Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions
Bihar Board Class 12th Hindi व्याकरण कोशीय और व्याकरणिक शब्द
कोशीय और व्याकरणिक शब्द शब्दों के अर्थज्ञान में व्याकरण का स्थान बड़े महत्व का है। कोशों से भी इनका अधिक महत्व और मूल्य है। कोश में किसी शब्द की प्रत्येक विभक्ति या काल के रूप नहीं लिखे जाते। यहाँ शब्द का मूलरूप रहता है और उसी का अर्थ दिया जाता है। मूलशब्द से बने या निकले रूपों का अर्थ व्याकरण की सहायता से ही जाना जा सकता है।
‘वासुदेव’ का अर्थ वसुदेव का पुत्र या ‘दाशरथि’ का अर्थ दशरथ का पुत्र है-यह बताना व्याकरण का काम है। एक-एक शब्द के अनगिनत भेद भी हो सकते हैं। यह व्याकरण बतायेगा, कोश नहीं। शब्द के इन विविध रूपों और भेदों को जानने का एकमात्र साधन व्याकरण है। इस प्रकार, भाषा के व्यापक ज्ञान और अर्थबोध के लिए व्याकरण का अध्ययन आवश्यक है।
भाषा में कुछ ऐसे शब्दों का भी प्रयोग होता है, जो हमारे लिए एकदम अपरिचित है, जिनका हमारे मन पर कोई बिम्ब अंकित नहीं होता; जैसे-मधवा, बिडौजा, सुत्रामन्, सुनासरी, वृषा। इनका अर्थ जानने के लिए हमें कोश की सहायता लेनी पड़ेगी। तब पता चलेगा कि इन सारे शब्दों का अर्थ ‘इन्द्र’ है। कोश में प्रत्येक शब्द का अर्थ उसके सामने दिया होता है और उसकी सहायता से किसी भी अज्ञात अथवा अपरिचित शब्द का अर्थ जाना जा सकता है।
व्याकरण शब्द के प्रयोग पक्ष को स्पष्ट करता है और कोश शब्द के अर्थ-पक्ष को। इस प्रकार,कोश के शब्द निष्प्राण होते हैं अपने-आपमें स्वतन्त्र। कोश यह बताने में असमर्थ है कि किसी शब्द के अनेक अर्थों में, किसका, कहाँ प्रयोग होना चाहिए।
कोश का कार्य केवल शब्द-संग्रह और अर्थ-उल्लेख है। कोश यह भी नहीं बताता कि संगृहीत शब्दों और अर्थों में कौन अधिक प्रचलित है और कौन कम। अतएव कोशीय शब्द की अपेक्षा व्याकरणिक शब्दों का महत्व अधिक है।