Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिकTextbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक
Bihar Board Class 12 Chemistry उपसहसंयोजन यौगिक Text Book Questions and Answers
पाठ्यनिहित प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 9.1
निम्नलिखित उपसहसंयोजन यौगिकों के सूत्र लिखिए:
- टेट्राऐम्मीनडाइऐक्वाकोबाल्ट (III) क्लोराइड
- पोटैशियम टेट्रासायनोनिकिलेट (II)
- ट्रिस (एथेन – 1, 2 – डाइऐमीन) क्रोमियम (III) क्लोराइड
- ऐम्मीनब्रोमिडोक्लोरिडोनाइट्रिटो – N – प्लैटिनेट (II)
- डाइक्लोरोबिस (एथेन – 1, 2 – डाइऐमीन) प्लैटिनम (IV) नाइट्रेट
- आयरन (III) हेक्सासायनोफेरेट (II)
उत्तर:
- [Co(NH3)4(H2O)2]Cl3
- K2[Ni(CN)4]
- [Cr(en)3]Cl3
- [Pt(NH3) BrCl(NO2)]–
- [PtCl2(en)2] (NO3)2
- Fe4[Fe(CN)6]3
प्रश्न 9.2
निम्नलिखित उपसहसंयोजन यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए –
- [Co(NH3)6]Cl3
- [Co(NH3)5Cl]Cl2
- K3[Fe(CN)6]
- K3[Fe(C2O4)3]
- K2[PaCl4]
- [Pt(NH3)2 CI(NH2CH3)]Cl
उत्तर:
- हेक्साऐम्मीनकोबाल्ट (III) क्लोराइड
- पेन्टाऐम्मीनक्लोरिडोकोबाल्ट (III) क्लोसइड
- पोटैशियम हेक्सासायनोफेरेट (III)
- पोटैशियम ट्राइऑक्सेलेटोफेरेट (III)
- पोटैशियम टेट्राक्लोरिडोपैलेडेट (II)
- डाइऐम्मीनक्लोरिडो (मेथिलऐमीन) प्लैटिनम (II) क्लोराइड।
प्रश्न 9.3
निम्नलिखित संकुलों द्वारा प्रदर्शित समावयवता का प्रकार बतलाइए तथा इन समावयवों की संरचनाएँ बनाइए:
- K[Cr(H2O)2 (C2O4)2]
- [Co(en)3] Cl3
- [Co(NH3)5(NO2)](NO3)2
- [Pt(NH3)(H2O)Cl2]
उत्तर:
(i) (क) सिस के लिए ज्यामितीय (सिस – ट्रान्स) तथा प्रकाशिक समावयव हो सकते हैं –
(ख) सिस के प्रकाशिक समावयव (d- तथा l-)
(ii) दो प्रकाशिक समावयव हो सकते हैं।
(iii) आयनन समावयव:
दस समावयव सम्भव हैं (ज्यामितीय, आयनन तथा बन्धनी समावयव सम्भव हैं)।
[Co(NH3)5(NO2)](NO3)2, [Co(NH3)5(NO3)] (NO2)(NO3)
बन्धनी समावयव:
[Co(NH3)5(NO2)] (NO3)2, [Co(NH3)5 (ONO)] (NO3)2
(iv) ज्यामितीय समावयव (सिस-, ट्रान्स-) हो सकते हैं।
प्रश्न 9.4
इसका प्रमाण दीजिए कि [Co(NH3)5Cl] SO4 तथा [Co(NH3)5SO4]Cl आयनन समावयव हैं।
उत्तर:
आयनन समावयव जल में घुलकर भिन्न आयन देते हैं, इसलिए विभिन्न अभिकर्मकों से भिन्न – भिन्न अभिक्रियाएँ करते हैं।
[Co(NH35Cl)SO4 + Ba2+ → BaSO4(s)
[Co(NH3)5SO4] + Ba2+ → कोई अभिक्रिया नहीं
[Co(NH3)5Cl]SO4 + Ag+ → कोई अभिक्रिया नहीं
[Co(NH3)SO4]Cl + Ag+ → AgCl(s)
प्रश्न 9.5
संयोजकता आबन्ध सिद्धान्त के आधार पर समझाइए कि वर्ग समतलीय संरचना वाला [Ni(CN)4]2- आयन प्रतिचुम्बकीय है तथा चतुष्फलकीय ज्यामिति वाला [NiC4]2- आयन अनुचुम्बकीय है।
उत्तर:
[Ni(CN)4]2- का चुम्बकीय व्यवहार (Magnetic behaviour of [Ni(CN)4]2-: Ni का परमाणु क्रमांक 28 है। Ni, Ni2+ तथा [Ni(CN)4]2- में निकिल की अवस्था के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्नलिखित हैं:
संकरण संकुल आयन [Ni(CN)4]2- प्रतिचुम्बकीय है, चूंकि इसमें अयुगलित इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं।
[NiCl4]2- का चुम्बकीय व्यवहार (Magnetic behaviour of [NiCl42-): इसमें Cl– दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड है तथा यह इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं करता है।
संकुल आयन Co[NiCl4]2- में इसके d – उपकोश में अयुगलित इलेक्ट्रॉन होते हैं, इसलिए यह अनुचुम्बकीय होता है।
प्रश्न 9.6
[NiCl4]2- अनुचुम्बकीय है, जबकि [Ni(CO)4] प्रतिचुम्बकीय है यद्यपि दोनों चतुष्फलकीय हैं।
उत्तर:
[Ni(CO)4] में निकिल शून्य ऑक्सीकरण अवस्था में है, जबकि [NiCl4]2- में यह +2 ऑक्सीकरण अवस्था में है। Co लिगेण्ड की उपस्थिति में निकिल के अयुगलित d – इलेक्ट्रॉन युगलित हो जाते हैं, परन्तु Cl– दुर्बल लिगेण्ड होने के कारण अयुगलित इलेक्ट्रॉनों को युगलित करने योग्य नहीं होता है। चूँकि [Ni(CO)4] में कोई अयुगमित इलेक्ट्रॉन नहीं है, अतः यह प्रतिचुम्बकीय है और [NiCl4]2- में अयुगमित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण यह अनुचुम्बकीय होता है।
प्रश्न 9.7
[Fe(H2O6)]3+ प्रबल अनुचुम्बकीय है, जबकि [Fe(CN)6]3- दुर्बल अनुचुम्बकीय। समझाइए।
उत्तर:
CN– (एक प्रबल लिगेण्ड) की उपस्थिति में, 3d – इलेक्ट्रॉन युगलित होकर केवल एक अयुगलित इलेक्ट्रॉन छोड़ते हैं। d2sp3 संकरण आन्तरिक कक्षक संकुल बनाता है, इसलिए [Fe(CN)6]3- दुर्बल अनुचुम्बकीय होता है। H2O (एक दुर्बल लिगेण्ड) की उपस्थिति में 3d – इलेक्ट्रॉन युगलित नहीं होते। संकरण sp3d2 है जो बाह्य कक्षक संकुल, जिसमें पाँच अयुगलित इलेक्ट्रॉन होते हैं, बनाता है, इसलिए [Fe(H2O)6]3+ प्रबल अनुचुम्बकीय होता है।
प्रश्न 9.8
समझाइए कि [Co(NH3)6]3+ एक आन्तरिक कक्षक संकुल है, जबकि [Ni(NH3)6]2- एक बाह्य कक्षक संकुल है।
उत्तर:
NH3 की उपस्थिति में 3d – इलेक्ट्रॉन युग्मित होकर दो रिक्त d – कक्षक छोड़ते हैं जो [Co(NH3)6]2+ की स्थिति में आन्तरिक कक्षक संकुल बनाने वाले d2sp3 संकरण में सम्मिलित होते हैं।
Ni(NH3)6]2+ में निकिल +2 ऑक्सीकरण अवस्था में है तथा इसका d8 विन्यास है। इसमें बाह्य कक्षक संकुल बनाने वाला sp3d2 संकरण सम्मिलित होता है।
प्रश्न 9.9
वर्ग समतली [Pt(CN)4]2- आयन में अयुगलित इलेक्ट्रॉन की संख्या बतलाइए।
उत्तर:
तत्व 78Pt वर्ग 10 में स्थित है तथा इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 5d9 6s1 है। अत: Pt2+ का विन्यास d8 है।
वर्ग समतली संरचना के लिए संकरण dsp2 होता है। चूँकि 5d में अयुगलित इलेक्ट्रॉन युगलित होकर रिक्त dsp2 कक्षक संकरण के लिए एक रिक्त कर देते हैं अतः इसमें अयुगलित इलेक्ट्रॉन नहीं है।
प्रश्न 9.10
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त को प्रयुक्त करते हुए समझाइए कि कैसे हेक्साऐक्वा मैंगनीज (II) आयन में पाँच अयुगलित इलेक्ट्रॉन हैं, जबकि हेक्सासायनो आयन में केवल एक ही अयुगलित इलेक्ट्रॉन है।
उत्तर:
उत्तर-ऑक्सीकरण अवस्था +2 में Mn का विन्यास 3d5 होता है। लिगण्ड के रूप में H2O की उपस्थिति में इन पाँच इलेक्ट्रॉनों का वितरण \(t_{2 g}^{3} e_{g}^{2}\) होते हैं अर्थात् उच्च प्रचक्रण संकुल के कारण सभी इलेक्ट्रॉन अयुगलित रह जाते हैं। लिगेण्ड के रूप में CN– की उपस्थिति में इन इलेक्ट्रॉन का वितरण \(t_{2 g}^{5} e_{g}^{0}\) है अर्थात् दो t2g कक्षकों में युगलित इलेक्ट्रॉन है, जबकि तीसरे t2g कक्षक में एक अयुगलित इलेक्ट्रॉन होता है।
प्रश्न 9.11
[Cu(NH3)4]2+ संकुल आयन के β4 का मान 2.1 × 1013 है, इस संकुलन के समग्र वियोजन स्थिरांक के मान की गणना कीजिए।
गणना:
समग्र वियोजन स्थिरांक, समग्र स्थायित्व स्थिरांक का व्युत्क्रम होता है।
= 4.7 × 10-14
Bihar Board Class 12 Chemistry उपसहसंयोजन यौगिक Additional Important Questions and Answers
अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 9.1
वर्नर की अभिधारणाओं के आधार पर उपसहसंयोजन यौगिकों में आबन्धन को समझाइए।
उत्तर:
उपसहसंयोजन यौगिकों में आबन्धन को समझाने के लिए वर्नर ने सन् 1898 में उपसहसंयोजन यौगिकों का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त की मुख्य अभिधारणाएँ निम्नलिखित हैं:
1. उपसहसंयोजन यौगिकों में धातुएँ दो प्रकार की संयोजकताएँ दर्शाती हैं प्राथमिक तथा द्वितीयक।
2. प्राथमिक संयोजकताएँ सामान्य रूप से धातु परमाणु की ऑक्सीकरण अवस्था से सम्बन्धित होती हैं तथा आयननीय होती हैं। ये संयोजकताएँ ऋणात्मक आयनों द्वारा सन्तुष्ट होती हैं।
3. द्वितीयक संयोजकताएँ धातु परमाणु की उपसहसंयोजन संख्या से सम्बन्धित होती हैं। द्वितीयक संयोकजताएँ अनआयननीय होती हैं। ये उदासीन अणुओं अथवा ऋणात्मक आयनों द्वारा सन्तुष्ट होती हैं। द्वितीयक संयोजकता उपसहसंयोजन संख्या के बराबर होती है तथा इसका मान किसी धातु के लिए सामान्यत: निश्चित होता है।
4. धातु से द्वितीयक संयोजकता से आबन्धित आयन समूह विभिन्न उपसहसंयोजन संख्या के अनुरूप दिक्स्थान में विशिष्ट रूप से व्यवस्थित रहते हैं। आधुनिक सूत्रीकरण में इस प्रकार की दिक्स्थान व्यवस्थाओं को समन्वय बहुफलक (coordination polyhedra) कहते हैं। गुरुकोष्ठक में लिखी स्पीशीज संकुल तथा गुरुकोष्ठक के बाहर लिखे आयन प्रति आयन (counter ions) कहलाते हैं।
उन्होंने यह भी अभिधारणा दी कि संक्रमण तत्वों के समन्वय यौगिकों में सामान्यतः अष्टफलकीय, चतुष्फलकीय व वर्ग समतली ज्यामितियाँ पाई जाती हैं। इस प्रकार [Co(NH3)6]3+, [CoCl(NH3)5]2+ तथा [CoCl2(NH3)4]+ की ज्यामितियाँ अष्टफलकीय हैं, जबकि [Ni(CO)4] तथा [PtCl4]2- क्रमशः चतुष्फलकीय तथा वर्ग समतली हैं।
उपर्युक्त अभिधारणाओं से वर्नर, जिसने निम्नलिखित यौगिको को कोबाल्ट (III) क्लोराइड की NH3 से अभिक्रिया करके बनाया, ने इन यौगिकों (उपसहसंयोजक) की संरचना की सफलतापूर्वक व्याख्या की जिसका वर्णन निम्नलिखित है –
CoCl3.6NH3 नारंगी
CoCl3.5NH3.H2O गुलाबी
CoCl3.5NH3 बैंगनी CoCl3.3NH3 हरा
CoCl3.4NH3 के विभिन्न रंगों का कारण यह है कि ये समपक्ष तथा विपक्ष समावयव होते हैं।
– प्राथमिक संयोजकता या ऑक्सीकरण अवस्था
– द्वितीयक संयोजकता या उपसहसंयोजन संख्या
प्रश्न 9.2
FeSO4 विलयन तथा (NH4)2SO4 विलयन का 1:1 मोलर अनुपात में मिश्रण Fe2+ आयन का परीक्षण देता है, परन्तु CuSO4 व जलीय अमोनिया का 1:4 मोलर अनुपात में मिश्रण Cu2+ आयनों का परीक्षण नहीं देता। समझाइए क्यों?
उत्तर:
FeSO4 विलयन तथा (NH4)2SO4 विलयन का 1:1 मोलर अनुपात में मिश्रण द्विक लवण –
जो विलयन में आयनित होकर Fe2+ आयन देता है। अतः यह Fe2+ आयनों का परीक्षण देता है। CuSO4 व जलीय विलयन का 1:4 मोलर अनुपात में मिश्रण संकर लवण [Cu(NH3)4] SO4 बनाता है। संकुल आयन, [Cu(NH3)4]2+ आयनित होकर Cu2+ आयन नहीं देता है। अतः यह Cu2+ आयन के परीक्षण नहीं देता।
प्रश्न 9.3
प्रत्येक के दो उदाहरण देते हुए निम्नलिखित को समझाइए समन्वय समूह, लिगेण्ड, उपसहसंयोजन संख्या, उपसहसंयोजन बहुफलक, होमोलेप्टिक तथा हेटेरोलेप्टिक।
उत्तर:
1. उपसहसंयोजन सत्ता या समन्वय समूह:
केन्द्रीय धातु परमाणु अथवा आयन से किसी एक निश्चित संख्या में आबन्धित आयन. अथवा अणु मिलकर एक उपसहसंयोजन सत्ता का निर्माण करते हैं। उदाहरणार्थ: [CoCl3(NH3)3] एक उपसहसंयोजन सत्ता है जिसमें कोबाल्ट आयन तीन अमोनिया अणुओं तथा तीन क्लोराइड आयनों से घिरा है। अन्य उदाहरण हैं –
[Ni(CO)4], [PtCl2(NH3)2], [Fe(CN6]4-, [Co(NH3)6]3+ आदि।
2. लिगेण्ड:
उपसहसंयोजन सत्ता में केन्द्रीय परमाणु/आयन से परिबद्ध आयन अथवा अणु लिगेण्ड कहलाते हैं। ये सामान्य आयन हो सकते हैं; जैसे – Cl– छोटे अणु हो सकते हैं; जैसे – H2O या NH3, बड़े अणु हो सकते हैं;
H2NCH2CH2NH2N(CH2CH2NH2)3 वृहदाणु भी हो सकते हैं; जैसे-प्रोटीन।
3. उपसहसंयोजन संख्या:
एक संकुल में धातु आयन की उपसहसंयोजन संख्या (CN) उससे आबन्धित लिगण्डों के उन दाता परमाणुओं की संख्या के बराबर होती है जो सीधे धातु आयन से जुड़े हों।
उदाहरणार्थ:
संकुल आयनों [PtCl6]2- तथा [Ni(NH3)4]2+ में Pt तथा Ni की उपसहसंयोजन संख्या क्रमश: 6 तथा 4 हैं। इसी प्रकार संकुल आयनों [Fe(C2O4)3]3- और [Co(en)3] + में Fe और Co दोनों की समन्वय संख्या 6 हैं; क्योंकि \(\mathrm{C}_{2} \mathrm{O}_{4}^{2-}\) तथा en (एथेन-1, 2-डाइऐमीन) द्विदन्तुर लिगेण्ड हैं।
उपसहसंयोजन संख्या के सन्दर्भ में यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि केन्द्रीय परमाणु/आयन की उपसहसंयोजन संख्या केन्द्रीय परमाणुःआयन तथा लिगेण्ड के मध्य बने केवल (σ) (सिग्मा) आबन्धों की संख्या के आधार पर ही निर्धारित की जाती है। यदि लिगेण्ड तथा केन्द्रीय परमाणु/आयन के मध्य π (पाई) आबन्ध बने हों तो उन्हें नहीं गिना जाता।
4. उपसहसंयोजन बहुफलक:
केन्द्रीय परमाणु/ आयन से सीधे जुड़े लिगेण्ड परमाणुओं की दिक्स्थान व्यवस्था (special arrangement) को उपसहसंयोजन बहुफलक कहते हैं।
चित्र – विभिन्न उपसहसंयोजन बहुफलकों की आकृतियाँ – M केन्द्रीय परमाणु/आयन को तथा L एकदन्तुर
लिगेण्ड को प्रदर्शित करता है इनमें अष्टफलकीय, वर्ग समतलीय तथा चतुष्फलकीय मुख्य हैं। उदाहरणार्थ: [Co(NH3)6]3+ अष्टफलकीय है, [Ni(CO)4] चतुष्फलकीय है तथा [PtCl4]2- वर्ग समतलीय है। चित्र में विभिन्न उपसहसंयोजन बहुफलकों की आकृतियाँ दर्शाई गई हैं।
5. होमोलेप्टिक:
संकुल जिनमें धातु परमाणु केवल एक प्रकार के दाता समूह से जुड़ा रहता है, होमोलेप्टिक संकुल कहलाते हैं।
उदाहरणार्थ: [Co(NH3)6]3+ तथा [Fe(CN)6]2+
6. हेटरोलेप्टिक:
संकुल जिनमें धातु परमाणु एक से अधिक प्रकार के दाता समूहों से जुड़ा रहता है, हेटरोलेप्टिक संकुल कहलाते हैं। उदाहरणार्थ – [Co(NH3)4Cl2]+ तथा [Pt(NH3)5Cl]3+
प्रश्न 9.4
एकदन्तुर, द्विदन्तुर तथा उभयदन्तुर लिगेण्ड से क्या तात्पर्य है? प्रत्येक के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जब एक लिगेण्ड धातु आयन से एक दाता परमाणु द्वारा परिबद्ध होता है; जैसे – Cl– H2O या NH3 तो लिगेण्ड एकदन्तुर (unidentate) कहलाता है। जब लिगेण्ड दो दाता परमाणुओं द्वारा परिबद्ध हो सकता है; जैसे – H2NCH2CH2NH2 (एथेन-1, 2-डाइऐमीन) अथवा C2O2-4 (ऑक्सेलेट) तो ऐसा लिगेण्ड द्विदन्तुर कहलाता है।
वह लिगेण्ड जो दो भिन्न परमाणुओं द्वारा जुड़ सकता है, उसे उभयदन्ती संलग्नी या उभयदनी लिगेण्ड कहते हैं। ऐसे लिगेण्ड के उदाहरण हैं – NO–2, तथा SCN– आयन। NO–2 आयन केन्द्रीय धातु परमाणु/आयन से या तो नाइट्रोजन द्वारा अथवा ऑक्सीजन द्वारा संयोजित हो सकता है। इसी प्रकार SCN– आयन सल्फर अथवा नाइट्रोजन परमाणु द्वारा संयोजित हो सकता है।
प्रश्न 9.5
निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में धातुओं के ऑक्सीकरण संख्या का उल्लेख कीजिए –
- [Co(H2O)(CN)(en)2]2+
- [CoBr2(en)2]+
- [PtCl4]2-
- K3[Fe(CN6)]
- [Cr(NH3)3Cl3]
गणना:
प्रश्न 9.6
IUPAC नियमों के आधार पर निम्नलिखित के लिए सूत्र लिखिए –
- टेट्राहाइड्रोऑक्सोजिंकेट (II)
- पोटैशियम टेट्राक्लोरिडोपैलेडेट (II)
- डाइऐम्मीनडाइक्लोरिडोप्लैटिनम (II)
- पोटैशियम टेट्रासायनोनिकिलेट (II)
- पेन्टोऐम्मीननाइट्रिटो-0-कोबाल्ट (III)
- हेक्साऐम्मीनकोबाल्ट (III)) सल्फेट
- पोटैशियम ट्राइ (ऑक्सेलेटो) क्रोमेट (III)
- हेक्साऐम्मीनप्लैटिनम (IV)
- टेट्राबोमिडोक्यूप्रेट (II)
- पेन्टाऐम्मीननाइट्रिटो-N-कोबाल्ट (III)
उत्तर:
- [Zn(OH)4]2-
- K2[PdCl4]
- [Pt(NH3))2Cl2]
- K2[Ni(CN)4]
- [Co(NH3)5(ONO)2+
- [Co(NH3)6]2 (SO4)3
- K3[Cr(C2O4)3]
- [Pt(NH3)6]4+
- [CuBr4]2-
- [Co(NH3)5 (NO2)]2+
प्रश्न 9.7
IUPAC नियमों के आधार पर निम्नलिखित के सुव्यवस्थित नाम लिखिए:
- [Co(NH3)6]Cl3
- [Pt(NH3)2 Cl(NH2CH3)]Cl
- [Ti(H2O)6]3+
- [Co(NH3)4 Cl(NO2)]Cl
- [Mn(H2O)6]2+
- [NiCl4]2-
- [Ni(NH3)6]Cl2
- [Co(en)3]3+
- [Ni(CO)4]
उत्तर:
- हेक्साऐमीनकोबाल्ट (III) क्लोराइड
- डाइऐमीनक्लोरिडो (मेथिलऐमीन) प्लैटिनम (II)क्लोराइड
- हेक्साऐक्वाटाइटेनियम (III) आयन
- टेट्राऐमीनक्लोरिडोनाइट्रिटो – N – कोबाल्ट (III) क्लोराइड
- हेक्साऐक्वामैंगनीज (II) आयन
- टेट्राक्लोरिडोनिकिलेट (II) आयन
- हेक्साऐमीनिकिल (II) क्लोराइड
- ट्रिस (एथेन-1, 2-डाइऐमीन) कोबाल्ट (III) आयन
- टेट्राकार्बोनिलनिकिल (0)।
प्रश्न 9.8
उपसहसंयोजन यौगिकों के लिए सम्भावित विभिन्न प्रकार की समावयवताओं को सूचीबद्ध कीजिए तथा प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
उपसहसंयोजन यौगिकों में दो प्रमुख प्रकार की समावयवताएँ ज्ञात हैं। इनमें से प्रत्येक को पुनः प्रविभाजित किया जा सकता है।
1. त्रिविम समावयवता:
(क) ज्यामितीय समावयवता; जैसे –
2. संरचनात्मक समावयवता:
(क) बन्धनी समावयवता; जैसे –
[Co(NH3)5(NO2)] Cl2
तथा [Co(NH3)5(ONO)] Cl2
(ख) उपसहसंयोजन समावयवता; जैसे –
[Co(NH3)6] [Cr(CN)6]
तथा [Cr(NH3)6] [Co(CN)6]
(ग) आयनन समावयवता; जैसे –
[Co(NH3)4 Cl2] NO2
तथा [Co(NH3)4 (NO2Cl)] Cl
(घ) विलायकयोजन समावयवता; जैसे –
[Cr(H2O)6] Cl3
तथा [Cr(H2O)5 Cl] Cl2.H2O
प्रश्न 9.9
निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में कितने ज्यामितीय समावयव सम्भव हैं?
(क) [Cr(C2O4)3]
(ख) [Co(NH3)3 Cl3]
उत्तर:
(क) कोई ज्यामितीय समावयव सम्भव नहीं है।
(ख) दो ज्यामितीय समावयव फलकीय तथा रेखांशिक समावयव सम्भव हैं।
प्रश्न 9.10
निम्नलिखित के प्रकाशिक समावयवों की संरचनाएँ बनाइए –
- [Cr(C2O4)3]3-
- [PtCl2(en)2]2+
- [Cr(NH3)2Cl2(en)]+
उत्तर:
1. [Cr(C2O4)3]3-
2. [PtCl2(en)2]2+
3. [Cr(NH3)2Cl2(en)]+
प्रश्न 9.11
निम्नलिखित के सभी समावयवों (ज्यामितीय व ध्रुवण) की संरचनाएँ बनाइए –
- [CoCl2(en)2]+
- [Co(NH3)Cl(en)2]2+
- [Co(NH3)2Cl2(en)]+
उत्तर:
1. [CoCl2(en)2]+
2. [Co(NH3)Cl(en)2]2+
3. [Co(NH3)2Cl2(en)2]2+
प्रश्न 9.12
[Pt (NH3) (Br)(CI) (Py)] के सभी ज्यामितीय समावयव लिखिए। इनमें से कितने ध्रुवण समावयवता दर्शाएँगे?
उत्तर:
इसके तीन ज्यामितीय समावयव सम्भव हैं।
ये समायव ध्रुवण समावयवता नहीं दर्शाते हैं। ध्रुवण समावयवता वर्ग समतली अथवा चतुष्फलकीय संकुलों में पाई जाती है जबकि इनमें असममिताकार कीलेटिंग लीगेंड हैं।
प्रश्न 9.13
जलीय कॉपर सल्फेट विलयन (नीले रंग का), निम्नलिखित प्रेक्षण दर्शाता है –
- जलीय पोटैशियम फ्लुओराइड के साथ हरा रंग
- जलीय पोटैशियम क्लोराइड के साथ चमकीला हरा रंग। उपर्युक्त प्रायोगिक परिणामों को समझाइए।
उत्तर:
जलीय CusO4 विलयन [Cu(H2O)4]2+ SO42-, H2O के रूप में पाया जाता है जिसका नीला रंग [Cu(H2O)4]2+ आयनों के कारण होता है।
1. जब पोटैशियम फ्लुओराइड मिलाया जाता है, तब दुर्बल H2O लिगेण्ड F– लिगेण्डों द्वारा प्रतिस्थापित होकर [CuF4]2- आयन बनाते हैं जो एक हरा अवक्षेप होता है।
2. जब पोटैशियम क्लोराइड (KCl) मिलाया जाता है, तब Cl– लिगेण्ड दुर्बल H2O लिगेण्डों को प्रतिस्थापित करके [CuCl4]2- आयन बनाते हैं जिसका चमकीला हरा रंग होता है।
प्रश्न 9.14
कॉपर सल्फेट के जलीय विलयन में जलीय KCN को आधिक्य में मिलाने पर बनने वाली उपसहसंयोजन सत्ता क्या होगी? इस विलयन में जब H2S गैस प्रवाहित की जाती है तो कॉपर सल्फाइड का अवक्षेप क्यों नहीं प्राप्त होता?
उत्तर:
कॉपर सल्फेट के जलीय विलयन में जलीय KCN विलयन मिलाने पर पोटैशियम टेट्रासाइनो क्यूप्रेट (II) का संकुल बनता है।
2 CuSO4(aq) + 10KCN (aq) → 2K3 [Cu(CN)4](aq) + 2K2SO4(aq)
चूँकि CN– एक प्रबल लिगेण्ड है, अत: संकुल स्थाई होता है। H2S गैस को प्रवाहित करने पर यह विखण्डित नहीं होता है तथा CuS का कोई अवक्षेप नहीं बनता।
प्रश्न 9.15
संयोजकता आबन्ध सिद्धान्त के आधार पर निम्नलिखित उपसहसंयोजन सत्ता में आबन्ध की प्रकृति की विवेचना कीजिए –
(क) [Fe(CN)64-
(ख) [FeF6]3-
(ग) Co(C2O4)3]3-
(घ) [CoF6]3-
उत्तर:
(क) [Fe(CN)6]4- इस संकुल आयन में आयरन की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है।
Fe का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Ar] 3d6 4s2
Fe2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = [Ar] 3d6
छह सायनाइड आयनों से छह इलेक्ट्रॉन युग्मों को स्थान देने के लिए आयरन (II) आयन को छह रिक्त कक्षक उपलब्ध करने चाहिए। ऐसा निम्नलिखित संकरण पद्धति के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जिसमें d – उपकोश के इलेक्ट्रॉन युगलित हो जाते हैं, चूँकि CN आयन प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड हैं।
अतः छह सायनाइड आयनों से छड़ इलेक्ट्रॉन युग्म आयरन (II) आयन के छह संकरित कक्षकों को अध्यासित कर लेते हैं। इस प्रकार किसी भी कक्षक में अयुगलित इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं, इसलिए [Fe(CN)6]4- प्रतिचुम्बकत्व दर्शाता है। अतः [Fe(CN)6]4- प्रतिचुम्बकीय तथा अष्टफलकीय है।
(ख) [FeF6]3-:
यह संकुल उच्च चक्रण (या चक्रण मुक्त) या बाह्य संकुल है, चूँकि केन्द्रीय धातु आयन, Fe (III) संकरण के लिए nd-कक्षकों का प्रयोग करता है। यह एक ङ्केअष्टफलकीय संकुला है जिसमें sp3 d2 संकरण होता है। प्रत्येक कक्षक में छह फ्लुओराइड आयनों से एक-एक एकाकी इलेक्ट्रॉन-युग्म स्थान प्राप्त करता है जैसा कि निम्नांकित चित्र में दर्शाया गया है।
चूँकि संकुल में पाँच अयुगलित इलेक्ट्रॉन हैं, यह अनुचुम्बकीय है।
(ग) [Co(C2O4)3-:
Co(Z = 27) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास: [Ar] 4s2 3d7
Co3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास: [Ar] 4s0 4d6
C2O42- प्रबल क्षेत्रीय लिगेण्ड है, जिसके कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन होता है।
अतः स्पष्ट है कि [Co(C2O4)3]3- प्रतिचुम्बकीय, अष्टफलकीय संकुल है।
(घ) [CoF6]3- – Co(27): [Ar] 4s2 3d7 Co3+: [Ar] 4s0 3d6
F– एक दुर्बल लिगेण्ड होने के कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं कर सकता है।
अतः [CoF6]3- अनुचुम्बकीय तथा अष्टफलकीय संकुल है।
प्रश्न 9.16
अष्टफलकीय क्रिस्टल क्षेत्र में d-कक्षकों के विपाटन को दर्शाने के लिए चित्र बनाइए।
उत्तर:
माना छह लिगण्ड कार्तिक अक्षों के अनुदिश सममित रूप में स्थित हैं तथा धातु परमाणु मूल बिन्दु पर है। लिगेण्ड के निकट पर d – कक्षकों की ऊर्जा में मुक्त आयनों की तुलना में अपेक्षित वृद्धि होती है जैसा कि गोलीय क्रिस्टल क्षेत्र की स्थिति में होता है।
अक्षों के अनुदिश कक्षक (dz2 तथा \(d_{x}^{2}-y^{2}\)) dxy, dyz तथा dzx कक्षकों की तुलना में अधिक प्रबलता से प्रतिकर्षित होते हैं तथा इनमें अक्षों के मध्य निर्देशित पालियाँ (lobes) होती गोलीय क्रिस्टल क्षेत्र में औसत ऊर्जा की अपेक्षा dz2 तथा \(d_{x}^{2}-y^{2}\) कक्षक ऊर्जा में बढ़ जाते हैं तब dxy, dyz, dxz कक्षक ऊर्जा में न्यून हो जाते हैं।
चित्र – अष्टफलीय क्रिस्टल क्षेत्र में d – कक्षकों का विघटन
अतः d – कक्षकों का समभ्रंश समूह (degenerate set) दो समूहों में विघटित हो जाता है – निम्न ऊर्जा कक्षक समूह t2g तथा उच्च ऊर्जा कक्षक समूह eg ऊर्जा ∆0 द्वारा पृथक्कृत होती
प्रश्न 9.17
स्पेक्ट्रमीरासायनिक श्रेणी क्या है? दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड तथा प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
स्पेक्ट्रमीरासायनिक श्रेणी:
क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन, ∆0 लिगेण्ड तथा धातु आयन पर विद्यमान आवेश से उत्पन्न क्षेत्र पर निर्भर करता है। कुछ लिगेण्ड प्रबल क्षेत्र उत्पन्न कर सकते हैं तथा ऐसी स्थिति में विपाटन अधिक होता है, जबकि अन्य दुर्बल क्षेत्र उत्पन्न करते हैं जिसके फलस्वरूप d – कक्षकों का विपाटन कम होता है। सामान्यत: लिगेण्डों को उनके बढ़ती हुई क्षेत्र प्रबलता के क्रम में एक श्रेणी में निम्नानुसार व्यवस्थित किया जा सकता है –
I–Br– < SCN– < Cl– < S2- < F– < OH– C2
O42- < H2O < NCS– <edta4- < NH3 < en < CN– < Co इस प्रकार की श्रेणी स्पेक्ट्रमीरासायनिक श्रेणी (spectrochemical series) कहलाती है।
यह विभिन्न लिगेण्डों के साथ बने संकुलों द्वारा प्रकाश के अवशोषण पर आधारित प्रायोगिक तथ्यों द्वारा निर्धारित श्रेणी हैं। प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड के मध्य अन्तर ऐसे लिगेण्ड को जिनकी क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा (CFSE), ∆0 का मान कम होता है, दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड कहते हैं।
दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड के कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता तथा. ये उच्च चक्रण संकुल बनाते हैं। ऐसे लिगेण्ड को जिनकी क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा, ∆0 का मान अधिक होता है, प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड कहते हैं। प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड के कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन होता है तथा ये निम्न चक्रण संकुल बनाते हैं।
प्रश्न 9.18
क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा क्या है? उपसहसंयोजन सत्ता में d – कक्षकों का वास्तविक विन्यास ∆0 के मान के आधार पर कैसे निर्धारित किया जाता है?
उत्तर:
जब लिगेण्ड संक्रमण धातु आयन के निकट जाता है, तब d – कक्षक दो समुच्चयों में विपाटित हो जाते हैं, एक निम्न ऊर्जा के साथ तथा दूसरा उच्च ऊर्जा के साथा कक्षकों के इन दो समुच्चयों के बीच ऊर्जा का अन्तर अष्टफलकीय क्षेत्र के लिए क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा ∆0 कहलाता है।
यदि ∆0 < P (युग्मन ऊर्जा) तो चौथा इलेक्ट्रॉन किसी एक eg कक्षक में प्रवेश करता है तथा \(t_{2 g}^{3} e_{g}^{1}\) विन्यास देकर उच्च चक्रण संकुल बनाता है। ऐसे लिगेण्ड (जिनके लिए, ∆0 < P) दुर्बल क्षेत्र लिगेण्ड कहलाते हैं।
यदि ∆0 < P, तो चौथा इलेक्ट्रॉन किसी एक t2g कक्षक में युग्मित होता है तथा \(t_{2 g}^{4} e_{g}^{0}\) विन्यास देकर अल्प चक्रण संकुल बनाता है। ऐसे लिगेण्ड (जिनके लिए, ∆0 > P) प्रबल क्षेत्र लिगेण्ड कहलाते हैं।
प्रश्न 9.19
[Cr(NH3)6]3+ अनुचुम्बकीय है, जबकि [Ni(CN)4]2- प्रतिचुम्बकीय, समझाइए क्यों?
उत्तरः
[Cr(NH3)6]3+ का निर्माण:
[Cr(NH3)6]3+ आयन में क्रोमियम की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है, जिसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar] 3d5 4s1 है। संकरण को निम्न प्रकार से दिखाया गया है –
Cr3+ आयन अमोनिया के छह अणुओं से छह इलेक्ट्रॉन युग्मों के लिए यह रिक्त कक्षक उपलब्ध हैं। इसके फलस्वरूप संकुल [Cr(NH36)3+ में d2sp3 संकरण अष्टफलकीय होता है।
संकुल में इन अयुगलित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण यह वर्ग समतल संकुलों के संकरण d sp2 है जिसे निम्नवत् दर्शाया जा सकता है। प्रत्येक संकरित कक्षक सायनाइड आयन से एक इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करता है, जिससे अयुगलित इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति [Ni(CN)4]2- के प्रतिचुम्बकीय व्यवहार की पुष्टि होती है।
प्रश्न 9.20
[Ni(H2O)6]2+ का विलयन हरा है, परन्तु [Ni(CN)4]2- का विलयन रंगहीन है। समझाइए।
उत्तर:
चूँकि H2O दुर्बल लिगण्डों को निरूपित करता है, अतः ये कोई इलेक्ट्रान नहीं बनाते हैं। [Ni(H2O)6]2+ में Ni, 3d8 विन्यास के साथ +2 ऑक्सीकरण अवस्था में है अर्थात् संकुल में दो अयुगलित इलेक्ट्रॉन हैं, अत: यह रंगीन होता है। d-d संक्रमण लाल प्रकाश अवशोषित करके पूरक हरा रंग उत्सर्जित करता है।
[Ni(CN)4]2- में भी Ni, 3d8 विन्यास के साथ +2 ऑक्सीकरण अवस्था में है, परन्तु प्रबल CN– लिगेण्ड की उपस्थिति में 3d – कक्षक में दो अयुगलित इलेक्ट्रॉन गलित हो जाते हैं। अतः कोई अयुगलित इलेक्ट्रॉन नहीं होता; अत: यह रंगहीन होता है।
प्रश्न 9.21
[Fe(CN)6]4- तथा [Fe(H2O)6]2+ के तनु विलयनों के रंग भिन्न होते हैं। क्यों?
उत्तर:
दोनों संकलों में, Fe की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है अर्थात् इसमें चार अयुगलित इलेक्ट्रॉन हैं। दुर्बल H2O लिगण्ड की उपस्थिति में ये युगलित नहीं हो पाते हैं जबकि CN– प्रबल लिगण्ड की उपस्थिति में ये युग्मित होकर कोई अयुगलित इलेक्ट्रॉन नहीं छोड़ते हैं। अत: अयुगलित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति में अन्तर के कारण इनके तनु विलयनों में भिन्न रंग होते हैं।
प्रश्न 9.22
धातु कार्बोनिलों में आबन्ध की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
धातु कार्बोनिलों में आबन्ध की प्रकृति:
धातु कार्बोनिलों के धातु कार्बन आबन्ध में s तथा p के गुण पाये जाते हैं। M – C सिग्मा (σ) आबन्ध कार्बोनिल समूह के कार्बन में उपस्थित इलेक्ट्रॉन युगल को धातु के रिक्त कक्षक में दान करने से बनता है।
π – अतिव्यापन जिसमें पूरित धातु d – कक्षकों से इलेक्ट्रॉनों का CO के रिक्त प्रतिआबन्धन π* आण्विक कक्षकों में दान निहित होता है, इसके परिणामस्वरूप M → Cπ आबन्ध बनता है। धातु से लिगेण्ड का आबन्ध एक सहक्रियाशीलता का प्रभाव उत्पन्न करता है जो CO व धातु के मध्य आबन्ध को मजबूत बनाता है।
धातु कार्बोनिलों में आबन्धन निम्न प्रकार से प्रदर्शित है –
चित्र-कार्बोनिल संकुल में सहक्रियाशीलता आबन्धन अन्योयक्रिया का उदाहरण
प्रश्न 9.23
निम्नलिखित संकुलों में केन्द्रीय धातु आयन की ऑक्सीकरण अवस्था, d – कक्षकों का अधिग्रहण एवं उपसहसंयोजन संख्या बतलाइए –
- K3[C2O43]
- समपक्ष – [Cr(en)2Cl2]Cl
- (NH4)2[CoF4] ङ्के
- [Mn(H2O)6]SO4
उत्तर:
1. संकुल:
K3[Co(C2O4)3]
ऑक्सीकरण अवस्था –
1 + x + 3(-2) = 0
x = +3
उपसहसंयोजन संख्या: 6 (∵\(\mathrm{C}_{2} \mathrm{O}_{4}^{2-}\) द्विदुन्तर है)
d – कक्षक अध्यासन : 3d6 = \(t_{2 g}^{6} e_{g}^{0}\)
2. संकुल समपक्ष:
[Cr(en)2Cl2]Cl
ऑक्सीकरण अवस्था:
या x + 0 + 2(-1) = +1 या
x = +3
उपसहसंयोजन संख्या: 6
d – कक्षक अध्यासन:
3d3 = \(t_{2 g}^{3}\)
3. संकुल (NH4)2 [CoF4]:
थैऑक्सीकरण अवस्था:
x + 4(-1) = -2
x = +2
उपसहसंयोजन संख्या: 4
d – कक्षक अध्ययासन:
3d7 = \(e_{g}^{4} t_{2 g}^{3}\)
4. संकुल [Mn(H2O)6] SO4
ऑक्सीकरण अवस्था:
x + 0 = +2
x = +2
उपसहसंयोजन संख्या: 6
d – कक्षक अध्यासन:
3d5 = \(t_{2 g}^{3} e_{g}^{2}\)
प्रश्न 9.24
निम्नलिखित संकलों के IUPAC नाम लिखिए तथा ऑक्सीकरण अवस्था, इलेक्ट्रॉनिक विन्यास और उपसहसंयोजन संख्या दर्शाइए। संकुल का त्रिविम रसायन तथा चुम्बकीय आघूर्ण भी बतलाइए –
- K[Cr(H2O)2 (C2O4)2].3H2O
- [CrCl3(Py)3]
- [Co(NH3)5Cl]Cl2
- Cs[FeCl4]
- K4[Mn(CN)6]
उत्तर:
1. K[Cr(H2O)2 (C2O4)2].3H2O का IUPAC
नाम-पोटैशियम डाइऐक्वाऑक्सेलेटो क्रोमेट (III) हाइड्रेट
K[Cr(H2O)(C2O4)2].3H2O में Cr की ऑक्सीकरण अवस्था,
+ 1 + x + 0 – 4 = 0
x = +3
क्रोमियम की उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
Cr(24) : 4s1 3d5
Cr3+ : 4s0 3d3
2. [CrCl3(Py)3] का IUPAC
नाम-ट्राइक्लोरिडोट्राइपिरिडीन क्रोमियम (III)
क्रोमियम की उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
[CrCl3 (Py)3] में Cr की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है।
चुम्बकीय आघूर्ण (µ) = \(\sqrt{3×5}\) = \(\sqrt{15}\) = 3.87 BM
3. [Co(NH3)5 Cl]Cl2 का IUPAC
पेन्टाऐम्मीनक्लोरिडोकोबाल्ट (III) क्लोराइड
Co की ऑक्सीकरण संख्या +3 है।
Co की उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
Cr (27) : 4s2 3d7
Cr3+ : 4s03d6
चुम्बकीय आघूर्ण (µ) = 0
4. Cs[FeCl4] का IUPAC नाम –
सीजियम टेट्राक्लोरोफेरेट (III)
Fe की ऑक्सीकरण अवस्था +3 है।
Fe की उपसहसंयोजन संख्या 4 है।
Fe (26) : 4s2 3d6
Fe3+ : 4s0 3d5
यह 5 – अयुगलित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण अनुचुम्बकीय है।
चुम्बकीय आघूर्ण
(µ) = \(\sqrt{n(n+2)}\) = \(\sqrt{5×7}\) = \(\sqrt{35}\) = 5.92 BM
5. K4[Mn(CN)6] का IUPAC नाम –
पोटैशियम हेक्सासायनोमैंगनीज (II) Mn की ऑक्सीकरण संख्या +2 है।
Mn की उपसहसंयोजन संख्या 6 है।
Mn(25) : 4s2 3d5
Mn2+ : 4s0 3d5
चुम्बकीय आघूर्ण
(µ) = \(\sqrt{n(n+2)}\) = \(\sqrt{1(1+2)}\) = \(\sqrt{3)}\) = 1.732 BM.
प्रश्न 9.25
उपसहसंयोजन यौगिक के विलयन में स्थायित्व से आप क्या समझते हैं? संकुलों का स्थायित्व को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विलयन में उपसहसंयोजन यौगिकों का स्थायित्व (Stability of Coordination of Compounds in Solution):
अधिकांश संकुल अत्यधिक स्थायी होते हैं। धातु आयन तथा लिगेण्ड के बीच अन्योन्यक्रिया को लूइस अम्ल-क्षार अभिक्रिया के समान माना जाता है।
यदि अन्योन्यक्रिया प्रबल होगी तो बनने वाला संकुल ऊष्मागतिकीय रूप से अत्यधिक स्थायी होगा। विलयन में संकुल के स्थायित्व का अर्थ है-साम्य् अवस्था पर भाग ले रही दो स्पीशीज के मध्य संगुणन की मात्रा का मान। संगुणन के लिए साम्य स्थिरांक (स्थायित्व या विरचन) का परिमाण गुणात्मक रूप को स्थायित्व को प्रकट करता है। इस प्रकार यदि हम निम्नांकित प्रकार की अभिक्रिया को लें –
M + 4L ⇄ ML4
K = \(\frac{\left[\mathrm{ML}_{4}\right]}{[\mathrm{M}][\mathrm{L}]^{4}}\)
साम्य स्थिरांक का मान जितना अधिक होगा, ML4 की विलयन में मात्रा उतनी ही अधिक होगी। विलयन में मुक्त धातु आयनों का अस्तित्व नगण्य होता है। अतः M सामान्यतः विलायक अणुओं से घिरा होगा जो लिगेण्ड अणुओं, L, से प्रतिस्पर्धा करेंगे तथा धीरे – धीरे उनसे प्रतिस्तापित हो जाएंगे।
संकलों के स्थायित्व को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting the Stability of a Complex):
संकुलों का स्थायित्व निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है –
(1) केन्द्रीय आयन की प्रकृति (Nature of Central Ion):
(i) केन्द्रीय धातु आयन पर आवेश (Charge on central metal ion):
सामान्यतया केन्द्रीय आयन पर आवेश घनत्व जितना अधिकर होता है, इसके संकुलों का स्थायित्व भी उतना ही अधिक होता है। दूसरे शब्दों में किसी आयन पर आवेश अधिक तथा आकार छोटा होने पर अर्थात् आयन का आवेश/त्रिज्या अनुपात अधिक होने पर इसके संकुलों का स्थायित्व अधिक होता है। उदाहरणार्थ – Fe2+ आयन की तुलना में Fe3+ आयन उच्च आवेश वहन करते हैं, परन्तु इनके आकार समान होते हैं।
इसलिए Fe2+ आयन की तुलना में Fe3+ पर आवेश घनत्व उच्च होता है, इसलिए Fe3+ आयन के संकुल अधिक स्थायी होते हैं।
Fe3+ + 6CN– → [Fe(CN)6]3-; K = 1.2 × 1031
Fe2+ + 6CN– → [Fe(CN)6]4-; K = 1.8 × 106
(ii) धातु आयन का आकार (Size of metal ion):
धातु आयन का आकार घटने पर संकुल का स्थायित्व बढ़ता है। यदि हम द्विसंयोजी धातु आयन पर विचार करें तो इनके संकुलों का स्थायित्व केन्द्रीय धातु आयन की आयनिक त्रिज्या बढ़ने के साथ बढ़ता है।
इसलिए स्थायित्व का क्रम इस प्रकार है –
Mn21 < Fe2+ < Co2+ < Ni2+ < Cu2+ < Zn2+ यह क्रम इरविंग विलियम का स्थायित्व क्रम कहलाता है।
(iii) धातु आयन की विद्युतऋणात्मकता या आवेश वितरण (Electronegativity or Charge distribution of metal ion):
संकुल आयन का स्थायित्व धातु आयन पर इलेक्ट्रॉन आवेश वितरण से भी सम्बन्धित होता है। आरलेण्ड, चैट तथा डेविस के अनुसार धातु आयनों को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है –
(क) वर्ग ‘a’ ग्राही (Class ‘a’ acceptors):
ये पूर्णतया विद्युतधनात्मक धातुएँ होती हैं तथा इनमें वर्ग 1 तथा 2 की धातुएँ सम्मिलित होती हैं। इनके अतिरिक्त आन्तरसंक्रमण धातुएँ तथा संक्रमण श्रेणी के पूर्व सदस्य (वर्ग 3 से 6 तक), जिनमें अक्रिय गैस विन्यास से कुछ इलेक्ट्रॉन अधिक होते हैं, भी इस वर्ग में सम्मिलित होते हैं। ये N, O तथा F दाता परमाणुओं से युक्त लिगण्डों के साथ अत्यधिक स्थायी उपसहसंयोजक सत्ता बनाते है।
(ख) वर्ग ‘b’ ग्राही (Class ‘b’ acceptors):
ये बहुत कम विद्युतधनात्मक होते हैं। इनमें भारी धातुएँ; जैसे – Rh, Pd, Ag, Ir, Pt, Au, Hg, Pb आदि, जिनमें भरित d – कक्षक होते हैं, सम्मिलित होती हैं। ये उन लिगण्डों के साथ स्थायी संकुल बनाती हैं जिनमें N, O तथा F वर्ग के भारी सदस्य दाता परमाणु होते हैं।
(iv) कीलेट प्रभाव (Chelate effect):
स्थायित्व कीलेट वलयों के निर्माण पर भी निर्भर करता है। यदि L एक एकदन्तुर लिगेण्ड तथा L – L द्विदन्तुर लिगेण्ड हो तथा यदि L तथा L – L के दाता परमाणु एक ही तत्त्व के हों, तब L – L, L को प्रतिस्थापित कर देगा। कीलेशन के कारण यह स्थायित्व कीलेट प्रभाव कहलाता है। 5 तथा 6 सदस्यीय वलयों में कीलेट प्रभाव अधिकतम होता है। सामान्य रूप में वलय संकुल को अधिक स्थायित्व प्रदान करती है।
(v) वृहदचक्रीय प्रभाव (Macrocyclic effect):
यदि एक बहुदन्तुर लिगेण्ड चक्रीय है तथा कोई अनपयुक्त त्रिविम प्रभाव नहीं है तो बनने वाला संकुल बिना चक्रीय लिगेण्ड के सम्बन्धित संकुल की तुलना में अधिक स्थायी होगा। यह वृहदचक्रीय प्रभाव कहलाता है।
(2) लिगेण्ड की प्रकृति (Nature of Ligand):
(i) क्षारीय सामर्थ्य (Basic strength):
लिगेण्ड जितना अधिक क्षारीय होगा, उतनी ही अधिक सरलता से अपने एकाकी इलेक्ट्रॉन-युग्म को दान देने में होगी, इसलिए इससे बनने वाले संकुल उतने ही अधिक स्थायी होंगे। अत: CN– तथा F– आयन एवं NH3, जो प्रबल क्षार हैं, अच्छे लिगेण्ड भी हैं तथा अनेक स्थायी संकुल बनाते हैं।
(ii) लिगण्डों का आकार तथा आवेश (Size and charge of ligands):
ऋणायनी लिगण्डों के लिए आवेश उच्च तथा आकार छोटा होने पर बनने वाला संकुल अधिक स्थायी होता है। अत: F– अधिक स्थायी संकतुल देता है, परन्तु Cl– आयन नहीं।
प्रश्न 9.26
कीलेट प्रभाव से क्या तात्पर्य है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जब एक द्विदन्तुर या बहुदन्तुर लिगेण्ड में दाता परमाणु इस प्रकार स्थित होते हैं कि जब वे केन्द्रीय धातु आयन से उपसहसंयोजित होते हैं, तब एक पाँच या छ: सदस्यीय वलय बनती है तो इस प्रभाव को कीलेट प्रभाव कहते हैं।
उदाहरण:
प्रश्न 9.27
प्रत्येक का एक उदाहरण देते हुए निम्नलिखित में उपसहसंयोजन यौगिकों की भूमिका की संक्षिप्त विवेचना कीजिए:
- जैव-प्रणालियाँ
- विश्लेषणात्मक रसायन
- औषध रसायन
- धातुओं का निष्कर्षण/धातुकर्म।
उत्तर:
1. जैव प्रणालियाँ:
उपसहसंयोजन यौगिक जैव-तन्त्र में बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। प्रकाश-संश्लेषण के लिए उत्तरदायी वर्णक, क्लोरोफिल मैग्नीशियम का उपसहसंयोजन यौगिक हैं। रक्त का लाल वर्णक हीमोग्लोबिन, जो कि ऑक्सीजन का वाहक है, आयरन का एक उपसहसंयोजन यौगिक है।
विटामिन B12 सायनोकोबालऐमीन, प्रतिप्राणाली अरक्तता कारक (antipernicious anaemia factor), कोबाल्ट का एक उपसहसंयोजन यौगिक है। जैविक महत्त्व के अन्य धातु आयन युक्त उपसहसंयोजन यौगिक; जैसे- कार्बोक्सीपेप्टिडेज – A (carboxypeptidase A) तथा कार्बोनिक एनहाइड्रेज (carbonic anhydrase) (जैव-प्रणाली के उत्प्रेरक) एन्जाइम हैं।
2. विश्लेषणात्मक रसायन:
गुणात्मक (qualitative) तथा मात्रात्मक (quantitative) रासायनिक विश्लेषणों में उपसहसंयोजन यौगिकों के अनेक उपयोग हैं। अनेक परिचित रंगीन अभिक्रियाएँ जिनमें धातु आयनों के साथ अनेक लिगण्डों (विशेष रूप से कीलेट लिगण्ड) की उपसहसंयोजन सत्ता बनने के कारण रंग उत्पन्न होता है, चिरसम्मत (classical) तथा यान्त्रिक (instrumental) विधियों द्वारा धातु आयनों की पहचान व उनके मात्रात्मक आकलन का आधार हैं। ऐसे अभिकर्मकों के उदाहरण हैं – EDTA, DMG (डाइमेथिल ग्लाइऑक्सिम), α – नाइट्रोसो – β – नैफ्थॉल आदि।
3. औषध रसायन:
औषध रसायन में कीलेट चिकित्सा के उपयोग में अभिरुचि बढ़ रही है। इसका एक उदाहरण है-पौधे/जीव-जन्तु निकायों में विषैले अनुपात में विद्यमान धातुओं के द्वारा उत्पन्न समस्याओं का उपचार।
इस प्रकार कॉपर तथा आयरन की अधिकता को D – पेनिसिलऐमीन तथा डेसफरीऑक्सिम B लिगण्डों के साथ उपसहसंयोजन यौगिक बनाकर दूर किया जाता है। EDTA को लेड की विषाक्तता के उपचार में प्रयुक्त किया जाता है। प्लैटिनम के कुछ उपसहसंयोजन यौगिक ट्यूमर वृद्धि को प्रभावी रूप से रोकते हैं। उदाहरण हैं-समपक्ष-प्लैटिन (cis-platin) तथा सम्बन्धित यौगिका।
4. धातुओं का निष्कर्षण/धातुकर्म:
धातुओं की कुछ प्रमुख निष्कर्षण विधियों में; जैसे-सिल्वर तथा गोल्ड के लिए संकुल विचन का उपयोग होता है। उदाहरणार्थ: ऑक्सीजन तथा जल की उपस्थिति में गोल्ड सायनाइड आयन से संयोजित होकर जलीय विलयन में उपसहसंयोजन सत्ता, [Au(CN)2]– बनाता है। इस विलयन में जिंक मिलाकर गोल्ड को पृथक् किया जा सकता हैं।
प्रश्न 9.28
संकुल [Co(NH3)6] Cl2 से विलयन में कितने आयन उत्पन्न होंगे –
- 6
- 4
- 3
- 2
उत्तर:
संकुल [Co(NH3)6] Cl2 विलयन में तीन आयनों में वियोजित होता है –
अतः सही विकल्प (iii) है।
प्रश्न 9.29
निम्नलिखित आयनों में से किसके चुम्बकीय आघूर्ण का मान सर्वाधिक होगा?
- [Cr(H2O)6]3+
- [Fe(H2O)6]2+
- [Zn(H2O6]2+
उत्तर:
- Cr3+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 3d3; अयुगमित इलेक्ट्रॉन = 3
- Fe2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 3d6; अयुगमित इलेक्ट्रॉन = 4
- Zn2+ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 3d10; अयुगमित इलेक्ट्रॉन = 0
चूँकि n = 4 सबसे अधिक है, अत: इसके लिए चुम्बकीय आघूर्ण सर्वाधिक होगा। अतः सही विकल्प (ii) है।
प्रश्न 9.30
K[Co(CO)4] में कोबाल्ट की ऑक्सीकरण संख्या है:
- +1
- +3
- -1
- -3
उत्तर:
माना K [Co(CO)4]-1 में Co की आ० सं० x है।
x + 0 = -1 या x = -1
अतः सही विकल्प (iii) है।
प्रश्न 9.31
निम्नलिखित में सर्वाधिक स्थायी संकुल है:
- [Fe(H2O)6]2+
- [Fe(NH3)6]3+
- [Fe(C2O4)3]3-
- [FeCl6]3-
उत्तर:
दिये गए संकुलों में Fe की आ० सं० +3 है। चूंकि तीन \(\mathrm{C}_{2} \mathrm{O}_{4}^{2-}\) आयन कीलेटलिगेण्ड हैं, अत: यह संकुल एक कीलेट है। अतः सही विकल्प (iii) है।
प्रश्न 9.32
निम्नलिखित के लिए दृश्य प्रकाश में अवशोषण की तरंगदैर्ध्य का सही क्रम क्या होगा?
[Ni(NO2)6]2-, [Ni(NH3)6]2+, [Ni(H2O)2+
उत्तर:
चूँकि इन सभी संकुलों में धातु आयन (Ni2+) है अत: स्पेक्ट्रमी रासायनिक श्रेणी के अनुसार उपस्थित लिगण्डों के बढ़ते क्षेत्र सामर्थ्य निम्न प्रकार है:
H2O < NH3 < NO–2
अत: उत्तेजन हेतु अवशोषित ऊर्जाओं का क्रम निम्नवत् है:
[Ni(H2O)6]2+ < [Ni(NH3)6]2+ < [Ni(NO2)6]4-
चूँकि E = \(\frac{hc}{λ}\) अर्थात् E ∝ \(\frac{1}{λ}\) अत: अवशोषित तरंदैर्ध्य विपरीत क्रम में होगी।