Bihar Board Class 7 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 2 Chapter 5 शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल Text Book Questions and Answers, Notes.
BSEB Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 5 शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल
Bihar Board Class 7 Social Science शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल Text Book Questions and Answers
पाठगत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
लिंगराज और. महाबोधि मंदिर की संरचना में क्या. अंतर दिखता है ?
उत्तर-
लिंगराज मंदिर का ऊपरी भाग जहाँ कम पतला है वहीं महाबोधि मंदिर का ऊपरी भाग नुकीला होता गया है । लिंगराज मंदिर के पास छोटे मंदिरों का एक समूह दिखाई देता है वहीं महाबोधि मंदिर में मात्र दो ही छोटे मंदिर दिख पाते हैं।
प्रश्न 2.
कोणार्क का सूर्य मंदिर तथा मीनाक्षी मंदिर के ऊपरी भागों में क्या अंतर है?
उत्तर-
कोणार्क का सूर्य मंदिर का शिखर मीनाक्षी मंदिर की अपेक्षा छोटा है। कोणार्क मंदिर का शिखर त्रिकोणकार है जबकि मीनाक्षी मंदिर का शिखर चौकोर है और ऊपर धनुषाकर होता गया है।
अभ्यास के प्रश्नोत्तर
आओ याद करें :
प्रश्न 1.
मध्यकाल में मंदिर निर्माण की कितनी शैलियाँ मौजूद थीं ?
(क) चार
(ख) पाँच
(ग) तीन
(घ) दो
उत्तर-
(ग) तीन
प्रश्न 2.
बिहार में नागर शैली में बने मंदिरों का सबसे अच्छा उदाहरण । कौन-सा है?
(क) महाबोधि मंदिर
(ख) देव का सूर्य मंदिर
(ग) पटना का महावीर मंदिर
(घ) गया का विष्णु मंदिर
उत्तर-
(क) महाबोधि मंदिर
प्रश्न 3.
मुसलमानों द्वारा बिहार में बनाई गई सबसे महत्त्वपूर्ण इमारत कौन है ?
(क) मलिकबया का मकबरा
(ख) बेगु हजाम की मस्जिद
(ग) तेलहाड़ा की मस्जिद
(घ) मनेर की दरगाह ।
उत्तर-
(घ) मनेर की दरगाह ।
प्रश्न 4.
मुगलकालीन स्थापत्य कला अपने चरम पर कब पहुँचा?
(क) अकबर के काल में
(ख) जहाँगीर के काल में
(ग) शाहजहाँ के काल में
(घ) औरंगजेब के काल में
उत्तर-
(ग) शाहजहाँ के काल में
प्रश्न 5.
शाहजहाँ ने लाल किला का निर्माण दिल्ली में किस वर्ष करवाया ?
(क) 1638
(ख) 1648
(ग) 1636
(घ) 1650
उत्तर-
(क) 1638
आओ याद करें
प्रश्न 1.
सही और गलत की पहचान करें :
- उत्तर भारत में मंदिर निर्माण की द्राविड़ शैली प्रचलित थी ।
- कोणार्क का सूर्य मंदिर बंगाल में स्थित है।
- मुगलकालीन वास्तुकला अकबर के शासन काल में अपने चरम । विकास पर पहुँचा ।।
- शेरशाह का मकबरा सल्तनत काल और मुगल काल की वास्तुकला के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाता है ।
- बिहार में मुस्लिम उपासना स्थल निर्माण का प्रथम उदाहरण बेगुहजाम मस्जिद है ।
उत्तर-
- गलत है। सही है कि ‘नागर शैली’ प्रचलित थी।
- गलत है । सही है कि ‘उड़ीसा’ में है ।
- गलत है । सही है कि ‘शाहजहाँ’ के शासन काल में।
- सही है।
- गलत है । सही है कि मनेर का दरगाह प्रथम उदाहरण है ।
आइए विचार करें
प्रश्न 1.
मंदिरों के निर्माण से राजा की महत्ता का ज्ञान कैसे होता है ?
उतर-
मध्यकालीन शासकों ने जितने मंदिर बनवाये, यह उनकी आस्था का प्रतीक तो था ही, यह भी सम्भव है कि वे राजा प्रजा को यह दिखाना चाहते हों कि वे उनकी आस्था को भी आदर देना चाहते हैं । वे प्रजा से अपने आदर के भी आकांक्षी थे। वे यह भी दिखाना चाहते थे कि वे न सिर्फ सैनिक शक्ति में, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी मजबूत हैं । वे वास्तकारों को रोजगार भी महया कराना चाहते थे । इस प्रकार हम देखते हैं कि मंदिरों के निर्माण से राजा की महत्ता का ज्ञान निश्चित ही प्राप्त होता है ।
प्रश्न 2.
वर्तमान इमारत और मध्यकालीन इमारतों में उपयोग की जाने वाली सामग्री के स्तर पर आप क्या अन्तर देखते हैं ?
उत्तर-
वर्तमान इमारत और मध्यकालीन इमारतों में उपयोग की जाने वाली सामग्री के स्तर पर हम यह अंतर पाते हैं कि वर्तमान में ईंट, बालू, सीमेंट, छड़ की प्रधानता रहती है । कुछ धनी-मानी लोग फर्श बनाने में, संगमरमर का उपयोग भी करते हैं । इसके पूर्व अंग्रेजी काल में ईंट, चूना-सूर्जी का गारा, लकड़ी और छड़ आदि का उपयोग होता था । 1950 के पहले के बने इमारतों में ये ही सामग्रियाँ व्यवहार की जाती थीं । मध्यकालीन इमारतों में मुख्य सामग्री पत्थर थे । पत्थरों को तराशा जाता था । मन्दिरों की बाहरी और भीतरी दीवारों को विभिन्न प्रकार की मूर्तियों से अलंकृत किया जाता था ।
प्रश्न 3.
मंदिर निर्माण की नागर और द्रविड़ शैलियों में अंतर बताएँ।
उत्तर-
मंदिर निर्माण की नागर और द्राविड़ शैलियों का उपयोग साथ-साथ ही हुआ । नागर शैली जहाँ उत्तर भारत में प्रचलित थी वहीं द्राविड़ शैली दक्षिण भारत में प्रचलित थी । नागर शैली के मंदिर आधार से शीर्ष तक आयताकार एवं शंक्वाकार संरचना से बने होते थे । शीर्ष क्रमशः नीचे से ऊपर पतला होता जाता है, जिसे शिखर कहा जाता था । प्रधान देवता की मूर्ति जहाँ स्थापित होती थी, उसे गर्भ गृह कहते थे । मंदिर अलंकृत स्तंभों पर टिका होता था। चारों ओर प्रदक्षिणा पथ भी होता था ।
द्राविड़ शैली की विशेषता थी कि गर्भ गृह के ऊपर कई मंजिलों का निर्माण होता था जो न्यूनतम 5 और अधिकतम 7 मंजिल तक होते थे । स्तंभों पर टिका एक बड़ा कमरा होता था, जिसे मंडपम कहा जाता था । गर्भ गृह के सामने अलंकृत स्तंभों पर टिका एक बडा कक्ष होता था, जिसमें धार्मिक अनुष्ठान किये जाते थे । प्रवेश द्वार भव्य और अलंकृत होता था । इसे गोपुरम कहा जाता था ।
Bihar Board Class 7 Social Science शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल Notes
पाठ का सार संक्षेप
महल हो या मंदिर इन सबका बनना समय की सम्पन्नता के सचक होते हैं। जब साधारण किसान. या व्यापारी को धन होता है तो वह अपना घर बनवाता है । वैसे ही राजाओं और बादशाहों द्वारा निर्मित महल, किला और मंदिर उनकी सम्पन्नता के सूचक हैं। ऐसे निर्माणों से कारीगरों को रोजी मिलती ही है, कला-कौशल जीवित रहता है । मध्यकालीन शासकों ने स्थापत्य कला के बेहतरीन नमूने प्रस्तुत किए।
आठवीं से अठारहवीं शताब्दी के बीच विभिन्न शैलियों में विभिन्न इमारतें, किले, मंदिर, मस्जिद और मकबरे बने । आठवीं से तेरहवीं सदी के बीच जो मंदिर बने वे सभी नगर और द्राविड़ नामक दो शैलियों में बने । उड़ीसा में जगन्नाथ मंदिर, सूर्य मंदिर, मध्य प्रदेश में खजुराहो मंदिर अपनी सभ्यता और सुन्दरता में सानी नहीं रखते । ये मंदिर नागर शैली के हैं। ऊपरी शीर्ष को शिखर कहा जाता है । मंदिर के केंद्रीय भाग प्रमुख देवता के लिए होता था, जिसे गर्भ गृह कहा जाता है ।
कोणार्क का सूर्य मंदिर रथ के आकार का है । वह इसलिये कि सूर्य अपने रथ पर ही घूमते हैं, जिनमें सात घोड़े जुते रहते हैं। इस मंदिर में भी रथ के पहिये तथा सात घोडों का आकार उकेरित है।
तेरहवीं से सोलहवीं सदी के बीच, मुस्लिम शासकों द्वारा इमारतों का निर्माण हुआ। ये शासक तुर्क और अफगान थे । सर्वप्रथम इन्होंने अपने रहने के लिए भवन बनवाये । बाद में उपासना हेतु मस्जिदों का निर्माण कराया ।
इन्होंने पहले से मौजूद कुछ मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों में परिवर्तित किया । तुर्क-अफगानों ने पहली मस्जिद कुतुबमीनार परिसर में बनाया, जिसका नाम कुव्वत-उल-इस्लाम रखा । इस काल की शैली में परिवर्तन के साथ ही सामग्री में भी बदलाव आए । हिन्दू मंदिर और किले जहाँ पत्थरों को तराशकर बनाए जाते थे वहीं अब ईंट का उपयोग होने लगा। चूना और सूर्जी के मिश्रण से गारा बनाया जाता था ।
कुतुबमीनार के प्रवेश द्वार ‘अलाई दरवाजा’ को बनाने में पूर्णतः वैज्ञानिक विधि अपनाई गई। तुगलककालीन स्थापत्य कला में गयासुद्दीन का मकबरा में एक नई शैली का इजाद हुआ । इस काल के इमारत ऊँचे चबूतरे पर बनाये जाते थे ।
जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत कमजोर होता गया, वैसे-वैसे कारीगर इध र-उधर बिखरते गये। अब स्थानीय शासकों ने भवन बनवाये । जौनपुर की ‘आटाला मस्जिद’ इसी का प्रमाण है । जौनपुर के अलावा गुजरात, बंगाल और मालवा के स्थानीय शासकों ने कला को काफी संरक्षण दिया। बिहार में भी तुर्क-अफगान शैली में ‘इमारतों का निर्माण हुआ । बिहार शरीफ का मलिक इब्राहिम का मकबरा, तेलहरा की मस्जिद, बेगुहजाम की मस्जिद उसी कला के नमूने हैं।
आगे चलकर मुगल काल में अनेक इमारतें बनीं । मुगलों ने भव्य महलों, किलों, विशाल द्वारों, मस्जिदों एवं बागों का निर्माण कराया । बाबर ने चार बाग की योजना बनाई थी। उसके वंशजों ने उसे कार्य रूप में परिणत किया । कुछ सर्वाधिक सुन्दर बागों में कश्मीर, आगरा, दिल्ली आदि में जहाँगीर और शाहजहाँ के बनवार्य बाग हैं ।
अकबर द्वारा बनवाई इमारतों में इस्लामिक, हिन्दू, बौद्ध, जैन तथा स्थानीय वास्तुशैलियों को प्रश्रय दिया गया । उसने आगरा तथा फतहपुर सिकरी में किले और महलों का निर्माण कराया । उसका बनवाया बुलन्द दरवाजा उसी समय की स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है । हुमायूँ का मकबरा संगमरमर का बना है । एमतादुदौला के मकबरा में पहली बार ‘पितरादूरा’ का उपयोग हुआ ।
शाहजहाँ का शासन काल, भव्य इमारतों का काल था । शाहजहाँ ने पितरादूरा का उपयोग खूब किया । ताजमहल की गिनती विश्व के सात आश्चर्यों में होती है। शाहजहाँ ने दिल्ली और आगरे में लाल किले का निर्माण कराया । शाहजहाँ के काल में निर्माण कार्य अनवरत रूप में चलते रहे । ताजमहल में सिंहासन के पीछे ‘पितरादूरा’ उकेरित है ।
औरंगजेब के शासन काल में निर्माण कार्य ठप रहा । उसने लाल किला में मोती मस्जिद बनवाई । औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में उसने अपनी पत्नी का मकबरा बनवाया जो ‘बीबी का मकबरा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
बिहार में भी मुगलकालीन शैली का नमूना है । वह है मनेर स्थित शाह दौलत का मकबरा, जो 1617 में बना । इसमें अकबरकालीन मुगल शैली की विशेषताएँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं । अवध के नवाबों ने भी अनेक भवन बनवाए जिसमें ‘भुलभुलैया’ काफी प्रसिद्ध है।
बिहार के भवनों में शेरशाह का मकबरा भी बहुत प्रसिद्ध है। यह एक झील के बीच में बना अष्टकोणीय इमारत अफगान वास्तुकला की कहानी कह रहा है। यह 1545 में पूरी तरह बनकर तैयार हो गया था । शायद शेरशाह को अपने उत्तराधिकारियों की योग्यता का विश्वास नहीं था । इसलिए उसने अपना मकबरा अपने जीवन काल में ही बनवा लिया था ।