Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 11 भोजन के कार्य Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 11 भोजन के कार्य
Bihar Board Class 11 Home Science भोजन के कार्य Text Book Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
एक ग्राम प्रोटीन शरीर में रासायनिक रूप से जलने पर लगभग कैलोरी उत्पन्न करता है –
(क) 4 कैलोरी
(ख) 2 कैलोरी
(ग) 6 कैलोरी।
(घ) 8 कैलोरी
उत्तर:
(क) 4 कैलोरी
प्रश्न 2.
विटामिन ‘C’ का सबसे बढ़िया स्रोत है –
(क) आँवला
(ख) संतरा
(ग) नींबू
(घ) दूध
उत्तर:
(क) आँवला
प्रश्न 3.
मानव शरीर में अमीनो अम्ल होते हैं –
(क) 22
(ख) 23
(ग) 25
(घ) 26
उत्तर:
(क) 22
प्रश्न 4.
अंडे की सफेदी में मिलता है –
(क) अल्बुमिन
(ख) ग्लोबिन
(ग) फाइबरिन
(घ) जेलिटिन
उत्तर:
(क) अल्बुमिन
प्रश्न 5.
चांवल में उपस्थित प्रोटीन –
(क) ओराजेनिन है
(ख) होरडेनिन है
(ग) ग्लूटेनिन
(घ) ग्लायडिन
उत्तर:
(क) ओराजेनिन है
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
शरीर वर्धक तत्त्व कौन-से हैं ?
उत्तर:
प्रोटीन, खनिज लवण व जल शरीर की वृद्धि एवं मरम्मत हेतु आवश्यक हैं इसलिए इन्हें शरीरवर्धक तत्त्व भी कहा जाता है।
प्रश्न 2.
हमारे शरीर को ऊर्जा की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर:
बाहरी व आन्तरिक क्रियाओं को सम्पादित करने हेतु शरीर को ऊर्जा चाहिए।
प्रश्न 3.
1 ग्राम कार्बोज, वसा व प्रोटीन हमारे शरीर में कितनी ऊर्जा देती हैं ?
उत्तर:
1 ग्राम कार्बोज, वसा व प्रोटीन हमारे शरीर में क्रमशः 4 कैलोरी, 9 कैलोरी व 4 . कैलोरी ऊर्जा देते हैं।
प्रश्न 4.
भोजन के स्वरूप का वर्गीकरण करें।
उत्तर:
1. शारीरिक कार्य।
2. मनोवैज्ञानिक कार्य।
3. सामाजिक व सांस्कृतिक कार्य।
प्रश्न 5.
शरीर में ऊर्जा की आवश्यकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यक्ति की जीवन क्रियाएँ, जैसे सांस लेना, परिसंचरण, पाचन और चूसना, सोखना के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 6.
शारीरिक कार्यों के आधार पर चार विभिन्न तरह के भोजन कौन-से हैं ?
उत्तर:
- ऊर्जा प्रदान करने के लिए भोजन
- शरीर के निर्माण के लिए भोजन
- संरक्षात्मक भोजन
- नियंत्रित भोजन।
प्रश्न 7.
मनोवैज्ञानिक कार्य का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
भोजन व्यक्ति की भावात्मक आवश्यकता को पूरा करता है। जब कोई प्रसन्न होता है या मित्रों की संगति में होता है तो वह अधिक खाना खाता है।
प्रश्न 8.
शरीर की सुरक्षा तथा नियंत्रण में किन तत्त्वों का विशेष महत्त्व है ?
उत्तर:
शरीर की सुरक्षा तथा नियंत्रण हेतु विटामिन, खनिज लवण, जल और प्रोटीन का विशेष महत्त्व है। इसके अतिरिक्त शरीर के नियंत्रण हेतु फोक का अपना विशेष स्थान है।
प्रश्न 9.
हमें अपने आहार में अधिकांश वसायुक्त पदार्थों को क्यों नहीं सम्मिलित करना चाहिए?
उत्तर:
वसायुक्त पदार्थ सबसे अधिक ऊर्जा देते हैं। 1 ग्राम वसा 9 कैलोरी यानि कार्बोज से सवा दो गुणा अधिक कैलोरी देता है। यदि हम कैलोरी प्राप्ति हेतु शरीर की आवश्यकता वसा द्वारा पूरी कर लें तो अन्य तत्त्वों का अभाव रह जाएगा और हम रोगग्रस्त हो जाएंगे।
प्रश्न 10.
भोजन में दीर्घजीवी और नैतिकता का परस्पर संबंध लिखें।
उत्तर:
अच्छा भोजन ज्यादा जीवन जीने के अवसर बढ़ा देता है। गन्दा भोजन बीमारियाँ फैलाता है। अस्वस्थ जीवन मृत्यु का कारण बन सकता है।
प्रश्न 11.
भोजन को पौष्टिक तत्त्वों के कार्यों के आधार पर किस प्रकार विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर:
पौष्टिक तत्त्व – कार्य
1. प्रोटीन – शारीरिक वृद्धि
2. कार्बोज, वसा – ऊर्जा देना
3. विटामिन – रोगों से बचाव
4. खनिज लवण – शारीरिक कार्यों पर नियंत्रण
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भोजन व हमारी भावनाओं (Food & Emotions) में आपसी क्या सम्बन्ध है ?
अथवा
भोजन हमें मानसिक संतोष (Mental Satisfaction) कैसे प्रदान करता है ?
उत्तर:
भोजन न केवल शारीरिक व सामाजिक कार्य ही अदा करता है परन्तु यह मनोवैज्ञानिक कार्य करने में भी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि हमारे लिए कोई भी व्यक्ति मनपसन्द वस्तु बना कर परोसता है तो हमें प्रसन्नता होती है। भोजन के माध्यम से वह अपने प्रेमभाव और मैत्री को व्यक्त करता है। अतः भोजन हमें मानसिक संतोष भी प्रदान करता है। जैसे एक बच्चा माँ की गोद में दूध पीकर सुरक्षित महसूस करता है।
प्रश्न 2.
भोजन व त्यौहार (Food & festivals) का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
प्रत्येक त्यौहार में भोजन का अपना विशिष्ट महत्त्व है क्योंकि भोजन उत्सवों और त्यौहारों का अभिन्न अंग है। प्रत्येक त्यौहार में विशेष पकवान बना कर ही त्यौहार मनाने की प्रथा है। इन पकवानों का आदान-प्रदान कर सभी परिवार अपनी मैत्री की भावनाएँ व्यक्त करते हैं। रीति-रिवाजों को इतना नहीं याद करते जितना उन त्यौहारों पर बने पकवानों को। होली के त्यौहार पर गुझिया, संक्रान्ति व लोहड़ी पर तिल व गुड़ के व्यञ्जन, बैसाखी पर पीले केसरिया चावल, ईद पर सेवइयों की खीर आदि बनाने का प्रचलन है।
प्रश्न 3.
भोजन व कोशिकाओं का पुनर्निर्माण (Food and cell formation) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
शरीर की वृद्धि व टूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत हेतु भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन में उपस्थित प्रोटीन, खनिज लवण व जल यही कार्य करते हैं। व्यक्ति शैशवकाल से प्रौढ़ावस्था तक वृद्धि और विकास की दिशा में अग्रसर होता है। शरीर का भार व ऊँचाई में वृद्धि इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं।
प्रश्न 4.
भोजन व कार्यक्षमता (Food & work efficiency) का परस्पर क्या . सम्बन्ध है ?
उत्तर:
भोजन व कार्यक्षमता-अच्छा भोजन अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है और अच्छे स्वास्थ्य का एक प्रमुख लक्षण है, शरीर की उत्तम क्रियाशीलता या शरीर की कार्यक्षमता। अत: भोजन पर शरीर की कार्यक्षमता निर्भर करती है। सुपोषित व्यक्ति की कार्यक्षमता कुपोषित व्यक्ति की कार्यक्षमता से निश्चित ही अधिक होती है। अमेरिका में एक अध्ययन में यह देखा गया कि कारखाने के कर्मचारी जो उत्तम नाश्ता करके आते थे, अधिक काम कर पाते थे। उन्हें थकावट भी कम और देर से होती थी।
प्रश्न 5.
कार्यों के आधार पर भोजन का वर्गीकरण करें।
उत्तर:
कार्यों के आधार पर भोजन का वर्गीकरण –
प्रश्न 6.
पोषण और मृत्यु-दर से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर:
पोषण और मृत्यु दर (Nutrition and mortality): कुपोषण के कारण आवश्यक पोषक तत्त्व आवश्यक मात्रा व अनुपात में प्राप्त नहीं होता है। शरीर क्षीण पड़ जाता है और अंततः मृत्यु हो जाती है। दिशाभारती 2 नवम्बर, 1975 के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लगभग दस लाख बच्चों की पोषक आहार के अभाव में मृत्यु हो जाती है।
पौष्टिक आहार संबंधी हैदराबाद के राष्ट्रीय संस्थान द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार निम्न आय वर्ग वाले भारतीयों के 65 प्रतिशत बच्चे साधारणतः और 18 प्रतिशत बच्चे गम्भीर रूप से पौष्टिक आहार के अभाव में पीड़ित रहते हैं और कालान्तर में सूख-सूख कर मर जाते हैं। हरियाणा जैसे खुशहाल प्रदेश में भारतीय चिकित्सा शोध परिषद और राज्य सरकार द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार 50 प्रतिशत बच्चों को प्रोटीन और पर्याप्त पौष्टिक आहार उपलब्ध नहीं होते।
डॉक्टर हिंगोरानी के अनुसार, कुपोषित शरीर रोगाणुओं से जूझने के लिए निर्बल प्रतिपिण्ड बनाता है जिसके कारण शरीर रोगी हो जाता है तथा अंततः मृत्यु हो जाती है । मृत्यु दर विकसित देशों में कम होने का प्रमुख कारण उनका उच्च पोषक स्तर है। भारत जैसे विकासशील देश में भी अब कुपोषण के कारण होने वाली मृत्यु-दर में भारी कमी हुई है।
प्रश्न 7.
पोषण और मानसिक स्तर से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पोषण और मानसिक स्तर (Nutrition and Psychological status)
मानसिक स्थिरचित्तता (Static Mental Tension)-उन सैनिकों में जिनको प्रयोग के लिए 6 माह तक कम खाना दिया गया था, मानसिक दृष्टि से भी बहुत परिवर्तन पाया गया। वे अधीर, चिड़चिड़े, उदास व हठी थे तथा संकल्प-शक्ति को खो बैठते थे। जब प्रतिबंध हटा तो उनका व्यवहार सामान्य हो गया।
मानसिक संलग्नता (Mental Imbalance): कुपोषण के कारण पाया गया कि बालक अपनी पढ़ाई में पूर्णरूपेण ध्यान नहीं दे रहे थे। मानसिक संलग्नता की कमी के कारण वे पाठ की गहराई तक पहुँचकर उसके गूढ अर्थ को नहीं समझ पा रहे थे। अधिक समय तक एकाग्रचित्तता भी उनके लिए संभव नहीं थी क्योंकि वे मानसिक दृष्टि से शीघ्र ही थक जाते थे। अतः संक्षेप में संतुलित भोजन के अभाव में मानसिक स्तर पर असाधारण प्रभाव पाया गया जिससे कि कार्यक्षमता और कुशलता पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
प्रश्न 8.
पोषण और शारीरिक स्तर का क्या संबंध है?
उत्तर:
पोषण और शारीरिक स्तर (Nutrition and Physical Status): डील-डौल-जापानी प्रायः छोटे कद के होते हैं। यह निश्चित रूप से जानने के लिए कि क्या उनका छोटा डील-डौल उनके भोजन का प्रभाव है, कैलिफोर्निया शहर में 6 से 9 वर्ष के उन जापानी बालकों का जो अमेरीका में जन्मे और वहीं पले, अध्ययन किया गया और परिणामों की तुलना उसी आयु के जापान में जन्मे तथा वहीं रहने वाले बालकों से की गयी तो कैलीफोर्निया के बालकों का कद और शारीरिक भार अपेक्षाकृत अधिक पाया गया। यह अंतर दोनों वर्गों के भोजन की पौष्टिकता में अन्तर के कारण सिद्ध हुआ।
हड्डियाँ (Bones): जर्मन के एक स्कूल में विशेष आहार दिया गया। अतः आहार को विटामिन डी युक्त बनाया गया जिससे इन बालकों का विकास तीव्र हुआ ।
त्वचा (Skin): चर्बी की तह जो बाह्य त्वचा के नीचे होती है, उसकी मोटाई से शारीरिक स्तर का ज्ञान भली-भाँति हो सकता है।
माँसपेशियाँ (Muscles): मांसपेशियों का विकास एवं उनके ठोसपन की स्थिति से भी यह पता लगता है कि पोषण स्तर कैसा है।
प्रश्न 9.
शरीर निर्माण के मुख्य खाद्य पदार्थ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
शरीर निर्माण के मुख्य खाद्य पदार्थ निम्नलिखित हैं :
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भोजन के कार्य विस्तारपूर्वक समझाइए।
भोजन के कार्य (Functions of Food): शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कार्यों को सम्पन्न करने हेतु भोजन हमारे दैनिक जीवन का अनिवार्य अंग है।
I. शारीरिक कार्य (Physical functions): भोजन के शारीरिक कार्यों को मुख्य चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है –
(क) ऊर्जा प्रदान करना
(ख) तन्तुओं का निर्माण करना
(ग) रोगों से बचाना
(घ) शारीरिक कार्यों का सुसंचालन करना।
भोजन में उपस्थित छः पोषक तत्त्व कार्बोज, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज लवण तथा जल इन कार्यों को सम्पन्न करते हैं। उत्तम शारीरिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए मनुष्य के आहार में इन पोषक तत्त्वों का उचित मात्रा में होना बहुत आवश्यक है।
(क) ऊर्जा प्रदान करना (Providing energy): जीवित प्राणियों के आन्तरिक व बाह्य शारीरिक कार्यों के संचालन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो उन्हें भोजन द्वारा प्राप्त होती है। अतः भोजन का एक मुख्य कार्य शरीर को ऊर्जा देना है। विभिन्न बाह्य कार्यों जैसे खाना पकाने, खेलने, पढ़ने तथा अन्य दैनिक कार्यों के लिए आवश्यक ऊर्जा भोजन से ही प्राप्त होती है।
विभिन्न आन्तरिक कार्यों, जैसे-श्वसन, भोजन का पाचन, रक्त का परिसंचरण आदि के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। शरीर के ये आन्तरिक कार्य निरन्तर चलते रहते हैं तथा हमारी इच्छा व अनिच्छा का इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः जब हम सो रहे होते हैं या आराम कर रहे होते हैं तब भी हमें इन अनैच्छिक रूप से कार्यरत अंगों, जैसे हृदय, फेफड़े आंत, गुर्दे आदि के आंतरिक कार्यों के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
1. कार्बोज (Carbohydrates): जैसे अनाज (गेहूँ, चावल, बाजरा, आदि), शक्कर, ग्लूकोज, शहद, गुड़, आलू आदि। एक ग्राम कार्बोज शरीर में रासायनिक रूप से जलने पर लगभग 4 कैलोरी उत्पन्न करता है।
2. प्रोटीन (Proteins): जैसे दालें, दूध और दूध से बने पदार्थ, मांस, मछली आदि। प्रोटीन निम्न स्थितियों में शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है
- जब आहार में कार्बोज की कमी हो।
- जब आहार में प्रोटीन शारीरिक आवश्यकताओं से अधिक हो।।
- जब भोजन की प्रोटीन घटिया किस्म की हो और शारीरिक प्रोटीन बनाने में असमर्थ हो। एक ग्राम प्रोटीन शरीर में रासायनिक रूप से जलने पर लगभग 4 कैलोरी उत्पन्न करता है।
3. वसा (Fats): जैसे घी, तेल, मक्खन, क्रीम आदि। यह कार्बोज से सवा दो (214) गुना अधिक ऊर्जा देता है तथा एक ग्राम वसा शरीर में रासायनिक रूप से जलने पर लगभग 9 कैलोरी उत्पन्न करता है।
(ख) तन्तुओं का निर्माण करना (Building tissues): मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन काल अर्थात् जन्म से लेकर मृत्यु तक तन्तुओं का निर्माण होता रहता है। इन नए तन्तुओं का निर्माण निम्नलिखित कार्यों के लिए होता है –
- शारीरिक वृद्धि।
- टूटे-फूटे तन्तुओं के पुनः निर्माण अथवा मरम्मत।
एक छोटा-सा शिशु आयु बढ़ने पर पूर्ण प्रौढ़ बन जाता है तथा उसके शारीरिक नाप व भार में परिवर्तन नए तन्तुओं के निर्माण के कारण होता है। मनुष्य के शारीरिक अंग हर समय कार्य करते रहते हैं जिसके कारण शरीर के तन्तु टूटते-फूटते रहते हैं। इन पुराने टूटे-फूटे तन्तुओं के पुनः निर्माण अथवा मरम्मत का कार्य भी भोजन करता है।
हमारे शरीर में तन्तुओं के निर्माण का कार्य भोजन में उपस्थित निम्न पोषक तत्त्व करते हैं:
1. प्रोटीन (Proteins): जैसे दूध, दूध से बने पदार्थ, अण्डा, मांस, मछली, दालें, सोयाबीन आदि का प्रोटीन शरीर के निर्माण में सर्वोच्च स्थान पर आता है।
2. खनिज लवण (Minerals): नए तन्तुओं के निर्माण कार्य में कुछ खनिज लवणों का विशेष स्थान है। यह प्रमुख खनिज लवण हैं कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा आदि, जो दांतों, अस्थियों तथा रक्त के निर्माण के लिए आवश्यक हैं। ये खनिज लवण हमें दूध से बने पदार्थ मांस, मछली, कलेजी, अण्डा, दालें, अनाज आदि से प्राप्त होते हैं।
(ग) रोगों से बचाव (Protection against diseases): भोजन के विभिन्न कार्यों में एक कार्य शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करना है। हम जानते हैं कि एक कमजोर व्यक्ति को एक स्वस्थ व्यक्ति की अपेक्षा बीमारियाँ जल्दी घेरती हैं। हमारे शरीर को रोगों से बचाव क्षमता निम्न पोषक तत्त्वों द्वारा प्राप्त होती है।
1. विटामिन (Vitamins): इनकी आवश्यकता हमें बहुत ही न्यून मात्राओं में होती है। यह कई प्रकार के होते हैं तथा प्रायः सभी भोज्य पदार्थों द्वारा प्राप्त होते हैं, परन्तु प्रत्येक भोज्य पदार्थों में कोई एक विटामिन अधिक मात्रा में होता है तो कोई दूसरा विटामिन कम मात्रा में होता है। जैसे विटामिन-ए दूध, दूध से बने पदार्थ, हरी पत्तेदार सब्जियों, गहरी पीली सब्जियों, अण्डा, मांस आदि में अधिक होता है परन्तु दालों में यह कम मात्रा में पाया जाता है। इसी प्रकार विटामिन-सी आंवला, सन्तरा, नींबू आदि में अधिक मात्रा में पाया जाता है और अनाज, दालों, दूध आदि में इसकी मात्रा कम होती है।
2. खनिज लवण (Minerals): विटामिनों की भाँति खनिज लवणों की आवश्यकता भी कम मात्रा में होती है परन्तु रोगों से बचाव क्षमता के लिए यह शरीर हेतु अति आवश्यक हैं। खजिन लवण कई प्रकार के होते हैं तथा यह भी प्रायः सभी भोज्य पदार्थों में पाए जाते हैं। दूध, फल तथा सब्जियों में सभी प्रकार के खनिज लवण अधिक मात्रा में पाये जाते हैं।
विभिन्न अंगों के सुसंचालन के लिए खनिज लवणों तथा विटामिनों की आवश्यकता होती है क्योंकि शरीर की विभिन्न रासायनिक प्रतिक्रियाएँ इनके द्वारा नियन्त्रित होती हैं। इसी कारण इन पोषक तत्त्वों के नियमित प्रयोग से शरीर स्वस्थ बनता है तथा बीमारियों से मुक्त रखता है। यही कारण है कि विटामिन और खनिज लवण संरक्षक पोषक तत्त्वों के नाम से जाने जाते हैं।
(घ) शरीर को सुचारू रूप से चलाना (Monitoring the body): जिस प्रकार शरीर को विभिन्न पोषक तत्त्वों जैसे कार्बोज, प्रोटीन, वसा, विटामिन और खनिज लवणों की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए जल और फोक की भी आवश्यकता होती है। शारीरिक क्रियाओं के नियमन के लिए जल अति आवश्यक है तथा मल निर्माण एवं निष्कासन के लिए आहार में फोक का होना आवश्यक है। फोक हमें हरी पत्तेदारसब्जियों, दालों तथा अनाजों के छिलकों से प्राप्त होता है।
II. मनोवैज्ञानिक कार्य (Psychological functions): शारीरिक कार्यों को पूर्ण करने के साथ-साथ भोजन हमें मानसिक सन्तोष और सुरक्षा भी प्रदान करता है। बच्चा सदैव अपनी मां की गोद में दूध पीकर ही अधिक सुरक्षित और प्रसद अनुभव करता है। बाजार में नाना प्रकार के पकवान खाकर भी मनोवैज्ञानिक सन्तुष्टि प्राप्त नहीं हो पाती जो घर के सात्विक व सादे भोजन के खाने से प्राप्त हो जाती है। भूख की सन्तुष्टि करके भोजन मनुष्य को मानसिक सन्तुष्टि प्रदान करता है जो पौष्टिक तत्त्वों की गोलियां खाने से कदापि प्राप्त नहीं हो सकती । मनुष्य का खान-पान उसकी संस्कृति, रीति-रिवाजों एवं भोजन संबंधी आदतों पर निर्भर करता है।
जो मनुष्य चावल खाना अधिक पसन्द करता है उसे यदि रोटी दी जाए तो उसे मानसिक सन्तुष्टि नहीं मिलती है और वह चावल प्राप्त करने की कोशिश करता है जिसे वह वर्षों से खाता आया है। मनुष्य को वही भोजन अधिक मानसिक सन्तुष्टि प्रदान करता है जो वह प्रतिदिन खाता है और यही कारण है कि मनुष्य किसी भी प्रकार के परिवर्तन या नए भोजन को अपनाने में संकोच महसूस करता है।
III. सामाजिक-सांस्कृतिक कार्य (Socio-cultural functions): भोजन के सामाजिक कार्य का महत्त्व शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कार्यों से किसी भी प्रकार कम नहीं है। भोजन व्यक्तियों में आपसी संबंध बढ़ाकर उनकी मैत्री सुदृढ़ करने में सहायक होता है। प्राचीन युग से ही खाना बांटकर खाना मित्रता का प्रतीक माना गया है जो आज के आधुनिक युग में भी यथावत है।
हम सभी घर पर आए अतिथि का सत्कार भोजन से करते हैं और अतिथि के लिए अच्छे-से-अच्छा भोजन ही परोसा जाता है। बच्चे के जन्म दिन, शादी आदि के उत्सव पर भी भोजन परोसा जाता है जिससे सामाजिक सम्बन्ध बढ़ते हैं। प्रायः किसी नए परिचित व्यक्ति से मैत्री बढ़ाने के लिए उसे घर पर भोजन के लिए ही आमंत्रित किया जाता है।
बड़े-बड़े भोजों पर व्यक्तियों को आमंत्रित करना सामाजिक प्रतिष्ठा का सूचक है। इसके अतिरिक्त अनेक त्यौहारों जैसे दीवाली, होली, रक्षाबन्धन आदि पर मिठाईयों का आदान-प्रदान मैत्री का सूचक माना जाता है। सामाजिक उत्सवों के लिए भी भोजन का आयोजन करना अनिवार्य-सा हो गया है। हमारे देश के भिन्न-भिन्न प्रान्त में भिन्न-भिन्न जातियों के लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के भोजन खाते हैं।
प्रश्न 2.
स्वास्थ्य के प्रकार (Dimensions of Health) कौन-से हैं ?
उत्तर:
आज के युग में पूर्ण स्वस्थता (Complete well being) की स्थिति के लिए आध्यात्मिक पहलू के महत्त्व को भी नकारा नहीं जा सकता।
1. शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health): स्वास्थ्य के शारीरिक पक्ष से हम सब भली-भाँति परिचित हैं। जब हम यह कहते हैं कि वह व्यक्ति स्वस्थ है तो हम साधारणतया स्वास्थ्य के इसी पक्ष की बात करते हैं। कोई भी व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ माना जाता है यदि वह सक्रिय, चुस्त व फुर्तीला है।
वह किसी शारीरिक रोग से ग्रस्त नहीं है तथा उसमें निम्न शारीरिक लक्षण पाए जाते हैं –
- आयु के अनुपात में वजन और लम्बाई।
- मांसपेशियाँ सुदृढ़ और विकसित।
- हड्डियाँ मजबूत और वृद्धि सामान्य।
- त्वचा स्वस्थ, सुन्दर व चिकनी।
- आँखें स्वस्थ और दोषरहित।
- बाल चमकीले और चिकने।
- दाँत साफ, सामान्य एवं दोषरहित।
- चाल-ढाल सीधी तनी हुई, पेट अन्दर।
- गहरी नींद।
- भूख सामान्य।
- रोग निरोधक क्षमता उत्तम ।
- उत्साही, सक्रिय एवं शक्ति से भरपूर ।
2. मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health): कोई भी व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ माना जाता है, यदि उसमें निम्न लक्षण पाए जाते हैं –
- तनाव तथा चिन्ता से. गुक्त।
- मानसिक रूप से सके और क्रियाशील।
- दिमागी रोगों से मुक्त।
- दूसरों के प्रति भातुक।
- आन्तरिक अन्त से मुक्त।
- विभिन्न लोगों और विभिन्न परिस्थितियों के साथ सामंजस्य स्थापित करने में सक्षम।
- अच्छी मानसिक योग्यता।
- संवेगात्मक स्थिरता।
मानसिक स्वास्थ्य का अनुमान लगाना शारीरिक स्वास्थ्य की तुलना में कठिन है। यह कहा जाता है कि “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क रहता है।” (Healthy mind lives in a healthy body) इस परिभाषा से स्पष्ट है कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का आपस में सीधा सम्बन्ध है। मानसिक अस्वस्थता के कारण शारीरिक अस्वस्थता उत्पन्न हो सकती है।
उदाहरणार्थ, अधिक चिन्ता और तनाव से शरीर में उच्च रक्तचाप अथवा हृदय रोग हो जाता है। इसके विपरीत स्थिति में शारीरिक अस्वस्थता से मानसिक अस्वस्थता उत्पन्न हो सकती है। उदाहरणार्थ एक पोलियो से ग्रस्त बच्चा खुद को सामान्य बच्चों से हीन अनुभव करता है और यही भावना उसे डर या आत्म-दयनीयता (Self-pity) की स्थिति में पहुँचा देती है । यह स्थिति मानसिक अस्वस्थता की स्थिति है।
3. सामाजिक स्वास्थ्य (Social Health): सामाजिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में निम्न लक्षण पाए जाते हैं।
- वह समाज के दूसरे लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारी अनुभव करता है।
- वह सबके साथ सहयोग और सहनशीलता से रहता है।
- उसका व्यवहार आनन्ददायक होता है।
- वह आस-पास के लोगों से प्रेम से मिलता है।
मानसिक स्वास्थ्य के बिना सामाजिक स्वास्थ्य के लक्ष्य को प्राप्त करना असम्भव है। उदाहरणार्थ, यदि व्यक्ति अपनी परेशानियों से चिन्ताग्रस्त और तनावयुक्त है, तो वह दूसरों की सहायता करने में सक्षम नहीं हो सकता। इसी प्रकार प्रायः शारीरिक अस्वस्थता भी सामाजिक स्वस्थता में बाधक होती है। उदाहरणार्थ शारीरिक रोग व्यक्ति को चिड़चिड़ा, मायूस और दूसरों के साथ सामान्य व्यवहार के अयोग्य बना देता है। अपराधी व्यक्ति जैसे चोर, डाकू आदि सामाजिक अस्वस्थता के उदाहरण हैं। उनका व्यवहार समाज द्वारा मान्य नहीं होता इसीलिए उन्हें असामाजिक तत्त्व कहा जाता है।
4. आध्यात्मिक स्वास्थ्य (Spiritual Health): आध्यात्मिक स्वास्थ्य को परिभाषित कर पाना सबसे कठिन है। आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अधिकतर नैतिक सिद्धांतों का पालन करता है, जैसे-सच बोलना, भलाई करना, अपने कर्तव्यों का दृढ़ता से पालन करना, दूसरों को दुख न देना आदि। धैर्य और आत्मिक शांति आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लक्षण हैं। उन्हें प्रार्थना, चिन्तन और कर्तव्यपरायणता से प्राप्त किया जा सकता है। एक स्वस्थ व्यक्ति परिवार, समाज व देश के लिए सम्पत्ति होता है जबकि अस्वस्थ व्यक्ति एक बोझ।
प्रश्न 3.
उत्तम स्वास्थ्य के क्या लक्षण हैं ?
उत्तर:
उत्तम स्वास्थ्य के लक्षण (Signs of good health): उत्तम स्वास्थ्य से अभिप्राय है कि व्यक्ति शारीरिक, मानसिक व सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ हो। एक उत्तम पोषित व्यक्ति का ही उत्तम स्वास्थ्य हो सकता है। मानव कल्याण के लिए वैज्ञानिक पोषण विज्ञान से सम्बन्धित क्षेत्रों में निरन्तर अनुसंधान, अध्ययन व अन्वेषण कर रहे हैं। इसी के फलस्वरूप व्यक्ति के शरीर की बनावट, सबलता, आयु अवधि तथा मानसिक व व्यावहारिक लक्षणों में अनेक सकारात्मक परिवर्तन आए हैं, जिनका उल्लेख आगे किया गया है –
1. शारीरिक विकास एवं वृद्धि (Body growth and development) : एन.सी.एच.एस. के अनुसार बच्चों व किशोरों की अपेक्षित ऊँचाई व भार (Expected Height & Weight of Children & Adolescents according to N.C.H.S)
(क) शारीरिक भार व ऊँचाई (Body weight & height): किसी भी व्यक्ति के शारीरिक भार व ऊँचाई को प्रभावित करने वाले अनेक कारकों में से उत्तम पोषण का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। यदि उत्तम पोषण के अभाव में व्यक्ति के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है तो उसका शरीर भार एवं ऊँचाई सामान्य स्तर से कम रह जाता है।
इसी प्रकार अत्यधिक पोषण भी व्यक्ति के लिए अत्यन्त हानिकारक है क्योंकि इससे शारीरिक भार सामान्य स्तर से अधिक होने के कारण मोटापा आ जाता है। तालिका में विभिन्न आयु वर्गों के लिए सामान्य शरीर भार एवं ऊँचाई का उल्लेख किया गया है। आप इस तालिका की सहायता से अपने शरीर का भार व ऊँचाई की तुलना सामान्य स्तर से करके अपने स्वास्थ्य की दशा ज्ञात कर सकते हैं तथा प्रयत्न करके अपने शरीर के भार को सामान्य स्तर में रख सकते हैं।
(ख) अस्थियों का ढाँचा (Skeletal system): एक स्वस्थ व्यक्ति की हड्डियाँ मजबूत होती हैं। भोजन में उपस्थित कैल्शियम, फास्फोरस व विटामिन डी हड्डियों का कैल्सीकरण करके उन्हें .मजबूत बनाते हैं। अतः एक सुपोषित स्वस्थ व्यक्ति का डील-डौल प्रभावित होता है। उसका सिर तना हुआ, छाती चौड़ी व उठी हुई, कन्धे सपाट व पेट अन्दर होता है।
(ग) त्वचा (Skin): स्वस्थ व्यक्ति की.त्वचा मुलायम व चमकीली होती है। बाहरी त्वचा के नीचे की तह की मोटाई से पोषण की स्थिति ज्ञात हो जाती है। इस निचली तह की मोटाई वसा के कारण होती है। जब व्यक्ति को उपयुक्त मात्रा में भोजन नहीं मिलता तब यह वसा जल कर उसे ऊर्जा प्रदान करती है और यह निचली तह पतली होती जाती है। इसके विपरीत जब व्यक्ति आवश्यकता से अधिक मात्रा में भोजन ग्रहण करता है तो वसा त्वचा की निचली तह में चर्बी के रूप में जम जाती है।
(घ) मांसपेशियां (Muscles): एक स्वस्थ व्यक्ति की मांसपेशियां पूर्ण रूप से विकसित व सुगठित होती हैं। उत्तम पोषण के अभाव में व्यक्ति की मांसपेशियां पूर्ण रूप से विकसित नहीं होती तथा ढीली पड़ जाती हैं।
(ङ) रक्त (Blood): भोजन में उपस्थित पोषक तत्त्व पाचन के पश्चात् रक्त में अवशोषित होते हैं तथा रक्त ही इन पोषक तत्त्वों को शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाकर उनका पोषण करता है। अतः रक्त में उपस्थित पोषक तत्त्वों की मात्रा के आधार पर किसी भी व्यक्ति के पोषण स्तर तथा स्वास्थ्य स्तर का पता लगाया जा सकता है। शरीर पोषण के अतिरिक्त व्यक्ति के फेफड़ों से ऑक्सीजन लेने तथा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ने का कार्य रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन द्वारा सम्पन्न किया जाता है।
एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति में सामान्यतः लगभग 1214 ग्राम हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) प्रति 100 मिली रक्त में होता है। उससे कम हीमोग्लोबिन की मात्रा अस्वस्थता का प्रतीक है जिससे व्यक्ति को जल्दी थकावट आती है और उसकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। सारांश में एक स्वस्थ व्यक्ति (जिसका पोषण स्तर बाल्यावस्था से ही उचित रहा हो) का पूर्ण विकसित अस्थि कंकाल, टांगें व बाँहें सुडौल, दाँत सुन्दर व सुदृढ, त्वचा चिकनी तथा मांसपेशियां ठोस व सबल होती हैं।
2. शारीरिक कार्यक्षमता व कार्यकुशलता (Physical efficiency and capability): अनुसंधानों एवं प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो गया है कि पोषण का प्रत्यक्ष प्रभाव व्यक्ति की शारीरिक कार्यक्षमता व कार्यकुशलता पर पड़ता है। अमेरिका में कुछ सैनिकों को सीमित आहार देने पर ज्ञात हुआ कि उनकी कार्यक्षमता बहुत कम हो गयी है। इसी प्रकार एक कारखाने में काम करने वाले मजदूरों के प्रात:कालीन नाश्ते का अध्ययन करने पर ज्ञात हुआ कि सन्तुलित प्रात:कालीन नाश्ता खाने वाले मजदूरों की शारीरिक कार्यक्षमता व कार्यकुशलता अन्य मजदूरों की अपेक्षा अधिक है।
3. मानसिक स्थिरचित्तता (Constant mental tension): उत्तम स्वास्थ्य का मनुष्य के व्यवहार से सीधा सम्बन्ध है। एक अस्वस्थ व्यक्ति प्रायः उदांस, अधीर, चिड़िचिड़ा, खिन्न व हठी होता है तथा वह किसी भी कार्य में रुचि नहीं लेता है और उसकी संकल्प-शक्ति भी कम हो जाती है। ऐसे व्यक्तियों के भोजन में सुधार लाने पर. उनका व्यवहार धीरे-धीरे सामान्य हो जाता है। बच्चों में अस्थिर चित्त, अधीरता व उदण्डता का कारण भी अस्वस्थता है। एक स्वस्थ बच्चा अधिक सतर्क, क्रियाशील तथा उत्साही होता है। अनुसंधानों द्वारा व्यक्ति के मानसिंक . सन्तुलन में विटामिनों की भूमिका का अत्यधिक महत्त्व सिद्ध हुआ है।
4. मानसिक संलग्नता (Mental concentration): किसी भी बच्चे की मानसिक क्षमता अथवा बुद्धि उसकी अनुवांशिकता पर निर्भर करती है परन्तु उसका मानसिक विकास पूर्ण रूप से हो यह उसके पोषण पर निर्भर करता है। जिन बच्चों को उचित आहार नहीं मिलता वह अपनी पढ़ाई पर पूर्ण रूप से ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते हैं, वे अधिक समय तक एकाग्रचित नहीं रह सकते हैं और मानसिक दृष्टि से शीघ्र ही थक जाते हैं। अध्ययनों द्वारा यह पूर्ण रूप से सिद्ध हो चुका है कि उचित पोषण का प्रभाव बच्चों की पढ़ाई पर सर्वाधिक पड़ता है। एक स्वस्थ बच्चा एकाग्रचित होकर पढ़ाई में पूर्ण रुचि लेता है।
5. मृत्यु आंकड़े व दीर्घ आयु (Death rate & Longivity): यदि सम्पन्न देशों के मृत्यु आंकड़ों एवं आयु की तुलना विकासशील देशों से की जाए तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उत्तम स्वास्थ्य का सीधा सम्बन्ध दीर्घ आयु व मृत्यु-दर में कमी से है। भारत में भी माता व शिशु को पौष्टिक आहार मिलने से मातृ व शिशु मृत्यु-दर में कमी आई है तथा आयु अवधि में बढ़ोतरी हुई है। प्रौढ़ व्यक्तियों के जीवन का अकाल अन्त बहुधा हृदय सम्बन्धी रोगों के कारण होता है जिसका सीधा सम्बन्ध आहार से है क्योंकि अधिक कोलेस्ट्रॉल युक्त भोजन करने से धमनियों में धीरे-धीरे विकार आने लगते हैं जिसके कारण हृदय की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 4.
उत्तम स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक भोजन के अतिरिक्त स्वास्थ्य पर और किन बातों का प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
उत्तम स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक भोजन के महत्त्व के बारे में तुम्हें पूर्ण जानकारी हो गई है परन्तु पौष्टिक भोजन के साथ-साथ निम्नलिखित बातें भी हमारे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती हैं –
1. शुद्ध वायु (Fresh Air): अच्छे स्वास्थ्य के लिए शुद्ध वायु में श्वास लेना अति आवश्यक है। वायु में कार्बनिक पदार्थ व विषैली गैसों जैसे कार्बनडाइ ऑक्साइड (Carbon dioxide), कार्बन मोनोऑक्साइड (Carbon Mono-oxide), मीथेन (Methane), हाइड्रोजन सल्फाइड (Hydrogen Sulphide) आदि की मात्रा कम से कम तथा ऑक्सीन (Oxygen) की मात्रा लगभग 20.96 प्रतिशत तक होनी चाहिए। यदि वायु में कार्बनिक पदार्थों व विपैली गैसों की मात्रा अधिक होती है तो व्यक्ति को सिरदर्द, बदनदर्द, आलस्य व थकावट की शिकायत होती है। अशुद्ध वायु जिसमें मिट्टी के कणों व रोग के जीवाणुओं की अधिकता.होती है, में सांस लेने से व्यक्ति कई रोगों से ग्रस्त हो सकता है।
2. शुद्ध जल (Fresh Water): हमारे देश में पीने के लिए जल विभिन्न स्रोतों द्वारा प्राप्त किया जाता है, जैसे-तालाब, कुएँ, नदियाँ, नलकूप, नल आदि । जल में अनेक प्रकार की अशुद्धियाँ तथा रोगाणु पाए जाते हैं जिनके द्वारा व्यक्ति को अनेक बीमारियाँ हो सकती हैं। अतः हमें इस वात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जल चाहे किसी भी स्रोत द्वारा लिया जाए स्वच्छ तथा. रोगाणुरहित हो।
3. व्यक्तिगत एवं वातावरण की स्वच्छता (Personal & Environmental sanitation): प्रकृति में रोग उत्पन्न करने वाले अनेक जातियों के सूक्ष्म रोगाणु होते हैं जो अंधेरी जगह, नमी तथा गन्दगी में शीघ्रता से बढ़ते हैं और विभिन्न माध्यमों द्वारा संक्रमण फैलाते हैं। अतः गन्दगी के कारण मनुष्य अनेक रोगों का शिकार हो सकता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता के साथ-साथ वातावरण की स्वच्छता का भी पूर्ण ध्यान रखना आवश्यक है।
4. व्यायाम (Exercise): अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रतिदिन अपनी आयु, कार्य व निजी आवश्यकतानुसार शुद्ध वायु में नियमित रूप से व्यायाम करना आवश्यक है क्योंकि व्यायाम द्वारा फेफड़ों में शुद्ध वायु पहुँचती है, रक्त परिसंचरण की गति तेज होती है, जिससे विभिन्न अंगों में पोषक तत्त्व तीव्रता से पहुंचते हैं और व्यर्थ पदार्थों का निष्कासन भी तीव्रता से होता है।
5. नियमित विश्राम व निद्रा (Regular Rest & Sleep): दैनिक कार्यों से होने वाली थकावट को दूर करने तथा दोबारा कार्य करने के लिए ऊर्जा अर्जित करने के लिए उचित मात्रा में विश्राम व निद्रा आवश्यक है क्योंकि इन अवस्थाओं में शरीर में होने वाले मरम्मत के कार्य सुचारु रूप से होते हैं। यही कारण है कि बच्चों, बूढों व कमजोर व्यक्तियों को अधिक विश्राम व निद्रा की आवश्यकता होती है। एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 6 घण्टे से 8 घण्टे तक की नियमित निद्रा आवश्यक है। इसके विपरीत आवश्यकता से अधिक विश्राम व निद्रा भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
6. रोगों से रक्षा (Protection against diseases): प्राय: देखा गया है कि हम चाहे अपने स्वास्थ्य का कितना भी ध्यान रखें फिर भी कोई न कोई रोग हमें घेर लेता है। अतः रोगों जैसे तपेदिक, हैजा, टाइफाइड, पोलियो आदि से बचने के लिए बच्चों को नियमित रूप से टीके लगवाकर रोगों से रक्षा प्रदान करनी चाहिए।