Bihar Board 12th Hindi Model Papers
Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Model Question Paper 3
समय 3 घंटे 15 मिनट
पूर्णांक 100
परिक्षार्थियों के लिए निर्देश
- परीक्षार्थी यथा संभव अपने शब्दों में ही उत्तर दें।
- दाहिनी ओर हाशिये पर दिये हुए अंक पूर्णांक निर्दिष्ट करते हैं।
- इस प्रश्न पत्र को पढ़ने के लिए 15 मिनट का अतिरिक्त समय दिया गया है।
- यह प्रश्न पत्र दो खण्डों में है, खण्ड-अ एवं खण्ड-ब।
- खण्ड-अ में 50 वस्तुनिष्ठ प्रश्न हैं, सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। (प्रत्येक के लिए । अंक निर्धारित है) इनके उत्तर उपलब्ध कराये गये OMR शीट में दिये गये वृत्त को काले/नीले बॉल पेन से भरें। किसी भी प्रकार का व्हाइटनर/तरल पदार्थ/ब्लेड/नाखून आदि का उत्तर पत्रिका
- में प्रयोग करना मना है, अथवा परीक्षा परिणाम अमान्य होगा।
- खण्ड-ब में कुल 15 विषयनिष्ठ प्रश्न हैं। प्रत्येक प्रश्न के समक्ष अंक निर्धारित हैं।
- किसी तरह के इलेक्ट्रॉनिक यंत्र का उपयोग वर्जित है।
खण्ड-अ
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न संख्या 1 से 50 तक के प्रत्येक प्रश्न के साथ चार विकल्प दिए गए हैं, जिनमें से एक सही है। अपने द्वारा चुने गए सही विकल्प को OMR-शीट पर चिन्हित करें। (50 x 1 = 50)
प्रश्न 1.
‘बातचीत’ साहित्य की कौन-सी विधा है?
(A) उपन्यास
(B) कहानी
(C) निबंध
(D) नाटक
उत्तर:
(C) निबंध
प्रश्न 2.
‘उसने कहा था’ किस प्रकार की कहानी है ?
(A) धर्म प्रधान
(B) चरित्र-प्रधान
(C) भाव-प्रधान
(D) कर्म-प्रधान
उत्तर:
(D) कर्म-प्रधान
प्रश्न 3.
जयप्रकाश नारायण रचित पाठ का नाम है
(A) प्रगति और समाज
(B) हँसते हुए मेरा अकेलापन
(C) बातचीत
(D) सम्पूर्ण
उत्तर:
(D) सम्पूर्ण
प्रश्न 4.
क्रांति दिनकर को कौन राष्ट्रीय सम्मान मिला था ?
(A) पद्मश्री
(B) भारत रत्न
(C) पद्मभूषण
(D) पद्मविभूषण
उत्तर:
(C) पद्मभूषण
प्रश्न 5.
‘रोज’ शीर्षक कहानी के लेखक हैं
(A) अज्ञेय
(B) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(C) मोहन राकेश
(D) उदय
उत्तर:
(A) अज्ञेय
प्रश्न 6.
प्रकाश ‘प्रताप’ के संस्थापक कौन थे?
(A) गणेश शंकर विद्यार्थी
(B) माखनलाल चतुर्वेदी
(C) बालकृष्ण भट्ट
(D) भारतेन्दु हरिश्चंद्र
उत्तर:
(A) गणेश शंकर विद्यार्थी
प्रश्न 7.
‘ओ सदानीरा’ शीर्षक पाठ के लेखक हैं
(A) मोहन राकेश
(B) जगदीशचन्द्र माथुर
(C) उदय प्रकाश
(D) नामवर सिंह
उत्तर:
(B) जगदीशचन्द्र माथुर
प्रश्न 8.
मोहन राकेश का जन्म कब हुआ था ?
(A) 8 जनवरी, 1925 को
(B) 18 फरवरी, 1930 को
(C) 20 जनवरी, 1926 को
(D) 14 जनवरी, 1931 को
उत्तर:
(A) 8 जनवरी, 1925 को
प्रश्न 9.
‘प्रगति और समाज’ के लेखक हैं
(A) बालकृष्ण भट्ट
(B) जयप्रकाश नारायण
(C) नामवर सिंह
(D) उदय प्रकाश
उत्तर:
(C) नामवर सिंह
प्रश्न 10.
हँसते हुए मेरा अकेलापन के लेखक हैं- .
(A) भरतजी श्रीवास्तव
(B) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(C) दिनकर
(D) मोहन राकेश
उत्तर:
(D) मोहन राकेश
प्रश्न 11.
उदय प्रकाशजी किस पत्रिका के संपादक थे ?
(A) दिनमान
(B) धर्मयुग
(C) सारिका
(D) कथादेश
उत्तर:
(A) दिनमान
प्रश्न 12.
जो लोग भयभीत हैं वे क्या नहीं हो सकेंगे?
(A) मेधावी
(B) धनवान
(C) ज्ञानवान
(D) बलवान
उत्तर:
(A) मेधावी
प्रश्न 13.
जायसी का जन्म-स्थान था
(A) बनारस
(B) दिल्ली
(C) अजमेरी
(D) अमेठी
उत्तर:
(D) अमेठी
प्रश्न 14.
सूरसागर के कवि हैं
(A) सूरदास
(B) छती स्वामी
(C) कबीरदास
(D) नंददास
उत्तर:
(A) सूरदास
प्रश्न 15.
तुलसीदास का मूल नाम क्या था?
(A) बमभोला
(B) रामबोला
(C) हरिबोला
(D) कोई नहीं
उत्तर:
(B) रामबोला
प्रश्न 16.
‘भक्तमाला’ के रचयिता कौन है ?
(A) कबीरदास
(B) गुरुनानक
(C) रैदास
(D) नाभादास
उत्तर:
(D) नाभादास
प्रश्न 17.
भूषण किस काल के कवि हैं?
(A) आदिकाल
(B) भक्तिकाल
(C) आधुनिककाल
(D) रीतिकाल
उत्तर:
(B) भक्तिकाल
प्रश्न 18.
‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता के रचयिता कौन हैं ?
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(C) महादेवी वर्मा
(D) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर:
(A) जयशंकर प्रसाद
प्रश्न 19.
सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी कविता कौन-सी है?
(A) प्यारे-नन्हे बेटे को
(B) पुत्र-वियोग
(C) हार-जीत
(D) गाँव घर
उत्तर:
(B) पुत्र-वियोग
प्रश्न 20.
शमशेर बहादुर सिंह को हिन्दी साहित्य में क्या कहा जाता है ?
(A) कवियों के कवि
(B) कवि शिरोमणि
(C) कवि भूषण
(D) कवि रत्न
उत्तर:
(A) कवियों के कवि
प्रश्न 21.
इनमें से मुक्तिबोध की कौन-सी रचना है ?
(A) हार-जीत
(B) जन-जन का चेहरा एक
(C) अधिनायक
(D) पद
उत्तर:
(B) जन-जन का चेहरा एक
प्रश्न 22.
पाठ्यपुस्तक में रघुवीर सहाय की संकलित ‘अधिनायक’ कविता कैसी कविता है?
(A) व्यंग्य प्रधान
(B) हास्य प्रधान
(C) वीर रस प्रधान
(D) रोमांस प्रधान
उत्तर:
(A) व्यंग्य प्रधान
प्रश्न 23.
‘प्यारे नन्हें बेटे को’ कविता में लोहा किसका प्रतीक है?
(A) बन्दूक का
(B) मशीन का
(C) कर्म का
(D) धर्म का
उत्तर:
(C) कर्म का
प्रश्न 24.
इनमें अशोक वाजपेयी की कौन-सी रचना है ?
(A) गाँव का घर
(B) हार-जीत
(C) कवित
(D) कड़बक
उत्तर:
(B) हार-जीत
प्रश्न 25.
ज्ञानेन्द्रपतिजी किस युग के कवि हैं ?
(A) आधुनिक काल
(B) अत्याधुनिक काल
(C) प्रेमचंद काल
(D) रीतिकाल
उत्तर:
(A) आधुनिक काल
प्रश्न 26.
‘राष्ट्र’ का भाववाचक संज्ञा है
(A) राष्ट्रीय
(B) राष्ट्र
(C) राष्ट्रीयता
(D) कोई नहीं
उत्तर:
(A) राष्ट्रीय
प्रश्न 27.
‘मैं’ शब्द निम्नलिखित में कौन-सा है ?
(A) संज्ञा
(B) सर्वनाम
(C) विशेषण
(D) क्रिया
उत्तर:
(B) सर्वनाम
प्रश्न 28.
‘जल’ का विशेषण है
(A) जलीय
(B) जटिल
(C) जबावी
(D) जागरण
उत्तर:
(A) जलीय
प्रश्न 29.
कर्मवाच्य का उदाहरण है
(A) चला नहीं जाता
(B) कामना से चिट्ठी लिखी जाती है
(C) बच्चे मैदान में खेल रहे हैं
(D) उससे सोया नहीं जाता
उत्तर:
(B) कामना से चिट्ठी लिखी जाती है
30.
‘मैंने आम खाया है।’ वाक्य उदाहरण है
(A) सामान्य वर्तमान
(B) पूर्ण वर्तमान
(C) आसत्र भूत
(D) अपूर्ण भूत
उत्तर:
(C) आसत्र भूत
प्रश्न 31.
‘लड़का पेड़ से गिर पड़ा।’ इसमें किस कारक की विभक्ति लगी है?
(A) करण
(B) सत्प्रदान
(C) कर्ता
(D) अपादान
उत्तर:
(D) अपादान
प्रश्न 32.
‘कवि’ का स्त्रीलिंग रूप क्या है ?
(A) कवित्री
(B) कवयित्री
(C) कवीत्री
(D) कवियानी
उत्तर:
(B) कवयित्री
प्रश्न 33.
‘अध्यापक’ शब्द का स्त्रीलिंग रूप क्या है ?
(A) अध्यापिका
(B) अध्यपिक
(C) अध्यापका
(D) अध्यापकी
उत्तर:
(A) अध्यापिका
प्रश्न 34.
‘थोड़ा-सा कौन निपात है?
(A) आदरबोधक
(B) तुलनाबोधक
(C) स्वीकारार्थक
(D) निषेधबोधक
उत्तर:
(B) तुलनाबोधक
प्रश्न 35.
‘दहेज’ का लिंग निर्णय करें।
(A) स्त्रीलिंग
(B) पुल्लिग
(C) उभयलिंग
(D) कोई नहीं
उत्तर:
(B) पुल्लिग
प्रश्न 36.
“पुस्तक’ का लिंग निर्णय करें।
(A) पुल्लिग
(B) स्त्रीलिंग
(C) उभयलिंग
(D) कोई नहीं
उत्तर:
(B) स्त्रीलिंग
प्रश्न 37.
‘कारक’ के कितने भेद हैं ?
(A) पाँच
(B) छ:
(C) सात
(D) आठ
उत्तर:
(D) आठ
प्रश्न 38.
‘सच्चरित्र’ का सन्धि-विच्छेद क्या है?
(A) सच्च + रित्र
(B) स + चरित्र
(C) सत् + चरित्र
(D) सच + चरित्र
उत्तर:
(C) सत् + चरित्र
प्रश्न 39.
‘स्वागत’ का सही सन्धि-विच्छेद क्या है?
(A) स्व + आगत
(B) स्वा + आगत
(C) स्व + अगत
(D) सु + आगत
उत्तर:
(C) स्व + अगत
प्रश्न 40.
‘देवकन्या’ में कौन-सा समास है ?
(A) कर्मधारय
(B) तत्पुरुष
(C) अव्ययीभाव
(D) द्वन्द्व
उत्तर:
(B) तत्पुरुष
प्रश्न 41.
‘रात’ का पर्याय है
(A) कानन
(B) पादप
(C) विहग
(D) निशा
उत्तर:
(D) निशा
प्रश्न 42.
‘गंगा’ का पर्यायवाची शब्द है
(A) इंदिरा
(B) मंदाकिनी
(C) गौरी
(D) इंदु
उत्तर:
(B) मंदाकिनी
प्रश्न 43.
‘अपमान’ का विपरीतार्थक शब्द है
(A) इज्जत
(B) बेइज्जत
(C) सम्मान
(D) प्रतिष्ठा
उत्तर:
(C) सम्मान
प्रश्न 44.
‘उपकार’ का विपरीतार्थक शब्द है
(A) अपकार
(B) सत्कार
(C) आभास
(D) आदर
उत्तर:
(A) अपकार
प्रश्न 45.
“स्वागत’ शब्द में कौन-सा उपसर्ग है ?
(A) स्व
(B) सा
(C) सु
(D) स
उत्तर:
(C) सु
प्रश्न 46.
‘अनपढ़’ में कौन-सा उपसर्ग है ?
(A) उप
(B) उत्
(C) अद्य
(D) अन
उत्तर:
(D) अन
प्रश्न 47.
‘लड़का’ में कौन-सा प्रत्यय लगा हुआ है?
(A) ता
(B) आका
(C) औता
(D) ओता
उत्तर:
(B) आका
प्रश्न 48.
‘जो कुछ नहीं चाहता है’ के लिए एक शब्द है
(A) सर्वज्ञ
(B) अल्पज्ञ
(C) बहुज्ञ
(D) अज्ञ
उत्तर:
(D) अज्ञ
प्रश्न 49.
‘जल’ का अर्थ होता है
(A) प्रतिष्ठा
(B) शिव
(C) स्वभाव
(D) रंग
उत्तर:
(A) प्रतिष्ठा
प्रश्न 50.
‘नाक का बाल होना’ मुहावरे का सही अर्थ क्या है ?
(A) नाक का बाल बढ़ना
(B) दुश्मन होना
(C) नाक का इलाज कराना
(D) अति प्रिय होना
उत्तर:
(D) अति प्रिय होना
Section – II
गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
संक्षेपण करें: (1 x 4 = 24)
छात्र जीवन के लिए परिश्रम एक ऐसा अमोघ मंत्र है, जिसके महत्त्व का भुलाया नहीं जा सकता। परिश्रम ही वह सीढ़ी है, जिस पर चढकर सफलता की सीढियाँ पार की जा सकती हैं। हमारे देश की संस्कृति यह वाताती है कि हम कभी भी आलस्य की गिरफ्त में नहीं पड़े । आलस्य मनुष्य मात्र का ऐसा शत्रु है, जो हमें अवनति की ओर ले जाता है। हम किसी भी क्षेत्र में रहें, किसी भी कार्य में संलग्न रहते हों, हमें सदैव परिश्रम के महत्त्व को समझना चाहिए । इसके लिए माता-पिता, शिक्षक एवं समाज के प्रबुद्ध बुद्धिजीवी वर्ग को आगे आना होगा।
उत्तर:
शीर्षक: परिश्रम का महत्त्व-छात्र जीवन के लिए परिश्रम एक अमोघ मंत्र है। हमें आलस्य से बचकर आगे बढ़ना चाहिए। हम किसी भी क्षेत्र में रहें, किसी भी कार्य में संलग्न रहें, परिश्रम के महत्त्व को स्वीकार करना चाहिए। [संक्षेपण शब्द-संख्या: 35]
प्रश्न 2.
किसी एक पर निबंध लिखें : (1 x 8 = 8)
(क) प्रदूषण की समस्या
(ख) आरक्षण और सामाजिक न्याय
(ग) बआढ़ की विभीषिका
(घ) बिहार में शराबबंदी कानून
(ङ) गणतंत्र दिवस
उत्तर:
(क) प्रदूषण की समस्या-आज सम्पूर्ण विश्व के लिए सर्वाधिक चिंता का विषय है उसे हम पर्यावरण की समस्या कहते हैं। इसके कारण मानव का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है। हम जिस प्राकृतिक वातावरण में रहते हैं, अर्थात् हमारे आस-पास चारों ओर जो प्राकृतिक आवरण है उसे हम ‘पर्यावरण’ कहते हैं। वायुमंडल, वन, पर्वत, नदियाँ जल आदि इसके अंग कहलाते हैं।
हमारे जीवित रहने की जितनी शर्ते हैं उनमें पर्यावरण की शुद्धता महत्त्वपूर्ण है। लेकिन, आज हमारा यह पर्यावरण ही प्रदूषित हो गया है । मानव ने अपनी सुख-सुविधा के लिए जो कुछ किया है, उसी से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई है। पर्यावरण के घटकों के संतुलन बिगड़ने को ही पर्यावरण प्रदूषण कहा जाता है। पर्यावरण प्रदूषण के कई रूप हैं वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा (मिट्टी) प्रदूषण रेडियोधर्मी प्रदूषण आदि ।
प्रदूषण के कई कारण हैं। सर्वप्रथम वृक्षों की कटाई ही इसका बड़ा कारण है। वैध अथवा अवैध तरीकों से बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई के कारण पर्यावरण संतुलन में बाधा उत्पन्न हुई हैं पेड़-पौधो वायुमंडल के कार्बन का अवशोषण करते हैं। इससे एक ओर वायुमंडल अर्थात् वायु की स्थिति सामान्य बनी रहती है तथा दूसरी और इससे वर्षा भी होती है। इसी तरह, ईंधन के रूप में लकड़ी का प्रयोग, बढ़ती हुई गाड़ियों के प्रयोग से धुआँ तथा बडे पैमाने पर जहरीले और हानिकारक गैसों के वातावरण में मिलने से वायु प्रदूषण हो रहा है। बड़े-बड़े नगरों और औद्योगिक कारखानों से निकलनेवाले जहरीले अवशेष नदियों में गिराए जा रहे हैं। इससे जल प्रदूषण का खतरा उत्पन्न हो गया है। वाहनों और कल-कारखानों से होनेवाली तेज आवाज के कारण ध्वनि प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है। इसी तरह, रासायनिक और कीटनाशक औषधियों के प्रयोग से मिट्टी भी प्रदूषित हो रही है।
पर्यावरण प्रदूषण से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं और संभावनाओं का खतरा बढ़ता जा रहा है। इसका सबसे भयानक प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य
के ऊपर पड़ता है। जहरीली गैसें हवा में मिलती जा रही है। कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ोत्तरी हो रही है। इसका बुरा प्रभाव मानव-शरीर के ऊपर की उर्वरा शक्ति का ह्रास, अनियमित वर्षा और प्रदूषित वायुमंडल के कारण हमारे खेतों की उपज में कमी होगी। इससे ऋतुचक्र प्रभावित होगा। गर्मी अधिक पड़ेगी। पेय जल का संकट उत्पन्न होगा। वनों की कटाई से वायुमंडल में जलवाष्प की कमी हो गई है। वर्षा कम होने से जल-स्तर जमीन के नीचे गिरता जा रहा है। इससे वाष्प-निर्माण का संतुलन बिगड़ रहा है। इसका परिणाम अकाल, अर्थात् अनावृष्टि के रूप में सामने आएगा।
पर्यावरण प्रदूषण के कारण ओजोन संकट उत्पन्न हो रहा है। धरातल से लगभग 25 किलोमीटर. ऊपर एक बीस किलामीटर का गैस आवरण है, जिससे धरती की सुरक्षा होती है। इस आवरण को ओजोनमंडल कहा जाता है। इससे धरती के ऊपर के वायुमंडल की सरक्षा होती है तथा सूर्य की किरणों को इससे पार करना पड़ता है, जिससे उसकी हानिकारक किरणें धरती पर नहीं आ पाती हैं। आज इस ओजोनमंडल में छिद्र हो गया है। धरती के पर्यावरण प्रदूषण के कारण ओजोन हमारी सुरक्षा करने में असमर्थ हो रहा है। इसी तरह अन्य तरह के प्रदूषणें से मानव और प्राकृतिक उपादनों पर खतरा उत्पन्न हो तो रहा है।
खतरा तो यहाँ तक बढ़ गया है कि तेजाबी वर्षा का भय तक उत्पन्न हो रहा है। . पर्यावरण प्रदूषण से बचाव हो सकता है। मानव ने ही पर्यावरण को प्रदुषित किया है। यही इसमें सुधार ला सकता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाए जाएँ, वनों की सुरक्षा की जाए। अन्धाधुंध वन-कटाई को रोका जाए। वाहनों और औद्योगिक संस्थानों से निकलनेवाली धुआँ हमारे वायुमंडल को प्रभावित कर रहा है। इस पर ध्यान दिया जाए। इसे कम किया जाए। शहरों के नालों और औद्योगिक संस्थानों के मलवे को नदियों में गिरने से रोका जाए। इसी तरह अन्य उपाय भी किए जा सकते हैं।
पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या विश्व-स्तर की समस्या है। इस पर संपूर्ण विश्व को सोचना होगा। यही कारण है कि सभी देशों ने अपने-अपने यहाँ पर्यावरण सुरक्षा को एक अभियान के रूप में मिलया है। इस संबंध में भारत ने इसके लिए कई कड़े कदम उठाए हैं। जैसे-1974 ई. में जल-प्रदूपण निवारण और नियंत्रण अधिनियम, 1986 ई. में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम आदि की व्यवस्था की गई है। इस तरह, पर्यावरण प्रदूषण निश्चय ही मानव जाति को क्या, संपूर्ण चराचर के लिए चिंतनीय विषय बन गया है।
(ख) आरक्षण और सामाजिक न्याय-भारतवर्ष में आरक्षण कोई नयी व्यवस्था नहीं है। हमारी सामाजिक संरचना में कुछ ऐसी बातें रही हैं जिनमें आरक्षण देखा जा सकता है। भारतवर्ष में विद्या, शस्त्र, व्यापार और सेवा क्रमशः, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों में आरक्षित रहा है। विद्या के प्रश्न पर तो और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है। इस संबंध में स्त्रियों को भी बख्शा नहीं गया। कहना न होगा कि शिक्षा केवल ब्राह्मण और राजघरानों के पुरुष वर्ग में आरक्षित रही। इसका भयानक परिणाम यह हुआ कि सामाजिक समायोजन नहीं हो सका । समाज का एक विशाल वर्ग समाज की मुख्य धारा से कट गया।
उसके सामने ‘कोई नृप होहिं हमें का हानि’ की बात चरित्रार्थ होने लगी। फलतः देश में एक सामाजिक संगठन स्थापित नहीं हो सका। अपने ही देशवासियों के शोषण का शिकार वह विशाल जनसमुदाय अज्ञानता, अशिक्षा और आर्थिक अभाव के दलदल में फंस गया । इस विशाल वर्ग के प्रति भगवान बुद्ध आदि ने सोच अवश्य, किन्तु भारतीय समाज की संरचना के कारण उसका विकास अवरुद्ध रहा। इस आरक्षण का परिणम हमें तब देखने के लिए मिला जब विदेशियों के हाथ भारत गुलाम हो गया। अगर सामाजिक संरचना में सबके समायोजन के योग्य जगह होती तो राष्ट्रीयता का इतना पतन नहीं होता।
स्पष्ट है कि आजादी के बाद भारतीय नेताओं और चिंतकों ने यह महसूस किया कि भारत की सामाजिक व्यवस्था में कुछ ऐसी त्रुटियाँ रह गयी हैं, जिनके चलते विशाल वर्ग का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है। अगर सामाजिक और
(ग) बाढ़ की विभीषिका-बाढ़ क्यों और कैसे आया करती है? इसका प्राकृतिक कारण तो वर्षा का आवश्यकता से अधिक होना ही माना जाता है? पर कभी-कभी किसी नदी का बाँध आदि में दरारें पड़ने या टूटने के कारण तीव्र जल बहाव से प्रलय सा दृश्य उपस्थित हो जाता है।
जल प्रलय या बाढ़ का कारण चाहे प्राकृतिक हो या अप्राकृतिक । इस बात का स्मरण आते ही रोंगटे खड़े होने लगते हैं कि जल प्रलय में बह या. डूब रहे मनुष्य अथवा पशु आदि की उस समय मानसिक दशा कैसी भयावह हुआ करती होगी। डुबने वाला किसी भी तरह बच पाने के लिए कितना सोचता और हाथ-पैर मारता होगा। इस बात की कल्पना कर पाना सहज नहीं।
विगत वर्षों में मुझे बाढ़ से फिर बच आने और उसकी भयावह मारक दृश्य देखने का एक अवसर मिला थ। उसके बारे में सोचकर आज भी कंपकंपी छुट जाती है। बरसात का मौसम था। चारों ओर वर्षा होने के
समाचार आ रहे थे। दिल्ली में भी कई दिनों से लगातार वर्षा हो रही थी। लगातार वर्षा के कारण शहर और उसके आस-पास जल-निकासी के लिए जितने भी नाले आदि बनाए गए थे, वे सब लबालब भर गए थे। नजफगढ़ नाला अपने किनारों के ऊपर तक बहने लगा था। तब हम लोग पंजाबीबाग के डी.डी.ए. द्वारा बनाए गए क्वार्टरों में रहा करते थे।
एक रोज शाम के समय देखा कि नालियों का पानी बाहर जाने के बजाए वापस घरों में आ रहा है। रात को निश्चित होकर सो गए कि वर्षा का जोर थमते ही पानी अपने आप निकल जाएगा। आधी रात से अधिक समय हो चुका होगा कि जब उन क्वार्टरों में चारों ओर ‘बाढ़-बाढ़’ का स्वर गूंजने लगा। हड़बड़ी में उठकर हमलोगों ने जब पांव धरती पर रखने चाहे, तो वे घुटनों से ऊपर तक भर चुके पानी में पड़े। बिजली जाने से अंधेरा हो गया था। घर का सारा सामान डूब चुका था।
जो हलका था वहीं. इधर-उधर टकरा कर कहीं बाहर निकल जाने को बेचैन हो रहा था। चारों ओर का शोर उसमें पानी का शोर भी सम्मिलित था, जो निरंतर बढ़ता जा रहा था। हड़बड़ी में परिवार के सदस्यों ने एक-दूसरे के हाथ थाम कर दरवाजा खोला तो पानी गंध मार रहा था। सिर-मुंह सभी कुछ पानी के उफान में से भीग गया। गोद में उठाये बच्चे पानी के डर से चीख उठे देखते ही देखते पानी का स्तर कमर से ऊपर उठने लगा। बड़ी
मुश्किल से ऊपर जाने की सीढ़ी तक पहुँचे, पानी से संघर्ष करते हुए हम छत पर पहुँचे । मुड़कर देखा, लगा कि जैसे पानी भी सीढियाँ चढता हुआ हमारा पीछा कर रहा है।
दिन उजाले में वह सारा दृश्य और भी भयावह लग रहा था। नावों में आए सहायता दल अपने साथ खाने-पीने का सामान तो लेकर आए ही थे और कुछ ही समय बाद कुछ हेलीकॉप्टर सैनिकों से भरे हुए हमारे ऊपर मंडरा रहे थे और बाढ़ में फंसे हुए लोगों को सीढी डालकर निकाल रहे थे। हमने भी उनके साथ वहाँ से निकल जाना ही उचित समझा।
कुछ आवश्यक सामान वहाँ से निकाल एक दिन सूखे राहत कैम्प में और उसके बाद अपने ननिहाल में शरण लेनी पड़ी। उस बाढ़ में गए साजो-सामान की भरपाई तो आज तक भी संभव नहीं हो पाई। ऐसा होता है “जल-प्रलय ।”
(घ) बिहार में शराब बंदी कानून-1 अप्रैल, 2016 से बिहार सरकार द्वारा लागू किया गया शराबबंदी कानून एक ऐतिहासिक कदम है। बिहार सरकार के मुखिया माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार जी का यह फैसला अत्यंत प्रशंसनीय है। मुख्यमंत्री के इस निर्णय से प्रदेश की महिलाएं, वृद्ध, बच्चे, सुशिक्षित एवं सभ्य लोगों को नशाखोरी से बड़ी राहत प्राप्त हुई है। नशा व्यक्ति को अपराध एवं दमित यौन इच्छाओं के लिए प्रेरित करता है।। शराब के लत से व्यक्ति का जीवन बर्बाद हो रहा था।
शराबबंदी एक साहसिक कदम है। जब से बिहार में शराबबंदी लागू हआ है, तब से निश्चय ही सड़क दुर्घटनाएँ, घरेलू हिंसा, यौन अपराध,
सामाजिक हिंसा, जातीय तनाव, साम्प्रदायिक दंगे कम हुए हैं। बिहार सरकार ‘ने शराबंदी को जिस कठोरता से लागू किया है, वह अत्यन्त सराहनीय है। शराब का सेवन नेता, मंत्री पदाधिकारी पुलिस इत्यादि सभी वर्ग के लोग करते थे। मदिरापन करने वालों को तर्क है कि शराबबंदी व्यक्ति के खाने पीने के मूल अधिकार का हनन है। शराबबंदी कानून के अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति को झूठे मुकदमें में फंसाया जा सकता है। शराबबंदी से सरकारी राजस्व की बड़ी हानि है। शराब के साथ ताड़ी पर प्रतिबंध उचित नहीं है। ताड़ी गाँव के श्रमजीवी वर्ग का पेय पदार्थ है। पान-मशाला, खैनी, तम्बाकू इत्यादि नशा सामग्री पर प्रतिबंध नशाखोरों को असह्य हो रहा है। नशाखोरों को नशाबंदी असाय तो लगेगा ही, लेकिन यह उनके लिए कड़वी दवा की तरह है जो उनके कुसंस्कारों, कुप्रवृत्तियों से मुक्ति के लिए जरूरी है। शराबबंदी से सबसे अधिक आहत दलित वर्ग के लिए लोग हो रहे हैं, लेकिन सबसे अधिक लाभ इन्हें ही होगा।
शराबबंदी से सरकारी राजस्व का घाटा तो हुआ है, लेकिन इससे पारिवारिक अपव्यय रूका है। गरीब लोग जिस पैसे को शराब में उड़ा जाते थे, उन्हें वे अब अपने बच्चों के वस्त्र, आहार एवं शिक्षा पर खर्च करेंगे। नशबंदी से लोगों में नया संस्कार जन्म लेगा। लोगों में विवेक, सुविचार जन्म लेगा। सामाजिक सद्भाव का एक वातावरण तैयार होगा। सुसभ्य और सुसंस्कृत बिहार का निर्माण होगा। इस्लाम में शराब हराम है। हिन्दु धर्म शास्त्रों में भी मदिरापन वर्जित और प्रतिबंधित है। बौद्ध और जैन-धर्म में हिंसा और नशा पूर्णतः वर्जित है।
पूर्व के राज्य सरकारों एवं शराब व्यावसायियों ने अतिशय धन कमाने की लालच में शराब उत्पादन और बिक्री को व्यापक उद्योग बना दिया था । भारत के अन्य राज्यों में भी शराबबंदी की आवश्यकता है। भारत नशामुक्त देश बने तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
(ङ) गणतंत्र दिवस-गणतंत्र दिवस अर्थात् 26 जनवरी, 1950 भारत का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्व है। इस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था।
अन्य अनेक कार्यक्रमों का आयेजन करती हैं। देश की राजधानी दिल्ली में इस राष्ट्रीय पर्व के लिए विशेष समारोह का आयोजन किया जाता है, जिसकी भव्यता देखते ही बनती है। समूचे देश के विभिन्न भागों में असंख्य व्यक्ति इस समारोह में सम्मिलित होने तथा इसकी शोभा देखने के लिए आते हैं।
26 जनवरी को हमारा राष्ट्र जनतंत्र था। इस दिन शहीदों के बाद में हमलोग नतमस्तक होकर झंडा फहराते हैं। नई दिल्ली के इंडिया गेट के निकट राष्ट्रपति राष्ट्रीय धुन के साथ ध्वजारोहण करते हैं। उन्हें 31 तोपों की सलामी दी जाती है। राष्ट्रपति जल, नभ तथ थल-तीनों सेनाओं की टुकड़ियों का अभिवादन स्वीकार करते हैं। सैनिकों का सीना तानकर अपनी साफ-सुथरी. वेशभूष में कदम-से-कदम मिलाकर चलने का दृश्य बड़ा मनोहारी होता है। इस भव्य दृश्य को देखकर मन में राष्ट्र के प्रति असीम भक्ति तथा हृदय में असीम उत्साह का संचार होने लगता है। इन सैनिक टुकड़ियों के पीछे आधुनिक शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित वाहन निकलते हैं। इनके पीछे स्कूल कॉलेज के छात्र-छात्राएँ एन. सी. सी. की वेशभूषा में सज्जित कदम-से-कदम मिलाकर चलते हैं।
मिलिट्री तथा स्कूलों के अनेक बैंड सारे वातावरण को देश-भक्ति तथा राष्ट्र-प्रेम की भावना से गुंजायमान कर देते हैं। विभिन्न प्रदेशों की झाँकियाँ वहाँ के सांस्कृतिक जीवन, वेश-भूषा, रीति-रिवाजों, औद्योगिक तथा सामाजिक क्षेत्र में आए परिवर्तनों का चित्र प्रस्तुत करने में पूरी तरह समर्थ होती हैं। उन्हें देखकर भारत का बहुरंगी रूप सामने आ जाता है । यह पर्व अतीव प्रेरणादायी होता हैं।
प्रश्न 3.
पासबुक खो जाने की शिकायत बैंक मैनेजर को पत्र लिखकर करें। (1 x 5 = 5)
उत्तर:
सेवा में,
शाखा मैनेजर,
स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया,
महेन्द्र शाखा, पटना।
विषय : पास बुक खोने के संबंध में ।
महोदय,
निवेदन है कि दिनांक 16-3-2014 को मैं गया से ट्रेन द्वारा पटना या रहा था। ट्रेन में बहुत भीड़ थी। पटना जं. पर ट्रेन से उतरते समय किसी ने मेरा बैग मेरे हाथ से झपट कर चंपत हो गया । उसी बैग में मेरा पासबुक भी था। इसकी लिखित सूचना मैंने पटना जंक्शन के जी. आर. पी. को भी दे दी है। मेरी खाता संख्या 4914है तथा खाते में 7000 रु. (सात हजार रु.) मात्र जमा है। पासबुक खो जाने के कारण मुझे रकम जमा करने और निकासी करने में असुविधा होगी। अतः मेरी असुविधा को ध्यान में रखते हुए मेरा दूसरा पासबुक निर्गत करने की कृपा करें। आपकी इस कृपा के लिए मैं सदा आपका आभारी रहूँगा।
भवदीय
रिषभ राज
दिनांक : 18/03/20…….
खाता संख्या-4914
(or)
अथवा, अपने मित्र को एक पत्र लिखिये, जिसमें वर्तमान बिहार के विकास की दशा और दिशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अथवा
अशोक राजपथ
पटना
दिनांक : 20.04.20….
प्रिय मित्र,
तम्हारा पत्र मिला जिसे पढ़कर प्रसन्नता हुई कि तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा है और तुम अपने पढ़ाई में ध्यान दे रहे हो । मैं भी यहाँ सकुशल हूँ और तुम्हारी कुशलता की कामना करता हूँ।।
हमलोग बिहारवासी हैं। वर्तमान समय में नयी सरकार के अंतर्गत बिहार में विकास की दिशा और दशा कुछ अच्छी है। अभी बिहार हर क्षेत्र में विकास कर रहा है। नया बिहार में विकास की बहार हो चुकी है। कृषि, व्यवसाय, सड़क, पुल सभी क्षेत्र में विकास देखी जा रही है। हमारे राज्य बिहार में विकास की रफ्तार तेज हो चुकी है। सड़कों के निर्माण से शहरों और गाँवों को तेजी के साथ जोड़ा गया है। पुलों के निर्माण में आवागमन की रफ्तार
तेज हुई है। वास्तव में प्रत्येक आर्थिक क्षेत्र में विकास की गति बढ़ रही है। अभी बिहार की दशा अनुकूल तथा अच्छी है। साथ ही विकास की दिशा भी नयी सरकार के नेतृत्व में अच्छी चल रही है इसकी दिशा को देखने से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में बिहार का समुचित विकास होगा और इसके पिछड़ेपन को दूर किया जा सकेगा। इस दशा और दिशा की सफलता के लिए सरकार के साथ-साथ जनता का सहयोग भी आवश्यक है।
धन्यवाद !
तुम्हारा मित्र
रजनीश कुमार
प्रश्न 4.
सप्रसंग व्याख्या करें: (2 x 4 = 8)
(क) आदमी यथार्थ को जीता ही नहीं, यथार्थ को रचता भी है।
(ख) प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसी दृष्टि से देखती है जिस दृष्टि से लता अपने वृक्ष को देखती है।
(ग) पवन की प्राचीर में एक जला जीवन जा रहा मुक ।
(घ) बड़ा कठिन है बेटा खोकर माँ को अपना मन समझाना
उत्तर:
(क) प्रस्तुत पंक्ति समर्थ लेखक मलयज के 10 मई, 1978 की डायरी की है। मनुष्य अपनी दैनन्दिन जिन्दगी में जो कुछ करता है, जिन संघर्षों के साथ रहता है, वह यथार्थ है। जीवमात्र को जीने के लिए हमेशा संघर्ष करना पड़ता है। वह इन संघर्षों को जीता है। यदि संघर्ष ना रहे तो जीवन का कोई मोल ही न हो। मनुष्य इन यथार्थों के सहारे जीवन जाती है। वह इन यथार्थ का भोग भी करता है और भोग करने के दौरान इनकी सर्जना भी कर देता है। संघर्ष को जन्म देती है। कहा गया है गति ही जीवन है और जड़ता मृत्यु । इस प्रकार आदमी यथार्थ को जीता है।
भोगा हुआ यथार्थ दिया हुआ यथार्थ है। हर एक अपने यथार्थ की सर्जना करता है और उसका एक हिस्सा दूसरे को देता है। इस तरह यह क्रम चलता रहता है। इसलिए यथार्थ की रचना सामाजिक सत्य की सृष्टि के लिए एक तैतिक कर्म हैं।
(ख) प्रस्तुत संदर्भ हमारी पाठ्यपुस्तक दिगन्त भाग-2 के गद्य-खंड में संकलित ‘अर्धनारीश्वर’ पाठ से लिया गया है। इसके लेखक रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। विद्वान लेखक दिनकर यह बताना चाहा है कि नारी किस प्रकार पराधीन होकर घर के भीतर कैद होकर रह गई । वह ठीक उसी प्रकार की हो गई जिस प्रकार किसी वृक्ष से लिपटी हुई लता वृक्ष पर ही आश्रित रहती है। उसी वृक्ष से वह भोजन ग्रहण करती है, नारी भी लता की भाँति आर्थिक रूप से नर पर आश्रित हो गई । लता यदि नारी रूप है तो वृक्ष उसका नर रूप है वह वृक्ष पर आश्रित है, अपने भोजन के लिए। उसकी वह निर्भरता आर्थिक निर्भरता ही कही जाएगी। इस दृष्टिकोण से नर पत्नी को फूलों सा आनंदमय भार समझता है और पत्नी अपने को पति के ऊपर आश्रित ठीक वृक्ष में लिपटी हुई लता की तरह।
(ग) प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 जो महाकवि जयशंकर प्रसाद रचित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता ऐ उद्धृत हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में नारी कहना चाहती है कि इस अभोग मानव जीवन ने झुलसा डाला है और जिन्हें सांसारिक अग्नि से भागने का भी कोई उपाय नहीं है, ऐसे दु:ख-दग्ध लोगों को आशारूपी वसंत की रात के सम्मान सुख का आँचल हूँ मैं। उनके सुलझे मन को हरा-भरा बनाकर फूल-सा खिला देती हूँ।
(घ) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग-2 के “पत्र-वियोग” शीर्षक कविता से संकलित है। सभद्रा कुमारी चौहान ने इस कविता को वेदनापूर्ण शैली में रचना की हैं। कवयित्री की संवेदना इन पंक्तियों में चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाती है । वह पुत्र-वियोग में अपना मानसिक संतुलन कुछ इस प्रकार खो देती है कि अपने बेटे को अब कभी भी उसका साथ नहीं छोड़ने को कहती है। वह कहती है कि अब अपनी माँ को इस प्रकार छोड़कर कभी मत जाना । अपने बेटे को खोकर अपने मन को समझाना बहुत कठिन काम है। इस प्रकार, कवयित्री भावावेश में अपने बेटे को अपने निकट बैठा हुआ अनुभव करती है। उसके हृदय की संवेदना पराकाष्ठा पर पहुँच जाती है जब यह कहती है
“मेरे भैया मेरे बेटे अब माँ को यों छोड़ न जाना”
अपने पुत्रशोक में वह भूल जाती है कि उसके बेटे की मृत्यु हो चुकी है और अब वह उससे काफी दूर जा चुका है अब कभी नहीं आएगा। किन्त. पुत्र-मोह में वह उसे अपने निकट पाती है तथा कभी भी उसका साथ नहीं छोड़ने का आग्रह करती है। माँ के वात्सल्य प्रेम की मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति इन पंक्तियों में व्यक्त होती है। “बड़ा कठिन है बेटा खोकर माँ को अपना मन समझाना। इस पंक्ति में कवयित्री ने अपनी कविता में माँ की ममता की सर्वथा उपयुक्त विवेचना की है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर 50 से 70 शब्दों में दें। (2 x 5 = 10)
(क) उसने कहा था दिव्य प्रेम पर प्राणोत्सर्ग की कहानी है या नहीं?
(ख) तिरिछ क्या है? कहानी में यह किसका प्रतीक है?
(ग) गाँधीजी के शिक्षा-सम्बन्धी आदर्श क्या है?
(घ) पुंडलीकजी कौन थे?
(ङ) ‘कड़बक’ के कवि की सोच क्या है?
(च) तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते हैं ?
(छ) पुत्र को ‘छौना’ कहने में क्या भाव छिपा है उसे उद्घाटित करें।
(ज) दानव दुरात्मा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(क) “उसने कहा था’ दिव्य प्रेम पर प्राणोत्सर्ग की कहानी हैं। लहना सिंह अपने बचपन की छोटी-सी मुलाकात में उसके मन सूबेदारनी के प्रति जो प्रेम उदित हुआ था उसे वे अंततः तक बनाए रखता है। लहना सिंह अपनी चिंता न करके उसने सूबेदारनी के पति एवं बेटे की रक्षा की, क्योंकि यह ‘उसने कहा था’। अतः यह एक दिव्य प्रेम की कहानी है।
(ख) ‘तिरिछ’ छिपकली प्रजाति का जहरीला लिजार्ड है जिसे ‘विषखापर” भी कहते हैं। कहानी में ‘तिरिछ’ प्रचलित विश्वासों और रूढियों का प्रतीक है।
(ग) शिक्षा का अर्थ जीवन के सत्य से परिचित होना और सम्पूर्ण जीवन की प्रक्रिया को समझने में हमारी मदद करना है, क्योंकि जीवन विलक्षण है ये पक्षी, ये फूल ये वैभवशाली वृक्ष, यह आसमान, ये सितारे, ये मत्स्य सब हमारा जीवन है। जीवन दीन है, जीवन अमीर भी। जीवन गढ़ है जीवन मन की प्रच्छन्न वस्तुएँ महत्वाकांक्षाएँ वासनाएँ, भय, सफलताएँ एवं चिन्ताएँ हैं। केवल इतना ही नहीं अपितु इससे कहीं ज्यादा जीवन है। हम कछ परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर लेते हैं, हम विवाह कर लेते हैं बच्चे पैदा कर लेते हैं और इस प्रकार अधिकारिक यंत्रवत बन जाते हैं। हम सदैव जीवन से भयाकुल, चिन्तित और भयभीत बने रहते हैं। शिक्षा इन सबों का निराकरण करती है। भय के कारण मेधाशक्ति कुंठित हो जाती है। शिक्षा इसे दूर करता है। शिक्षा समाज के ढाँचे के अनुकूल बनने में आपकी सहायता करती है या आपको पूर्ण स्वतंत्रता होती है। वह सामाजिक समस्याओं का निराकरण करे शिक्षा का यही कार्य है।
(घ) पडलीकजी भितिहरवा विद्यालय के अध्यक्ष थे । भितिहरवा आश्रम – में रहकर बच्चों को पढ़ाने के लिए और ग्रामवासियों के दिल से भय दर करने के लिए रहे थे।
(ङ) यहाँ पर कवि ने लेई के रूपक से यह बताने की चेष्टा की है कि उसने अपनी कथा के विभिन्न प्रसंगों को किस प्रकार एक ही सत्र में बाँधा है। कवि कहता है कि मैंने अपने रक्त की लेई बनाई गई है, अर्थात् कठिन साधाना की है। यह लेई या साधना प्रेमरूपी आँसुओं से अप्लावित की गई है। कवि का व्यंग्यार्थ है कि इस कथा की रचना उसने कठोर सफी साधना के फलस्वरूप की है और फिर इसको उसने प्रेमरूपी आँसुओं के विशिष्ट आध्यात्मिक विरह से पुष्ट किया है। लौकिक कथा को इस प्रकार अलौकिक साधना और आध्यात्मिक विरह से परिपुष्ट करने का कारण भी जायसी ने लिखा है-“अपनी काव्याकृति के द्वारा लोक जगत् में अमरत्व प्राप्ति की प्रबल इच्छा ।”
(च) तुलसी सीधे राम से न कहकर बात सीधे सीता से इसलिए कहलवाना चाहते हैं कि सीता राम की प्रिया, धर्मपत्नी है। कोई भी पुरुष अपनी पत्नी को अधिकतम प्रेम करता है उसकी हर बात मानता है और हर नारी अपने पति के लिए मानिनी होती है। पति पत्नी की कहे बात टाल नहीं पाते हैं। उसे ज्यादा ध्यान से सुनते हैं और उसपर अमल करते हैं उसी तरह राम की सीता भी हैं । अतः, तुलसी अपनी बात को प्रभावी ढंग से पहुँचाने के लिए कवि सीता से कहते हैं।
(छ) ‘छौना’ का शाब्दिक अर्थ होता है ‘छोटा बच्चा’। यहाँ पुत्र को. छौना कहने में असीम वात्सल्यता और अगाध प्रेम परखता भाव छिपा हुआ है। पारिवारिक रिश्तों के बीच माँ-बेटे के संबंध की एक विलक्षण आत्म प्रतीति में स्थायित्व एवं ममता की उत्कटता का भाव भी छिपा हुआ है।
(ज) दानव दुरात्मा से कवि का अभिप्राय है कि यह अमानवतावादी दृश्टिकोण किसी भी महादेशीय बंधनों से बंधा नहीं होता है, बल्कि यह इन सबों से परे होता है। यह भौगोलिक ऐतिहासिक सीमा को नहीं मानता है, अर्थात् सभी जगहों पर व्याप्त है। जिस प्रकार सभी जगहों पर मानवीय मूल्य एक समान होता है, उसी प्रकार अमानवीय मूल्य भी सभी जगह एक समान हैं, उसमें किसी प्रकार की हेर-फेर की गुंजाइश नहीं।
प्रश्न 6.
निम्न प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें। (5 x 3 = 15)
(क) अगर हममें वाशक्ति नहीं होती, तो क्या होता ?
(ख) विद्यार्थी को राजनीति में भाग क्यों लेना चाहिए ?
(ग) ‘रोज’ शीर्षक कहानी के आधार पर मालती का चरित्र-चित्रण करें।
(घ) ‘पुत्र-वियोग’ कविता का भावार्थ लिखें।
(ङ) तुमुल कोलाहल कलह में’ कविता का भावार्थ लिखें।
(च) अधिनायक’ शीर्षक कविता का भावार्थ लिखें।
उत्तर:
(क) प्राणियों में मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो वाकशक्ति के द्वारा अपने विचारों और अपने सुख-दुःख की बातों को व्यक्त करने तथा दूसरे के विचारों और सुख-दुख की बातों को समझने की क्षमता रखता है। इंसान ने इस वाक्शक्ति के माध्यम से ही अपने इस विशेष गुण को आदिकाल से आज तक किए गए प्रयोगों एवं अभ्यासों विकसित किया और सँवारा है।
वाक्शक्ति के माध्यम से विचार के आदान-प्रदान का सबसे सरल माध्यम है जिससे हम किसी पर अपनी छाप छोड़ सकते हैं, अपने व दूसरों के अव्यक्त गुणों को उभार कर सामने ला सकते हैं और दूसरे के गुणों को ग्रहण कर लाभान्वित हो सकते हैं।
अगर मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियाँ अपनी-अपनी व्यक्तियों में अविकल रहती और यह वाकशक्ति या बोलने की शक्ति इंसानों में न होती. तो हम नहीं जानते कि इस गूंगी सृष्टि की क्या स्थिति होती। सभी लोग जैसे-तैसे. जहाँ-तहाँ, लंज-पंज स्थिति में किसी कोने में बैठा दिए गए होते और जो कुछ सुख-दु:ख का अनुभव हम अपनी दूसरी इन्द्रियों के द्वारा करते उसे अवाक् होने के कारण आपस में एक-दूसरे से कुछ न कह-सुन सकते ।
(ख) विद्यार्थी देश के कर्णधार होते हैं। आनेवाले काल में देश की बागडोर अपने हाथ में लेनी है। उन्हें देश की समस्याओं और सुधार में हिस्सा लेना है। अतः, देश के विकास के लिए विद्यार्थी को राजनीति में भाग लेना चाहिए क्योंकि सत्ता राजनीतिकों के हाथ में होती है। छात्र-जीवन में विद्यार्थी को पढ़ाई के साथ-साथ अन्य सामाजिक कार्य भी देखने हैं। भगत सिंह मानते हैं कि नौजवान “वह चढ़ सकता है उन्नति की सर्वोच्च शिखर पर, वह गिर
सकता है अर्द्ध-पतन के अंधेरे खंदक में” विद्यार्थियों के हाथ में हैं पतितयों – के उत्थान । वे ही क्रांति का संदेश देश के कोने-कोने में पहुँचा सकते हैं। फैक्ट्री, कारखाना, गंदी बस्तियों और गाँवों की जर्जर झोपड़ियों में रहने वालों के बीच क्रांति की अलख जगा सकते हैं जिससे आजादी आएगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असंभव होगा। छात्रों में देश की समझदारी और समस्याओं में सुधार की योग्यता, होना बेहद जरूरी है और जो शिक्षा ऐसी नहीं कर सकती है वह निकम्मी शिक्षा है जो केवल क्लर्क पैदा कर सकती है। हम सभी जानते हैं कि हिन्दुस्तान को ऐसे सेवकों की जरूरत है जो तन, मन
और धन देश पर अर्पित कर दे औश्र पागलों की तरह पूरी उम्र देश सेवा में बिता दे । ये वही विद्यार्थी या नौजवान कर सकते हैं और पागलों की तरह पूरी उम्र देश सेवा में बिता दे । ये वही विद्यार्थी या नौजवान कर सकते हैं जो किन्हीं जंजलों में न फंसे हों। जंजालों में पड़ने से पहले विद्यार्थी तभी सोच सकते हैं यदि उन्होंने कुछ व्यावहारिक ज्ञान भी हासिल किया हो। यह व्यवहारिक ज्ञान ही राजनीति है। अतः, विद्यार्थी पढ़े मगर साथ ही राजनीति का ज्ञान भी हासिल करे । देश को सही दिशा देने के लिए विद्यार्थी को राजनीति का पाठ जरूर पढ़ना चाहिए।
(ग) ‘रोज कथा साहित्य में क्रांतिकारी परिवर्तन के प्रणेता महान कथाकर सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय की सर्वाधिक चर्चित कहानी है। प्रस्तुत कहानी में ‘संबंधों’ की वास्तविकता को एकान्त वैयक्तिक अनुभूतियों से अलग से जाकर सामाजिक संदर्भ में देखा गया है। मध्यम वर्ग की पारिवारिक एकरसता के जितनी मार्मिकता से कहानी व्यक्त कर सकी है वह उस युग की कहानियों में विरल है।
लेखक अपने दूर के रिश्ते की बहन मालती जिसे सखी कहना उचित है, से मिलने अठारह मील पैदल चलकर पहँचता है। मालती और लेखक का जीवन इकट्ठे खेलने, पिटने स्वेच्छता एवं स्वच्छता तथा भ्रातृत्व के छोटेपन बँधनों से मुक्त बीता था। आज मालती विवाहिता है, एक बच्चे की माँ भी
है। वार्तालाप के क्रम में आए उतार-चढ़ाव में लेखक अनुभव करता है कि मालती की आँखों में विचित्र-सा भाव है, मानों वह भीतर कहीं कुछ चेष्टा कर रही हो, किसी बीती बात को याद करने की, किसी बिखरे हुए वायुमंडल को पुनः जगाकर गतिमान करने की, किसी टूटे हुए व्यवहार तंतु का पुनर्जीविका करने की, और चेष्टा में सफल न हो चिर विस्मृत हो गया हो । मालती रोज कोल्हू के बैल की तरह व्यस्त रही है। उसका जीवन पँगीन मर्ज के समान है जिसका ऑपरेशन उसके डॉक्टर पति द्वारा किया जाता है। पूरे दिन काम करना, बच्चे की देखभाल करना और पति का इंतजार करना इतने में ही मानों उसका जीवन सिमट गया है।
वातावरण, परिस्थिति और उसके प्रभाव में ढलते हुए एक गृहिणी के चरित्र का मनोवैज्ञानिक उद्घाटन अत्यंत कलात्मक रीति से लेखक यहाँ प्रस्तुत करता है। डॉक्टर पति के काम पर चले जाने के बाद का सारा समय मालती को घर में एकाकी काटना होता है। उसका दुर्बल, बीमार और चिड़चिड़ा पुत्र हमेशा सोता रहता है या रोता रहता है। मालती देखभाल करती हुई सुबह से रात ग्यारह बजे तक घर के कार्यों में अपने को व्यस्त रखती है। उसका जीवन ऊब और उदासी के बीच यंत्रवत चल रहा है। किसी तरह के मनोविनोद, उल्लास उसके जीवन में नहीं रह गए है। जैसे वह अपने जीवन का भार ढोने में ही घुल रही हो।
इस प्रकार लेखक मध्यवर्गीय भारतीय समाज में घरेलू स्त्री के जीवन और मनोदश पर सहानुभूतिपूर्ण मानवीय दृष्टि केन्द्रिय करता है। कहानी के गर्भ में अनेक सामाजिक प्रश्न विचारोत्तेजक रूप में पैदा होते हैं।
(घ) सुभद्रा कुमारी चौहान मूलतः राष्ट्रीय सांस्कृतिक धारा की कवयित्री है। परंतु सामाजिकता पर ध्यान गया है। उनका । कवयित्री की इस कविता में एक माँ की पुत्र की असमय मृत्यु होने पर उसकी स्थिति क्या हो सकती है उसी का चित्रण है। इस कविता में कवयित्री कहती है कि आज परा विश्व, संसार हँस रहा है, सभी ओर खुशी की लहर है, परंतु इस विश्व में सिर्फ एक मैं दु:खी हूँ जो मेरा ‘खिलौना’ खो गया है। ‘खिलौना’ यहाँ पुत्र के प्रतीक के रूप में आया है। एक बच्चे के लिए सबसे प्यारी वस्तु उसका खिलौना होता है। यदि उसका खिलौना खो जाता है तो वह दुखी हो जाता है। परंतु जैसे ही मिलता है खुशी का ठिकाना न रहता है। उसी तरह एक माँ के लिए पुत्र खिलौने की भाँति ही होता है। माँ जब आती है बच्चे पुचकारती हुई उसे आती है ।
बच्चा उसकी जिन्दगी का अहम हिस्सा हो जाता है । वह एक पल भी उसके बना रह नहीं पाती। माँ अपने पुत्र को कहीं जाने नहीं देती इसलिए कि उसे कहीं सर्दी न लग जाए । अतः आँचल की ओट से अपनी गोद से नहीं उतारती । पुत्र जैसे ही ‘माँ’ पुकारता कि माँ सब काम छोड़ते हुए दौड़ी चली आती । ये पंक्तियाँ माँ का पुत्र के प्रति प्रगाढ़ प्रेम को दर्शाती हैं। यही नहीं बच्चा जब नहीं सोता है तब उसे थपकी दे-देकर लोरी सुनाकर सुलाती है। अपने पुत्र के मुख पर मलिनता देखकर रात भर जाग कर बिताती है।
(ङ) ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ प्रस्तुत कविता ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में छायावाद के आधार कवि श्री जयशंकर प्रसाद के कोलाहलपूर्ण कलक के उच्च स्वर (शोर) से व्यथित मन की अभिव्यक्ति है। बिन्दु कवि निराश तथा हतोत्साहित नहीं है। कवि संसार की वर्तमान स्थिति से क्षुब्ध अवश्य है, किन्तु उन विषमताओं एवं समस्याओं में भी उन्हें आशा की किरण दृष्टिगोचर होती है। कवि की चेतना विकल होकर नींद के पुल को ढूँढने लगती है।
उस समय वह थकी-सी प्रतीत होती है, किन्तु चंदन की सुगंध से सुवासिन शीतल पवन उसे संबल के रूप में सांत्वना एवं स्फूर्ति प्रदान करती है। दु:ख में डूबा हुआ अंधरकारपूर्ण मन जो निरंतर विषाद से परिवेष्टित है, अतः कालीन खिले हुए पुरुषों के सम्मिलन (सम्पर्क) से उल्लासित हो उठा है। व्यथा का घोर अंधकार समाप्त हो गया है। कवि जीवन की अनेक बाधाओं एवं विसंगतियों का भुक्तभोगी एवं साक्षी है। कवि अपने कथन की सम्पुष्टि के लिए अनेक प्रतीकों एवं प्रकृति का सहारा लेता है यथा-मरु-ज्वाला, चातकी, घाटियाँ, पवन को प्राचीर, झुलसवै विश्व दिन, कुसुम ऋतु-रात, नीरधर, अश्रु-सर मधु मरन्द-मुकलित आदि ।
इस प्रकार कवि के जीवन के दोनों पक्षों का सूक्ष्म विवेचन किया है। वह अशांति, असफलता, अनुपयुक्ता तथा अराजकता से विचलित नहीं है।
(च) ‘अधिनायक’ शीर्षक कविता के रचयिता रघवीर सहाय हैं। वे हिन्दी के प्रसिद्ध कवि एवं पत्रकार हैं। कविता का मूलभाव तानाशाह के प्रति रोषपूर्ण तिक्त कटाक्ष हैं। राष्ट्रीय गान में निहित ‘अधिनायक’ शब्द को लेकर यह व्यंग्यात्मक टिप्पणी है। आजादी हासिल होने के इतने वर्षों के बाद भी आम आदमी की हालत में कोई बदलाव नहीं आया । कविता में ‘हरचरना’ इसी आदमी का प्रतिनिधि है ।
वह एक स्कूल जाने वाला बदहाल गरीब लड़का है जो अपनी आर्थिक-सामाजिक हालत के विपरीत औपचारिकतावंश सरकारी स्कूल में पढ़ता है। राष्ट्रीय त्योहार के दिन झंडा फहराए जाने के जलसे में वह ‘फटा सुथन्ना’ पहने वही राष्ट्रगान दुहराता है जिसमें इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी जाने किस ‘अधिनायक’ का गुणगान किया गया है। सत्ताधारी वर्ग बदले हुए जनतांत्रिक संविधान से चलती इस व्यवस्था में भी राजसी ठाठ-बाट वाले भड़कीले रोब-दाब के साथ इस जलसे में शिरकत कर अपना गुणगान अधिनायक के रूप में करवाये जा रहा है। कविता में निहितार्थ ध्वनि यह है मानो इस सत्ताधारी वर्ग की प्रछन्न लालसा हो सचमुच अधिनायक, अर्थात् तानाशाह बनने की।
राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत के भाग्य विधाता है ? हरचरना नामक बालक फटे-चिथड़े पुराने ढंग की ढीली-ढाली हाफ पैंट पहने उस गान का गुण गाता है।
झंडा फहराने के बाद मखमल, टमटम, बल्लम, तुरही, छतरी और चंवर क साथ तोपों की सलामी कौन लेता है? ढोल बजाकर जय-जय कौन कराता है?
पूरब-पश्चिम से नंगे-बूचे नरकंकाल आते हैं। सिंहासन पर बैठकर उनको तगमे-मेडल कौन लगाता है?
कौन इस जन-मण-मन का अधिनायक है? कौन तानाशाह है? कौन अपने को महाबली कहता है? उसका बाजा डरकर मन से या बेमन से रोज बजाता है। यह कौन भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश का नया तानाशाह बनना चाहता है।