Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 स्थानीय शासन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 स्थानीय शासन
Bihar Board Class 11 Political Science स्थानीय शासन Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
भारत का संविधान ग्राम पंचायत को स्व-शासन की इकाई के रूप में देखता है। नीचे कुछ स्थितियों का वर्णन किया गया है। इन पर विचार कीजिए और बताइए कि स्व-शासन की इकाई बनने के क्रम में ग्राम पंचायत के लिए ये स्थितियाँ सहायक हैं या बाधक?
उत्तर:
(a) प्रदेश की सरकार ने एक बड़ी कंपनी को विशाल इस्पात संयंत्र लगाने की अनुमति दी है। इस्पात संयंत्र लगाने से बहुत-से गाँवों पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। दुष्प्रभाव की चपेट में आनेवाले गाँवों में से एक ग्राम सभा ने यह प्रस्ताव पारित किया कि क्षेत्र में कोई भी बड़ा उद्योग लगाने से पहले गाँववासियों की राय ली जानी चाहिए और उनकी शिकायतों की सुनवाई होनी चाहिए। यह स्थिति ग्राम पंचायत के लिए मददगार है।
(b) सरकार का फैसला है कि उसके कुल खर्चे का 20 प्रतिशत पंचायतों के माध्यम से व्यय होगा। यह स्थिति भी ग्राम पंचायत के लिए मददगार है।
(c) ग्राम पंचायत विद्यालय का भवन बनाने के लिए लगातार धन माँग रही है, लेकिन सरकारी अधिकारियों ने माँग को यह कहकर ठुकरा दिया है कि धन का आबंटन कुछ दूसरी योजनाओं के लिए हुआ है और धन को अलग मद में खर्च नहीं किया जा सकता। यह स्थिति ग्राम पंचायत के लिए बाधक है।
(d) सरकार ने डुंगरपुर नामक गाँव को दो हिस्सों में बाँट दिया है और गाँव के एक हिस्से को जमुना तथा दूसरे को सोहना नाम दिया है। अब डुंगरपुर नाम गाँव सरकारी खाते में मौजूद नहीं है। यदि डूंगरपुर के दो हिस्से जमुना और सोहना अलग हैं किन्तु उनकी ग्राम पंचायत एक ही है तो कोई अंतर नहीं पड़ता परंतु यदि सरकार किसी ग्राम के दो हिस्से बनाती है और इसमें वहाँ की ग्राम पंचायत की सहमति नहीं ली जाती तो यह स्थिति ग्राम पंचायत के लिए बाधक है।
(e) एक ग्राम पंचायत ने पाया कि उसके इकाई में पानी के स्रोत तेजी से कम हो रहे हैं। ग्राम पंचायत ने फैसला किया कि गाँव के नौजवान श्रमदान करें और गाँव के पुराने तालाब तथा कुएँ को फिर से काम में आने लायक बनाएँ। यह स्थिति ग्राम पंचायत के लिए मददगार है।
प्रश्न 2.
मान लीजिए कि आपको किसी प्रदेश की तरफ से स्थानीय शासन की कोई योजना बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ग्राम पंचायत स्व-शासन की इकाई के रूप में काम करे, इसके लिए आप उसे कौन-सी शक्तियाँ देना चाहेंगे? ऐसी पाँच शक्तियों का उल्लेख करें और प्रत्येक शक्ति के बारे में दो-दो पंक्तियों में यह भी बताएँ कि ऐसा करना क्यों जरूरी है।
उत्तर:
ग्राम पंचायत स्वशासन की इकाई के रूप में कार्य करे, इसके लिए ग्राम पंचायत को निम्नलिखित शक्तियाँ देनी होंगी –
1. ग्राम पंचायत को विकास संबंधी कार्य करने की शक्ति प्रदान की जाएगी। ग्राम में उत्पादन बढ़ाना, कृषकों के प्रयोग के लिए कृषि के यंत्र खरीदना, बेकार भूमि को कृषि योग्य बनाना, पशुओं की नस्ल सुधारना, अच्छे बीजों की व्यवस्था करना, सहकारिता को बढ़ावा देना, कुटीर उद्योग-धंधों को प्रोत्साहन देना और लघु बचत योजना को बढ़ावा देनां। ऐसा करना इसलिए जरूरी है क्योंकि ग्रामीण व्यक्तियों की आय बढ़ाना जरूरी है। गाँव के लोग अत्यधिक गरीब हैं उनको जीवनयापन के लिए खेती और उससे सम्बन्धित कार्यों में सुधार लाना आवश्यक है।
2. गाँव के लोगों को जीवन की आवश्यकता सुविधाएँ प्राप्त करना आवश्यक है। ग्राम पंचायतें इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकती हैं। जैसे रोशनी का प्रबंध, गंदे पानी की निकासी, सफाई के व्यवस्था, पीने की पानी की व्यवस्था, सड़कें और पुल बनवाना आदि।
3. जनकल्याण संबंधी कार्य कराना भी इस ओर एक महत्त्वपूर्ण कदम है। जैसे बच्चों के लिए बाल हित केन्द्र खुलवाना, स्त्रियों के लिए प्रसूति-गृह, पिछड़े वर्गों के लोगों के लिए विकास के कार्यक्रम बनाना, मनोरंजन के लिए मेले लगवाना, अखाड़ों की व्यवस्था करना आदि।
4. शिक्षा संबंधी कार्य कराना जिससे ग्रामीण लोगों का मानसिक विकास हो। ग्रामोंफोन की सुविधा, पुस्तकालय, वाचनालय खुलवाना आदि। इन सब कार्यों के करने से ग्रामीण नवयुवकों को आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त होता है। उनका पिछड़ापन दूर होता है तथा वे राष्ट्रीय धारा में सम्मिलित होकर उन्नति के अवसर खोज सकते हैं।
5. गाँव के बाहर एक खेल स्टेडियम बनवाना। ऐसा करने से गाँव के लड़के-लड़कियों को अपनी खेल प्रतिभा को चमकाने का अवसर मिलेगा।
प्रश्न 3.
सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए संविधान के 73 वें संशोधन में आरक्षण के क्या प्रावधान हैं? इन प्रावधानों से ग्रामीण स्तर के नेतृत्व का खाका किस तरह बदला है?
उत्तर:
73 वें संशोधन के बाद पंचायती राज-संस्थाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित है। तीनों स्तरों पर अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की गयी है। यह व्यवस्था अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या के अनुपात में की गयी है। यदि प्रदेश की सरकार जरूरी समझे तो अन्य पिछड़ी जातियों को भी आरक्षण दे सकती है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित स्थानों में भी एक तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे।
राज्य की जनसंख्या के अनुपात में पंचायत के सभी स्तरों पर प्रधानों के स्थान अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित होंगे। प्रधान के पदों का एक तिहाई भाग महिलाओं के लिए आरक्षित होगा। राज्य विधानमंडलों को इस बात की स्वतंत्रता होगी कि वे पंचायतों के प्रधानों के स्थान अन्य पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर सकते हैं। पूरे ग्रामीण समाज का प्रतिनिधित्व हो इसीलिए आरक्षण की व्यवस्थ लागू की गयी है। 2 अक्टूबर, 1994 से सारे देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई है। विभिन्न प्रदेशों पंचायत राज की खामियों को दूर करने के लिए ग्रामों में स्वतंत्र या दूसरे शब्दों में ‘ग्राम स्वराज’ की नयी व्यवस्था लागू करने का प्रयास किया गया है।
प्रश्न 4.
संविधान के 73 वें संशोधन से पहले और संशोधन के बाद के स्थानीय शासन के बीच मुख्य भेद बताएँ।
उत्तर:
प्राचीन काल में भारत में ‘सभा’ के रूप में ग्राम समुदाय अपना शासन स्वयं चलाते थे। ब्रिटिश काल में 1882 के बाद स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय अस्तित्व में आए। लार्ड रिपन ने इन निकायों को बनाने की दिशा में पहल की। उसके बाद 1919 के एक्ट में प्रांतों/सूबों में ग्राम पंचायत बनी। 1935 के गवर्नमेण्ट ऑफ इण्डिया एक्ट के बाद भी यह प्रवृत्ति जारी रही। जब संविधान बना तो स्थानीय शासन का विषय प्रदेशों को सौंपा गया। राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का अंग होने के कारण यह प्रावधान अदालती बाद के दायरे में नहीं आता था और इसकी प्रकृति मुख्यतया सलाह-मशवरा की थी। इस प्रकार पंचायती राज को संविधान में यथोचित महत्त्व नहीं मिला।
परंतु 73 वें संविधान संशोधन के बाद स्थानीय शासन को सुदृढ़ बनाया गया। यूँ तो इससे पहले भी कुछ प्रयास किए गए जैसे 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की गयी। 1987 के बाद स्थानीय शासन के गहन पुनरावलोकन की शुरूआत हुई। 1989 में धुंगन समिति ने स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की। 1989 में केन्द्र सरकार ने दो संविधान संशोधनों की बात आगे बढ़ायी। 1992 में संविधान के 73 वें 74 वें संशोधन पारित हुए। 1993 में 73 वाँ संशोधन लागू हुआ। संशोधन के बाद राज्य सरकारों को यह छूट नहीं रही कि वे अपने मर्जी के अनुसार पंचायतों के बारे में कानून बना सकें। प्रदेशों को ऐसे कानून बदलने पड़े ताकि उन्हें संशोधित संविधान के अनुरूप किया जा सके।
प्रदेशों को अपने कानूनों में बदलाव के लिए एक वर्ष का समय दिया गया। 2 अक्टूबर, 1994 से पूरे देश में पंचायती राज व्यवस्था को मजबूती प्रदान कर दी गयी है और सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढाँचा त्रिस्तरीय हो गया। 73 वें संशोधन के बाद से ग्राम सभा अनिवार्य रूप से बनायी जानी चाहिए। पंचायती निकायों की अवधि पाँच वर्ष और हर पाँच वर्ष के बाद चुनाव अनिवार्य है। यदि प्रदेश की सरकार पाँच वर्ष पूरे होने से पहले पंचायत को भंग करती है तो उसके 6 माह के भीतर नया चुनाव कराना अनिवार्य है। संविधान के 73 वें संशोधन से पहले कई प्रदेशों जिला पंचायत-निकायों का चुनाव अप्रत्यक्ष रीति से था परंतु अब यह भी सीधा (प्रत्यक्ष) जनता द्वारा कराया जाता है।
पंचायतों को भंग करने के बाद तत्काल चुनाव के संबंध में कोई प्रावधान नहीं था। इसके अतिरिक्त महिलाओं का आरक्षण संशोधन से पहले नहीं था परंतु संशोधन के बाद एक तिहाई सीटों का महिलाओं के लिए आरक्षण अनिवार्य कर दिया गया है। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण में भी प्रत्येक में महिलाओं का एक तिहाई आरक्षण अनिवार्य है। संशोधन से पूर्व राज्य सूची के 29 विषय अब 11वीं अनुसूचित में दर्ज कर लिए गए हैं। प्रदेशों के लिए हर 5 वर्ष बाद एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना जरूरी है। यह आयोग एक तरफ प्रदेश और स्थानीय शासन की व्यवस्थाओं के बीच तो दूसरी तरफ शहरी और ग्रामीण स्थानीय शासन की संस्थाओं के बीच राजस्व के बँटवारे का पुनरावलोकन करेगा।
प्रश्न 5.
नीचे लिखी बातचीत पढ़ें। इस बातचीत में जो मुद्दे उठाए गए हैं उनके बारे में अपना मत दो सौ शब्दों में लिखें।
आलोक:
हमारे संविधान में स्त्री और पुरुष को बराबरी का दर्जा दिया गया है। स्थानीय निकायों में स्त्रियों को आरक्षण देने से सत्ता में उनकी बराबर की भागीदारी सुनिश्चित हुई है।
नेहा:
लेकिन, महिलाओं को सिर्फ सत्ता के पद पर काबिज होना ही काफी नहीं है। यह भी जरूरी है कि स्थानीय निकायों के बजट में महिलाओं के लिए अलग से प्रावधान हो।
जयेश:
मुझे आरक्षण का यह गोरखधन्धा पसंद नहीं। स्थानीय निकाय को चाहिए कि वह गाँव के सभी लोगों का ख्याल रखे और ऐसा करने पर महिलाओं और उनके हितों की देखभाल अपने आप हो जायगी।
उत्तर:
यह बातचीत स्त्रियों को समानाधिकार संबंधी विषय से सम्बन्धित है। हमारा संविधान स्त्री और पुरुष को समान अधिकार देता है। अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य किसी भी नागरिक के साथ धर्म, लिंग, जाति, नस्ल और जन्मस्थान या इनमें से किसी एक के भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। अनुच्छेद 39 (क) के अनुसार राज्य अपनी नीति का विशिष्टतया इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनिश्चित रूप से पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो तथा 39 (घ) के अनुसार पुरुष और स्त्रियों दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन हो।
अनुच्छेद 40 के अनुसार राज्य ग्राम पंचायतों का गठन करने के लिए कदम उठाएगा, परंतु व्यवहार में स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार अभी तक पूरी तरह नहीं दिए गए। समय-समय पर उनके अधिकारों का उल्लंघन होता रहता है। यद्यपि अनुच्छेद 243 के अनुसार ग्राम पंचायतों के अंतर्गत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित स्थानों में भी एक तिहाई स्थान 73 वें संशोधन के बाद, महिलाओं के लिए आरक्षित हैं और एक तिहाई स्थान पूरे पंचायत के अन्तर्गत भी आरक्षित किए गए हैं परंतु अभी भी स्त्रियों के नाम से उनके परिजन ही पंचायत के कार्यों में अपनी भूमिका अदा करते हैं और स्त्रियों को स्वतंत्रातापूर्वक निर्णय नहीं लेने देते।
आलोक के विचार में संविधान स्त्री पुरुष दोनों को समान मानता है। स्थानीय निकायों में आरक्षण से स्त्रियों को पुरुषों के बराबर लाने का प्रयास किया गया है लेकिन नेहा के विचार से बजट में स्त्रियों के लिए अलग से प्रावधान होना चाहिए। परंतु जयेश का विचार है कि स्थानीय निकायों को अपने सभी नागरिकों के हित के लिए कार्यक्रम करने चाहिए अर्थात् पंचायतें सभी ग्रामवासियों के कल्याण के कार्यक्रम बनाएँ तो स्वतः ही स्त्रियों का भी कल्याण होगा। यहाँ यह बात महत्त्वपूर्ण है कि ग्राम पंचायतें कितनी भी नीतियों सभी के कल्याण के लिए बनाएँ जिनमें स्त्रियों का कल्याण भी सम्मिलित है परंतु जब तक स्त्रियाँ सत्ता में अनिवार्य तौर पर भागीदार नहीं बनेगी तब तक उनका हित साधन नहीं हो सकता। अतः आरक्षण भी जरूरी है।
प्रश्न 6.
73 वें संशोधन के प्रावधानों को पढ़ें। यह संशोधन निम्नलिखित सरोकारों में से किससे ताल्लुक रखता है?
1. पद से हटा दिए जाने का भय जन-प्रतिनिधियों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाता है।
उत्तर:
73 वें संशोधन (1993) के बाद से प्रत्येक 5 वर्ष के बाद पंचायत का चुनाव कराना अनिवार्य है। यदि राज्य सरकार 5 वर्ष से पहले ही पंचायत को भंग करती है तो 6 माह के अंदर चुनाव कराना अनिवार्य है। इस प्रकार चुनाव के भय के कारण प्रतिनिधि उत्तरदायी बने रहते हैं। उन्हें डर रहता है कि कहीं जनता चुनाव में उन्हें हरा न दें।
2. भूस्वामी सामंत और ताकतवर जातियों का स्थानीय निकायों में दबदबा रहता है।
उत्तर:
1993 के 73वें संशोधन के बाद से पंचायत के चुनाव में महिलाओं, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जन जातियों के लिए आरक्षण अनिवार्य बना दिया गया। अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जन जातियों का आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात में रखा गया। प्रत्येक वर्ग में महिलाओं को एक तिहाई सीटों पर आरक्षण दिया गया। भूस्वामी सामन्त और ताकतवार जातियों के लोग सत्ता छोड़ना नहीं चाहते थे परंतु इस संशोधन के बाद अनिवार्य तौर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा महिलाओं को स्थानीय शासन में सत्ता प्राप्त हुई।
3. ग्रामीण क्षेत्रों में निरक्षरता बहुत ज्यादा है। निरक्षर लोग गाँव के विकास के बारे में फैसला नहीं ले सकते हैं।
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्र में निरक्षरता बहुत है। निरक्षर लोग गाँव के विकास के बारे में फैसला नहीं ले सकते। इस कारण उनको शिक्षित करने के लिए पंचायत के अधिकार में आने वाले 29 विषय ग्यारहवीं अनुसूची में 73वें संशोधन द्वारा डाले गए। प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा इनमें से एक विषय है। राज्य सरकार का दायित्व है कि इन प्रावधानों को लागू करे।
4. प्रभावकारी साबित होने के लिए ग्राम पंचायतों के पास गाँव की विकास योजना बनाने की शक्ति और संसाधन का होना जरूरी है।
उत्तर:
पंचायतों को लेवी कलेक्ट करने, उचित टैक्स लगाने, ड्यूटी टोल टैक्स तथा शुल्क लगाने का अधिकार है जो राज्य सरकार द्वारा बनाये गए प्रावधानों के अन्तर्गत हो। राज्य वित्त आयोग की स्थापना भी हर पाँच वर्ष बाद करने की अनिवार्यता बना दी गई है जो पंचायत के वित्त का रिव्यू करती है। साथ ही राज्य सरकार से यह सिफारिश भी करती है कि पंचायतों को कितना अनुदान दिया जाय। उपरोक्त सभी सरकारों में से सबसे महत्त्वपूर्ण सरोकार जिससे यह संशोधन ताल्लुक रखता है वह (क) भाग है अर्थात् पद से हटा दिए जाने का भय जन प्रतिनिधियों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाता है।
प्रश्न 7.
नीचे स्थानीय शासन के पक्ष में कुछ तर्क दिए गए हैं। इन तर्कों को आप अपनी पसंद से वरीयता क्रम में सजाएँ और बताएँ कि किसी एक तर्क की अपेक्षा दूसरे को आपने ज्यादा महत्त्वपूर्ण क्यों माना है। आपके जानते वेंगेइवंसल गाँव की ग्राम पंचायत का फैसला निम्नलिखित कारणों में से किस पर और कैसे आधारित था?
(क) सरकार स्थानीय समुदाय को शामिल कर अपनी परियोजना कम लागत में पूरी कर सकती है।
(ख) स्थानीय जनता द्वारा बनायी गई विकास योजना सरकारी अधिकारियों द्वारा बनायी गई विकास योजना से ज्यादा स्वीकृत होती है।
(ग) लोग अपने इलाके की जरूरत, समस्याओं और प्राथमिकताओं को जानते हैं। सामुदायिक भागीदारी द्वारा उन्हें विचार-विमर्श करके अपने जीवन के बारे में फैसला लेना चाहिए।
(घ) आम जनता के लिए अपने प्रदेश अथवा राष्ट्रीय विधायिका के जन-प्रतिनिधियों से संपर्क कर पाना मुश्किल होता है।
उत्तर:
स्थानीय स्वशासन के पक्ष में जो विभिन्न तर्क दिए गए हैं। इनके वरीयता क्रम निम्न प्रकार हैं –
1. प्रथम वरीयता भाग (घ) को दी जाएगी क्योंकि आम जनता के लिए अपने प्रदेश अथवा राष्ट्रीय विधायिका के जन प्रतिनिधियों से सम्पर्क कर पाना मुश्किल होता है। अतः वे स्थानीय शासन के प्रतिनिधियों से सीधे सम्पर्क में रहने के कारण अपनी समस्याओं की शिकायत उनसे। करके शीघ्र समाधान करा सकते हैं।
2. द्वितीय वरीयता भाग (ग) लोग अपने इलाके, अपनी जरूरत, समस्याओं और प्राथमिकताओं को जानते हैं। सामुदायिक भागीदारी द्वारा उन्हें विचार-विमर्श करके अपने जीवन के बारे में फैसला लेना चाहिए।
3. तीसरे क्रम पर भाग (ख) अर्थात् स्थानीय जनता द्वारा बनायी गई विकास योजना सहकारी अधिकारियों द्वारा बनायी गयी विकास योजना से ज्यादा स्वीकृत होती है।
4. चौथी वरीयता पर भाग (क) सरकार स्थानीय समुदाय को शामिल कर अपनी परियोजना कम लागत में पूरी कर सकती है वा गाँव की ग्राम पंचायत का फैसला इस तक पर आधारित था मन्ना का बनाया यो विकास योजना सरकारी अधिकारी द्वारा बनायी गयी विकास चा स्वीकृत होता है।
प्रश्न 8.
आपके अनुसार निम्नलिखित में कौन-सा विकेंद्रीकरण का साधन है? शेष को ‘विकेंद्रीकरण के साधन के रूप में आप पर्याप्त विकल्प क्यों नहीं मानते?
(क) ग्राम पंचायत का चुनाव कराना।
(ख) गाँव के निवासी खुद तय करें कि कौन-सी नीति और योजना गाँव के लिए उपयोगी है।
(ग) ग्राम सभा की बैठक बुलाने की ताकत।
(घ) प्रदेश सरकार ने ग्रामीण विकास की एक योजना चला रखी है। प्रखंड विकास अधिकारी (बीडीओ) ग्राम पंचायत के सामने एक रिपोर्ट पेश करता है कि इस योजना में कहाँ तक प्रगति हुई है।
उत्तर:
ग्राम पंचायत का चुनाव करना एक प्रक्रिया है। यद्यपि यह स्थानीय शासन का एक भाग तो है परंतु उपरोक्त प्रश्न में दिए गए कथनों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण विकेन्द्रीकरण का साधन है कि गाँव के निवासी खुद तय करें कि कौन सी नीति और योजना गाँव के लिए उपयोगी है। ग्राम सभा की बैठक बुलाने की ताकत भी उसका एक भाग तो हो सकती है परंतु यह विकेन्द्रीकरण का साधन होने के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि यह बैठक तो उच्च अधिकारी भी बुला सकते हैं।
जब तक गाँव के निवासी ही इस ताकत का प्रयोग न करें तब तक यह विकेन्द्रीकरण का आम नागरिक (ग्रामीण) की समस्या और उसका दैनिक जीवन एवं दैनिक जीवन की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए ग्रामीण लोग ग्राम पंचायत के द्वारा अपनी समस्याओं का सामाधान करें यही सच्चा लोकतंत्र है और लोकतंत्र में सत्ता का विकेन्द्रीकरण होना ही चाहिए जो कि स्थानीय लोगों की सत्ता में भागीदारी से ही हो सकता है।
एक ग्राम पंचायत को प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा इस आशय की रिपोर्ट प्राप्त होना कि प्रदेश की सरकार चालू अमुक परियोजना की प्रगति कहाँ तक हुई है, यह विकेन्द्रीकरण का साधन नहीं है। यह इसलिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि अमुक परियोजना ग्राम सभा या ग्राम पंचायत के द्वारा तो नहीं चलायी जा रही है। अतः विकेन्द्रीकरण का साधन वास्तव में (ख) भाग ही है अर्थात् गाँव के निवासी खुद तय करें कि कौन सी नीति और योजना गाँव के लिए उपयोगी है।
प्रश्न 9.
दिल्ली विश्वविद्यालय का एक छात्र प्राथमिक शिक्षा के निर्णय लेने में विकेन्द्रीकरण की भूमिका का अध्ययन करना चाहता था। उसने गाँववासियों से कुछ सवाल पूछे। ये सवाल नीचे लिखे हैं। यदि गाँववासियों में आप शामिल होते तो निम्नलिखित प्रश्नों के क्या उत्तर देते? गाँव का हर बालक/बालिका विद्यालय जाय, इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कौन-से कदम उठाए जाने चाहिए-इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए ग्राम सभा की बैठक बुलाई जानी है।
1. बैठक के लिए उचित दिन कौन-सा होगा, इसका फैसला आप कैसे करेंगे? सोचिए कि आपके चुने हुए दिन में कौन बैठक में आ सकता है और कौन नहीं?
- प्रखंड विकास अधिकारी अथवा कलेक्टर द्वारा तय किया हुआ कोई दिन।
- गाँव का बाजार जिस दिन लगता है।
- रविवार।
- नागपंचमी/संक्राति।
2. बैठक के लिए उचित स्थान क्या होगा? कारण भी बताएँ।
- जिला कलेक्टर के परिपत्र में बताई गई जगह।
- गाँव का कोई धार्मिक स्थान।
- दलित मोहल्ला।
- ऊँची जाति के लोगों का टोला।
- गाँव का स्कूल।
3. ग्राम सभा की बैठक में पहले जिला-समाहर्ता (कलेक्टर) द्वारा भेजा गया परिपत्र पढ़ा गया। परिपत्र में बताया गया था कि शैक्षिक रैली को आयोजित करने के लिए क्या कदम इठये जाएँ और रैली किस रास्ते से होकर गुजरे। बैठक में उन बच्चों के बारे में चर्चा नहीं हुई जो कभी स्कूल नहीं आते। बैठक में बालिकाओं की शिक्षा के बारे में, विद्यालय भवन की दशा के बारे में और विद्यालय के खुलने-बंद होने के समय के बारे में भी चर्चा नहीं हुई। बैठक रविवार के दिन हुई इसलिए कोई महिला शिक्षक इस बैठक में नहीं आ सकी। लोगों की भागीदारी के लिहाज से इसको आप अच्छा कहेंगे या बुरा? कारण भी बताएँ।
4. अपनी कक्षा की कल्पना ग्राम सभा के रूप में करें। जिस मुद्दे पर बैठक में चर्चा होनी थी उस पर कक्षा में बातचीत करें और लक्ष्य को पूरा करने के लिए कुछ उपाय सुझायें।
उत्तर:
बैठक के लिए उचित दिन कौन-सा होगा, इसका फैसला करने के लिए यह सोचना होगा कि बैठक में अधिक से अधिक उपस्थिति किस दिन हो सकती है। जो दिन प्रश्न में सुझाये गए हैं वह इस प्रकार है:
- प्रखंड विकास अधिकारी अथवा कलेक्टर द्वारा तय किया हुआ कोई दिन।
- जिस दिन गाँव का बाजार लगता है।
- रविवार
- नागपंचमी/संक्राति
इन सब दिनों में प्रखंड विकास अधिकारी अथवा कलेक्टर द्वारा तय किया हुआ कोई दिन उपयुक्त रहेगा क्योंकि जिस दिन बाजार लगता है, ग्रामीण अपनी खरीदारी करते हैं और उपस्थिति कम रहेगी। रविवार का दिन इस कारण उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि उस दिन महिला शिक्षक मीटिंग अटैण्ड नहीं कर पायेंगी। नागपंचमी अथवा सक्रांति पर्व पर बैठक बुलाने का कोई औचित्य नहीं क्योंकि उस दिन ग्रामवासी अपना त्योहार मानने में संलग्न रहेंगे।
5. बैठक के लिए उचित स्थान क्या होगा, कारण भी बताएँ। इसके लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण विचारणीय प्रश्न यह है कि स्थान वह चुना जाना चाहिए जहाँ अधिकतम ग्रामीण ग्राम सभा की बैठक में उपस्थित हो सकें।
- जिला कलेक्टर के परिपत्र में बताई गई जगह पर बैठक करने अथवा।
- किसी धार्मिक स्थान पर गाँव में बैठक का स्थान सोचा जाय या।
- दलित मोहल्ला अथवा।
- ऊँची जाति के लोगों का टोला।
- गाँव का स्कूल।
इन सभी स्थानों पर सभी ग्रामीण एकत्रित नहीं हो सकते क्योंकि दलितों के यहाँ सवर्ण और सवर्णों के टोले पर दलित लोग एतराज कर सकते हैं। धार्मिक स्थान पर भी सभी लोग इकट्ठा होने में एकमत नहीं होंगे। अत: (e) ग्रामीण स्कूल बैठक के लिए सबसे उपयुक्त स्थान होगा।
6. ग्राम सभा के बैठक में पहले जिला-समाहर्ता (कलेक्टर) द्वारा भेजा गया परिपत्र पढ़ा गया। परपित्र में बताया गया था कि शैक्षिक शैली को आयोजित करने के लिए क्या कदम उठाए जाएँ और रैली किस रास्ते से होकर गुजरे। बैठक में उन बच्चों के बारे में चर्चा नहीं हुई जो कभी स्कूल नहीं आते। बैठक में बालिकाओं की शिक्षा के बारे में भी चर्चा नहीं हुई। बैठक रविवार के दिन हुई इसलिए कोई महिला शिक्षक इस बैठक में नहीं आयी। जनता की भागीदारी के लिहाज से बैठक की इस कार्यवाही में कोई कार्य जनता के हित में नहीं किया गया। कलेक्टर द्वारा भेजे गए पत्र में मुख्य समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया क्योंकि स्थानीय समस्याएँ तो स्थानीय व्यक्तियों की भागीदारी से ही सुलझाई जा सकती है।
7. अपनी कक्षा की ग्राम सभा के रूप में कल्पना करते हुए सर्वप्रथम हम एक मीटिंग (बैठक) बुलाने की घोषणा करेंगे। बैठक का एजेण्डा इस प्रकार होगा –
- उन बच्चों की समस्या पर चर्चा जो कभी स्कूल नहीं आते।
- गरीबी उन्मूलन के उपाय।
- ग्राम की गलियों की दशा पर चर्चा।
- सांस्कृतिक कार्यक्रम।
- उपरोक्त कार्यक्रम के लिए धन की व्यवस्था।
- ग्राम प्रधान द्वारा समापन-भाषण।
Bihar Board Class 11 Political Science स्थानीय शासन Additional Important Questions and Answers
अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
नगर निगम की संरचना और कार्य प्रणाली का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नगर निगम स्थानीय शहरी निकायों में सबसे ऊपर है। जिन नगरों की जनसंख्या दस लाख से ऊपर होती है, वहाँ नगर निगमों की स्थापना की जाती है। आज भारत में 30 ऐसे नगर हैं जहाँ नगर निगम स्थापित हैं। नगर निगम का चुनाव मतदाता करते हैं। एक नगर निगम में जितनी सीटें होती हैं, उस नगर में उतने ही निर्वाचन क्षेत्र बनाए जाते हैं। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है। इसे सभासद कहते हैं। सभासद कुछ वरिष्ठ सदस्यों का चयन करते हैं। नगर निगम अपनी समितियों द्वारा विभिन्न कार्य करते हैं। निगम में निर्णय बहुमत के आधार पर किए जाते हैं।
प्रश्न 2.
स्थानीय स्वशासन संस्थाओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्थानीय स्वशासन संस्थाओं से अभिप्राय:
स्थानीय मामलों का प्रबंध करने वाली संस्थाओं को स्वशासन संस्थाएँ कहते हैं। ये संस्थाएँ किसी देश में लोकतंत्र की सफलता के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्थानीय स्वायत्त शासन के द्वारा नागरिकों तथा प्रशासन में सम्पर्क बढ़ता है। ग्रामों तथा नगरों के नागरिकों को भी प्रशासन में भाग लेने का अवसर मिल जाता है। ये दोनों बातें लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है। स्थानीय स्वशासन द्वारा किसी विशेष स्थान के लोग अपनी समस्याओं को स्वयं हल कर लेते हैं।
प्रश्न 3.
पंचायत समिति की रचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंचायत समिति में उस ब्लाक (खण्ड) की सभी पंचायतों के सरपंच, नगरपालिकाओं और सहकारी समितियों के अध्यक्ष तथा उस क्षेत्र से निर्वाचित संसद सदस्य और राज्य विधानमण्डल के सदस्य आदि सम्मिलित होते हैं। पंचायतों की ही भाँति इनमें भी एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। पंचायत समिति का कार्यकाल 5 वर्ष है।
प्रश्न 4.
पंचायती राज की तीन स्तरीय संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंचायती राज:
पंचायती राज उस व्यवस्था को कहते हैं जिसके अन्तर्गत ग्रामों में रहने वाले लोगों को अपने गाँवों का प्रशासन तथा विकास, स्वयं अपनी इच्छानुसार करने का अधिकार दिया गया है। पंचायत भारत में एक बहुत ही प्राचीन संस्था है। बलवन्त राय मेहता की अध्यक्षता में एक समिति 1956 में गठित की गयी। इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर सम्पूर्ण देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज की स्थापना की गयी। निचले स्तर पर ग्राम पंचायत, मध्यम स्तर पर मंडल या खंड समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद (जिला पंचायत) की व्यवस्था की गयी।
प्रश्न 5.
पंचायती राज के किन्हीं दो उद्देश्यों का वर्णन करों।
उत्तर:
भारत में ग्राम पंचायतों की व्यवस्था प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। ‘पंचायती’ शब्द से तात्पर्य ‘पाँच व्यक्तियों’ की समिति से लिया जाता है। प्राचीनकाल में ग्राम के ‘पाँच’ प्रतिष्ठित व्यक्तियों को ‘पंच’ बनाया जाता था और वे जो निर्णय देते थे वह सभी को मान्य होता था। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् यहाँ पंचायती राज की व्यवस्था की गई। इस व्यवस्था के तीन स्तर है: ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद्। पंचायती राज के दो प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
- ग्रामों का विकास व उन्हें आत्मनिर्भर बनाना।
- पंचायती राज की स्थापना का दूसरा उद्देश्य ग्रामीणों को उनके अधिकार और कर्त्तव्य का ज्ञान कराना है।
प्रश्न 6.
नगरपालिका प्रणाली पर नगरीकरण का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जैसे-जैसे औद्योगीकरण बढ़ा है, वैसे-वैसे नगरीकरण भी बढ़ा है। नगरीकरण के बढ़ने का अर्थ है नगरों में आबादी का बढ़ना। नगरों में जनसंख्या की वृद्धि से नगरपालिका प्रणाली पर काफी प्रभाव पड़ा है। नगरपालिका की समस्याएँ बढ़ी हैं। इसमें सफाई, स्वास्थ्य, पानी, रोशनी, आवास, चिकित्सा संबंधी समस्याएँ उल्लेखनीय हैं। शहरों में भीड़-भाड़ व झोपड़ पट्टी व गंदगी भरी कालोनियाँ बढ़ी हैं तथा नगरों में बीमारी, प्रदूषण, हिंसा, असंतोष, अपराध बढ़े हैं। इन सबका प्रभाव नगरपालिकाओं के कार्यों पर भी पड़ा है। नगरपालिकाओं के कार्यों में वृद्धि हुई है तथा उनकी समस्याएँ बढ़ी हैं।
प्रश्न 7.
पंचायत समिति के कार्यों को लिखें।
उत्तर:
पंचायत समिति के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –
- पंचायत समिति अपने क्षेत्रों में पंचायतों के कार्यों की देख-रेख करती है।
- पंचायत समिति अपने क्षेत्र में घरेलू उद्योग-धन्धे को बढ़ावा देती है।
- पंचायत समिति सहकारी समितियों को प्रोत्साहन देती है।
- पंचायत समिति अपने क्षेत्र में सामुदायिक विकास परियोजना को लागू करती है।
प्रश्न 8.
नगरपालिकाओं के प्रमुख कार्य क्या हैं?
उत्तर:
नगरपालिकाओं के प्रमुख कार्यों को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है –
- शुद्ध और पर्याप्त जल की व्यवस्था करना।
- सार्वजनिक गलियों, स्थानों तथा नालियों की सफाई की व्यवस्था।
- अस्पतालों का रख-रखाव व सार्वजनिक चिकित्सा की व्यवस्था करना।
- जन्म-मृत्यु के पंजीकरण का व्यवस्था।
- सार्वजनिक सड़कों का निर्माण तथा उनकी मरम्मत की व्यवस्था करना।
- नगरपालिका क्षेत्र का निर्धारण, खतरनाक भवनों की सुरक्षा अथवा उनका उन्मूलन।
- यातायाता सुविधाओं का प्रावधान।
प्रश्न 9.
जिला परिषद् के किन्हीं दो कार्यों की चर्चा करें।
उत्तर:
जिला परिषद् के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –
- जिला परिषद् अपने क्षेत्र का पंचायत समितियों के कार्यों में समन्वय स्थापित करने का प्रयत्न करती है।
- जिला परिषद् अपने क्षेत्र की पंचायत समितियों के कार्यों की देख-रेख करती है।
- जिला परिषद् पंचायत समितियों द्वारा तैयार किए गए बजट को स्वीकार करती है तथा उनमें संशोधन के सुझाव दे सकती है।
- जिला परिषद् पंचायत द्वारा तैयार की गई विकासकारी योजनाओं में तालमेल उत्पन्न करती है।
प्रश्न 10.
ग्राम सभा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ग्राम सभा को पंचायती राज की नींव कहा जाता है। एक ग्राम सभा पंचायत के क्षेत्र के सभी मतदाता ग्राम सभा के सदस्य होते हैं। ग्राम सभा की एक वर्ष में दो सामान्य बैठकें होना आवश्यक है। ग्राम सभा अपना अध्यक्ष और कार्यकारी समिति का चुनाव करती है और अपने क्षेत्र के लिए विकास योजना तैयार करती है। व्यवहार में ग्राम सभा कोई विशेष कार्य नहीं करती क्योंकि इसकी बैठकें बहुत कम होती हैं।
प्रश्न 11.
नगर क्षेत्र समिति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
दस हजार से अधिक और बीस हजार से कम जनसंख्या वाले नगरों में स्थानीय स्वशासन के लिए नगर क्षेत्र समिति बनायी जाती है। इस प्रकार की नगर क्षेत्र समिति अथवा टाउन एरिया कमेटी के सदस्यों की संख्या राज्य सरकारें निश्चित करती हैं जिनका चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर संयुक्त निर्वाचन पद्धति द्वारा होता है। कुछ सदस्यों को राज्य सरकार मनोनीत करती है।
प्रश्न 12.
वार्ड समितियाँ किस प्रकार गठित की जाती हैं?
उत्तर:
नगरों के उन स्वशासी क्षेत्रों में जिनकी जनसंख्या तीन लाख या उससे अधिक हो, एक या अधिक वार्डों को मिलाकर वार्ड समितियाँ गठित की जानी चाहिए। राज्य विधान मण्डल विधि द्वारा वार्ड समितियों के संगठन, उनके प्रादेशिक क्षेत्र तथा जिस विधि द्वारा उनमें स्थान भरे जाने चाहिए, इन सबकी व्यवस्था कर सकता है।
प्रश्न 13.
नगरपालिका आयुक्त पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
नगरपालिका आयुक्त नगरपालिका के कार्यकारिणी विभाग का प्रमुख होता है। सामान्यतया वह राज्य सरकार द्वारा तीन वर्ष के लिए नियुक्त किया जाता है। इसलिए उसका वेतन और शर्ते राज्य सरकार द्वारा ही निर्धारित की जाती हैं। उसके वेतन का भुगतान नगरपालिका निधि से होता है। राज्य सरकार अथवा नगरपालिका परिषद् की सिफारिश पर आयुक्त का स्थानान्तरण किया जा सकता है।
प्रश्न 14.
नगर निगम की स्थायी समिति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्थायी समिति-स्थायी समिति दिल्ली नगरनिगम की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण समिति है। वास्तव में निगम की सम्पूर्ण कार्यपालिका शक्तियाँ इस समिति में ही निहित हैं। वित्त पर इसका पूर्ण नियंत्रण होता है। यह नये कर लगाने की सिफारिश कर सकती है तथा पुराने करों में परिवर्तन का सुझाव दे सकती है।
प्रश्न 15.
नगर निगम के महापौर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
महापौर तथा उपमहापौर नगर निगम के राजनीतिक प्रशासक होते हैं। निगम के सदस्य अपनी पहली बैठक में इनका चुनाव करते हैं। यह एक वर्ष के लिए चुने जाते हैं। महापौर का पद वैभवपूर्ण होता है। इसे नगर का प्रथम नागरिक कहा जाता है। वह नगरनिगमों की बैठकों की अध्यक्षता करता है और उसकी कार्यवाही को चलाता है। प्रशासन संबंधी मामलों में वह कमिश्नर से रिपोर्ट प्राप्त करता है। महापौर कमिश्नर और राज्य सरकार के बीच की कड़ी है। हा प्रकार से उसे प्रशासनिक अधिकार भी प्राप्त होते हैं। प्रशासन के साथ-साथ उसका गजिक जीवन में भी महत्वपूर्ण स्थान है। विदेशों से आए हुए अतिथियों का स्वागत उसी केर कमा जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
नगरपालिका आलिशप 1992 पर एक मंशिर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
नगरपालिका आंधनियम, 1992 भारत सरकार द्वारो पास किया गया एक महत्त्वपूर्ण का मानना स्थानीय प्रशासन को अत्यधिक लोकतांत्रिक बनाता है। इस कानून के अन्तर्गत नगरपालिकाओं के तीन वर्गों का प्रावधान किया गया है जो कि 20 हजार से तीन लाख की आबादी के बीच होगा। तीसरा वर्ग नगर निगम का है। यह तीन लाख से अधिक आबादी वाले नगरों में गठित किया गया है। इन बड़े नगर निगमों में जहाँ तीन लाख से अधिक आबादी है स्थानीय सरकार की दो स्तरीय प्रणाली का प्रावधान रखा गया है। पहला स्तर वार्ड समितियों का है तथा दूसरा नगर निगम का है। विस्तृत निगम क्षेत्र में वार्ड समिति और निगम के बीच की खाई के बीच सेतु के रूप में एक क्षेत्रीय समिति के प्रशासनिक गठन का प्रावधान है।
प्रश्न 2.
“शहरीकरण” के प्रमुख कारण क्या हैं?
उत्तर:
शहरीकरण के निम्नलिखित कारण हैं –
1. ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी है तथा शहरी क्षेत्रों में रोजगार के व्यापक अवसर लोगों को प्राप्त हैं
2. ग्रामीण क्षेत्रों में केवल जीवन की आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति हो सकती है, परंतु शहरी क्षेत्रों में अनेक प्रकार की सुविधाएँ तथा आकर्षण की वस्तुएँ मिलती हैं।
3. ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और उसके आधुनिकीकरण से सभी को पर्याप्त रूप में काम नहीं मिल पाता। इन सभी कारणों की वजह से लोगों का आर्कषण नगरों तथा कस्बों की तरफ अधिक तथा ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ घट रहा है। आधुनिकीकरण के कारण भारी संख्या में लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं।
प्रश्न 3.
1992 के 72 वें संविधान संशोधन अधिनियम के मुख्य प्रावधान क्या हैं?
उत्तर:
1992 के नगरपालिका अधिनियम अर्थात् 74 वें संविधान संशोधन अधिनियम के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं –
- नगरपालिकाओं में समाज के कमजोर वर्गों और महिलाओं को सार्थक प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है।
- संविधान की 12 वीं अनुसूची नगरीय संस्थाओं को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करती हैं।
- नगरीय संस्थाओं के लिए वित्तीय साधन जुटाने के लिए एक वित्तीय आयोग की स्थापना का प्रावधान है।
- नगरनिगम या नगरपालिकाओं के भंग हो जाने की दशा में नयी संस्थाओं के गठन के लिए 6 महीनों के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य होगा। चुनावों की जिम्मेवारी ‘राज्य निर्वाचन आयोग’ को सौंपी गयी है।
प्रश्न 4.
भारत के संदर्भ में सामुदायिक विकास से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सामुदायिक विकास योजना एक ऐसा आंदोलन है जिससे समुदाय के लोगों द्वारा अपने साधनों का प्रयोग करके अपने निजी प्रयत्नों से समस्त समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास का प्रयत्न किया जाय। इसमें ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले स्वयं इस बात को महसूस करें कि इनकी क्या आवश्यकताएँ और समस्याएँ हैं, उन्हें पूरा करने के लिए उनके पास क्या साधन हैं और इन साधनों का प्रयोग करके वे अपने जीवन का सामुदायिक रूप से किस प्रकार विकास कर सकते हैं।
भारत में सामुदायिक विकास योजना 1952 ई. में लागू की गई थी। ग्रामीण जीवन के विकास की यह योजना एक क्रांतिकारी और महत्त्वपूर्ण कदम है। यद्यपि भारत की जनसंख्या का लगभग 70% भाग गाँवों में रहता है फिर भी विदेशी शासन के दौरान ग्रामीण क्षेत्र के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। भारत में सामुदायिक विकास योजना की एक मुख्य विशेषता यह है इसका उद्देश्य ग्रामीण जीवन का चहुँमुखी विकास करना है और इसलिए इसके अन्तर्गत कृषि, सिंचाई, शिक्षा, उद्योग, पशुपालन, सफाई, चिकित्सा आदि सभी कार्य सम्मिलित हैं।
प्रश्न 5.
पंचायत राज की कार्य प्रणाली की दो कमियों को लिखें।
उत्तर:
पंचायती राज व्यवस्था भारत में निचले स्तर तक लोकतंत्र लाने का साधन है, परंतु इस व्यवस्था की अपनी विशेष कमजोरियाँ भी हैं। इन कमजोरियों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है –
1. ग्रामों में लोकतंत्र वातावरण का अभाव है। ग्रामवासी जाति भेदभाव से अभी ऊपर नहीं उठ पाए हैं।
2. क्योंकि ग्रामों में अधिकांश लोग अभी अशिक्षित हैं, उनसे अनेक प्रकार के राजनीतिक दायित्वों को निभाने की आशा नहीं की जा सकती। अशिक्षा के कारण ग्रामीण राजनीति काफी दूषित होने की स्थिति में आ जाती है। पंचायती व्यवस्था ने ग्रामीण राजनीति को दूषित कर दिया है।
प्रश्न 6.
भारत में नगरीय स्वशासी संस्थाओं के गठन का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नगरीय स्वशासी संस्थाओं का गठन-भारत में नगरों की स्वशासी संस्थाओं के गठन का वर्णन निम्न प्रकार है –
छोटे क्षेत्र जो ग्राम से नगर की ओर परिवर्तनोन्मुखी हैं उनके लिए अब संशोधित रूप से नगर पंचायत, छोटे नगरीय क्षेत्रों के लिए नगरपालिका तथा वृहत्तर नगरीय क्षेत्र के लिए नगर निगमों की स्थापना का प्रावधान है, परंतु औद्योगिक संस्थान क्षेत्र में आने वाले क्षेत्रों में नगरपालिका की स्थापना नहीं हो सकती तथा यहाँ या तो उस संस्थान ने नगरपालिका सेवाएँ उपलब्ध करायी हों या उपलब्ध कराने का प्रस्ताव हो।
नगरीय स्वशासी संस्थाओं में सभी स्थान क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाएंगे। राज्य विधान मण्डल विधि द्वारा प्रतिनिधित्व व्यवस्था कर सकता है। नगर की प्रत्येक स्वशासी संस्था में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के उनकी जनंसख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित रखे जाने चाहिए। अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इन स्थानों में एक तिहाई स्थान इन जातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे।
प्रश्न 7.
पंचायत समिति के आय के साधनों की चर्चा करें।
उत्तर:
पंचायत समितियों की आय के मुख्य साधन निम्नलिखित हैं –
- पंचायत समितियों को उनके क्षेत्र में इकट्ठा होने वाले लगान का कुछ भाग मिलता है।
- पंचायत समितियों को मेलों, पशुमंडियों तथा प्रदर्शनियों से आय प्राप्त होती है।
- पंचायत समिति लोगों को कई प्रकार के लाइसेंस देती है। लाइसेंस शुल्क से भी इन्हें आय प्राप्त होती है।
- पंचायत समितियों का अपनी सम्पत्ति से भी आय प्राप्त होती है।
- पंचायत समितियाँ पुस्तकालयों, वाचनालयों तथा मनोरंजन के केन्द्रों पर सदस्यता शुल्क लगाती हैं, अत: इससे भी उन्हें आय प्राप्त होती है।
- पंचायत समितियों को राज्य सरकार से वार्षिक अनुदान प्राप्त होता है।
प्रश्न 8.
नगर निगम की आय के दो प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं –
उत्तर:
नगर निगम की आय के दो प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं –
- जल कर-नगर निगम मकान तथा दुकान के कर मूल्य का लगभग 3 प्रतिशत उसके मालिकों से जल कर के रूप में वसूल करता है।
- गृहकर-नगर निगम गृहस्वामियों से उनकी जायदाद के कर के मूल्य का 11 प्रतिशत गृह दर रूप में वसूल करता है।
- मनोरंजन कर-नगर निगम विभिन्न सिनेमा घरों, नाटक घरों, संगीत सम्मेलनों, सर्कस आदि मनोरंजन के साधनों पर कर लगाती है। मनोरंजन कर नगरनिगम की आय का एक प्रमुख साधन है।
प्रश्न 9.
नगरीय स्वशासन संस्थाओं पर राज्य सरकार के नियंत्रण पर एक टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
नगरपालिका पर राज्य सरकार का नियंत्रण-नगरपालिका के कार्यों में जिलाधीश या डिप्टी कमिश्नर का अब उतना हस्तक्षेप देखने को नहीं मिलता जितना स्वतंत्रता से पहले था। किन्तु अब भी जिलाधीश राज्य सरकार की अनुमति से नगरपालिका के उन निर्णयों को लागू होने से रोक सकता है जो उसकी दृष्टि में जन सुरक्षा या जन स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं है। नगरीय स्वशासन संस्थाओं के हिसाब-किताब की जाँच. सरकारी ऑडीटर करते हैं। नगरनिगम या नगरपालिकाएँ अपने कार्यकाल की समाप्ति से पहले भंग की जा सकती हैं पर उस स्थिति में 6 महीनों के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य होगा। नगरीय स्वशासन संस्थाओं के चुनावों की जिम्मेदारी ‘राज्य निर्वाचन आयोग’ को सौंपी गयी है।
प्रश्न 10.
नगरनिगम के दो अनिवार्य कार्य बताइए।
उत्तर:
नगरनिगम के दो अनिवार्य कार्य निम्नलिखित हैं:
1. सफाई से संबंधित कार्य:
- नगर में सफाई रखने का कार्यभार नगर निगम को ही संभालना है। यह कूड़ा-करकट इकट्ठा करवाकर नगर से बाहर फेंकवाता है।
- नगर के गन्दे पानी के निवास के लिए जमीन के अंदर नालियाँ बनाना नगर निगम का काम है।
- नगर के गन्दे पानी के निकास के लिए जमीन की सफाई कर्मचारियों द्वारा की जाती है।
2. स्वास्थ्य संबंधित कार्य:
- अस्पतालों की स्थापना और उनकी व्यवस्था करना।
- भयंकर रोगों को फैलने से रोकना।
- चेचक और हैजा जैसी बीमारियों के टीके लगवाना।
- स्त्रियों के लिए प्रसूति केन्द्र और बच्चों के लिए कल्याण केन्द्र खोलना।
- खाने की वस्तुओं में मिलावट रोकना।
- नशीली वस्तुओं की बिक्री पर रोक लगाना।
प्रश्न 11.
पंचायती राज पर 11वें वित्त आयोग की सिफारिशों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ग्यारवें वित्त आयोग ने वर्ष 2000-2005 के दौरान पंचायतों को 8000 करोड़ रुपये (प्रति वर्ष 1600 करोड़ रुपये) नागरिक सेवाओं के विकास के लिए हस्तान्तरित करने की सिफारिश की है। पंचायतों की वित्तीय स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए निम्न सिफारिशें भी की गयीं –
- वित्त आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद राज्य 6 माह के भीतर की गयी कार्यवाही की रिपोर्ट विधान मंडल में रखेंगे।
- पंचायतों की सभी श्रेणियों के लिए लेखा परीक्षण एवं नियंत्रण, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को सौंपे जाएँ।
- भूमि एवं कृषि फार्म की आय पर कर को स्थानीय निकायों द्वारा समुचित रूप से लगाकर इस धन का प्रयोग नागरिक सेवाओं में सुधार के लिए किया जाय।
- राज्य के लेखाशीर्ष पर 6 पदों का सृजन किया जाय जिनमें 3 पंचायती राज्य की: संस्थाओं के लिए तथा 3 शहरी स्थानीय संस्थाओं के लिए हों।
- पंचायतों के पास जहाँ प्रशिक्षित लेखाकार नहीं है। प्रत्येक पंचायत पर 4000 रु. की राशि प्रतिवर्ष लेखों के रख-रखाव पर खर्च की जाय।
- पंचायतों के वित्त पोषण के आँकड़ों को जिला, राज्य तथ केन्द्र स्तर पर और कम्प्यूटर तथा टी.वी. सैट के माध्यम से जोड़कर विकसित किया जाय।
प्रश्न 12.
नगरनिगम अथवा नगरपालिका का संविधान की 12 वीं अनुसूची में गिनाए गए सामाजिक-आर्थिक विकास संबंधी कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर
74 वें संशोधन ने संविधान में एक नयी अनुसूची (12 वीं अनुसूची) जोड़ दी है, जिसमें कुछ ऐसे कार्यों का विवरण मिलता है जो अब तक नगरीय संस्थाएँ सम्पन्न नहीं किया करती थी। अब नगरनिगम या नगरपालिकाओं के कार्यों को तीन वर्गों में रखा जाता है –
- अनिवार्य कार्य
- ऐच्छिक कार्य
- आर्थिक व सामाजिक विकास संबंधी कार्य
आर्थिक व सामाजिक विकास सम्बन्धी कार्य –
1. संविधान की 12 वीं अनुसूची नगरीय स्वशासन संस्थाओं के कार्यों का उल्लेख करती है। अब नगरनिगम व नगरपालिकाओं को कुछ नये दायित्व सौंपे गए हैं जैसे –
- सामाजिक-आर्थिक विकास की योजनाएँ तैयार करना
- समाज के कमजोर वर्गों और अपंग व मानसिक रूप से अशक्त लोगों के हितों की रक्षा करना
- गरीबी निवारण कार्यक्रम को लागू करना
- गन्दी बस्तियों को उन्नत करना
- पर्यावरण को सुरक्षित बनाना
शहरों में रहने वाले गरीबों को रोजगार देने की योजनाएँ नगरपालिकाओं द्वारा लागू की जाती है। 1989 में लागू की गई ‘नेहरू रोजगार योजना’ एक ऐसी ही योजना है। कमजोर भवन जिनमें लोगों के जीवन को खतरा हो उन्हें गिरवाना तथा लोगों के लिए मकान बनवाना भी नगर निगम के कार्यों में आते हैं।
प्रश्न 13.
नगरनिगम के किन्हीं दो अनिवार्य तथा किन्हीं दो ऐच्छिक कार्यों का वर्णन किजिए।
उत्तर:
नगरनिगम के दो अनिवार्य कार्य निम्नलिखित हैं –
1. सफाई से संबंधित कार्य:
- नगर में सफाई रखने का कार्यभार नगरनिगम संभालता है। यह कूड़ा-करकट इकट्ठा करवाकर नगर से बाहर फेंकवाता है।
- नगर के गन्दे पानी के निकास के लिए जमीन के अंदर नालियाँ बनाना नगरनिगम का काम है।
- नगर की बस्तियों की सफाई भी नगरनिगम के सफाई कर्मचारी द्वारा ही की जाती है।
2. स्वास्थ्य संबंधी कार्य –
- अस्पतालों की स्थापना और उनकी व्यवस्था करना।
- भयंकर रोगों को फैलने से रोकना।
- चेचक और हैजा जैसी बीमारियों के टीकें लगवाना।
- स्त्रियों के लिए प्रसूति केन्द्र तथा बच्चों के लिए कल्याण-केन्द्र खोलना।
- खाद्य वस्तुओं में मिलावट को रोकना और मिलावट करने वालों को सजा दिलाना।
- नशीली वस्तुओं के बेचने पर रोक लगाना और इस संबंध में कानून बनाना।
प्रश्न 14.
पंचायतों के संगठन का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंचायतों का संगठन:
73 वें संशोधन द्वारा पंचायतों के गठन के लिए त्रिस्तरीय ढाँचा सुझाया गया। प्रत्येक पंचायत में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गई। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित किए गए। पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्ष रखा गया है। यदि किसी कारण से वे भंग की गई तो 6 महीने के अन्तर्गत उनके चुनाव कराने होंगे। पंचायत में निर्वाचित होने के लिए निम्नतम आयु 21 वर्ष रखी गयी है।
पंचायतों के निर्वाचन का संचालन राज्य का निर्वाचन आयोग करेगा। राज्य विधान मण्डल पंचायतों के गठन संबंधित व्यवस्था करता है। पंचायत के सभी स्थान क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाते हैं। खण्ड ओर जिला स्तर की पंचायतों, ग्राम पंचायतों में ग्राम पंचायतों के अध्यक्षों के प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गई है। उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले राज्यसभा, लोकसभा तथा विधान सभा के सदस्य भी खण्ड पंचायत तथा जिला पंचायत के सदस्य होते हैं।
प्रश्न 15.
पंचायत समिति का गठन कैसे होता है इसके कौन-कौन से कार्य हैं?
उत्तर:
पंचायत समिति पंचायती राज व्यवस्था का मध्यवर्ती स्तर है। पंचायत समिति की संरचना विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न तरह से होता है। बिहार में पंचायन समिति में अनेक तरह के सदस्य होते हैं। लोकसभा और विधान सभा के सदस्य भी पंचायत समिति के सदस्य होता हैं जिन्हें सहयोगी सदस्य कहा जाता है। ग्राम पंचायत के अन्तर्गत परिषद् में वैसे सदस्य कहा जाता है। राज्यसभा एवं विधान परिषद् में वैसे सदस्य जो उस ग्राम पंचायत के अन्तर्गत निर्वाचक के रूप में निबंधित हो, पंचायत समिति के सदस्य होते हैं एवं पंचायत समिति के क्षेत्र में पड़ने वाले सभी ग्राम पंचायतों के मुखिया इसके सदस्य होते हैं। पंचायत समिति का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। पंचायत समिति के प्रधान ‘प्रमुख’ होते हैं जो पंचायत समिति के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किये जाते हैं।
पंचायत समिति निम्नलिखित कार्य करती हैं –
- समिति अपने क्षेत्र के सड़कों का निर्माण एवं रख-रखाव का कार्य करती है। वह इसमें कोई संशोधन नहीं कर सकता है बल्कि आवश्यक सुझाव ही दे सकता है।
- कार्यपालिका शक्तियाँ-कार्यपालिका शक्तियाँ के संबंध में भी बिहार विधान परिषद को सीमित शक्तियाँ प्राप्त हैं। इस शक्ति के अंतर्गत विधान परिषद मंत्रियों से केवल स्पष्ट है कि बिहार विधान परिषद की शक्तियाँ अत्यंत सीमित है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
स्थानीय शासन का महत्त्व बताइए तथा नगरनिगम के आवश्यक कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय शासन का महत्त्व:
स्थानीय मामलों का प्रबंध करने वाली संस्थाओं को स्वशासन संस्थाएँ कहते हैं। स्थानीय संस्थाएँ किसी देश में लोकतंत्र की सफलता के लिए बहुत हत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्थानीय स्वायत्त शासन के द्वारा नागरिकों तथा प्रशासन में सम्पर्क बढ़ता है। ग्रामों तथा नगरों के कर्मचारियों को भी प्रशासन में भाग लेने का अवसर मिल जाता है।
ये दोनों बातें लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक हैं। स्थानीय स्वशासन द्वारा किसी विशेष स्थान के लोग अपनी समस्याओं को स्वयं हल कर लेते हैं। स्थानीय संस्थाओं का सीधा संबंध नागरिकों के दैनिक जीवन से होता है। अतः स्थानीय समस्याओं का सही समाधान होता है। स्थानीय लोगों में भी राजनीतिक जागरुकता आती है।
नगर निगम के प्रमुख कार्य:
नगर निगम दो प्रकार के कार्य करता है।
1. अनिवार्य कार्य तथा
2. ऐच्छिक कार्य।
अनिवार्य कार्य नगर निगम के सबसे महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक कार्य होते हैं।
1. सफाई से संबंधित कार्य:
- नगर में सफाई रखने का कार्य नगर निगम संभालता है। यह कूड़ा-करकट एकत्र कर नगर से बाहर फिकवाता है।
- नगर के गन्दे पानी के निकास के लिए जमीन के अंदर नालियाँ बनाना नगर निगम का काम है।
- नगर की बस्तियों की सफाई नगर निगम के सफाई कर्मचारियों द्वारा की जाती है।
2. बिजली का प्रबंध:
- नगर निगम नगरवासियों के लिए बिजली का प्रबंध करता है।
- नगर निगम सड़कों और गलियों में बिजली की रोशनी की व्यवस्था करता है।
- जलापूर्ति-नगर निगम अपने नागरिकों के लिए जलापूर्ति की व्यवस्था करता है।
- सड़क यातायात सेवा भी नगरनिगम का अनिवार्य कार्य है।
- शिक्षा प्रबंध-विशेष तौर पर प्राइमरी तथा माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा का प्रबंध करता है।
इनके अतिरिक्त सड़कों का निर्माण, उनका रखरखाव, उनके नाम डालना और उन पर नम्बर डालना, अस्पतालों, प्रसव केन्द्र, शिशु कल्याण केन्द्रों का निर्माण, टीका लगाने का प्रबंध तथा जन्म-मृत्यु पंजीकरण इत्यादि नगरनिगम के आवश्यक कार्य हैं।
प्रश्न 2.
पंचायती राज व्यवस्था के सामने विद्यमान विभिन्न समस्याएँ लिखिए तथा इन्हें सुधारने के लिए सुझाव दीजिए।
उत्तर:
पंचायती राज व्यवस्था के सामने विद्यमान विभिन्न समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
1. अशिक्षा:
निर्धनता और अशिक्षा भारत की सबसे मुख्य समस्याएँ हैं। गाँव के अधिकतर लोग अशिक्षित ही नहीं, निर्धन भी हैं। वे अपने हस्ताक्षर तक नहीं कर सकते। ऐसे लोग न तो स्वशासन का अर्थ समझते हैं और न ही स्वशासन करने की योग्यता रखते हैं। वे पंचायत के कार्य में रुचि नहीं लेते। वे चुनाव में भी विशेष रुचि नहीं लेते।
यदि वे पंच चुन भी लिए जाएँ तो पंचायतों की बैठकों में उपस्थित नहीं होते। बस गाँव के एक-दो पढ़े-लिखे लोग जो चालाक भी होते हैं, सारे गाँव वालों को जैसा चाहे नचाते हैं, अतः गाँव में शिक्षा प्रसार विशेष रूप से प्रौढ़ शिक्षा का प्रबंध बहुत आवश्यक है। ग्राम पंचायत के सदस्यों की योग्यता में भी कुछ न कुछ शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।
2. सांप्रदायिकता:
सारे भारत में ही सांप्रदायिकता का विष फैला हुआ है और गाँव में तो यह और भी अधिक प्रबल है। सदस्य जाति-पाँति के आधार पर चुने जाते हैं, योग्यता के आधार पर नहीं। पंच चुने जाने के बाद भी जाति-पाँति के झगड़ों से बच नही पाते। इस तरह सीधे-सादे ग्रामीण पंचायत राज में विश्वास खो बैठते हैं। अतः इसके सुधार के लिए आवश्यक है कि शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ ग्रामवासियों को समझाया जाए कि उन सबकी समस्याएँ एक हैं। निर्धनता, भुखमरी, बीमारी बाढ़, सूखा सभी को समान रूप से सताते हैं। अतः सबको भेदभाव भुलाकर व संगठित होकर गाँवों का विकास और कल्याण करना चाहिए।
3. गुटबंदी:
कुछ लोग जो थोड़े चालाक होते हैं, पंचायत में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए गुट बना लेते हैं और चुनाव में यह गुटबंदी और अधिक प्रखर हो जाती है और गाँव वाले झगड़ों में फँस जाते हैं।
4. सरकार का अधिक हस्तक्षेप और नियंत्रण:
बहुत से समझदार लोग पंचायतों के कार्यक्रम में इसलिए भी रुचि नहीं लेते कि वे जानते हैं कि पंचायतों के पास न कोई विशेष स्वतंत्रता है, न अधिकार। सरकार अपने अधिकारों द्वारा पंचायतों के कामों में हस्तक्षेप करती रहती है। यदि एक पंचायत में उस दल का बहुमत है जो दल राज्य सरकार में विरोधी दल है तो राज्य मंत्रिमंडल उस पंचायत को ठीक तरह से कार्य नहीं करने देता। इस कारण लोगों का उत्साह पंचायती राज से कम होने लगता है।
5. धन का अभाव:
धन के अभाव में गाँव की योजनाएँ पूरी नहीं हो पाती। स्कूल नहीं बन पाते, गलियाँ, पुलिया, सड़क आदि की मरम्मत नहीं हो पाती। सरकार को चाहिए कि इन संस्थाओं को अधिक धन अनुदान के रूप में दे।
6. निर्धनता:
गाँव के अधिकांश लोग निर्धनता के शिकार होते हैं। वे न तो पंचायत को कर दे सकते हैं और न ही पंचायत के कामों में रुचि ले सकते हैं, क्योंकि दिन भर वे अपनी नमक, तेल, लकड़ी की चिंता में लगे रहते हैं। अतः वे गाँव के कल्याण या विकास की बात सोच भी नहीं सकते।
7. ग्राम सभा का प्रभावहीन होना:
ग्राम सभा पंचायती राज की प्रारंभिक इकाई है और पंचायती राज की सफलता बहुत हद तक इस संस्था के सक्रिय रहने पर निर्भर करती है, परंतु घ्यावहारिक रूप से इस संस्था की न तो नियमित बैठकें होती हैं और न ही गाँव के लोग इसमें रुचि लेते हैं।
8. राजनीतिक दलों का अनुचित हस्तक्षेप:
यद्यपि राजनीतिक दल पंचायत के चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करते परंतु फिर भी वे इन संस्थाओं के कार्यों में हस्तक्षेप किए बिना नहीं रह सकते। दलों का हस्तक्षेप इन संस्थाओं में गुटबंदी को और भी अधिक तीव्र कर देता है, क्योंकि दलों के सामने सार्वजनिक हित की अपेक्षा अपने सदस्यों का हित अधिक प्रिय होता है।
प्रश्न 3.
भारत में नगरनिगम की आय के विभिन्न साधन क्या हैं?
उत्तर:
नगरनिगम की आय के प्रमुख साधन निम्नलिखित है –
- जल कर: नगरनिगम मकान तथा दुकानों के कर. मूल्य का लगभग 3 प्रतिशत उनके मालिकों से जल कर के रूप में वसूलता है।
- गृहकर: नगरनिगम गृहस्वामियों से उनकी सम्पत्ति के कर मूल्य का 11 प्रतिशत गृह कर के रूप में वसूल करता है।
- सफाई कर: नगरनिगम सम्पत्ति के कर मूल्य का एक प्रतिशत साफ-सफाई के रूप में वसूल करता है।
- अग्निशमन कर: नगरों में सम्पत्ति के कर मूल्य का 1/2 प्रतिशत अग्निशमन कर के रूप में लिया जाता है।
- भवन के नक्शों पर कर: भवन निर्माण करने से पूर्व नगरनिगम में भवन का नक्शा पास कराना पड़ता है। भवन निर्माण करने के इच्छुक व्यक्ति को नगरनिगम से नक्शा पास कराने का शुल्क जमा कराना होता है।
- मनोरंजन कर: नगरनिगम विभिन्न सिनेमाघरों, नाटकों, संगीत सम्मेलनों, सर्कस आदि मनोरंजन साधनों पर कर लगाता है। मनोरंजन कर नगरनिगम की आय का एक प्रमुख साधन है।
प्रश्न 4.
भारत में नगरपालिकाओं की रचना और उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
नगरपालिका की रचना और संगठन-नगरपालिका के तीन प्रधान अंग हैं –
1. परिषद् अथवा आमसभा:
नगरपालिका के अधिकांश सदस्यों का चुनाव नगर के आम मतदाताओं द्वारा किया जाता है। नयी व्यवस्था के तहत नगरपालिका के कुछ सदस्य राज्य सरकार द्वारा नामांकित किए जाएंगे। केवल ऐसे व्यक्ति ही नामांकित किए जाएंगे। जो निकाय प्रशासन का ज्ञान या अनुभव रखते हों अथवा संसद या विधान सभा में वे उन इलाकों का प्रतिनिधित्व करते हों जो नगरपालिका के क्षेत्र में शामिल हैं।
नगरपालिका के सदस्य को नगर पार्षद कहते हैं। नगरपालिका में कितने सदस्य होंगे, इसका निर्णय राज्य सरकार करती है। उत्तर प्रदेश की बड़ी नगरपालिकाओं की सदस्य संख्या 40-50 तथा छोटी नगरपालिकाओं की सदस्य संख्या 20 30 के लगभग होती है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण की व्यवस्था है।
एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। सभी वयस्क स्त्री-पुरुष मत देने का अधिकार रखते हैं। केवल ऐसे व्यक्ति ही चुनाव में खड़े हो सकते हैं जिनका नाम मतदाता सूची में है तथा जिनकी ओर नगरपालिका का कोई कर बकाया न हो। नयी व्यवस्था (74 वें संशोधन) में नगरपालिकाओं का कार्यकाल 5 वर्ष है। यदि नीरपालिका किसी कारण से भंग कर दी जाती है तो राज्यों के लिए यह आवश्यक कर दिया गया है कि 6 महीने के भीतर नयी नगरपालिका का चुनाव अवश्य कराएँ।
2. अध्यक्ष:
नगरपालिका के अध्यक्ष को चेयरमैन भी कहते हैं। इसका चुनाव पार्षदों द्वारा किया जाता है। यह परिषद् की बैठक बुलाता है और उसकी अध्यक्षता करता है। अध्यक्ष कार्यकारी अधिकारी, स्वास्थ्य अधिकारी तथा इंजीनियर को छोड़कर शेष कर्मचारियों को निलम्बित भी कर सकता है।
3. कार्यकारी अधिकारी तथा अन्य अधिकारी:
नगरपालिका के नित्य प्रति के कार्यों की देखभाल एक कार्यकारी अधिकारी करता है। वह नगरपालिका अधिकारियों के राज्य संवर्ग से अथवा राज्य सिविल सर्विस से लिया जाता है। कार्यकारी अधिकारी के अलावा नगरपालिका के और भी कई. महत्त्वपूर्ण अधिकारी हैं, जैसे स्वास्थ्य अधिकारी, इंजीनियर व शुल्क अधिकारी आदि।
नगरपालिका के कार्य-नगरनिगम की भांति नगरपालिका के तीन प्रकार के कार्य होते हैं –
(I) अनिवार्य कार्य:
1. स्वास्थ्य व सफाई:
- सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण करना तथा मल निकासी के लिए नाले व बड़ी-बड़ी नालियाँ बनवाना।
- अस्पतालों, चिकित्सा केन्द्रों तथा मातृ व शिशु कल्याण केन्द्रों की स्थापना।
- खाने-पीने की चीजों में मिलावट की रोकथाम।
- गली-सड़ी चीजों की बिक्री पर रोक लगाना।
- चेचक, हैजा व अन्य बीमारियों की रोकथाम के लिए टीके लगवाना।
2. शिक्षा:
नगरपालिका प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों की स्थापना करती है। नगरपालिका प्राथमिक स्तर तक निःशुल्क शिक्षा का प्रबंध करती है तथा गरीब व मेधावी छात्रों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान करती हैं।
3. पानी व बिजली की आपूर्ति:
नगरपालिका पीने के पानी का प्रबंध करती है। साथी ही घरेलू व औद्योगिक उपयोग के लिए बिजली का प्रबंध करती है। सड़कों व गलियों में प्रकाश की व्यवस्था करती है।
4. सार्वजनिक निर्माण के कार्य:
नगरपालिका सार्वजनिक निर्माण का भी कार्य करती है।
जैसे –
- नलियों व सड़कों का निर्माण करना।
- पुल या पुलिया बनवाना।
- बाजार व दुकानों का निर्माण।
- पाठशालाएँ बनवाना।
- बारात घर, टाउन हॉल व कम्युनिटी हाल का निर्माण।
5. ऐच्छिक कार्य:
- अग्निकांड से नागरिकों की रक्षा।
- परिवार कल्याण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
- सार्वजनिक पार्कों का निर्माण।
- पुस्तकालयों व वाचनालयों की स्थापना।
- जिम्नेजियम और स्टेडियम बनवाना।
- अजायबघर बनवाना।
- प्रदर्शनी, मेलों और हाटों का प्रबंध करना।
3. सामाजिक और आर्थिक विकास संबंधी कार्य:
- सामाजिक-आर्थिक विकास की योजनाएँ तैयार करना।
- पर्यावरण को सुरक्षित बनाना।
- समाज के कमजोर वर्गों और अपंग व मानसिक रूप से अशक्त लोगों के हितों की रक्षा करना।
- गरीबी निवारण कार्यक्रम को लागू करना।
- गन्दी बस्तियों को उन्नत करना।
प्रश्न 5.
भारत में पंचायती राज के त्रिस्तरीय ढाँचे की कार्यप्रणाली की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पंचायती राज से हमारा अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसके अनुसार गाँव के लोगों को अपने गाँवों का प्रशासन तथा विकास स्वयं अपनी इच्छानुसार करने का अधिकार दिया गया है। गाँव के लोग अपने इस अधिकार का उपयोग पंचायत द्वारा करते हैं। इसलिए इसे ‘पंचायती राज’ कहा जाता है। पंचायती राज में गाँव के विकास के लिए तीन संस्थाएँ काम करती हैं –
- गाँव में पंचायत
- खण्ड स्तर पर खण्ड समिति तथा
- जिला स्तर पर जिला परिषद्
1. ग्राम पंचायत:
ग्राम पंचायत ग्राम सभा की कार्यपालिका होती है। इसके सदस्यों का निर्वाचन ग्राम सभा द्वारा संयुक्त निर्वाचन के आधार पर किया जाता है। ग्राम पंचायत के प्रधान को सरपंच कहते हैं। इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –
- ग्राम पंचायत गाँव में स्वच्छ पानी की व्यवस्था करती है।
- सफाई का प्रबंध व बीमारियों की रोकथाम करती हैं।
- बच्चों की शिक्षा के लिए पाठशालाओं का प्रबंध करती है।
- सड़कों, गलियों, नालियों की मरम्मत तथा उनके निर्माण का प्रबंध करती है।
- कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देती है।
- ग्राम पंचायत कृषि की उन्नति के लिए अच्छे बीजों, उत्तम खाद और उन्नत औजारों का प्रबंध करती है।
2. पंचायत समिति:
पंचायत समिति एक खण्ड की पंचायत होती है। यह खण्ड लगभग 100 ग्रामों का होता है। पंचायत समिति की सदस्यता इस प्रकार होती है –
- खण्ड या क्षेत्र की सभी ग्राम पंचायतों के सरपंच।
- नगरपालिकाओं और सहकारी समितियों के अध्यक्ष।
- उस क्षेत्र का खण्ड विकास अधिकारी।
- उस क्षेत्र के निर्वाचित सदस्य, विधान सभा और विधान परिषद् के सदस्य।
73 वें संशोधन के बाद पंचायत समिति के सदस्यों का चुनाव सीधे जनता द्वारा होता है। पंचायत समिति के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –
- अपने क्षेत्र की कृषि तथा छोटे उद्योगों की उन्नति करना।
- अपने क्षेत्र में सफाई तथा स्वास्थ्य का प्रबंध करना तथा बीमारियों की रोकथाम करना।
- अपने क्षेत्र की विकास योजनाओं को लागू करना।
3. जिला पंचायत:
पंचायती राज योजना में जिला पंचायत सर्वोच्च स्तर की संस्था है। जिला पंचायत के सदस्यों का निर्वाचन भी सीधे जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से कराया जाता है। इसकी अवधि पाँच वर्ष की होती है। यदि प्रदेश सरकार पाँच वर्ष से पहले इसे भंग करती है तो भी 6 माह के भीतर नया चुनाव कराना अनिवार्य है। अनुसूचित जाति व जनजातियों की जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की व्यवस्था है। महिलाओं को प्रत्येक वर्ग में एक तिहाई सीटों का आरक्षण दिया गया है। जिला पंचायत के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –
- जिले की ग्राम पंचायतों और पंचायत समितियों के कार्यों में समन्वय स्थापित करना।
- पंचायत समितियों के बजट कार्यों का निरीक्षण करना।
- पंचायत समितियों के बजट को स्वीकृत करना।
- जिले के लिए निर्धारित सभी कृषि सम्बन्धी कार्यक्रम, रचनात्मक तथा रोजगार लक्ष्यों, को सही रूप में क्रियान्वित करना।
प्रश्न 6.
भारत में पंचायती राज अधिक सफल नहीं हुआ है। इसके क्या कारण हैं?
उत्तर:
भारत में स्थापित पंचायती राज अधिक सफल नहीं हुआ है। इसके निम्नलिखित कारण रहे हैं –
1. अशिक्षा:
निर्धनता और अशिक्षा भारत की सबसे मुख्य समस्याएँ हैं। गाँव के अधिकतर लोग अशिक्षित ही नहीं, निर्धन भी हैं। वे अपने हस्ताक्षर तक नहीं कर सकते। ऐसे लोग न तो स्वशासन का अर्थ समझते हैं और न ही स्वशासन करने की योग्यता रखते हैं। वे पंचायत के कार्य में कोई रुचि नहीं लेते। वे चुनाव में भी विशेष रुचि नहीं लेते।
यदि वे पंच चुन भी लिए जाएँ तो पंचायत की बैठकों में उपस्थित नहीं होते। बस गाँव के एक-दो पढ़े-लिखे लोग, जो चालाक भी होते हैं। सारे गाँव वालों को जैसा चाहें, नचाते हैं। अतः गाँव में शिक्षा प्रसार विशेष रूप से प्रौढ़ शिक्षा का प्रबंध बहुत आवश्यक है। ग्राम पंचायत के सदस्यों की योग्यता में भी कुछ न कुछ शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।
2. सांप्रदायिकता:
सारे भारत में ही सांप्रदायिकता का विष फैला हुआ है और गाँवों में तो यह और भी अधिक प्रबल है। सदस्य जाति-पाति के आधार पर चुने जाते हैं योग्यता के आधार पर नहीं। पंच चुने जाने के बाद भी वे जाति-पाति के झगड़ों से बच नहीं पाते। इस तरह सीधे-सादे ग्रामीण पंचायत राज में विश्वास खो बैठते हैं। अतः इसके सुधार के लिए आवश्यक है कि शिक्षा के, प्रसार के साथ-साथ ग्रामवासियों को समझाया जाए कि उन सबकी समस्याएँ एक हैं। निर्धनता, भुखमरी, बीमारी, बाढ़, सूखा सभी को समान रूप से सताते हैं।
3. गुटबंदी:
कुछ लोग जो थोड़े चालाक होते हैं, पंचायत में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए गुट बना लेते हैं और चुनाव में यह गुटबंदी और अधिक प्रखर हो जाती है और गाँव वाले झगड़ों में फँस जाते हैं।
4. सरकार का अधिक हस्तक्षेप और नियंत्रण:
बहुत से समझदार लोग पंचायतों के कार्यक्रम में इसलिए भी रुचि नहीं लेते कि वे जानते हैं कि पंचायतों के पास न कोई विशेष स्वतंत्रता है, न अधिकार। सरकार अपने अधिकारों द्वारा पंचायतों के कामों में हस्तक्षेप करती रहती है। यदि एक पंचायत में उस दल का बहुमत है जो दल राज्य सरकार में विरोधी दल का तो राज्य मंत्रिमंडल उस पंचायत को ठीक तरह से कार्य नहीं करने देता। इस कारण लोगों का उत्साह पंचायती राज से कम होने लगता है।
5. धन का अभाव:
धन के अभाव में गाँव की योजनाएँ पूरी नहीं हो पाती। स्कूल नहीं बन पाते, गलियाँ, पुलिया, सड़क आदि की मरम्मत नहीं हो पाती। सरकार को चाहिए कि इन संस्थाओं को अधिक धन अनुदान के रूप में दे।
6. निर्धनता:
गाँव के अधिकांश लोग निर्धनता के शिकार होते हैं। वे न तो पंचायत को कर दे सकते हैं और न ही पंचायत के कामों में रुचि ले सकते हैं, क्योंकि दिन भर वे अपनी नमक, तेल, लकड़ी की चिन्ता में लगे रहते हैं। अत: वे गाँव के कल्याण या विकास की बात सोच भी नहीं सकते।
7. ग्राम सभा का प्रभावहीन होना:
ग्राम सभा पंचायती राज की प्रारंभिक इकाई है और पंचायती राज की सफलता बहुत हद तक इस संस्था के सक्रिय रहने पर निर्भर करती है, परंतु व्यावहारिक रूप में इस संस्था की न तो नियमित बैठकें होती है और नहीं गाँव के लोग इसमें रुचि लेते हैं।
8. राजनीतिक दलों का अनुचित हस्तक्षेप:
यद्यपि राजनीतिक दल पंचायत के चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करते, परंतु फिर भी वे इन संस्थाओं के कार्यों में हस्तक्षेप किए बिना नहीं रह सकते। दलों का हस्तक्षेप इन संस्थाओं में गुटबंदी को और भी अधिक तीव्र कर देता है क्योंकि दलों के सामने सार्वजनिक हित की अपेक्षा अपने सदस्यों का हित अधिक प्रिय होता है।
9. अयोग्य तथा लापरवाह कर्मचारी:
स्थानीय संस्थाएँ अपने दैनिक कार्यों के लिए अपने कर्मचारियों पर निर्भर करती हैं। चूँकि इन कर्मचारियों की योग्यता, वेतन और भत्ते आदि कम होते हैं तथा इनकी सेवा की शर्ते भी अन्य सरकारी कर्मचारियों के मुकाबले में इतनी अच्छी नहीं होती। वह प्राय: आलसी, अयोग्य तथा लापरवाह होते हैं। वेतन कम होने के कारण वे रिश्वत आदि का भी लालच करते हैं जिससे प्रशासनिक कुशलता गिरती है।
प्रश्न 7.
नगर पंचायत की रचना और कार्य बताइए।
उत्तर:
भारत में शहरी क्षेत्रों में स्थानीय संस्थाओं का वर्तमान गठन संविधान के 74 वें संशोधन अधिनियम पर आधारित है। संविधान के 74वें संशोधन द्वारा प्रत्येक राज्य में तीन प्रकार की नगरपालिकाएं स्थापित की गयी हैं –
- नगर पंचायत
- नगरपालिका
- नगरनिगम
नगर पंचायत:
जो क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र बन रहा है, वहाँ नगर पंचायत की स्थापना होती है। अधिसूचित क्षेत्र समिति को अब नगर पंचायत की संज्ञा दी जा सकती है।
रचना:
नगर पंचायत के अधिकांश सदस्य आम मतदाताओं द्वारा चुने जाते हैं। कुछ सदस्य राज्य सरकार द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। केवल ऐसे व्यक्ति ही मनोनीत किए जाएंगे जो म्युनिसिपल प्रशासन का ज्ञान या अनुभव रखते हैं अथवा संसद या विधान सभा में उन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हों जो नगर पंचायत के क्षेत्र में शामिल हैं। नगर पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष है। यदि किसी कारण से नगर पंचायत भंग कर दी जाय तो 6 महीने में नयी नगर पंचायत के गठन के लिए चुनाव हो जाता चाहिए। नगर पंचायत के सदस्य अपने अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। नित्य प्रति के कार्यों का सम्पादन सचिव करता है।
कार्य:
नगर पंचायतें वे सभी कार्य अपने हाथों में ले सकती है जो नगरपालिकाएँ सम्पन्न करती हैं। संक्षेप में उनके कार्य इस प्रकार हैं –
सड़कें बनवाना, उनकी मरम्मत करवाना, चिकित्सा का प्रबंध करना, संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए टीके लगवाना, प्राइमरी विद्यालयों का प्रबंध कराना, मातृ व शिशु कल्याण केन्द्रों का प्रबंध, बिजली की व्यवस्था तथा जन्म-मृत्यु आदि का ब्योरा रखना। नगर पंचायतें सामाजिक, आर्थिक विकास संबंधी योजनाएँ भी लागू करती हैं जिनमें गरीबी निवारण योजना भी शामिल है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
नगर निगम के निर्वाचित अध्यक्ष होते हैं –
(क) वार्ड कौंसलर
(ख) महापौर
(ग) उप-महापौर
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) महापौर
प्रश्न 2.
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में राज्यों को ग्राम पंचायतों की स्थापना का निर्देश दिया गया है?
(क) अनुच्छेद 38
(ख) अनुच्छेद 39
(ग) अनुच्छेद 40
(घ) अनुच्छेद 44
उत्तर:
(ग) अनुच्छेद 40
प्रश्न 3.
भारत में कितने स्तरीय पंचायती राज की स्थापना की गई है?
(क) द्विस्तरीय
(ख) एक स्तरीय
(ग) चार स्तरीय
(घ) त्रीस्तरीय
उत्तर:
(घ) त्रीस्तरीय