Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions
Bihar Board Class 12th Hindi Book 50 Marks Solutions गद्य Chapter 2 गौरा
गौरा अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
गौरा या गौरांगिनी कौन थी?
उत्तर-
गौरा या गौरागिनी एक गाय थी।
प्रश्न 2.
लालमणि कौन था?
उत्तर-
लालमणि गाय का बछड़ा था।
प्रश्न 3.
किसने गौरा को गुड़ में सूई खिला दिया था?
उत्तर-
एक ग्वाला ने गौरा को गुड़ में सूई खिला दिया था।
प्रश्न 4.
गौरा किस साहित्यिक विधा में है?
उत्तर-
गौरा महादेवी वर्मा का रेखाचित्र है।।
प्रश्न 5.
लेखिका को गौरा किससे मिली थी?
उत्तर-
लेखिका को छोटी बहन से गौरा मिली थी।
प्रश्न 6.
लेखिका ने गौरा की मृत्यु के पीछे मनुष्य की किस प्रवृत्ति को उजागर किया है?
उत्तर-
लेखिका ने गौरा की मृत्यु के पीछे मनुष्य की अंध स्वार्थलिप्सा को उजागर किया है।
प्रश्न 7.
ग्वाला ने गौरा को गुड़ में सूई मिलाकर क्यों खिला दिया?
उत्तर-
गौरा जब से दूध देने लगी थी तबसे लेखिका ने ग्वाला से दूध लेना छोड़ दिया था। लेखिका पुनः ग्वाला से दूध लेने लगे इसीलिए उसने गौरा को गुड़ में सुई मिलाकर खिला दिया।
प्रश्न 8.
गौरा कैसी थी?
उत्तर-
गौरा प्रियदर्शिनी थी।
प्रश्न 9.
महात्मा गाँधी गाय को क्या कहते थे?
उत्तर-
‘गाय करुणा की कविता है’ ऐसा महात्मा गाँधी कहा करते थे।
प्रश्न 10.
महादोवी वर्मा का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर-
फर्रुखाबाद में।
प्रश्न 11.
महादेवी वर्मा की पहचान किस प्रकार के कवियों में होती है?
उत्तर-
छायावादी।
प्रश्न 12.
महादेवी वर्मा, नारी होने और बुद्ध के दुःखवाद से प्रभावित होने के कारण कौन-सा स्वर काव्य में प्रस्तुत किया है?
उत्तर-
वेदना।
प्रश्न 13.
महादेवी वर्मा की काव्य रचना नीहार कब प्रकाशित हुई थी।
उत्तर-
1930 ई.।
प्रश्न 14.
निम्नलिखित काव्य-सग्रहों में कौन महादेवी वर्मा की रचना नहीं है?
उत्तर-
नीलिमा।
प्रश्न 15.
“संध्यागीत” और दीपशिखा किसकी रचना है?
उत्तर-
महादेवी वर्मा।
गौरा लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा ने अपनी बहिन श्यामा की प्रशंसा क्यों की है? स्पष्ट करें।
‘अथवा,
पशुपालन के विषय में महादेवी वर्मा और उनकी बहिन श्यामा के विचार में क्या भिन्नता थी। स्पष्ट करें।
उत्तर-
महादेवी वर्मा को पशुपालन का अधिक शौक था। उन्होंने पक्षी, कुत्ते, बिल्लियाँ, कुक्कुट और मछलियाँ पाल रखी थी। इन पालतू जीवों के प्रति स्नेह और दुलार की भावना उनके मन में रहती थी।
जबकि महादेवी वर्मा की छोटी बहिन श्यामा केवल उपयोगी पशुओं को पालना पसंद करती थी। वह खाद्य समस्या के समाधान के लिए पशु-पक्षी पालन उचित समझती थी। इसी कारण महादेवी वर्मा ने अपनी बहिन श्यामा की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि “वास्तव में मेरी छोटी बहिन श्यामा अपनी लौकिक बुद्धि में मुझसे से बहुत बड़ी है और बचपन से ही उनकी कर्मनिष्ठा तथा व्यवहार कुशलता की बहुत प्रशंसा होती रही है।”
प्रश्न 2.
महादेवी वर्मा ने ‘गौरा’ का रेखाचित्र किन शब्दों में प्रस्तुत किया है लिखें?
उत्तर-
गौरा, एक बछिया थी, जिसके पैर पुष्ट लचीले, भरे पुढे, चिकनी भरी हुई पीठ, लम्बी सुडौल गर्दन, निकलते हुए छोटे-छोटे सींग, अपनी ओर देखने वालों का ध्यान आकर्षित कर लेती थी।
स्वस्थ पशु के शरीर के रोमों में एक विशेष चमक होती है। गौरा के सफेद शरीर की उज्वलता देखने पर ऐसा लगता था कि मानो उसके रोमों पर अभ्रक का चूर्ण मल दिया गया हो। जिसके कारण विशेष चमक उत्पन्न हो गई थी। उसकी बड़ी चमकीली और काली आँखें दीये की लौ की तरह झिलमिलाती थी।
प्रश्न 3.
महादेवी वर्मा ने गौरा के माँ बनने तथा उसके बच्चे का रेखा-चित्र किस प्रकार प्रस्तुत किया है? वर्णन करें।
उत्तर-
महादेवी वर्मा के घर ‘गौरा’ एक वर्ष रहने के बाद एक सुन्दर बच्चे की माँ बनी। बच्चा अपने लाल रंग के कारण गेरू का पुतला जैसा जान पड़ता था। उसके माथे पर पान के आकार का श्वेत तिलक और चारों पैरों में खुरों के ऊपर सफेद धारी वलय ऐसे लगते थे मानो गेरू की बनी वत्समूर्ति को चाँदी के आभूषणों से अलंकृत कर दिया गया हो। बछड़े का नाम “लाल मणि” रखा गया। परन्तु उसे सब ‘लालू’ के नाम से पुकारने लगे। माता-पुत्र दोनों निकट रहने पर हिमराशि जलते अंगारे का स्मरण कराते थे।
प्रश्न 4.
‘गौरा’ की मृत्यु का कारण क्या था? यह रहस्य कैसे उद्घाटित हुआ?
उत्तर-
गौरा के दूध देने से पूर्व जो ग्वाला महादेवी वर्मा के घर दूध देता था उसने आग्रह . करके गौरा का दूध दुहने का कार्य भार संभाल लिया था लेकिन उसके मन में एक चोर छिपा हुआ था। वह शाम का आना सह नहीं पाया क्योंकि उसके कारण उसकी आर्थिक हानि हो रही थी। अवसर मिलते ही गुड़ में लपेटकर सुई उसने गौरा को खिलाकर उसकी असमय मृत्यु निश्चित कर दिया ताकि गाय के मर जाने पर वह पुनः दूध देने लगे। गाय के बीमार हो जाने पर चिकित्सकों ने यह रहस्य, निरीक्षण, परीक्षण, एक्स-रे इत्यादि के आधार पर किया था। ग्वाला भी संदेह के बाद भाग निकला था अतः गौरा की मृत्यु ग्वाला के दुष्कर्म के कारण हुई थी।
प्रश्न 5.
गौरा का संक्षिप्त कहानी लिखें।
उत्तर-
‘गौरा’ एक गाय पर लिखा महादेवी वर्मा का अद्भुत रेखाचित्र है। महादेवीजी एक सफल गद्य-लेखिका भी थीं।
गौरा एक सुन्दर गाय थी। उसके रूप रंग पर रही उसका नाम गौरा रखा गया था। उसे एक बछड़ा भी हुआ। वह कुल बारह सेर दूध देती थी। उस दूध को महादेवी वर्मा के पशु-परिवार कुत्ते-बिल्ली, गिलहरी, खरगोश, हरिण पीते थे। सभी गौरा पर प्रसन्न रहते थे। सभी वात्सल्य प्रेम का प्रदर्शन करते थे।
एक बेईमान ग्वाले ने गौरा को सुई देकर मार डाला। इस प्रकार गौरा का कारुणिक अन्त हुआ।
धन्य है गोपालक देश भारत। यही संक्षिप्त गौरा की कहानी है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘गौरा’ शीर्षक पाठ का सारांश लिखिए।
उत्तर-
महादेवी वर्मा मुख्यतः कवियित्री है, परन्तु उनका गद्य भी कम शक्तिशाली नहीं है।
कवियों की कसौटी गद्य कहा गया है। उनकी लेखनी इस कथन का समर्थन एवं उदाहरण है। इसी संदर्भ में ‘गौरा’ एक मार्मिक रचना-रेखाचित्र है। इसमें गाय के सौंदर्य और गुण के साथ-साथ गोपालक देश भारत में गाय की दर्दनाक मृत्यु का बड़ा ही मार्मिक दश्य उपस्थित किया ‘गौरा’ एक गाय का नाम है जो महादेवी वर्मा की बहन के घर से मिली थी। गौरा के शारीरिक बनावट का वर्णन कवयित्री ने जिस ढंग से किया है लगता है गाय को मानो इटैलियन मार्बल से तराशा गया हो। अपनी लेखनी के माध्यम से महादेवी वर्मा ने गाय में मनुष्यत्व भर दिया है-
जैसे वह पाँव की आहट से सबको पहचानती थी। लेखिका के घर पर जितने भी पशु-पक्षी थे, सबसे घुल-मिल गई थी। कुछ दिन के बादा गौरा माँ बनती है और काफी दूध देती है। वह दूध इतना कि लेखिका के यहाँ जो ग्वाला दूध देने आता था उसका व्यापार बंद हो गया।
अन्त में एक त्रासद घटना घटती है जब वह ग्वाला गौरा को मरने की सुई खिला देता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है।
सारांशत: लेखिका ने गोपालक देश में जिस निर्दयता से गाय के साथ व्यवहार किया जाता है उस दृश्य का मार्मिक चित्र खींचकर यही कहना चाहा है कि धन्य है यह गोपालक देश।
प्रश्न 2.
महादेवी वर्मा के जीवन और व्यक्तित्व का एक सामान्य परिचय प्रस्तुत करें?
उत्तर-
महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ। प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. करने के बाद प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्य हो गई।
छायावादी कवियों में महादोवी वर्मा की अनोखी पहचान है। उनकी काव्य रचना में दुःखवाद की भावना मिलती है क्योंकि वह बुद्ध के दुःखवाद से प्रभावित थीं। उनकी पारिवारिक परिस्थिति में नारी जीवन दुःख से प्रभावित थी अतः उनके काव्य में दुःखानुभूति मिलती है।
वह स्वयं स्वीकार करती है कि : “मुझे दु:ख के दोनों ही रूप प्रिय हैं। एक वह जो मनुष्य के संवेदनशील हृदय की सारे संसार से एक अविच्छिन बंधनों में बाँध देता है और दूसरा वह जो काल और सीमा के बंधन में पड़े हुए असीम चेतन का क्रन्दन है।”।
महादेवी वर्मा बंगला और हिन्दी की रोमान्टिक और रहस्यवादी काव्यान्दोलनों से प्रभावित होकर अपने आध्यात्मिक प्रियतम को पुरुष के रूप में स्वीकार करते हुए अपनी स्त्रियोचित भावनाओं को व्यजित किया है। भारतीय परम्परा और संत काव्य के रहस्यवादी भावना के अनुसार अपनी रहस्यानुभूतियों को कलात्मक अभिव्यक्ति भी प्रदान की है।
विरह भावना की प्रधानता के कारण महादोवी वर्मा को आधुनिक मीरा के रूप में सम्बोधित किया जाता है।
गीत-कला की दृष्टि से उनके गीत हिन्दी की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, ध्वन्यात्मकता और चित्रभाषा-कौशल के कारण उनके गीत सहज ही चिरस्मरणीय हैं।
महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं। नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1935), साध्यगीत (1936) और दीपशिखा (1942) में प्रकाशित हुई।
गद्यकार के रूप में भी महादेवी की महत्ता निर्विवाद है। स्मृति की रेखाएँ, अतीत के चलचित्र और श्रृंखला की कड़ियाँ, रेखाचित्र और संस्मरण के क्षेत्र में उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं।
प्रश्न 3.
गौरा कौन थी? महादेवी वर्मा ने उसका रेखाचित्र किस प्रकार प्रस्तुत किया है। व्याख्या करें।
अथवा,
गौरा के संबंध में महादेवी वर्मा के विचारों की समीक्षा करें।
उत्तर-
गौरा महादेवी वर्मा की गाय है जिसे उनकी छोटी बहन ने उपहार के रूप में दिया था। यह मार्मिक रेखाचित्र उसी गाय से संबंधित है। उनकी दृष्टि में यह एक विलक्षण प्राणी है। “गौरा” अपने सुन्दर शरीर, आकर्षक चचाल और साहचर्य जनित लगाव तथा दुग्ध-आपूर्ति जैसी उपयोगिता के कारण वह प्रेम और मानवीय स्नेह पाने की हकदार थी। महादेवी वर्मा ने “गौरा” की निर्मम मृत्यु के पीछे मनुष्य की अंध स्वार्थलिप्सा को उजागर किया है। व्यक्ति स्वार्थ में इतना अंधा हो गया है कि दूध देने वाला निश्चल और प्रेम करने योग्य प्राणी ‘गौरा’ को सूई खिला देता है ताकि वह मर जाए, और महादेवी वर्मा पुनः उससे दूध लेने लगे। गौरा की यातनापूर्ण मृत्यु जैसें मानवीय संवेदनशील की ही मृत्यु है।
महादेवी वर्मा के रेखाचित्र में कम-से-कम शब्दों में कलात्मक दृश्य मिलता है। गौरा इसका एक सुन्दर प्रमाण है।
महादेवी को पशु-पक्षी, बकरी, कुक्कुट, मछली इत्यादि पालने का शौक, खाद्य समस्या के समाधान के लिए न था बल्कि जीवों के प्रति स्नेह और दुलार की भावना थी। जब उनकी छोटी बहन श्यामा ने उपयोगिता के आधार पर पशुपालन की ओर ध्यान आकर्षित कराया तो इन्होंने अपनी बहन को उसकी कर्मनिष्ठा और व्यवहार कुशलता की बहुत प्रशंसा की और उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
गौरा, एक सफेद, चमकदार अभ्रक जैसी रोमो वाली बाछी थी। उसका स्वागत एक अच्छे और सम्मानित अतिथि के रूप में टीका लगाकर और आरती उतार कर किया गया था। उसका नामकरण भी हुआ, “गौरांगिनी” या गौरा से वह प्रसिद्ध हो गई।
गौरा केवल देखने में सुन्दर न थी बल्कि उसका विचार, आचरण बहुत अच्छे थे। अन्य पालतू पशु-पक्षी, कुत्ते-बिल्लियाँ उसके मित्र बनकर उसके पेट के नीचे खेलने लगे थे।
वह घर के सभी लोगों को उनके पैर की आहट से पहचानती थी। उनसे कुछ पाने की प्रतीक्षा करती थी। एक वर्ष के बाद जब वह माता बनी और लाल रंग के बच्चे को जन्म दिया तो उसका महत्व और बढ़ गया था। वह प्रतिदिन बारह सेर दूध देती थी, उसका बच्चा लाल मणि (लालू) के अतिरिक्त उसका दूध घर के कुत्ते, बिल्लियाँ और बाल गोपाल पीते थे।
जब से गौरा, आवश्यकता से अधिक-दूध देने लगी थी तब से ग्वाले से दूध लेना बन्द कर दिया गया था। केवल वह दूध दुहने के लिए दोनों समय आता था। वह गौरा का दुश्मन हो गया था। उसके दिल में यह भावना पैदा हो गई थी कि गौरा के कारण ही उसके दूध का धंधा बन्द हो गया है। इसलिए किसी दिन मौका पाकर उसने सुई गुड़ के साथ गौरा को खिला दिया था जो उसके हृदय में जाकर चुभ गई थी।
यह रहस्य चिकित्सकों के निरीक्षण परीक्षण, एक्सरे आदि द्वारा उद्घाटित हुआ था। कानूनी कार्यवाही के लिए आवश्यक प्रमाण तो नहीं थे। लेकिन ग्वाले के भाग जाने से यह विश्वास हो गया था कि एक गोपालक देश का ग्वाला गौरा का हत्यारा था। गौरा मृत्यु के साथ संघर्ष करते हुए एक दिन मर गई। उसकी मृत्यु को दुःख सहना महादेवी वर्मा के लिए बहुत कठिन सिद्ध हुआ।
गौरा लेखक परिचय – महादेवी वर्मा (1907-1987)
महादेवी वर्मा का जन्म 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के पुर्रुखाबाद में हुआ प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम. ए. परीक्षा पास कर वे प्राध्यापक बनीं। वे प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्या के पद को भी सुशोभित की।
छायावादी कवियों में महादेवी वर्मा की एक अलग पहचान है। उनकी काव्य रचना में दुखवाद कीप अनुभूति होती है। महादेवी वर्मा नारी की पीड़ा से विचलित थी अतः अपने काव्य में नारी की पीड़ा को मूक वाणी दी है। वह बंगला और हिन्दी के रहस्यवादी काव्य से प्रभावित होकर अपनी रहस्यानुभूति को कलात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है। उनकी काव्य कृत्तियों में विरह भावना की प्रधानता है। गीत कला की दृष्टि से उनके गीत हिन्दी की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। लाक्षाणिकता, प्रतीकात्मकता, ध्वन्यात्मकता और चित्र भाषा-कौशल के कारण उनके गीत सहज ही चिरस्मरणीय हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
- नीहार,
- रश्मि
- नीरजा
- सांध्यगीत
- दीपशिखा।
गद्यकार के रूप में उनकी महत्ता निर्विवाद है। गद्य में उनकी प्रमुख कृतियाँ- स्मृति की रेखाएँ, अतीत के चलचित्र और शृंखला की कड़ियाँ प्रमुख हैं।