Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 4 प्राणि जगत Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 4 प्राणि जगत
Bihar Board Class 11 Biology प्राणि जगत Text Book Questions and Answers
प्रश्न 1.
यदि मूलभूत लक्षण ज्ञात न हों तो प्राणियों के वर्गीकरण में आप क्या परेशानियाँ महसूस करेंगे?
उत्तर:
विश्व में लगभग 10 लाख प्रकार के जन्तुओं को पहचाना जा चुका है। इतनी अधिक विविधता वाले जीवों का अलग-अलग अध्ययन किसी के लिए भी सम्भव नहीं है; अतः जीवधारियों को कुछ महत्त्वपूर्ण लक्षणों के आधार पर इस प्रकार वर्गीकृत करते हैं कि एक समूह के मुख्य लक्षण उस समूह के. सभी जीवों में पाए जाते हैं।
इस प्रकार किसी एक जीव का विस्तृत अध्ययन कर लेने से उस समूह के अन्य जीवों का सामान्य ज्ञान हो जाता है। जिन लक्षणों के आधार पर जन्तुओं को वर्गीकृत करते हैं, वे लक्षण उनके मूलभूत लक्षण कहलाते हैं; जैसे – संगठन का स्तर, सममिति, कोशिका संगठन, गुहा की प्रकृति, खण्डीभवन, पाचन तन्त्र, परिसंचरण तन्त्र, जनन तन्त्र, पृष्ठ रज्जु आदि।
मूलभूत लक्षणों के ज्ञात न होने पर प्राय: ऐसे जीव जिनका आपस में दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं होता, एक ही समूह में वर्गीकृत हो जाते हैं; जैसे-पंखों के आधार पर कीट, उड़ने वाली छिपकली, पक्षी चमगादड़ को उड़ने वाले जन्तुओं के समूह में वर्गीकृत किया जाता है, लेकिन इनमें परस्पर कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता।
इसी प्रकार अनेक आर्थोपोडा, मोलस्का जन्तुओं, मछलियों, जलसर्प, व्हेल, हॉल्फिन आदि को जलीय जीवों के अन्तर्गत वर्गीकृत करते हैं, जबकि उनमें परस्पर अनेक भिन्नताएँ पाई जाती हैं। अतः आधुनिक समय में प्राणियों का वर्गीकरण उनके मूलभूत लक्षणों के आधार पर ही किया जाता है।
प्रश्न 2.
यदि आपको एक नमूना (स्पेसिमेन) दे दिया जाए तो वर्गीकरण हेतु आप क्या कदम अपनाएँगे?
उत्तर:
किसी नमूने या स्पेसिमेन का वर्गीकरण करने के लिए हम उसके मुख्य लक्षणों का प्रेक्षण करेंगे। इसके पश्चात् उसका वर्गीकरण निम्नलिखित मूलभूत लक्षणों के आधार पर करेंगे–कोशिका व्यवस्था, संगठन का स्तर, शारीरिक सममिति, प्रगुहा की प्रकृति, पाचन तन्त्र, परिसंचरण तन्त्र, श्वसन तन्त्र, जनन तन्त्र, पृष्ठ रज्जु आदि।
प्रश्न 3.
देहगुहा एवं प्रगुहा का अध्ययन प्राणियों के वर्गीकरण में किस प्रकार सहायक होता है?
उत्तर:
देहगुहा प्रगुहा (Body Cavity or Coelome):
शरीर भित्ति तथा आहारनाल के मध्य तरल से भरी गुहा को देहगुहा या प्रगुहा (coelome) कहते हैं। यह भी भ्रूणीय परिवर्धन के समय मीसोडर्म (mesoderm) से बनती है। देहगुहा (सीलोम) शरीर को लचीलापन प्रदान करती है और इसमें स्थित अंगों को बाह्य आघातों से बचाती है।
इससे युक्त प्राणियों को प्रगुही (coelomate) कहते हैं, और जिनमें इसका अभाव होता है उन्हें अगुहीय कहते हैं। देहगुहा (सीलोम) की प्रकृति के आधार पर जन्तुओं को निम्नलिखित तीन समूहों में बाँटा जा सकता है –
चित्र – (क) प्रगुहीय, (ख) कूटगुहिक, (ग) अगुहीय की अनुप्रस्थ काट का रेखाचित्र
1. अगुहीय या एसीलोमेट (Acoelomate):
पोरोफेरा, सीलेन्ट्रेटा तथा प्लेटीहेल्मिन्थीज (platyhelminthes) में देहगुहा का अभाव होता है। इन जन्तुओं को अगुहीय या एसीलोमेट कहते हैं। स्पंज की गुहा को स्पंजगुहा, सीलेन्ट्रेटा जन्तुओं की गुहा को सीलेन्ट्रॉन कहते हैं। प्लेटीहेल्मिन्थीज कृमियों में देहभित्ति तथा आहारनाल के मध्य मृदूतकीय स्पंजी ऊतक भरा होता है।
2. कूटगुहिक या स्यूडोसीलोमेट (Pseudocoe lomate):
कुछ जन्तुओं में देहभित्ति तथा आहारनाल के मध्य कूटगुहा या स्यूडोसील (pseudocoel) होती है, जो भ्रूण की ब्लास्टोसील (blastocoel) से विकसित होती है। इस पर मीसोडर्म का स्तर नहीं होता; जैसे-ऐस्केल्मिन्थीज (aschelminthes) कृमियों में।
3. प्रगुहीय या सीलोमेट (Coelomate):
जिन जन्तुओं में वास्तविक देहगुहा (सीलोम) होती है उन्हें प्रगुहीय (सीलोमेट) कहते हैं। यह मीसोडर्म से आच्छादित होती है; जैसे-ऐनेलिडा, मोलस्का, आर्थोपोडा इकाइनोडर्मेटा तथा हेमीकॉर्डेटा तथा कॉडेंटा जन्तुओं में।
प्रश्न 4.
अन्तःकोशिकीय एवं बाह्य कोशिकीय पाचन में विभेद कीजिए।
उत्तर:
अन्तःकोशिकीय एवं बाह्य कोशिकीय पाचन में अन्तर (Difference between Intracellular and Extracellular Digestion)
प्रश्न 5.
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष परिवर्धन में क्या अन्तर है?
उत्तर:
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष परिवर्धन में अन्तर (Difference between Direct and Indirect Development)
प्रश्न 6.
परजीवी प्लेटीहेल्मिन्थीज के विशेष लक्षण बताइए।
उत्तर:
परजीवी प्लेटीहेल्मिन्थीज के विशेष लक्षण (Peculiar Characters of Parasitic Platyhelminthes)
परजीवी प्लेटीहेल्मिन्थीज के विशेष लक्षण निम्नवत् हैं –
- शारीरिक संगठन ऊतक-अंग स्तर का होता है।
- शरीर त्रिस्तरीय (triploblastic), द्विपार्श्वसममित, अगुहिकीय (acoelomate) होता है। देहभित्ति या आहारनाल के मध्य मृदूतकीय स्पंजी ऊतक भरा होता है।
- शरीर पृष्ठधारी रूप से चपटा होता है। यह खण्डयुक्त या पत्ती सदृश होता है।
- इनमें आसंजक अंग (adhesive organs) चूषक, हुक आदि पाए जाते हैं।
- आहार-नाल अपूर्ण या अनुपस्थित होती है। ये पोषक से पोषक पदार्थों का अवशोषण करते हैं।
- ज्वाला कोशिकाएँ (flame cells) उत्सर्जी संरचनाएँ होती हैं। ये जल सन्तुलन में सहायक होती हैं।
- कंकाल, श्वसन और परिसंचारी तन्त्र का अभाव होता
- जनन तन्त्र जटिल होता है। अधिकतर द्विलिंगी होते हैं। इनमें उच्च जनन दर पाई जाती है।
- निषेचन (fertilization) आन्तरिक होता है।
चित्र – प्लेटीहेल्मिन्थीज के उदाहरण – (अ) फीताकृमि (टीनिया) – (ब) यकृतकृमि (फैसियोला)
10. परिवर्धन (development) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष। जीवन-चक्र जटिल तथा दो या अधिक चक्रों में पूर्ण होता है।
उदाहरण:
फीताकृमि (Taenia solium), यकृतकृमि (Fasciola hepatica)
प्रश्न 7.
आर्थोपोडा प्राणी समूह का सबसे बड़ा वर्ग है, इस कथन के प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर:
संघ आर्थोपोडा (Phylum-Arthropoda):
यह जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ है। 2/3 जन्तु प्रजातियाँ संघ आर्थोपोडा में आती है। इसके सदस्य सभी प्रकार के आवासों में पाए जाते हैं; जैसे – स्थल, जल, वायु, मृदा के नीचे वृक्षों पर आदि। अन्य प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
- इनका शरीर त्रिस्तरीय, द्विपार्श्व सममित, प्रगुहीय, समखण्डों में विभक्त होता है।
- शरीर का संगठन अंग तंत्र स्तर का होता है।
- शरीर पर बाह्य कंकाल पाया जाता है।
- शरीर पर विविध कार्यों के लिए रूपान्तरित सन्धियुक्त उपांग पाए जाते हैं।
- देहगुहा को हीमोसिल (haemocoel) तथा इसमें पाए जाने वाले तरल को हीमोलिम्फ (hemolymph) कहते हैं। यह रक्त तथा लसीका दोनों का कार्य करता है।
- रक्त परिसंचरण तन्त्र खुले प्रकार (open type) का होता है।
- श्वसन अंग क्लोम, बुक-लंग्स (Book-lungs), ट्रेकिया (trachea) होते हैं।
- उत्सर्जन मैल्पीघी नलिकाओं (Malpighian tubules), ग्रीन ग्रन्थियों (green) द्वारा होता है।
- संयुक्त नेत्र (compound eyes) पाए जाते हैं।
- जन्तु एकलिंगी, अण्डज (oviparous) होते हैं। परिवर्धन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष होता है।
चित्र – आर्थोपोडा के उदाहरण – (A) टिड्डा, (B) तितली, (C) बिच्छू, (D) झींगा
उदाहरण:
बिच्छु (पैलेम्निअस – Palamnaeus), झींगा मछली (पैलीमोन – Palaemon), टिड्डा (सिसटोसिर्का| Schistocerca), तितली (butterfly) आदि।
प्रश्न 8.
जल संवहन तन्त्र किस वर्ग का मुख्य लक्षण है?
(अ) पोरीफेरा
(ब) टीनोफोरा
(स) इकाइनोडर्मेटा
(द) कॉर्डेटा।
उत्तर:
(स) इकाइनोडर्मेटा (Echinodermata)।
प्रश्न 9.
सभी कशेरुकी (वर्टीब्रेट्स) रज्जुकी (कॉर्डेट्स) हैं, लेकिन सभी रज्जुकी कशेरुकी नहीं है। इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
सभी कशेरुकी (वर्टीब्रेट्स) रज्जुकी (कॉडेंट्स) है; क्योंकि इनमें रज्जुकी या कॉडेंट्स के समान निम्नलिखित तीन मुख्य लक्षण पाए जाते हैं –
- सभी रज्जुकी या कॉडेंट्स जन्तुओं के जीवन की किसी-न-किसी अवस्था में छड़नुमा, लचीला नोटोकार्ड (notochord) पाई जाती है।
- सभी रज्जु की कार्डेट्स में शरीर की मध्य पृष्ठ रेखा पर पृष्ठीय नाल तन्त्रिका रज्जु स्थिर होता है, यह नोटोकार्ड के ऊपर स्थित होती है।
- जीवन की किसी-न-किसी अवस्था में ग्रसनीय क्लोम दरारें (pharyngeal gill cleft) पाई जाती हैं।
सभी रज्जुकी कशेरुकी (वर्टीब्रेट्स-vertebrates) नहीं होते; क्योंकि –
वर्टीब्रेट्स में कशेरुकदण्ड (vertebral column) पूर्ण विकसित होता है, जबकि प्रोटोकॉर्डेटा (protochordata) तथा एग्नैथा (agnatha) प्राणियों में कशेरुकदण्ड अनुपस्थित या अविकसित होता है। कशेरुकदण्ड का निर्माण नोटोकार्ड से होता है।
प्रश्न 10.
मछलियों में वायु आशय-एयर ब्लैडर की उपस्थिति का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
अस्थिल मछलियों में वायु आशय पाया जाता है। वायु आशय के कारण मछलियों का सन्तुलन बना रहता है, और इनको निरन्तर तैरना नहीं पड़ता। वायु आशय के अभाव में मछलियों को निरन्तर तैरते रहना होता है, जिससे वे डूबने से बची रहती है। कुछ मछलियों में वायु आशय श्वसन में भी सहायता करती है।
प्रश्न 11.
पक्षियों में उड़ने हेतु क्या-क्या रूपान्तरण हैं?
उत्तर:
पक्षियों में उड़ने के लिए रूपान्तरण (Modifications in Birds that help in Flying):
- पक्षियों का शरीर धारारेखित, सिर छोटा, गर्दन लचीली होती है।
- पक्षियों के अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित हो जाते हैं। पंख परयुक्त (feathered) होते हैं। पंख उड़ने में सहायक होते हैं। पक्षी उड्डयन पेशियों (flight muscles) की क्रियाशीलता के कारण उड़ते हैं।
- पूँछ उड़ते समय दिशा-परिवर्तन में सहायक होती है।
- शरीर पर परों (feathers) से बना बाह्य कंकाल होता है। यह शरीर ताप नियमन में सहायक होता है।
- पक्षियों के नेत्र बड़े तथा पार्श्व में स्थित होते हैं।
- पक्षियों की अस्थियाँ खोखली तथा मजबूत होती हैं।
- स्टर्नम नौकाकार होता है, उड़ने में सहायक होता है।
- पक्षियों के फेफड़ों से वायुकोश जुड़े रहते हैं। ये श्वसन में सहायता करने के अतिरिक्त शरीर को हल्का रखकर उड़ने में सहायता करते हैं।
- पश्चपाद पर शल्क पाए जाते हैं। पश्चपाद की नखरयुक्त अंगुलियाँ वृक्षीय जीवन के अनुकूल होती हैं।
- हृदय चार वेश्मी होता है। शुद्ध तथा अशुद्ध रक्त पृथक् रहते हैं।
- मुख पर चोंच होती है। चोंच में दाँत नहीं होते।
- ये उत्सर्जी पदार्थ यूरिक अम्ल को ठोस के रूप में मल के साथ त्याग देते हैं।
- ये एकलिंगी (unisexual) तथा अण्डज (oviparous) होते हैं।
- पक्षी अण्डों को सेते हैं।
- शुतुरमुर्ग (स्टुथियो), कैसोवरी (Cassowary), ईमू (Emu), रीआ (Rhea), कीवी (Apteryx) आदि न उड़ने वाले पक्षी हैं।
चित्र – कुछ पक्षी – (A) चील, (B) शतुरमुर्ग, (C) तोता, (D) मोर
प्रश्न 12.
अण्डजनक तथा जरायुज द्वारा उत्पन्न अण्डे या बच्चे संख्या में बराबर होते हैं? यदि हाँ तो क्यों? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
अण्डजनक (oviparous) प्राय: अधिक संख्या में अण्डे देते हैं; क्योंकि अण्डे परभक्षी जन्तुओं द्वारा आहार के रूप में खा लिए जाते हैं अथवा विपरीत परिस्थितियों में अण्डे नष्ट हो जाते हैं। जरायुज (viviparous) पूर्ण विकसित शिशुओं को जन्म देते हैं। इनके जीवित रहने की सम्भावनाएँ अधिक होती है। इस कारण जरायुज प्राणी कम संख्या में सन्तान उत्पन्न करते हैं।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से शारीरिक खण्डीभवन किसमें पहले देखा गया?
(अ) प्लेटीहेल्मिन्थीज
(ब) ऐस्केल्मिन्थीज
(स) ऐनेलिडा
(द) आर्थोपोडा।
उत्तर:
(स) ऐनेलिडा (Annelida)
प्रश्न 14.
निम्नलिखित का मिलान कीजिए –
उत्तर:
- (घ) ऑस्टिक्थीज
- (क) ऐनेलिडा
- (द) रेप्टीलिया
- (अ) टीनोफेरा
- (ब) मोलस्का
- (ग) मैमेलिया
- (स) पोरीफेरा
- (ख) साइक्लोस्टोमेटा एवं कॉन्ड्रिक्थीज।
प्रश्न 15.
मनुष्यों पर पाए जाने वाले कुछ परजीवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मनुष्यों के शरीर में पाए जाने वाले परजीवी (Parasites of Human body):