Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 1 बिहार का लोकगायन

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Varnika Bhag 1 Chapter 1 बिहार का लोकगायन Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 1 बिहार का लोकगायन

Bihar Board Class 9 Hindi बिहार का लोकगायन Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
लोकगीत किसे कहते हैं ?
उत्तर-
ग्रामीण एवं प्रदेश के स्तर पर जन्म, जनेऊ, तिलकोत्सव, विवाहोत्सव, व्रत-उत्सव, कँटोनी पिसौनी, रोपनी आदि के समय जो गीत गाये जाते हैं, लोकगीत कहलाते हैं।

ये गीत आकृत्रिम उल्लासपूर्ण, भक्ति, प्रेम परिहास, उलाहना के साथ स्वागत एवं विदाई के भाव से युक्त होते हैं। खिलौना, सोहर, झूमर, ज्योनार, अँतसार, साझा, पराती, रोपनी गीत, होली, चैता आदि दर्जनों प्रकार के गीत बिहार की मिट्टी की अपनी गूंज है, अंतस की अभिव्यक्ति है। जनेऊ तथा विवाह के हल्दी मण्डपाच्छादन, स्नान, तिलक, स्वांगत, भोजन गुरहथी, सिंदूरदान, कोहबर, कन्या विदाई आदि विभिन्न प्रसंगों के गीत हमारी ग्रामीण कृषि संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। इन्हें नारी समाज ने सदियों से अपनी चेतना और स्मृति में सँजो रखा है। इनमें हमारी हजारों वर्ष के प्राचीन संस्कृति का इतिहास गुँथा हुआ दिखाई पड़ता है। मिथिला और नचारी जैसे गीतों की मोहक परंपरा भी बिहार के लोक-गीत की मूल्यवान निधि है। भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका आदि भाषाओं में गाये जाने वाली लोकगीत समान भाव से गाये जाते हैं।

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प्रश्न 2.
लोकगीत के प्रमुख भेदों का परिचय दें। उत्तर-लोकगीत के पाँच प्रमुख भेद हैं
(i) संस्कार गीत (i) पर्व गीत (iii) श्रम गीत (iv) प्रेम मनोरंजन के गीत, गाथा गीत और (v) ऋतु गीत ।
उत्तर-
(i) संस्कार गीत-जन्म, जनेऊ, तिलक विवाह आदि के शुभ-अवसर पर विभिन्न प्रसंगों पर गाये जाने वाले गीत संस्कार गीत कहे जाते हैं।
(ii) पर्व गीत-भक्तिमूलक गीतों का गायन पर्व गीतों में किये जाते हैं। ग्राम देवी, शंकर पार्वती या गंगा की भक्ति के गीतों के अलावे छठ के गीत इस संदर्भ में विशेष उल्लेखनीय हैं।
(iii) श्रम गीत-श्रम गीतों में जाँते में गेहूँ पीसती नारियाँ और धान का विचड़ा रोपती मजदरिनों द्वारा जो गीत गाये जाते हैं अर्थात् अँतसार और रोपनी गीतों का विशेष स्थान है। हल जोतते हलवाहे, गाय भैंस चराते चरवाहे जो अन्य प्रेमगीत, गाथा गीत हैं वह भी एक हद तक श्रमगीत के अन्तर्गत कहा जा सकता है किन्तु ग्वालों के निजी उत्सव पर विरहा गायन की परंपरा श्रमगीत है।
(iv) प्रेम मनोरंजन के गीत-इस प्रकार के गीतों का प्रचलन श्रमशील पुरुषों (चरवाहे, हलवाहे, गाड़ीवान आदि) में रहा है जो मन की मौज के अनुसार बिरहा, लारिकायन आदि भी मक्त भाव स गाते हैं। लोरिका. भरथरी और नैका गाथा गीतों के गायक रहे हैं।
(v) ऋतु गीत-होली और चैता का गायन ऋतु गीत के अन्तर्गत आते हैं किन्तु ये उत्सव गीत भी कहे जाते हैं।

प्रश्न 3.
संस्कार गीत किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जन्म, जनेऊ, तिलक, विवाह आदि के विभिन्न प्रसंगों पर गाये जाने वाले संस्कार गीत कहलाते हैं। गृहों में जनेऊ संस्कार जिस अधिकारी कुमार का किया जाता है उन्हें गीतों में बडुआ कर सम्बोधित किया जाता है। तिलकोत्सव लड़के वाले के यहाँ सम्पन्न होता है इसलिये यह उन्हीं के यहाँ गाये जाते हैं. जिसमें लडके को अधिक गुणवान और दहेज को कम बता कर उलाहना भरा गीत गाया जाता है। हल्दी कलश स्थापन से चौथारी तक अलग-अलग प्रसंगों के गीत वर और कन्या दोनों के यहाँ नियमित रूप से गाये जाते हैं। संध्यावाती के समय घर की बुजुर्ग महिलायें धीमी स्वर में गाती हुई पितरों का आह्वान और वन्दन करती हैं।

द्वार पूजा के लिये दरवाजे पर आयी बारात के स्वागत में गीत गाती नारियों का. समूह घर के वयस्क सदस्यों का नाम ले-लेकर अगवानी करने का आग्रह करते हैं। इससे आगे परिछावन, चुमावन आदि के गीत भी होते हैं। भोजन करने आये समधी एव बारातियों के पैर धोने की परम्परा गोर-धुलाई और भोजन करते समय भी अलग-अलग गीतों से वातावरण आह्लादित होते रहता है।

विवाह गीतों में सिंदूर-दान एवं बेटी की विदाई के करुण भाव मांगलिक पक्ष के परिचायक हैं। करुण गीत का प्रयोग सिंदरदान में प्रवेश करता है और विदाई के समय चरम स्थिति में परिणत हो जाता है।
इस प्रकार संस्कार गीत लोकगीत का एक प्रमुख गीत है।

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प्रश्न 5.
आपको अपने क्षेत्र में विवाह के किन-किन प्रसंगों के गीत गाये जाते
उत्तर-
हमारे क्षेत्र में विवाह के विभिन्न प्रसंगों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के गीत गाये जाते हैं। जैसे बारात के द्वार लगने पर द्वार पूजा, समधी मिलन, पाँव परिक्षालन, चुमावन, सिंदूरदान, कोहवर, विदाई आदि के प्रसंगों पर भिन्न-भिन्न भाव और अर्थ के गीत गाये जाते हैं।

प्रश्न 6.
किस पर्व के गीत आपको सबसे अधिक अच्छे लगते हैं और क्यों?
उत्तर-
हमें छठ पर्व का गीत सबसे अच्छा लगता है। क्योंकि छठ बिहार का अपना प्रादेशिक पर्व है और इसके गीतों की अपनी सर्वथा अलग धुन तथा लय होती है। छठ पर्व के गीत बिहार की कृषि संस्कृति वाले परिवार को समर्पित सूर्यभक्ति की निष्कलुष व्यंजना करते हैं। “कांच ही बाँस के बहंगिया बहँगी लचकत जाय”।
से अलग “उगी न सरुजदेव लीही न अरिघिया” में एक भिन्न छन्द बनता है।
छठ के गीत पर्वगीत के अन्तर्गत आते हैं। पर्वो के भक्तिमूलक लोकगायन में पूर्णतः पारिवारिक-सामाजिक संदर्भ होता है, जिसमें देव या देवी की कृपालुता, रुष्टता, लीला, स्वरूप, सौंदर्य आदि का वर्णन-चित्रण हुआ करता है।

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प्रश्न 7.
शास्त्रीय गीत तथा लोकगीत का सामान्य अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
शास्त्रीय संगीत शास्त्र सम्मत होते हैं और लोकगीत अकृत्रिम होते हैं। लोकगीत स्वच्छंद चेतना पर आधारित है। लोकगीत गाँवों में ग्रामीण और शास्त्रीय गीत नगरीय है। शास्त्रीय संगीत में गीतकार के भिन्न घराने होते हैं किन्त लोकगीत में विभिन्न अंचलों की संवेदना स्पष्ट होती है और दोनों परम्परागत हैं। शास्त्रीय संगीत परम्परा पर निर्भर नहीं है और लोकगीत निर्भर है।
(iii) लोकगीतकार अधिक लोकप्रिय हैं। शास्त्रीय के नियम और गायकी के रूप एवं उसकी सीमा आदि पर संगीतकार को आश्रित रहना पड़ता है। लोकगीत इसके विरुद्ध परम्परा पर
है, उसमें कोई नियम सीमा नहीं होती है। लोकगीत अनपढ़ द्वारा भी गाया और रचा जाता है।

प्रश्न 8.
विवाह गीतों में किन्हीं पाँच का परिचय दें।
उत्तर-
विवाहोत्सव में बारात जब द्वार पर आती है तो द्वार पूजा के समय महिलाओं का समूह गीत से स्वागत करते हैं। तत्पश्चात् समधी एवं नजदीकी संबंधी के साथ बारात का पाँव परिछालन प्रसंग पर गीत गाये जाते हैं उन्हें गोरधोआई गीत . कहा जाता है। तत्पश्चात् चुमावन के गीत होते हैं। द्वारपूजा के बाद भोजन करने बैठ . चुके बारातियों के साथ परिहास भाव की अभिव्यक्ति के रूप में उनकी पत्नी, बहन, बुआ आदि को लगाकर जो गालियाँ गायी जाती हैं उसमें किशोरियों से लेकर वयस्क महिलाओं तक की उम्र एवं पद की सारी मर्यादायें ध्वस्त हो जाती हैं। किन्तु बराती इतनी गालियाँ सुनकर मुसकुराते हुए भोजन करते रहते हैं। सिंदूरदान और विदाई के समय कारुणिक एवं मांगलिक गीत गाये जाते हैं करुणा तो बेटी की विदाई के समय चरम रूप ले लेती है और विदाई की गीत तो सभी को रुलाकर ही छोड़ती है।

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प्रश्न 9.
किन्तु शास्त्रीय संगीत में संगीतकार जो राग रागिनी के जानकार हैं
उत्तर-
उसका पालन करते हैं कुल मिलाकर लोकगीत एक निर्मल झरना है गंभीरता, गहराई आदि पर ध्यान देते हुए शास्त्रीय नियम का पालन करना शास्त्रीय गीतकार के लिये अनिवार्य है।

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