Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions
Bihar Board Class 12th Hindi Book 50 Marks Solutions गद्य Chapter 1 पंच परमेश्वर
पंच परमेश्वर अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रेमचन्द ने कितनी कहानियाँ लिखी है?
उत्तर-
प्रेमचन्द ने लगभग 300 कहानियाँ लिखी हैं।
प्रश्न 2.
‘पंच परमेश्वर’ कहानी में किसका उद्घाटन हुआ है?
उत्तर-
‘पंच परमेश्वर’ कहानी में जीवन सत्य का मार्मिक उद्घाटन हुआ है।।
प्रश्न 3.
पंच के पद पर प्रतिष्ठित व्यक्ति किसके प्रति उत्तरदायी होता है?
उत्तर-
पंच के पद पर प्रतिष्ठित व्यक्ति जाति, धर्म और सम्बन्धों से सर्वथा मुक्त न्याय के प्रति उत्तरदायी होता है।
प्रश्न 4.
प्रेमचन्द की कहानी में उनकी चिन्ता के केन्द्रों में क्या रहा है?
उत्तर-
प्रेमचन्द की कहानी में उनकी चिन्ता के केन्द्रों में सदैव शोषित, पीडित, प्रताड़ित और उपेक्षित मनुष्य की मुक्ति रहा है।
प्रश्न 5.
पंच की जबान से कौन बोलता है?
उत्तर-
पंच की जबान से ईश्वर अर्थात् खुदा बोलता है।
प्रश्न 6.
जुम्मन की पत्नी का क्या नाम था?
उत्तर-
जुम्मन की पत्नी का नाम करीमन था।
प्रश्न 7.
जुम्मन के पिता का नाम क्या था?
उत्तर-
जुमराती शेख।
प्रश्न 8.
अलगू चौधरी के गुरु का क्या नाम था?
उत्तर-
जुमराती शेख।।
प्रश्न 9.
प्रेमचन्द का पहला उपन्यास कौन है?
उत्तर-
सेवा सदन।
प्रश्न 10.
प्रेमचन्द का अन्तिम उपन्यास कौन-सा है?
उत्तर-
मंगल सूत्र।
प्रश्न 11.
प्रेमचंद का जन्म किस सन् में हुआ था?
उत्तर-
सन् 1880 में।
प्रश्न 12.
प्रेमचंद के समग्र कहानी-संग्रह का क्या नाम है?
उत्तर-
प्रेमचंद की कहानियाँ।
पंच परमेश्वर लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जुम्मन शेख और अलगू चौधरी के मित्रता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
जुम्मन शेख और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेनदेन में भी साझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था। जुम्मन जब हज करने गये थे तब अपना घर अलगू को सौंप गए थे और अलगू जब कभी बाहर जाते, तो जुम्मन पर अपना घर छोड़ देते थे। उनमें न खान-पान का व्यवहार था न धर्म का नाता, केवल विचार मिलते थे। मित्रता का मूलमंत्र भी यही है।
इस मित्रता का जन्म उसी समय हुआ जब दोनों मित्र बालक थे और जुम्मन के पूज्य पिता, जुमराती उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे।
प्रश्न 2.
जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की योग्यता, शिक्षा और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
उत्तर-
शिक्षा प्राप्त करने के लिए अलगू चौधरी ने अपने गुरु, शेख जुमराती की बहुत सेवा की थी, खूब रकाबियाँ मॉजी, खूब प्याले धोये। उनका हुक्का एक क्षण के लिए भी विश्राम न लेने पाता था क्योंकि प्रत्येक चिलम अलगू को आधे घंटे तक किताबों से अलग कर देती थी।
अलगू के पिता पुराने विचार वाले मनुष्य थे उन्हें शिक्षा की अपेक्षा गुरु की सेवा-सुश्रुषा पर अधिक विश्वास था। वह कहते थे कि शिक्षा पढ़ने से नहीं आती जो कुछ होता है गुरु के आशीर्वाद से ही होता है। जुम्मन शेख के पूज्य पिता ने दोनों की शिक्षा पर आशीर्वाद से अधिक सोटें का प्रयोग किया था। शैक्षणिक योग्यता के कारण ही आसपास के गाँवों में जुम्मन की पूजा होती थी। उनके लिखे हुए रेहननामे या बैनामें पर कचहरी की मुहर भी कलम न उठा सकता था। हल्के का डाकिया, कान्सटेबल और तहसील का चपरासी-सब उनकी कृपा की आकंक्षा रखते थे। यदि अलगू चौधरी का मान उनके धन के कारण था तो जुम्मन शेख अपनी अनमोल विद्या से ही सबके आदर पात्र बने थे।
प्रश्न 3.
जुम्मन शेख की खाला क्यों पंचायत करने पर मजबूर हो गई थी?
उत्तर-
जुम्मन शेख की बूढी खाला के पास कुछ थोड़ी-सी मिलकियत थी, उनको कोई निकट संबंधियों में से जीवित न था। इसलिए जुम्मन ने लंबे-चौड़े वादे करके वह मिलकियत अपने नाम लिखवा ली थी। जब तक दानपात्र की रजिस्ट्री न हुई थी, तब तक खालाजान का खूब आदर-सत्कार किया गया, पर रजिस्ट्री की मुहर ने इन खातिरदारियों पर भी मानो मुहर लगा दी। जुम्मन शेख की पत्नी करीमन रोटियों के साथ कड़वी बातों के कुछ तेज, तीखे सालन भी देने लगी। जुम्मन शेख भी निठुर हो गए।
खालाजान को प्रायः नित्य ही कड़वी बातें सुननी पड़ती थीं। बुढ़िया न जाने कब तक जीएगी। दो-तीन बीघे ऊसर क्या दे दिया, मानो मोल ले लिया है। इन बातों को सुन सुन कर खालाजान बिगड़ गयीं और पंचायत करने पर मजबूर हो गई।
प्रश्न 4.
प्रेमचंद ने उत्तरदायित्व की व्याख्या किस प्रकार की है? स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रेमचंद के विचार के अनुसार उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है। जब हम राह भूल कर भटकने लगते हैं तब यही ज्ञान हमारा विश्वसनीय पथ-प्रदर्शक बन जाता है। पत्र-संपादक अपनी शान्ति कुटी में बैठा हुआ कितनी धृष्टता और स्वतंत्रता के साथ अपनी प्रबल लेखनी से मंत्रिमण्डल पर आक्रमण करता है; परन्तु ऐसे अवसर आते हैं, जब वह स्वयं मंत्रिमण्डल में सम्मिलित होता है। मण्डल के भवन में पग धरते ही उसकी लेखनी कितनी मर्मज्ञ, कितनी विचारशील, कितना न्यायपरायण हो जाती है। इसका कारण उत्तरदायित्व का ज्ञान है।
नवयुवक युवावस्था में कितना उदण्ड रहता है। माता-पिता उसकी ओर से कितने चिन्तित रहते हैं। वे उसे कुल-कलंक समझते हैं परन्तु थोड़े ही समय में परिवार का बोझ सिर पर पड़ते ही वह अव्यवस्थित-चित्त उन्मत्त युवक कितना धैर्यशील कैसा शान्तचित हो जाता है, यह भी उत्तरदायित्व के ज्ञान का फल है।
जुम्मन शेख के मन में भी सरपंच का उच्च स्थान ग्रहण करते ही अपनी जिम्मेदारी का भाव पैदा हुआ। उसने सोचा, मैं इस समय न्याय और धर्म के सर्वोच्च आसन पर बैठा हूँ। मेरे मुँह से इस समय जो कुछ निकलेगा वह देववाणी के सदृश है और देववाणी में मेरे मनोविकारों का कदापि समावेश न होना चाहिए मुझे सत्य से जौ भर भी टलना उचित नहीं।
प्रश्न 5.
पंचों का हुक्म अल्लाह का हुक्म है। कैसे?
उत्तर-
पंच परमेश्वर’ कहानी प्रेमचंद की एक प्रारम्भिक पर प्रसिद्ध कहानी है। पंच के पद पर बैठनेवाला व्यक्ति अन्यायपूर्ण निर्णय नहीं दे सकता। वह न्याय करता है।
जुम्मन शेख और अलगू चौधरी में गाढी मित्रता थी। जुम्मन शेख और उनकी खाला के बीच मतभेद होने पर अलगू चौधरी पंच मुकर्रर किए गए।
जुम्मन बोले-पंचों का हुक्म अल्लाह का हुक्म है। पंच ईश्वर की वाणी को अभिव्यक्ति देकर दूध का दूध और पानी का पानी कर देता है।
बाद में खाला ने जुम्मन के मित्र अलगू को ही पंच चुना और अलगू ने खाला के पक्ष में निर्णय सुनाया।
सच है पंचों का हुक्म अल्लाह का हुक्म है। पंच के दिल में खुदा बसता है। पंचों के मुँह से जो बात निकलती है, वह खुदा की तरफ से निकलती है।
प्रश्न 6.
कलियुग में दोस्त का व्यवहार कैसा होता है?
उत्तर-
कलियुग में दोस्त भी मौका पड़ने पर शत्रु सा व्यवहार करने लगता है। शत्रु तो शत्रु है ही।
लेकिन इस कहानी में पंच के रूप में जब अलगू बैठता है तो जुम्मन के खिलाफ फैसला देता है।
यहाँ कहानीकार कहता है कि कलियुग में दोस्त भी दगा देता है।
प्रश्न 7.
अच्छे कामों की सिद्धि में देर लगती है। पठित पाठ के आधार पर बनाएँ।
उत्तर-
पंच में परमेश्वर बसता है। जुम्मन के खिलाफ जब अलगू ने फैसला सुनाया तो जुम्मन को यह बात खटकने लगी। जुम्मन को जल्द ही बदला लेने का मौका मिल गया।
इसी पर प्रेमचंद कहते हैं-अच्छे कामों की सिद्धि में देर लगती है। बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं होती।
प्रश्न 8.
“अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है। जब हम राह भूल कर भटकने लगते है। तब यही ज्ञान हमारा विश्वसनीय पथ-प्रदर्शक बन जाता है।”
उत्तर-
प्रस्तुत अवतरण प्रेमचंद की श्रेष्ठ कहानियों में से एक ‘पंच परमेश्वर’ से ली गई हैं खालाजान की पंचायत में अलगू चौधरी ने मित्र जुम्मन के खिलाफ फैसला सुनाकर जुम्मन से शत्रुता मोल ले ली थी। जुम्मन को विश्वासघाती मित्र से बदला चुकाने का अवसर मिलता है अलगू चौधरी और समझू साहू के बैल के मुकदमे में। समझू साहू जुम्मन को पंच बनाते हैं। जुम्मन के पंच बनते ही अलगू का कलेजा धक्-धक् करने लगता है।
मगर जुम्मन सरपंच बनते ही अलगू के साथ पुरानी शत्रुता को भूल जाते है, और एक उत्तरदायी सरपंच की तरह दूध का दूध और पानी का पानी करते हुए-सत्य का साथ देते हैं और फैसला समझू के विरुद्ध देते हैं-इसका कारण यही है कि व्यक्ति जब स्वतंत्र होता है, तब उसकी मन:स्थिति उदण्ड होती है, वह लापरवाह होता है। किन्तु जब उसके ऊपर जबाबदेही आती है तब वह लापरवाह नहीं रह पाता। उसके सारे संकुचित विचार एवं व्यवहार बदल जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि उत्तरदायित्व का ज्ञान संकुचित विचारों का सुधारक होता है।
जब व्यक्ति उत्तरदायित्व के पथ से भटकने लगता है तब उत्तरदायित्व का यही ज्ञान उसका विश्वसनीय साथी बन उसका पथ प्रदर्शन करता है, उसे भटकने नहीं देता। सत्य पथ से विचलित नहीं होने देता। यही उत्तरदायित्व का ज्ञान जुम्मन और अलगू को मित्रता या शत्रुता के संकुचित विचारों से मुक्त कर सत्य का साथ देने से असत्य को दण्डित करने को प्रेरित करता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पंच परमेश्वर कहानी का सारांश लिखिए।
उत्तर-
प्रेमचन्द की कहानियाँ भारतीय जीवन व्यवस्था का आइना है। उन्होंने अपनी कहानी ए परमेश्वर’ में शोषित, पीडित, प्रताड़ित, उपेक्षित लोगों की दशाओं का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है। उनकी कहानियाँ जाति-सम्प्रदाय और धार्मिक पाखंड से पूँजीवादी सामंती समाज की हृदयहीनता के विरुद्ध विद्रोह का शंखनाद करती है।
प्रस्तुत कहानी ‘पंच परमेश्वर’ में दो दृश्य उपस्थित कर जिसमें जुम्मन शेख, खालाजान, अलगू चौधरी, समझू साहू के माध्यम से न्याय के विजय को पुनर्स्थापित किया है और यह सिद्ध कर दिया है कि पंच में परमेश्वर का वास होता है। उसमें मित्रता कहीं भी बाधक नहीं होती है। जैसे जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की खानदानी मित्रता उस पर खालाजान के साथ होने वाली घटना में अलगू चौधरी ने जिस तरह पंचायत में फैसला दिया वह मित्रता की जगह न्याय का पक्ष लेकर पंच में परमेश्वर का वास है उसको सिद्ध करता है।
दूसरे दृश्य में अलगू चौधरी और समझू साहू की अनबन में पंचायत में जुम्मन शेख का पंच होना, जो अलगू चौधरी से खार खाए बैठा है उसने भी दुश्मनी को त्याग कर न्याय का पक्ष लेकर पंच में परमेश्वर का वास है उसकी पुष्टि करता है।
अन्ततः सार रूप में प्रेमचन्द ने समाज के उपेक्षित, प्रताड़ित, शोषित लोगों की मार्मिक दशा का चित्रण बड़े ही संवेदनशील रूप में व्यक्त कर उससे छुटकारा पाने के लिए जिस न्याय की स्थापना की है उससे ‘पंच की जुवान से खुद बोलता है’ को पंच परमेश्वर शीर्षक कहानी के माध्यम से सिद्ध कर दिया है।
प्रश्न 2.
‘प्रेमयंद’ के जीवन और व्यक्तित्व का एक सामान्य परिचय प्रस्तुत करें।
उत्तर-
जनमुक्ति-संघर्ष के महान योद्धा कथाकार प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई, 1880 ई. को वाराणसी से छ: मील दूरी लमही ग्राम में और मृत्यु 1936 ई. वाराणसी में हुई। उन्होंने निम्न मध्यवर्गीय जीवन के अभावों, संकटों और परेशानियों से निरन्तर जूझते हुए अपने मानवीय एवं सृजनात्मक व्यक्तित्व का निर्माण किया और अपने देश और दुनिया के मनुष्यों की मुक्ति के लिए अपना तन-मन-धन सब कुछ होम कर दिया।
अपने जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले इस सार्वकालिक अमर रचनाकार ने अपने उपन्यासों और कहानियों के जरिये एक सुखी-समृद्ध मानवीय विश्व समाज के सपनों को साकार करने के उद्देश्य से ही अपने जीवन और साहित्य दोनों में अनवरत एक योद्धा की भूमिका का निर्वाह किया, जिसकी उपलब्धि के रूप में निर्मला, सेवा सदन, गबन रंगभूमि, कर्मभूमि और गोदान तथा अपूर्ण मंगल सूत्र जैसे श्रेष्ठ उपन्यास प्राप्त हैं।।
प्रेमचन्द ने एक कहानीकार के रूप में लगभग 300 कहानियाँ लिखीं, जिनमें जीवन के हर क्षेत्र, हर वर्ग के पात्रों की जीवन स्थितियों का अत्यन्त मार्मिक चित्रण है। कहानी का विषय तात्कालिक यथार्थ हो अथवा ऐतिहासिक विषय, उनकी चिन्ता के केन्द्र में सदैव शोषित-पीड़ित, प्रताड़ित-उपेक्षित मनुष्य की मुक्ति रही है। उनकी कहानियाँ जाति-सम्प्रदाय और धार्मिक पाखण्ड से लेकर पूँजीवादी सामंती समाज की हृदयहीनता के विरुद्ध विद्रोह का शंखनाद है।
प्रश्न 3.
“पंच परमेश्वर” शीर्षक कहानी की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
‘पंच परमेश्वर’ शीर्षक कहानी प्रेमचंद जी की एक महत्वपूर्ण रचना है। इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद जी ने ग्रामीण परिवेश की स्थितियों का सही चित्रण किया है। यह कहानी गाँवों में निवास करने वाले किसानों के जीवन से संबंधित है।
प्रेमचंद की ‘पंच परमेश्वर’ कहानी की अपनी निजी विशेषताएँ हैं। इस कहानी में आदर्श और यथार्थ का उचित समन्वय दृष्टिगत होता है। इन्होंने अपनी कहानी में बेजुबान ग्रामीणों का जितना स्वाभाविक चित्रण किया है, वैसा चित्रण दूसरे किसी भी कहानीकार की रचना में नहीं मिलता।
पंच परमेश्वर कहानी का प्लौट ग्रामीण परिवेश से जुड़ा हुआ है। दैनिक जीवन की दिनचर्या के साथ पारिवारिक एवं सामाजिक बनावट का भी चित्रण सम्यक् रूप से हुआ है। गाँवों में निवास करने वाले सीधे-सादे किसानों, मजदूरों का जीवन, आपसी संबंधों का सफल एवं यथार्थ चित्रण कर कहानीकार ने अपनी कला को उत्कृष्टता प्रदान किया है।
यह कहानी भारतीय गाँव की ठेठ कहानी है। इसमें जुम्मन शेख, खालाजान, अलगू चौधरी के बीच के आत्मीय एवं पारिवारिक संबंधों का चित्रण हुआ है। घरेलू समस्याओं को लेकर यह कहानी रची गयी है। इसमें तीनों के बीच पनप रहे प्रेम, द्वेष, स्वार्थ की सूक्ष्म व्याख्या प्रेमचंद ने की है। न्याय के आसान पर बैठकर कोई किसी का न मित्र होता है और न दुश्मन। इस कहानी में न्याय के प्रति मनुष्य का क्या कर्त्तव्य होना चाहिए, प्रेमचंद ने अपने विचारों को पात्रों के माध्यम से प्रकट किया है।
पात्रों की दृष्टि से भी प्रेमचंद की यह उत्कृष्ट रचना है। इस कहानी के प्रमुख पात्र हैं। जुमराती शेख, जुम्मन मियाँ, खालाजान, अलगू, करीमन, चौधरी, रामधन मिश्र और समझू साहू।
खालाजान अपनी सारी संपत्ति जुम्मन मियाँ को दे देती है। इसके साथ खाला के भरण-पोषण की शर्ते जुड़ी हुई हैं। दूसरी तरफ समझू साहू अलगू चौधरी से एक बैल उधार लिया था। अत्यधिक काम लेने के कारण बैल असमय ही मर जाता है। दूसरी तरफ खाला जान की सेवा प्रारंभिक दौर में तो होती है किन्तु जमीन रजिस्ट्री हो जाने के बाद व्यवहार में अंतर आ जाता है।
दोनों पक्षों की तरफ से बारी-बारी से न्याय के लिए पंचायतें होती हैं जिसमें सरपंच के आसन पर बैठकर अलगू चौधरी और जुम्मन शेख दोनों एक-दूसरे द्वारा आयोजित पंचायत में नीतिपूरक न्याय की घोषणा करते हैं। मित्रता न्याय करने में बाधक नहीं बनती। दोनों न्यायोपरांत तो कुछ दिनों के लिए एक-दूसरे का दुश्मन बन जाते हैं किन्तु विवेक जगने पर किए गए न्याय को उचित ठहराते हैं। सारा द्वेष, वैमनस्य को भुलकर अलगू चौधरी और जुम्मन शेख में पुनः पूर्व की तरह मित्रता प्रगाढ़ हो जाती है और दोनों एक-दूसरे के प्रति पुनः विश्वसनीय बन जाते हैं।
इस प्रकार पंच परमेश्वर कहानी के द्वारा कहानीकार के कथानक, पात्र, परिवेश एवं उनके मानसिक स्थितियों का सम्यक् चित्र खींचा है। यह एक अद्वितीय कहानी है जो आदर्शोन्मुख विशेषताओं को प्रकट करती है।
प्रेमचंदजी की कहानी कला की सबसे बड़ी विशेषता है-आदर्श और यथार्थ का समुचित समन्वय। अपनी इस कहानी में प्रेमचंद जी ने इसका समुचित निर्वाह किया है। प्रेमचंद की दृष्टि में कहानी का उद्देश्य नैतिक पतन नहीं वरन् नैतिक उत्थान करना है। यथार्थवाद आदर्शवाद दोनों ‘ का समुचित समन्वय इस कहानी में हुआ है।
इस कहानी की समाप्ति आदर्शात्मक ढंग से की गयी है। इस कहानी में समस्या का समाधान निकालकर न्याय पक्ष की प्रबलता और अनिवार्यता को कहानीकार ने प्रदर्शित किया है। प्रेमचंद का व्यक्तिगत विश्वास है कि प्रत्येक कहानी में एक ऊँचा नैतिक संदेश होना चाहिए। ऐसा न करने से समाज तथा साहित्य का कोई लाभ नहीं होगा और हमारा समाज पथभ्रष्ट हो जाएगा। उपरोक्त बातों का चित्रण पंच परमेश्वर में सम्यक् रूप से हुआ है।
पंच परमेश्वर कहानी में आदर्शोन्मुख विचारों का प्रतिपादन किया गया है।
इस कहानी की दूसरी विशेषताएँ-मनोविज्ञान की अनुमति। प्रेमचंद जी ने अपनी इस कहानी में मनोवैज्ञानिक चरित्रों की सृष्टि करने की चेष्टा की है।
प्रेमचंद ने स्थान, पात्र एवं समाज की सही तस्वीर खींचने का प्रयास किया है। ग्रामीण जीवन, अत्याचार, उत्पीड़न, शोषण, ईर्ष्या, द्वेष, प्रतिस्पर्धा आदि पर सम्यक् प्रकाश डालते हुए सभी स्थितियों का सुंदर चित्रण किया है।
कथोपकथन में चरित्र-चित्रण कथा-वस्तु के साथ पात्रों की स्थिति और सुरुचि पर ध्यान भी दिया है। इनकी कहानियों में कथोपकथन में सुसम्बद्धता भी पायी जाती है।
भाषा की सरलता, चलते मुहावरों का प्रयोग, हास्य-व्यंग्य का सम्मिश्रित व्यवहार, उनकी भाषा शैली की खास विशेषताएँ हैं।
प्रेमचंद की पंच परमेश्वर कहानी में कल्पना की मात्रा कम, अनुभूतियों की मात्रा अधिक है। अनुभूतियाँ भी रचनाशील भावना में अनुजित होकर कहानी बन जाती है। प्रेमचंद की दृष्टि में सर्वाधिक उत्तम वही कहानी है जिसका आधार किसी मनोवैज्ञानिक सत्य पर आधारित हो।
प्रश्न 4.
प्रेमचंद ऐसा क्यों लिखा है कि पंच के पद पर बैठकर न कोई किसी का दोस्त है, न दुश्मन। न्याय के सिवा उसे कुछ नहीं सुझता। “पंच की जुबान से खुद बोलता है।” इस विचार को स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रेमचंद की प्रमुख कहानी ‘पंच परमेश्वर’ से उपरोक्त पंक्तियाँ ली गयी हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से प्रेमचंद ने न्याय एवं मित्रता के बीच के ज्ञान, विवेक का सम्यक् चित्रण किया है।
पंच परमेश्वर कहानी के प्रमुख पात्र जुम्मन शेख और अलगू चौधरी है। दोनों में गाढ़ी दोस्ती है। दोनों के परिवार में अंतरंगता अत्यधिक दिखायी पड़ती है।।
एक बार अलगू चौधरी गाँव के समझू साहु के हाथों अपना बैल उधार बेच देते हैं। समझू साहु एक क्रूर बनिया है। वह बैल से अत्यधिक काम लेता है किन्तु उसकी यथोचित सेवा नहीं करता है।
अचानक एक दिन बैल मर जाता है। समझू साहू और सहुआइन दोनों अलगू चौधरी को भद्दी-भद्दी गालियाँ देते और कहते कि निगोड़े ने ऐसा कुलच्छनी बैल दिया कि जन्म भर की कमाई भी लूट गयी और खुद बैल भी मर गया।
बैल के मरने के कुछ दिनों बाद अलगू चौधरी ने समझू साहु से अपने बैल की कीमत माँगी। समझू साहु और उनकी पत्नी दोनों झल्लाकर अलगू चौधरी पर बरस पड़े और दोनों पक्षों में हाथापाई की नौबत भी आ गयी। गाँव के लोग हल्ला सुनकर इकट्ठे हो गए। उन लोगों ने दोनों को समझाया कि पंचायत द्वारा फैसला करवा लो। अंत में दोनों पंचायत कराने का फैसला किया और गाँववालों की बात मान ली।
एक निश्चित समय में तीसरे दिन पंचायत बैठी। गाँव भर के लोग जमा हुए थे। दोनों पक्षों के लोग दल बनाकर पंचायत में जुटे थे। पंचायत बैठने पर रामधन मिश्र ने कहा कि दोनों। पक्षों को सुनो ! अब देरी क्या है? आप लोग अपना-अपना पंच चुनिए। अलगू चौधरी ने दीन भाव से कहा-समझू साहु ही पंच चुन लें। समझू साहु गर्व से खड़ा होकर अपनी ओर से जुम्मन शेख को पंच चुन लिया।
खालाजान और जुम्मन की पंचायत में अलगू चौधरी ही पंच बने थे और उन्होंने खाला के पक्ष में न्याय सुनाकर अलगू से दुश्मनी मोल ले ली थी। अलगू और जुम्मन दोनों बचपन के मित्र थे। दोनों में पारिवारिक अंतरंगता भी थी। पंचायत के बाद अलगू और जुम्मन में खटपट हो गयी। मित्रता दाश्मनी में बदल गयी। आज वही दिन अलगू चौधरी के लिए बुरे दिन के रूप में आ गया।
पंचायत में जुम्मन शेख के पंच चुनते ही अलगू चौधरी शंका में पड़ गए। उनका दिल धक्-धक् करने लगा। जुम्मन शेख के मन पंचायत में सरपंच के सर्वोच्च आसन पर बैठते ही जिम्मेवारी का भाव जग उठा। उसने सोचा, मैं इस वक्त न्याय और धर्म के सर्वोच्च आसन पर बैठा हूँ। मेरे मुँह से इस समय जो कुछ निकलेगा वह देववाणी सदृश है, और देववाणी में मेरे मनोविकारों का कदापि समावेश न होना चाहिए। मुझे सत्य से जौ भर भी टलना उचित नहीं।
दोनों पक्षों से सवाल-जवाब करते हुए जुम्मन शेख ने फैसला सुनाया–अलगू चौधरी और समझू साहु दोनों कान खोलकर सुन लो। पंचों का न्याय है। समझू साहु बैल का पूरा दाम अलगू चौधरी को दे दें क्योंकि जिस समय बैल खरीदा गया था उस समय वह बीमार नहीं था। अत्यधिक काम लेने एवं सेवा नहीं करने के कारण बैल असमय ही मर गया। अत: इसके लिए समझू साहु दोषी है। अतः बैल की कीमत वे अलगू चौधरी को दें।
सन्याय से अलगू चौधरी फूले न समाए। वे उठ खड़े हुए और जोर से बोले पंच-परमेश्वर की जय। प्रत्येक मनुष्य जुम्मन की नीति की सराहना करते हुए कहने लगे पंच में परमेश्वर निवास करते हैं। यह उन्हीं की महिमा है पंच के सामने खोटे को कौन-कौन खरा कह सकता है। इसे कहते हैं-न्याय।
थोड़ी देर बाद जुम्मन अलगू चौधरी के पास आए और गले से लिपटकर बोले- भैया ! जब तुमने मेरी पंचायत की थी तबसे मैं तुम्हारा प्राण-घातक शत्रु बन गया था। पर आज मुझे ज्ञात हुआ कि पंच के पद पर बैठकर न कोई किसी का दोस्त होता है न दुश्मन। न्याय के सिवा उसे और कुछ नहीं सूझता। आज मुझे विश्वास हो गया कि पंच की जुबान से खुदा बोलता है।
प्रश्न 5.
“इसी का नाम पंचायत है। दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। दोस्ती, दोस्ती की जगह है, किन्तु धर्म का पालन करना मुख्य है। ऐसी ही सत्यवादियों के बल पर पृथ्वी ठहरी है, नहीं तो वह कब की रसातल की चली जाती।” स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रेमचंद की ‘पंच परमेश्वर’ कहानी एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। इसका परिवेश भारतीय गाँव से जुड़ा हुआ है। इसके पात्र भी ठेठ गाँव के लोग हैं।
इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद जी ने यह दिखाने का काम किया है कि पंच के पद पर बैठने वाला व्यक्ति अन्यायपूर्ण निर्णय नहीं दे सकता। आसन ग्रहण करते ही वह विवेकी बन जाता है और सगे संबंधों को नकारते हुए न्याय का पक्ष लेता है। न्याय के आसन पर बैठकर वह ईश्वर का प्रतिरूप बन जाता है। उसके भीतर विवेक जग जाता है और पारिवारिक सामाजिक संबंध न्याय के बीच दीवार बनकर खड़े नहीं होते।
जुम्मन शेख और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। जुम्मन शेख और उनकी खाला के बीच संपत्ति एवं सेवा को लेकर कुछ खटपट हो गई। खाला ने अलगू चौधरी को पंचायत में सरपंच मनोनीत कर दिया। न्याय के आसन पर बैठकर अलगू चौधरी का विवेक जग उठा और जुम्मन शेख्न और अलगू चौधरी की प्रगाढ़ मित्रता न्याय में बाधक नहीं बन सकी।।
जुम्मन ने पंचायत में कहा कि पंचों का हुक्म अल्लाह का हुक्म है। पंच ईश्वर की वाणी को अभिव्यक्ति देकर दूध का दूध और पानी को पानी कर ,देता है।
पंचायत में अलगू चौंधरी ने खालाा का पक्ष लिया और न्याय खाला के पक्ष में लिया तथा खाला की सेवा माहवारी खर्च बाँध दिया। इस न्याय की पंचों के लिए एवं गाँव के लोगों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा-इसी का नाम पंचायत है। दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। दोस्ती, दोस्ती की जगह है किन्तु धर्म का पालन करना मुख्य है। ऐसे ही सत्यवादियों के बल पर पृथ्वी ठहरी है, नहीं तो कब की रसातल को चली जाती है।
पंच परमेश्वर लेखक परिचय प्रेमचंद (1880-1936)
मुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई, 1880 ई. में वाराणसी में लमही गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम अजायब राय था। गाँव की पाठशाला में उन्हें उर्दू-फारसी की प्रारंभिक शिक्षा मिली। 1904 ई. में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। आर्थिक विपन्नता के कारण वे आगे अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सके। स्वाध्याय के बल पर उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
मुंशी प्रेमचन्द अध्यापक के पद पर भी कार्य किए। शिक्षा विभग में वे डिप्टी इंस्पेक्टर के पद पर भी आसीन हुए। राष्ट्रीय आंदोलन और गाँधीवादी विचारधारा से प्रभावित होकर उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दिया और साहित्य की सेवा में अपना अमूल्य जीवन समर्पण कर दिया। उन्होंने हंस प्रकाशन का भी संचालन किया। वे भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष भी बने।
प्रेमचन्द ने एक कहानीकार के रूप में यश अर्जित किया। उनकी कहानियाँ भारतीय जीवन व्यवस्था की आइना है। उन्होंने अपनी कहानी में शोषित, पीड़ित, प्रताड़ित, उपेक्षित लोगों की दशाओं का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है। उनकी कहानियाँ जाति-सम्प्रदाय और धार्मिक पाखण्ड से पूँजीवादी सामंती समाज की हृदयहीनता के विरुद्ध विद्रोह का शंखनाद है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं :
कहानी संग्रह : सप्त सरोज, नवविधि, प्रेम पचीसी, प्रेम पूर्णिमा, प्रेम द्वादशी, प्रेम-तीर्थ, प्रेम-पीयूष, प्रेम चतुर्थी, पंच प्रसून, सप्त सुमन, कफन, मान-सरोवर, प्रेम प्रतिमा, प्रेरणा, प्रेम-प्रमोद, प्रेम-सरोवर, समर यात्रा, कुत्ते की कहानी, जंगल की कहानी, अग्नि समाधि और प्रेम-गंगा।
उपन्यास : प्रेम प्रतिज्ञा, सेवन सदन, प्रेमाश्रय, निर्मला, रंगभूमि, कायाकल्प, गवन, कर्म भूमि, गोदान, मंगलसूत्र। –
नाटक : संग्राम, कर्बला, प्रेम की वेदी, रूठी रात्रि।
जीवन चरित्र : कलम, तलवार और त्याग, महात्माशेख, शादी और रामचर्चा, इसके अतिरिक्त उन्होंने अंग्रेजी साहित्य का भी अनुवाद किया, मर्यादा, माधुरी, जागरण एवं हंस पत्रिकाओं का भी सम्पादन किया।