Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions
Bihar Board Class 12th Hindi व्याकरण संधि
सामन्य नियम-दो वर्गों के मेल से होनेवाले विकार को ‘संधि’ कहते हैं। ‘संधि’ संस्कृत का शब्द है। दो शब्द या पद जब एक-दूसरे के पास होते हैं, तब उच्चारण की सुविधा के लिए पहले शब्द के अन्तिम और दूसरे शब्द के प्रारंभिक अक्षर एक-दूसरे से मिल जाते हैं। सन्धि में जब दो अक्षर या वर्ण मिलते हैं, तब उनकी मिलावट से विकार उत्पन्न होता है। वर्णों की यह विकारजन्य मिलावट ‘संधि’ है। इस मिलावट को समझकर वर्णों को अलग करते हुए पदों को अलग-अलग कर देना ‘संधि-विच्छेद’ है।
हिन्दी भाषा में संधि द्वारा संयुक्त शब्द लिखने का सामान्य चलन नहीं है, पर संस्कृत भाषा में सन्धि के बिना काम नहीं चलता है। चूँकि संस्कृत के बहुत-से तत्सम शब्द या पद हिन्दी मेंचले आये हैं, इसलिए हिन्दी व्याकरण में संस्कृत की सन्धियों और उनके नियमों को भी ग्रहण कर लिया गया है। शब्द रचना में सन्धियाँ उसी तरह सहायक हैं, जैसे उपसर्ग, प्रत्यय और समास।
संधि के भेद-वर्णों के आधार पर सन्धि के तीन भेद हैं-
(क) स्वरसन्धि,
(ख) व्यंजनसंधि और
(ग) विसर्गसंधि।
स्वर संधि-
दो स्वरों के मेल से उत्पन्न विकार अथवा रूप-परिवर्तन को ‘स्वरसंधि’ कहते हैं। इनके पाँच भेद हैं-
दीर्घ स्वरसंधि
नियम-दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं। यदि ‘अ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ के बाद वे ही हस्व या दीर्घ आयें, तो दोनों मिलकर क्रमश: ‘आ’, ‘ई’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ हो जाते हैं। जैसे-
गुण स्वरसंधि
‘नियम-यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’ और ‘ऋ’ आये तो दोनों मिलकर क्रमश: ‘ए’, ‘ओ’ और ‘अर्’ हो जाते हैं। जैसे-
वृद्धि स्वरसंधि
नियम-यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आये तो दोनों के स्थान में ‘ऐ’ तथा ‘ओ’ या ‘औ” आये, तो दोनों के स्थान में ‘ओ’ हो जाता है। जैसे-
यण स्वरसंधि
नियम-यदि ‘ई’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ के बाद कोई भिन्न स्वर आये तो ई-ई का “यू’, ‘उ-ऊ’ का ” और ‘ऋ’ का ‘र’ हो जाता है। जैसे-
अयादि स्वरसंधि
नियम-यदि ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’ के बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो (क) “ए’ का ‘अय्’, (ख) ‘ऐ’ का ‘आय’, (ग) ‘ओ’ का ‘अव’ और (घ) ‘औ’ का ‘आव’ हो जाता है। जैसे-
व्यंजनसन्धि
परिभाषा-व्यंजन से स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पन्न विकार को ‘व्यंजनसंधि’ कहते हैं।
नियम-1. यदि ‘क’, ‘च’, ‘ट’, ‘त’, ‘प्’ के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आये, या य, र, ल, व या कोई स्वर आये तो ‘क्’, ‘च’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प्’ के स्थान में आने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है। जैसे-
- दिक + गज – दिग्गज
- षट् + दर्शन – षड्दर्शन
- दिक + भ्रम – दिग्भ्रम
- सत् + वाणी – सद्वाणी
- वाक् + जाल – वाग्जाल
- तत् + रूप – तद्रूप
- अच+अन्त-अजन्त
- अप् + इन्धन – अबिन्धन
- जगत् + आनन्द – जगदानन्द
2. यदि ‘क’, ‘च’, ‘द’, ‘त’, ‘प’ के बाद ‘न’ या ‘म’ आये तो क, च, द, त्, प् अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाते हैं। जैसे-
- वाक् + मय – वाङ्मय
- षट् + मार्ग = षणमार्ग
- उत् + नति – उन्नति
- अपं + मय – अम्मय
- जगत् + नाथ – जगन्नाथ
- षट् + मास = षण्मास
नियम 3. यदि ‘म्’ के बाद कोई स्पर्श व्यंजनवर्ण आये तो ‘म्’ का अनुस्वार या बादवाले वर्ण के वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है। जैसे-
- अहम् + कार = अहंकार, अहङ्कार
- सम् + गम = संगम, सङ्गम
- किम् + चित् = किचित्, किञ्चित्
- पम् + चम = पंचम, पञ्चम नियम
4. यदि त्-द् के बाद ‘ल’ रहे तो त्-द् ‘ल’ में बदल जाते हैं. और ‘न’ के बाद ‘ल’ रहे तो ‘न्’ का अनुनासिक के साथ ‘ल’ हो जाता है। जैसे-
- त् + ल उत् + लास = उल्लास
- ल + महान् + लाभ = महाँल्लाभ
5. सकार और तवर्ग का शकार और चवर्ग के योग में शकार और चवर्ग तथा वकार और टवर्ग के योग में वकार और टवर्ग हो जाता है। जैसे-
6. यदि वर्गों के अन्तिम वर्णों को छोड़ शेष वर्गों के बाद ‘ह’ आये तो ‘ह’ पूर्ववर्ण के वर्ग का चतुर्थ वर्ण हो जाता है और ‘ह’ के पूर्ववाला वर्ण अपने वर्ग का तृतीय वर्ण। जैसे-
- उत् + हत = उद्धत,
- उत् + हार = उद्धार
- वाक् + हरि = वाग्घरि
7. ह्रस्व स्वर के बाद ‘छ’ हो, तो ‘छ’ के पहले ‘च’ जुड़ जाता है। दीर्घ स्वर के बाद ‘छ’ होने पर यह विकल्प से होता है। जैसे-
- परि + छेद = परिच्छेद,
- शाला + छादन = शालाच्छादन।
विसर्गसन्धि
परिभाषा-विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से जो विकार होता है, उसे “विसर्गसन्धि’ कहते हैं। जैसे-
नियम 1. यदि विसर्ग के बाद ‘च-छ’ हो, तो विसर्ग का ‘श’, ‘ट-ठ’ हो तो ‘ए’ और ‘त-थ’ हो तो ‘स्’ हो जाता है। जैसे-
नियम 2. यदि विसर्ग के पहले इकार या उकार आये और विसर्ग के बाद का वर्ण क, ख, प, फ हो, तो विसर्ग का ‘ए’ हो जाता है। जैसे-
- नि: + कपट = निष्कपट
- नि: + फल = निष्फल
- दुः + कर दुष्कर
- नि: + कारण = निष्कारण
- नि: + पाप = निष्पाप
नियम 3. यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ हो और परे क, ख, प, फ में कोई वर्ण हो, तो विसर्ग ज्यों-का-त्यों रहता है। जैसे-
- प्रात: + काल = प्रात:काल
- पय: + पान = पयःपान
नियम 4. यदि ‘ई’-‘उ’ के बाद विसर्ग हो और इसके बाद ‘र’ आये, तो ‘इ’-‘उ’ का . ‘ई’-ऊ’ हो जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है। जैसे-
- नि + रब – नीरव
- नि: + रस नीरस
- निः + रोग – नीरोग
- दु: + राज – दूराज
नियम 5. यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ और ‘आ’ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण हो या य, र, ल, व, हो, तो विसर्ग के स्थान में ‘र’ हो जाता है। जैसे-
नियम 6. यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ आये और उसके बाद वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण आये या य, र, ल, व, ह रहे, तो विसर्ग का ‘उ’ हो जाता है और यह ‘उ’ पूर्ववर्ती ‘अ’ से मिलकर गुणसन्धि द्वारा ‘ओ’ हो जाता है। जैसे-
नियम 7. यदि विसर्ग के आगे-पीछे ‘अ’ हो दो पहला ‘अ’ और विसर्ग मिलकर छठे नियम की तरह ‘ओकार’ हो जाता है और बादवाले ‘अ’ का लोप होकर उसके स्थान में लुप्तकाकार (5) का चिह्न लग जाता है। जैसे-
- प्रथम: + अध्याय: – प्रथमोऽध्यायः
- यश: + अभिलाषी – यशोऽभिलाषी
- मन: + अभिलषित – मनोऽभिलाषित
लेकिन, विसर्ग के बाद ‘अ’ के सिवा दूसरा स्वर आये, तो यह नियम लागू नहीं होगा, बल्कि विसर्ग का लोप हो जायेगा। जैसे-
- अत: + एवअतएव
संधियों की सूची वर्णक्रमानुसार
(अ, आ)
(इ, ई, उ, ए, क)
(त)
(द)
(न)
(प)
(भ) भानूदय=भानु+ उदय भावुक भौ+अक
(म)
(य)
(र, ल, व)
(श, ष, स)