Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions
Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 6 झंकार (मैथिलीशरण गुप्त)
झंकार पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
कवि ने शरीर की सकल शिराओं को किस तंत्री के तार के रूप में देखना चाहा है?
उत्तर-
मैथिली शरणगुप्त जैसे राष्ट्रभक्त कवि ने अपने शरीर की सकल शिराओं को मातृभूमि की सर्वतोमुखी विकास रूपी तंत्री के तार रूप में देखना चाहा है। कवि सम्पूर्ण संचित ऊर्जा क्षमता को मातृभूमि के कायाकल्प प्रक्रिया में लगा देना चाहा है।
प्रश्न 2.
कवि को आघातों की चिन्ता क्यों नहीं है?
उत्तर-
कवि राष्ट्र-प्रेम की भावना लोकचित में जागृत करना चाहता है। स्वाधीनता की व्याकुलता में वह स्वाधीनता आन्दोलन को सम्पूर्ण राष्ट्र में अंतर्व्याप्त करना चाहता है। गुलामी से बढ़कर कोई दूसरी पीड़ा नहीं है। स्वाधीनता की उत्कट आकांक्षा कुछ विलक्षण ही होती है। स्वाधीनता की आकांक्षा ने कवि को आघातों की चिन्ता से विमुक्त कर दिया है।
प्रश्न 3.
कवि ने समूचे देश में किस गुंजार के गमक उठने की बात कही है?
उत्तर-
आधुनिक भारत के प्रथम राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त में गुलामी की जंजीर में जकड़ी भारत माता को स्वाधीन करने की गहरी व्याकुलता है। कवि गुलाम भारत में आजादी प्राप्ति हेतु शौर्य, पौरुष तथा पराक्रम का संचार करना चाहता है, जिसके बल पर सम्पूर्ण भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष का स्वर गुंजारित हो सके। कवि स्वाधीनता आंदोलन में देशवासियों की सक्रिया सहभागिता चाहता है। वह स्वतंत्रता प्राप्ति के गुंजार का गमक सम्पूर्ण देश में गुंजारित करना चाहता है।
प्रश्न 4.
“कर प्रहार, हाँ कर प्रहार तू,
भार नहीं, यह तो है प्यार।
यहाँ किससे प्रहार करने के लिए कहा गया है। यहाँ भार को प्यार कहा गया है। इसका क्या अर्थ है?
उत्तर-
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-1 में संकलित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त रचित झंकार शीर्षक कविता से ली गयी हैं।
सांगीतिक वातावरण में जब संगत करते कलाकार विभिन्न प्रकार के रागों स्वरो, लयों का, अपनी कलाकारिता का इस भाव से प्रदर्शन करे कि सामने वाला कलाकार निरुतर हो जाए। किन्तु समर्थ कलाकार उसकी तोड़ प्रस्तुत करता चलता है जिससे स्वस्थ प्रतियोगी वातावरण बनता है तब परमआनंद की अनुभूति होती है। यहाँ प्रहार का यही अर्थ है, यहाँ एक कलाकार कलावत अपने समकक्ष कलाकर को, ताल, राग के माध्यम से प्रहार करने और स्वयं को उसका प्रतिकार करने के लिए प्रस्तुत होने की बात करता है।
“विपरीत और विरोधी के बीच ही विकास है” के सूत्र को पकड़े हुए कवि इस प्रहार को प्यार की संज्ञा देता है। जब तक चुनौती नहीं हो निखार नहीं आता। जब तक धधकती आग नहीं गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट हो सोने में कांति नहीं आती है। कवि चुनौतियों, जबावदेहियों, दायित्वों को भार स्वरूप नहीं प्यार स्वरूप स्वीकार करता है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियां की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
(क) “मेरे तार तार से तेरी
तान-तान का हो विस्तार
अपनी अंगुली के धक्के से
खोल अखिल श्रुतियों के द्वार।”
सप्रसंग व्याख्या-
प्रस्तुत सारगर्भित पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-1 में संकलित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त रचित ‘झंकार’ शीर्षक कविता से उद्धत हैं। वीणा से राग स्वर तभी निःसृत होता है तब उसके ऊपर तार अपनी जीवनाहूति देते हैं, अपने को तनवाने (तन्य) के लिए प्रस्तुत होते। स्वर संधान के पूर्व तारों को साधित किया जाता है।
कवि स्वर संधान की पूर्व पीठिका बनने को प्रस्तुत है। अपनी शरीर की शिराओं को तार बनाने का सन्नद्ध है और वाँछा करता है, स्वर लहरी दूर-दूर तक गूंजे। प्रवीण अंगुलियों का तारों पर आघात इतना पुरजोर हो कि अखिल सृष्टि में यह कल निनाद सुना जा सके। कवि ठोस आधार पर मसृण कलाकृति का आकाक्षी है।
कवि शारीरिक भूख के ऊपर उठकर मानसिक हार्दिक क्षुधा की तृप्ति हेतु आहन करता है।
स्पष्ट है गुप्त जी का झुकाव छायावादी विचारधारा की ओर हो चुका है। तार-तार और तान-तान में वीप्सा अलंकार तथा अपनी अंगुली ……………….. अखिल में ‘अ’ वर्ण की आवृति से अनुप्रास अलंकार उपस्थित है।
(ख) ताल-ताल पर भाल झुकाकर
माकहत हों सब बारम्बार
लघ बँध जाए और क्रम-क्रम से
सभ में समा जाए संसार।
सप्रसंग व्याख्या-
प्रस्तुत सारगर्भित पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-1 में संकलित मैथिलीशरण गुप्त रचित ‘झंकार शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में कवि ने संगीत की चरम स्थिति की प्राप्ति और उसके प्रभाव की चर्चा की है। संगीत वह भाषा है जिसे अनपढ़ भी समझ लेते हैं। संगीत का जब समां बन्ध जाता है तो हर ताल पर, हर थाप पर प्रत्येक आरोह-अवरोह के साथ श्रोता अपने निजत्व को त्याग कर संगीत के सम्मोहन में बन्धे सिर झुकाते रहते हैं। आनन्द के सागर में डूबे रहते हैं। उन्हें मधुमती भूमिका प्राप्त होती है।
परिपक्व संगीत ‘ब्रह्मानन्द सहोदर’ आनंद की प्राप्ति करता है। संगीत गायन वादन के क्रम में वह चरम क्षण भी आता है जिस सम कहा जाता है जहाँ एक अलौकिक शांतिमय संसार का सृजन हो जाता है।
कविक अभीष्ट है कि हम कला को इस ऊँचाई तक ले जाएँ कि आलोचना का अवकाश न रहे बल्कि हमारी कला विश्व समुदाय को मोहित, आकर्षित करने, उन्हें मधुमती भूमिका में पहुँचाने, ब्रह्मानंद का क्षणिक ही सही साक्षात्कार कराने में सफल हो।
कवि भारत के सांस्कृतिक उत्थान का आकांक्षी है। लालित्य वर्द्धन का आकांक्षी है।
प्रस्तुत पंक्तियां में वीप्स और अनुप्रास अलंकार का वर्णन हुआ है।
प्रश्न 6.
कविता का केन्द्रीय भाव क्या है? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
आधुनिक काल के द्वितीय उत्थान-द्विवेदी युग के प्रमुख कवि हैं मैथिलीशरण गुप्त। वे आधुनिक भारत के प्रथम राष्ट्रकवि तथा नए भारत में हिन्दी जनता के प्रतिनिधि कवि के रूप में सम्मानित हैं।
प्रस्तुत कविता में कवि कहता है कि स्वतंत्रता का स्वर इतना ऊचाँ हो कि सम्पूर्ण राष्ट्र एकीभूत होकर देश की आजादी का स्वर गुंजारित करे। प्रकृति आनन्दमय हो जाए, मनुष्य का भाग्य इठलाये। मुक्तिकामना की गमक देश और काल की सीमा का उल्लंघन कर जन-जन के मानस पटल पर गुजारित हो जाए। मुक्तिकामना की तान से स्वतंत्रता की ऐसी उत्कट कामना भारतवासियों में पैदा हो कि वे सदियों से गुलामी की दासता में छटपटा रही भारतमाता गुलामी के बन्धन से मुक्त हो जाए। सम्पूर्ण हिन्दीवासी अपनी अस्मिता की खोज की व्याकुलता राष्ट्रप्रेम का या राष्ट्र-मुक्ति के संग्राम में समाहित होकर गुलामी की बेड़ियां से आजाद हो जाए।
‘झंकार’ कविता में स्वाधीनता आन्दोलन की अंतर्व्याप्त राष्ट्र के कोने-कोने में हो चुकी है और स्वाधीनता तथा मुक्ति की प्यास एवं सम्पूर्ण राष्ट्र को हिन्दोलित होने की सच्चाई सहज ही दृष्टिगोचर होती है। कविता में सम्पूर्ण राष्ट्र की एकीभूत मुक्तिकामना की उत्कट और अपूर्व अभित्यक्ति हुई है। राष्ट्र के प्रति प्रणों से बढ़कर राष्ट्र प्रेम तथा कृतज्ञता की आत्मिक अनुभूति इस गीति-गमक रचना में स्वरित होती है। कवि की राष्ट्रीयता, देशप्रेम, यथार्थबोध, आजादी की कामना का उद्देश्य एवं चेतना कविता का मूल स्वर है।
प्रश्न 7.
कविता में सुरों की चर्चा करें। इनके सजीव-साकार होने का क्या अर्थ है?
उत्तर-
भारत राष्ट्र के गौरव गायक मैथिलीशरण गुप्त की झंकार शीर्षक कविता संगीत की पृष्ठभूमि में रचित है। संगीत के घटक सुर स्वर हैं। स्वरों का आरोह-अवरोह जब पक्के गायक के गले से नि:सृत होता है तो एक जीवन्त अवलोक का सृजन होता है। ऐसा लगता है कि स्वर केवल कान के माध्यम से ही नहीं सुन रहे बल्कि आँखों के सामने साकार रूप में उपस्थित हैं। स्वरों की सर्वोत्तम प्रेषणीयता ही सजीव-साकार का अर्थ ग्रहण करती है।
प्रश्न 8.
इस कविता का स्वाधीनता आन्दोलन से कोई सांकेतिक सम्बन्ध दिखायी पड़ता है। यदि हाँ! तो कैसा?
उत्तर-
राष्ट्रकवि मैथिलीशरधा गुप्त की प्रस्तुत कविता ‘झंकार’ में भारतीय स्वतंत्रता-संघर्ष का स्वर नि-संदेह गुंजारित है। इस कविता में कवि की देशभक्ति स्वतंत्रता प्राप्ति की उत्कृष्ट आकांक्षा तथा भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की उत्प्रेरणा का स्वर अनुगुजित है। दिव्यभूमि की आजादी के लिए व्याकुल कवि का हृदय मुक्ति की युक्ति निकालने को तैयार है तथा सम्पूर्ण हिन्द को इस स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़ने का आह्वान करता है जो उसके उत्कृष्ट देशभक्ति रेखांकित एवं विश्लेषित करता है।
कविता में गुलामी की बेड़ियों को काटकर भारतमाता को स्वाधीन बनाने की संवेदना-कल्पना का संस्पर्श का एकांत साक्ष्य पेश होता है। कविता में स्वाधीनता आन्दोलन की अंतर्व्याप्ति तथा मुक्ति की प्यास निःसंदेह निर्णायक स्थान प्राप्त कर चुका है। सम्पूर्ण राष्ट्र स्वाधीनता के लिए आन्दोलित होकर सदियों की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए कृतसंकल्पित है। इस कविता में सम्पूर्ण राष्ट्र की एकीभूत मुक्तिकामना की गीति-गमक गुंजारित और झंकृत है।
प्रश्न 9.
वर्णनात्मक कविता लिखने के लिए “द्विवेदी युग” के कवि प्रसिद्ध थे। किन्तु इस कविता में छायावादी कवियों जैसी शब्द-योजना, भावाभिव्यक्ति एवं चेतना दिखलायी पड़ती है। कैसे? इस पर विचार करें।
उत्तर-
आदर्शवाद की प्रधानता के कारण “द्विवेदी युग’ के कवियों ने वर्णन प्रधान इतिवृत्तात्मक शैली को ग्रहण किया। यह शैली नैतिकता के प्रचार और आदर्शों की प्रतिष्ठा के लिए अत्यन्त उपयुक्त थी। विभिन्न पौराणिक एवं ऐतिहासिक आख्यानों को काव्यबद्ध करने के लिए इस युग में वर्णनात्मक काव्य को प्रधानता मिली। वर्णन-प्रधान शैली होने के कारण इस काव्य में नीरसता और शुष्कता आ गई तथा अनुभूति की गहराई का समावेश हो सका ! वर्णनात्मक काव्य में कोमलकांत पदावली और रसात्मकता का अभाव है।
‘द्विवेदी युग’ के कवि का ध्यान प्रकृति के यथातथ्य वर्णन तथा मानव प्रकृति का चित्रण इस समय की कविता का प्रधान विषय बन गई। इस काल के कवियों ने जहाँ प्रकृति के बड़े संवेदनात्मक एवं चित्रात्मक चित्र प्रस्तुत किये हैं, वहाँ प्रकृति वर्णन के द्वारा नैतिक उपदेश देने की चेष्टा भी की है।
द्विवेदी युग में खड़ी बोली परिमार्जित और परिष्कृत होकर भाषा में स्वच्छता और सजीवता का समावेश करने में समर्थ हुई। भाषा का अधिक सरस, माधुर्यपूर्ण तथा प्रौढ़ स्वरूप इस युग में परिलक्षित होता है। ‘द्विवेदी युग’ के काव्य विविधमुखी है। काव्य में विविध छन्दों को अपनाने की प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की प्रस्तुत कविता ‘झंकार’ में छायावादी कवियों जैसी शब्द योजना, भावभिव्यक्ति एवं चेतना दिखलाई पड़ती है। गुप्त जी की कविता में न संस्कृत के तत्सम शब्दों की भरमार तथा अरबी-फारसी के शब्दों का बाहुल्य और देशज शब्दों की प्रचुरता है। उन्होंने खड़ी बोली की प्रकृति और संरचना की रक्षा करते हुए, उसे काव्य भाषा के रूप में विकसित करने का सफल प्रयास किया है।
राष्ट्रकवि गुप्तजी ने खड़ी बोली हिन्दी के स्वरूप निर्धारण और विकास के साथ-साथ उसे काव्योपयुक्त रूप प्रदान करने वाले अन्यतम कवियों में अग्रणी भूमिका निभाई। निश्चय ही आज की काव्य भाषा के निर्माण में उनकी आधारभूत भूमिका परिलक्षित होती है। प्राचीन के प्रति पूज्यभावना और नवीन के प्रति उत्साहपूर्ण भाव की विशेषता, कालानुसरण की अद्भुत क्षमता एवं उत्तरोत्तर बदलती भावनाओं और काव्य प्रणालियों को ग्रहण कर चलने की शक्ति, काव्य में परम्परा और आधुनिकता का द्वंद्व तनाव और समन्वय का यथार्थ समायोजन करने की अद्भुत क्षमता की गीति-गमक ने उन्हें छायावादी कवियों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है।
झंकार भाषा की बात
प्रश्न 1.
गुप्तजी की कविता में तुकों का सफल विधान है। इस कविता में प्रयुक्त तुकों को छाँट कर लिखें।
उत्तर-
मैथिलीशरण गुप्तजी तुकान्त कविता रचने के लिए जितने विख्यात हैं उतने ही आलोचना के पात्र भी हैं। किन्तु यह भी सत्य है कि तुक के कारण ही कविता दीर्घजीवी हो पाती है। झंकार में निम्नलिखित तुकान्त शब्द आये हैं- तार-झंकार; साकार-गुजार; प्यार-तैयार; विस्तार-द्वार और बारंबर-संसार।
प्रश्न 2.
पूरी कविता में अनुप्रास अलंकार है। अनुप्रास अलंकार क्या है? कविता से इसके उदहरणों को चुनकर लिखें।
उत्तर-
अनु (बार-बार) + प्रास (रख्ना) = अनुप्रास अर्थात् जहाँ अक्षरों में समानता होती है, भी ही उनके स्वर मिले या न मिले वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। इसके चार भेद हैं-छेकनुप्रास (एक या अधिक वर्षों का केवल दो बार प्रयोग); वृत्यनुप्रास (एक या अधिक वर्णों का दो से अधिक बार प्रयोग); श्रुत्यानुप्रास (मुख के किसी एक ही उच्चारण स्थल से उच्चारित होने वाले वर्गों की आवृत्ति) और अन्त्यानुप्रास (चरण या पद के अन्त में एक से स्वर-व्यंजन के आगम से)।
प्रस्तुत झंकार कविता में निम्न पंक्तियों में अनुप्रास है-
- प्रथम पंक्ति-स, श, र, क, की आवृत्ति
- द्वितीय पंक्ति-‘त’ की तीन आवृत्ति
- तृतीय पंक्ति-‘क’ की एक आवृत्ति
- चतुर्थ पंक्ति-उ, ऊ की आवृत्ति
- पंचम पंक्ति-न, स की आवृत्ति
- षष्ठ पंक्ति-स, र की आवृत्ति
- सप्तम पंक्ति-द, स, क, ल, म की आवृत्ति
- अष्टम पंक्ति -क, र, प, ह की आवृत्ति
- नवम पंक्ति -र, ट की आवृत्ति
- दशम पंक्ति-त, ह की आवृत्ति
- एकादश पंक्ति-त, ह की आवृत्ति
- द्वादश पंक्ति-त, र आवृत्ति।
- त्रयोदश पंक्ति-त, न की आवृत्ति
- चतुर्दश पंक्ति-अ की आवृत्ति
- पंचदश पंक्ति-ल की आवृत्ति
- षोडस पंक्ति-त, ल, क, र की आवृत्ति
- सप्तदश पंक्ति- ह, ब, र की आवृत्ति
- अष्टादश पंक्ति-क, र, म की आवृत्ति
- उनविंश पंक्ति-स, म की आवृत्ति
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग निर्णय करें। शरीर, शिरा, झंकार, प्रकृति, नियति, गमक, तान, अंगुली, भाल, संसार।
उत्तर-
शरीर (पुं.) – राम का शरीर गंदा है।
शिरा (स्त्री.) – आपकी शिरा में झंकार है।
झंकार (स्त्री.) – पायल की झंकार मन मोहक होता है।
प्रकृति (स्त्री.) – प्रकृति बहुरंगी है।
नियति (स्त्री.) – आपकी नियति पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
गमक (पुं.) – जर्दा का गमक अच्छा है।
तान (स्त्री.) – मुरली की तान मधुर होती है।
अंगुली (स्त्री.) – मेरी अंगुली कट गई।
भाल ([.) – तुम्हारा भाल चमक रहा है।
संसार (पुं.) – यह संसार सनातन है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाएँ शरीर, प्रकृति, संसार, नियति, काल,
उत्तर-
- शरीर – शारीरिक
- प्रकृति – प्राकृतिक
- संसार – सांसारिक
- नियति – नैतिक
- काल – कालिक
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
झंकार लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘झंकार’ कविता का अभिप्राय क्या है?
उत्तर-
‘झंकार’ कविता ईश्वर और मानव के बीच संबंध को सूचित करती है। इसमें कवि बताना चाहता है कि ईश्वर कर्ता है और मनुष्य निमित्त। मनुष्य ईश्वर का वाद्य यन्त्र है। इसके द्वारा वह अपने सत्ता को झंकृत करना चाहता है। यह झंकार विश्वव्यापी लय के रूप में संसार के कण-कण में समायी हुई है। मानव अपने कर्म के द्वारा ईश्वर की सत्ता को व्यक्तर करे यही इस गीत का भाव है।
प्रश्न 2.
‘झंकार’ कविता का केन्द्रीय भाव बतायें।
उत्तर-
‘झंकार’ कविता आत्म-परमात्मा के बीच निहित सम्बन्ध की व्याख्या करती है। इसमें कवि यह कहना चाहता है कि उसे ईश्वर अपना वाद्य यन्त्र बनने का गौरव दें। वह सभी प्रकार के आघात सहकर भी ईश्वर के संगीत को विश्व संगीत के रूप में व्यक्त करने का माध्यम बनना चाहता है। उसकी इच्छा है कि उसके माध्यम से व्यक्त होने वाली ईश्वरीय सत्ता की झंकार गहरी और व्यापक हो तथा सारा संसार ईश्वरीय संगीत की लय पर सम्मोहित होकर उससे तदाकर या एकरूप हो जाय।
झंकार अति लघु उत्तरीय प्रश्न।
प्रश्न 1.
‘झंकार’ कविता में कवि ने अपने को किस रूप में प्रस्तुत किया है?
उत्तर-
‘झंकार’ कविता में कवि ने अपने को वाद्य यन्त्र के रूप में प्रस्तुत किया है और कहा है कि मेरे शरीर के स्नायु तंत्र की सभी नसें ही इस शरीर रूपी वाद्य यन्त्र या तंत्री के तार
प्रश्न 2.
कवि कैसी गुंजार की इच्छा व्यक्त करता है?
उत्तर-
कवि चाहता है कि वह गुंजर ऐसी हो कि सभी स्थानों तथा सभी समयों में उसकी सत्ता बनी रहे।
प्रश्न 3.
श्रुतियों के द्वार खोलने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
‘श्रुति’ शब्द के दो अर्थ हैं। पहला कान और दूसरा सुनकर प्राप्त होने वाला ज्ञान। जब ‘श्रुति’ शब्द का दूसरे अर्थ में लाक्षणिक प्रयोग होता है तो वह वेद-ज्ञान का अर्थ देता है। अतः श्रुतियों के द्वार खोलने का अर्थ है परमात्मा की कृपा से समस्त ज्ञान-विज्ञान का बोध प्राप्त हो जाने की क्षमता प्राप्त होना।
प्रश्न 4.
परमात्मा के संगीत की झंकार से उत्पन्न प्रभाव का कवि ने किस रूप में वर्णन किया है?
उत्तर-
कवि के अनुसार परमात्मा के संगीत की झंकृत का प्रभाव गहरा हो। वह सकल श्रुतियों के द्वार खोल दें। उसके ताल-ताल पर संसार मोहित होकर तथा सिर नवाकर उसके प्रभाव का व्यक्त करें तथा सारा संसार उस संगीत के लय से तदाकार हो जाय।
प्रश्न 5.
झंकार शीर्षक कविता का केंद्रीय भाव क्या है?
उत्तर-
झंकार शीर्षक कविता का केन्द्रीय भाव देशवासियों को उनकी अस्मिता का बोध कराना है।
प्रश्न 6.
कवि मैथिलीशरण गुप्त के दृष्टिकोण में स्वाधीनता आन्दोलन में देश का उद्धार कैसे हुआ था?
उत्तर-
कवि मैथिलीशरण गुप्त के दृष्टिकाण से स्वाधीनता आन्दोलन में देश का उद्धार सुरों के तालमेल से हुआ था।
प्रश्न 7.
वीण की तान से कवि मैथिलीशरण गुप्त क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर-
वीणा की तान से कवि मैथिलीशरणगुप्त तान का विस्तार करना चाहते हैं तथा जागरण का संदेश देना चाहते है।
झंकार वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
I. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ
प्रश्न 1.
‘झंकार’ कविता के कवि हैं
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) मैथिलीशरण गुप्त
(ग) दिनकर
(घ) त्रिलोचन
उत्तर-
(ख)
प्रश्न 2.
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म हुआ था?
(क) 1886
(ख) 1876
(ग) 1883
(घ) 1884
उत्तर-
(क)
प्रश्न 3.
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म सथान था
(ख) मध्य प्रदेश
(ग) हिमाचल प्रदेश
(घ) उत्तराखंड
प्रश्न 4.
मैथिलीशरण गुप्त प्रमुख हुई थी
(क) पंडित द्वारा
(ख) माता द्वारा
(ग) पिता द्वारा
(घ) स्वाध्याय द्वारा
उत्तर-
(घ)
प्रश्न 5.
मैथिलीशरण गुप्त प्रमुख कवि हैं?
(क) द्विवेदी युग
(ख) छायावादी युग
(ग) आदि युग
(घ) इनमें से सभी
उत्तर-
(क)
प्रश्न 6.
मैथिलीशरण गुप्त रचनाएँ है?
(क) साकेत
(ख) यशोधरा
(ग) पंचवटी
(घ) झंकार
उत्तर-
(सभी)
प्रश्न 7.
मैथिलीशरण गुप्त ने अनुवाद किया था?
(क) पलासी युद्ध का
(ख) मेघनाद वध
(ग) वृत्रसंसार
(घ) सभी
उत्तर-
(घ)
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
प्रश्न 1.
आधुनिक काल के द्विवेदी युग में प्रमुख …………… है।
उत्तर-
मैथिलीशरण गुप्त।
प्रश्न 2.
झंकार शीर्षक कविता …………. द्वारा लिखित है।
उत्तर-
मैथिलीशरण गुप्त।
प्रश्न 3.
गुलामी की जंजीर में जकड़ी भारतमाता को गुलामी की दासता से मुक्त कराने का भार . …………….. पर है।
उत्तर-
देशवासियों।
प्रश्न 4.
आदर्शवाद की प्रधानता के कारण द्विवेदी युग के कवियों ने वर्णन प्रधान ….. शैली को ग्रहण किया।
उत्तर-
इति वृत्तात्मक।
प्रश्न 5.
भारत-भारती कृति द्वारा जो भावना भर दी थी तभी से वे ………………. के रूप में प्रसिद्ध
उत्तर-
राष्ट्रकवि।
प्रश्न 6.
राष्ट्रीय आंदोलन में मैथिलीशरण गुप्त के काव्य का …………….. रहा है।
उत्तर-
गहरा संबंध।
प्रश्न 7.
गुप्त जी ने प्रबंध काव्य की लुप्त होती परंपरा को ……………… दिया
उत्तर-
समर्थ संरक्षण।
प्रश्न 8.
वेश वैष्णव ………………. थे।
उत्तर-
रामभक्त।
प्रश्न 9.
साकेत जिसका अर्थ आयोध्या है उनका है।
उत्तर-
उत्कृष्ट महाकाव्य।
झंकार कवि परिचय – मैथिलीशरण गुप्त (1886-1964)
मैथिलीशरण गुन्त द्विवेदी युग के एक प्रमुख कवि थे। इनका जन्म 3 अगस्त, 1886 को मध्यप्रदेश के (झाँसी उत्तर प्रदेश) चिरगाँव में हुआ था। ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से इनकी कविता परवान चढ़ी। फिर ‘भारत-भारती ‘ का स्वर तो ऐसा गूंजा कि स्वाधीनता-सेनानियों के ओठों पर इस काव्य की पंक्तियाँ सदा ‘सर्वदा विराजमान रहने लगीं। बासी पूरियों का नाश्ता पसन्द करने वाले गुप्तजी की जीवन-लीला 1964 ई. में समाप्त हुई। कविवर ‘सदा जीवन उच्च विचार’ के मूर्तिमन्त प्रतीक थे।
इनकी श्रेष्ठ काव्य-साधना में अनेक पुरस्कृत-अभिनंदित हुई तथा राष्ट्रभाषा-सालाहकार परिषद के अध्यक्ष भी बने। जब ये दिल्ली में राज्यसभा के मनोनीत सदस्य थे, तब इनके निवास पर गुणियों तथा ज्ञानियों की शानदार महफिलें सजा करती थीं। लेकिन इस अमर यशस्वी महाकवि को एक पर एक तीन-तीन शादियों के बावजूद बारम्बार संतानमृत्यु का दंश झेलना पड़ा कोई दर्जन पर सन्तानों में अन्ततः एक ही का सुख इन्हें नसीब हो सका। गुप्तजी संस्कारी रामभक्त परिवार के परम रामभक्त कवि थे। वे अपनी काव्य कुशलता को भी श्रीराम का ही प्रसाद मानते रहे
“राम ! तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है,
कोई कवि बन जाय-सहज संभाव्य है।”
‘साकेत’ राष्ट्रकवि का श्रेष्ठतम महाकाव्य है। जीवन का अनन्त विविधता एवं बहुगिता उनकी कृतियों में मिलती है। इनके कुछ प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित प्रमुख हैं-साकेत, भारत-भारती, यशोधरा, रंग में भंग, किसान, जयद्रथ-वथ, पत्रावली, प्रदक्षिणा, कुणाल-गीत, सिद्धराज, पंचवटी, द्वापर, विष्णुप्रिय, त्रिपथगा, सैरिन्ध्री, जय भारत, चन्द्रहास, गुरुकुल, हिन्द आदि।
गुप्तजी आदर्शवादी और राष्ट्रवादी थे। उनकी उदार धार्मिकता, स्वदेशभक्ति तथा सांस्कृतिक गौरव-गान के साथ शक्ति-पूजा, जयघोष तथा ग्रामीण सरलता की संगति खूब बैठी है। मानना होगा कि गुप्तजी खड़ी बोली काव्य-चटसार के सीधे-सादे प्राइमरी गुरु हैं। हिन्दी के अनगिनत आधुनिक कवियों ने निस्संदेह कविताई का ककहरा उन्हीं से सीखा। हिन्दी के संभवतः सरल कवि के रूप में भी शान से पढ़ा जा सकता है।
भारत की साधारण जनता की लालसाएँ, आदर्श, साधना, रुचियाँ तथा आवश्यकताएँ, कर्म एवं भावना गद्य में प्रेमचन्द ढाल रहे थे और पद्य में गुप्तजी। राष्ट्रीय जीवन में व्याप्त रुदन के स्वरों को हास्य की फुलझड़ियों में बदलने का पूरा-पूरा श्रेय गुप्त जी को ही है। कोई भी साहित्यिक धारा इनकी छुअन से नहीं बच पायी। एक ओर वे सांस्कृतिक उत्थान के पुरोधा हैं तो दूसरे ओर समन्वय के प्रहरी।
वास्तव में प्राचीन के प्रति पूज्यभावना औ: नवीन के प्रति उत्साहपूर्ण स्वागत भाव गुप्त जी की विशेषता है। उनमें कालानुसरण की अदुभुत क्षमता थी। उत्तरोत्तर बदलती भावनाओं और काव्य प्रणालियों को ग्रहण करते चलने की शक्ति ने उनके सुदीध रचना समय में बराबर उनका महत्त्व बनाए रखा।
झंकार पाठ का सारांश
स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानंद, महात्मा गाँधी और महर्षि अरविन्द के चिन्तन से प्रभावित स्वतंत्र भारम के प्रथम अघोषित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त रचित झंकार शीर्षक गीत राष्ट्रीय भावना का प्रक्षेपक है। . एक राष्ट्र का समस्त विकास तभी संभव है जब जन-जन में उसके लिए उत्सर्ग का भाव हो। प्रत्येक नागरकि चाहे वह जिस व्यवास से जुड़ा हो यदि वह राष्ट्र उन्नयन के भाव को अपने हृदय में धारण करते हुए कार्यरत है तो देश का कल्याण अवश्मम्भावी है।
कवि एक सत्यनिष्ठ, देशभक्त के रूप में घोषणा करता है मातृभूमि रूपी वीणा के तार बनने की अगर आवश्यकता है। तनाव सहन करने जरूरत है तो मै अपने शरीर की सम्पूर्ण शिराओं को तंत्री का तार बनाने के लिए दधीचि की तरह प्रस्तुत हूँ। मुझे आघातों, वारों, चोटों की चिन्ता किंचित भी नहीं है। मेरा एकमात्र लक्ष्य है कि विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़े ! उसकी झंकार विश्व के कोने-कोने तक सुनाई पड़े। मेरी महती कामना है कि मातृभूमि के उत्कर्ष में नियति नियामक न बनकर घटक बने, प्रकृति सहयोगिनी बने ताकि उन्नति, विकास के जितने भी सुर स्वर है वे साकार हो उठे। यह सुर-संधान देशकाल की सीमा के परे जा पहुंचे। ऐसी गुंजार, का मै आकांक्षी हूँ।
मै सहर्ष हर प्रकार के प्रहार हेतु प्रस्तुत हूँ। मेरे शत्रुओं, तुम्हें जिस तरह से प्रहार करना हो, मुझे मार्ग से हटाने की इच्छा हो वह करों, मै इसे प्यार समझकर स्वीकार करूँगा। और क्या कहूँ। मै प्राणपण हूँ। तन-मन-धन से तुम्हारे प्रहार सहने के लिए प्रस्तुत हूँ।
कवि पुनः मातृभूमि को सम्बोधित करते हुए कहता है-मेरी शिराओं से बने हर तार से राष्ट्र का विकास रूपी तान विस्तारित हो। जो अब तक बेखबर हैं, जिनके कान उन्नति, कला संस्कृति की गमक धमक गुंजार से वचित हैं, या बन्द हैं। उन कानों के द्वारा खुल जाएँ। वे भी राष्ट्र यज्ञ में आहुति देने हेतु स्वयं को प्रस्तुत कर सकें। देश का स्वरूप इस तरह से बने कि सम्पूर्ण विश्व उस पर मोहित हो जाए। जैसे मधुर मोहक ताल सुनने का बार-बार मन करता है। मन, हृदय सभी मुक्त होते हैं। अवगुंठन के लिए अवकाश नहीं हो, स्थान नहीं हो। ऐसी समत्व भावभूमि तैयार हो कि वसुधैव कुटुम्बकम् की आर्ष कल्पना साकार हो उठे।
वस्तुत: प्रस्तुत गीत में गुप्तजी ने राष्ट्र प्रेमी का चोला बिना उतारे छायावादी रचना संसार में प्रवेश किया है। एक राष्ट्रभक्त विश्व मानव के रूप में कायान्तरित कैसे हो सकता है। एक उत्सर्ग प्रेमी, कला, संस्कृति के विकास के लिए स्वयं को बदली परिस्थिति में कैसे ढाल सकता. है। इन सब तथ्यों पर भी ध्यान जाता है। शत्रु के लिए प्यारे सम्बोधन हृदय की विस्तृत स्थिति का द्योतक कराता है। श्रुतियों के द्वार, साधारण जन के अचेतावस्था के साथ वैदिक ज्ञान के प्रति पुनः लगाव झुकाव को भी दर्शाता है। विकास, विस्तार केवल मेरा ही हो, कवि का यह अभीष्ट नहीं है, बल्कि वह औरों का भी विस्तार देखना चाहता है।
प्रस्तुत कविता ” तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित, चाहता हूँ देश की ध – रती तुझे कुछ और भी हूँ।” के सम्मिलन की भूमि में रची गयी गुप्तजी की एक उत्कृष्ट रचना है। अनुप्रास वीप्सा आदि अलंकारों की छटा विकीर्ण है।
झंकार कठिन शब्दों का अर्थ
शिरा-नस नाड़ी, धमनी। झंकार-संगीतमय ध्वनि। तंगी-वीणा, तार से बने हुए वाद्य ! आघात-चोट। नियति-भाग्य ! गमक-संगीत का पारिभाषिक शब्द जो कंपनपूर्ण रमणीक ध्वनि गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट के अर्थ के हैं। गुंजार-गूंज। तार-तार-रेशा-रेशा। अखिल-संपूर्ण। श्रुतियों-ध्वनियों। भाल-माथा। सम-संगीत का शान्तिमय परम क्षण। सकल-सम्पूर्ण।
झंकार काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या
1. इस शरीर की सकल …………… ऊँची झंकार।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि मैथिलशरण गुप्त रचित ‘झंकार’ कविता से ली गयी हैं। झंकार में कवि का स्वर आध्यात्मिक है, यहाँ छायावादी रहस्य-चेतना मुखर है। इन पंक्तियों में कवि कहता है कि जिस तरह वीणा के तारों पर आघात करने से संगीत की सृष्टि होती है उसी तरह का मानव शरीर भी वीणा की तरह तारों वाल वाद्य यन्त्र है। इस शरीर में निहित शिराएँ अर्थात् नर्से ही तार है।
हे परमात्मा ! इस शरीर की सभी शिराएँ तुम्हारी तंत्री अर्थात् वाद्य यन्त्र के तार बनें। हमें आधात की चिन्ता नहीं है कि कितनी चोट लगती है या कितनी झंकार उठती है। बस केवल इसमें से झंकार निकलनी चाहिए। अर्थात् इस शरीर से कोई ऐसा महत्वपूर्ण काम संभव हो जो जगत के लिए सुखद और मेरे लिए यशवर्द्धक हो। यहाँ कवि ने अपने को परमात्मा का तंत्र भी कहा है। वही इसे बजाता है अर्थात् जैसा लक्ष्य निर्धारित करता है वैसा हम कार्य करते है।
2. नाचे नियति, प्रकृति सुर साधे ……………. गहरी गुंजार।
व्याख्या-
‘झंकार’ की गीत की इन पंक्तियों में इनके रचयिता कवि प्रस्तुत श्रेष्ठ मैथिलीशरण गुप्त परमात्मा से यह कहना चाहते हैं कि तुम इस तन रूपी तंत्री के सभी सुरों को सजीव-साकार करों। वे सुर इतने प्रभावशाली हों, प्रेरक हो कि नियति अर्थात् भाग्य जो सब को नचाता है वह स्वयं नाचने लगे और प्रकृति जो लय के माध्यम से साकार होती है वह स्यवयं सुर साधने लगे।
उस झंकार का प्रभाव देश देश में अर्थात् सभी स्थानों में व्याप्त हो जाय और वह इतनी स्थायी हो कि भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों में व्याप्त रहकर कालातीत झंकार बन जाय। उस झंकार की गमक ऐसी हो कि उसका गहरा प्रभाव पड़े। यहाँ कवि ने तन के भीतर उठने वाली आत्मा की झंकार के विश्वव्यापी स्वरूप और गहरे प्रभाव की ओर संकेत किया है।
3. कर प्रहार, हों, कर प्रहार …………….. मैं, हूँ तैयार
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त जी की छायावादी-रहस्यवादी काव्यकृति ‘झंकार’ . से गृहीत हैं। इन पंक्तियों में कवि अपने नियन्ता परमात्मा से अनुरोध करना चाहता है तुम मुझको बजाने की कृपा अवश्य करो, यह मेरा सौभाग्य होगा कि तुमने मुझे उपयोग के लायक समझा। बजाने में चाहे जितने जोर से तुम आघात करो मुझे आपत्ति नहीं क्योंकि मै जानता हूँ कि वह प्रहार नहीं तुम्हारा प्यार होगा। हे प्यारों, मै तुमसे अधिक क्या कहूँ, मै हर तरफ से तुम्हारे द्वारा बजाये जाने के लिए तैयार हूँ। ये पंक्तियाँ प्रसन्नतापूर्वक दु:ख उठाने वाली मध्ययुगीन भक्ति-भावना तथा सम्पूर्ण समर्पण की प्रवृत्ति को सूचित करती हैं।
4. मेरे तार तार से ………………. श्रुतियों के द्वार।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त रचित ‘झंकार’ कविता से ली गयी हैं। इसमें कवि यह भाव व्यक्त करता है कि परमात्मा के द्वारा यदि वह उसके संगीत का माध्यम बनाया जाता है तो यह उसका सौभाग्य होगा। अतः वह चाहता है कि उसके शरीर की सभी शिराओं से परमात्मा के संगीत का प्रकाशन हो, वह उनके विश्वव्यापी संगीत के प्रसार का निमित्त ‘बने। उसकी हार्दिक इच्छा है कि परमात्मा के अस्तित्व-बोध का भौतिक माध्यम बनकर जगत को उसकी सत्ता की सांगीतिक अनुभूति करा सकेगा।
5. ताल-ताल पर भाल ………………… समा जाय संसार :
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त रचित ‘झंकार’ कविता से ली गयी हैं। हम जानते है कि संगीत में ताल का महत्त्व होता है। हर गीत अलग-अलग ताल में निबद्ध होता है। कवि चाहता है कि उसके माध्यम से परमात्मा का जो संगीत व्यक्त हो उसके प्रत्येक ताल पर संसार बार-बार मोहित होकर अपना सिर झुकाकर परमात्मा की महत्ता को नमन करे। भीतर से निकली झंकार में ऐसी अन्विति हो, ऐसी क्रम-व्यवस्था हो कि लय बँध जाय और उस लय के व्यापक प्रभाव में क्रम-क्रम से सम अर्थात् उद्वेग और तनाव से रहित ऐसी स्निग्ध और आन्नदपूर्ण शान्ति का विधान हो कि सारा संसार उसी में समाहित हो जाय। अर्थात् परमात्मा की सत्ता से तन्मय-तदाकार होकर अखंड आनन्द की प्राप्ति करे। इन पंक्तियों में ताल, लय तथा सम ये तीनों शब्द संगीतशास्त्र के पारिभाषिक शब्द हैं।