Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions
Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 10 जगरनाथ (केदारनाथ सिंह)
जगरनाथ पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
कवि को क्यों लगता है कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है?
उत्तर-
कवि अपने बचपन के बीते दिनों की तुलना वर्तमान औद्योगिक क्रान्ति, बौद्धिक जागरण और वैश्विकता के प्रभाव से जो असमानता की खाई बन-सी गयी है, तत्सबन्धित परिवर्तनों से कवि को आशंका होती है कि कहीं-न-कहीं, कुछ-न-कुछ गड़बड़ी अवश्य है। जीवन-मूल्यों के क्षरण और मानवीय अस्तित्व और अस्मिता को संकट में घिरते हुए देखकर कवि व्यथित है।
इस संबंध में कवि जगरनाथ भाई से प्रश्नोत्तर की आकांक्षा लिए हुए पत्र शैली में कविता के माध्यम से संवाद स्थापित कर अपनी शंका-समाधान चाहता है। प्रश्नोत्तर की जगह जगरनाथ भाई की खामोशी उसे चिन्ता में डाल देता है और उसका ध्यान सामाजिक विषमता से होने वाली गड़बड़ियों पर आकृष्ट हो जाता है। बौद्धिक विकास के क्रम में मानवीय जीवन में। जो उतार-चढ़ाव प्रतिबिम्बित होता है, वह गड़बड़ी का स्पष्ट संकेत है।
प्रश्न 2.
“वह बनसुग्गों की पाँत थी
जो अभी-अभी उड़ गई हमारे उपर से
वह है तो है
नहीं है तो भी चलती रहती है जिंदगी”
-इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें और इसकी काव्य चेतना पर भी विचार रखें।
उत्तर-
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ ‘नई कविता’ आन्दोलन के ध्वजवाहक और अपनी पीढ़ी के प्रतिनिधि कवि श्री केदारनाथ सिंह द्वारा विरचित ‘जगरनाथ’ शीर्षक कविता से उद्धत है। पस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने समाज में पल रहे परजीवी-ललबबुओं पर व्यंग-वाण चलाया है। समाज में रहने वाले इन सामाजिक भार बन चुके मनुष्य रूपी मृग से कवि को कोई आशा नहीं है।
पालतू सुग्गे की तुलना में बनसुग्गे केवल देखने और क्षति पहुँचाने के लिए है। समाज में पल रहे ललबुओं की फौज भी सामाजिक विद्रूपता फैलाती हैं, उनसे समाज किसी प्रकार लाभान्वित नहीं हो सकता। बनसुग्गों के समान ही ये कभी यहाँ और कभी वहाँ निरूद्देश्य भटकते हैं। इन सामाजिक बनसुग्गों के रहने और नहीं रहने से कोई तब्दिली नहीं आ सकती, ऐसा कवि का अभिमत है।
इन पंक्तियों में रूपकातिशयोक्ति अलंकार का कुशलता पूर्वक प्रयोग हुआ है। ‘बनसुग्गों’ सामाजिक ललबबुओं का, ‘पांत’ जमात का उपमान है। ‘बनसुग्गा’ भोजपुरी भाषा का शब्द है। ‘ललबबुओं के लिए यह सुन्दर व्यंगात्मक प्रयोग है। भाषा, शैली और शिल्प पर चौकन्नी सजगता के कारण गहरे यथार्थ बोध का स्वाभाविक संप्रेषण होता है। कवि ने जीवन के मूल्यों में हास की ओर संकेत किया है। साथ ही समाज में पल रहे ललबबुओं पर अपने व्यंगवाणों की वर्षा की है। कवि केदानाथ सिंह ने इन पंक्तियों में बनसुग्गों पर कटाक्ष; क्रान्तिकारी हथौड़े से नहीं बल्कि मृत्यु संशोधन, निपुण वैध की भाँति रोगी की नाजुक स्थिति की ठीक-ठाक जानकारी प्राप्त कर उसकी रूची के अनुसार उचित पथ्य की व्यवस्था की है, जिससे इन पंक्तियों की जीवंतता सहज की दृष्टिगोचर होता है।
प्रश्न 3.
कवि को आसमान में लाल-पीले डैने वाले पक्षियों को देखकर राहत मिलती है तो वह बनसुग्गों की पाँत की उपेक्षा क्यों करता है? आप इसका क्या कारण समझते हैं?
उत्तर-
कविवर केदार नाथ सिंह प्रगतिशील विचारधारा के कवि हैं। कवि आधुनिक परिवेश में जी रहा है। कवि की मुलाकात अपने बचपन के साथी भाई जगरनाथ से होती है। भाई जगरनाथ से अपना और उसका हाल-चाल लेते हुए कवि के माथे के ऊपर से बनसुग्गों की फौज गुजरती है। कवि उसे देखकर कहता है कि जिस प्रकार समाज में पल रहे परजीवियों के रहने या न रहने का कोई महत्व नहीं है ठीक उसी प्रकार बनसुग्गों को चले जाने का कोई महत्व नहीं है।
अचानक कवि को आकाश में उड़ते हुए लाल-पीले डैनेवाले पक्षियों अर्थात् मनुजता के पुजारी की ओर जाता है और उसे आशा की किरण स्पष्ट नजर आती है। निराशा का बादल छूटते ही मानव-मन आशा की सप्तरगिनी सपने देखकर सहज ही आत्मविभोर हो जाता है। वह पीछे घूमकर नहीं देखना चाहता अर्थात निराशा के अंधकूप में वह पुनः नहीं जाना चाहता है। मानव स्वभाववश कवि आसमान में लाल-पीले डैने वाली पक्षियों (आशा की किरण) को देखकर बनसुग्गों (निराशा की बदली) की उपेक्षा करता है।
प्रश्न 4.
कवि को अपने शब्दों से झूठ की गंध आने का संशय क्यों होता है?
उत्तर-
कवि अपनी मूल धरती-गाँवों और वहाँ की जिन्दगी को भूला नहीं है। आधुनिक समय में गँवई जीवन के बदलते स्वरूप को रेखांकित करते हुए कवि कहता है कि आजादी के पूर्व और आजादी के बाद का गाँव, दोनों में काफी असमानता है। कवि अपने बचपन के बीते दिनों की स्मृति के आधार पर तत्सम्बन्धित प्रश्न भाई जगरनाथ से करता है। सुख-सुविधाओं की आधुनिकतम वस्तुओं को निस्सार बताकर गवई जीवन को सरस, सहज और विनोदपूर्ण बताते हुए कवि प्रश्नोत्तर की आशा भाई जगरनाथ से करता है।
भाई जगरनाथ की ओर आशा पूर्ण निगाहों से देखते कवि को उनके चेहरे पर दुनिया भर की मूक बेबसी और लाचारी स्पष्टतः झलकती है। जगरनाथ भाई का मौन से उत्पन्न जबाब जिसमें आधुनिक जीवन के जड़ तक फैल चुके ईष्या, द्वेष, संकीर्णता, स्वार्थपरता, घृणा तथा सामाजिक विषमता के चिह्न का स्पष्ट छाप उभर आती है। जगरनाथ भाई को उत्तर न देकर खामोशी धारण कर लेने के कारण कवि को अपने शब्दों से झूठ की गंध आने का संशय उत्पन्न होता है।
प्रश्न 5.
जगरनाथ की चुप्पी और उसके होठों के फड़कने में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर-
कवि के अनुसार निश्चल ग्रामीण, बौद्धिक छल-बल वाले शहरी से आशंकित रहते है। कवि ग्रामीण जीवन और गाँव के निश्चल ग्रामीणों के प्रति अपना भावुकतापूर्ण विचार व्यक्त किया है। उन्होंने आधुनिकतम सुख-सुविधाओं की बनसुग्गा कहते हुए निस्सार किया है। कवि अपने आपको जगरनाथ भाई के स्तर में लाकर दूरी को पाटने का अथक प्रयास करता है। जगरनाथ भाई अपने गँवई स्वभाव से उबर नहीं पाते जिस कारण होठ तो फड़फड़ाता है परन्तु प्रस्फुटित नही हो पाते, जिसे देखकर कवि का हृदय फट पड़ता है।
प्रश्न 6.
कवि को अपनी दिनचर्या से असंतोष क्यों हैं?
उत्तर-
कवि वृति से प्राध्यापक हैं, इसका पता जगरनाथ भाई से वार्तालाप के क्रम में चलता है। अतीत की गवई स्मृतियाँ कवि के मनः मस्तिष्क-पटल पर चलचित्र की भाँति विचरण करने लगती है। कवि को गाँव-गबई के प्रति सहज और निश्चल प्रेम की अनुभूति होती है। शहरी वातावरण में फैले ईया, द्वेष, लकीर्णता, स्वार्थपरता, घृणा आदि के कारण कवि का मन उच्चाटपूर्ण संशय में पड़ जाता है। कवि प्राध्यापक होने के नाते केवल खानापूर्ति के लिए वर्ग में जाकर बक-बक कर आता है और अवसर हाथ आते ही एक-दो झपकियाँ भी मार लेता है।
इस प्रकार कवि व्यवस्था की गड़बड़ी के कारण उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों की कर्तव्यहीनता पर चोट करता है। व्यवस्था की गड़बड़ी के कारण व्यक्ति कार्य-निष्पादन निष्ठा के साथ नहीं करता है। चूंकि लेखक भी इसी व्यवस्था का एक अंग है, जिसमें व्यक्ति अपने जिम्मेवारी को ढंग से नहीं निभा पाता। कवि चाहता है कि उच्च पदासीन लोग अपने आदर्शों से समाज में एक मिसाल कायम करना चाहिए परन्तु ऐसा संभव नहीं हो पाता है, यह कवि के लिए असंतोष का विषय है।
प्रश्न 7.
जगरनाथ को जाते हुए कवि को ऐसा क्यों लगता है कि वह उसे चीरता-फाड़ता हुआ जा रहा है?
उत्तर-
कविवर केदार नाथ सिंह ने गाँव-गवई की आँचल में पल रहे निश्छलता का यहाँ बिंबात्मक चित्र उपस्थित किया है। कवि अपने लंगोटिया मित्र जगरनाथ से उसका हाल-चाल पूछता है। ललाट पर गुम्मट, नीम के पेड़ और उसे नीचे बँधी बकरियों के संदर्भो में भी वह प्रश्न पूछता है। प्रत्युत्तर न पाकर वह असहज अवस्था में अपने सामान्य दिनचर्या की चर्चा करता है। कवि की वाणी मे दुनियाँ भर की बेबसी और लाचारी स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है। कवि अपने को जगरनाथ भाई के स्तर पर लाकर उससे संवाद स्थापित कर अपने संशय को दूर करना चाहता है। जगरनाथ भाई अपने गँवई स्वभाव से उबर नहीं पाते और नि:शब्द ही चले जाते हैं।
इस प्रकार गँवई जिन्दगी में शहरी जीवन की अपेक्षा हीन-भावना की बहुलता जगरनाथ भाई के मौन और कातर नेत्रों से सहज की दृष्टिगोचर होता है। जगरनाथ की खामोशी पूर्ण जाना शहर और गाँव के बीच की खाई को परिलक्षित करता है। भाई जगरनाथ जो कवि के बचपन का साथी है। समय के अन्तराल ने जहाँ एक को जीवन की बुलन्दी के शिखर पर पहुंचा दिया है, वहीं दूसरा दारूण-दशा झेलने को अभिशप्त मानवीय जीवन के बीच फैल चुके स्वार्थपरता, संकीर्णता, द्वेष, घृणा, अविश्वास का प्रतीक बनकर जगरनाथ भाई कवि को चीरता-फाड़ता जाता हुआ दिखाई पड़ता है।
प्रश्न 8.
कविता का नायक कौन है?
उत्तर-
कविवर केदार नाथ सिंह द्वारा विरचित ‘जगरनाथ’ शीर्षक कविता का नायक भाई जगरनाथ हैं।
प्रश्न 9.
कविता का शीर्षक ‘जगरनाथ’ क्यों है?
उत्तर-
शीर्षक किसी भी रचना-भवन का मुख्य द्वारा होता है। शीर्षक पढ़कर ही पाठक सर्वप्रथम उस रचना के मूल तथ्य और कव्य से परिचित होता हैं। शीर्षक की लघुता में ही रचना की गुरूता या विशालता-व्यापकता मुख्य बिंदु के रूप में केंद्रित रहती है। रचनाकार शीर्षक का चयन मुख्य पात्र, मुख्य घटना, घटना-स्थल मुख्य उद्देश्य या मुख्य बिन्दु के आधार पर करता है। शीर्षक की सफलता, औचित्य या सार्थकता के सम्बन्ध में सभी विद्वान एकमत हैं कि शीर्षक को लघु, सटीक, मुख्य विचार या भाव अभिव्यंजक तथा सार्थक होना चाहिए।
प्रस्तुत व्यंगात्मक कविता का जगरनाथ का काल्पनिक पात्र है। सम्पूर्ण कविता पर जगरनाथ के जीवन का सारगर्भित तथ्य छाया हुआ है। वह कविता के कवि का लंगोटिया दोस्त है। भाई जगरनाथ कविता के मूल कथ्य का केन्द्र बिन्दु है जिसके माध्यम से कवि सामाजिक परिवर्तन और उसके प्रभाव को इंगित करता है। सम्पूर्ण कविता जगरनाथ के इर्द-गिर्द ताना-बाना बुनती दृष्टिगोचर होती है।
कवि ने जगरनाथ के माध्यम से ग्रामीण और शहरी वातावरण के बीच की खाई, व्यवस्था का दोष तथा ग्रामीण जीवन की संघर्षपूर्ण किन्तु निश्चल हृदय की संवेदनशीलता हमारे अंतस् पर रेखांकित किया है। साथ ही साथ शीर्षक ‘जगरनाथ’ गाँव की जिन्दगी की महत्ता को प्रदर्शित करता है और गवई भाषा के प्रति कवि की श्रद्धा को भी परिलक्षित करता है।
प्रश्न 10.
इस कविता में आपको प्रिय लगती पंक्तियाँ कौन-कौन-सी है और क्यों?
उत्तर-
कविवर केदार नाथ सिंह ने प्रस्तुत कविता ‘जगरनाथ’ में गवई किसान के जीवन और संस्कृति को प्रतिबिम्बित किया है। महानगर में रहने-जीने और वहाँ के विषयों-कथ्यों का इस म कविता में समावेश के साथ-साथ मूल धरती-गाँवों की जिन्दगी की सच्चाईयों का यथार्थ चित्रण कवि ने किया है।
कविता का शीर्षक जगन्नाथ के बदले ठेठ भोजपुरी गवई शब्द ‘जगरनाथ’ का प्रयोग कर कवि ने ग्रामीण भाषा के प्रति श्रद्धा को व्यक्त किया है। प्राध्यापक जैसे उच्च पद पर पदासीन और शहरी वातावरण में रहने वाला कवि गाँव-गवई के संगी-साथियों को नहीं भूला है। लम्बे अरसे के बाद भाई जगरनाथ से उसकी मुलाकात होती है तो वह आत्मीय भाव से पूछता है कैसे हो भाई जगरनाथ?
कितने बरस बाद तुम्हें देख रहा हूँ। कवि बाल्यावस्था में देखे गए नीम के पेड़ के नीचे बँधी बकरी जो कभी रहा करती थी उसको भी नहीं भूला है। जन्मभूमि के एक-एक वस्तु से कवि अपना प्यार और लगाव स्पष्ट करते हुए भाई जगरनाथ से पूछता है-
कैसा है वह नीम का पेड़
जहाँ बंधाती थी तुम्हारी बकरी?
कवि प्रकृति के प्रति प्रेम प्रदर्शित करते हुए उसके अनूठे उपहार ‘आम’ की चर्चा करता है। कवि कहता है कि आम का खुशबू और निराला स्वाद मन को आनंदातिरेक और वातावरण को सुवासित करता है। आम की महत्ता का चर्चा करते हुए कवि कहता है-
क्या शुरू हो गया आम का पकना?
यह एक अजब-सा फल है मेरे भाई
सोचो तो एक स्वाद और खुशबू से
भर जाती है दुनियाँ।
इस प्रकार प्रस्तुत कविता गँवई और कसबाई जिन्दगी की विस्मयजनक वास्तविकता का उत्कृष्ट मानवीय दस्तावेज है। यह कविता हमारे जातीय और सामाजिक जीवन का दर्पण भी है। यह हमारे संक्रमणशील समाज के अंत: सघंर्षों तथा उसकी जीजीविषा का साक्ष्य भी है।
प्रश्न 11.
कवि का पेशा क्या है?
उत्तर-
कविवर केदार नाथ सिंह वृत्ति से विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं। उनकी वृत्ति का पताजगरनाथ भाई से उनके वार्तालाप के क्रम में चलता है।
प्रश्न 12.
कविता में जगरनाथ के ललाट पर उगे और गुम्मट का विवरण क्यों दिया है?
उत्तर-
बहुत दिनों बाद जगरनाथ भाई से कवि की मुलाकात होती है, जिसके ललाट पर गुम्मट-सा उग आया है जो उसे कर्मठता तथा दीनता का प्रतीक है। जगरनाथ भाई के ललाट पर उभरी-गुम्मट हमारे संक्रमणशील समाज के अंत: संघर्षों तथा उसकी जिजीविषा का साक्ष्य भी है यह गुम्मट सामाजिक विषमता का विद्रूप चित्र है।
गुम्मट के माध्यम से कवि का अभीष्ट है-दलित, शोषित और पीड़ित ग्रामीण कृषक-जीवन की संवेदनाओं को लोगों के सामने रखना तथा उसकी मार्मिकता के संबंध में कुछ करने और सोचने के लिए उन्हें बाध्य करना। कविता में जगरनाथ के ललाट पर उग आए गुम्मट का विवरण सारगर्भित और उद्देश्यपूर्ण है।
प्रश्न 13.
कविता में जगरनाथ का केवल चित्रण है और कवि का एकालापी वक्तव्य, जबकि कविता का शीर्षक ‘जगरनाथ’ है। यहाँ जगरनाथ का वक्तव्य क्यों नहीं आ सका?
उत्तर-
कविता में जगरनाथ का केवल चित्रण है और कवि का एकालापी वक्तव्य; जबकि कविता का शीर्षक ‘जगरनारथ’ है। वस्तुतः जगरनाथ इस कविता का काल्पनिक पात्र है जिसके माध्यम से कवि ने सामज ने व्याप्त साधनहीनता का सफल, सार्थक और मुख्य भावाभिव्यंजन चित्र खींचा है। कवि ने ग्रामीण जीवन के शोषण, उत्पीड़न तथा गरीबी के साये में घुट-घुटकर जी रहे एक गरीब किसान के जीवन की व्यथा-कथा का अंकन किया है। भाई जगरनाथ को मूक रखकर कवि ग्रामीण जीवन के दुःख दर्द का दस्तावेज पाठकों के सामने यथार्थ रूप में चित्रित किया है। इस कविता में समाज के दलित-शोषित जीवन का मूक प्रतिबिंब खींचा गया है।
प्रश्न 14.
कविता में प्रश्नवाचक चिन्हों के प्रयोग बहुत है। उसकी सार्थकता पर विचार कीजिए।
उत्तर-
कवि केदार नाथ सिंह रचित ‘जगरनाथ’ शीर्षक कविता ग्रामीण जीवन की एक यथार्थवादी कविता है। इस चर्चित कविता में कवि ने जगरनाथ भाई के माध्यम से जीवन-मूल्यों के क्षरण और मानवीय अस्तित्व और अस्मिता के संकट का सजीव चित्रण किया है। अपने बचपन के बीते दिनों को याद करते हुए वर्तमान से तुलना कर कवि जगरनाथ भाई से प्रश्नोत्तर की आकांक्षा लिए हुए पत्र-शैली में कविता के माध्यम से संवाद स्थापित करना चाहता है। प्रश्नोत्तर की आकांक्षा में जगरनाथ भाई से बराबर आग्रह कर अपने संशय को दूर करना चाहता है।
कवि प्रश्नों के माध्यम से बौद्धिक विकास के क्रम में मानवीय जीवन में उतार-चढ़ाव की जानकारी लेना चाहता है। भाई जगरनाथ के उत्तर से ही कवि को ग्राम-परिवेश का पूरा सामाजिक, आर्थिक तथा परिवारिक परिदृश्य हमारे सामने साकार करना चाहता है। प्रश्नों के प्रयोग से यह कविता काल्पनिक तथा अस्वाभाविक न होकर बिल्कुल स्वाभाविक तथा यथार्थवादी बन गया है। कवि के द्वारा प्रश्नवाचक चिन्हों के प्रयोग ने इस कविता पर कहीं भी आदर्श का रंग नहीं चढ़ने दिया है। साथ ही प्रश्नों का भरमार कर कवि ग्रामीण समस्याओं के प्रति अपनी खोजी सोच को परिलक्षित करने का सार्थक प्रयास किया है।
प्रश्न 15.
कविता का शीर्षक है ‘जगरनाथ’ जिसका शुद्ध रूप जगन्नाथ है। शीर्षक में इस तद्भव रूप का प्रयोग कवि ने क्यों किया है?
उत्तर-
रूप जगरनाथ का प्रयोग कर कविता के माध्यम से एक दृष्टांत प्रस्तुत करने का प्रयास किया है कि शहरी ललकों से ओत-प्रोत होने के बावजूद अपने गाँव-गवई की भावुकतापूर्ण स्मृति उनके भीतर संजो रखा है। उनकी जमीन, उनका परिवेश और उनके संबंधों का राग उनके भीतर बदस्तूर महफूज है। तद्भव रूप जगरनाथ का प्रयोग से दुनिया में अंतर्विभाजन की कोई फाँक इस कविता में कही नहीं दिखती है।
प्रस्तुत शीर्षक ‘जगरनाथ’ कवि के गाँव की जिन्दगी के प्रति लगाव तथा गाँवों में व्याप्त साधनहीनता को प्रतिबिंबित करता है। कवि ने जगन्नाथ के स्थान पर उसका तद्भव रूप जगरनाथ का प्रयोग कर ग्रामीण भाषा के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त किया है। यहाँ प्रस्तुत कविता का शीर्षक ‘जगरनाथ’ ऊपर कही बातों की तस्दीक-सी करती है।
जगरनाथ भाषा की बात।
प्रश्न 1.
बक-बक, अभी-अभी में कौन-सा समास है?
उत्तर-
द्वन्द्व।
प्रश्न 2.
बक-बक करना, ठीक ही होना, इस तरह के कई मुहावरे कविता में हैं। आप उन मुहानवरों को छाँट कर लिखिए और उनका वाक्य-प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
जगरनाथ शीर्षक कविता में निम्नलिखित मुहावरे आये हैं-
- बक-बक करना-कुछ मेरी भी सुनोगे कि बक-बक करते रहोगे?
- ठीक ही होना-आमदनी’ बस ठीक ही है, चल जाता है।
- समय मिलना-क्या करू, काम का इतना बोझ है कि समय नहीं मिल पाता आने का।
- मार लेना-तुम देखते रह जाओगे और कोई तुम्हारा पाकेट मार लेगा।
- होंठ फड़कना-मरते समय वह कुछ कहना चाह रहा था, लेकिन बस होंठ फड़क कर रह गये।
प्रश्न 3.
कविता में प्रयुक्त अव्ययों को चुन कर लिखें।
उत्तर-
जगरनाथ शीर्षक कविता में निम्नलिखित अव्यय प्रयुक्त हुए हैं
बक-बक, अभी-अभी, आजकल, जाओ-जाओ, चीड़ता-फड़ता, इस तरह आदि।
ललाट, पेड़, क्लास, पाँत, आसमान, राहत, बारिश, खुशबू, साथी।
प्रश्न 4.
इन शब्दों को पर्यायवाची लिखों?
उत्तर-
ललाट-कपाल, क्लास-वर्ग, पाँत-पंक्ति, आसमान-गगन, राहत-आराम, बारिश-वर्षा, खुशबू-सुगन्ध, साथी-मित्र।
प्रश्न 5.
कविता में कई सर्वनाम हैं। आप उन सर्वनामों को छाँटें और बताएं कि वे किस प्रकार के सर्वनाम हैं?
उत्तर-
- मैं, तुम, वह – पुरुषवाचक सर्वनाम
- मेरा, तुम्हारा – संबंधवाचक सर्वनाम
- क्या, क्यों – प्रश्नवाचक सर्वनाम
- यह, वह, जहाँ – निश्चयवाचक सर्वनाम
- कोई, कौन – अनिश्चयवाचक सर्वनाम
- स्वयं, आप – निजवाचक सर्वनाम।
प्रश्न 6.
कवि यहाँ उत्तम पुरुष की भूमिका में हैं। उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष का अंतर वाक्य प्रयोग द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
पुरुष (Person) सर्वनाम (जिन शब्दों का संज्ञा के स्थान पर प्रयोग होता है) के भेद हैं। इनकी संख्या तीन है-
उत्तम पुरुष-जिस सर्वनाम से वक्ता या लेखक का बोध हो। जैसे-मैं, हम। मैं खाता हूँ। हम टहलते हैं।
मध्यम पुरुष-जिस सर्वनाम से सुनने वाले का बोध हो। जैसे-तू, आप, तुम, तुमलोग। तू कहाँ गया था? आप बैठिये। तुम लोग जा रहे हो।
अन्य पुरुष-जिस सर्वनाम से वक्ता या श्रोता के अतिरिक्त किसी अन्य का बोध हो, अर्थात् जिसके बारे में वक्ता कहे और श्रोता सुने, वह अन्य पुरुष है। जैसे-वह, यह, जो, सो, कुछ, कौन, कोई, वे, वे लोग, वे सब आदि।
- वह – वह चला गया।।
- यह – यह टलेगा नहीं।
- जो – जो करना हो, जल्दी करो।
- सो – जो अच्छा लगे, सो करो।
- कुछ – कुछ भूल गया है।
- कौन – कौन पुकार रहा है?
- कोई – कोई आने वाला है।
- वे – वे बहुत अच्छे हैं।
- वे लोग/वे सब – वे लोग/वे सब बस म के हैं, काम के नहीं
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
जगरनाथ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘जगरनाथ’ कविता में प्रकृति वर्णन का परिचय दें।
उत्तर-
जगरनाथ’ कविता में केदारनाथ सिंह ने जगरनाथ के माध्यम से प्रकृति को भी याद किया है। वह नीम के पेड़ के विषय में जगरनाथ से पूछता है जहाँ बकरी उसकी बँधती थी। फिर वह आम के विषय में पूछता है कि आम पकने लगे हैं या नहीं। वार्तालाप के बीच सिर पर से वनसुग्गों की एक टोली गुजर जाती है और मन में हरापन दौड़ जाता है। आसमान में पक्षियों को उड़ते देखने पर उसको बहुत राहत अनुभव होती है। प्रकृति-चित्र के इन चन्द टुकड़ों के सहारे कवि ने प्रकृति को याद किया है। इसमें सीधा वर्णन नहीं प्रकृति-चित्रों का स्मरण है।
प्रश्न 2.
कवि की जिज्ञासाएँ क्या हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर-
लेखक हालचाल पूछने के क्रम में जगरनाथ से अनेक जिज्ञासाएँ करता है। इनमें कई तरह के प्रश्न हैं। प्रथमतः कवि उसका हालचाल पूछता है-कैसे हो जगरनाथ भाई? फिर बच्चों का समाचार पूछता है-बच्चे कैसे हैं? फिर उसके घर के सामने खड़े नीम के पेड़ के विषय में जिज्ञासा करता है। यह क्रम आगे बढ़ता है और उसके स्वास्थ्य के विषय में, वर्षा होने के विषय में, आमों के पकने के विषय में कवि जिज्ञासाएँ करता चला जाता है। इस तरह कवि ने जिज्ञासा के वृत्त में जगरनाथ, उसके घ र और गाँव की प्रकृति तथा मौसम को समेटा है।
जगरनाथ लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘जगरनाथ’ कविता में कवि की दिनचर्या का संक्षेप में विवेचन करें।
उत्तर-
‘जगरनाथ’ कविता में कवि जगरनाथ का हालचाल पूछता है और संवाद पैदा करने हेतु अपने विषय में बताता जाता है। इसी क्रम में वह अपनी दिनचर्या बतलाता है कि वह क्लास में बकझक कर आता है अर्थात् पेशे से वह अध्यापक है। पढ़ाने के काम से फुरसत मिलने पर दिन में भी एक झपकी मार लेता है। खाता-पीता है और सब मिलाकर ठीक-ठाक दिनचर्या के सहारे जीवन चल रहा है।
प्रश्न 2.
कवि अपनी ही बातों में झूठ की गन्ध की बात क्यों कहता है?
उत्तर-
कवि के मन में एक चोर बैठा है नकली आत्मीयता या दिखावेपन का उसे लगता है कि जगरनाथ उसके खोखले आत्मीयतापूर्ण शब्दों की सच्चाई अनुभव कर रहा है और इसीलिए चुप है। इसी की प्रतिक्रिया में उसका असली रूप बाहर आ जाता है।
जगरनाथ अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि की जिज्ञासाओं के उत्तर में जगरनाथ क्या कहता है?
उत्तर-
जगरनाथ कोई उत्तर नहीं देता है। उसके ओठ फड़फड़ा कर रह जाते हैं और वह अजीब दृष्टि से कवि को ताकता है जिसे कवि सह नहीं पाता है।
प्रश्न 2.
‘जगरनाथ’ कविता में कवि ने किस तत्त्व को केन्द्र में रखा है?
उत्तर-
‘जगरनाथ’ कविता में कवि ने जगरनाथ से आत्मीयता का सम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा को केन्द्र में रखा है।
प्रश्न 3.
जगरनाथ द्वारा कवि की भावना की प्रतिक्रिया में क्या उत्तर प्राप्त होता है?
उत्तर-
जगरनाथ कोई उत्तर नहीं देता है। उसके मन में यह स्नेह नहीं मात्र प्रदर्शन है। इसलिए यह अविश्वसनीय है। दोनों के धरातल दो हैं अत: बचपन की आत्मीयता का उल्लास उसके मन
में ही उमड़ता।
प्रश्न 4.
कविता के अन्त में जगरनाथ क्या करता है?
उत्तर-
वह कवि को ऐसी दृष्टि से ताकत हुआ चला जाता है जो दृष्टि कवि को भीतर तक . -काड़ देती है।
प्रश्न 5.
जगरनाथ शीर्षक कविता में किस परिवेश का चित्रण हुआ है?
उत्तर-
जगरनाथ शीर्षक कविता में गवई (ग्रामीण) परिवेश का चित्रण हुआ है।
प्रश्न 6.
जगरनाथर किसका प्रतीक है?
उत्तर-
जगरनाथ सामान्य आदमी का प्रतीक है।
प्रश्न 7.
जगरनाथ शीर्षक कविता में कौन-सा बोध है?
उत्तर-
जगरनाथ शीर्षक कविता में यथार्थबोध और सौन्दर्य बोध दोनों पाई जाती है।
जगरनाथ वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
I. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ
प्रश्न 1.
‘जगरनाथ’ कविता के कवि हैं
(क) विद्यापति
(ख) कबीर
(ग) केदारनाथ सिंह
(घ) सहजोबाई
उत्तर-
(ग)
प्रश्न 2.
केदारनाथ सिंह का जन्म कब हुआ था?
(क) 1932 ई०
(ख) 1936 ई०
(ग) 1942 ई०
(घ) 1937 ई०
प्रश्न 3.
केदारनाथ सिंह का जन्म स्थान है
(क) मध्यप्रदेश
(ख) अरुणाचल प्रदेश
(ग) झारखंड
(घ) उत्तर प्रदेश
उत्तर-
(घ)
प्रश्न 4.
केदारनाथ सिंह की शिक्षा हुई थी
(क) स्वतंत्र लेखन
(ख) गद्य-लेखन
(ग) कहानीकार
(घ) व्यंग्यकार
उत्तर.
(क)
प्रश्न 5.
केदारनाथ सिंह की कृतियाँ हैं
(क) जमीन पक रही है
(ख) यहाँ से देखो
(ग) अकाल में सारस
(घ) कल्पना और छायावाद
उत्तर-
(क)
प्रश्न 6.
केदारनाथ सिंह की प्रतिनिधि कविताएँ प्रकाशित हैं
(क) भारती भवन
(ख) राजकमल प्रकाशन
(ग) भारतीय प्रकाशन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख)
प्रश्न 7.
केदारनाथ सिंह कार्यरत हैं
(क) भारतीय भाषा विभाग
(ख) कृषि विभाग
(ग) वाणिज्य विभाग
(घ) आयकर विभाग
उत्तर-
(क)
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 1.
बीसवीं शदी के छठे दशक में ये …………….एक महत्वपूर्ण कवि हैं
उत्तर-
नई कविता।
प्रश्न 2.
कवि का अपनी खो चुकी जमीन के लिए ……………. उनके भीतर नहीं दिखती।
उत्तर-
हूक या तड़पा
प्रश्न 3.
उनकी कविताओं की दुनियाँ में …………… कोई फाँक नहीं दिखती।
उत्तर-
अंतर्विभाजन।
प्रश्न 4.
उनकी जमीन उनका परिवेश और उनके संबंधों का राग उनके भीतर ………….. रहा है।
उत्तर-
बदस्तूर महफूज।.
प्रश्न 5.
प्रस्तुत कविता जगरनाथ ऊपर कहीं बातों की ………….. करती है।
उत्तर-
तस्दीक सी।
प्रश्न 6.
कवि ने अपनी कविता में …………….. शैली का भरपूर उपयोग साधा है।
उत्तर-
नाटकीया
प्रश्न 7.
आठवीं शदी में वे अपनी पीढ़ी के …………… के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
उत्तर-
प्रतिनिधि कवि।
प्रश्न 8.
बिम्बों के कारण कल्पना और मूर्ति विधान की उनकी कविता में एक ………….. भूमिका
उत्तर-
सक्रिय रचनात्मक।
प्रश्न 9.
वे एक ……………. कवि हैं।
उत्तर-
जन प्रतिनिधि।
जगरनाथ कवि परिचय – केदारनाथ सिंह (1932)
प्रश्न-
कवि केदारनाथ सिंह का कवि-परिचय दीजिए।
उत्तर-
हिन्दी साहित्य में प्रयोगवादी काव्य आन्दोलन के गर्भ से ही नयी कविता आन्दोलन उपजा, जिसके प्रमुख कवि के रूप में केदारनाथ सिंह का नाम लिया जाता है। नयी कविता को अति यथार्थवादी आन्दोलन कहा गया है। जिसके प्रवर्तक सच्चिदानन्द हीरानंदन वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ने (1959 ई.) में तीसरे सप्तक का संपदान किया, जिसमें एक कवि के रूप में केदारनाथ सिंह और उनकी रचनाओं को स्थान प्राप्त हुआ।
वस्तुत: नयी कविता आन्दोलन का पाठक वर्ग मिला ही नहीं। सही ढंग के आलोचक भी . नहीं मिले। तीनों ही सप्तकों के कवियों ने अपने तरीके से अपने आन्दोलन को सार्थक बताया और स्वयं को स्थापित, व्यख्यायित किया, दार्शनिक के रूप में प्रतिष्ठित किया। उन्होंने सबसे ज्यादा ध्यान बिम्बों के निर्माण और कविता में गतिशील नाटकीय रचना पर देते थे।
सौभाग्य से केदारनाथ सिंह की कविता में क्लिष्टत्व और संश्लेषण के बावजूद एक अपनापन मिलता है। इनके बिम्ब श्रम साध्य नहीं है। इनके प्रतीक सर्वथा अपरिचित नहीं है। इसका कारण है कि इनका सीधा सरोकर गाँव से है। ग्रामीण संस्कृति संस्कार से इनका नाभि-नाल का सम्बन्ध है। गाँव से सम्बद्ध परिचित, परन्तु अधूरे इनके विम्ब इनको सम्भावनाओं से सम्पन्न कवि बनाते हैं।
उनका उत्तरवर्ती जीवन तथा कथित बुद्धिजीवियों के बीच, दार्शनिकों, चिंतकों के बीच भले ही गुजरता रहा कि नागार्जुन की तरह इनके हृदय में, मन प्राण में इनका ‘बलिया’ (यू. पी.) बसा रहा है। “मांझी का पूल” कभी विस्तुत नहीं हो सका। जगरनाथ हो अथवा नूर मियां हो अथवा अपने गाँव-जवार का कोई हो, यदि वह हृदय की तंत्री को झकार चुका है, मन की बगिया को महका चुका है अथवा जिसने अपने चतुर्दिक वातावरण को अपनी उपस्थिति से प्रभावित प्रोत्साहित किया है तो उसे केदारनाथ सिंह ने अपनी कविता का विषय बना लिया है।
केदारनाथ सिंह में तीन बातें स्पष्ट होती हैं-(1) गहरा यथार्थबोध, (2) अनुभूति का वास्तविक धरातल और (3) बेजोड़ टटके बिम्बों के माध्यम से कविता को गतिशीलता प्रदान करना।
कवि ने एकालाप शैली अपनायी है। किन्तु यह विलाप की तरह नहीं है। मैं, तुम, वह तीनों या कोई दो अवश्य उपस्थित है। जगरनाथ शीर्षक कविता में कवि और गांव का जगरनाथ दोनों है। छोटी-सी कविता जिसमें हिमालय की दिशा तय होती है, वहाँ भी बच्चा (वह) के साथ ‘मैं’ उपस्थित है। नूर मियां कविता में नूर मियां के साथ एक ‘तुम’ भी उपस्थित हैं, जिसके साथ केदारनाथ, नूर मियां और उनके बहाने रामगढ़ बाजार, मदरसा, इमली का पेड़, भूली हुई स्लेट, उन्नीस का पहाड़ा सबकी याद ताजा करते हैं। किन्तु साथ ही वर्तमान से जुड़े भी रहते हैं। पाकिस्तान के हालात पर सटीक टिप्पणी करते हुए कहते हैं
“हर साल कितने पत्ते गिरते हैं पाकिस्तान में।”
यहाँ पत्ता गिरना सत्ता परिवर्तन का संकेत करता है, जिसके पीछे असंख्य बेकसूर लोग मारे जाते हैं।
“बच्चा तुम्हारा गणित कमजोर है” यह कहकर पड़ोस की सच्चाई से मुँह फेरने की भारत की नीति पर प्रहार है कि यह पाक का निजी मामला है।
केदारनाथ सिंह की कविता में एक ही साथ विरोधी प्रवृत्तियाँ नजर आती हैं। वे अतीत की स्मृति को जीवित भी रखना चाहते हैं और अपनी वर्तमान स्थिति से जुड़े भी रहना चाहते हैं। जगरनाथ के ललाट के गुम्मट से सहानुभूति भी है, और उससे पीछा भी छुड़ाना चाहते हैं। क्योंकि जगरनाथ की उपस्थिति मात्र से उनका व्यक्तिगत अस्तित्व खडित हो रहा है।
वस्तुतः हर जगह केदारनाथ सिंह परिवेश, चरित्र और सम्बन्धों का एक ही सच देखते हैं, जहाँ उनपर समय और यथार्थ की मार पड़ती रहती हैं और वे उसे झेलते-भुगतते अपने को सुरक्षित रखने की संघर्ष में लगे भिड़े हैं।
जगरनाथ कविता का सारांश
प्रश्न-
केदारनाथ सिंह द्वारा रचित ‘जगरनाथ’ नामक कविता का सारांश लिखें।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता ‘जगरनाथ’ कवि के गाँवों की जिन्दगी के प्रति लगाव को प्रतिबिम्बित करता हैं जिसमें कवि ने जगन्नाथ के स्थान पर ग्रामीण भाषा के शब्द ‘जगरनाथ’ का प्रयोग कर ग्रामीण भाषा के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त किया है। साथ ही इस कविता में प्रश्नों का भरमार कर कवि ग्रामीण समस्याओं के प्रति अपनी खोजी-सोच को परिलक्षित करने का प्रयास किया है। वस्तुतः ‘जगरनाथ’ कवि को इस कविता में काल्पनिक पात्र है जिसके माध्यम से पाठकों का ध्यान आकृष्ट करने का प्रभूत प्रयास किया गया है।
बहुत दिनों के बाद जगरनाथ भाई से कवि को भेंट हुई है जिसके ललाट पर गुम्मट-सा उग आया है जो जगरनाथ भाई के कठिन कर्मठता और दीनता का प्रतीक है। कवि बाल्यावस्था में देखे गए नीम के पेड़ के नीचे बंधी बकरी जो कभी रहा करती थी, उसको भी नहीं भूला है। इन प्रतीक चिह्नों के माध्यम से कवि का स्पष्ट करना चाहता है कि गाँव-गाँवई की चीजों को आज भी अपनी स्मृति-पटल में संजों कर रखा है। केदार नाथ सिंह वृति से प्राध्यापक है जो जगरनाथ भाई से वार्तालाप के क्रम में स्पष्ट होता है। इसी क्रम में वे आधुनिक सुख-सुविधा रूपी ‘बनसुग्गों की पांत’ को अनावश्कय बताते हुए समाज में अपने परिश्रम से प्राप्त वस्तुओं की जीवन के लिए आवश्यक बताया है। साथ ही दृष्टांत रूप में गाँव-गवई में उपजाए जाने वाले आमो की खुशबू एवं स्वाद का सुन्दर वर्णन किया है।
कवि-यद्यपि सुख-सुविधाओं की आधुनिकतम वस्तुओं को निस्सार बताकर गवई जीवन को सुस्वादु बताया है, तथापि जगरनाथ भाई अपनी गवई स्वभाव से उबर नहीं पाते जिस कारण होठ तो फड़फड़ाता है किन्तु शब्द प्रस्फुटित नहीं हो पाते। फलतः जगरनाथ भाई निःशब्द ही चले जाते हैं। जिसे देखकर कवि का हृदय फट पड़ता है क्योंकि कवि ने अपने-आप को जगरनाथ भाई के स्तर में लाकर बीच की दूरी को पाटने का जो अथक-प्रयास किया था वह हो न सका।
वस्तुत: इस कविता से यह शिक्षा मिलती है कि गवई जीवन में शहरी जीवन की अपेक्षा व्याप्त हीन-भावना बहुलता से दृष्टिगोचर होती है, जिसको दूर करने की चिन्ता विवेकियों को साथ-साथ सरकारी-व्यवस्था को भी होनी चाहिए। वास्तव में शहरी क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ गाँव के क्षेत्रों का समुचित विकास करके ही भारत के विकास का सपना साकार हो सकता है।
कठिन शब्दों का अर्थ
गुम्मट-चोट लगने से उभर आने वाली गिल्टी। बनसुग्गा-वन में रहने वाला गैरपालतू तोता। पाँत-कतार। डैना-पंख। बकबक करना-व्यर्थ बोलना, फालतू बोलना। झपकी-ऊँघना। राहत-आराम, सुख। धार-तीक्ष्णता पैनापन।
जगरनाथ काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या
1. कैसे हो मेरे भाई जगरनाथ …………… बँधती थी तुम्हारी बकरी?
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ आधुनिक युगीन कवियों में एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर केदारनाथ सिंह की कविता ‘जगरनाथ’ से ली गयी है। इसमें कवि ने बचपन के ग्रामीण साथी जगरनाथ दुसाध को परोक्ष माध्यम बनाकर अपनी बात कहने की चेष्टा की है। जगरनाथ से कवि की अकस्मात भेंट हो जाती है बहुत दिनों पर। स्वभावतः वह उसे रोककर समाचार पूछता है कि तुम कैसे हो? बहुत दिनों के बाद भेंट हुई है। मिलन के लम्बे अन्तराल में जगरनाथ के शरीर में हुए परिवर्तन को लक्षित कर कवि पूछता है कि यह तुम्हारे ललाट पर यह गुम्मट सा क्या उग आया है?
फिर वह बच्चों के बारे में पूछता है, दरवाजे के नीम गाछ के बारे में पूछता है जहाँ जगरनाथ की बकरियाँ बँधी रहती थीं। इस पूरे कथन में कवि ने माथे के गुम्मट, बच्चों के समाचार तथा दरवाजे के नीम वृक्ष का हाल पूछकर स्वाभाविकता लाने का प्रयास किया है। वहीं भाई सम्बोध न के द्वारा आत्मीयता स्थापित कर सम्बन्ध का अनौपचारिक बनाया गया है। संवाद की आत्मीयता समय के लम्बे अन्तराल से उत्पन्न तथा स्तर-भेद से उत्पनन औपचारिकता को तोड़ती है।
2. मैं तो बस ठीक ही हूँ ………………. कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है।
व्याख्या-
केदारनाथ सिंह रचित कविता ‘जगरनाथ’ उनके तथा उनके बचपन के ग्रामीण मित्र जगरनाथ दुसाध के बीच एकालापी संवाद के रूप में रचित है। इन पंक्तियों में सूच्य रूप में व्यक्त किया गया है कि कवि के द्वारा कुशल समाचार पूछे जाने के उत्तर में जगरनाथ कवि से समाचार पूछता है।
इन पंक्तियों में कवि अपना हाल बताते हुए कहता है कि मैं ठीक हूँ, खाता-पीता हूँ और क्लास में पढ़ा आता हूँ, अवसर मिलता है तो दिन में भी एकाध नींद सो लेता है। इन बाहरी बातों के अतिरिक्त वह अपनी बौद्धिक सामाजिक जागरूकता प्रदर्शित करने के लिए यह भी जोड़ देता है कि मुझे हमेशा लगता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है। कवि का संकेत सामाजिक राष्ट्रीय जीवन में आ रही गिरावट, जीवन की भागदौड़ और आर्थिक रवैये से उत्पन्न विकलता और उनके कारण मूल्यहीनता की बाढ़ है।
3. पर छोड़ो तुम कैसे हो? ………………. चलती ही रहती है जिन्दगी।
व्याख्या-
‘जगरनाथ’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में जगरनाथ से बातें करते हुए कवि अपना हाल बताने के बाद पुनः जगरनाथ की ओर मुड़ता है और उसके सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने की कड़ी को आगे बढ़ाता हुआ पूछता है कि तुम्हारा कामधाम कैसा चल रहा है? इसी बीच वनसुग्गों की एक पंक्ति उसके ऊपर से उड़ती निकल जाती है। वह उनकी ओर थोड़ा ध्यान देता है मगर शीघ्र ध्यान हटा लेता है, “वह है तो नहीं है तो भी चलती ही रहती है जिन्दगी” कहकर अपनी लापरवाही व्यक्त करता है। इस कथन से स्पष्ट है कि वन-सुग्गों को टें 2 करते उड़ना उसे अच्छा लगता है लेकिन उनके न होने से भी जिन्दगी की चाल में कोई व्यवधान नहीं आता है। उसके कहने के ढंग से स्पष्ट है कि अब की जिन्दगी में पशु-पक्षी, प्रकृति आदि जीने की अनिवार्य शर्त नहीं रह गये हैं।
4. पर यह भी सच है मेरे भाई ………………. बड़ी राहत मिलती है जी को।
व्याख्या-
‘जगरनाथ’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में केदारनाथ सिंह कहना चाहते हैं कि जीवन की प्राथमिकताएँ और परिस्थितयाँ बदल जाने के कारण अनेक ऐसी चीजों से लगाव का आग्रह कम करना पड़ता है जो जीवन के लिए आवश्यक होते हैं। ऐसी ही एक उड़ते हुए वन-सुग्गों की उड़ती पंक्ति को देखना।
इसे स्वीकार करते हुए लेखक कहता है कि वन-सुग्गों को देखने का आग्रह दबा देने के बावजूद सच्चाई यही है कि जब कभी आसमान में लाल या पीले या किसी रंग का कोई पक्षी उड़ता हुआ दीख जाता है तो मन को राहत अनुभव होती है।
यहाँ लेखक यह बताना चाहता है कि मन की नैसर्गिक इच्छाओं की पूर्ति का अवसर न मिलने पर उनके प्रति आग्रह घट जाता है और एक उदासीन भाव आ जाता है। लेकिन उनके प्रति सम्मोहन कम नहीं होता। अवसर मिलने पर वे इच्छाएँ यदि पूर्ण होती हैं तो मन को जो आनन्द प्राप्त होता है वह जीवन में सन्तुष्टि और सन्तोष देता है।
5. पर यह तो बताओ ………………. भर जाती है दुनिया।
व्याख्या-
‘जगरनाथ’ शीर्षक कविता की प्रस्तुत पंक्तियाँ मे केदारनाथ सिंह पुनः जगरनाथ की ओर मुखातिब होकर उससे उसके स्वास्थ्य का हाल पूछते हैं कि तुम्हारा जी आजकल कैसा है? इससे लगता है कि जगरनाथ प्रायः अस्वस्थ रहता होगा लेकिन आत्मीयता का यह ज्वार एक क्षण भी नहीं टिकता। कवि तुरंत जगरनाथ को छोड़कर बारिश पर उतर आता है और जानना चाहता है कि क्या इधर बारिश हुई थी फिर जल्दी आमों की ओर चला जाता है और पूछता है कि क्या आमों का पकना शुरू हो गया? और फिर जगरनाथ को भूलकर आमों के स्वाद में खो जाता है। उसकी टिप्पणी के अनुसार यह एक अजीब-सा फल है जिसमें सुगन्ध और स्वाद दोनों का विरल संयोग है जिससे मन की दुनिया भर जाती है पूर्ण परितृप्ति प्राप्त होती है।
इन पंक्तियों में लक्ष्य करने की बात यह है कि कवि के मन में जगरनाथ के प्रति अभिरुचि और संवेदना कम है तथा वर्षा और आम की रस-गंध में ज्यादा रुचि है। यह बतलाता है कि कवि की दृष्टि जगरनाथ में जगरनाथ से ज्यादा महत्त्व वनसुग्गे, बारिश और आम का है। इनके बारे में कहने के लिए उसने जगरनाथ का बहाना बनाया है।
6. पर यह क्या? ………………. जाओ ………………. जाओ।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाठ्य पुस्तक की ‘जगरनाथ’ शीर्षक से पंक्तियाँ ली गयी है। इसके कवि केदारनाथ सिंह हैं। केदारनाथ सिंह जगरनाथ को रोककर ढेर-सारी जिज्ञासाएँ करते हैं जिनमें कुछ जगरनाथ से सम्बन्धित हैं और कुछ ग्राम-प्रसंग से। इन सबके उत्तर में जगरनाथ कुछ बोलता नहीं, केवल उसके ओठ फड़कते हैं बोलने के लिए। कवि इस पर आश्चर्य व्यक्त करता हुआ अनेक प्रश्न पूछ जाता है, जैसे-तुम्हारे होंठ क्यों फड़क रहे हैं? तुम अब तक चुप क्यों हो? इस तरह खड़े क्यों हो? इत्यादि। फिर वह जगरनाथ को पास बुलाता है क्योंकि उसे बहुत कुछ कहना है।
मगर जगरनाथ कुछ बोलता नहीं केवल एक विचित्र दृष्टि से देखता है। कवि को लगता है कि जगरनाथ को मेरी आत्मीयता भरी आतुरता पर विश्वास नहीं हो रहा है, उसे झूठ की गन्ध अनुभव हो रही है। यह कवि के सन्तुलन को गडबड़ा देता है। वह पूछता है क्या तुम्हें जल्दी है? क्या काम पर जाना है? और फिर बिना उसके मन्तव्य जाने अपनी ओर से अनुमति भी दे देता है जाओ मेरे भाई जाओ। मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा।
इन पंक्तियों से यह धारणा बनती है कि कवि को स्वयं यह आत्मीयता-प्रदर्शन नकली लगता है। उसकी सारी जिज्ञासाओं में बनावटीपन और जगरनाथ के बहाने अपनी बात कहने की आतुरता है जो उसकी अभिजात वृद्धि और कृत्रिम सहानुभूति की पोल खोल रही है।
7. और इस तरह ………………. जगरनाथ दुसाध।
व्याख्या-
‘जगरनाथ’ कविता की ये अंतिम पंक्तियाँ हैं। इसमें कवि की सारी जिज्ञासाओं के उत्तर में जगरनाथ के चुपचाप चले जाने का वर्णन है। कवि कहता है कि जगरनाथ इस तरह चला जा रहा था मानो उसने मुझे देखा ही न हो। और उसके द्वारा अनदेखी किए जाने की मुद्रा इतनी तीखी और धारदार भी कि कवि को चीरता-फाड़ता चला जा रहा हो। इन पंक्तियों का निहितार्थ स्पष्ट है-कवि जगरनाथ का बचपन का साथी है लेकिन वह अब उससे भिन्न है, विशिष्ट है, अध्यापक है।
जगरनाथ इस भेद को समझता है कि दोनों दो धरातल के जीव हैं जिनके जीवन-स्तर और बोध में अन्तर है। इस विषमता के कारण जगरनाथ के मन में कवि के लिए कोई आत्मीयता नहीं है। वह प्रतिक्रिया तो व्यक्त नहीं करता लेकिन लगातार चुप रहकर और चुपचाप चले जाकर सारी बातें कह जाता है। उसकी न देखने वाली दृष्टि की धार से चीरा जाकर कवि आहत हो उठता है।