Bihar Board Class 11 Economics Solutions Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-1990)

Bihar Board Class 11 Economics Solutions Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-1990) Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Economics Solutions Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-1990)

Bihar Board Class 11 Economics भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-1990) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
योजना की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
योजना से अभिप्राय किसी निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किए गए प्रयत्नों से है। नियोजन के अन्तर्गत देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए लक्ष्य रखे जाते हैं जिसकी प्राप्ति के लिए देश में और देश के बाहर सभी साधन जुटाए जाते हैं। उद्देश्यों की प्राप्ति तथा साधनों का जुटाने के लिए सम्बन्धित देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को देखते हुए विकास की व्यूह रचना निर्धारित की जाती है।

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प्रश्न 2.
भारत ने योजना को क्यों चुना?
उत्तर:
देश की आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने के लिए भारत ने योजना को चुना। आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने का आर्थिक नियोजन के अतिरिक्त दूसरा विकल्प स्वतंत्र बाजार व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत उत्पादक सभी क्रियाओं को लाभ की दृष्टि से करता है परंतु यह व्यवस्था भारत के लिए निम्नलिखित कारणों से अनुपयुक्त थी –

  1. भारत में आय में भारी असमानता पाई जाती है। उत्पादन धनी व्यक्तियों के लिए किया जायेगा क्योंकि उनके पास वस्तुएँ खरीदने की शक्ति है।
  2. अधिकांश व्यक्ति निर्धन होने के कारण साख, पैसा एवं उपयोगी वस्तुओं पर खर्च कर देंगे और बचत नहीं होगी।
  3. निर्धन व्यक्तियों के लिए आवास, शिक्षा, चिकित्सा आदि की ओर ध्यान नहीं दिया जायेगा क्योंकि वे आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं हैं।
  4. इस बात की संभावना है कि दीर्घकालिक आर्थिक बातों पर ध्यान न दिया जाए जैसे आधारभूत और भारी उद्योग आदि।

प्रश्न 3.
योजना का लक्ष्य क्या होना चाहिए।
उत्तर:
योजना के निम्नलिखित लक्ष्य होने चाहिए –

  1. संवृद्धि
  2. आधुनिकीकरण
  3. आत्मनिर्भरता
  4. समानता

परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक योजना में इन लक्ष्यों को एक समान महत्त्व दिया जाए। सीमित संसाधनों के कारण प्रत्येक योजना में ऐसे लक्ष्यों का चयन करना पड़ता है, जिनको प्राथमिकता दी जानी है। हाँ, योजनाओं में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जहाँ तक संभव हो, इनके उद्देश्य में अन्त:विरोध न हो।

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प्रश्न 4.
चमत्कारी बीज क्या होते हैं?
उत्तर:
उच्च पैदावार वाली किस्मों की बीजों को चमत्कारी बीज कहा जाता है। इन बीजों के प्रयोग से अनाज के उत्पादन में वृद्धि होती है, विशेषकर गेहूँ तथा चावल के उत्पादन में। इन बीजों के प्रयोग में पर्याप्त मात्रा में उवर्रकों, कीटनाशकों तथा निश्चित जल-आपूर्ति की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 5.
विक्रय अधिशेष क्या है?
उत्तर:
विक्रय अधिशेष किसानों द्वारा उत्पादन का वह अंश है जो उनके द्वारा बाजार में बेचा जाता है।

प्रश्न 6.
कृषि क्षेत्रक में लागू किए गए भूमि सुधारों की आवश्यकता और उनके प्रकारों की व्याख्या करें।
उत्तर:
कृषि क्षेत्रक में लागू किए गए भूमि सुधारों की आवश्यकता (Necessity of land reforms):
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में कृषि पिछड़ी हुई अवस्था में थी। कृषि में उत्पादकता कम थी। कृषि में निम्न उत्पादकता के कई कारण थे। उनमें से कुछ कारण थे-कृषि जोतों का असमान वितरण, भू-जोतों का छोटा आकार, भूमि का उपविभाजन तथा अपखण्डन, विभिन्न भू-धारण पद्धतियाँ। कृषि क्षेत्र की निम्न उत्पादकता के कारण भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका (यू.एस.ए.) से अनाज का आयात करना पड़ा।

कृषि उत्पादन में वृद्धि लाने के लिए तथा देश को अनाज में आत्मनिर्भर बनाने के लिए भूमि सुधारों की आवश्यकता पड़ी। भूमि-सुधार से अभिप्राय कृषि से सम्बन्धित संस्थागत परिवर्तनों से है। जैसे जोत के आकार में परिवर्तन, भू-धारण प्रणाली में परिवर्तन या उनका उन्मूलन।

भूमि-सुधार के प्रकार (Types of land-reforms):
भूमि सुधार के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं –

1. मध्यस्थों की समाप्ति (Abolition of intermediates):
विभाजन से पूर्व लगभग 43% भाग में जमींदारी प्रथा प्रचलित थी। यह प्रथा राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से बहुत ही दोषपूर्ण थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विभिन्न राज्यों में इस प्रथा का उन्मूलन करने के लिए कानून बनाये गए। बिचौलियों का उन्मूलन करने का मुख्य उद्देश्य किसानों को भूमि का स्वामी बनाना था।

बिचौलियों के उन्मूलन का नतीजा यह था कि लगभग 200 लाख काश्तकारों का सरकार से सीधा सम्पर्क हो गया तथा वे जमींदारों के द्वारा किए जा रहे शोषण से मुक्त हो गए। भू-स्वामित्व से उन्हें उत्पादन में वृद्धि के लिए प्रोत्साहन मिला। इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई किन्तु बिचौलियों के उन्मूलन से सरकार समानता के लक्ष्य को प्राप्त न कर सकी।

2. जोतों की उच्चतम सीमा का निर्धारण करना:
जोतों की उच्चतम सीमा के निर्धारण का अर्थ है कि किसी व्यक्ति की कृषि भूमि के स्वामित्व की अधिकतम सीमा निर्धारण करना। इस नीति का उद्देश्य कुछ लोगों में भू-स्वामित्व के संकेन्द्रण को कम करना है। इस निर्धारित सीमा से किसान के पास जो भूमि होती है, वह अतिरिक्त भूमि के रूप में सरकार के पास चली जाती है और सरकार इसे भूमिहीन किसानों में वितरित कर, देती है।

देश के अधिकांश राज्यों में जोतों की अधिकतम सीमा निर्धारित की जा चुकी है। अधिकतम भूमि-सीमा निर्धारण कानून में भी कई बाधाएँ आई। बड़े जमींदारों ने इस कानून को न्यायालयों में चुनौती दी जिसके कारण इसे लागू में देर हुई। इस अवधि में वे अपनी भूमि निकट सम्बन्धियों आदि के नाम करवाकर कानून से बच गये।

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प्रश्न 7.
हरित क्रांति क्या है? इसे क्यों लागू किया गया और इसे किसानों को कैसे लाभ पहुँच? संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हरित क्रांति (Green Revolution):
हरित क्रांति से अभिप्राय उत्पादन की तकनीक को सुधारने तथा कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि करने से है। हरित क्रांति की दो मुख्य विशेषताएँ हैं –

  1. उत्पादन की तकनीकी को सुधारना तथा
  2. उत्पादन में वृद्धि करना इस संदर्भ में स्व. श्रीमति इंदिरा गाँधी ने लिखा था, “हरित क्रांति का आशय यह है कि खेती में मेड़बंदी करवाकर, फावड़े, तगारी, गेंती, हल इत्यादि उपयोगी कृषि के साधन प्राप्त करके कृषि की जाएं, अपितु इन साधनों के प्रयोग से कृषि उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि की जाए।

हरित क्रांति लागू करने के कारण (Caused of Green Revolution):
हरित क्रांति लागू करने का उद्देश्य कृषि क्षेत्रक में उत्पादकता में वृद्धि करना है तथा औपनिवेशिक काल के कृषि गतिरोध को स्थायी रूप से समाप्त करना।

किसानों को लाभ (Advantages of the farmers):
हरित क्रांति से किसानों को निम्नलिखित लाभ हुआ –

  1. हरित क्रांति में किसान अधिक गेहूँ तथा चावल उत्पन्न करने में समर्थ हुए। किसान के पास अब बाजार में बेचने के लिए काफी अनाज है।
  2. किसानों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है।

प्रश्न 8.
योजना उद्देश्य के रूप में समानता के साथ संवृद्धि की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समानता के साथ संवृद्धि (Growth with equality):
केवल संवृद्धि के द्वारा ही जनसामान्य के जीवन में सुधार नहीं आ सकता। किसी देश में संवृद्धि दर बढ़ने पर भी अधिकांश लोग गरीब हो सकते हैं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि समृद्धि (आर्थिक) के साथ देश के निर्धन वर्ग को भी वे सब साधन सुलभ हो, केवल धनी लोगों तक सीमित न हो। अतः संवृद्धि के साथ-साथ समानता भी महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक भारतीय को भोजन, अच्छा आवास शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ होना चाहिए और धन-सम्पत्ति के वितरण की असमानताएँ भी कम होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
क्या रोजगार सृजन की दृष्टि से योजना उद्देश्य के रूप में आधुनिकीकरण विरोधाभास पैदा करता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारतीय योजना के कई उद्देश्य हैं। इनमें एक उद्देश्य आधुनिकीकरण है। आधुनिकीकरण से अभिप्राय वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए नई तकनीकी को अपनाना है। उदाहरण के लिए किसान पुराने बीजों के स्थान पर नई किस्म के बीजों का प्रयोग करके खेती में पैदावार बढ़ा सकता है। आधुनिकीकरण केवल नई तकनीकी के प्रयोग तक सीमित नहीं है अपीत इसका उद्देश्य सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना है। जैसे यह स्वीकार करना कि महिलाओं का अधिकार भी पुरुषों के समान होना चाहिए। कई लोगों का विचार है कि रोजगार सृजन की दृष्टि से योजना उद्देश्य के रूप में आधुनिकीकरण विरोधाभास पैदा करता है। उनका यह मत. गलत है। आधुनिकीकरण से रोजगार के अवसरों में विस्तार होगा।

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प्रश्न 10.
भारत जैसे विकासशील देश के रूप में आत्मनिर्भरता का पालन करना क्यों आवश्यक था?
उत्तर:
भारत जैसे विकासशील देश के रूप में आत्मनिर्भरता का पालन करना आवश्यक है। आत्मनिर्भरता इसलिए आवश्यक है ताकि विकसित देश उन वस्तुओं के आयात करने से बच जाएँ जिनका उत्पादन देश में ही संभव है। इस नीति का विशेषकर खाद्यान्न के लिए अन्य देशों पर निर्भरता कम करने के लिए पालन आवश्यक समझा गया है। ऐसी आशंका भी थी कि आयतिक खाद्यान्न विदेशी तकनीकी और पूँजी पर निर्भरता, किसी न किसी रूप में हमारी देश की नीतियों में विदेशी हस्तक्षेप को बढ़ाकर हमारी संप्रभुता (Soveregnity) में बाधा डाल सकती थी।

प्रश्न 11.
किसी अर्थव्यवस्था का क्षेत्रक गठन क्यों होता है ? क्या यह आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था के जी.डी.पी. में सेवा क्षेत्रक.को सबसे अधिक योगदान करना चाहिए? टिप्पणी करें।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था का क्षेत्रक गठन (SectoralShedule of an economy):
कार्यशील जनसंख्या के विभिन्न क्षेत्र में वितरण को अर्थव्यवस्था का क्षेत्रक गठन कहते हैं। अर्थव्यवस्था की संरचना के तीन क्षेत्रक होते हैं –

1. प्राथमिक क्षेत्रक (कृषि)

2. द्वितीयक क्षेत्रक (विनिर्माण) तथा तृतीयक क्षेत्रक (सेवा)। प्राथमिक क्षेत्र में मुख्य रूप से उन सब आर्थिक क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जिनमें प्राकृतिक साधनों का शोषण किया जाता है। जैसे-खेती करना, मछली, पकड़ना, वन काटना आदि। द्वितीयक क्षेत्रक में वे व्यवसाय आते हैं जो प्रकृति से प्राप्त कच्चे माल का रूप बदल कर पक्का माल तैयार करते हैं। जैसे-रुई से कपड़ा बनाना, चमड़े से जूते बनाना, गन्ने से चीनी बनाना आदि। तृतीयक क्षेत्रक में सेवाओं का उत्पादन करने वाले शामिल होते हैं जैसे-बैंकिंग, परिवहन आदि।

देश का सकल घरेलू उत्पाद देश की अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों से प्राप्त होता है। इन क्षेत्रकों के योगदान से अर्थव्यवस्था का ढाँचा तैयार होता है। कुछ देशों में सकल घरेलू उत्पाद में संवृद्धि में कृषि का योगदान अधिक होता है तो कुछ में सेवा क्षेत्र की वृद्धि इसमें अधिक योगदान करती है। देश के विकास के साथ-साथ इसमें संरचनात्मक परिवर्तन आता है। भारत में तो यह परिवर्तन बहुत विचित्र रहा।

सामान्यतः विकास के साथ-साथ सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का अंश कम होता है और उद्योगों का अंश प्रधान होता है। विकास के उच्चतर स्तर पर पहुँच कर जी.डी.पी. में सेवाओं का अंशदान अन्य दो क्षेत्रकों से अधिक हो जाता है। 1990 से पूर्व भारत में जी.डी.पी. में कृषि का अंश 50 प्रतिशत अधिक था, परंतु 1990 में सेवा क्षेत्रक का अंश बढ़कर 40.59% हो गया। यह अंश कृषि तथा उद्योगों दोनों से ही अधिक था। ऐसी स्थिति तो प्रायः विकसित देशों में पाई जाती है। 1991 के बाद तो सेवा क्षेत्रक के अंश की संवृद्धि की यह प्रवृत्ति और बढ़ गई। इस प्रकार हम देखते हैं कि जी.डी.पी. में सेवा क्षेत्रक का सबसे अधिक योगदान वांछनीय है।

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प्रश्न 12.
योजना अवधि के दौरान औद्योगिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक को ही। अग्रणी भूमिका क्यों सौंपी गई थी?
उत्तर:
सावर्जनिक उपक्रम (Public Enterprises):
सार्वजनिक उपक्रम से अभिप्राय ऐसी व्यावसायिक या औद्योगिक संस्थाओं से है जिनका स्वामित्व, प्रबंध एवं संचालन सरकार (केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या स्थानीय संस्था) के अधीन होता है। स्वतंत्रता के बाद भारत में सार्वजनिक क्षेत्र को निम्नलिखित कारणों से महत्त्व दिया गया है –

1. विशाल विनियोग की आवश्यकता (Need for huge investment):
कई ऐसे आधारभूत तथा देश के लिये आवश्यक उद्योग होते हैं जिनमें इतने निवेश की आवश्यकता होती है कि निजी क्षेत्र के उद्योग रुचि नहीं लेते।

2. क्षेत्रीय असमानता को दूर करने के लिए (For removing regional disparities):
भारत जब स्वतंत्र हुआ था तो उस समय क्षेत्रीय असमानताएँ बहुत थीं। इन क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में उपक्रमों की स्थापना आवश्यक थी। सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योगों की स्थापना उन क्षेत्रों में की जाती है जो आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए होते हैं।

3. आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण को रोकने के लिए (Tocheck concentration of economic power):
जब भारत स्वतत्रं हुआ था तो उस समय आय तथा सम्पत्ति का असमान वितरण था। देश के कुछ लोगों के पास का धन केन्द्रित था। अमीर लोग बहुत अमीर थे और गरीब लोग बहुत ही गरीब थे। आय की विषमताओं को कम करने के लिये स्वतंत्रता के पश्चात् सार्वजनिक क्षेत्र को महत्त्व दिया गया।

4. आधारभूत संरचनाओं का विकास करने के लिये (To develop the infrastructure):
स्वतंत्रता के समय भारत में आधारभूत संरचनायें अविकसित तथा असंतोषजनक थीं। बिना आधारभूत संरचनाओं में सुधार लाये देश का विकास नहीं हो सकता। आधारभूत संरचनाओं को विकसित करने के लिए निजी क्षेत्र आगे आने को तैयार नहीं थे, क्योंकि आधारभूत संरचनाओं में काफी निवेश होता है और काफी समय के पश्चात् उनसे आय प्राप्त होती है। अतः इन संरचनाओं को विकसित करने के लिये सरकार को आगे आना पड़ा।

5. सुरक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण (Important for defence purposes):
जब देश स्वतंत्र हुआ तो उस समय भारत की सुरक्षा खतरे में थी। देश की सुरक्षा के लिए युद्ध सामग्री (बम, गोले, अस्त्र शस्त्र) के निर्माण की आवश्यकता थी। युद्ध सामग्री के निर्माण के लिये हम निजी क्षेत्र पर भरोसा नहीं कर सकते। अतः इन सबका निर्माण सार्वजनिक क्षेत्र में किया गया।

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प्रश्न 13.
इस कथन की व्याख्या करें “हरित क्रांति ने सरकार को खाद्यान्न के प्रति प्रापण द्वारा विशाल सुरक्षित भण्डार बनाने के योग्य बनाया गया ताकि वह कमी के समय उसका उपयोग कर सकें।
उत्तर:
प्रश्न में दिए गए कथन से अभिप्राय यह है कि हरित क्रांति के फलस्वरूप अनाज में विशेषकर गेहूँ तथा चावल के उत्पादन में बहुत ही अधिक वृद्धि हुई। इसके फलस्वरूप भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त हो गई। अब हम अपने राष्ट्र की खाद्य सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अमेरिका या किसी देश की कृषि पर निर्भर नहीं रहे। अनाज के अधिक उत्पादन से किसान के पास इतना अनाज हो गया कि वह उसका अंश बाजार में बेचने के लिए लाता है सरकार उनसे समर्थित मूल्य (न्यूनतम मूल्य) पर अनाज खरीदती है और खाद्यान्न का सुरक्षित स्टॉक बनाती है ताकि खाद्यान्न की कमी के समय इस स्टॉक का प्रयोग किया जा सके।

प्रश्न 14.
भारत में कृषि-अनुदान के पक्ष क्या विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
भारत में कृषि अनुदान (Agricultural Subsidies in India):
कृषि अनुदान से अभिप्राय सरकार द्वारा कृषकों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता से है जिससे वे अपने उत्पाद को उत्पादन लागत में भी कम कीमत पर बेच सकें। अब कृषि अनुदान के पक्ष तथा विपक्ष में काफी वाद-विवाद हो रहा है। कुछ विद्वानों के अनुसार कृषि अनुदान को समाप्त कर दिया जाना चाहिये जबकि कुछ विद्वान इसे जारी रखने के पक्ष में हैं।

विपक्ष के तर्क (Arguments against agricultural subsidies):
यह आम सहमति है कि किसानों को नई HYV तकनीकी अपनाने हेतु प्रेरित करने के लिये उन्हें कृषि अनुदान देना आवश्यक था। नई तकनीकी अपनाना जोखिम भरा काम है। अत: नई तकनीकी का परीक्षण करने के लिये प्रोत्साहन देने के लिये कृषि अनुदान आवश्यक है। अब परीक्षण करने पर नई तकनीकों को लाभप्रद पाया गया है तथा इसे व्यापक रूप से अपनाया जा रहा है। अतः अब कृषि अनुदान देना समाप्त किया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त कृषि अनुदान का उद्देश्य किसानों को लाभ पहुँचाना है जबकि इसका लाभ रसायन उद्योग (Fertilizer Industry) तथा समृद्ध इलाकों के किसानों को हो रहा है। अत: यह दलील दी जाती है कि इसे जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। यह सरकार के वित्त पर बहुत बड़ा बोझ है।

पक्ष के तर्क (Arguments in favour of agricultural subsidies):
कुछ विद्वानों का विचार है कि कृषि अनुदान को जारी रखा जाना चाहिये क्योंकि भारत में कृषि एक जोखिम व्यवसाय है और जोखिम व्यवसाय रहेगा। अधिकांश किसान बहुत निर्धन हैं और बिना अनुदान के वांछित आदानों को खरीदने में समर्थ नहीं होंगे। अनुदान के उन्मुलन से निर्धन तथा धनी किसानों में असमानता बढ़ जायेगी और न्याय का लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सकेगा। इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों का विचार है कि यदि अनुदानों से रसायन उद्योग तथा बड़े किसानों को लाभ हो रहा है तो इसका तात्पर्य यह नहीं कि सरकार अनुदान देना बंद कर दे। इसके विपरीत सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिये जिससे निर्धन किसानों को लाभ पहुँचे।

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प्रश्न 15.
हरित क्रांति के बाद भी 1990 तक हमारी 65 प्रतिशत जनसंख्या कृषि क्षेत्रक में ही क्यों लगी रही?
उत्तर:
अर्थशास्त्रियों के अनुसार जैसे-जैसे देश सम्पन्न होता है कृषि के योगदान में और उस पर निर्भर जनसंख्या में पर्याप्त कमी आती है। भारत में 1950-1990 की अवधि में यद्यपि जी.डी.पी. में कृषि के अंशदान में तो भारी कमी आई है, पर कृषि पर निर्भर जनसंख्या के अनुपात में कमी न के बराबर आई। दूसरे शब्दों में 1990 तक की देश की 65% जनसंख्या कृषि में लगी हुई थी। इसका कारण यह है कि उद्योग क्षेत्रक और सेवा क्षेत्रक, कृषि क्षेत्रक में काम करने वाले लोगों को नहीं खपा पाए। अनेक अर्थशास्त्री इसे 1950-1990 के दौरान अपनाई गई नीतियों की विफलता मानते हैं।

प्रश्न 16.
यद्यपि उद्योगों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र बहुत आवश्यक रहा है, पर सार्वजनिक क्षेत्रक के अनेक ऐसे उपक्रम हैं जो भारी हानि उठा रहे हैं और इस क्षेत्रक के अर्थव्यवस्था के संसाधनों के बरबादी के साधन बने हुए हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक क्षेत्रक के उपक्रमों की उपयोगिता पर चर्चा करें।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था की संवृद्धि में सार्वजनिक क्षेत्रक द्वारा किए गए योगदान के बावजूद कुछ अर्थशास्त्रियों ने सार्वजनिक क्षेत्र के अनेक उद्यमों के निष्पादन को आलोचना की है। अनेक क्षेत्रक की फर्मों ने भारी हानि उठाई, लेकिन उन्होंने काम जारी रखा क्योंकि किसी सरकारी उपक्रम को बंद किया जाना अत्यन्त कठिन और लगभग असंभव होता है। भले ही इसके कारण राष्ट्र के सीमित संसाधनों का विकास होता रहे। इसका अर्थ यह नहीं है कि निजी फर्मों को सदा लाभ ही होता हो।

इसके अतिरिक्त सार्वजनिक क्षेत्रक का प्रयोजन लाभ कमाना नहीं है, अपितु राष्ट्र के कल्याण को बढ़ावा देना है। इस दृष्टि से सार्वजनिक क्षेत्रक की फर्मों का मूल्यांकन जनता के कल्याण के आधार पर किया जाना चाहिए। उनका मूल्यांकन उनके द्वारा कमाए गए लाभों के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। सार्वजनिक उपक्रमों की उपयोगिता निम्न तथ्यों के आधार पर स्पष्ट होती है –

  1. सार्वजनिक उपक्रम क्षेत्रीय असमानता को दूर करते हैं।
  2. ये आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण को रोकते हैं।
  3. ये आधारभूत संरचनाओं को विकसित करने में बहुत ही अधिक सहायक होते हैं।
  4. ये देश की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  5. ये श्रमिकों के कल्याण की ओर अधिक ध्यान देते हैं।

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प्रश्न 17.
आयात प्रतिस्थापन किस प्रकार घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान करता है?
उत्तर:
आयात प्रतिस्थापन-आयात प्रतिस्थापन से अभिप्राय है कि आयात की जाने वाली वस्तुओं का घरेलू (देशी) उत्पादन द्वारा प्रतिस्थापन करना। उदाहरण के लिए विदेशों में निर्मित वाहनों का आयात करने के स्थान पर उन्हें भारत में ही निर्मित करने के लिए उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाय। इस नीति के अनुसार सरकार ने विदेशी प्रतिस्पर्धा से उद्योगों की रक्षा की। आयात संरक्षण के दो प्रकार थे: प्रशुल्क और कोटा –

1. प्रशुल्क (Tariff):
प्रशुल्क आयातिक वस्तुओं पर लगाया गया कर है। प्रशुल्क लगाने पर आयातिक वस्तुएँ अधिक महंगी हो जाती हैं जो वस्तुओं के प्रयोग को हतोत्साहित करती हैं।

2. कोटा (Quota):
कोटे में वस्तुओं की मात्रा निर्दिष्ट रहती है, जिन्हें आयात किया जा सकता है।

प्रश्न 18.
औद्योगिकी नीति प्रस्ताव 1956 में निजी क्षेत्रक का नियमन क्यों और कैसे किया गया था?
उत्तर:
औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1956-निजी क्षेत्र के भारी उद्योगों पर नियंत्रण रखने के राज्य के लक्ष्य के अनुसार औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1956 को अंगीकार किया गया। इस प्रस्ताव को द्वितीय पंचवर्षीय योजना का आधार बनाया गया। इस प्रस्ताव के अनुसार उद्योगों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया। प्रथम वर्ग में वे उद्योग शामिल थे जिन पर राज्य का अनन्य स्वामित्व था। दूसरे वर्ग में वे उद्योग शामिल थे जिनके लिए निजी क्षेत्रक सरकारी क्षेत्रक के साथ मिलकर प्रयास कर सकते थे, परंतु जिनमें नई इकाइयों को शुरू करने की एकमात्र जिम्मेदारी। राज्य की होती है। तीसरे वर्ग में वे उद्योग शामिल थे जो निजी क्षेत्रक के अन्तर्गत आते थे।

इस प्रस्ताव के अन्तर्गत निजी क्षेत्रक को लाइसेंस पद्धति के माध्यम से राज्य के नियंत्रण में रखा गया है। नये उद्योगों को तब तक अनुमति नहीं दी जाती थी, जब तक सरकार से लाइसेंस नहीं प्राप्त कर लिया जाता था। इस नीति का प्रयोग पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया। यदि उद्योग आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में लगाए गए तो लाइसेंस प्राप्त करना आसान था। इसके अतिरिक्त उन इकाइयों को कुछ रियासतें भी दी गईं, जैसे-कर लगाना तथा कम प्रशुल्क पर बिजली देना।

इस नीति का उद्देश्य क्षेत्रीय समानान्तर को बढ़ावा देना था। वर्तमान उद्योग को भी उत्पादन बढ़ाने या विविध प्रकार के उत्पादन (वस्तुओं की नई किस्मों का उत्पादन) करने के लिए लाइसेंस प्राप्त करना होता था। इसका अर्थ यह सुनिश्चित करना था कि उत्पादित वस्तुओं की मात्रा अर्थव्यवस्था द्वारा अपेक्षित मात्रा से अधिक न हो, उत्पादन बढ़ाने का लाइसेंस केवल तभी दिया जाता था जब सरकार इस बात से आश्वस्त होती थी कि अर्थव्यवस्था में बड़ी मात्रा में वस्तुओं की आवश्यकता है।

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प्रश्न 19.
निम्नलिखित युग्मों को सुमेलित कीजिए।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter - 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-1990) img 1
उत्तर:
Bihar Board Class 11 Economics Chapter - 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-1990) img 2f

Bihar Board Class 11 Economics भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-1990) Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था मुख्यतः कितने प्रकार की हैं-उनके नाम लिखें।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था मुख्यतः तीन प्रकार की हैं –

  1. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
  2. समाजवादी अर्थव्यवस्था तथा
  3. मिश्रित अर्थव्यवस्था

प्रश्न 2.
उस अर्थव्यवस्था का नाम लिखो जो पूँजीवादी अर्थव्यवस्था तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था दोनों की विशेषताएँ लिए हुए है?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 3.
बाजार अर्थव्यवस्था का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
बाजार अर्थव्यवस्था का दूसरा नाम पूँजीवादी अर्थव्यवस्था है।

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प्रश्न 4.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में किन उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है?
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उन उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जिनका विक्रय लाभप्रदाता के साथ अपने देश में या दूसरे देशों में सरलता से किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
समाजवादी अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
समाजवादी अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसमें सरकार समाज की आवश्यकतानुसार वस्तुओं के उत्पादन का निर्णय करती है।

प्रश्न 6.
मिश्रित अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसमें सरकार तथा बाजार (मांग तथा पूर्ति शक्तियाँ) दोनों मिलकर यह निर्णय लेते हैं कि क्या उत्पादन किया जाये, कैसे उत्पादन किया जाये तथा उत्पादित वस्तुओं का वितरण कैसे किया जाये।

प्रश्न 7.
योजना आयोग की स्थापना कब की गई?
उत्तर:
योजना आयोग की स्थापना 1950 में की गई।

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प्रश्न 8.
आर्थिक नियोजन क्या है?
उत्तर:
आर्थिक नियोजन एक ऐसी रणनीति है जिसके अन्तर्गत किसी देश के साधनों को ध्यान में रखकर एक निश्चित समय में आर्थिक विकास के निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है।

प्रश्न 9.
भारतीय योजना की अवधि क्या है?
उत्तर:
भारतीय योजना की अवधि पाँच वर्ष है।

प्रश्न 10.
उत्पादन की श्रम-प्रधान तकनीक में क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पादन की श्रम-प्रधान तकनीक से अभिप्राय उत्पादन की उस विधि से है जिसमें पूँजी की अपेक्षा श्रम का अधिक प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
उत्पादन की उस तकनीक को क्या कहते हैं जिसमें श्रम की अपेक्षा पूँजी का अधिक प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
उत्पादन की पूँजी प्रधान तकनीक।

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प्रश्न 12.
भूमि सुधार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूमि सुधार से अभिप्राय भूमि जोतों के स्वामित्व में परिवर्तन करना है। इसका उद्देश्य कृषि से समता (न्याय) लाना है।

प्रश्न 13.
भूमि सीमा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूमि सीमा का उद्देश्य भूमि के कुछ हाथों में स्वामित्व के केन्द्रीकरण को कम करना है।

प्रश्न 14.
भूमि सीमा का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
भूमि सीमा का उद्देश्य भूमि के कुछ हाथों में स्वामित्व के केन्द्रीकरण को कम करना है।

प्रश्न 15.
भारत में किस उद्देश्य की पूर्ति के लिये मिश्रित अर्थव्यवस्था के मार्ग को अपनाया गया?
उत्तर:
भारत में सामाजिक समता के साथ आर्थिक विकास के उद्देश्य की पूर्ति के लिये मिश्रित अर्थव्यवस्था में मार्ग को अपनाया गया।

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प्रश्न 16.
हमारी पंचवर्षीय योजना को बनाने में कई विख्यात विचारकों को योगदान रहा है। उनमें से एक विचारक का नाम लिखें।
उत्तर:
प्रो. पी. सी. महालनोबिस (Prof. Prasanta Chandra Mahalanobis)।

प्रश्न 17.
योजना आयोग ने देश के आर्थिक विकास के लिये पहली पंचवर्षीय योजना कब आरम्भ की?
उत्तर:
योजना आयोग ने देश के आर्थिक विकास के लिये पहली पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1951 से आरम्भ की।

प्रश्न 18.
पहली पंचवर्षीय योजना में किस क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया?
उत्तर:
पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया था।

प्रश्न 19.
पंचवर्षीय योजनाओं में औद्योगिक विकास को क्यों अधिक महत्त्व दिया गया है? कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं में निम्नलिखित कारणों से औद्योगिक विकास को अधिक महत्त्व दिया गया है –

  1. औद्योगिक विकास से देश में रोजगार के अवसरों की अधिक वृद्धि होती है अपेक्षाकृत कृषि के।
  2. इससे आधुनिकीकरण को बढ़ावा मिलता है।

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प्रश्न 20.
चकबंदी (Consolidation of Holdings) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चकबंदी से अभिप्राय ऐसी प्रक्रिया से है जिसके द्वारा एक भू-स्वामी के इधर-उधर बिखरे हुए खेतों के बदले में उसी किस्म के उतने ही आकार के एक या दो खेत इकट्ठ दे दिये जाते हैं।

प्रश्न 21.
चकबंदी से क्या लाभ है?
उत्तर:
चकबंदी से कृषकों को उन्नत किस्म के आदानों का प्रयोग करने में सहायता मिलता है तथा कम से कम से प्रयत्नों में अधिकतम उत्पादन में सफलता मिलती है। इससे उत्पादन लागत में भी कमी आती है।

प्रश्न 22.
भूमि सुधार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भूमि सुधार से अभिप्राय भूमि (जोतों) के स्वामित्व में परिवर्तन लाना। दूसरे शब्दों में भूमि सुधार में भूमि के स्वामित्व के पुनः वितरण को शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 23.
भूमि सुधार क्यों अपनाया गया?
उत्तर:
कृषि उत्पादन बढ़ाने तथा सामाजिक न्याय की स्थापना करने के लिये भूमि सुधार अपनाया गया।

प्रश्न 24.
पंचवर्षीय योजनाओं के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य हैं –

  1. वृद्धि
  2. आधुनिकीकरण
  3. आत्म-निर्भरता तथा
  4. न्याय (equity)

प्रश्न 25.
जी.डी.पी. का पूरा नाम लिखो?
उत्तर:
डी.डी.पी. का पूरा नाम सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) है।

प्रश्न 26.
पं. जवाहरलाल नेहरू तथा अन्य नेताओं और विचारकों ने किस प्रकार की अर्थव्यवस्था को भारत के अनुकूल समझा?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था को।

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प्रश्न 27.
पं. जवाहरलाल नेहरू पूर्व सोवियत संघ में प्रचलित समाजवाद के पक्ष में क्यों नहीं थे?
उत्तर:
क्योंकि पूर्व सोवियत संघ में उत्पादन के सब साधनों पर सरकार का स्वामित्व था। वहाँ कोई निजी सम्पत्ति नहीं थी। भारत जैसे प्रजातंत्र देश में यह सम्भव नहीं था।

प्रश्न 28.
सकल घरेलू उत्पादन क्या है?
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद एक वर्ष में उत्पादित कुल वस्तुओं तथा सेवाओं का बाजार मूल्य है।

प्रश्न 29.
आधुनिकीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
नई तकनीकी को अपनाना और सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन को आधुनिकीकरण कहते हैं।

प्रश्न 30.
प्रथम सात पंचवर्षीय योजनाओं में किस उद्देश्य को महत्व दिया गया?
उत्तर:
आत्मनिर्भरता को।

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प्रश्न 31.
आत्मनिर्भरता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आत्मनिर्भरता से अभिप्राय उन वस्तुओं का आयात न करना जिन वस्तुओं का उत्पादन – देश में किया जा सकता है।

प्रश्न 32.
औद्योगिक नीति को कौन-सी नीति कार्य रूप प्रदान करती है?
उत्तर:
औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति औद्योगिक नीति को कार्य रूप प्रदान करती है।

प्रश्न 33.
हरित क्रांति से खाद्यान्नों की कीमतों पर क्या प्रभाव पड़ा।
उत्तर:
हरित क्रांति के फलस्वरूप खाद्यान्नों की कीमतों में उपभोग की दूसरी मदों की अपेक्षा कमी आई।

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प्रश्न 34.
हरित क्रांति से सरकार को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
हरित क्रांति से स्टॉक बनाने के लिये काफी मात्रा में खाद्यान्न उपलब्ध हो गया।

प्रश्न 35.
हरित क्रांति के विषय में दो भ्रांतियाँ क्या थीं?
उत्तर:

  1. हरित क्रांति से छोटे तथा बड़े किसानों में विषमता बढ़ जायेगी, तथा
  2. उन्नत बीज से उत्पन्न पौधों पर कीट आक्रमण करेंगे।

प्रश्न 36.
एक अर्थव्यवस्था की कौन-सी प्रमुख समस्याएँ हैं?
उत्तर:

  1. क्या उत्पादन किया जाये
  2. कितनी मात्रा में, कैसे उत्पादन किया जाय और
  3. किसके लिये उत्पादन किया जाये।

प्रश्न 37.
योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष कौन होता है?
उत्तर:
योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष भारत का प्रधानमंत्री होता है।

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प्रश्न 38.
वास्तविक रूप में (In Real Sense) भारत में योजना काल कब आरम्भ हुआ?
उत्तर:
दूसरी पंचवर्षीय योजना से।

प्रश्न 39.
ब्रिटिश शासन काल में कृषि किस अवस्था में थी?
उत्तर:
कृषि गतिहीन थी। कृषि में वृद्धि नगण्य थी। कृषि में असमानता थी।

प्रश्न 40.
कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए क्या प्रयत्न किये गये?
उत्तर:
समानता को दूर करने के लिए भूमि सुधार किया गया तथा उत्पादन में वृद्धि लाने के लिये उन्नत बीजों का प्रयोग किया गया। सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया गया। कृषि में आधुनिक मशीनों तथा उपकरणों को प्रयोग में लाया गया।

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प्रश्न 41.
जमींदारी उन्मूलन से होने वाले दो लाभ लिखें।
उत्तर:

  1. कृषकों को शोषण होना बंद हो गया।
  2. कृषि-उत्पादन में वृद्धि हुई।

प्रश्न 42.
जमींदारी उन्मूलन से क्या न्याय का उद्देश्य (Goal of Equity) पूर्णतः प्राप्त हो गया?
उत्तर:
नहीं, जमींदारी उन्मूलन से न्याय का उद्देश्य पूरी तरह से नहीं प्राप्त किया जा सका।

प्रश्न 43.
दूसरी योजना के आरम्भ में विकास पद्धति अपनाई गई थी। इस विकास पद्धति को तैयार करने का श्रेय किसको दिया जा सकता है?
उत्तर:
विकास पद्धति को तैयार करने का श्रेय प्रो. पी. सी. महालनोबिस को दिया जा सकता है।

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प्रश्न 44.
योजना की विकास पद्धति में औद्योगीकरण पर बल क्यों दिया गया? कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  1. औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादकता का स्तर कृषि क्षेत्र में उत्पादकता के स्तर की तुलना में अधिक होता है।
  2. बेरोजगारी की समस्या का समाधान औद्योगीकरण में सम्भव होता है।

प्रश्न 45.
योजना काल में ग्रामीण क्षेत्र में आय की विषमताओं के बढ़ने का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्र में आय की विषमता के बढ़ने का प्रमुख कारण है – योजना के दौरान कृषि विकास के लिये उठाये गये विभिन्न कदमों का लाभ प्रमुख रूप से बड़े-बड़े किसानों को दो पहुँचा है। छोटे किसान इन लाभों से वंचित रहे।

प्रश्न 46.
किस अर्थव्यवस्था में लोगों की आवयश्कतानुसार उत्पादित वस्तुओं का वितरण किया जाता है?
उत्तर:
समाजवादी अर्थव्यवस्था में।

प्रश्न 47.
औद्योगिक विकास के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए स्वर्गीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने क्या कहा था?
उत्तर:
औद्योगिक विकास के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए स्वर्गीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था, “सभी राष्ट्र जिस देवता की पूजा करते हैं, वह देवता है औद्योगिकरण, वह देवता है, मशीनीकरण, वह देवता है, उच्च उत्पादन तथा प्राकृतिक साधनों एवम् साधनों का अधिक से अधिक लाभप्रद प्रयोग की औद्योगिक विकास है।”

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प्रश्न 48.
औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1956 का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1956 का उद्देश्य क्षेत्रीय समानता लाना था।

प्रश्न 49.
औद्योगिक लाईसेंसिंग नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
औद्योगिक लाईसेंसिंग नीति से अभिप्राय उस नीति से है जिसके अन्तर्गत औद्योगिक उपक्रमों की स्थापना अथवा विस्तार के लिये सरकार से आज्ञपत्र लेना अनिवार्य होता है।

प्रश्न 50.
भारत के विदेशी व्यापार की संरचना तथा प्रतिबंध मात्रा को ब्रिटिश सरकार ने किस प्रकार कुप्रभावित किया?
उत्तर:
भारत के विदेशी व्यापार की संरचना तथा प्रतिबंध मात्रा को ब्रिटिश सरकार ने वस्तु उत्पादन, व्यापार तथा टैरिफ (Tariff) की प्रतिबंधात्मक नीतियों द्वारा कुप्रभावित किया।

प्रश्न 51.
ब्रिटिश सरकार की वस्तु उत्पादन, व्यापार तथा टैरिफ की प्रतिबंधात्मक नीतियों के फलस्वरूप भारत किन-किन वस्तुओं का निर्यातक बन गया?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार की वस्तु उत्पादन, व्यापार प्रतिबंध तथा टैरिफ की प्रतिबंधात्मक नीतियों के फलस्वरूप भारत कच्चा रेशम, सूत, ऊन, चीनी, पटसन आदि प्राथमिक वस्तुओं का उत्पादक बन गया।

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प्रश्न 52.
उपनिवेश शासन में कृषि में गतिहीनता हमेशा के लिये किस क्रांति के द्वारा तोड़ी गई?
उत्तर:
उपनिवेश शासन में कृषि में गतिहीनता हमेशा के लिये हरित क्रांति के द्वारा तोड़ी गई।

प्रश्न 53.
हरित-क्रांति के प्रथम चरण की समयावधि लिखें। इस चरण में HYV बीजों का प्रयोग किन-किन राज्यों में किया गया?
उत्तर:
हरित क्रांति के प्रथम चरण की समयावधि मध्य 1960 से 1970 तक की है। पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश (पश्चिमी) राज्यों में किया गया।

प्रश्न 54.
कोटा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कोटा से अभिप्राय आयात की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा का निर्धारण करने से है।

प्रश्न 55.
1990-91 में सकल घरेलू उत्पाद में औद्योगिक क्षेत्र का कितना योगदान था और 1950-51 में कितना था?
उत्तर:
1990-91 में सकल घरेलू उत्पाद में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान 24.6% था जबकि 1950-51 में यह 11.80% था।

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प्रश्न 56.
उन्नत किस्म के बीज (High Yielding Variety Seeds) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उन्नत किस्म के बीजों से अभिप्राय ऐसे बीजों से है जिन्हें बोकर कम क्षेत्र में अधिक मात्रा में फसल प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 57.
जीतों की अधिकतम सीमा (Ceiling of Holdings) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जोतों की अधिकतम सीमा से अभिप्राय जोतों की अधिकतम सीमा निर्धारित करना और अतिरिक्त (Surplus) भूमि को भूमिहीनों में बाँटकर सामाजिक न्याय की स्थापना करना व अधिक से अधिक लोगों को रोजगार की सुविधाएँ देना था।

प्रश्न 58.
बाजार में कीमतों का निर्धारण किसके द्वारा होता है?
उत्तर:
बाजार में कीमतों का निर्धारण माँग तथा पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है।

प्रश्न 59.
कीमतें किस बात की संकेतक हैं?
उत्तर:
कीमतें बाजार में वस्तुओं की उपलब्धता की संकेतक हैं।

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प्रश्न 60.
वस्तुओं की उपलब्धता में कमी कीमतों में क्या परिवर्तन लाती हैं?
उत्तर:
कीमतों में वृद्धि होती है।

प्रश्न 61.
वस्तुओं की उपलब्धता में कमी आने के फलस्वरूप कीमतों में होने वाली वृद्धि वस्तुओं के उपभोग पर क्या प्रभाव डालती है?
उत्तर:
वस्तुओं का उपभोग बुद्धिमत्ता तथा कुशलता से किया जाता है।

प्रश्न 62.
लोग वस्तुओं का कुशलता से प्रयोग करने को कब प्रेरित होते हैं?
उत्तर:
जब वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है।

प्रश्न 63.
यदि विद्युत निःशुल्क कर दी जाय तो उसका प्रयोग किस प्रकार से किया जायेगा?
उत्तर:
अकुशलता तथा लापरवाही से विद्युत का प्रयोग किया जाएगा।

प्रश्न 64.
मान लो किसानों को जल की आपूर्ति निःशुल्क की जाती है। ऐसी अवस्था में किसान जल का प्रयोग किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
ऐसी अवस्था में पानी की कमी की ओर बिना ध्यान दिये उसका अनावश्यक प्रयोग करंगे और वे ऐसी फसलें बोयेंगे जिनके लिए अधिक मात्र में पानी की आवश्यकता होगी।

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प्रश्न 65.
ब्रिटिश शासन में भारत किन-किन वस्तुओं का आयात करता था?
उत्तर:
ब्रिटिश शासन में भारत सूती, रेशमी और ऊनी कपड़ों (निर्मित उपभोग वस्तुएँ) तथा ब्रिटेन की फैक्ट्रियों में निर्मित वस्तुओं का आयात करता था।

प्रश्न 66.
HYV बीजों का प्रयोग किन-किन राज्यों में किया गया।
उत्तर:
HYV बीजों का प्रयोग पंजाब, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्यों में किया गया।

प्रश्न 67.
हरित क्रांति के दूसरे चरण का कार्यकाल लिखें।
उत्तर:
हरित क्रांति के दूसरे चरण का कार्यकाल 1970 से 1980 ई. है।

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प्रश्न 68.
विपणित अधिशेष (Marketed Surplus) किसे कहते हैं?
उत्तर:
कृषि उत्पाद का वह भाग जो कृषकों के द्वारा बाजार में बेचा जाता है, उसे विपणित अधिशेष कहते हैं।

प्रश्न 69.
उद्योग के दो लाभ लिखें।
उत्तर:
लाभ (Advantages):

  1. उद्योग रोजगार प्रदान करता है।
  2. यह आधुनिकीकरण को बढ़ावा देता है।

प्रश्न 70.
औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1956 (Industrial Policy of Resolution of 1956) के उद्योगों को कितनी श्रेणियों में वर्गीकृत किया है? पहले वर्ग में किन उद्योगों को रखा गया है?
उत्तर:
औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1956 ने उद्योगों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया है। पहली श्रेणी में उन उद्योगों को रखा गया है जो पूर्णतः राज्य के स्वामित्व में होंगे।

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प्रश्न 71.
औद्योगिक नीति 1956 में द्वितीय श्रेणी में कौन-कौन से उद्योग रखे गये हैं?
उत्तर:
औद्योगिक नीति 1956 में 12 महत्त्वपूर्ण उद्योगों को द्वितीय श्रेणी में रखा गया जैसे लोहे की धातुएँ एवम् एल्युमीनियम, औजार, मशीन, दवाइयाँ आदि। इन उद्योगों के विकास के लिये सरकार अधिक भाग देगी।

प्रश्न 72.
आयात प्रतिस्थापन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आयात प्रतिस्थापन से अभिप्राय उन वस्तुओं के आयात से बचना है, जिनका उत्पादन अपने देश में किया जा सकता है।

प्रश्न 73.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन तथा वितरण लोगों की आवश्यकता के आधार पर नहीं अपितु लोगों की क्रय शक्ति तथा क्रय इच्छा के आधार पर किया जाता है।

प्रश्न 74.
औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1956 में तृतीय श्रेणी में कौन-कौन से. उद्योग रखे. गये हैं?
उत्तर:
तृतीय श्रेणी (वर्ग) में उन सभी उद्योगों को रखा गया है जो निजी क्षेत्र के लिये सुरक्षित रहेंगे। इनका विकास सामान्यतः निजी क्षेत्र की प्रेरणा से होगा। किन्तु इस श्रेणी में भी राज्य नये उद्योगों की स्थापना कर सकता है।

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प्रश्न 75.
1990 में देश की जनसंख्या का कितना प्रतिशत भाग कृषि में कार्यरत था?
उत्तर:
1990 में देश की जनसंख्या का 65% भाग कृषि में कार्यरत था।

प्रश्न 76.
1990 में सकल घरेलू उत्पादन में कृषि के योगदान का अनुपात घटा है परंतु कृषि पर निर्भर करने वाली जनसंख्या में कमी नहीं आई है। कारण बताएँ।
उत्तर:
इसका कारण यह है कि कृषि में कार्यरत जनसंख्या को औद्योगिक तथा सेवा क्षेत्र खपा नहीं सकते।

प्रश्न 77.
निर्धन राष्ट्र कैसे उन्नति कर सकते हैं?
उत्तर:
निर्धन राष्ट्र उन्नति कर सकते हैं यदि वे उद्योगों को बढ़ावा दें।

प्रश्न 78.
पंचवर्षीय योजनाओं में (पहली पंचवर्षीय योजना को छोड़कर) औद्योगिक विकास को क्यों अधिक महत्त्व दिया गया है?
उत्तर:
हमारी पंचवर्षीय योजनाओं में औद्योगिक विकास को इसलिए महत्त्व दिया गया है क्योंकि उद्योग कृषि की अपेक्षा अधिक स्थायी रोजगार देते हैं। वह आधुनिकीकरण को बढ़ावा देते हैं और देश में समृद्धि लाते हैं।

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प्रश्न 79.
भारत में किस वर्ष से पंचवर्षीय योजनाओं की एक निरंतर प्रक्रिया चल रही है?
उत्तर:
भारत में सन् 1951 से पंचवर्षीय योजनाओं की एक निरंतर प्रक्रिया चल रही है।

प्रश्न 80.
आर्थिक विकास के उच्चतर स्तर पर किस क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक होता है?
उत्तर:
आर्थिक विकास के उच्चतर स्तर पर सेवा क्षेत्र (तृतीयक क्षेत्र) का योगदान सबसे अधिक होता है।

प्रश्न 81.
1990 में सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का योगदान कितना था?
उत्तर:
1990 में सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का योगदान 40.59 (कृषि तथा विनिर्माण क्षेत्र से अधिक) था।

प्रश्न 82.
किस तकनीकी ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाया?
उत्तर:
हरित क्रांति तकनीकी ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाया।

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प्रश्न 83.
वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उस वस्तु के उपयोग पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
कीमत में वृद्धि होने से उस वस्तु का प्रयोग बड़ी बुद्धिमत्ता तथा कुशलता से किया जाता है।

प्रश्न 84.
व्यावसायिक संरचना तथा आर्थिक विकास में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
आर्थिक संरचना तथा आर्थिक विकास में अटूट सम्बन्ध है। ज्यों-ज्यों आर्थिक विकास होता है त्यों-त्यों कृषि क्षेत्र पर निर्भर जनसंख्या का प्रतिशत कम होता जाता है तथा द्वितीयक क्षेत्र तृतीयक क्षेत्र पर निर्भर रहने वाली जनसंख्या का प्रतिशत बढ़ता जाता है।

प्रश्न 85.
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का क्रम क्यों आरम्भ किया गया?
उत्तर:
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में अल्पविकसितता को दूर करने के लिए और देश में उपलब्ध साधनों का उचित उपयोग करने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं के क्रम को शुरू किया गया।

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प्रश्न 86.
औद्योगिक नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
औद्योगिक नीति से अभिप्राय उस नीति से है जिसमें मौलिक और औद्योगिक मुद्दों को स्पष्ट किया जाता है। जैसे उद्योगों का निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में विभाजन, पैमाने के आधार पर उद्योगों के स्वरूप का निर्धारण, पूँजीगत अथवा उपभोक्ता वस्तुओं के उद्यमों की स्थापना।

प्रश्न 87.
आर्थिक संवृद्धि को परिभाषित करें।
उत्तर:
आर्थिक संवृद्धि-को एक अर्थव्यवस्था में लम्बे समय तक प्रति व्यक्ति सकल घरेलू . उत्पाद में निरंतर वृद्धि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

प्रश्न 88.
आर्थिक संवृद्धि को किन दो तरीकों से परिभाषित किया जा सकता है?
उत्तर:

  1. सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि
  2. प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि।

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प्रश्न 89.
एक देश के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान देने वाले क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
एक देश के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान देने वाले तीन क्षेत्र हैं –

  1. प्राथमिक क्षेत्र
  2. द्वितीयक क्षेत्र तथा
  3. तृतीयक क्षेत्र

प्रश्न 90.
प्राथमिक क्षेत्र में किन आर्थिक क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है?
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र भी कहते हैं। इस क्षेत्र में उन सब आर्थिक क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जिनमें प्राकृतिक साधनों का शोषण किया जाता है। जैसे-खेती – करना, मछली पकड़ना, वन काटना आदि।

प्रश्न 91.
द्वितीयक क्षेत्र में कौन-कौन से व्यवसाय आते हैं?
उत्तर:
द्वितीय क्षेत्र को विनिर्माण क्षेत्र भी कहते हैं। इस क्षेत्र में वे व्यवसाय आते है। जो प्रकृति से प्राप्त कच्चे माल का रूप बदलकर पक्का माल तैयार करते हैं अथवा एक प्रकार की वस्तु को दूसरी प्रकार की वस्तु में बदलते हैं, जैसे-रुई से कपड़ा बनाना, चमड़े से जूता बनाना, गन्ने से चीनी बनाना आदि।

प्रश्न 92.
तृतीयक क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
तृतीयक क्षेत्र उस क्षेत्र को कहते हैं जिसमें बैंकिंग, परिवहन, संचार आदि सेवाओं का उत्पादन किया जाता है। इसे सेवा क्षेत्र भी कहते हैं।

प्रश्न 93.
अर्थशास्त्र की भाषा में आर्थिक संवृद्धि का अच्छा संकेतक कौन है?
उत्तर:
अर्थशास्त्र की भाषा में आर्थिक संवृद्धि का अच्छा संकेतक सकल घरेलू उत्पाद में निरंतर वृद्धि है।

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प्रश्न 94.
प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद की गणना कैसे की जाती है?
उत्तर:
प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद निकालने के लिये सकल घरेलू उत्पाद को जनसंख्या से विभाजित किया जाता है।

प्रश्न 95.
आर्थिक विकास से सकल घरेलू उत्पाद में विभिन्न क्षेत्रों के योगदान में क्या परिवर्तन आते हैं?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे विकास होता है, सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान कम होता जाता है और विनिर्माण क्षेत्र तथा सेवा क्षेत्र का योगदान बढ़ता जाता है।

प्रश्न 96.
संरचनात्मक परिवर्तन से क्या अभिप्राय है? यह कब होता है?
उत्तर:
संरचनात्मक परिवर्तन से अभिप्राय सकल घरेलू उत्पाद में विभिन्न क्षेत्रों के योगदान में परिवर्तन होना है। यह परिवर्तन देश के आर्थिक विकास के कारण होता है।

प्रश्न 97.
स्वतंत्रता के समय प्राथमिक, द्वितीयक एवम् तृतीयक क्षेत्र की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर:
स्वतंत्रता के समय भारत के संरचनात्मक ढाँचे में कृषि का महत्त्व सबसे अधिक था। इसके विपरीत उद्योगों का बहुत कम महत्त्व था। सेवा क्षेत्र का भी योगदान कम था।

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प्रश्न 98.
भूमि सुधार की दिशा में कौन-कौन से महत्त्वपूर्ण उठाये गये हैं? कोई तीन कदम लिखें।
उत्तर:

  1. मध्यस्थों एवम् जमींदारी का उन्मूलन
  2. जोतों की अधिकतम सीमा का निर्धारण करना तथा
  3. चकबंदी

प्रश्न 99.
किन-किन राज्यों में भूमि सुधारों ने सफलता प्राप्त की और क्यों?
उत्तर:
केरल तथा पश्चिमी बंगाल में भूमि सुधार आंदोलन ने सफलता प्राप्त की क्योंकि वहाँ की सरकार काश्तकारों को भूमि देने पर दृढ़संकल्प थी।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था और समाजवादी अर्थव्यवस्था में कोई दो अंतर बतायें।
उत्तर:
पूँजीवादी तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था में अंतर –
Bihar Board Class 11 Economics Chapter - 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-1990) img 3

प्रश्न 2.
पूँजीवाद किन उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करता है? वह किस उत्पादन विधि को अपनाता है और किस आधार पर वस्तुओं तथा सेवाओं का वितरण करता है?
उत्तर:
पूँजीवाद उन उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करता है जिनको देश या विदेश में लाभ पर बेचा जा सकता है। वह उत्पादन की उस विधि को अपनाता है जो तुलनात्मक रूप से कम खर्चीली हो। वह लोगों की क्रयशक्ति और क्रय-इच्छा को आधार पर वस्तुओं तथा सेवाओं का वितरण करता है।

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प्रश्न 3.
समाजवादी अर्थव्यवस्था में किन वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाता हैं? इस अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं का वितरण किस आधार पर किया जाता है? यह अर्थव्यवस्था किस देश में अपनाई गई थी?
उत्तर:
समाजवादी अर्थव्यवस्था में समाज तथा सेवाओं का वितरण भी लोगों की आवश्यकताओं के अनुसार ही किया जाता है। यह अर्थव्यवस्था पूर्व सोवियत संघ में अपनाई गई थी।

प्रश्न 4.
प्रत्येक समाज को किन तीन प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता है?
उत्तर:
प्रत्येक समाज को निम्न तीन प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता है –

  1. देश में किन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाये?
  2. वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन कैसे किया जाये? वस्तुओं के उत्पादन के लिये उत्पादकों द्वारा अधिक मानवीय श्रम का प्रयोग किया जाना चाहिये या अधिक पूँजी का?
  3. लोगों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का वितरण कैसे किया जाना चाहिये?

प्रश्न 5.
लघु उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
लघु उद्योग को निवेश की मात्रा के आधार पर परिभापित किया जाता है। समय-समय पर निवेश की मात्रा में परिवर्तन किया जाता है। 1950 में उस उद्योग को लघु उद्योग कहा जाता था जिसमें अधिकतम निवेश 5,00,000 रुपये है। वर्तमान समय में इस सीमा को बढ़ा कर एक करोड़ कर दिया गया है।

प्रश्न 6.
लघु उद्योगों को विकसित करने के लिये भारत सरकार द्वारा कई कदम उठाये गये हैं। कोई चार उपाय लिखें।
उत्तर:

  1. सरकार ने लघु उद्योगों को कुछ वस्तुओं को कर से मुक्त रखा है।
  2. इन्हें बैंकों से कम ब्याज दर पर ऋण दिया जाता है।
  3. लघु उद्योगों के विकास के लिये देश में बड़ी संख्या में औद्योगिक वस्तियों की स्थापना की गई है।
  4. इस बात की संभावना है कि दीर्घकालिक आर्थिक बातों पर ध्यान न दिया जाए जैसे आधारभूत और भारी उद्योग आदि।

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प्रश्न 7.
घरेलू उद्योगों के विदेशी प्रतियोगिता से किन दो रूपों में संरक्षण दिया गया? उन रूपों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता सं किन दो रूपों में संरक्षण दिया गया-प्रशुल्क (Tarifls) तथा कोटा (Quotas)। प्रशुल्क से अभिप्राय आयतित वस्तुओं पर कर से है। प्रशुल्क में आयात की जाने वाली वस्तु महंगी हो जाती है। परिणामस्वरूप आयात की जाने वाली वस्तुओं का आयात किया जा सकता है। प्रशुल्क और कोटे का उद्देश्य आयात पर प्रतिबंध लगाना और घरेलू फर्मों को विदेशी प्रतियोगिता से संरक्षण देना है। विदेशी प्रतियोगिता से संरक्षण मिलने पर हमारे देश में घरेलू इलेक्ट्रॉनिक (Electronic) तथा आटोमोबाइल (Automobile) उद्योग विकसित हो सके।

प्रश्न 8.
हरित क्रांति के विषय में कौन-कौन सी आशंकाएँ थीं? क्या वे आशंकाएँ सच निकलीं।
उत्तर:
हरित क्रांति के विषय में दो भ्रान्तियाँ थीं –
1. हरित क्रांति से अमीरों तथा गरीबों में विषमत्ता बढ़ जायेगी क्योंकि बड़े जमींदार ही इच्छित अनुदानों का क्रय कर सकेंगे और उन्हें ही हरित क्रांति का लाभ मिलेगा और वे और अधिक धनी हो जायेंगे। निर्धनों को हरित क्रांति से कुछ लाभ नहीं होगा।

2. उन्नत बीज वाली फसलों पर जंतु एवं कीड़े आक्रमण करेंगे। ये दोनों भ्रान्तियाँ सच नहीं हुई क्योंकि सरकार ने छोटे किसानों को निम्न ब्याज दर पर ऋणों की व्यवस्था की और रासायनिक खादों पर आर्थिक सहायता दी ताकि वे उन्नत बीज तथा रासायनिक खाद सरलता से खरीद सकें और उनका उपयोग कर सकें। जीव-जन्तुओं के आक्रमणों को भी सरकार द्वारा स्थापित अनुसंधान संस्थाओं (Reserch Institutes) की सेवाओं द्वारा कम कर दिया गया।

प्रश्न 9.
सार्वजनिक उपक्रम से क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
सार्वजनिक उपक्रम से अभिप्राय ऐसी व्यावसायिक अथवा औद्योगिक संस्था से है जिसका स्वामित्व, प्रबंध एवम् संचालन सरकार (केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या स्थानीय प्रशासन या किसी सार्वजनिक संस्था) के अधीन होता है। राव, चौधरी एवम् चक्रवर्ती के अनुसार, “व्यवसाय में राजकीय उपक्रम से आशय एक ऐसे प्रतिष्ठान से है जो सरकार के द्वारा एकल स्वामी या बहुमत अंशधारी के रूप में भी नियंत्रित या संचालित किया जाता है।”
विशेषताएँ (Features):

  1. ये सरकारी संस्थाएँ होती हैं।
  2. इनका स्वामित्व, प्रबंध एवम् संचालन सरकार के हाथों में होता है।
  3. सरकार जैसे केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार अथवा स्थानीय प्रशासन अथवा कोई सार्वजनिक संस्था इनका स्वामित्व हो सकता है।
  4. इन उपक्रमों पर या तो सरकार का पूर्ण स्वामित्व होता है या इनकी अधिकांश पूँजी पर सरकार का नियंत्रण होता है।
  5. इन संस्थाओं द्वारा निजी संस्थाओं की भाँति ही वस्तुओं एवं सेवाओं का विक्रय किया जाता है।

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प्रश्न 10.
संरक्षण की नीति किस अवधारणा पर आधारित है?
उत्तर:
संरक्षण की नीति इस अवधारणा पर आधारित है कि विकासशील देश के उद्योग. अधिक विकसित देशों में निर्मित वस्तुओं का मुकाबला नहीं कर सकते। ऐसी मान्यता है कि यदि घरेलू उद्योगों को संरक्षण दिया जाता है तो वे कुछ समय के पश्चात् विकसित देशों में निर्मित वस्तुओं का मुकाबला कर सकेंगे।

प्रश्न 11.
विदेशी प्रतियोगिता से संरक्षण की आलोचना किस आधार पर की जाती है?
उत्तर:
ऐसा माना जाता है कि अधिक समय तक संरक्षण देने से उद्योग अपनी वस्तुओं की गुणवत्ता नहीं बढ़ायेगी क्योंकि उन्हें पता है कि वह ऊँची कीमत पर अपनी निकृष्ट वस्तुओं को अपने देश में बेच सकते हैं।

प्रश्न 12.
सार्वजनिक उपक्रमों के औचित्य में कई तर्क दिये जाते हैं। कोई चार तर्क लिखें।
उत्तर:
सार्वजनिक उपक्रमों के औचित्य में तर्क (Rational of Public Sector):

  1. सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना लाभ के उद्देश्य से नहीं अपितु जनकल्याण हेतु की जाती है।
  2. इन उपक्रमों में कर्मचारियों की हितों की रक्षा की जाती है।
  3. ये उपक्रम कर्मचारियों को आवास तथा यातायात की सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं।
  4. ये उपक्रम क्षेत्रीय असमानता को दूर करने का प्रयत्न करते हैं।

प्रश्न 13.
सार्वजनिक संस्थाओं के महत्त्व को दर्शाने वाले किन्हीं दो बिन्दुओं पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
सार्वजनिक उपक्रमों का महत्त्व (Importance of public sector undertakings):
निम्नलिखित बिन्दु सार्वजनिक उपक्रमों के महत्त्व को दर्शाते हैं –

1. सामाजिक न्याय (Social Justice):
सार्वजनिक उपक्रमों में सामाजिक न्याय की प्राप्ति में सहायता मिलती है। इन संस्थाओं के द्वारा अधिकतम संभव मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट करने का प्रयास किया जाता है। आय की असमानताओं को न्यूनतम किया जाता है तथा राष्ट्रीय आय का वितरण समानता एवं न्याय के आधार पर किया जाता है।

2. क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना (Removing Regional Disparities):
सार्वजमिक उद्योगों के द्वारा क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने का प्रयत्न किया जाता है। इन उद्योगों की स्थापना उन क्षेत्रों में की जाती है जिन क्षेत्रों की निजी उद्योगपतियों द्वारा अवहेलना की जाती है। इसमें उद्योगों की स्थापना इस प्रकार की जाती है कि उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग हो।

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प्रश्न 14.
एक देश में केवल तीन वस्तुओं का उत्पादन होता है –

  1. दूध
  2. लकड़ी और
  3. कपड़ा। 2005 में इन तीन वस्तुओं का उत्पादन क्रमशः 10,000 लीटर, 20,000 क्विंटल तथा 30,000 मीटर हुआ। इन वस्तुओं की कीमत क्रमशः 8 रुपये प्रति लीटर, 5 रुपये क्विंटल तथा 10 रुपये प्रति मीटर है। इस देश की सकल घरेलू उत्पाद की गणना करें।

उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product):
Bihar Board Class 11 Economics Chapter - 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-1990) img 4a
अतः देश का. सकल घरेलू उत्पाद 3,80,000 रुपये है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
प्रथम सात पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि विकास का संक्षेप में वर्णन करें?
उत्तर:
प्रथम सात पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि क्षेत्र में होने वाली प्रगति (Progress in Agricultures during First Seven Fiveyear Plans):
प्रथम सात पंचवर्षीय योजनाओं की समयावधि 1951 से 1990 है। इस समयावधि में कृषि के विकास को उच्च प्राथमिकता दी गई। कृषि विकास में योजनाओं का योगदान दो प्रकार का है-भूमि सुधार तथा तकनीकी सुधार।

1. भूमि सुधार (Land Reforms):
स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारत में अधिकतर कृषकों की स्थिति शोचनीय थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत पश्चात् भारत सरकार ने भूमि सुधार की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाए। भूमि सुधार से अभिप्राय जोतों के स्वामित्व में परिवर्तन से है। अब तक भूमि सुधार में काफी प्रगति की जा चुकी है। भूमि सुधारों में मुख्यतः निम्न को शामिल किया गया –

  • जमींदारों एवम् मध्यस्थों का उन्मूलन
  • जोतों की अधिकतम सीमा का निर्धारण
  • चकबंदी
  • काश्तकारी व्यवस्था में सुधार

जमींदारों एवम् मध्यस्थों का उन्मूलन (Abolition of Zamindari System):
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में तीन प्रकार की काश्तकारी प्रथा प्रचलन में थी –

  • जमींदारी प्रथा
  • रैयतवाड़ी प्रथा तथा
  • महालवाड़ी प्रथा।

ये तीनों प्रथाएँ उत्पादन एवम् उत्पादकता के विकास में बाधक थीं तथा सामाजिक व आर्थिक न्याय के दृष्टिकोण से अनुचित थीं। अतः सरकार ने सर्वप्रथम इन्हें समाप्त करने का निर्णय किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् काश्तकारों को भूमि का स्वामी बनाने के लिये तथा मध्यस्थों को समाप्त करने के लिए कदम उठाये गये। बिचौलियों के उन्मूलन से लगभग 200 लाख काश्तकारों का सरकार से सीधा सम्बन्ध हो गया है। अब वे जमींदारों के शोषण से मुक्त हैं। भूमि के स्वामित्व ने उनको अधिक उत्पादन करने की प्रेरणा दी है। परंतु जमींदारी उन्मूलन से सामाजिक न्याय का उद्देश्य पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं किया जा सका। कानून में कुछ कमियाँ होने के कारण पूर्व जमींदार बड़ी-बड़ी जमीनों के स्वामी बने हुए हैं।

2. जोतों की अधिकतम सीमा का निर्धारण (Ceiling of Holdings):
भारत में भूमिहीन श्रमिक काफी संख्या में हैं। हमारे देश में जहाँ एक ओर अधिकांश लोगों के पास खेती के लिये एक बीघा भी भूमि नहीं है, वहाँ दूसरी ओर कुछ गिने-चुने लोग इतनी अधिक भूमि के स्वामी हैं कि उसकी ठीक प्रकार से देखभाल भी नहीं कर सकते। ऐसी अवस्था में यह आवश्यक हो जाता है कि जोतों की अधिकतम सीमा निर्धारित की जाए ताकि अतिरिक्त भूमि को भूमिहीनों में बाँट कर सामाजिक न्याय की स्थापना की जा सके और अधिक से अधिक लोगों को रोजगार की सुविधायें उपलब्ध कराई जा सकें।

लगभग सभी राज्य सरकारों ने जोतों की अधिकतम सीमा के सम्बन्ध में आवश्यक अधिनियम पारित किये हैं। जोतों की उच्चतम सीमा से अभिप्राय जोत की उस अधिकतम सीमा से है जो कि एक कृषक या एक गृहस्थ अपने अधिकार में रख सकता हैं। इस सीमा से जितनी अधिक भूमि एक व्यक्ति के पास होती है वह सरकारी कब्जे में आ जाती है और सरकार इसका पुनः वितरण भूमिहीन किसानों के बीच कर देती है। अधिकतमत जोत सीमा सम्बन्धी कानूनों के फलस्वरूप 1991-92 के आरम्भ में अनुमानित घोषित अतिरिक्त भूमि का क्षेत्रफल लगभग 8.8 मिलियन हेक्टेयर था।

सरकार के द्वारा प्राप्त किया गया क्षेत्र 3.0 मिलियन हेक्टेयर था तथा वास्तव में वितरित क्षेत्र केवल 1.8 मिलियन हेक्टेयर था। वितरित किया गया क्षेत्र कुल उपलब्ध अतिरिक्त क्षेत्र का दो-तिहाई भाग है। इससे स्पष्ट है कि हमारे देश में भूमि सीमा कानूनों की प्रगति बहुत धीमी है। उच्चतम सीमा के नियमों को लागू करने में कई कठिनाई सामने आईं।

बड़े जमींदारों ने उच्चतम सीमा अधिनियमों को न्यायालयों में चुनौती दी और इस प्रकार इन अधिनियमों को लागू करने में विलम्ब हुआ। इस विलम्ब में बड़े-बड़े जमींदारों ने अपनी भूमियों को अपने निकट सम्बन्धियों के नाम पंजीकृत करा ली और इन अधिनियमों से बच गये। भूमि सुधार ने केरल तथा पश्चिम बंगाल में सफलता प्राप्त की क्योंकि वहाँ की राज्य सरकारें भूमि में सुधार लाने हेतु वचनबद्ध थीं। दुर्भाग्यवश दूसरे राज्यों की सरकारें भूमिहीनों को भूमि देने में रुचि नहीं रखती थीं और आज उन राज्यों में भूमि जोतों में काफी असमानता है।

3. तकनीकी सुधार और हरित क्रांति (Technical Reforms and Green Revolution):
तकनीकी सुधार से अभिप्राय कृषि उत्पादन की विधियों में सुधार करना तथा उन्नत बीजों का प्रयोग करना। कृषि क्षेत्र में उत्पादकता काफी सीमा तक कृषि आदानों (बीज, खाद तथा उर्वरक, सिंचाई सुविधा) एवं उत्पादन की तकनीक पर निर्भर करती है। यदि उन्नत किस्म के कृषि आदानों एवम तकनीक का प्रयोग किया जाये तो कृषि के क्षेत्र में प्रगति की जा सकती है। कृषि आदानों से अभिप्राय उन साधनों से है जिनकी सहायता से कृषि उत्पादन किया जा सकता है। इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित को शामिल किया जा सकता है-सिंचाई की सुविधाएँ, खाद एवम् उर्वरक, कृषि मशीनी आदि।

स्वतंत्रता के समय देश 75% लोग कृषि पर निर्भर करते थे और कृषि पिछड़ी हुई अवस्था में थी। कृषि के पिछड़ेपन के मुख्य कारण कृषि उत्पादन के पुराने तरीकों को अपनाना, सिंचाई सुविधाओं का अभाव। भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर थी और यदि मानसून की वर्षा अपर्याप्त होती थी तो किसानों पर संकट के बादल मंडरा जाते थे, क्योंकि सिंचाई सुविधाओं का अभाव था। औपनिवेशकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीन (slagnat) थी। इस गतिहीनता को स्थायी रूप से हरित क्रांति (Green Revolution) द्वारा तोड़ा गया। हरित क्रांति से अभिप्राय उत्पादन की तकनीक को सुधारने एवम् कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि करने से है।

हरित क्रांति की दो मुख्य विशेषतायें थीं –
1. उत्पादन की तकनीक को सुधारना तथा

2. उत्पादन में वृद्धि करना। इस संदर्भ में स्व. श्रीमती इंदिरा गाँधी ने लिखा था, “हरित क्रांति का आशय यह नहीं है कि खेतों में मेड़बंदी करवा कर फावड़े, तगारी, गेंती, हल, बक्खर इत्यादि उपयोगी कृषि के साधन प्राप्त करके कृषि की जाये अपितु इन साधनों के प्रयोग से कृषि उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि करना है।”

इस क्रांति का मुख्य आधार नवीन व उच्च उत्पादन वाली वस्तुओं का प्रयोग है जिससे कृषक तीन से चार गुने अधिक तक उत्पादन कर सकता है। हल के स्थान पर ट्रैक्टर से जुताई करने, मानसून पर निर्भर न रह कर ट्यूबवेलों से सिंचाई की व्यवस्था करने तथा उपज को जानवरों के पैरों से अलग न करा कर थ्रेशर मशीन का प्रयोग करने, उन्नत बीजों तथा अच्छी रासायनिक खादों का प्रयोग कर तथा उचित समय पर पानी देने से कृषि उत्पाद में वृद्धि हुई। इसे ही हरित क्रांति कहते हैं।

हरित क्रांति का देश के कृषि क्षेत्र पर अच्छा प्रभाव पड़ा। इसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन बढ़ कर तीन गुने से भी अधिक हो गया। हरित क्रांति से पूर्व देश को भारी मात्रा में खाद्यान्नों का आयात करना पड़ता था परंतु अब भारत इस क्षेत्र में लगभग आत्मनिर्भर हो चुका है। हरित क्रांति से कृषि आय में वृद्धि हुई परंतु इस क्रांति की कुछ कमियाँ भी थीं जो मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं –

  1. हरित क्रांति मुख्य रूप से गेहूँ, ज्वार, बाजार तक ही सीमित है। फसलों जैसे पटसन और कपास आदि के उत्पादन में केवल सीमित वृद्धि हुई है।
  2. खाद्यान्नों में वृद्धि पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश तथा तमिलनाडु में ही हुई।

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प्रश्न 2.
पंचवर्षीय योजना के लक्ष्यों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य (Goals of Five Year Plans):
पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

1. संवृद्धि (Growth):
संवृद्धि से अभिप्राय एक देश में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में देश की क्षमता में वृद्धि है। दूसरे शब्दों में देश में यातायात, बैंकिंग आदि सेवाओं का विस्तार करना। उत्पादक पूँजी की कार्यकुशलता में वृद्धि करना, उत्पादन पूँजी के स्टॉक में वृद्धि करना। आर्थिक विकास का अच्छा संकेतक सकल घरेलू उत्पादन में निरंतर वृद्धि है।

सकल घरेलू उत्पाद से अभिप्राय एक देश में उत्पादित वस्तुओं तथा सवाओं के बाजार मूल्य से है। वस्तुओं तथा सेवाएँ के उत्पाद में वृद्धि होने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी और देशवासियों को अधिक मात्रा में सेवाएँ और वस्तुएँ उपलब्ध होंगी। संवृद्धि में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। यदि हम यह चाहते हैं कि देशवासियों का जीवन स्तर ऊँचा हो, उन्हें हर प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त हों तो हमें देश में अधिक वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करना पड़ेगा।

2. आधुनिकीकरण (Modernisation):
देश में वस्तुओं और सेवाओं का अधिक उत्पादन करने के लिए हमें उत्पादन की नई तकनीकी अपनानी होगी। उदाहरण के लिये एक किसान खेती में अधिक उत्पादन कर सकेगा यदि वह पुराने बीजों के साथ उन्नत किस्म के बीज का प्रयोग करे। इसी प्रकार नई किस्म के मशीन के प्रयोग से एक फैक्टरी अधिक उत्पादन कर सकन्नी है।

नई तकनीक के अपनाने को ही आधुनिकीकरण कहते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आधुनिकीकरण से अभिप्राय न केवल नई तकनीकों को अपनाना है अपितु सामाजिक दृष्टिकोण में भी परिवर्तन लाना है। सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन में अभिप्राय स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार देना, उन्हें घर की चारदीवारी में न बांधना। उन्हें भी कार्यस्थल पर (बैंकों, कारखानों, स्कूलों आदि में) अपनी योग्यता का सुअवसर प्रदान किया जाना चाहिए।

3. आत्मनिर्भरता (Self-reliance):
पंचवर्षीय योजनाओं का एक लक्ष्य भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। आत्मनिर्भरता से अभिप्राय उन वस्तुओं का आयात न करना जिन वस्तुओं का अपने देश में उत्पादन किया जा सकता है। आत्मनिर्भरता की नीति को पंचवर्षीय योजनाओं में इसलिये महत्त्व दिया जाये ताकि विदेशों पर निर्भरता को कम किया जा सके।

4. न्याय (Equity):
एक देश के निवासियों के जीवन स्तर में सुधार केवल संवृद्धि, आधुनिकीकरण तथा आत्मनिर्भरता से नहीं आ सकता। यह सम्भव है कि एक देश में संवृद्धि अधिक ऊँची हैं, देश में उच्च तकनीक है और फिर भी अधिकांश लोग निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रहे हों। आर्थिक समृद्धि का लाभ केवल धनी वर्ग को ही नहीं मिलना चाहिये अपितु निर्धन वर्ग को भी उससे लाभ होना चाहिये। अतः संवृद्धि, आधुनिकीकरण तथा आत्मनिर्भरता के साथ-साथ समानता (न्याय) भी आवश्यक है। प्रत्येक भारतवासी को अपनी आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये समर्थ होना चाहिये।

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प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था की कौन-सी समस्या है? विस्तारपूर्वक समझाएँ?
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था की मुख्य समस्याएँ (Main problems of an economy):
एक अर्थव्यवस्था की मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

1. किन वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन किया जाए और कितनी मात्रा में (Which commodities are to be produced and in what quantity):
प्रत्येक अर्थव्यवस्था की सबसे पहली समस्या यह है कि कौन-सी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए जिससे लोगों की अधिकतम आवश्यकताओं को संतुष्टि किया जा सके। इस समस्या के उत्पन्न होने का मुख्य कारण आवश्यकताओं की तुलना में साधन सीमित होना है। प्रत्येक अर्थव्यवस्था को यह चुनाव करना पड़ता है कि किन आवश्यकताओं को संतुष्ट किया जाए तथा किनका त्याग किया जाए।

इस विषय में दो बातें तय करनी पड़ती हैं –

  • यह तो यह निर्णय लेना पड़ता है कि कौन-सी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाए। अर्थात् क्या उपभोक्ता वस्तुएँ, पूँजीगत वस्तुएँ, युद्धकालीन वस्तुएँ या शांतिकालीन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए।
  • जब एक अर्थव्यवस्था यह तय कर लेती है कि कौन-सी वस्तु का उत्पादन करना है तो उसे यह भी निर्णय लेना पड़ता है कि उपभोक्ता वस्तुओं का कितना उत्पादन किया जाए पूँजीगत वस्तुओं का कितना उत्पादन किया जाए। उत्पादक उन्हीं वस्तुओं का तथा उतनी ही मात्रा में उत्पादन करते हैं जिनसे उन्हें अधिकतम लाभ प्राप्त होता है।

2. वस्तुओं का उत्पादन किस प्रकार किया जाए (How to Produce):
एक अर्थव्यवस्था की दूसरी बड़ी समस्या है वस्तुओं का उत्पादन कैसे किया जाए। इस समस्या का संबंध उत्पादन की तकनीक का चुनाव करने से है। इसमें उत्पादन की कई तकनीकों को अपनाया जा सकता है। जैसे –

श्रम प्रधान तकनीक (Labour intensive technique):
इस तकनीक में श्रम का उपयोग पूँजी की तुलना में अधिक किया जाता है।

श्रम प्रधान तकनीक (Labour intensive technique):
इस तकनीक में श्रम का उपयोग पूँजी की तुलना में अधिक किया जाता है। एक अर्थव्यवस्था को यह तय करना पड़ता है कि वह कौन-सी तकनीक का प्रयोग किस उद्योग में करे जिससे उत्पादन अधिक कुशलतापूर्वक किया जा सके। किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन की कौन-सी तकनीक अपनाई जाए, यह साधनों की उपलब्धता तथा उनके सापेक्षिक मूल्यों पर निर्भर करेगा।

3. उत्पादन किसके लिए किया जाए (For whom to Produce):
एक अर्थव्यवस्था को यह भी निर्धारित करना पड़ता है कि उत्पादन किसके लिये किया जाए। उत्पादन एवं उपभोग या बाजार में विनिमय के लिए किया जाता है। इसके मुख्य दो पहलू हैं –

  • प्रथम पहलू का संबंध व्यक्तिगत वितरण से है। इसका अभिप्राय यह है कि उत्पादन का समाज के विभिन्न व्यक्तियों तथा परिवारों में किस प्रकार वितरण किया जाए।
  • वितरण की समस्या का एक दूसरा पहलू कार्यात्मक वितरण है। इसका संबंध यह ज्ञात करने से है उत्पादन के विभिन्न साधनों अर्थात् भूमि, श्रम, पूँजी तथा उद्यम में उत्पादन का बँटवारा कैसे हो।

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प्रश्न 4.
क्या सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का सामाजिक दायित्व लाभ-उपार्जन से अधिक आवश्यक है?
उत्तर:
भारत में औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1948 तथा औद्योगिक अधिनियम 1951 को क्रियान्वित करने के फलस्वरूप सार्वजनिक क्षेत्र का प्रादुर्भाव हुआ। औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1948 तथा औद्योगिक अधिनियम 1951 में सार्वजनिक एवम् निजी क्षेत्र के कार्यों का स्पष्ट विभाजन किया गया है। क्षेत्रों के स्पष्ट विभाजन के बाद से ही सार्वजनिक क्षेत्र का तेजी से विकास हुआ।

आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सामाजिक क्षेत्र, सामाजिक मूल्यों तथा व्यापक हित के विचार को महत्त्व देता है। बड़ी-बड़ी सार्वजनिक कल्याण संस्थाओं की स्थापना सार्वजनिक क्षेत्र में ही संभव है क्योंकि निजी क्षेत्र इतना बड़ा निवेश करने का साहस नहीं करता। सार्वजनिक क्षेत्र का दायित्व सामाजिक है। यह लाभ कमाने से अधिक महत्त्वपूर्ण है। सामाजिक दायित्व में निम्नलिखित दायित्व सम्मिलित हैं –

  1. समाज को रोजगार देना।
  2. बीमार (रुग्न) उद्योगों को स्वस्थ बनाना।
  3. एकाधिकार प्रवृत्ति को रोकना।
  4. आय की असमानता को कम करना।
  5. धन तथा सम्पत्ति का उचित वितरण करना।
  6. व्यापारिक शोषण समाप्त करना तथा।
  7. वस्तुओं की कमी को दूर करना।

यदि इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये सार्वजनिक उपक्रमों को हानि भी हो तो भी उन्हें सामाजिक दायित्वों को निभाना चाहिये।

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प्रश्न 5.
पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य के रूप में समानता या न्याय से क्या अभिप्राय है? क्या हम पंचवर्षीय योजना के इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हुए हैं? कारण सहित उत्तर दें।
उत्तर:
न्याय या समानता (Equity):
नियोजन का एक प्रमुख लक्ष्य न्याय की प्राप्ति है। राज्य के नीति निर्देशक तत्व संविधान के आवश्यक तत्त्व हैं। उनमें यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि सरकार एक ऐसी व्यवस्था उत्पन्न करने का प्रयत्न करेगी जिसमें आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक न्याय सभी को उपलब्ध होगा। दूसरे भारत में यह सिद्धांत स्वीकार किया गया है कि यहाँ समाजवादी ढंग से समाज की रचना करनी है। इन मौलिक बातों को ध्यान में रखकर सभी योजनाओं का यह प्रमुख लक्ष्य रहा है कि –

1. आय की विषमता को कम किया जाये।

2. बेकारी और निर्धनता को दूर किया जाये।

3. आर्थिक सत्ता के केन्द्रीयकरण को कम किया जाये जिससे सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिले तथा।

4. लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाये रखा जाये। केवल संवृद्धि, आधुनिकीकरण तथा आत्मनिर्भरता से लोगों का जीवनस्तर सुधार नहीं सकता जब तक आर्थिक समृद्धि का फल निर्धन व्यक्तियों को नहीं प्राप्त होता। ऐसी अवस्था में तो अमीर और अधिक अमीर होते जायेंगे तथा गरीब और अधिक निर्धन हो जायेंगे। इस तरह अमीरों तथा गरीबों के बीच में अंतर बढ़ता जायेगा।

अतः आर्थिक समृद्धि के साथ आधुनिकीकरण तथा आत्मनिर्भरता के साथ-साथ न्याय (सामाजिक तथा आर्थिक) का भी महत्व है। प्रत्येक भारतीय नागरिक को इस योग्य बनाना है कि वह भोजन, आवास, शिक्षा तथा स्वास्थ्य जैसी आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। इसके अतिरिक्त सम्पत्ति के असमान वितरण को भी घटाया जाना चाहिये।

जब भारत स्वतंत्र हुआ तो उस समय नगरों तथा ग्रामों में आर्थिक, असमानता थी। भारत में जमींदारी प्रथा थी। जमींदार बड़ी-बड़ी भू-जोतों के स्वामी थे। वे काश्त करने के लिए काश्तकारों को जमीन देते थे और मनमाना भूमि का किराया लेते थे। काश्तकार उनकी दया पर निर्भर करते थे। जमींदार जब भी चाहें उनको बेदखल कर देते थे। किसान लोग अति निर्धन थे, ऋणगस्त थे।

कहा जाता था कि किसान ऋण में पैदा होता है, ऋण में रहता है और ऋण में मरता है। इसके विपरीत जमींदार ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करते थे। उन्हें हर प्रकार सुविधाएँ प्राप्त थीं। इस तरह गाँवों में आर्थिक तथा सामाजिक विषमता व्याप्त थीं। ग्राम में आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए योजना काल में कई भूमि सुधार किए गये। कृषि उत्पादन में वृद्धि और सामाजिक न्याय के लिये कृषि में किये गये संस्थागत परिवर्तनों को भूमि सुधार कहते हैं। ये कृषि जोतों को पुनर्गठित कर तथा भूमि के स्वामित्त्व करके किये जाते हैं।

भूमि सुधारों के दो मुख्य उद्देश्य हैं –

  1. कृषि विकास अर्थात् कृषि में वृद्धि तथा
  2. सामाजिक न्याय अर्थात् मध्यस्थों द्वारा काश्तकारों की समाप्ति और भूमि के जोतने वालों को भूमि का स्वामी बनाना

भारत में भूमि-सुधार की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं। जैसे जमींदारों (मध्यस्थों): का उन्मूलन, काश्तकारी व्यवस्था में सुधार, जोतों की अधिकतम सीमा निर्धारित करना, चकबंदी, सहकारी खेती आदि। भारत के भूमि सुधार कार्यक्रमों को लागू करने की गति काफी धीमी रही इस कारण इनके परिणाम संतोषजनक नहीं रहे हैं। प्रो. दान्तवाला ने कहा है कि, “अब तक भारत में जो भूमि सुधार हुए हैं या निकट भविष्य में होने वाले हैं, वे सभी सही दिशा में हैं लेकिन लियान्वयन के अभाव में इनके परिणाम संतोषजनक नहीं रहे हैं।”

शहरों में भी आय तथा सम्पत्ति का असमान वितरण है। भारत जैसे पिछड़े देशों में आय को असमानता गरीबी की संख्या को बढ़ाने में हवन में आहुति की तरह काम करती है। पंचवर्षीय योजनाओं में आय की अंसमानता को दूर करने के लिये निम्नलिखित उपाय अपनाये गये हैं।

  1. सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार किया गया है।
  2. औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति अपनाया गया है।
  3. लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किये गये हैं।
  4. सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अपनाय गया है।
  5. बीस सूत्री कार्यक्रम अपनाया गया है।
  6. कई राज्यों में बेरोजगारी भत्ते की व्यवस्था की गई है।
  7. स्वरोजगार को प्रोत्साहन दिया गया है।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि योजनाओं में अपनाई गई नीतियों के परिणामस्वरूप आय की विषमताएँ कम होने के बजाय बढ़ी हैं। औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में जितनी आय अर्जित हुई उसका एक बड़ा भाग कुछ औद्योगिक घरानों के पास ही केन्द्रित रह गया तथा सामान्य जनता तक उसका लाभ बहुत मात्रा में नहीं पहुँचा। अन्य शब्दों में विभिन्न योजनाओं में अपनाये गये विभिन्न विकास कार्यक्रमों के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में आय की मात्रा में वृद्धि। तो हुई है किन्तु इसका समान बंटवारा नहीं हुआ है।

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प्रश्न 6.
आर्थिक नियोजन के कई लक्ष्य हैं। उनमें एक लक्ष्य आत्मनिर्भरता है। आत्मनिर्भरता के लिये भारत में क्या प्रयल किये गये हैं और उसमें हम कहाँ तक सफल हुए हैं?
उत्तर:
आत्मनिर्भरता-पंचवर्षीय नियोजनों का एक लक्ष्य (Self Reliance-Goal of Five year Plans):
पंचवर्षीय योजनाओं के कई लक्ष्य हैं। उनमें से एक लक्ष्य आत्मनिर्भरता है। आत्मनिर्भरता से अभिप्राय उन वस्तुओं के आयात से बचना है जिनका उत्पादन स्वयं देश में किया जा सकता है। लगभग 200 वर्षों की परतंत्रता के पश्चात् भारत 15 अगस्त, 1947: को स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता के समय हम अपनी छोटी-छोटी आवश्यकताओं के लिये विदेशों पर। निर्भर थे। उस समय खाद्यान्न की कमी थी और इस कमी को पूरा करने के लिये हमें काफी मात्रा में खाद्यान्नों का आयात करना पड़ा।

देश में भारी और आधारभूत उद्योग लगभग नहीं के बराबर थे और इस कारण पूँजीगत वस्तुओं की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता था। अतः भारत को दूसरे देशों की निर्भरता (विशेषकर खाद्यान्नों के लिये) कम करने के लिए आत्मनिर्भरता की नीति को आवश्यक समझा गया। हमें यह डर था कि कहीं आयात खाद्यान्न, विदेशी तकनीकी तथा विदेशी पूँजी पर हमारी निर्भरता से हमारी नीतियों पर विदेशी हस्तक्षेप करना न आरम्भ कर दें। अतः हमने आत्मनिर्भरता की नीति को अपनाया।

योजनाओं के आरम्भ में ही आत्मनिर्भरता की बात कही गई परंतु तीसरी योजना में इस पर विशेष बल दिया गया। पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में तो विदेशी सहायता पर निर्भरता को न्यूनतम करने की बात कही गई। भारत में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य प्राप्त करने के कई प्रत्यन किये गये। कृषि में उत्पादकता को बढ़ाने के कई भूमि सुधार किये गये। जमींदारी प्रथा उन्मूलन के लिये कानून बनाये गये। काश्तकारों को भूमि का स्वामी बनाया गया।

भमि की उच्चतम सीमा निर्धारित की गई। हरित क्रांति द्वारा कृषि उत्पादों में वृद्धि हुई। परिणामस्वरूप 1960 में भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हो गया। भारत में खाद्यान्नों का एक विपुल भण्डार भी बनाया जा चुका है। अब हमें (कुछ अपवादों को छोड़कर) खाद्यान्नों के आयात की आवश्यकता नहीं है, परंतु खादों तथा रासायनिक पदार्थों का अब भी हमें भारी मात्रा में आयात करना पड़ता है। देश में उद्योगों को विकसित करने के लिए भी कई प्रयत्न किये गये हैं। दूसरी पंचवर्षीय योजना में उद्यमों को मुख्य रूप से प्रधानता दी गई ताकि औद्योगिक प्रगति की नींव रखी जा सके। सातवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि में औद्योगिक विकास की दिशा में अनेक आधारभूत परिवर्तन हुए हैं जिससे देश में आर्थिक विकास को बल मिला।

पूँजीगत वस्तुओं एवं उपभोक्ता वस्तुओं दोनों के उत्पादन में विकास की समान महत्त्व दिया गया। सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार हुआ। उपभोग उद्योगों के सम्बन्ध में देश लगभग आत्मनिर्भर हो चुका है। उद्योगों का विविधीकरण तथा आधुनिकीकरण किया गया। औद्योगिक उत्पादन में काफी वृद्धि हुई। लघु उद्योगों के विकास के लिये प्रयत्न किये गये।

उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता से संरक्षण देने के लिए संरक्षण तथा कोटा की नीति अपनाई गई। पहली पंचवर्षीय योजनाओं में औद्योगिक क्षेत्र में उपलब्धियाँ वास्तव में प्रभावशाली रहीं। इस काल में औद्योगिक क्षेत्र में 6 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि प्रशंसनीय है। दूसरे योजनाकाल के आरम्भ में आयात प्रतिस्थापन के लिये सब प्रकार के उद्योगों की स्थापना पर बल दिया गया। इतना होने पर भी हम अभी तक औद्योगिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं हुए हैं।

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प्रश्न 7.
औद्योगिक नीति 1956 ने भारत के उद्योगों को कितनी श्रेणियों में बाँटा? इन वर्गों में किन उद्योगों को रखा गया?
उत्तर:
उद्योगों का वर्गीकरण (Classification of Industries):
औद्योगिक नीति 1956 के अनुसार भारतीय उद्योगों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया –

  1. प्रथम वर्ग
  2. द्वितीय वर्ग तथा
  3. तृतीय वर्ग

1. प्रथम श्रेणी (First Category):
प्रथम श्रेणी में युद्ध सामग्री का निर्माण, परमाणु शक्ति के उत्पादन एवम् नियंत्रण, अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण, रेल यातायात तथा डाकघर को रखा गया। इनके स्वामित्व और प्रबंध तथा स्थापना एवं विकास का दायित्व पूर्ण रूप से केन्द्रीय सरकार को सौंपा गया।

2. द्वितीय श्रेणी (Second Category):
इस श्रेणी में वे उद्योग रखे गये जिनके विकास में सरकार अधिक भाग लेगी। 12 उद्योगों को इस श्रेणी में रखा गया जैसे-औजार, मशीन, दवाइयाँ, रासायनिक खाद, रबड़, जल यातायात, सड़क यातायात आदि। भाविष्य में इस श्रेणी उद्योगों की स्थापना सरकारी क्षेत्र में ही की जायेगी।

3. तृतीय श्रेणी (Third Category):
इस श्रेणी में उन सभी उद्योगों को रखा गया जो निजी क्षेत्र के लिये सुरक्षित रहेंगे। इनका विकास निजी क्षेत्र की प्रेरणा से हागा किन्तु इस श्रेणी में भी राज्य नये उद्योगों की स्थापना कर सकता है।

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प्रश्न 8.
भारत में औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति के क्या प्रमुख उद्देश्य रहे हैं?
उत्तर:
भारत में औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति के प्रमुख उद्देश्य (Main Objectives of Industrial Licensing):
भारत में औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. विभिन्न योजनाओं के लक्ष्यों के अनुसार औद्योगिक निवेश तथा उत्पादन को विकसित एवं नियंत्रित करना।
  2. छोटे और लघु उद्यमों को प्रोत्साहन देना तथा उन्हें संरक्षण प्रदान करना।
  3. औद्योगिक स्वामित्व के रूप में आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण को रोकना।
  4. आर्थिक विकास के क्षेत्र में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना तथा समुचित संतुलित औरद्योगिक विकास के लिये प्रेरित करना।

प्रश्न 9.
व्यापार नीतियों के औद्योगिक विकास पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
व्यापार नीतियों का औद्योगिक विकास, पर प्रभाव (Effect of tradepolicies on industrial development):
प्रथम पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत भारत के औद्योगिक क्षेत्र की उपलब्धियाँ बहुत ही प्रभावशाली रहीं। 1950-51 में सकल घरेलू उत्पाद में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान 11.8 प्रतिशत था जो कि 1990-91 में बढ़कर 24.6 प्रतिशत हो गया। सकल घरेलू उत्पाद में औद्योगिक क्षेत्र की हिस्सेदारी में वृद्धि विकास का संकेतक है। भारत का उद्योग क्षेत्र अब केवल सूती उद्योग और पटसन तक ही सीमित नहीं रह गया था। 1990 तक इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के कारण विविधता आ गई।

सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ औद्योगिक इकाइयाँ थीं-चितरंजन डीजल लोकोमोटिव वर्क्स, इन्टेगरल कोच फैक्टरी, हिन्दुस्तान शिपयार्ड, इण्डियन ऑयल कार्पोरेशन आदि। प्रथम पंचवर्षीय योजनाओं में सार्वजनिक प्रतिष्ठानों ने आश्चर्यजनक प्रगति की है। प्रथम पंचवर्षीय योजना के आरम्भ होने के समय अर्थात 1950 में भारत में केन्द्रीय सरकार के अधीन केवल 5 प्रतिष्ठान थे जिनमें 29 करोड़ रुपये की पूँजी का निवेश किया गया था इसके मुकाबले इनकी संख्या बढ़कर 7 वीं योजना के अन्त में 244 हो गई थी जिसमें 1,06,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हो चुका था। लघु उद्योगों के विकास ने उन व्यवसायियों को व्यवसाय चलाये जाने का सुअवसर प्रदान किया जिनके पास बड़े-बड़े उद्योग चलाने की पूँजी नहीं थी। विदेशी प्रतियोगिता से संरक्षण ने घरेलू उद्योगों को विकसित होने का सुअवसर प्रदान किया।

भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में सार्वजनिक क्षेत्र के योगदान होने पर भी कुछ अर्थशास्त्री सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की उपलब्धियों की आलोचना करते हैं। उनका विचार है कि आरम्भ में सार्वजनिक उपक्रमों की बहुत ही आवश्यकता थी और इन उपक्रमों ने सकल घरेलू उत्पाद में काफी योगदान दिया है। परंतु अब अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में भ्रष्टाचार, अकर्मण्यता, अकुशलता, भ्रष्टाचार, मितव्ययता, लालफीताशाही आदि व्याप्त हैं, जिनके फलस्वरूप वे उपक्रम घाटे में चल रहे हैं। कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम अपने उत्पादों का मनमाना मूल्य निर्धारित करते हैं और उपभोक्ता का शोषण करते हैं जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का उद्देश्य जन कल्याण है न कि जनता का शोषण।

इनमें उत्पाद की गुणवत्ता की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। परंतु इन कारणों से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को समाप्त नहीं किया जाना चाहिये। इनमें कुशलता लाई जानी चाहिये। भ्रष्टाचार, अकुशल तथा कामचोर कर्मचारियों पर कड़ी अनुशासनात्मक कार्यवाही की जानी चाहिये। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवम् सेवाओं का मूल्य निर्धारित करने के लिये मूल्य बोर्ड का गठन किया जाना चाहिये । इतना होने पर भी यदि कोई सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम घाटे में चल रहा है तो उसे बंद नहीं करना चाहिये क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम का मुख्य उद्देश्य लाभ अर्जित करना नहीं है, अपितु जनकल्याण है। इसके अतिरिक्त इस बात की क्या गारंटी है कि उस उपक्रम में लाभ होगा यदि वह उपक्रम निजी क्षेत्र में चलाया जाये निजी क्षेत्र के उपक्रम भी तो घाटे में चलते हैं।

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प्रश्न 10.
भारत में व्यापार नीति पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
भारत की व्यापार नीति (Trade Policy of India):
व्यापार नीति को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –
1. बाह्य उन्मुख नीति (Outward looking Policy) तथा

2. अन्तर्मुख नीति (Inward looking Policy)। बाह्य उन्मुख नीति निर्यात संवर्धन पर जोर देती है जबकि अन्तर्मुख नीति आयात प्रतिस्थापन पर। हमारे देश की प्रथम पंचवर्षीय योजनाओं में हमारी व्यापार नीति अन्तर्मुखी (Inward looking) रही है। जैसा कि हम पहले बता चुके हैं कि व्यापार की अन्तर्मुखी नीति आयात प्रतिस्थापन पर जोर देती है। हमारी प्रथम सात पंचवर्षीय योजनाओं में आयात प्रतिस्थापन पर अधिक बल दिया गया है। आयात प्रतिस्थापन का अर्थ है कि आयात की जाने वाले वस्तुओं का घरेलू (देशी) उत्पादन द्वारा प्रतिस्थापन करना।

उदाहरण के लिये परिवहन के साधनों को दूसरे देशों से आयात करने के स्थान पर अपने देश में उनका निर्माण करना। जिन देशों में आयात प्रतिस्थापन की नीति को अपनाया जाता है वहाँ घरेलू उद्योगों को अत्यधिक संरक्षण प्रदान किया जाता है। आयातों व विदेशी निवेश पर कड़े नियंत्रण रखे जाते हैं। आयात से संरक्षण दो तरीकों से किया जा सकता है –

2. टैरिफ (Tariffs) एवं कोटा (Quotas)। आयात की जाने वाली वस्तुएँ महंगी हो जाती हैं और इससे उनके उपयोग को हतोत्साहित किया जाता है। कोटे से यह निर्धारित किया जाता है कि कोई विशेष वस्तु कितनी मात्रा में दूसरे देशों से मंगवाई जा सकती है। टैरिफ और कोटे से आयात पर प्रतिबंध लग जाता है और विदेशी प्रतियोगिता से घरेलू फर्मों को संरक्षण प्राप्त होता है। संरक्षण की नीति इस अवधारणा पर आधारित होती है कि विकसित देश के उद्योग अधिक विकसित देशों में उत्पादित वस्तुओं का मुकाबला नहीं कर सकते। ऐसी मान्यता है कि यदि घरेलू उद्योगों को संरक्षण किया जाता है तो कुछ समय के पश्चात् वे विदेशी उद्योगों से मुकाबला करने में समर्थ जो जाते हैं।

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प्रश्न 11.
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विभिन्न उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर:
भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विभिन्न उद्देश्य (Various Objective of Public Sector in India):
भारत में सार्वजनिक उपक्रमों को विभिन्न उद्देश्यों के लिये स्थापित किया गया है। भिन्न-भिन्न उपक्रमों के भिन्न-भिन्न उद्देश्य हैं। इन सभी उद्देश्यों को चार शीर्षकों में विभाजित किया गया है –
1. राष्ट्रीय उद्देश्य (National Objectives):
बहुत से सार्वजनिक उपक्रम राष्ट्रीय महत्व को ध्यान में रख कर स्थापित किये गये हैं। जैसे-राष्ट्रीय सुरक्षा, परमाणु शक्ति आदि।

2. सामाजिक उद्देश्य (Economic objectives):
भारत में सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना के कुछ मुख्य उद्देश्य सामाजिक भी हैं जो इस प्रकार हैं –

  • समाज को रोजगार देना
  • बीमार उद्योगों को स्वस्थ बनाना
  • एकाधिकार प्रवृत्ति को रोकना
  • आय की असमानता को कम करना
  • उचित वितरण
  • व्यापारिक शोषण समाप्त करना
  • वस्तुओं की कमी को दूर करना

3. आर्थिक उद्देश्य (Economic Objectives):
कुछ सार्वजनिक उपक्रम आर्थिक उद्देश्य से प्रेरित होकर भी स्थापित किये गये हैं। जैसे –

  • योजनाबद्ध विकास करना
  • संतुलित क्षेत्रीय विकास करना
  • भावी विकास हेतु वित्तीय साधन जुटाना
  • विकास दर में वृद्धि करना
  • निर्यात में वृद्धि करना
  • आधारभूत उद्योगों का विकास करना

4. अन्य उद्देश्य (Other Objectives):

  • निजी उपक्रमों की स्थापना करना
  • तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना
  • लघु तथा कुटीर उद्योगों की सहायता करना

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प्रश्न 12.
महालनोबिस के जीवन तथा उपलब्धियों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
महालनोबिस की उपलब्धियाँ (Achievements of Mahalanobis):
इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत में पहली पंचवर्षीय योजना का सूत्रपात 1951 में हुआ था। इस योजना में कृषि को बहुत महत्त्व दिया गया था। परंतु वास्तव में भारत में योजना का वास्तविक रूप में आरम्भ द्वितीय पंचवर्षीय योजना से हुआ था। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में ही भारतीय योजना के उद्देश्य के विषय में वास्तविक विचारों का उल्लेख किया गया था और वह दूसरी पंचवर्षीय योजना महालनोबिस के विचारों पर आधारित थी। इस दृष्टिकोण से उन्हें भारतीय योजना का निर्माता कहा जा सकता है।

महालनोबिस का जन्म 1893 में कलकत्ता (कोलकाता) में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई, प्रेसीडेंसी कॉलेज (Presidency College) तथा इंगलैण्ड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (Cambridge University) में की। उन्होंने सांख्यिकी (Statistics) के विषय में इतना अधिक योगदान दिया कि उनकी विश्व में प्रसिद्ध हो गई और उन्हें 1946 में Britian’s Royal Society का सदस्य बना लिया गया। उन्होंने कोलकाता में भारतीय सांख्यिकीय ‘संस्था’ (Indian Statistical Institute) की स्थापना की और सांख्य (Snakhya) नाम की एक पत्रिका (Journal) शुरू की।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter - 2 भारतीय अर्थव्यवस्था (1950-1990) img 6
दूसरी पंचवर्षीय योजना में उन्होंने भारत तथा विश्व के विख्यात अर्थशास्त्रियों को आमंत्रित किया ताकि वे उन्हें भारत के आर्थिक विकास के बारे में परामर्श दे सके। वे भारत को आर्थिक विकास के पथ पर डालने के लिये सर्वदा स्मरणीय रहेंगे।

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प्रश्न 13.
भू-धारण प्रणाली से क्या अभिप्राय है? स्वतंत्रता के समय भारत में कितने प्रकार की भू-स्वामित्व प्रणालियाँ अस्तित्व में थीं? प्रत्येक प्रणाली का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
भू-धारण प्रणाली (Land Tenure System):
सरकार के प्रति काश्तकारों के कर्त्तव्यों तथा अधिकारों के निर्धारण और वर्णन को भू-धारण प्रणाली कहते हैं। स्वतंत्रता के समय भारत में तीन भू-धारण प्रणालियाँ प्रचलित थीं –

  1. जमींदारी प्रथा
  2. महालवाड़ी प्रथा, तथा
  3. रैयतवाड़ी प्रथा

1. जमींदारी प्रथा (ZamindariSystem):
इस प्रणाली का आरम्भ लार्ड कार्नवालिस ने 1971 में बंगाल में स्थायी बंदोस्त चलाकर किया था। इसके अनुसार कुछ किसानों को भूमि का स्वामी बना दिया गया जो वास्तव में पहले मालगुजारी एकत्रित करने वाले सरकारी कर्मचारी थे। इन नये भू-स्वामियों ने अधिकांश भूमि पट्टे पर काश्तकारों को दी और वे उसका मनमाना लगान प्राप्त करते थे। ये जमींदार अब काश्तकारों तथा सरकार के बीच में मध्यस्थ (बिचौलिये) बन गये। वे स्वयं काश्तकारी नहीं करते थे। उनका मुख्य कार्य काश्तकारों से मनचाहा लगान वसूलना होता था।

वे सरकार को एक निश्चित मालगुजारी देते थे। वे देश के विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न नाम से जाने जाते थे। ये जमींदार भूमि के विकास की ओर कोई ध्यान देते थे। काश्तकार भी भूमि में कोई सुधार नहीं लाते थे क्योंकि उन्हें भूमि से कभी भी बेदखल किया जा सकता था। जमींदार काश्तकारों से न केवल लगान वसूल करते थे अपितु अन्य गैर-कानूनी कर भी लगाते थे, जिसके परिणामस्वरूप यह प्रणाली कृषि तथा देश की उन्नति में निश्चित रूप से बाधक सिद्ध हुई। इस प्रथा के फलस्वरूप आर्थिक दृष्टि से किसान कंगाल तथा ऋणगस्त हो गये। सामाजिक दृष्टि से वे दास की अवस्था में आ गये।

स्वतंत्रता के पश्चात् इस प्रथा का उन्मूलन करने के लिये सरकार द्वारा कई कानून पास किये गये। इस सम्बन्ध में सबसे पहले अधिनियम 1943 में मद्रास (चेन्नई) में पारित किया गया। 1955 तक लगभग सभी राज्यों में ऐसे अधिनियम पारित किये जा चुके थे। कई राज्यों में मध्यस्थों की और से इन कानूनों को चुनौती दी गई जिन्हें 1951 के संविधान में संशोधन के द्वारा दूर करना पड़ा। भू-धारण की इस प्रणाली के उन्मूलन से लगभग दो करोड़ काश्तकारों का सरकार से प्रत्यक्ष सम्बन्ध हो गया है।

2. महालवाड़ी प्रथा (Mahalwari System):
भू-धारण की इस प्रणाली (प्रथा) के अन्तर्गत सारी भूमि ग्राम समुदाय की होती है ग्राम समुदाय के सदस्य व्यक्तिगत और सामूहिक रूपों में लगान के भुगतान के लिये उत्तरदायी होते हैं। भू-धारण की यह प्रणाली 1863 में शुरू हुई थी और देश के कुछ क्षेत्रों में जैसे आगरा, अवध और पंजाब के कुछ भागों में प्रचलित थी। यद्यपि आरम्भ में भूमि का स्वामित्व सामूहिक था परंतु समय के साथ-साथ काश्तकार अपनी भूमि के लगान. के लिये व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी समझा जाने लगा।

3. रैयतवाड़ी प्रथा (RayatwariSystem):
यह प्रथा हमारे देश में सबसे अधिक जानी जाती है। इस प्रथा के अन्तर्गत भूमि पर काश्तकारों का अलग-अलग वैयक्तिक स्वामित्व होता है। ये सभी भू-स्वामी (काश्तकार) व्यक्तिगत रूप से राज्य को लगान देने के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस प्रथा के अन्तर्गत काश्तकारों और राज्य के बीच किसी भी प्रकार का कोई मध्यस्थता नहीं है। यह प्रथा आरम्भ में मद्रास में लागू की गई और बाद में ब्रिटिश भारत के अधिकतर प्रदेशों बम्बई, बिहार और मद्रास में की गई।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन योजना आयोग का अध्यक्ष है?
(a) वितमंत्री
(b) योजना मंत्री
(c) प्रधानमंत्री
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) प्रधानमंत्री

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प्रश्न 2.
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में किस आर्थिक प्रणाली को अपनाया गया?
(a) पूंजीवादी
(b) मिश्रित
(c) समाजवादी
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) मिश्रित

प्रश्न 3.
किस आर्थिक प्रणाली में उत्पादन के सभी साधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है?
(a) समाजवादी
(b) मिश्रित
(c) पूँजीवादी
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) पूँजीवादी

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प्रश्न 4.
ब्रिटीशकाल मुख्यतः कितनी भू-धारण प्रणालीयाँ थीं?
(a) दो
(b) तीन
(c) एक
(d) चार
उत्तर:
(b) तीन

प्रश्न 5.
जमींदार प्रथा के उन्मूलन से कितने काश्तकारों का सरकार से प्रत्यक्ष सम्बन्ध हो गया?
(a) 300 लाख
(b) 200 लाख
(c) 250 लाख
(d) 350 लाख
उत्तर:
(b) 200 लाख

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प्रश्न 6.
1990 में देश का लगभग कितना प्रतिशत भाग कृषि कार्य में कार्यरत था?
(a) 80 %
(b) 65 %
(c) 70 %
(d) 40 %
उत्तर:
(b) 65 %

प्रश्न 7.
औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1956 ने भारत के उद्योगों को कितनी श्रेणयों में वर्गीकृत किया?
(a) चार
(b) दो
(c) तीन
(d) पाँच
उत्तर:
(c) तीन

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प्रश्न 8.
1990-91 में औद्योगिक क्षेत्र का सकल घेरलू उत्पाद में योगदान कितना था?
(a) 26 %
(b) 23 %
(c) 28 %
(d) 24.6 %
उत्तर:
(d) 24.6 %

प्रश्न 9.
भारत में आर्थिक नियोजन का काल कब आरम्भ हुआ?
(a) 1 अप्रैल 1961
(b) 1 अप्रैल 1980
(c) 1 अप्रैल 1951
(d) 14 अप्रैल 1974
उत्तर:
(c) 1 अप्रैल 1951

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प्रश्न 10.
1-4-1979 से 31-2-1980 का वर्ष किस योजना के अन्तर्गत आता है?
(a) प्रथम पंचवर्षीय योजना
(b) योजना का अवकाश काल
(c) द्वितीय पंचवर्षीय योजना
(d) पांचवीं पंचवर्षीय योजना
उत्तर:
(b) योजना का अवकाश काल

प्रश्न 11.
योजना काला में निम्नखित किस कारण से अभी निर्मित वस्तुओं का उत्पादन निध लक्ष्यों से कम रहा?
(a) बिजली की कमी
(b) कच्चे माल की कमी
(c) औद्योगिक अशान्ति
(d) उपयुक्त सभी कारण
उत्तर:
(d) उपयुक्त सभी कारण

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प्रश्न 12.
भारत मे आर्थिक आयोजन का एक प्रमुख उद्देश्य था –
(a) सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक विकास
(b) हिन्दी को प्रोत्साहन देना
(c) सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसर
(d) आर्थिक विषमता का बढ़ाना
उत्तर:
(d) आर्थिक विषमता का बढ़ाना

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