से जीवन-यापन करने में व्यय होता है।

इस राजनीति को तो यह कोढ़ के सदृश्य भ्रष्टाचार खा रहा है । जनता द्वारा चुनाव में निर्वाचित भ्रष्ट व्यक्ति सरकार में पहुंच रहे हैं, समस्त शासन प्रणाली दूषित हो रही है । धनिक वर्ग का राजनीतिक कार्य-प्रणालियों पर प्रभाव होने के कारण देश में एकतंत्र बलवान हो रहा है। ये पूँजीपति स्वार्थ परायण होते हैं, देश के हित के प्रति उनका मानो कोई उत्तरादायित्व ही नहीं है । चुनाव प्रणाली में अपरिमित व्यय होता है । राजनीतिक दल आर्थिक सहायता प्रदान कर तथा अपने पक्ष में कानूनों का निर्माण कराकर मानों अपने ही स्वार्थ की सिद्धि करते हैं । यह प्रवृत्ति भ्रष्ट राजनीति का फल है ।

Leave a Comment

error: Content is protected !!