Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 16 जैव विविधता एवं संरक्षण

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 16 जैव विविधता एवं संरक्षण Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 16 जैव विविधता एवं संरक्षण

Bihar Board Class 11 Geography जैव विविधता एवं संरक्षण Text Book Questions and Answers

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 16 जैव विविधता एवं संरक्षण

(क) बहुवैकल्पिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
जैव-विविधता का संरक्षण निम्न में किसके लिए महत्वपूर्ण है …………………
(क) जन्तु
(ख) पौधे
(ग) पौधे और प्राणी
(घ) सभी जीवधारी
उत्तर:
(घ) सभी जीवधारी

प्रश्न 2.
असुरक्षित प्रजातियाँ कौन-सी हैं ………………….
(क) जो दूसरों को असुरक्षा दें
(ख) बाध व शेर
(ग) जिनकी संख्या अत्याधिक हों
(घ) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है
उत्तर:
(घ) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है

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प्रश्न 3.
राष्ट्रीय पार्क (National Parks) और अभ्यारण (Sanctuaries) किस उद्देश्य के लिए नाए गए हैं …………………
(क) मन जन
(ख) पालतू जीवों के लिए
(ग) शिकार के लिए
(घ) संरक्षण के लिए
उत्तर:
(घ) संरक्षण के लिए

प्रश्न 4.
जैव-विविधता समृद्ध क्षेत्र हैं ………………..
(क) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र
(ख) शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र
(ग) ध्रुवीय क्षेत्र
(घ) महासागरीय क्षेत्र
उत्तर:
(क) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र

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प्रश्न 5.
निम्न में से किस देश में अर्थ सम्मेलन (Earth summit) हुआ था ………………..
(क) यू. के. (U.K.)
(ख) ब्राजील
(ग) मैक्सिको
(घ) चीन
उत्तर:
(ख) ब्राजील

प्रश्न 6.
प्रोजेक्ट टाईगर निम्नलिखित में से किस उद्देश्य से शुरू किया गया है।
(क) बाघ मारने के लिये
(ख) बाघ को शिकार से बचाने हेतु
(ग) बाघ को चिड़ियाघर में डालने हेतु
(घ) बाघ पर फिल्म बनाने हेतु
उत्तर:
(घ) बाघ पर फिल्म बनाने हेतु

प्रश्न 7.
प्रोजेक्ट एलिफेन्ट (Project Elephent) किस वर्ष लागू किया गया?
(क) 1992
(ख) 1993
(ग) 1994
(घ) 1995
उत्तर:
(क) 1992

प्रश्न 8.
होमो-सेपियन (Homo-Speiens) प्रजाति किस से संबंधित है?
(क) पौधे
(ख) शाकाहारी जीव
(ग) मांशहारी जीव
(घ) मानव
उत्तर:
(घ) मानव

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प्रश्न 9.
जैव विविधता का समृद्ध क्षेत्र है ……………….
(क) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र
(ख) ध्रुवीय क्षेत्र
(ग) शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र
(घ) महासागरीय क्षेत्र
उत्तर:
(क) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।

प्रश्न 1.
जैव-विविधता क्या है?
उत्तर:
किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाये जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को जैव-विविधता कहते हैं। इसका संबंध पौधों के प्रकार, प्राणियों तथा सूक्ष्म जीवाणुओं से है उनकी आनुवंशिकी और उनके द्वारा निर्मित पारितंत्र से है। जैव-विविधता सजीव सम्पदा है। यह विकास के लाखों वर्षों के इतिहास का परिणाम है।

प्रश्न 2.
जैव-विविधता के विभिन्न स्तर क्या हैं?
उत्तर:
जैव-विविधता को तीन स्तरों पर समझा जा सकता है –

  1. आनुवांशिक विविधता (Genetic diversity)
  2. प्रजातीय विविधता (Species diversity) तथा
  3. पारितंत्रीय विविधता (Ecosysten diversity)

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प्रश्न 3.
हॉट-स्पॉट (Hot spots) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ऐसे क्षेत्र’ जो अधिक संकट में हैं, उनमें संसाधनों को उपलब्ध कराने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN) ने जैव-विविधता हॉट-स्पॉट (Hot spots) क्षेत्र के रूप में निर्धारित किया गया है। हॉट-स्पॉट उनकी वनस्पति के आधार पर परिभाषित किये गए हैं।

प्रश्न 4.
मानव जाति के लिए जंतुओं के महत्त्व का वर्णन संक्षेप में करें।
उत्तर:
जैव-विविधता ने मानव संस्कृति के विकास में बहुत योगदान दिया है और इसी प्रकार, मानव समुदायों ने भी आनुवंशिक, प्रजातीय व पारिस्थितिक स्तरों पर प्राकृतिक विविधता को बनाए रखने में बड़ा योगदान दिया है। जैव-विविधता के चार प्रमुख योगदान हैं-पारिस्थितिक (Ecological), आर्थिक (Economic), नैतिक (Ethical) और वैज्ञानिक (Scientific)।

प्रश्न 5.
विदेशज प्रजातियों (Exotic species) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वे प्रजातियाँ जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं, लेकिन उस तंत्र में स्थापित की गई हैं, उन्हें ‘विदेशज प्रजातियाँ’ कहा जाता है।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
प्रकृति को बनाए रखने में जैव-विविधता की भूमिका का वर्णन करें
उत्तर:
पारितंत्र में विभिन्न प्रजातियाँ कोई न कोई क्रिया करती हैं। पारितत्र में कोई भी प्रजाति बिना कारण न तो विकसित हो सकती हैं और न ही बनी रह सकती हैं। अर्थात् प्रत्येक जीव अपनी जरूरत पूरा करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है। जीव व प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण कर उसका संग्रहण करती हैं, कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न एवं विघटित करती हैं और पारितंत्र में जल या पोषक तत्त्वों के चक्र को बनाए रखने में सहायक होती हैं। इसके अतिरिक्त प्रजातियाँ वायुमंडलीय गैस को स्थिर करती हैं और जलवायु को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं।

ये पारितंत्री क्रियायें मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। पारितंत्र में जितनी अधिक विविधता होगी प्रजातियों के प्रतिकल स्थितियों में भी रहने की सम्भावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी। प्रजातियों की क्षति से तंत्र के बने रहने की क्षमता भी कम हो जाएगी। अधिक आनुवंशिक विविधता वाली प्रजातियों की तरह अधिक जैव-विविधता वाले पारितंत्रों में पर्यावरण के बदलावों में सहन करने की अधिक सक्षमता होती है। दूसरे शब्दों में जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होंगी, वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थाई होगा।

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प्रश्न 2.
जैव-विविधता के विनाश के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन करें। इसे रोकने के उपाय भी बताएँ।
उत्तर:
पिछले कुछ दशकों से जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग अधिक होने लगा है। इससे संसार के विभिन्न भागों में प्रजातियों तथा उनके आवास स्थानों में तेजी से कमी हुई है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र जो विश्व के क्षेत्र का मात्र एक चौथाई (25%) भाग है, यहाँ संसार का तीन चौथाई (75%) जनसंख्या रहती है। अधिक जनसंख्या की जरूरत को पूरा करने के लिए संसाधनों का अत्यधिक दोहन और वनोन्मूलन अत्यधिक हुआ है। उष्ण कटिबंधीय वर्षा वाले वनों में पृथ्वी की लगभग 50% प्रजातियाँ पाई जाती हैं और प्राकृतिक आवासों का विनाश पूरे जैवमंडल के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ है।

प्राकृतिक आपदाएँ जैसे-भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी उद्गार, दावानल, सूखा आदि पृथ्वी पर पाई जाने वाली प्राणिजात और वनस्पतिजात को हानि पहुँचाते हैं और परिणामस्वरूप संबंधित प्रभावित प्रदेशों की जैव-विविधता में बदलाव आता है। कीटनाशक और अन्य प्रदूषक जैसे-हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon) और विषैली भारी धातु संवेदनशील और कमजोर प्रजातियों को नष्ट कर देते हैं। विदेशज, प्रजातियों के आगमान से भी पारितंत्र को कई बार क्षति पहुँची है। शिकार के कारण भी कुछ प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर आ गई हैं।

विश्व संरक्षण कार्य योजना में जैव-विविधता संरक्षण के निम्न तरीके सुझाए गए हैं –

  • संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रयास करना चाहिए।
  • प्रजातियों को विलुप्ति से बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
  • खाद्यान्नों की किस्में, चारे संबंधी पौधों की किस्में, इमारती पेड़ों, पशुधन, जन्तु व उनकी वन्य प्रजातियों की किस्मों को संरक्षित करनी चाहिए।
  • प्रत्येक देश को वन्य जीवों के आवास को रेखांकित कर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए।
  • प्रजातियों के पलने-बढ़ने तथा विकसित होने के स्थान सुरक्षित व संरक्षित हों।
  • वन्य जीवों व पौधों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के अनुरूप हो।

Bihar Board Class 11 जैव विविधता एवं संरक्षण Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पर्यावरण के प्रदूषण का किन तत्त्वों पर प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
वायु, जल, मृदा।

प्रश्न 2.
इस समय विश्व के कितने प्रतिशत ज्ञात पशु तथा पौधे विलोपन के कागार पर खड़े हैं?
उत्तर:
2% पशु तथा 8% पौधे।

प्रश्न 3.
जल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव का क्या कारण है?
उत्तर:
अम्लीय वर्षा, सिंचाई तथा उर्वरकों का प्रवाह।

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प्रश्न 4.
भारत में धार्मिक अनुष्ठानों में कितने पौधों की प्रजातियाँ प्रयोग की जाती हैं?
उत्तर:
100 (सौ)।

प्रश्न 5.
‘प्रोजेक्ट टाइगर’ कब शुरू किया गया?
उत्तर:
1973 ई. में।

प्रश्न 6.
पृथ्वी शिखर कब और कहाँ हुआ?
उत्तर:
1992 में रीयो डी जेनेरो (ब्राजील) में।

प्रश्न 7.
वाइल्ड लाइफ एक्ट कब बनाया गया?
उत्तर:
सन् 1972 में।

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प्रश्न 8.
जैव विविधता का आधार क्या है?
उत्तर:
अपक्षयण।

प्रश्न 9.
अधिक प्रजातीय विविधता वाले क्षेत्रों को क्या कहते हैं?
उत्तर:
हॉट-स्पॉट (Hot-Spot)।

प्रश्न 10.
प्रजातियों की क्षति का क्या प्रभाव है?
उत्तर:
पारितंत्र की क्षमता का कम होना।

प्रश्न 11.
कृषि जैव विविधता क्या है?
उत्तर:
फसलों की विविधता।

प्रश्न 12.
मानव को भोजन प्रदान करने वाले दो साधन बताएँ।
उत्तर:
पौधे तथा जीव-जंतु।

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प्रश्न 13.
हरित क्रांति में किन तत्त्वों का योगदान है?
उत्तर:
बीजों की नयी किस्में, कीटनाशक दवाइयाँ तथा उर्वरक।

प्रश्न 14.
प्रजातीय विविधता किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी प्रजाति के शारीरिक लक्षणों को।

प्रश्न 15.
कुछ प्रजातियों के सामाप्त होने का क्या कारण है?
उत्तर:
बढ़ती जनसंख्या के लिए संसाधनों की अधिक मांग के कारण।

प्रश्न 16.
प्लीस्टोसिन युग कब था?
उत्तर:
लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व।

प्रश्न 17.
अनाज के भंडार की वृद्धि का क्या कारण है?
उत्तर:
कृषि का यंत्रीकरण।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
प्रजातियों के संरक्षण के दो पहलू बताएँ।
उत्तर:

  1. मानव को पर्यावरण-मैत्री सम्बन्धी पद्धतियों का प्रयोग करना चाहिए।
  2. विकास के लिए सजत् पोषणीय गतिविधियाँ अपनाई जाए।
  3. स्थानीय समुदायों की इसमें भागीदारी हो।

प्रश्न 2.
महाविविधिता केन्द्र से क्या अभिप्राय है? विश्व के महत्त्वपूर्ण महाविविधता केन्द्र बताएँ।
उत्तर:
जिन देशों में उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में अधिक प्रजातीय विविधता पाई जाती हैं, उन्हें महाविविधिता केन्द्र कहते हैं। विश्व में 12 ऐसे देश हैं-मैक्सिको, कोलम्बिया, इक्वेडोर, पेरू, ब्राजील, जायरे, मेडागास्कर, चीन, भारत, मलेशिया, इण्डोनेशिया तथा आस्ट्रेलिया।

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प्रश्न 3.
मानव के लिए पौधे किस प्रकार महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
पौधे मनुष्य को कई प्रकार की फसलें, प्रोटीन देते हैं यह जनसंख्या के पोषण के लिए एक प्राकृतिक साधन हैं।

प्रश्न 4.
जैविक विविधता का संरक्षण क्या है?
उत्तर:
जैविक विविधता का संरक्षण एक ऐसी योजना है जिसका लक्ष्य विकास की निरंतरता को बनाये रखना है। विभिन्न प्रजातियों को कायम रखने के लिए, विकसित करने तथा उनके जीवन कोष को बनाये रखना जो भविष्य में लाभदायक हो।

प्रश्न 5.
जैव विविधता का इतिहास बताएं। किस कटिबंध में जैव विविधता अधिक है?
उत्तर:
आज जो जैव विविधता हम देखते हैं, वह 25 से 35 अरब वर्षों के विकास का परिणाम है। मानव जीवन के प्रारम्भ होने से पहले, पृथ्वी पर जैव विविधता किसी भी अन्य काल से अधिक थी। मानव के आने से जैव विविधता में तेजी से कमी आने लगी, क्योंकि किसी एक या अन्य प्रजाति की आवश्यकता से अधिक उपभोग होने के कारण, वह लुप्त होने लगी।

अनुमान के अनुसार, संसार में कुल प्रजातियों की संख्या 20 लाख से 10 करोड़ तक, लेकिन एक करोड़ ही इसका सही अनुमान है। नयी प्रजातियों की खोज लगातार जारी है और उनमें से अधिकांश का वर्गीकरण भी नहीं हुआ है। (एक अनुमान के अनुसार दक्षिण अमेरिका की ताजे पानी की लगभग 40 प्रतिशत मछलियों का वर्गीकरण नहीं हुआ।) उष्ण कटिबंधीय वनों में जैव-विविधता की अधिकता है।

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प्रश्न 6.
स्पष्ट कीजिए किस प्रकार अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता हेतु उत्तरदायी है?
उत्तर:
पृथ्वी पर जैव विविधता मुख्यतः वनों पर आधारित होता है और वन अपक्षयी प्रवाह की गहराई पर आधारित है। अपक्षय प्रक्रिया शैलों को तोड़कर आवरण प्रस्तर एवं मृदा निर्माण हेतु मार्ग प्रशस्त करती हैं और अपरदन एवं वृहत संचालन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है जो जैव विविधता हेतु उत्तरदायी होती है।

प्रश्न 7.
परितंत्र में प्रजातियों की भूमिका बताएँ।
उत्तर:

  1. जीव व प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण करती हैं।
  2. ये कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न करती हैं।
  3. ये जल व पोषण चक्र बनाने में सहायक है।
  4. वायुमण्डलीय गैसों को स्थिर करती हैं।

प्रश्न 8.
जैव विविधता के क्या कारण हैं?
उत्तर:
जैव विविधता का आधार अपक्षयण है। सौर ऊर्जा और जल ही अपक्षयण में विविधता और जैव विविधता का मुख्य कारण है । वे क्षेत्र जहाँ ऊर्जा व जल की उपलब्धता अधिक है, वहीं पर जैव विविधता भी व्यापक स्तर पर है।

प्रश्न 9.
जैव विविधता सतत् विकास का तंत्र है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
जैव विविधता सजीव सम्पदा है। यह विकास के लाखों वर्षों के ऐतिहासिक घटनाओं का परिणाम है। प्रजातियों के दृष्टिकोण से और अकेले जीवधारी के दृष्टिकोण से जैव-विविधता सतत् विकास का तंत्र है। पृथ्वी पर किसी प्रजाति की औसत आयु 10 से 40 लाख वर्ष होने का अनुमान है। ऐसा भी माना जाता है कि लगभग 99 प्रतिशत प्रजातियाँ जो कभी पृथ्वी पर रहती थीं, आज लुप्त हो चुकी हैं। पृथ्वी पर जैव विविधत एक जैसी नहीं है। जैव-विविधता उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में अधिक होती है। जैस-जैसे हम ध्रुवीय प्रदेशों की तरफ बढ़ते हैं, प्रजातियों की विविधता तो कम होती जाती है, लेकिन जीवधारियों की संख्या अधिक होती जाती है।

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प्रश्न 10.
पौधों और जीवों को संरक्षण के आधार पर विभिन्न प्रजातियों में बांटें।
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण संरक्षण को अन्तर्राष्ट्रीय संस्था (IUCN) ने संकटापन्न पौधों व जीवों की प्रजाजियों को उनके संरक्षण के उद्देश्य से तीन वर्गों में विभाजित किया है

1. संकटापन्न प्रजातियाँ (Endangered species) – इसमें वे सभी प्रजातियाँ सम्मिलित हैं, जिनके लुप्त हो जाने का खतरा है। अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN) विश्व की सभी संकटापन्न प्रजातियों के बारे में (Redlist) रेड लिस्ट के नाम से सूचना प्रकाशित करता है।

2. कमजोर प्रजातियाँ (Vulnerable species) – इसमें वे प्रजातियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें यदि संरक्षित नहीं किया गया या उनके विलुप्त होने में सहयोगी कारक यदि जारी रहे तो निकट भविष्य में उनके विलुप्त होने का खतरा है। इनकी संख्या अत्यधिक कम होने के कारण, इनका जीवित रहना सुनिश्चित नहीं है।

3. दुर्लभ प्रजातियाँ (Rare species) – संसार में इन प्रजातियों की संख्या बहुत कम है। ये प्रजातियाँ कुछ ही स्थानों पर सीमित हैं या बड़े क्षेत्र में बिखरी हुई हैं।

प्रश्न 11.
जैव विविधता की हानि के चार कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. प्राकृतिक आपदाएँ
  2. कीटनाशक
  3. विदेशज प्रजातियाँ
  4. अवैध शिकार

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
जैव विविधता के विनाश के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन करो। इसे रोकने के उपाय भी बताएँ।
उत्तर:
जैव विविधता की हानि (Loss of bodiversity) – पिछले कुछ दशकों से, जनसंख्या वृद्धि के कारण, प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग अधिक होने लगा है। इससे संसार के विभिन्न भागों में प्रजातियों तथा उनके आवास स्थानों में तेजी से कमी हुई है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र, जो विश्व के कुछ क्षेत्र का मात्र एक चौथाई भाग है, यहाँ संसार की तीन चौथाई जनसंख्या रहती है। अधिक जनसंख्या की जरूरत को पूरा करने के लिए संसाधनों का अत्यधिक दोहन और वनोन्मूलन अत्यधिक हुआ है। उष्णकटिबंधीय वर्षा वाले वनों में पृथ्वी की लगभग 50 प्रतिशत प्रजातियाँ पाई जाती हैं और प्राकृतिक आवासों का विनाश पूरे जैवमण्डल के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ है।

1. प्राकृतिक आपदाएँ – प्रकृतिक आपदाएँ जैसे भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी, उदार, दावानल, सूखा आदि पृथ्वी पर पाई जाने वाली प्राणिजात और वनस्पतिजात को क्षति पहुँचाते हैं और परिणामसवरूप सम्बन्धित प्रभावित प्रदेशों की जैव विविधता में बदलाव आता है।

2. कीटनाशक – कीटनाशक और अन्य, जैसे-हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon) और विषैली भारी धातु (Toxic heavy metals) संवेदनशील और कमजोर प्रजातियों को नष्ट कर देते हैं।

3. विदेशज प्रजातियाँ – वे प्रजातियाँ, जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं, लेकिन उस तंत्र में स्थापित की गई हैं, उन्हें ‘विदेशज प्रजातियाँ’ (Exotic species) कहा जाता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब विदेशज प्रजातियों के आगमन से पारितंत्र में प्राकृतिक या मूल जैव समुदाय को व्यापक नुकसान हुआ है।

4. अवैध शिकार – पिछले कुछ दशकों के दौरान, कुछ जन्तुओं जैसे-बाघ, चीता, हाथी, गैंडा, मगरपच्छ, मिंक और पक्षियों का, उनके सींग, सैंड व खालों के लिए निर्दयतापूर्वक अवैध शिकार किया जा रहा है। इसके फलस्वरूप कुछ प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर आ गई हैं।

जैव-विविधता का संरक्षण (Conservation of bodiverisity) – मानव के अस्तित्व के लिए जैव-विविधता अति आवश्यक है। जीवन का हर रूप एक-दूसरे पर इतना निर्भर है कि किसी एक प्रजाति पर संकट आने से दूसरों में असन्तुलन की स्थिति पैदा हो जाती है। यदि पौधों और प्राणियों की प्रजातियाँ संकटापन्न होती हैं, तो इससे पर्यावरण में गिरावट उत्पन्न होती है, और अन्ततोगत्वा मनुष्य का अपना अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है।

आज यह अति अनिवार्य है कि मानव को पर्यावरण-मैत्री सम्बन्धी पद्धतियों के प्रति जागरूक किया जाए और विकास की ऐसी व्यावहारिक गतिविधियाँ अपनाई जाएँ, जो स्थायी (Sustaniable) हों। इस तथ्य के प्रति भी जागरूकता बढ़ रही है कि संरक्षण तभी संभव और दीर्घकालिक होगा, जब स्थानीय समुदायों व प्रत्येक व्यक्ति की इसमें भागीदारी होगी।

इसके लिए स्थानीय स्तर पर संस्थागत संरचनाओं का विकास आवश्यक है। केवल प्रजातियों का संरक्षण और आवास स्थान की सुरक्षा ही अहम समस्या नहीं है, बल्कि संरक्षण की प्रक्रिया को जारी रखना भी उतना ही जरूरी है। सन् 1992 में ब्राजील के रियो-डी-जेनेरो (Rio-de-Janeiro) में हुए जैव विविधता के सम्मेलन (Earth summit) में लिए गए संकल्पों का भारत अन्य 155 देशों सहित हस्ताक्षरी है। विश्व संरक्षण कार्य योजना में जैव-विविधता संरक्षण के निम्न तरीके सुझाए गए हैं –

  • संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रयास करना चाहिए।
  • प्रजातियों को विलुप्ति से बचाने के लिए उचित योजनाएँ प्रबंधन अपेक्षित हैं।
  • खाद्यान्नों की किस्में, चारे सम्बन्धी पौधों की किस्में, इमारती पेड़, पशुधन, जन्तु व उनकी वन्य प्रजातियों की किस्मों को संरक्षित करना चाहिए।
  • प्रत्येक देश को वन्य जीवों के आवास को रेखांकित कर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए।
  • प्रजातियों के पलने-बढ़ने तथा विकसित होने के स्थान सुरक्षित व संरक्षित हों।
  • वन्य जीवों व पौधों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के अनुरूप हो।

भारत सरकार ने प्राकृतिक सीमाओं के भीतर विभिन्न प्रकार की प्रजातियों को बचाने, संरक्षित करने और विस्तार करने के लिए, वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 (Wild life protection act, 1972), पास किया है, जिसके अन्तर्गत राष्ट्रीय पार्क (National parks), अभ्यारण्य (Sancuaries) स्थापित किये गए तथा जैव संरक्षित क्षेत्र (Biosphere reserves) घोषित किये गए। वे देश, जो उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में स्थित है, उनमें संसार की सर्वाधिक प्रजातीय विविधता पाई जाती है। उन्हें ‘महा विविधता केन्द्र’ (Mega diversity centers) कहा जाता है। इन देशों की संख्या 12 है और उनके नाम हैं : मैक्सिको, कोलम्बिया, इक्वेडोर, पेरू, ब्राजील, जायरे, मेडागास्कर, चीन, भारत, मलेशिया, इण्डोनेशिया और आस्ट्रेलिया।

इन देशों में समृद्ध महा-विविधता के केन्द्र स्थित हैं। ऐसे क्षेत्र, जो अधिक संकट में हैं, उनमें संसाधनों को उपलब्ध कराने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN) ने जैव विविधता हॉट-स्पॉट (Hotspots) क्षेत्र के रूप में निर्धारित किया है। हॉट-स्पॉट उनकी वनस्पति के आधार पर परिभाषित किये गए हैं। पादप महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये ही किसी पारितंत्र की प्राथमिक उत्पादकता को निर्धारित करते हैं। यह भी देखा गया है कि ज्यादातर हॉट-स्पॉट रहने वाले भोजन, जलाने के लिए लकड़ी, कृषि भूमि और इमारती लकड़ी आदि के लिए वहाँ पाई जाने वाली प्रजाति समृद्ध पारितंत्रों पर ही निर्भर है।

उदाहरण के लिए मेडागास्कर में, जहाँ 85 प्रतिशत पौधे व प्राणी संसार में अन्यत्र कहीं भी नहीं पाए जाते वहाँ के रहने वाले संसार के सर्वाधिक गरीबों में से एक है और वे जीवित खेती के लिए. जंगलों को काटकर और (Slash and burn) पायी गयी कृषि भूमि पर निर्भर हैं। अन्य हॉट-स्पॉट, जो समृद्ध देशों में पाए जाते हैं, वहाँ कुछ अन्य प्रकार की समस्याएँ हैं। हवाई द्वीप जहाँ विशेष प्रकार की पादप व जन्तु प्रजातियाँ मिलती हैं, वह विदेशज प्रजातियों के आगमन और भूमि विकास के कारण असुरक्षित हैं।

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प्रश्न 2.
जैव विविधता का विभिन्न स्तरों पर वर्णन करें।
उत्तर:
जैव-विविधता को तीन स्तरों पर समझा जा सकता है –

  • आनुवांशिक विविधता (Genetic diversity)
  • प्रजातीय विविधता (Species diversity) तथा
  • पारितंत्रीय fafquc (Ecosystem diversity)

1. आनुवांशिक जैव विविधता (Genetic biodiversity) – जीवन निर्माण के लिए जीन (Gene) एक मूलभूत इकाई है। किसी प्रजाति में जीन की विविधता ही आनुवांशिक जैव-विविधता है। समान भौतिक लक्षणों वाले जीवों के समूह को प्रजाति कहते हैं। मानव आनुवांशिक रूप से “हेमोसेपियन’ (Homosapiens) प्रजाति से सम्बन्धित है जिससे कद, रंग और अलग दिखावट जैसे शारीरिक लक्षणों में काफी भिन्नता है। इसका कारण आनुवांशिक विविधता है। विभिन्न प्रजातियों के विकास के फलने-फूलने के लिए आनुवंशिक विविधता अत्यधिक अनिवार्य है।

2. प्रजातीय विविधता (Species diversity) – यह प्रजातीयों की अनेकरूपता को बताती है। यह किसी निर्धारित क्षेत्र में प्रजातियों की संख्या से सम्बन्धित है। प्रजातियों की विविधता, उनकी समृद्धि, प्रकार तथा बहुलता से आँकी जा सकती है। कुछ क्षेत्रों में प्रजातियों की संख्या अधिक होती है और कुछ में कम । जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है, उन्हें विविधता के हॉट-स्पॉट (Hot spots) कहते हैं।

3. पारितंत्रीय विविधता (Ecosystem diversity) – आपने पिछले अध्याय में पारितंत्रों के प्रकारों में व्यापक भिन्नता और प्रत्येक प्रकार के पारितंत्रों में होने वाली पारितंत्रीय प्रक्रियाएँ तथा आवास स्थानों की भिन्नता ही पारितंत्रीय विविधता बनाते हैं। पारितंत्रीय विविधता का परिसीमन करना मुश्किल और जटिल है, क्योंकि समुदायों (प्रजातियों का समूह) और पारितंत्र की सीमाएँ निश्चित नहीं हैं।

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प्रश्न 3.
प्रकृति को बनाए रखने में जैव विविधता की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
1. जैव विविधता का महत्व (Importance of biodiversity) – जैव विविधता ने मानव संस्कृति के विकास में बहुत योगदान दिया है और इसी प्रकार मानव समुदायों ने भी आनुवांशिक, प्रजातीय व पारिस्थितिक स्तरों पर प्राकृतिक विविधता को बनाए रखने में बड़ा योगदान दिया है। जैव विविधता के चार प्रमुख योगदान हैं –

  • पारिस्थितिक (Ecological)
  • आर्थिक (Economic)
  • नैतिक (Ethical)
  • वैज्ञानिक (Scientific)

2. जैव विविधता की पारिस्थितिकीय भूमिका (Ecologicalrole of biodiversity) – पारितंत्र में विभिन्न प्रजातियाँ कोई न कोई क्रिया करती हैं। पारितंत्र में कोई भी प्रजाति बिना कारणन तो विकसित हो सकती हैं और न ही बनी रह सकती हैं। अर्थात्, प्रत्येक जीव अपनी जरूरत पूरा करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है।

  • जीव व प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण कर उसका संग्रहण करती हैं।
  • कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न एवं विघटित करती हैं।
  • पारितंत्र में जल व पोषक तत्वों के चक्र को बनाए रखने में सहायक होती हैं।
  • इसके अतिरिक्त प्रजातियाँ वायुमण्डलीय गैस को स्थिर करती हैं।
  • जलवायु को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं।

ये पारितंत्रीय क्रियाएँ मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण क्रियाएँ हैं। पारितंत्र में जितनी अधिक विविधता होगी प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की सम्भावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी । प्रजातियों की क्षति से तंत्र के बने रहने की क्षमता भी कम हो जाएगी। अधिक आनुवांशिक विविधता वाली प्रजातियों की तरह अधिक जैव-विविधता वाले पारितंत्र में पर्यावरण के बदलावों को सहन करने की अधिक सक्षमता होती है। दूसरे शब्दों में, जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होंगी, वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थायी होगा। .

3. जैव-विविधता की आर्थिक भूमिका (Ecological role of biodiversity) – सभी मनुष्यों के लिए दैनिक जीवन में विविधता एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। जैव विविधता का एक महत्त्वपूर्ण भाग ‘फसलों की विविधता’ (Crop diversity) है, जिसे कृषि जैव विविधता भी कहा जाता है। जैव विविधता को संसाधनों के उन भण्डारों के रूप में भी समझा जा सकता है, जिनकी उपयोगिता भोज्य पदार्थ, औषधियाँ और सौन्दर्य प्रसाधन आदि बनाने में है।

जैव संसाधनों की ये परिकल्पना जैव विविधता के विनाश के लिए उत्तरदायी हैं। साथ ही यह संसाधनों के विभाजन और बँटवारे को लेकर उत्पन्न नये मत्स्य और दवा संसाधन आदि हैं। कुछ ऐसे प्रमुख आर्थिक महत्त्व के उत्पाद हैं, जो मानव को जैव विविधता के फलस्वरूप उपलब्ध होते हैं।

4. जैव-विविधता की वैज्ञानिक भूमिका (Scientific role of biodiversity) – जैव विविधता इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रत्येक प्रजाति हमें यह संकेत दे सकती है कि जीवन का आरम्भ कैसे हुआ और यह भविष्य में कैसे विकसित होगा। जीवन कैसे चलता है और पारितंत्र, जिसमें हम भी एक प्रजाति हैं, उसे बनायें रखने में प्रत्येक प्रजाति की क्या भूमिका है, इन्हें हम जैव विविधता से समझ सकते हैं। हम सभी को यह तथ्य समझना चाहिए कि हम स्वयं जियें और दूसरी प्रजातियों को भी जीने दें।

5. जैव विविधता की नैतिक भूमिका (Ethical role of biodiversity) – यह समझना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हमारे साथ सभी प्रजातियों को जीवित रहने का अधिकार है। अत: कई प्रजातियों को स्वेच्छा से विलुप्त करना नैतिक रूप से गलत है। जैव विविधता का स्तर अन्य जीवित प्रजातियों के साथ हमारे सम्बन्ध का एक अच्छा पैमाना है। वास्तव में, जैव विविधता की अवधारणा कई मानव संस्कृतियों का अभिन्न अंग है।

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