Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Bihar Board Class 10 Hindi व्याकरण मुहावरे और लोकोक्तियाँ Questions and Answers, Notes.
BSEB Bihar Board Class 10 Hindi व्याकरण मुहावरे और लोकोक्तियाँ
Bihar Board Class 10 Hindi व्याकरण मुहावरे और लोकोक्तियाँ Questions and Answers
मुहावरे की परिभाषा:
‘मुहावरा’ का अर्थ है अभ्यास। कभी-कभी निरंतर प्रयोग एवं अभ्यास से कोई उक्ति विशेष चमत्कारपूर्ण अर्थ देने लगती है। अतः ऐसा वाक्यांश जो सामान्य अर्थ की प्रतीति न करा कर किसी विशेष अर्थ का बोध कराए, मुहावरा कहलाता है।
मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर बहुत-से लोग मुहावरे तथा लोकोक्ति में कोई अंतर ही नहीं समझते। दोनों का अंतर निम्नलिखित बातों से स्पष्ट होता है-
(क)लोकोक्ति लोक में प्रचलित उक्ति होती है जो भूतकाल का लोक-अनुभव लिए हुए
होती है, जबकि मुहावरा अपने रूढ़ अर्थ के लिए प्रसिद्ध होता है।
(ख)लोकोक्ति पूर्ण वाक्य होती है, जबकि मुहावरा वाक्य का अंश होता है।
(ग)पूर्ण वाक्य होने के कारण लोकोक्ति का प्रयोग स्वतंत्र एवं अपने-आप में पूर्ण इकाई के रूप में होता है, जबकि मुहावरा किसी वाक्य का अंश बनकर आता है।
(घ)पूर्ण इकाई होने के कारण लोकोक्ति में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता, जबकि मुहावरे में वाक्य के अनुसार परिवर्तन होती है।
I. मुहावरे
1. अंगूठा दिखाना साफ इनकार कर देना)-जब मैंने मंदिर के लिए सेठ जी से दान माँगा तो उन्होंने अंगूठा दिखा दिया।
2, अंगारे उगलना(क्रोध में कठोर शब्द कहना)-अपने पुत्र को जुआ खेलते हुए देखकर मोहन अंगारे उगलने लगा।
3. अक्ल पर पत्थर पड़ना बुद्धि भ्रष्ट होना)-तुम्हारी अक्ल पर तो पत्थर पड़ गए हैं, बार-बार समझाने पर भी तुम नहीं मानते।
4. अपनी खिचड़ी अलग पकाना साथ मिलकर न रहना)-भारत के मुसलमान व राजपूत अपनी खिचड़ी अलग पकाते रहे, इसीलिए विदेशी लोग यहाँ शासन जमाने में सफल हो गए।
5. अंधेरे घर का उजाला(इकलौता पुत्र, जिस पर आशाएँ टिकी हों)-मोहन की मृत्यु उसके पिता से सही नहीं जाएगी। वह उनके अँधेरे घर का उजाला था।
6. अंधे की लकडी(एकमात्र सहारा)-सेठ जी के मरने के पश्चात अब यह लड़का ही सेठानी जी के लिए अंधे की लकड़ी है।
7. अपने पैरों पर खड़ा होना आत्म-निर्भर होना)-लालबहादुर शास्त्री ने बाल्यावस्था से ही अपने पैरों पर खड़ा होना सीख लिया था।
8 आंखें खलना(होश आना)-जब सभी कुछ जुए में लुट गया, तब कहीं जाकर उसकी आँखें खुलीं।
9. आंखों का तारा(बहुत प्यारा)-श्याम अपनी माँ की आँखों का तारा है।
10. आंखें फेर लेना(प्रतिकूल होना, पहले-सा प्रेम न रखना)-जब से मेरी नौकरी छूटी है, दोस्तों-मित्रों की तो क्या, घरवालों ने भी मुझसे आँखें फेर ली हैं।
11. आँखें नीली-पीली करना नाराज होना)-तुम व्यर्थ ही आँखें नीली-पीली कर रहे हो, मैंने कोई अपराध नहीं किया है।
12. आंखों से गिरना(सम्मान नष्ट होना)-अपराधी व्यक्ति समाज की ही नहीं, स्वयं अपनी आँखों से भी गिर जाता है।
13. आंसू पोंछना (सांत्वना देना)-कश्मीर से लाखों लोग उजड़ कर बर्बाद हो गए हैं किंतु इन खद्दरधारी नेताओं में से कोई उनके आँसू तक पोंछने नहीं गया।
14. आंच न आने देना (तनिक भी कष्ट न होने देना)-तुम निर्भय होकर अपने कर्तव्य का पालन करो, मैं तुम पर आंच न आने दूंगा।
15. आकाश से बातें करना (बहुत ऊँचा होना)-कुतुबमीनार आकाश से बातें करती है।
16. आकाश को छूना (बहुत ऊंचा होना)-दिल्ली की भव्य अट्टालिकाएं आकाश को छूती नजर आती हैं।
17. आकाश-पाताल एक करना (बहुत परिश्रम करना)-परीक्षा का समय समीप आने पर छात्र आकाश-पाताल एक कर देते हैं।
18. आटे-दाल का भाव मालूम होना (कष्ट अनुभव होना)-पिता ने पुत्र से कहा कि जब अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा तब तुझे आटे-दाल का भाव मालूम होगा।
19. आगे-पीछे फिरना (चापलूसी करना)-अफसरों के आगे-पीछे फिर कर अपना काम निकालने में रामलाल बड़ा दक्ष है।
20. आस्तीन का साँप (धोखा देने वाला साथी)-मित्र, मैं तुम्हें सचेत कर रहा हूँ कि उससे दोस्ती करना हितकर नहीं है। वह आस्तीन का साँप है, तुम्हें मीठी-मीठी बातों में डस लेगा।
21. इधर-उधर की हाँकना (गप्पें मारना)-इधर-उधर की हाँकने से काम नहीं चलता, काम तो करने से ही होता है।
22. ईद का चांद (बहुत कम दिखाई देने वाला)-मित्र, आजकल तो तुम ईद के चाँद हो गए हो। कभी मिलते तक नहीं।
23. उँगली उठाना (लांछन लगाना)-सीता-सावित्री जैसी देवियों के चरित्र पर उंगली उठाना अनुचित है।
24. उलटी गंगा बहाना (विपरीत कार्य करना)-लोग प्रात:काल जल्दी उठ कर पढ़ते हैं, तुम रात-भर पढ़कर प्रातः सोते हो। तुम्हें उलटी गंगा बहाने की क्या सूझी?
25. कंठ का हार होना (बहुत प्रिय होना)-राजा दशरथ कैकेयी को कंठ का हार समझते थे, परंतु उसी ने उनकी पीठ में छुरा घोंप दिया।
26. कमर कसना (तैयार होना)-कमर कस लो; पता नहीं, कब शत्रुओं से लोहा लेना पड़े।
27. कठपुतली होना (पूर्णतः किसी के वश में होना)-प्रायः अच्छे-से-अच्छे पुरुष शादी के बाद पत्नी के हाथों की कठपतली हो जाते हैं।
28. कलेजे का टुकड़ा (बहुत प्रिय)-मां बच्चों को अपने कलेजे का टुकड़ा मानती है, फिर
भी बच्चे माँ का सम्मान नहीं करते।
29. कलेजे पर सांप लोटना (ईर्ष्या से जलना)-जब से मेरे लड़के की नौकरी लगी है, तब से मोहन की माँ के कलेजे पर साँप लोटने लगा है।
30. कलेजा ठंडा होना (संतोष होना)-जिस दिन तुमसे मैं अपनी पराजय का बदला ले लँगा, उस दिन मेरा कलेजा ठंडा होगा।
31. काँटे बिछाना (मार्ग में मुसीबतें खड़ा करना)-रावण ने राम के लिए कितने ही कॉटे बिछाए, किंतु राम ने धैर्यपूर्वक उन काँटों पर चलकर अपना मार्ग प्रशस्त किया।
32. काम आना (वीरगति प्राप्त करना)-गुरु गोविंदसिंह के चारों पुत्र युद्ध में काम आ गए तो भी उनका उत्साह मंद न हुआ।
33. कान भरना (चुगली करना)-किसी ने मेरे विरुद्ध मालिक के कान भर दिए, अतः मुझे नौकरी से निकाल दिया गया है।
34. काया पलट होना (बिल्कुल बदल जाना)-घर के वातावरण से निकल कर छात्रावास का नियमित जीवन जीने से छात्रों की काया पलट हो जाती है।
35. किताब का कीड़ा(हर समय पढ़ते रहना)-किताब का कीड़ा बनने से स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है, थोड़ा खेला भी करो।
36. खरी-खोटी सुनाना(बुरा-भला कहना)-खरी-खोटी सुनाने से क्या लाभ, शांति से
समझौता कर लो।
37. खाक में मिल जाना(नष्ट हो जाना)-हिंदू जाति की गरिमा उसके असंगठित होने के कारण खाक में मिल गई।
38. खून खौलना(जोश में आना)-निर्दोष को पिटते देखकर मेरा खून खौल उठा।
39. खिल्ली उड़ाना(हँसी उड़ाना)-अपंग को देखकर खिल्ली उड़ाना भले लोगों का काम नहीं।
40. गुलछरें उड़ाना(मौज उड़ाना)-वह अपने पिता की परिश्रम से अर्जित की हुई संपत्ति के बलबूते पर गुलछरें उड़ा रहा है।
41. गज भर की छाती होना(उत्साहित होना)-पुत्र की सफलता का समाचार सुनकर पिता की छाती गज भर की हो गई।
42. गागर में सागर भरना(बड़ी बात को थोड़े शब्दों में कहना)-बिहारी के संबंध में वह उक्ति पूर्णतया उचित है कि उन्होंने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया है।
43. गिरगिट की तरह रंग बदलना(सिद्धांतहीन होना)-आजकल के नेता इतने गिर चुके हैं कि वे नित्य गिरगिट की तरह रंग बदल लेते हैं, इसलिए उनके किसी कथन पर विश्वास नहीं होता।
44. गुदड़ी का लाल(निर्धन परिवार में जन्मा गुणी व्यक्ति)-‘जय जवान, जय किसान’ का उद्घोष करने वाले हमारे स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री वास्तव में गुदड़ी के लाल थे।
45. घड़ों पानी पड़ जाना (बहुत शर्मिंदा होना)-अपनी ईमानदारी की बातें करने वाले नेताजी को जब मैंने रिश्वत लेते हुए पकड़ा तो उन पर घड़ों पानी पड़ गया।
46. घाव पर नमक छिड़कना(दुखी को और दुखी करना)-वह अनुत्तीर्ण होने के कारण पहले दुखी है, तुम जली-कटी सुनाकर उसके घाव पर नमक छिड़क रहे हो।
47. घी के दिए जलाना(खुशियाँ मनाना)-भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने पर प्रजा ने घी के दिए जलाए थे।
48. घोड़े बेचकर सोना(निश्चित होना)-दिन-भर थकने के बाद मजदूर रात को घोड़े बेचकर सोते हैं।
49. चाँद पर थूकना(निर्दोष पर दोष लगाना)-अरे, उस संत-महात्मा पर व्यभिचार का आरोप लगाना चाँद पर थूकना है।
50. चिराग तले अंधेरा(महत्त्वपूर्ण स्थान के समीप अपराध या दोष पनपना)-महात्मा जी के साथ रहकर भी चोरी करता है। सच है, चिराग तले अंधेरा होता है।
51. चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना (घबरा जाना)-जब चोर ने सामने से आते थानेदार को
अपनी ओर लपकते देखा तो उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ गई।
52. छक्के छुड़ाना (हराना)-भारत ने युद्ध में पक के छक्के छुड़ा दिए।
53. छाती पर साँप लोटना (जलना)-मुझे प्रथम आया देखकर मेरी पड़ोसिन की छाती पर साँप लोट गए।
54. छाती पर मूंग दलना(कष्ट पहुँचाना, सम्मुख अनुचित कार्य करना)-पिता ने नालायक पुत्र को घर से निकाल दिया, फिर भी वह उसी मुहल्ले में रहकर उनकी छाती पर मूंग दलता रहता है।
55. छोटा मुँह बड़ी बात (अपनी सीमा से बढ़कर बोलना)-उस भ्रष्टाचारी लाला द्वारा आदर्शों और सिद्धांतों पर दिया गया भाषण छोटा मुँह बड़ी बात है, और कुछ नहीं।
56. जान पर खेलना (जोखिम उठाना)-आजादी प्राप्त करने के लिए क्रांतिकारी वीर जान पर खेल जाते थे।
57. टका-सा जवाब देना (साफ इनकार करना)-मुसीबत पड़ने पर मैंने उससे थोड़ी-सी सहायता मांगी तो उसने टका-सा जवाब दे दिया। तब से मेरा दोस्ती का भ्रम टूट गया है।
58. टांग अडाना (व्यर्थ में दखल देना)-अपना काम करो, दूसरों के मामलों में क्यों टाँग अड़ाते हो?”
59. टोपी उछालना (अपमानित करना)-बड़े-बूढों की टोपी उछालना भले लोगों का काम नहीं है।
60. डींगें हांकना (शेखियाँ जमाना)-उसे आता-जाता कुछ है नहीं, व्यर्थ में डींगे हाँकता
61. तारे गिनना (व्यग्रता से प्रतीक्षा करना)-प्रेमी अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए तारे गिन रहा है और प्रेमिका को श्रृंगार से फुरसत नहीं।
62. तिल का ताड बनाना (छोटी-सी बात को बढ़ा देना)-अरे, कुछ बात नहीं है। माँ की तो तिल का ताड़ बनाने की आदत है।
63. तती बोलना (बहुत प्रभाव होना)-स्वतंत्रता आंदोलन के समय सारे देश में महात्मा गाँधी की तूती बोलती थी।
64. थक कर चाट जाना (कहकर अपने कथन से हट जाना)-वही व्यक्ति हमारे दिल पर प्रभाव छोड़ पाते हैं, जो अपनी बात पर पक्के रहते हैं। थूक कर चाटने वालों की कोई इज्जत नहीं होती।
6. दाँत कटी रोटी होना (पक्की दोस्ती होना)-तुम मोहन और सोहन में फूट नहीं डाल सकते। उनकी तो दाँत कटी रोटी है।
66. दाल में कछ काला (कुछ रहस्य होना)-दाल में कुछ काला है, तभी तो मेरे समीप पहुंचते ही उन्होंने बातें करना बंद कर दी।
67. दाहिना हाथ (बहुत बड़ा सहायक)-पंडित जवाहरलाल नेहरू महात्मा गाँधी के दाहिने हाथ थे।
68. दिन दनी रात चौगनी उन्नति करना (अधिकाधिक उन्नति करना)-प्रत्येक माँ अपने बेटे को यही आशीर्वाद देती है कि बेटा दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करे।
69. दम दबाकर भागना (डर कर भाग जाना)-पुलिस को आते देखकर चोर दुम दबाकर भाग गया।
70. दर के ढोल सहावने लगना (पूरे परिचय के अभाव में कोई वस्तु आकर्षक लगना)-अपने देश को छोड़कर विदेशों में मत भागो। वहाँ भी कम कष्ट नहीं हैं। याद रखो, दूर के ढोल सुहावने लगते हैं।
71. दो दिन का मेहमान (मरने के बहुत निकट)-यह बूढ़ा आदमी तो अब दो दिन का मेहमान दिखाई देता है।
72. धरती पर पाँव न पडना (अभिमान से भरा होना)-जब से सुबोध मंत्री बना है तब से उसके पाँव धरती पर नहीं पड़ते।
73. नमक हलाल होना (कृतज्ञ होना)-रामू नमक हलाल नौकर है। वह कभी मालिक से धोखा नहीं कर सकता।
74. नानी याद आना (संकट में पड़ना)-भारत-पाक युद्ध में पाक सेना को नानी याद आ गई।
75. नाक रखना (मान रखना)-कठिन समय में सहायता कर उसने समाज में मेरी नाक रख ली।
76. नाक कटना (इज्जत जाना)-चोरी के अपराध में अदालत की ओर से दंडित होने पर उसकी नाक कट गई।
77. नाक पर मक्खी न बैठने देना (अपने पर आक्षेप न आने देना)-अफसर लोग चाहे कितने ही आरोपों से घिरे हों, पर वे अपनी नाक पर मक्खी नहीं बैठने देते। वे चालाकी से साफ निकल जाते हैं।
78. नाक में नकेल डालना (अच्छी तरह नियंत्रण में रखना)-रामलाल की पत्नी उसकी नाक में नकेल डालकर रखती है, परंतु वह उसकी तनिक चिंता नहीं करता।
79. नीचा दिखाना (पराजित करना)-पाकिस्तान ने जब कभी हमारी सीमाओं का उल्लंघन कर हम पर आक्रमण किया, हमने सदैव उसे नीचा दिखाया।
80. पहाड़ टूटना (बहुत भारी कष्ट आ पड़ना)-अरे, जरा-सी खरोंच ही आई है। तुम तो ऐसे रो रहे हो जैसे पहाड़ टूट गया हो।
81. पत्थर की लकीर (पक्की बात)-मैंने जो कुछ भी कहा है, उसे पत्थर की लकीर समझना।
82. पांव उखड़ जाना (स्थिर न रहना, युद्ध में हार जाना)-शिवाजी की छापामार रणनीति से औरंगजेब की सेना के पाँव उखड़ जाते थे।
83. पारा उतरना (क्रोध शांत होना)-मैं जानता हूँ कि माँ का पारा तभी उतरेगा जब वह अपने एकाध बच्चे पर गरज-बरस लेंगी।
84. पापड़ बेलना (कष्ट उठाना)-नौकरी पाने के लिए मैंने कितने ही पापड़ बेले परंतु मुझे सफलता नहीं मिली।
85. पीठ दिखाना (हार कर भागना)-भारतीय वीरों ने युद्ध में मरना सीखा है, पीठ दिखाना नहीं।
86. पैरों तले से जमीन निकल जाना (स्तब्ध रह जाना)-अपने भाई की हृदय-गति रुकने से मृत्यु हुई जानकर उसके पैरों तले से जमीन निकल गई।
87. फूंक-फूंक कर कदम रखना (बड़ी सावधानी से काम करना)-व्यक्ति लाख फूंक-फूंक कर कदम रखे, परंतु जो होनी में लिखा है, वह होकर रहता है।
88. फूला न समाना (बहुत खुश होना)-परीक्षा में सफल होने का समाचार सुनकर छात्र फूला न समाया।
89. बंदर घुड़की (थोथी धमकी)-भारत चीन की बंदर घुड़कियों से डरने वाला नहीं, सैनिक दृष्टि से अब हमारी पूर्ण तैयारी है।
90. बहती गंगा में हाथ धोना (अवसर का लाभ उठाना)-1977 के चुनावों में सरकार के विरोध की ऐसी लहर थी कि उस बहती गंगा में जो भी हाथ धो गया, वह मंत्री या नेता बन गया।
91. बाल की खाल उतारना (बहुत नुक्ताचीनी करना)-व्यर्थ में क्यों बाल की खाल उतार रहे हो, जूता खरीदना हो तो लो, वरना अपनी राह लो। 92. बाल भी बांका न होना (कुछ भी न बिगड़ना)-ईश्वर जिसका रक्षक है, उसका कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता।
93. बांसों उछलना (अत्यंत प्रसन्न होना)-इस बार युवक समारोह का आयोजन अपने विद्यालय में होने का समाचार सुनकर छात्र बाँसों उछलने लगे।
94. भीगी बिल्ली बनना (भय के कारण दबकर रहना)-यह रमेश विद्यालय में जितनी डींगें हाँकता है, घर में उतना ही भगी बिल्ली बनकर रहता है।
95. मक्खियाँ मारना (बेकार बैठना)-आज सुबह से लगातार वर्षा होने के कारण सभी व्यापारी बैठे मक्खियाँ मार रहे हैं।
96. माथा ठनकना(शक हो जाना)-घर में चारों ओर छाई चुप्पी को देखकर मेरा माथा ‘ठनका कि कहीं-न-कहीं कोई गड़बड़ अवश्य है।
97. माता का दूध लजाना(कायरता दिखाना)-वीर पुत्र ने अपनी माँ से कहा-“माँ ! युद्धभूमि में माता का दूध लजाना कायरों का काम है, मैं ऐसा कदापि नहीं करूंगा।”
98. मुंह फुलाना (कुपित होना)-क्या कारण है कि आज तुम प्रातः से मुंह फुलाए बैठे
हो।
99. मुंह पीला पड़ना(भयभीत होना)-पिता ने जब पुत्र की चोरी पकड़ ली, तो पुत्र का चेहरा पीला पड़ गया
100. मुंह में पानी भर आना(ललचाना)-गर्म-गर्म हलवा देखकर उसके मुँह में पानी भर
आया।
101. मुट्ठी गरम करना(रिश्वत देना)-बिना मुट्ठी गरम किए आजकल नौकरी नहीं मिलती।
102. रंगा सियार होना(धूर्त, परदापोश व्यक्ति)-तुम उसकी सज्जनता पर मत जाना। वह रँगा सियार है।
103. राई का पहाड़ बनाना(छोटी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहना)-तुम तो राई का पहाड़ बनाकर प्रतिदिन नया झगड़ा खड़ा कर देती हो। 104. लकीर का फकीर होना(पुराने रीति-रिवाजों का दृढ़तापूर्वक पालन करना)-उस पोंगे पंडित को इससे मतलब नहीं कि अमुक रिवाज हितकर है या नहीं। वह तो लकीर का फकीर है।
105. लाल-पीला होना(क्रोध करना)-तुम व्यर्थ में क्यों लाल पीले होते हो, पहले यह । तो जान लो कि मैं देरी से आया क्यों हूँ?
106. वेद वाक्य मानना (सत्य मानना, ईश्वर की वाणी मानना)-गाँधी जी का भारतीय जनता पर ऐसा प्रभाव था कि लोग उनके वचनों को वेद वाक्य मानते थे।
107. सिर से पानी गजर जाना (सहनशीलता की सीमा टूट जाना)-भारतीय जनता इतनी सहनशील है कि सिर से पानी गुजर जाने पर भी हिंसक नहीं होती।
108. सिर पर खून सवार होना (किसी की जान लेने पर उतारू होना)-व्यर्थ उससे क्यों उलझते हो, उसके सिर पर तो सदैव खून सवार रहता है।
109. सिर पर चढना (गुस्ताख बनाना)-बच्चों को सिर पर चढ़ाना ठीक नहीं है।
110. श्रीगणेश करना(आरंभ करना)-नया वर्ष आरंभ हो गया है, अतः अभी से अगली कक्षा की पढ़ाई का श्रीगणेश कर दो।
111. हवा लगना(असर पड़ना)-इस निर्धन स्त्री को भी जमाने की हवा लग गई है। घर में खाने को है नहीं, फिर भी देखो कितना शृंगार किए हैं।
112. हथियार डालना(हार मान लेना)-पंजाब के आतंकवादियों ने लंबे संघर्ष से थककर हथियार डाल दिए हैं।
113. हाथ धोकर पीछे पडना (किसी को परेशान करने के लिए हमेशा तैयार रहना)-जब से प्राचार्य ने छात्रों को डराया-धमकाया है, तब से वे हाथ धोकर प्राचार्य के पीछे पड़ गए हैं।
114. हाथ मलना (पश्चाताप करना)-परिश्रम न करने के कारण यदि तुम अनुत्तीर्ण हो गए तो हाथ मलते रह जाओगे।
115. हाथ फैलाना (भीख मांगना)-वह गरीब हुआ तो क्या हुआ ? उसने किसी के सामने हाथ न फैलाकर परिश्रम करना सीखा है।
II. लोकोक्तियाँ
1. अंत भले का भला (अच्छे काम का परिणाम अच्छा ही होता है)-उसने तुम्हें कितनी ही हानि पहुँचाई हो, परंतु तुम सदैव उसके लाभ की बात ही सोचो क्योंकि ‘अंत भले का भला।
2. अंधी पीसे कुत्ता खाए (कमाए कोई, खाए कोई)-हमारे समाज में ‘अंधी पीसे कुत्ता खाए’ वाली स्थिति है। मेहनत मजदूर करता है और उसकी कमाई पर पूँजीपति विलासिता का जीवन व्यतीत करता है।
3. अपनी-अपनी उपली अपना-अपना राग (सबका अलग-अलग मत होना)-कई विरोधी दल होने के कारण कोई किसी की नहीं सुनता, सबकी अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग’ है।
4..अधजल गगरी छलकत जाए (थोड़ा ज्ञान या धन रखने वाले अधिक अभिमान का प्रदर्शन करते हैं)-इस किसान के पास कुल पाँच बीघे जमीन है, परंतु भूमिपति होने की डींग मारता फिरता है। इसे ही कहते हैं- अधजल गगरी छलकत जाए।’
5. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता (अकेला आदमी कुछ नहीं कर सकता)-मैंने इस संस्था को ऊँचा उठाने के लिए जी जान एक कर दिया परंतु मेरे अकेले के किए क्या हो सकता है ? अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
6. अकेली मछली सारा तालाब गंदा कर देती है (दुष्ट आदमी सारे वातावरण को दूषित कर देता है)-मैंने पहले कहा था कि उस दुष्ट नरेश को सभा में मत बुलाओ। उसने आकर सारी सभा में गड़बड़ मचा दी। तुम जानते नहीं अकेली मछली सारा तालाब गंदा कर देती है।
7. अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत (पहले परिश्रम न करके बाद में व्यर्थ पछताना)-पहले तो तुम मौज से सोते रहे, अब अनुत्तीर्ण होने पर पछता रहे हो। अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।
8. अशर्फियों लटें कोयलों पर मोहर (बड़े-बड़ें खौँ पर तो ध्यान न देना और छोटे-छोटे खचों के लिए कंजूसी दिखाना)-तुमने लड़के की शादी में तो अनाप-शनाप खर्च कर डाला, परंतु आज मित्रों को पार्टी देने में इतना संकोच ! वाह ! ‘अशर्फियाँ लुटें कोयलों पर मोहर’।
9. अपना हाथ जगन्नाथ (स्वयं का कार्य सबसे अच्छा होता है)-प्रिय रमेश ! मेरी तुम्हें यही सलाह है कि सरकारी नौकरी का लोभ छोड़कर अपना काम-धंधा करो। अपना हाथ जगन्नाथा
10. आप भला तो जग भला (अच्छे को सभी अच्छे लगते हैं)-युधिष्ठिर ने हर किसी में अच्छाई के दर्शन किए जबकि दुर्योधन को सब लोग दुष्ट नजर आते थे। सच ही कहा है-आप भला तो जग भला।
11. आधी छोड़ सारी को धावै, आधी मिले न सारी पावै (लालच छोड़कर थोड़े में ही संतोष करना चाहिए, लालची को कुछ भी नहीं मिलता)-मुझे दस रुपए वाले शेयर के बीस मिल रहे थे, लेकिन मैं तीस पाने के चक्कर में बैठा रहा। अब उसके कोई सात रुपए भी नहीं देता। सच ही कहा है-आधी छोड़ सारी को धावै, आधी मिले न सारी पावै।
12. आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास (आवश्यक कार्य को छोड़कर अनावश्यक कार्य में उलझ जाना)-मैं पुस्तकालय में निबंध खोजने गया था, किंतु वहाँ जाकर कहानियाँ पढ़ने लगा। वही बात हुई-आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास।
13. आगे कुआँ पीछे खाई (सभी ओर से विपत्ति आना)-शोभा आजकल विपत्तियों से घिरी है। ससुराल में सास ताने देती है-और मायके में भाभी दुत्कारती-फटकारती है। बेचारी की यह स्थिति है-‘आगे कुआँ पीछे खाई।’
14. आम के आम गुठली के दाम (दोहरा लाभ)-अखबार पढ़ भी लिए, फिर रद्दी में बेचकर दाम भी प्राप्त किए। इसे कहते हैं-‘आम के आम गुठली के दाम।’
15. ऊँट के पंह में जीरा (आवश्यकता अधिक लेकिन मिलना बहुत कम)-पहलवान को दो रोटी खिलाना तो ऊँट के मुँह में जीरा देने वाली बात है।
16 ऊंची दकान फीका पकवान(दिखावा अधिक और तत्त्व कम)-नाम तो है ‘सुगंधित मिष्ठान भंडार’ पर मिठाई में से दुर्गंध आ रही है। इसी को कहते हैं-‘ऊंची दुकान फीका पकवान।’
17. उल्टा चोर कोतवाल को डॉटे(अपना दोष स्वीकार न करके पूछने वाले को दोषी ठहराना)-एक तो मेरी पुस्तक चुराई, दूसरे अपराध स्वीकार करने की अपेक्षा मुझे ही आँखें दिखाता है। ‘उल्टा चोर कोतवाल को डॉटे’।
18. एक तंदरुस्ती हजार नियामत(स्वास्थ्य बहुत बड़ी चीज है)-मेरे पास करोड़ों रुपया हुआ तो क्या हुआ। बीमारी के कारण बिस्तर से उठा तक नहीं जाता। सच ही कहा है-एक तंदुरुस्ती हजार नियामत।
19. एक तो चोरी, दसरे सीना जोरी(अपराधी होकर उलटे अकड़ दिखाना)-एक तो मुझे टक्कर मारी। ऊपर से गुर्राता है। वाह रे ! एक तो चोरी, दूसरे सीना जोरी।
20. एक तो करेला कडुआ दूसरे नीम चढा(स्वाभाविक दोषों का किसी कारण से बढ़ जाना)-राम जुआरी तो था ही, अब शराबी की संगत में रहने लग गया। इसी को कहते हैं- एक तो करेला कडुआ दूसरे नीम चढ़ा।’
21. एक हाथ से ताली नहीं बजती(झगड़े में दोनों पक्ष कारण होते हैं)-मैं कैसे मान लूँ कि तुमने राम को अपशब्द नहीं कहे और उसने तुम्हें पीट दिया। एक हाथ से कभी ताली नहीं बजती।
22. एक म्यान में दो तलवारें समा नहीं सकती एक वस्तु के दो समान अधिकारी नहीं हो सकते)-नीलिमा को जब यह पता चला कि उसके पति की पहली पत्नी अभी जीवित है तो उसने अपने पति को स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकती।
23. एक अनार सौ बीमार(एक वस्तु के अनेक ग्राहक)-यहाँ विद्यालय में एक स्थान रिक्त है, किस-किस को रखू ? स्थिति तो ठीकं वैसी ही है कि एक अनार सौ बीमार।
24. एक पंथ दो काज(एक काम से दोहरा लाभ)-मुझे दफ्तर के काम से पटना जाना ही है, तुम्हारी भाभी से भी मिलता आऊँगा। एक पंथ दो काज हो जाएंगे।
25. एक अकेला दो ग्यारह(एकता लाभदायक होती है)-मैं अकेला था तो उत्साहहीन होकर काम कर रहा था। तुम्हारे आने से मेरा उत्साह कई गुना बढ़ गया है। सच ही कहा है एक अकेला दो ग्यारहा
26. ओछे की प्रीत बाल की भीत(दुष्ट व्यक्तियों की मित्रता शीघ्र समाप्त हो जाती है)-वह तो अपना उल्लू सीधा करने के लिए आपका मित्र बना था, काम बनते ही चल निकला। सच कहा है, ओछे की प्रीत बालू की भीत।
27. ओखली में सिर दिया तो मसलों से क्या डर(किसी कार्य को करने की ठान ली तो कष्टों से क्या डरना)-जब समाज-सुधार का बीड़ा उठाया है, तो विरोध तथा अपवाद झेलने ही पड़ेंगे, ‘ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर।’
28. कंगाली में आटा गीला(दुखी व्यक्ति पर और दुख आना)-वह पहले से विधवा थी। अब उसका इकलौता पुत्र भी चल बसा। कहते हैं न, कंगाली में आटा गीला।
29.कबह निरामिष होय न कागा दुष्ट दुष्टता नहीं छोड़ता)-मैंने रंगा की मीठी-मीठी बातों में आकर उस पर विश्वास कर लिया, किंतु उसने अवसर आने पर अपनी दुष्टता दिखा ही दी। सच कहा है, कबहुँ निरामिष होय न कागा।
30. कहाँ राजा भोज कहाँ गंग वेली (दो असमान व्यक्तियों की तुलना)-अरे ! तुम अपने सरपंच को महात्मा गाँधी के साथ मिला रहे हो। यह भी कोई बात हुई। कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली।
31. कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर (एक-दूसरे की सहायता लेनी ही पड़ती है)-जीवन भर माँ-बाप बच्चे की सहायता करते रहे। आज वही माँ-बाप बच्चे की सहायता से दिन काट रहे हैं। यह तो ऐसा ही है-कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर।
32. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा (असंगत वस्तुओं का मेल बैठाना, बिना सिर-पैर का काम करना)-अरे, जनता दल भी कोई दल है। इसमें किसी के विचार दूसरे से नहीं मिलते। ‘कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा’ वाली कहावत इस पर खरी उतरती है।
33. काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती (बेईमानी बार-बार नहीं,चलती)-दूधिया दूध में प्रतिदिन पानी मिलाता था, एक दिन रंगे हाथों पकड़ा ही गया। ठीक ही कहा है-काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती।
34. काला अक्षर भैंस बराबर (बिल्कुल अनपढ़)-रामलाल बिल्कुल अनपढ़ है। वास्तव में उसके लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है।
35. का बरर्खा जब कृषि सुखाने (काम बिगड़ने पर सहायता व्यर्थ होती है)-रोगी के मरने के पश्चात् डॉक्टर वहाँ पहुँचा, अब क्या करना था? का बरखा जब कृषि सुखाने।
36. कोयले की दलाली में मुंह काला (दुर्जनों की संगति से कलंक लगता है)-चोर की संगति में रहने के कारण निर्दोष श्याम भी पुलिस की गिरफ्त में आ गया। कोयले की दलाली । में मुंह काला होता ही है। –
37. खग जाने खग की भाषा (चालाक ही चालाक की भाषा समझता है)-ये दोनों बच्चे न जाने इशारों में क्या बातें करते हैं! मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आता। खग जाने खग की भाषा।
38. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है (बुरी संगति का प्रभाव अवश्य पड़ता है)-कॉलेज में जाते ही मेरा भोला-भाला भाई न जाने क्या अफलातून हो गया है। जब देखो, फिल्म, वीडियो की बातें करते हुए उसका मन नहीं भरता। सच ही है, खरबूजे को देखकर खबूजा रंग बदलता है।
39. खिसियाई बिल्ली खंभा नोचे (अपनी शर्म छिपाने के लिए व्यर्थ का काम करना, अपनी खीझ निकालना)-श्रीमान् शर्मा जी अपने बॉस से तो कुछ कह नहीं पाए। अब घर आकर पत्नी पर गुस्सा निकाल रहे हैं। खिसियाई बिल्ली खंभा नोचे।
40. खोदा पहाड़ निकली चुहिया (परिश्रम अधिक, फल कम)-ज्योतिषी के कहने पर सारा घर खोद डाला, पर निकली केवल एक पीतल की लुटिया ही। क्या बताऊँ खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
41. गंगा गए तो गंगादास, जमना गए तो जमनादास (परिस्थिति के अनुसार विचार बदलने वाला अस्थिर व्यक्ति)-आजकल के नेताओं का कोई एक सिद्धांत नहीं है। वे निपट अवसरवादी हैं। गंगा गए तो गंगादास, जमना गए तो जमनादास।
42. गुरु गुड़ ही रहे, चेले शक्कर हो गए (चेला गुरु से भी आगे बढ़ गया)-शास्त्री जी उसी विद्यालय में संस्कृत पढ़ा रहे हैं, जबकि उनका पढ़ाया हुआ छात्र विद्यालय शिक्षा बोर्ड का चेयरमैन हो गया है। सच ही कहा है-गुरु गुड़ ही रहे, चेले शक्कर हो गए।
43. घर फूंक तमाशा देखना (शान के लिए औकात से बाहर खर्च करना)-लड़की वाले बेचारे क्या करें। उनहें बरात तथा लड़के वालों को प्रसन्न करने के लिए घर फूंक तमाशा देखना ही पड़ता है।
44. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए(बहुत कंजूस होना)-भला यह सेठ मंदिर के निर्माण के लिए क्या दान देगा? इसका तो यह हाल है, चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।
45. चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात(थोड़े दिन की मौज, फिर वही कष्ट)-बच्चू अशोक, हो लो खुश शादी के अवसर पर। खुश होने का यही अवसर है। चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी राता
46. चोर के पैर नहीं होते (पापी सदा भयभीत रहता है)-चोरी के संबंध में पूछताछ करने पर मोहन का मुंह पीला पड़ गया। ठीक ही कहा गया है-‘चोर के पैर नहीं होते।
47. चोर की दाढ़ी में तिनका (अपराधी व्यक्ति हमेशा सशंकित रहता है)-इधर घर में चोरी हुई। उधर नौकर गायब हो गया। मैं समझ गया कि चोरी में नौकर का हाथ अवश्य है। चोर की दाढ़ी में तिनका।
48. चौबे गए छब्बे बनने, दूबे ही रह गए (लाभ के स्थान पर हानि होना)-मैंने सोचा था कि इस बार भारत विश्व कप जीतकर लाएगा परंतु हमारी टीम प्रतियोगिता में सबसे पीछे । रह गई। चौबे गए छब्बे बनने, दूबे ही रह गए।
49. छछंदर के सिर में चमेली का तेल (किसी अयोग्य व्यक्ति को ऐसी वस्तु मिल जाना जिसके वह योग्य नहीं है)-सरस्वती जैसी गुणवती और रूपवती कन्या का विवाह अनपढ़ अनिल
के साथ ! यह तो ऐसे ही हुआ जैसे छडूंदर के सिर में चमेली का तेल।
50. जंगल में मोर नाचा, किसने देखा (योगयता एवं वैभव का ऐसे स्थान पर प्रदर्शन जहाँ कद्र करने वाला कोई न हो)-भाई पहलवान जी, माना तुम विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली पहलवान हो परंतु यहाँ गाँव में पड़े रहने से क्या लाभ ? जंगल में मोर नाचा, किसने देखा। जरा किसी प्रसिद्ध प्रतियोगिता में अपने हाथ दिखाओ।
51. जल में रहकर मगरमच्छ से बैर (आश्रय देने वाले से बैर करना)-प्राचार्य महोदय की अब कुशल नहीं। प्रबंधक समिति के सदस्य उन्हें अवश्य नौकरी से निकाल देंगे। ‘जल में रहकर मगरमच्छ से बैर अच्छा नहीं होता।’
52. जाके पैर न फटे बिवाई सो क्या जाने पीर पराई (जिसने दुख नहीं भोगा, वह दुखी जनों का कष्ट नहीं समझ सकता)-आलीशान कोठियों में रहने वाले सफेदपोश लोग तो खोखले नारे लगाते हैं। वे गरीबों के कष्टों को क्या समझें? जाके पैर न फटे बिवाई सो क्या जाने पीर । पराई।
53. जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोय (जिसका भगवान रक्षक है, उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता)-बच्चा चलती रेलगाड़ी से गिरने के बाद भी बच गया। सच है, जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोय।
54. जिसकी लाठी उसकी भैंस (बलवान की ही विजय होती है)-वह धन-जन के बल पर संसद सदस्य बन ही गया। किसी ने ठीक ही कहा है, जिसकी लाठी उसकी भैंस।
55. जिस पत्तल में खाना, उसी में छेद करना (अपने हितैषी को हानि पहुँचाना)-रामलाल ने तुम्हें नौकरी दिलवाई, अब उसी की दूसरों के सामने बुराई करते हो। तुम्हारा तो यह किसाब है-‘जिस पत्तल में खाना, उसी में छेद करना।’
56. जैसी करनी वैसी भरनी (किए का फल भोगना पड़ेगा)-उसने जीवन भर चोरी-डकैती करके लोगों को परेशान किया। अब उसके लड़के उसी पर हाथ साफ कर रहे हैं। अब इस पर क्या कहूँ ? जैसी करनी वैसी भरनी।