Bihar Board 12th Hindi Model Papers
Bihar Board 12th Hindi 50 Marks Model Question Paper 3
समय 1 घंटे 37.5 मिनट
पूर्णांक 50
परीक्षार्थियों के लिए निर्देश
- परीक्षार्थी यथा संभव अपने शब्दों में उत्तर दें।
- दाहिनी ओर हाशिये पर दिये हुए अंक पूर्णांक निर्दिष्ट करते हैं।
- उत्तर देते समय परीक्षार्थी यथासंभव शब्द-सीमा का ध्यान रखें ।
- इस प्रश्न-पत्र को पढ़ने के लिए 7.5 मिनट का अतिरिक्त समय दिया गया है।
- यह प्रश्न-पत्र दो खण्डों में है-खण्ड-अ एवं खण्ड-ब ।
- खण्ड-अ में 25 वस्तुनिष्ठ प्रश्न हैं, सभी प्रश्न अनिवार्य हैं । (प्रत्येक के लिए 1 अंक निर्धारित है), इनका उत्तर उपलब्ध कराये गये OMR शीट में दिये गये वृत्त को काले/नीले बॉल पेन से भरें। किसी भी प्रकार के व्हाइटनर/तरल पदार्थ/ब्लेड/नाखून आदि का उत्तर पत्रिका में प्रयोग करना मना है, अथवा परीक्षा परिणाम अमान्य होगा। 6. खण्ड-ब में कुल 5 विषयनिष्ठ प्रश्न है। प्रत्येक प्रश्न के लिए 5 अंक निर्धारित है।
- किसी तरह के इलेक्ट्रॉनिक यंत्र का उपयोग वर्जित है।
खण्ड-अ
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न संख्या 1 से 25 तक के प्रत्येक प्रश्न के साथ चार विकल्प दिए गए हैं, जिनमें से एक सही है। अपने द्वारा चुने गए सही विकल्प को OMR-शीट पर चिन्हित करें। (25 x 1 = 25)
प्रश्न 1.
पंच परमेश्वर के लेखक कौन हैं ?
(A) ध्यानचंद
(B) प्रेमचंद
(C) ज्ञानचंद
(D) रामवृक्ष बेनीपुरी
उत्तर:
(A) ध्यानचंद
प्रश्न 2.
‘गौरा’ किसकी रचना है?
(A) विमल कुमार
(B) महादेवी वर्मा
(C) प्रेमचंद
(D) रामवृक्ष
उत्तर:
(B) महादेवी वर्मा
प्रश्न 3.
बेनीपुरी – ‘मंगर’ किस कोटि की रचना है?
(A) व्यंग्य
(B) कविता
(C) कहानी
(D) लेख
उत्तर:
(C) कहानी
प्रश्न 4.
महादेवी वर्मा रचित ‘गौरा’. साहित्य की कौन-सी विधा है ?
(A) कहानी
(B) शब्द चित्र
(C) निबंध
(D) नाटक
उत्तर:
(D) नाटक
प्रश्न 5.
‘भारतमाता ग्रामवासिनी’ कविता के कवि कौन है ?
(A) दिनकर
(B) सुमित्रानंदन पंत
(C) नागार्जुन
(D) जायसी
उत्तर:
(B) सुमित्रानंदन पंत
प्रश्न 6.
वामन किसे कहा गया ?
(A) ब्राह्मण
(B) पण्डित
(C) विष्णु
(D) इन्द्र
उत्तर:
(C) विष्णु
प्रश्न 7.
‘जीवन-संदेश’ के रचयिता हैं
(A) रहीम
(B) आरसी प्रसाद सिंह
(C) रामनरेश त्रिपाठी
(D) रामसागर त्रिपाठी
उत्तर:
(C) रामनरेश त्रिपाठी
प्रश्न 8.
हिमालय का संदेश’ किसके द्वारा लिखी गई ? ‘
(A) रामनरेश त्रिपाठी
(B) निराला
(C) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(D) आरसी प्रसाद सिंह
उत्तर:
(C) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
प्रश्न 9.
‘सुन्दर का ध्यान कहीं सुन्दर’ किसने लिखी?
(A) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(B) सुमित्रानंदन पंत
(C) गोपाल सिंह ‘नेपाली’
(D) रामनरेश त्रिपाठी
उत्तर:
(C) गोपाल सिंह ‘नेपाली’
प्रश्न 10.
इनमें से किस कवि को ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि मिली है ?
(A) सुभद्रा कुमारी चौहान
(B) कबीरदास
(C) रामधारी सिंह दिनकर
(D) सूरदास |
उत्तर:
(C) रामधारी सिंह दिनकर
प्रश्न 11.
‘आचरण’ का लिंग निर्णय करें।
(A) उभय लिंग
(B) स्त्रीलिंग
(C) पुल्लिग
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) पुल्लिग
प्रश्न 12.
‘दहेज’ का लिंग निर्णय करें।
(A) स्त्रीलिंग
(B) पुल्लिग
(C) उभयलिंग
(D) कोई नहीं
उत्तर:
(B) पुल्लिग
प्रश्न 13.
‘पुस्तक’ का लिंग निर्णय करें।
(A) पुल्लिग
(B) स्त्रीलिंग
(C) उभयलिंग
(D) कोई नहीं
उत्तर:
(B) स्त्रीलिंग
प्रश्न 14.
‘कारक’ के कितने भेद हैं ?
(A) पाँच
(B) छ:
(C) सात
(D) आठ
उत्तर:
(D) आठ
प्रश्न 15.
‘विशेषण’ के कितने भेद हैं?
(A) पाँच
(B) तीन
(C) चार
(D) छः
उत्तर:
(A) पाँच
प्रश्न 16.
‘काल’ के कितने भेद हैं ?
(A) दो
(B) चार
(C) तीन
(D) पाँच
उत्तर:
(C) तीन
प्रश्न 17.
निम्नलिखित में ‘सोना’ का पर्यायवाची शब्द है ?
(A) लोहा
(B) कनक
(C) जागना
(D) सो जाना
उत्तर:
(B) कनक
प्रश्न 18.
‘सरस्वती’ का पर्यायवाची शब्द बताएँ।
(A) लक्ष्मी
(B) दुर्गा
(C) काली
(D) शारदा
उत्तर:
(D) शारदा
प्रश्न 19.
‘पृथ्वी’ का पर्यायवाची शब्द लिखें।
(A) पाथेय
(B) भूपति
(C) भूमि
(D) भुधर
उत्तर:
(C) भूमि
प्रश्न 20.
‘दाँत-काटी रोटी होना’ मुहावरे का अर्थ स्पष्ट करें।
(A) मित्रता होना
(B) दाँत-रोटी का सम्बन्ध
(C) शत्रुता होना
(D) इनमें से ककोई नहीं
उत्तर:
(B) दाँत-रोटी का सम्बन्ध
प्रश्न 21.
‘पीठ दिखाना’ मुहावरे का अर्थ है
(A) हरा देना
(B) हरा कर भाग जाना
(C) साथ देना
(D) मर जाना
उत्तर:
(B) हरा कर भाग जाना
प्रश्न 22.
‘दिगम्बर’ का संधि विच्छेद बतायें।
(A) दिक + अम्बार
(B) दिक + अंबर
(C) दिगम् + बार
(D) दिक् + अम्बर
उत्तर:
(D) दिक् + अम्बर
प्रश्न 23.
‘पवित्र’ का संधि विच्छेद है
(A) प + इत्र
(B) पौ + इत्र
(C) पोई + त्र
(D) पो + इत्र
उत्तर:
(D) पो + इत्र
प्रश्न 24.
‘परीक्षा’ का संधि विच्छेद करें:
(A) परी + ईक्षा
(B) परि + ईसा
(C) परी + इक्छा
(D) परि + इक्षा
उत्तर:
(B) परि + ईसा
प्रश्न 25.
‘संधि’ के कितने प्रकार हैं?
(A) पाँच
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
उत्तर:
(C) तीन
खण्ड-ब :
गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
भावार्थ लिखें: – (5)
रहिमन पानी रखिये, बिना पानी सब सून ।
पानी गये न ऊबरें, मोती मानुस चून ।।
अथवा दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग-युग के तम के विषण्ण मन
वह अपने घर में, प्रवासिनी ।
उत्तर:
इस दोहे में कवि रहीम ने पानी शब्द के श्लिष्ट प्रयोग द्वारा अनेक अर्थों में उसके महत्व पर प्रकाश डाला है। रहीम कहते हैं कि पानी का । अनिवार्य महत्व होता है। इसलिए हर मूल्य पर इसकी रक्षा की जानी चाहिए। इसके अभाव में मोती, मनुष्य और चूना के लिए तो कुछ भी नहीं बच जाता है।
मोती, मनुष्य और चूना इन तीनों के संदर्भ में पानी के अलग-अलग अर्थ निकलते हैं। मोती के संदर्भ में इसका अर्थ चमक है, जिसे आभा या उर्दू में आब भी कहते हैं। आब पानी का ही उर्दू पर्यायवाची शब्द है। इस आब या पानी अर्थात् स्वाभाविक चमक के समाप्त हो जाने पर मोती जैसा रत्न भी । सर्वथा मूल्यहीन हो जाता है। इसलिए इसकी रक्षा की जानी चाहिए।
मनुष्य के संदर्भ में पानी का अर्थ प्रतिष्ठा है। व्यक्ति की प्रतिष्ठा नष्ट । हो जाने पर उसका कोई मूल्य नहीं रह जाता । उसमें निरर्थकता आ जाती है। प्रतिष्ठित व्यक्ति को पानीदार व्यक्ति भी कहा जाता है । प्रतिष्ठा चले जाने के बाद उसके पास कुछ नहीं बच जाता । इसलिए हर मूल्य पर उसे पानी अर्थात् प्रतिष्ठा की रक्षा करनी चाहिए।
चूने के संदर्भ में पानी का अर्थ जल है। जल सूख जाने पर चना किसी उपयोग के लायक नहीं रह जाता। उसे खाने या लगाने की उपयोगिता तभी | तक रहती है जबतक उसमें पानी रहता है। पानी समाप्त हो जाने के बाद
अनुपयोगी धूल जैसा रह जाता है। इसलिए हर सूरत में उसके लिए पानी की रक्षा करनी चाहिए।
श्लेष अलंकार के उदाहरण के रूप में यह दोहा सब से अधिक प्रसिद्ध है। इसमें पानी श्लिष्ट पद है। श्लिष्ट का अर्थ होता है-अनेक अर्थों वाला है।
अथवा, ‘भारतमाता ग्रामवासिनी’ की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि सुमित्रानंदन पंत ने परतंत्र भारत की दुर्दशा का चित्र अंकित किया है। भारतमाता के मुख पर दीनता छायी हुई है। उसकी दृष्टि झुकी हुई है, परंतु अपार बेबसी और विमूढ़ता के कारण खुली-की-खुली है। घोर निराशा से जैसे उसकी आँखें पथरा गयी हैं और असह्य दुख के भार से उसकी पलक जैसे जड़वत हो गयी है। उसके अधरों में एक मूक कराह व्याप्त है। तात्पर्य यह है कि भारतमाता की वाणी में सदैव एक वेदना गुंजती रहती है, अर्थात विदेशी शासकों के भय से वह खुलकर अपने दु:ख और अपनी वेदना को व्यक्त नहीं कर सकती। युग-युग से भारतमाता गुलामी के अंधेरे में पड़ी है इसलिए उसका मन अत्यन्त उदास एवं विषण्ण है। भारतमाता अपने घर में रहकर भी प्रवासिनी हो गयी है। यहाँ विदेशियों का आधिपत्य है, स्वदेशी विदेशी हो गए और उनके सब अधिकार जाते रहे।
प्रश्न 2.
रामवृक्ष बेनीपुरी रचित ‘मंगर’ पुस्तक पाठ का सारांश लिखें। (5)
अथवा, ‘जीवन का झरना’ शीर्षक कविता का सारांश लिखें।
उत्तर:
रामवृक्ष बेनीपुरी कलम के जादूगर कहे जाते हैं। देश की आजादी के लिए संघर्ष करते हुए 14 बार जेल जानेवाले प्रथम पत्रकार थे। साहित्य भी उन्होंने कम नहीं लिखा । समाजवाद का भी असर उनपर था।
‘मंगर’ बेनीपुरीजी का एक जीता-जागता शब्दचित्र है-शब्दों से खींचा गया चित्र है। मंगर एक कृषक मजदूर था।
हट्टा-कट्टा शरीर । कमर में भगवा । कंधे पर हल । हाथ में पैना । आगे-आगे बैल का जोड़ा। अपनी आवाज के अहास से ही बैलों को भगाता खेतों की ओर सुबह-सुबह जाता।
मंगर स्वाभिमानी था। मंगर का स्वाभिमान-गरीबों को स्वाभिमान था। मंगर ने किसी की बात कभी बर्दाश्त नहीं की और शायद अपने से बड़ा किसी को, मन से, माना भी नहीं। मंगर का यह हट्टा-कट्टा शरीर और उससे भी अधिक उसमें सख्त
का हल दस कट्ठा खेत जोतता, मंगर पन्द्रह कट्ठा जोत लेता और वह भी ऐसा महीन जोतता कि पहली चास में ही सिराऊ मिलना मुश्किल ।
मंगर की अर्द्धागिनी का नाम भकोलिया था।
मंगर को डेढ़ रोटी खाने को मिलती तो, आधी को दो टुकड़े कर दोनों बैलों को खिला देता । महादेव मुँह ताके और वह खाए-यह कैसे होगा । मंगर के लिए यह बैल नहीं, साक्षात् महादेव थे। .
मंगर का स्वभाव रूखा और बेलौस रहा है। किसी से लल्लो-चप्पो नहीं. लाई-लपटाई नहीं। दो टूक बातें, चौ-टूक व्यवहार । मंगर बेनीपुरीजी को बड़ा प्यार करता था।
मंगर कपड़ा भी कम ही पहनता था। हमेशा कमर में भगवा ही लपेटे रहता। मंगर को खूबसूरत शरीर मिला था।
काला-कलूटा फिर भी खूबसूरत । एक सम्पूर्ण सुविकसित मानव-पुतले का उत्कृष्ट नमूना वह था । लगातार की मेहनत ने उसकी मांसपेशियों को स्वाभाविक ढंग पर उभाड़ रखा था।
‘सूखी हाड़, ठाठ भई जारी-अब का लदबऽ हे व्यापारी’। वह गरीबी को अपने अक्खड़पन से धता बताये रहता । बुढ़ापे के लिए उसने कभी बचत नहीं की। कोई संतान भी नहीं रही, जो बुढ़ापे में उसकी लाठी का सहारा बनता । उसकी बेलौस बोली के कारण कोई उस पर दया भी नहीं करता था।
बुढ़ापे में उसकी अद्धांगिनी भकोलिया ने साथ दिया । मंगर-भकोलिया की आदर्श जोड़ी थी । भकोलिया का रंग जमुनिया काला था। उसका स्वभाव भी मंगर से मेल खाता था। भकोलिया मंगर की पूरी ईमानदारी से सेवा करती थी। मंगर को अर्द्धात मार गया। फिर भी उसमें उफान था ही। एक दिन उसका निधन हो गया-एक कारुणिक निधन | अच्छे लोगों को भगवान् भी जल्दी ही उठा लेता है। बेनीपुरीजी का यह शब्दचित्र अत्यन्त चुस्त-दुरुस्त एवं प्रभावशाली बन पड़ा है। सच है-बेनीपुरीजी कलम के जादूगर थे।
अथवा, कवि आरसी प्रसाद सिंह ने ‘जीवन का झरना’ शीर्षक कविता में हमेशा गतिशील रहने का संदेश दिया है। जीवन उस झरने के समान है जो अपने लक्ष्य तक पहुँचने की लगन लिए पथ की बाधाओं से मुठभेड़ करता बढ़ता ही जाता है। गति ही जीवन है और स्थिरता मृत्यु । अतः मनुष्य को भी निर्झर के समान गतिमान रहना चाहिए।
जीवन और झरना’ दोनों का स्वरूप और आचरण एक जैसा ही है। जिस प्रकार झरने के विषय में यह कहना कठिन है कि वह किस पहाड़ के हृदय से कब-कहाँ-क्यों फूट पड़ा। यह पहले किसी पतले से सोते के रूप में और फिर एक विशाल झरने के रूप में झरता हुआ समतल पर उतरकर दोनों किनारों के बीच एक विशाल नदी के रूप में बहने लगा है। इसी प्रकार इस मानव जीवन के बारे में सहसा नहीं कहा जा सकता है कि यह ‘मानव जीवन’ कब, कैसे, क्यों प्रारंभ हुआ, कब धरती पर मानवों का जीवन प्रवाह के रूप में उतर आया और सुख एवं दु:ख के दो किनारों के बीच निरंतर बहने लगा।
निर्झर अपनी जलपूर्णता में पूरी गतिशीलता से युक्त रहता है। वैसी अवस्था में, जवानी में भी सातत्यता ही एकमात्र स्वभाव होना चाहिए। जिस तरह झरना अपने मस्तीपूर्ण गान, कल-कल निनाद और आगे बढ़ते जाने के अलावा अन्य कोई चिंता नहीं करता तथा लक्ष्य नहीं रखता, उसी तरह मनुष्य-जीवन का लक्ष्य सतत विकास-पथ पर प्रगति करते जाना ही होना चाहिए। उसे अन्य तरह की चिन्ताओं में नहीं उलझना चाहिए।
यह कविता हमें याद दिलाती है कि जीवन में सुख-दुख दोनों को सहज भाव में अपनाते हुए हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए। हमें काम करने का उत्साह भर रहना चाहिए। आगे बढ़ने में विघ्न-बाधाएँ यदि आती हैं तो आएँ. हम उनका जमकर सामना करें, उनपर काबू प्राप्त करें और अपनी मंजिल की
ओर बढ़ चलें जैसे झरने की गति होती है। हमें भी वैसी ही मस्ती से भरा रहना चाहिए। कवि का कहना है कि निर्झर तथा जीवन दोनों के लिए गतिशीलता अनिवार्य है। जीवन में कर्म की प्रगतिशीलता ही उसे सार्थकता तथा जीवनन्तता का आकर्षण प्रदान करती है। अन्यथा जीवित अवस्था में होने के बावजूद मृत्युबोधक स्थायित्व या ठहराव आ जायेगा।
निर्झर का प्रवाह रुक जाने का मतलब है उसका स्रोत बंद हो चुका है और वैसी अवस्था में उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। जीवन में भी कर्मत गतिशीलता ही जीवन होने तक सृष्टि अथवा संसार के विकास की मुख्य शर्त है। गतिशीलता के अवरुद्ध हो जाने या जीवन में ठहराव आ जाने का तात्पर्य संसार या जीवन के अस्तित्व पर ही खतरा होता है। ठहराव निर्झर तथा जीवन दोनों के लिए समान रूप से अंत या मृत्यु का सूचक होता है क्योंकि दोनों का समान धर्म है।
प्रश्न 3.
बताएँ किस पाठ से उद्धत है: (1 x 5 = 5)
- महादेव मुँह ताके और मैं खाऊँ, यह कैसे होगा?
- हा ! मेरा गोपालक देश ।
- सब हैं लगे फर्म में कोई निष्क्रिय दृष्ट न आता ।
- धन्य है वह देश और वह जाति अपने साहित्य सेवियों का आदर | करके
- भगवती सरस्वती की उपासना करें।
उत्तर:
- मंगर
- गौरा
- जीवन संदेश
- कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सुन्दर का ध्यान कहीं सुन्दर
प्रश्न 4.
संक्षेपण करें: (5)
चरित्र-निर्माण जीवन की सफलता की कंजी है। जो मनुष्य अपने चरित्र की ओर ध्यान देता है, वही जीवन क्षेत्र में बिजली होता है । चरित्र-निर्माण से मनुष्य के भीतर ऐसी शक्ति का विकास होता है, जो उसे जीवन-संघर्ष में विजयी बनाती है। ऐसी शक्ति से वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। वह जहाँ कहीं भी जाता है, अपने चरित्र की शक्ति से अपना प्रभाव स्थापित कर लेता है। उसे देखते ही लोग उसके व्यक्तित्व सम्मुख नतमस्तक हो जाते हैं। उसके व्यक्तित्व में सूर्य का तेज, आँधी की गति औश्र गंगा के प्रवाह की अबाधता होती है।
Answer:
शीर्षक: चरित्र का महत्त्व चरित्र-निर्माण से मनुष्य में संघर्ष-शक्ति आती है। चरित्र के माध्यम से ही व्यक्ति जीवन में सफल और विजयी होता है। चरित्रवान अपनी अबाध प्रगति से सबको प्रभावित करता है। सभी नत-मस्तष्क होते हैं।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से किसी एक पर निबंध लिखें :(5)
(क) कर्म ही पूजा है
(ख) राष्ट्रीय एकता
(ग) समय का महत्त्व
(घ) महंगाई
(ङ) नारी सशक्तिकरण
उत्तर:
(क) कर्म ही पूजा है कर्म का शब्दिक अर्थ होता है-काम करना, अर्थात् जब हम किसी वस्तु की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हैं तो उसे ही कर्म कहा जाता है । काम अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के होते हैं। अच्छे कार्यों को ‘सत्कर्म’ तथा बुरे कार्यों को दुष्कर्म कहा जाता है। सत्कर्म की ही उपमा पूजा से की जाती है। अच्छे कार्यों द्वारा ही हम व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन कर सकते हैं। अत: अच्छे उद्देश्य के लिए किए जाने वाले कार्य को ही कर्म की संज्ञा दी जा सकती है।
काम किए बिना हमारा जीवन निष्क्रिय हो जाएगा। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ‘कर्म’ अर्थात् कार्य के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। बिना कर्म या प्रयास किए. हम भोजन भी नहीं कर सकते हैं। हाथ पर हाथ देकर बैठे लोग अपना भी भला नहीं कर सकते । ऐसे लोग अपना पेट भी नहीं भर सकते तथा समाज के लिए भारतस्वरूप हैं। विश्व में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उन्होंने अपने महान् कार्यों द्वारा इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित कराया है। महान् योद्धा सिकन्दर, सम्राट अशोक, अकबर महान् तथा अनेकानेक महापुरुषों के गौरवपूर्ण कार्यों ने उनको अमरत्व प्रदान किया है। उन्होंने अपने सत्कर्मों द्वारा समाज, राष्ट्र तथा विश्व का कल्याण किया है। प्रेमचन्द, शेक्सपीयर जैसे अनेक विद्वान साहित्यकारों ने अपनी लेखनी द्वारा सम्पूर्ण संसार का मार्गदर्शन किया है, जबकि रावण, कंस एवं हिरण्यकश्यपु जैसे अत्याचारी शासकों ने अपने दुष्कर्म से स्वयं को कलंकित किया है।
उपर्युक्त तथ्यों के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि वस्तुतः कर्म ही पूजा है। जिस प्रकार पूजा से हम अपनी सत् प्रवृत्तियों का विकास करते हैं, अपने अंदर व्याप्त तमाम कुप्रवृत्तियों का त्याग करते हैं, उसी प्रकार कर्म अर्थात् सत्कर्म द्वारा हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए कल्याण की भावना से अनुप्रेरित होते हैं।
(ख) राष्ट्रीय एकता-पारिवारिक जीवन की तरह सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन में भी एकता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वहाँ भी यह सिद्धांत दृढ़तापूर्वक कार्यशील रहता है कि “Unied we have, separated we die.” जिस तरह वियुक्त परिवार विच्छिन्न हो जाता है उसी तरह विखण्डित राष्ट्र भी क्षीण हो जाता है। जॉन डिकिंसन ने लिखा- “By uniting we stand, by dividing we fall.” तथा आए दिन हमारे राष्ट्रीय जीवन में यह विषाक्त कीटाणु प्रविष्ट होकर राष्ट्रीय एकता को कतर डालने को प्रस्तुत है। जबतक राष्ट्रीय जीवन को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए हमारी राष्ट्रीय एकता सुदृढ़ थी, हम विश्व के सिरमौर कहलाते थे।
उस राष्ट्रीय एकता के विच्छिन्न होते ही हमें परतंत्रता का शिकार होना पड़ा। एक के बाद दूसरी विदेशी जातियाँ आती गई और हमें पदाक्रान्त एवं पददलित करती गई। हम कई शताब्दियों तक पिसते रहे, लुटते रहे । हमने असंख्य कुर्बानियों एवं बलिदानों के फलस्वरूप अपनी जिस खोई हुई आजादी का हासिल की है, उसे सुरक्षित एवं सुदृढ़ रखना परमावश्यक है। आज कुछ बाह्य अथवा आन्तरिक दुष्प्रभावों के परिणामस्वरूप हमारी राष्ट्रीय एकता पर कुठाराघात हो रहा है। कुछ लोग उसे विखण्डित करने का प्रबल प्रयास कर रहे हैं।
प्रांतीयता की संकीर्ण भावना, भाषागत संकीर्णता तथा स्वार्थपूर्ण व्यक्तिगत संकीर्णता राष्ट्रीय एकता के विरोधी तत्व हैं।
राष्ट्रता के नागरिकों में सम्पूर्ण राष्ट्र को एक मानने का व्यापक भाव क्षीण. होता जा रहा है। हम अपने को भारतीय राष्ट्र का नागरिक मानने की अपेक्षा बिहारी, बंगाल, मद्रासी, पंजाबी अधिक मानते हैं। यह संकीर्णता बढ़ते-बढ़ते
आज उस पराकाष्ठा पर पहुंच गई है कि कई राज्यों में तो एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना का प्रबल आंदोलन ही चलाना रहा है।
भाषा के सम्बन्ध में भी लोगों की धारणा संकीर्णता की पराकाष्ठा पर पहँच गई है। दक्षिण भारत के लोग हिन्दी के इतने विरोधी हैं कि वे राष्ट्रीय गीत इसलिए नहीं गाते हैं कि वह हिन्दी में है। इस प्रकार भाषागत उन्मादगी हमारी राष्ट्रीय एकता को विखण्डित करने का प्रधान कारण है। इसके अतिरिक्त हमारी व्यक्तिगत संकीर्णता तथा राष्ट्रप्रेम की भावना का अभाव भी बहुत महत्त्वपूर्ण कारण है। हम दिनों-दिन स्वार्थान्ध होते जा रहे हैं। स्वार्थ के संकुचित दायरे में हम व्यक्तिगत लाभ-हानि, मान-अपमान आदि की ही बातें सोचते हैं, चाहे उससे देश या राष्ट्र जहन्नुम में क्यों न चला जाय ।
राष्ट्रीय आंदोलन के अग्रदूतों में जो सम्पूर्ण भारत को एक मानने का भाव था वह अब लुप्त-सा हो चला है। इसके अतिरिक्त संकीर्ण धार्मिक भावना या विदेशी कूटनीतिज्ञों के गुप्त प्रभावों के कारण भी हमारी राष्ट्रीय एकता विखण्डित अवस्था की ओर बढ़ रही है।
किसी राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए उसकी सार्वभौमिकता एवं अखंडता अनिवार्य है। जिन तुच्छ संकीर्णताओं से प्रेरित होकर लोग राष्ट्रीय एकता पर कुठाराघात करना चाहते हैं वे तो तभी तक अपना अस्तित्व कायम रख सकते हैं जब तक राष्ट्रीय एकता बनी हुई है। उसके विच्छिन्न हो जाने से धर्म, भाषा व्यक्तिगत स्वार्थ आदि खतरे में पड़ जाएंगे।
भारत एक विशाल राष्ट्र है । यहाँ सभी धर्मों के मतावलम्बी निवास करते हैं। इसलिए संविधान के अनुसार इसे धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। अतः प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने-आप को प्रान्तीय या राज्य की संकीर्ण भावना से ऊपर उठकर भारतीय राष्ट्रीय का नागरिक माने । व्यक्तिगत लाभ-हानि की अपेक्षा राष्ट्रीय हित को प्रधान मानना चाहिए। अतः राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य के लिए राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता अनिवार्य है।
(ग) समय का महत्त्व-समय बड़ा ही मूल्यवान होता है। समय स्थिर नहीं होता । बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता। किसी ने सच ही कहा है कि आदमी बलवान नहीं समय बलवान होता है। समय की गति और सअवसर को जो पहचान लेते हैं, वे सफल हो जाते हैं तथा जो नहीं पहचान पाते वे जीवन भर पछताते रह जाते हैं। समय का सदुपयोग करना चाहिए। सदुपयोग का अर्थ है-उचित अवसर पर उचित कार्य पूरा कर लेना। इस संदर्भ में संत कबीर का यह दोहा काफी प्रासंगिक है
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब ।
पल में परलय होयगा, बहुरि करेगा कब ॥ आज का काम कल पर टालने उचित अवसर को खो देते हैं और हाथ मलते रह जाते हैं। समय का सदुपयोग करनेवाले लोग जीवन के हर क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ते चले जाते हैं। लगभग सभी महान् पुरुषों ने समय का सदुपयोग किया है।
शेक्सपीयर ने लिखा है-मैंने समय को नष्ट किया और अब समय मझे नष्ट कर रहा है। (I wasted time and now doth time waste me.)
लता ने अपनी गायन-प्रतिभा को पहचाना और पूरा जीवन ही इस कला के नाम कर दिया। डॉ. अब्दुल कलाम, सचिन तेंदुलकर, महेन्द्र सिंह धोनी, सानिया मिर्जा आदि के नाम इस प्रसंग में लिए जा सकते हैं।
समय का कोई विकल्प नहीं है। जो व्यक्ति समय को नष्ट करता है, समय उसे ही नष्ट कर देता है। छात्रों के लिए तो समय का महत्त्व सर्वोपरि है। वे समय का सदुपयोग कर ही अपनी वांछित प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकते हैं। बेकन ने लिखा है, “समय का समुचित उपयोग करना समय को बचाना है।” वस्तुतः सफलता समय की दासी है। जो जाति समय का सम्मान करना जानती है, वह अपनी शक्ति को कई गुना बढ़ा लेती है। यदि सभी गाडियाँ अपने निश्चित समय से चलने लगें तो देश में कितनी कार्य कुशलता बढ़ जाएगी। समय पर हर लोग अपना कार्य निबटाने का संकल्प कर लें तो विकास की गति चतर्मुखी तेज हो जायेगी। इस प्रकार स्पष्ट है कि समय मूल्यवान है,
इसे बर्बाद करना स्वयं के साथ-साथ दूसरे को भी हानि पहुँचाना है। समय | सबसे महान् है, परमात्मा से भी। भक्ति आदि साधनों से परमात्मा को तो बुलाया जा सकता है, किन्तु कोटि उपाय करने पर भी बीता हुआ समय नहीं बुलाया जा सकता।
(घ) महँगाई-वर्तमान समय में निम्न मध्यम वर्ग महंगाई की समस्या से त्रस्त है। यह महंगाई रुकने का नाम ही नहीं लेती, यह तो सुरसा की तरह बढ़ती ही चली जा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार का महंगाई पर कोई नियंत्रण रह ही नहीं गया है।
महँगाई जानलेवा हो गई है। इसने आम नागरिकों की कमर तोडकर रख दी है। महँगाई दर 8% तक चली गयी है। बिहार में 41.4% लोग निर्धन हैं। ऐसी स्थिति में महँगाई की मार उनपर किस तरह पड़ रही है सोच सकते हैं।
महँगाई बढ़ने के कई कारण हैं । उत्पादन में कमी तथा माँग में वृद्धि होना महंगाई के प्रमुख कारण हैं। माँग और पूर्ति के असंतुलित होते ही महँगाई को अपने पाँव फैलाने का अवसर मिल जाता है। कभी-कभी सूखा, बाढ़, अतिवृष्टि जैसे प्राकृतिक प्रकोप भी उत्पादन को प्रभावित करते हैं। जमाखोरी भी महँगाई बढ़ाने का प्रमुख कारण है। जमाखोरी से शुरू होती है कालाबाजारी। दोषपूर्ण वितरण प्रणाली, अंधाधुंध मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति तथा सरकारी अंकुश का अप्रभावी होना भी महँगाई के कारण हैं। ये कालाबाजारी पहले वस्तुओं का नकली अभाव उत्पन्न करते हैं और फिर जब उन वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है फिर महंगे दामों पर उसे बेचते हैं।
रोटी, कपड़ा और मकान प्रत्येक व्यक्ति की मौलिक आवश्यकताएँ हैं। वह इन्हें पाने के लिए रात-दिन प्रयास करता रहता है। एक सामान्य व्यक्ति केवल इतना चाहता है कि उसे जीवनोपयोगी वस्तुएँ आसानी से और उचित दर पर उपलब्ध होती रहे।
कीमतों की वृद्धि एक अभिशाप है। देश को हर हालत में इससे मुक्त करना अनिवार्य है। इसके लिए उत्पादन में वृद्धि करना चाहिए । उत्पादन कार्य हर हालत में चलता रहे-यही सब लोगों का प्रयास होना चाहिए । व्यापारियों को कालाबाजार का धंधा बंद करना चाहिए। इस कार्य में हर नागरिक का सहयोग अपेक्षित है। फिर, सभी क्षेत्रों में फैले भ्रष्टाचार एवं भाई-भतीजावाद के विरुद्ध जेहाद बोलना अनिवार्य है।
(ङ) नारी सशक्तिकरण-हमारा युग सांस्कृतिक स्पर्धा और संघर्ष का युग है। भारतीय नारी सदा से उच्चतर सांस्कृतिक मूल्यों की वाहक रही है। दया, क्षमा, विनय, अहिंसा, श्रद्धा, सेवा, त्याग जैसे मल्य उसके स्वभाव के अंग रहे हैं। भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ अंश को नारी ने ही बचाया है। भारतीय परम्परा में जो कुछ भी श्रेष्ठ हैं, सत्य, शिव और सुन्दर हैं, रक्षणीय हैं उसका आधार नारी रही है। नारी ही विपत्ति विनाश के लिए दर्गा शक्ति बनती आई है। वही अज्ञान के अंधकार को मिटाने वाली सरस्वती है तथा दीनता और निर्धनता को हरने वाली लक्ष्मी है। सीता-सावित्री, अत्री-अनुसूया, जीजाबाई, लक्ष्मीबाई, अनेक रूपों में भारतीय नारी ने भारतीय संस्कृति की रक्षा की हैं। वर्तमान समय अर्थ-प्रधान होता जा रहा है।
हर व्यक्ति अधिक-से-अधिक वस्तुओं का संग्रह करके सुखी होना चाहता है। अधिक-से-अधिक धन कमाना ही आज जीवन का लक्ष्य हो गया है। भारतीय संस्कृति ने सिखाया है कि सुख वस्तुओं में नहीं, मन को साधने में है। सुख भोग में नहीं, संयम और संतोष में है। भारतीय नारी सदा से संयम और त्याग का आदर्श अपनाती आई है। आज उसे संतुलित जीवन-दृष्टि अपनाने की आवश्यकता है। धन से बिस्तर खरीदा जा सकता है, नींद नहीं। आज पश्चिम की उपभोगवादी संस्कृति ने समाज में हिंसा, भ्रष्टाचार, अश्लीलता और फैशन परस्ती का वातावरण पैदा कर दिया है। भारतीय नारी इस दृष्टि से समाज का नेतृत्व कर सकती है।
वर्तमान में भारत की समस्याओं को सुलझाने में नारी की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। जनसंख्या विस्फोट भारत की सबसे बड़ी समस्या है। नारी, परिवार नियोजन को अपनाकर इस समस्या को सुलझाने में सहयोग दे सकीत. है। नारी की निरक्षरता उसके विकास में बाधक है। इसलिए नारी को शिक्षा
पर अधिक ध्यान देना होगा। भारत की नारी निरक्षर होकर ही सुसंस्कृत है। भारतीय नारी शिक्षित हो, यह भावी पीढी को साक्षर करवाने के लिए भी आवश्यक है। भारतीय नारी यदि फैशन की होड में न पडे और संयम को जीवन का आधार बनाए तो अंतर्देशीय व्यापारिक निगम भारत को लूट नहीं सकेंगी। नारी सशक्तिकरण संवैधानिक प्रावधानों से ही हुआ है। परंतु नारी को अपने गुणों का विकास करके, अपने को निरंतर सशक्त करना होगा। नारी आदर्श गृहिणी बनकर भी परिवार के हितों की रक्षा कर सकती है। परिवार का स्वास्थ्य घर पर बनने वाले भोजन पर भी निर्भर करता है। बच्चे पश्चिम के ‘जंक फूड’ कचरा भोजन न खाएँ इसके लिए जरूरी है कि घर में अच्छा भोजन बने । वर्तमान समय में भारतीय नारी अपने को शिक्षित, सशक्त, सुसंस्कृत एवं सचेत बनाए तो वह समाज का अधिक उपयोगी अंग बना सकेगी।
अथवा
अपनी बहन के वैवाहिक कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए अपने मित्र को पत्र लिखें।
उत्तर:
अथवा
134, यमुना बिहार
थाई लेन राजन स्ट्रीट
पटना ।
3 जुलाई,……..
प्रिय मित्र अजय,
मैं आशा करता हूँ कि तुम वहाँ स्वस्थ और प्रसन्न रहकर अच्छे दिन व्यतीत कर रहे होगें। हम सब लोग भी यहाँ अच्छी तरह हैं।
आगे समाचार यह है कि मेरी बड़ी बहन की शादी अंतिम रूप से तय हो चुकी है। 15 जुलाई की तिथि निश्चित हुई है। मैं तुम्हें शादी में सम्मिलित होने का निमंत्रण भेज रहा हूँ, किन्तु तुम्हें उसका इन्तजार करने की आवश्यकता नहीं। तुम शीघ्रताशीघ्र यहाँ पहुँचने की कोशिश करो। तुम्हारी उपस्थिति और सहयोग मेरे लिए बहुत उपयोगी होगा।
तुम्हें ज्ञात है कि मैं अपनी बहन का अकेला ही भाई हूँ। शादी के बाद वह मुझसे अलग हो जायेगी। मैं उस विछोह को सहन करने योग्य अपने आपको नहीं पाता हूँ, वह मुझे बहुत स्नेह करती हैं। मैं भी उसके प्रति बहुत स्नेह और आदर की भावना रखता हूँ, अतः तुम्हारी उपस्थिति से मुझे सान्तवना मिलेगी तथा सभी आघातों से मेरी सुरक्षा करेगी। मैं चाहता है कि तुम अपने साथ अपनी छोटी बहन को भी लाओ, यदि उसको भेजने में तुम्हारे माता-पिता को कोई आपत्ति न हो। वह मेरी बहन को एक अंतरंग सहेली का स्थान ले सकती है।
यह निमंत्रण पत्र अपने माता-पिता को भी दिखा देना । आशा है कि तुम शीघ्र ही वांछनीय उत्तर दोगे।
मित्र,
तुम्हारा अमित्र
शशी भूपण