Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ
Bihar Board Class 11 Geography प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Text Book Questions and Answers
(क) बहुवैकल्पिक प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
इनमें से भारत के किस राज्य में बाढ़ अधिक आती है?
(क) बिहार
(ख) पश्चिम बंगाल
(ग) असम
(घ) उत्तर प्रदेश
उत्तर:
(ग) असम
प्रश्न 2.
उत्तरांचल के किस जिले में मालपा भूस्खलन आपदा घटित हुई थी?
(क) बागेश्वर
(ख) चंपावत
(ग) अल्मोड़ा
(घ) पिथौरागढ़
उत्तर:
(घ) पिथौरागढ़
प्रश्न 3.
इनमें से कौन-से राज्य में सर्दी के महीनों में बाढ़ आती है?
(क) असम
(ख) पश्चिम बंगाल
(ग) केरल
(घ) तमिलनाडु
उत्तर:
(घ) तमिलनाडु
प्रश्न 4.
इनमें से किस नदी में मजौली नदीय द्वीप स्थित है?
(क) गंगा
(ख) ब्रह्मपुत्र
(ग) गोदावरी
(घ) सिंधु
उत्तर:
(ख) ब्रह्मपुत्र
प्रश्न 5.
बर्फानी तूफान किस तरह की प्राकृतिक आपदा है?
(क) वायुमंडलीय
(ख) जलीय
(ग) भौमिकी
(घ) जीवमंडलीय
उत्तर:
(क) वायुमंडलीय
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन से भारतीय क्षेत्रों में भूकंप के आने की संभावना सर्वाधिक होती है?
(क) उत्तर:पूर्वी राज्य
(ख) दक्कन का पठार
(ग) कोरोमण्डल तट
(घ) गंगा का मैदान
उत्तर:
(क) उत्तर:पूर्वी राज्य
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के लगभग 30 शब्दों में उत्तर दें
प्रश्न 1.
संकट किस दशा में आपदा बन जाती है?
उत्तर:
प्राकृतिक संकट या मानव निर्मित संकट द्वारा जब धन-जन दोनों को नुकसान पहुँचने की संभावना बढ़ जाती है तब वह संकट आपदा बन जाती है।
प्रश्न 2.
हिमालय और भारत के उत्तर:पूर्वी क्षेत्र में अधिक भूकंप क्यों आते हैं?
उत्तर:
इंडियन प्लेट प्रतिवर्ष उत्तर:पूर्व दिशा में एक सेंटीमीटर खिसक रही है। लेकिन उत्तर में स्थित यूरेशियन प्लेट इसके लिए अवरोध पैदा करती है। परिणाम स्वरूप इन प्लेटों के किनारे लॉक हो जाते हैं। ऊर्जा संग्रह से तनाव बढ़ता है प्लेटों के लॉक टूट जाते हैं और भूकंप आ जाता है।
प्रश्न 3.
उष्ण कटिबंधीय तूफान की उत्पत्ति के लिए कौन-सी परिस्थितियों अनुकूल हैं ?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय तूफान की उत्पत्ति के लिए कम दबाव वाले उग्र मौसम तंत्र जो 30° उत्तर तथा 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच पाए जाते हैं। तीव्र कोरियोलिस बल, क्षोभ मण्डल में अस्थिरता, तथा मजबूत ऊर्ध्वाधर वायु फान (wedge) की अनुपस्थिति आदि स्थितियाँ अनुकूल हैं।
प्रश्न 4.
पूर्वी भारत की बाढ़, पश्चिमी भारत की बाढ से अलग कैसे होती है?
उत्तर:
पूर्वी भारत की बाढ़ अंधाधुंध वन कटाव तथा प्राकृतिक अपवाह तंत्रों के अवरुद्ध होने तथा बाढ़कृत मैदानों पर मानव बसाव के कारण आती है जबकि राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब आदि में मानसूनी वर्षा तथा मानवीय क्रियाकलापों के द्वारा बाढ़ आती है।
प्रश्न 5.
पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे ज्यादा क्यों पड़ते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी और मध्य भारत में कम वर्षा होती है जिसके कारण भतल पर जल की कमी हो जाती है। कम वर्षा, अत्यधिक वाष्पीकरण और जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक , प्रयोग से सूखे की स्थिति पैदा होती है।
(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दे
प्रश्न 1.
भारत में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करें और इस आपदा के निवारण के कुछ उपाय बताएँ।
उत्तर:
ज्यादा अस्थिर हिमालय की युवा पर्वत श्रृंखलाएँ, अंडमान और निकोबार, पश्चिमी । घाट और नीलगिरी में अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर:पूर्वी क्षेत्र, भूकंप प्रभावी क्षेत्र और अत्यधिक मानव क्रियाकलापों वाले क्षेत्र, जिसमें सड़क और बाँध निर्माण इत्यादि आते हैं, अत्यधिक भूस्खलन सुभेद्यता क्षेत्रों में रखे जाते हैं। हिमालय क्षेत्र के सारे राज्य और उत्तर:पूर्वी भाग (असम को छोड़कर) इस क्षेत्र में शामिल हैं।
पार हिमालय के कम वृष्टिवाले क्षेत्र लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में स्थिति, अरावली पहाड़ियों में कम वर्षा वाला क्षेत्र, पश्चिमी व पूर्वी घाट के व दक्कन पठार के वृष्टिछाया क्षेत्र ऐसे इलाके हैं. जहाँ कभी-कभी भूस्खलन होता है। इसके अतिरिक्त झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा और केरल में खादानों और भूमि धंसने से भूस्खलन होता रहता है।
राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल (दार्जलिंग जिले को छोड़कर), असम (कार्बी अनलोंग को छोड़कर) और दक्षिण प्रान्तों के तटीय क्षेत्र भूस्खलन युक्त हैं। भूस्खलन आपदा के निवारण के कुछ उपाय-भूस्खलन से निपटने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग उपाय होने चाहिए। अधिक भू-स्खलन संभावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बाँध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा विकास कार्य पर प्रतिबंध होना चाहिए।
इन क्षेत्रों में कृषि नदी घाटी तथा कम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होनी चाहिए तथा बडी विकास परियोजनाओं पर नियंत्रण होना चाहिए। सकारात्मक कार्य जैसे-वृहत् स्तर पर वनीकरण को बढ़ावा और जल बहाव को कम करने के लिए बाँध का निर्माण भू-स्खलन के उपायों के पूरक हैं। स्थानांतरी कृषि वाले उत्तर:पूर्वी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए।
प्रश्न 2.
सुभेद्यता क्या है? सूखे के आधार पर भारत को प्राकृतिक आपदा भेद्यता क्षेत्रों में विभाजित करें और इसके निवारण के उपाय बताएँ।
उत्तर:
अधिक अस्थिर हिमालय की युवा पर्वत श्रृंखलाएँ, अंडमान और निकोबार, पश्चिमी घाट और नीलगिरी में अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर:पूर्वी क्षेत्र, भूकंप प्रभावी क्षेत्र और अत्यधिक मानव क्रियाकलापों वाले क्षेत्र जिसमें सड़क और बाँध निर्माण इत्यादि आते हैं, अत्यधिक भूस्खलन सुभेद्यता क्षेत्रों में रखे जाते है। सखा एक जटिल परिघटना है जिसमें कई प्रकार के मौसम विज्ञान संबंधी तथा अन्य तत्त्व, जैसे-वृष्टि, वाष्पीकरण, वाष्पोत्सर्जन, भौम जल, मृदा में नमी, जल भंडारण व भरण, कृषि पद्धतियाँ, विशेषतः उगाई जाने वाली फसलें, सामाजिक-आर्थिक गतिविधियाँ पारिस्थितिकी शामिल हैं।
भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्र-भारतीय जलवायु तंत्र में सूखा और बाढ़ महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। कुछ अनुमानों के अनुसार भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 19 प्रतिशत भाग और जनसंख्या का 12 प्रतिशत हिस्सा हर वर्ष सुखे से प्रभावित होता है। देश का लगभग 30 प्रतिशत क्षेत्र सखे से प्रभावित हो सकता है 5 करोड़ लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं। सूखे की तीव्रता के आधार पर भारत को निम्नलिखित क्षेत्रों में बाँटा गया है
अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-राजस्थान का अधिकतर भाग, विशेषकर अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थल और गुजरात का कच्छ क्षेत्र अत्यधिक सूखा प्रभावित है। इसमें राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर जिले भी शामिल हैं, जहाँ 90 मिलीलीटर से कम वार्षिक
औसत वर्षा होती है। अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-इसमें राजस्थान के पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के अधिकतर भाग, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, आंध्र प्रदेश के अंदरुनी भाग, कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु का उत्तरी भाग, झारखंड का दक्षिणी भाग और उड़ीसा का आंतरिक भाग शामिल है।
मध्य सूखा प्रभावित क्षेत्र-राजस्थान के उत्तरी भाग, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिले, गुजरात के बचे हुए जिले, कोंकणं को छोड़कर महाराष्ट्र, झारखंड, तमिलनाडु में कोयंबटूर पठार और आंतरिक कर्नाटक शामिल हैं। निवारण के उपाय-सूखे की स्थिति में तात्कालिक सहायता से सुरक्षित पेयजल वितरण, दवाइयाँ, पशुओं के लिए चारे और जल की उपलब्धता तथा लोगों और पशुओं को सुरक्षित स्थान पर पहुँचना शामिल है।
दीर्घकालिक योजनाओं में विभिन्न कदम उठाए जा सकते हैं, जैसे- भूमिगत जल के भण्डारण का पता लगाना, जल अधिक्य क्षेत्रों में अल्पजल क्षेत्रों में पानी पहुँचना, नदियों को जोड़ना और बाँध व जलाशयों का निर्माण इत्यादि। द्रोणियों की पहचान तथा भूमिगत जः भंडारण की संभावना का पता लगाने के लिए सुदूर संवेदन और उपग्रहों से प्राप्त चित्रों का प्रयोग करना। सूखा प्रतिरोधी फैसलों के बारे में प्रचार-प्रसार। वर्षा जल संलवन (Rain water harvesting) सूखे का प्रभाव कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
प्रश्न 3.
किस स्थिति में विकास कार्य आपदा का कारण बन सकता है?
उत्तर:
तकनीकी विकास ने मानव को, पर्यावरण को प्रभावित करने की बहुत क्षमता प्रद कर दी है। परिणमतः मनुष्य ने आपदा के खतरे वाले क्षेत्रों में गहन क्रियाकलाप शुरू कर दि है और इस प्रकार आपदाओं की सुभेद्यता को बढ़ा दिया है। अधिकांश नदियों में, बाढ़-मैद में भू-उपयोग तथा भूमि की कीमतों के कारण क्या तटों पर बड़े नगरों एवं बंदरगाहों, जैसेतथा चेन्नई आदि के विकास ने इन क्षेत्रों को चक्रवातों, प्रभंजनों तथा सुनामी आदि के लिए बना दिया है।
देश की आर्थिक उन्नति के लिए औद्योगिक और परमाणु विकास कभी-कभी आपदा का कारण बन जाता है। किसी जहरीली गैस का रिसाव (उदाहरण भोपाल गैस कांड में हजारों लोगों की मौत, हजारों अपंग एवं बीमार), बाँध जलाशयों का निर्माण कार्य, आग तथा विस्फोट आदि हजारों लोगों की जान ले सकते हैं और लोगों को प्रभावित कर सकते हैं।
(घ) परियोजना कार्य (Project Work)
प्रश्न 1.
नीचे दिए गए विषयों पर प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करें –
- मालपा भूस्खलन
- सुनामी
- उड़ीसा चक्रवात और गुजरात चक्रवात
- नदियों को आपस में जोड़ना
- टिहरी बाँध या सरदार सरोवर बाँध
- भुज/लातूर भूकंप
- डेल्टा या नदीय द्वीप में जीवन
- छत वर्षा जल संचयन का मॉडल तैयार करें।
उत्तर:
इस अध्याय को ध्यान से पढ़ें और अपने अध्यापक की मदद से या किसी अन्य पाठ्य-पुस्तक या अपने कक्षा की पाठ्य-पुस्तक से जानकारियाँ इकट्ठी करके इस परियोजना की रिपोर्ट तैयार करें। लगभग सभी जानकारियाँ आपको पाठ्य-पस्तक में ही मिल जायेंगी।
Bihar Board Class 11 Geography प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Additional Important Questions and Answers
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भूकम्पमापक यंत्र को क्या कहते हैं?
उत्तर:
सिस्मोग्राफ।
प्रश्न 2.
भूकंप की तीव्रता किस पैमाने पर मापी जाती है?
उत्तर:
रिक्टर पैमाने पर।
प्रश्न 3.
लाटूर भूकंप (महाराष्ट्र) का क्या कारण था?
उत्तर:
भारतीय प्लेट का उत्तर की और खिसकना।
प्रश्न 4.
भूकंप किस सिद्धांत से सम्बन्धित है?
उत्तर:
प्लेट टेक्टानिक।
प्रश्न 5.
भारत में प्रभाव डालने वाले प्राकृतिक आपदाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
बाढ़, सूखा, भूकंप तथा भू-स्खलन।
प्रश्न 6.
प्राकृतिक आपदाओं का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
आकस्मिक भूगर्भिक हलचलें।
प्रश्न 7.
वर्तमान समय में भारत में आये विनाशकारी भूचाल का नाम लिखें।
उत्तर:
भुज, गुजरात-26 जनवरी, 2001
प्रश्न 8.
विभिन्न भूकंपीय तरंगों के नाम लिखें।
उत्तर:
P-Waves, S-Waves, L-Waves.
प्रश्न 9.
भू-स्खलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब कोई जलभृत भाग किसी ढलान से अचानक नीचे गिरती हैं।
प्रश्न 10.
तीन प्रदेशों के नाम लिखो जो चक्रवातों से प्रभावित हैं।
उत्तर:
उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु।
प्रश्न 11.
प्राकृतिक आपदायें किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल पर आन्तरिक हलचलों द्वारा अनेक परिवर्तन होते रहते हैं। इनसे मानव पर हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। इन्हें प्राकृतिक आपदायें कहते हैं।
प्रश्न 12.
कुछ सामान्य आपदाओं के नाम बताएँ।।
उत्तर:
सामान्य आपादाएँ इस प्रकार हैं-ज्वालामुखी विस्फोट, भूकंप, सागरकम्प, सूखा, बाढ़, चक्रवात, मृदा अपरदन, अपवाहन, पंकप्रवाह, हिमधाव।
प्रश्न 13.
संकट किसे कहते हैं?
उत्तर:
अंग्रेजी भाषा में प्राकृतिक आपदाओं को प्राकृतिक संकट भी कहा जाता है। फ्रेंच भाषा में डेस (Des) का अर्थ बुरा (Bad) तथा (Aster) का अर्थ सितारे (Stars) से है। मानवीय जीवन और अर्थव्यवस्था को भारी हानि पहुँचाने वाली प्राकृतिक आपदाओं को संकट और महाविपत्ति कहते हैं।
प्रश्न 14.
भूकंप का परिणाम क्या होता है?
उत्तर:
भूकंप की शक्ति को रिक्टर पैमाने पर मापा जात है जिसे परिमाण कहते हैं। यह भूकंप द्वारा विकसित भूकंपीय ऊर्जा की माप होती है।
प्रश्न 15.
भूकंप की तीव्रता किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूकंप द्वारा होने वाली हानि की माप को तीव्रता कहते हैं।
प्रश्न 16.
भारत के अधिक तथा अत्यधिक भूकंपनीय खतरे वाले क्षेत्रों के नाम बताएँ।
उत्तर:
भूकंप की दृष्टि से भारत के अत्यधिक खतरे वाले क्षेत्रों के नाम हैं-हिमालय पर्वत, उत्तरपूर्वी भारत, कच्छ रत्नागिरी के आस-पास का पश्चिमी तटीय तथा अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह। अधिक खतरे वाले क्षेत्र हैं-गंगा का मैदान, पश्चिमी राजस्थान ।
प्रश्न 17.
रिक्टर पैमाने पर कितने विभाग होते हैं?
उत्तर:
1-9 तक।
प्रश्न 18.
कोएना भूकंप का क्या कारण था?
उत्तर:
कोएना जलाशय में अत्यधिक जलदाब।
प्रश्न 19.
सूखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
वर्षा की कमी के कारण खाद्यान्नों की कमी होना।
प्रश्न 20.
भारत में सूखे का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
अनिश्चित वर्षा।
प्रश्न 21.
भारत में कितना क्षेत्रफल भाग बाढ़ों तथा सूखे से प्रभावित है?
उत्तर:
सूखे से 10% भाग तथा बाढ़ों से 12% भाग।
प्रश्न 22.
भारत में बाढ़ों का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
भारी मानसून वर्षा तथा चक्रवात।
प्रश्न 23.
दक्षिणी प्रायद्वीप में बाढ़ कम आती हैं। क्यों?
उत्तर:
मौसमी नदियों के कारण।
प्रश्न 24.
भारत के बाढ़ प्रवण क्षेत्रों के नाम बताएँ।
उत्तर:
- गंगा बेसिन, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल
- आसाम में ब्रह्मपुत्र घाटी
- उड़ीसा प्रदेश।
प्रश्न 25.
भू-स्खलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
आधार शैलों का भारी मात्रा में तेजी से खिसकना भू-स्खलन कहलाता है। तीव्र पर्वतीय ढलानों पर भूकंप के कारण अचानक शैलें खिसक जाती हैं।
प्रश्न 26.
आपदा प्रबंधन किसे कहते हैं?
उत्तर:
आपदाओं को सुरक्षा के उपाय, तैयारी तथा प्रभाव को कम करने की क्रिया को आपदा प्रबंधन कहते हैं। इसमें राहत कार्यों की व्यवस्था भी शमिल की जाती है।
प्रश्न 27.
चक्रवात की उत्पत्ति के लिए आधारभूत आवश्यकताएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
जब कमजोर रूप से विकसित कम दबाव क्षेत्र के चारों और तापमान की क्षतिज प्रवणता बहुत अधिक होती है तब उष्ण कटिबंधीय चक्रवात बन सकता है। चक्रवात ऊष्मा का इंजन है तथा इसे सागरीय तल से ऊष्मा मिलती है।
प्रश्न 28.
चक्रवात की गति और सामान्य अवधि कितनी होती है?
उत्तर:
चक्रवात की गति 150 km प्रति घंटा तथा अवधि एक सप्ताह तक होती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जन-धन की हानि का वर्णन करो।
उत्तर:
विश्व में प्रतिवर्ष प्राकृतिक आपदाओं से एक लाख व्यक्तियों की जानें जाती हैं तथा 20.000 करोड़ रुपये की सम्पत्ति की हानि होती है। यह मानवीय विकास के लिए रुकावट है। U.N.O. के अनुसार 1990-99 के दशक को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा का दशक घोषित किया गया। प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त विश्व के प्रमुख 10 देशों में से भारत एक देश है।
प्रति वर्ष 6 करोड़ लोग इनसे प्रभावित होते हैं। विश्व की 50% प्राकृतिक आपदाएँ भारत में अनुभव की जाती हैं। फिर भी भारत में इन आपदाओं से सुरक्षा के लिए एक व्यापक प्रबंध किया गया है जिसमें भूकंपीय स्टेशन, चक्रवात, बाढ़, रडार, जल प्रवाह के बारे में सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं तथ सुरक्षा के प्रबंध किए जाते हैं।
प्रश्न 2.
प्रमुख प्राकृतिक आपदाएं कौन-सी हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक आपदाएँ वे भूगर्मिक हलचलें हैं जो अचानक ही भू-तल पर परिवर्तन लाकर जन, धन व सम्पत्ति की हानि करती हैं। सूखा, बाढ़, चक्रवात, भू-स्खलन, भूकंप विभिन्न प्रकार की मुख्य प्राकृतिक आपदाएँ हैं।
प्रश्न 3.
भारत में उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों पर नोट लिखें।
उत्तर:
चक्रवात (Cyclones) – भारत में उष्ण कटिबंधीय चक्रवात खाड़ी बंगाल तथा अरब सागर में उत्पन्न होते हैं। चक्रवात पवनों का एक भंवर होता है जो मूसलाधार वर्षा प्रदान करता है। ये प्रायः अक्टूबर-नवम्बर के महीनों में चलते हैं। इनकी दिशा परिवर्तनशील होती है। ये प्रायः पश्चिम की ओर तथा उत्तर:पश्चिम, उत्तर पूर्व की ओर चलते हैं। इनका प्रभाव तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा के तटों पर होता है।
प्रभाव (Effects) –
- ये चक्रवात मूसलाधार वर्षा, तेज़ पवनें तथा घने मेघ लाते हैं। औसत रूप से 50 सेमी वर्षा एक दिन में होती है।
- ये चक्रवात जन-धन की हानि व्यापक रूप से करते हैं।
- खाड़ी बंगाल में निम्न वायु दाब केन्द्र बनने से ये चक्रवात उत्पन्न करते हैं।
- ये चक्रवात एक दिन में पूर्वी तट से गुजर कर प्रायद्वीप को पार करके पश्चिमी तट पर पहुँच जाते हैं।
- गोदावरी, कृष्ण, कावेरी डेल्टाओं में भारी हानि होती है।
- सुन्दरवन डेल्टा तथा बंग्ला देश में भी भारी हानि होती है।
प्रश्न 4.
भू-स्खलन से क्या अभिप्राय है ? इनके प्रभाव बताओ।
उत्तर:
भू-स्खलन (Landslides) – भूमि के किसी भाग के अचानक फिसल कर पहाडी से नीचे गिर जाने की क्रिया को भू-स्खलन कहते हैं। कई बार भूमिगत जल चट्टानों में भर कर उनका भार बढ़ा देता है। यह जल मूल चट्टानी ढलान के साथ नीचे फिसल जाती हैं। इनके कई प्रकार होते हैं।
- स्लम्प (Slumps) – जब चट्टानें थोडी दुरी से गिरती हैं।
- रॉक स्लाइड (Rockslide) – जब चट्टानें अधिक दूरी से अधिक भाग में गिरती हैं।
- रॉक फाल (Rockfall) – जब किसी मूल से चट्टानें ट कर गिरती हैं।
कारण (Causes) –
- जब वर्षा का जल या पिघलती हिम एक स्नेहक (Lubricant) के रूप में कार्य करता है।
- तीव्र ढलान के कारण।
- भूकंप के कारण।
- किसी सहारे के हट जाने पर।
- भ्रंशन या खदानों के कारण।
- ज्वालामुखी विस्फोट के कारण।
प्रभाव (Effects) –
- भवन, सड़कें, पुल आदि का नष्ट होना।
- चट्टानों के नीचे दबकर लोगों की मृत्यु हो जाना।
- सड़क मार्गों का अवरुद्ध हो जाना।
- नदियों के मार्ग अवरुद्ध होने से बाढ़ आना।
- 1957 में कश्मीर में भू-स्खलन से राष्ट्रीय मार्ग बंद हो गया था।
- गत वर्ष में टेहरी-गढ़वाल में बादल फटने से भूस्खलन हुआ।
प्रश्न 5.
शुष्कता और सूखा में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
शुष्कता और सूखा में अंतर –
प्रश्न 6.
आपदाएँ एवं संकट में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
आपदाएँ एवं संकट में अंतर –
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भारत के सूखाग्रस्त इलाकों का वर्णन करते हुए सूखे के अर्थव्यवस्था पर होनेवाले प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में सूखे का सर्वाधिक प्रभाव राजस्थान और इसके निकटवर्ती हरियाणा एवं मध्यप्रदेश के क्षेत्र, गुजरात का अधिकांश भाग, मध्यवर्ती महाराष्ट्र, पूर्वी व मध्यवर्ती कर्नाटक, पश्चिमी व मध्य तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश में पड़ता है। इसके अतिरिक्त पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में भी कभी-कभी सूखा पड़ जाता है। इन क्षेत्रों में 100 cm.से भी कम वर्षा होती है और पर्याप्त सिंचाई की उपलब्धता भी नहीं है।
यद्यपि देश के किसी भी भाग में वर्षा कम होने पर सखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। अनुमानतः भारत का 19% क्षेत्र तथा देश का 12% जनसंख्या प्रतिवर्ष सूखे की चपेट में रहती है। सूखे का अर्थव्यवस्था पर भयानक परिणाम होते हैं। जब फसलें नष्ट होती है तो अन्न की कमी हो जाती है और अकाल पड़ जाता है। पशुओं के लिए चारा कम हो जाता है तो ऋण अकाल पड़ जाता है। जल की कमी की अवस्था को जल अकाल कहा जाता है। जब तीनों परिस्थितियाँ एक साथ उत्पन्न हो जाती है।
तो त्रि-अकाल कहलाती है जो सबसे भयंकर होती है। भीषण अकाल पड़ने पर भारी संख्या में स्त्री, पुरुष तथा बच्चे एवं जीव-जन्तुओं को भोजन के अभाव में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। सूखाग्रस्त क्षेत्रों से मानव प्रवास तथा पश पलायन एवं सामान्य सी घटना बन जाती है। जलाभाव में लोग दुषित जल पीने को बाध्य होते हैं। जिस कारण पेयजल संबंधी बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
प्रश्न 2.
भूकंप की परिभाषा दें। भारत में भूकंप क्षेत्रों का वितरण का वर्णन करें।
उत्तर:
भूकंप (Earthquake) – पृथ्वी के किसी भाग के अचानक हिलने को भकप कहते हैं। इस हलचल से भूपृष्ठ पर झटके (Tremors) अनुभव किए जाते हैं। भूकंपीय तरंगें सभी दिशाओं में लहरों की भान्ति आगे बढ़ती हैं। ये तरंगें उद्रम (Focus) से आरंभ होती हैं। ये तरंगें तीन प्रकार की होती हैं-P-Waves,S-Waves, L-Waves.
भूकंप के कारण (Causes of Earthquake) – भूकंप के सामान्य कारण ज्वालामुखी विस्फोट, भू-हलचलें, चट्टानों का लचीलापन तथा स्थानीय कारण है। भारत में सामान्य रूप से भारतीय प्लेट तथा यूरेशियन प्लेट आपस में टकराती हैं। ये एक दूसरे के नीचे घुसने का यत्न करती हैं। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में इनका सम्बन्ध वलन एवं भ्रंशन क्रिया से है। दक्षिणी भारत एक स्थिर भूखण्ड है तथा भूकंप बहुत कम होते हैं। भूकंपों की तीव्रता रिक्टर पैमाने से मापी जाती है जिसका माप 1 से 9 तक होता है। अधिक तीव्र भूकंप भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में अनुभव किए जाते हैं
1. हिमालयाई क्षेत्र (Himalayan Zone) – क्षेत्र में क्रियाशील भूकंप जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल तथा उत्तर:पूर्वी राज्यों में आते हैं जिनसे बहुत हानि होती है। यह भूकंप भारतीय प्लेट तथा यूरेशियम प्लेट के आपसी टकराव के कारण उत्पन्न होते हैं। भारतीय प्लेट प्रति वर्ष 5 सेमी. की गति से उत्तर तथा उत्तर:पूर्व की ओर बढ़ रही है। यहाँ 1905 में कांगड़ा में, 1828 में कश्मीर में, 1936 में क्वेटा में तथा 1950 में असम में भयानक भूकंप अनुभव किए गए।
2. सिन्धु-गंगा प्रदेश (Indo – Gangetion Zone) – इस क्षेत्र में सामान्य तीव्रता के भूकंप, अनुभव किए जाते हैं। इनकी तीव्रता 6 से 6.5 तक होती है। परंतु इन सधन बसे क्षेत्रों में बहुत हानि होती है।
3. प्रायद्वीपीय क्षेत्र (Peninsular Zone) – यह एक स्थिर क्षेत्र है परंतु फिर भी यहाँ भूकंप अनुभव किए जाते हैं। 1967 में कोयना, 1993 में लातूर, 2001 में भुज के भूकंप बहुत विनाशकारी थे। कोयना भूकंप कोयला डैम के जलाशम में जल के अत्यधिक दबाव के कारण आया परंतु भूकंप भारतीय प्लेट की उत्तर की ओर गति के कारण आए हैं।
4. अन्य भूकंपीय क्षेत्र (Other Sesonic Zones) –
- बिहार-नेपाल क्षेत्र
- उत्तर-पश्चिमी हिमालय
- गुजरात क्षेत्र
- कोयना क्षेत्र
भारत के प्रमुख विनाशकारी भूकंप –
भूकंप के परिणाम – केवल बसे हुए क्षेत्रों के आने वाला भूकंप ही आपदा या संकट बनता है। भूकंप का प्रभाव सदैव विध्वंसक होता है। भूकंप के कारण प्राकृतिक पर्यावरण में कई तरह से परिवर्तन हो जाते हैं। भूकंपीय तरंगों से धरातल में दरारें पड़ जाती हैं जिनसे कभी-कभी पानी के फब्बारे छूटने लगते हैं। इसके साथ बड़ी भारी मात्रा में रेत बाहर आ जाता है तथा इससे रेत के बांध बन जाते हैं। क्षेत्र के अपवाह तंत्र में उल्लेखनीय परिवर्तन भी देखे जा सकते हैं। नदियों के मार्ग बदल जाने से बाढ आ जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में भू-स्खलन हो जाते हैं तथा इनके साथ भारी मात्रा में चढ़ानी मलबा नीचे आ जाता है। इससे वहतक्षरण होता है। हिमानियाँ फट जाती हैं तथा इनके हिमधाव सुदूर स्थित स्थानों पर बिखर जाते हैं।
नए जल प्रपातों और सरिताओं की उत्पत्ति भी हो जाती है। भूकम्पीय आपदाओं से मनुष्य निर्मित भवन बच नहीं पाते हैं। सड़कें, रेलमार्ग, पुल और टेलीफोन की लाइनें टूट जाती हैं। गगनचुम्बी भवनों और सघन जनसंख्या वाले कस्बों और नगरों पर भूकंपों का सबसे बुरा असर होता है।
सनामी लहरें (Tsunami Tadial Waves) – समुद्री तल पर भूकंप उत्पन्न होने से 30 मीटर तक ऊँची ज्वारीय लहरें (सुनामी) उत्पन्न होती हैं। 26 दिसम्बर, 2004 को हिन्द महासागर में इण्डोनेशिया के निकट उत्पन्न भूकंप के कारण भयंकर सुनामी लहरें उत्पन्न हुई । इनका प्रभाव इण्डोनेशिया, थाईलैण्ड, म्यानमार, भारत तथा श्रीलंका के तटों पर अनुभव किया गया । इन भयंकर लहरों के कारण इन क्षेत्रों में लगभग 2 लाख लोगों की जाने गई तथा करोडों रुपयों की सम्पत्ति की हानि हुई है। यह पृथ्वी के इतिहास में सबसे भयंकर प्राकृतिक आपदा थी।
भूकंप के प्रभाव को कम करना-भूकंप के प्रभाव को कम करने का सबसे अच्छा तरीका है। इसकी निरंतर खोज-खबर रखना तथा लोगों को इसके आने की सम्भावना की सूचना देना । इससे आशंकित क्षेत्रों से लोगों को हटाया जा सकता है। भूकंप से अत्यधिक खतरे वाले क्षेत्र में भूकम्परोधी भवन बनाने की आवश्यकता है। भूकंप की आशंका वाले क्षेत्रों में लोगों को भूकम्परोधी भवन और मकान बनाने की सलाह दी जा सकती है।
प्रश्न 3.
आपदा प्रबंधन पर एक लेख लिखें।
उत्तर:
आपदा प्रबंधन (Disaster Management) – आपदा प्रबंधन में निवारक और संरक्षी उपाय, तैयारी तथा मानवों पर आपदा के प्रभाव को कम करने की व्यवस्था तथा आपदा प्रवण क्षेत्रों के सामाजिक आर्थिक पक्ष शामिल किए जाते हैं। आपदा प्रबंध की सम्पूर्ण प्रक्रिया को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है। प्रभाव चरण, पुनर्वास और पुननिर्माण चरण तथा समन्वित दीर्घकालीन विकास और तैयारी चरण ।
प्रभाव चरण के तीन अंग हैं –
- आपदा की भविष्यवाणी करना
- आपदा के प्रेरक कारकों की बारीकी से खोजबीन तथा
- आपदा आने के बाद प्रबंधन के कार्य
जलग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा का अध्ययन करके बाढ़ की भविष्यवाणी की जा सकती है। उपग्रहों के द्वारा चक्रवातों के मार्ग, गति आदि की खोज-खबर ली जा सकती है। इस प्रकार प्राप्त सूचनाओं के आधार पर पूर्व चेतावनी तथा लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने के प्रयत्ल शुरू किए जा सकते हैं। आपदा के लिए जिम्मेदार कारकों की बारीकी से की गई खोजबीन लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाने, भोजन, वस्त्र और पेय जल की आपूर्ति के लिए कार्यदल नियुक्त किए जा सकते हैं।
आपदाएँ मृत्यु और विनाश के चिह्न छोड़ जाती हैं। प्रभावित लोगों को चिकित्सा सुविधा और अन्य विभिन्न प्रकार की सहायता की जरूरत होती है। दीर्घकालीन विकास के चरण के अन्तर्गत विविध प्रकार के निवारक और सुरक्षात्मक उपायों की योजना बना लेनी चाहिए।
ससार के लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए यूनेस्को ने 1990-2000 के दौरान प्राकृतिक आपदा राहत दशक मनाया था। संसार के अन्य देशों के साथ भारत ने भी दशक के दौरान अक्टूबर में विश्व आपदा राहत दिवस मनाया था। इस अवसर पर भूकंप, बाढ़ और चक्रवात प्रवण क्षेत्रों के लोगों के लिए भारत सरकार ने जो करणीय और अकरणीय कर्म प्रचारित किए थे, वे बहुत उपयोगी हैं।
प्रश्न 4.
भूकंप आने पर करणीय एवं अकरणीय कर्मों का विवरण कीजिए।
उत्तर:
तत्काल कार्यवाही घर के अंदर-बाहर मत भागिए, अपने परिवार को दरवाजों और मेजों के नीचे. पलंगों पर लेटे व्यक्ति को पलगों के नीचे ले आइऐ, खिडकियों और चिमनियों से दूर रहिए। घर के बाहर-भवनों, ऊँची दीवारों, बिजली के झूलते तारे से दूर रहिए। क्षतिग्रस्त भवनों में दुबारा मत जाइए। वाहन चलाते समय-अगर कार या बस में यात्रा करते समय भूकंप के झटके महसस होने लगें तो ड्राइवर को वाहन रोकने के लिए कहिए। वाहन में ही बैठे रहिए।
तत्काल करने योग्य कार्य-घर में सभी आग बुझा दीजिए तथा हीटर बंद कर दीजिए। यदि घर क्षतिग्रस्त हो गया है, तो बिजली, गैस और पानी बंद कर दीजिए। यदि घर में लगभग आग को तत्काल न बुझाया जा सके, तो तुरंत घर छोड़ दीजिए। गैस जलाने के बाद यदि गैस के रिसाव का पता चले तो घर से निकल जाइए संभव हो तो रेगुलेटर बंद कर दें। पालतू और घरेलू जीव-जन्तुओं (कुत्ता-बिल्ली और गोपशु) को बंधन से मुक्त कर दीजिए।
प्रश्न 5.
भारत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का वर्णन करो। बाढ़ों के कारणों का उल्लेख करते हुए इनसे होने वाली क्षति का वर्णन करो। बाढ़ नियंत्रण के उपाए बताओ।
उत्तर:
बाढ़ समस्या (Flood Problem) – सूखे की भान्ति बाद भी एक प्राकृतिक विपदा है। प्रत्येक वर्ष भारत के किसी-न-किसी भाग में बाढ़ों द्वारा विस्तृत क्षेत्रों से धन-जन की हानि होती है। कई बार देश के एक भाग में भयानक सूखे की स्थिति तो दूसरे भाग में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इससे समस्या अधिक गम्भीर हो जाती है। भारत में बाढ़ एक मौसमी समस्या है जब मानसून की अनियमित वर्षा से नदियों में बाढ़ आ जाती है। जब नदी के किनारों के ऊपर से पानी बह कर समीपवर्ती क्षेत्रों में दूर-दूर तक फैल जाता है तो इसे बाढ़ का नाम दिया जाता है।
भारत ‘नदियों का देश’ है जहाँ अनेक छोटी-बडी नदियाँ बहती हैं। ये नदियाँ वर्षा ऋतु में भरपूर बहती हैं, परंतु शुष्क ऋतु में इनमें बहुत कम जल होता है। निरंतर भारी वर्षा के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। वर्षा की तीव्रता तथा वर्षाकाल की अवधि अधिक होने से बाढ़ों को सहायता मिलती है। मानसून के पूर्व आरम्भ या देर तक समाप्त होने से बाढ़ उत्पन्न होती है।
ब्रह्मपुत्र नदी में मई-जून मास में बाढ़ साधारण बात है। उत्तरी भारत की नदियों में वर्षा ऋतु में बाढ़ आती हैं। नर्मदा नदी में अचानक बाढ़ (Flash floods) आती हैं। तटीय भागों में चक्रवातों के कारण मई तथा अक्टूबर मास में भयानक बाढ़ आती हैं । सन् 1990 में मई मास में आन्ध्र प्रदेश में खाड़ी बंगाल के चक्रवात से भारी क्षति हुई जिसमें लगभग 1000 व्यक्ति मर गए।
बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र (Flood Affected Areas) – भारत में मैदानी भाग में नदी घाटियों में अधिक बाढ़ें आती हैं। देश का लगभग 1/8 भाग बाढ़ों से प्रभावित रहता है। 60 प्रतिशत बाढ़ अधिक वर्षा के कारण उत्पन्न होती हैं। असम, बिहार, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल राज्य स्थायी रूप से बाढ़ ग्रस्त रहते हैं। इन प्रदेशों में अधिक वर्षा तथा बड़ी-बड़ी नदियों के कारण बाढ़ समस्या गम्भीर है। एक अनुमान के अनुसार देश में 78 लाख हेक्टेयर भूमि पर प्रति वर्ष बाढ़ आती हैं। नदी घाटियों के अनुसार बाढ़ क्षेत्रों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जाता है
1. हिमालय क्षेत्र की नदियाँ (The Rivers of the Himalayas) – इस भाग में गंगा तथा ब्रह्मपुत्र दो प्रमुख नदियाँ हैं जिनमें प्रत्येक वर्ष बाढ़ें आती हैं। गंगा घाटी में यमुना, घाघरा, गंडक तथा कोसी जैसी सहायक नदियाँ शामिल हैं। इन नदियों में जल की मात्रा अधिक होती है। इनकी ढलान तीव्र होती है तथा इन नदियों के मार्ग में परिवर्तन होता रहता है। उत्तर प्रदेश तथा बिहार के विस्तृत क्षेत्रों में बाढों से भारी क्षति पहुँचती हैं। देश में बाढ़ों से कुल क्षति का 33% भाग उत्तर प्रदेश में तथा 27% भाग बिहार में होता है। कोसी नदी को बाढों के कारण ‘शोक की नदी” (River of Sorrow) कहा जाता है।
ब्रह्मपुत्र नदी असम, मेघालय तथा बंगलादेश में बाढों से हानि पहुँचती है। ब्रह्मपुत्र घाटी भारत में सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। यहाँ अधिक वर्षा तथा रेत व मिट्टी के जमाव से बाढ़ उत्पन्न होती हैं। भूकंप के आने के कारण नदियाँ अपना मार्ग बदल लेती हैं तथा बाढ़ की समस्या अधिक गम्भीर हो जाती हैं। दामोदर घाटी में दामोदर नदी के कारण भयंकर बाढ़ें आती रही हैं। इस नदी को “बंगाल का शोक” भी कहा जाता था परंतु दामोदर घाटी योजना के पूरा होने के बाद भी बाढ़ समस्या कम हो गई हैं
2. उत्तर-पश्चिमी भारत (North-Western India) – इस भाग में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश शामिल हैं। यहाँ झेलम, चिनाब, सतलुज, व्यास तथा रावी नदियों के कारण बाढ़ें उत्पन्न होती हैं। बरसाती नदियों में भी बाढ़ें आती हैं।
3. मध्य भारत (Central India) – इस भाग में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश तथा उड़ीसा शामिल हैं। यहाँ ताप्ती, नर्मदा तथा चम्बल नदियों में कभी-कभी बाढ़ें आती हैं। यहाँ अधिक वर्षा के कारण बाढ़ उत्पन्न होती हैं।
4. प्रायद्वीपीय क्षेत्र (Peninsular Region) – इस क्षेत्र में महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा काबेरी, नदियों में उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के कारण बाढ आती हैं। कई बार ज्वार-भाटा के कारण डेल्टाई क्षेत्रों में रेत और मिट्टी के जमाव से भी बाढ़ आती हैं।
बाढ़ों के कारण (Causes of Floods) – भारत एक उष्ण कटिबंधीय मानसूनी देश है। यहाँ मानसूनी वर्षा के अधिक होने से बाढ़ की समस्या गम्भीर हो जाती है। बाढ निम्नलिखित कारणों से आती है –
1. भारी वर्षा (Heavy Rain) – किसी भाग में एक दिन में निरंतर वर्षा की मात्रा 15 सेमी. से अधिक होने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
2. चक्रवात (Cyclones) – भारत के पूर्वी तट पर खाडी बंगाल के तीव्र गति के चक्रवातों से भयानक बाढ़ आती हैं। जैसे-मई, 1990 में आन्ध्र प्रदेश में चक्रवातों द्वारा निरंतर वर्षा से नदी क्षेत्रों में बाढ़ उत्पन्न होने से भारी हानि हुई।
3. वनों की कटाई (Deforestation) – नदियों के ऊपरी भागों में वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से अचानक बाढ़ उत्पन्न हो जाती हैं। शिवालिक की पहाड़ियों, असम, मेघालय तथा छोटा नागपुर के पठार में वृक्षों की कटाई के कारण बाढ़ की समस्या गम्भीर है।
4. नदी तल का ऊँचा उठना (Rising of the River Bed) – रेत तथा बजरी जमाव से नदी तल ऊँचा उठ जाता है जिससे समीपवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ का जल फैल जाता है।
5. अपर्याप्त जल प्रवाह (Inadequate Drainage) – कई निम्न क्षेत्रों में जल प्रवाह प्रबंध न होने से बाढ़ उत्पन्न हो जाती हैं।
बाढ़ से क्षति (Damage due to Floods) – बाढ़ से कृषि क्षेत्र में फसलों की हानि होती है। मकानों, संचार साधनों तथा रेलों, सड़कों को क्षति पहुँचती है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई बीमारियाँ फैल जाती हैं। देश में लगभग 2 करोड़ हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त क्षेत्र है जिसमें से 25 लाख हेक्टेयर भूमि में फसलें नष्ट हो जाती हैं। प्रतिवर्ष औसत रूप से 1 करोड़ जनसंख्या पर बाढ़ से क्षति का प्रभाव पड़ता है। लगभग 30 हजार पशुओं की हानि होती है।
एक अनुमान है कि औसत रूप से प्रति वर्ष 505 व्यक्तियों की बाढ़ के कारण मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार देश में लगभग 1500 करोड़ रुपये की आर्थिक क्षति पहुँचती है। सन् 1990 में देश में कुल क्षति 41.25 करोड़ रुपए की थी तथा 50 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त 162 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए। 28 करोड़ रुपये की फसलें नष्ट हुई। 862 जानें गई तथा 1,22,498 पशु नष्ट हो गये।
बाढ़ से रोकथाम (Flood Control) – भारत में प्राचीन समय से ही बाढ़ की रोकथाम के लिए उपाय किए जाते हैं। प्रायः नदियों के साथ-साथ तटबंध बनाकर बाढ़ नियंत्रण किया जाता था । सन् 1954 में राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण योजना शुरू की गई। इस योजना के अधीन बाढ़ नियंत्रण के लिए कई उपाय किए गए।
1. नदियों के जल सम्बन्धी आँकड़े इकट्ठे किए गए।
2. नदियों के साथ तटबंध बनाये गए। देश में लगभग 15.467 किमी लम्बे तटबंधों का निर्माण किया गया।
3. निम्न क्षेत्रों में लगभग 30,199 किमी लम्बी जल प्रवाह नलिकायें बनाई गई हैं। 762 नगरों तथा 4,700 गाँवों को बाढ़ों से सुरक्षित किया गया है।
4. कई नदियों पर जलाशय बना कर बाढ़ों पर नियंत्रण किया गया है। जैसे-दामोदर घाटी बहुमुखी योजना तथा भाखडा नांगल योजना। देश में बाढ़ों का पूर्व अनुमान लगाने के लिए (Flood Foredacasting) 157 केन्द्र स्थापित किए गए हैं।
5. नदियों के ऊपरी भागों में वन रोपण किया गया है। सातवीं पंचवर्षीय योजना के अन्त तक 2710 करोड़ रुपए बाढ़ नियंत्रण पर व्यय किए गए जबकि आठवीं योजना पर 9470 करोड रुपये के व्यय का अनुमान है।
6. केरल तट पर सागरीय प्रभाव से बचाव के लिए 42 किमी लम्बी समद्री दीवारों का निर्माण किया गया तथा कर्नाटक तट पर 73 किमी लम्बी समुद्री दीवारें बनाई गई।
7. देश में बाढ़ के पूर्व निर्माण संगठन (Flood Fore-casting Organisation) की स्थापना की गई है। इसके अधीन 157 केन्द्र स्थापित किए गए हैं जिनकी संख्या इस शताब्दी के अन्त तक 300 हो जायगी।
8. महानदी घाटी में हीराकुड बाँध, दामोदर घाटी में कई बाँध, सतलुज नदी पर भाखड़ा डैम, व्यास नदी पर पौंग डैम तथा ताप्ती नदी पर डकई बाँध बनाकर बाढ़ों की रोकथाम की गई है।
प्रश्न 6.
सूखा क्या है? भारत में इसके कारणों एवं प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
जब जल तथा नमी की उपलब्धता कुछ देर के लिये सामान्य से काफी कम होती हे तो सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है। High Powered Committce on Disaster Management के अनुसार कृषि, पशुधन, उद्योग अथवा मानवीय जनसंख्या की आवश्यकताओं से कम जल उपलब्ध होने की सूखा कहा जाता है।
सूखे का मुख्य कारण-भारत में वर्षा का अपर्याप्त होना तथा असमान वितरण के कारण मुख्य रूप से सूखा होता है। पश्चिमी और मध्य भारत को मौनसूनी वर्षा की अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है। यही नहीं यहाँ वर्षा केवल अनिश्चित ही नहीं अपर्याप्त भी है। वर्षा की कमी जल विज्ञान संबंधी और कृषीय सूखे को प्रेरित करती है।
भारत के कुल क्षेत्रफल के 19% भाग को सूखे की मार झेलनी पड़ती है। इस क्षेत्र में देश की 12% जनसंख्या रहती है। भारत के कुछ राज्यों में सूखा एक स्थायी लक्षण है। देश का लगभग 30% क्षेत्र सूखा प्रदेश है।
सूखे का प्रभाव – सूखे के कारण खाद्यान्नों जल और चारे की कमी हो जाती है, इन्हें क्रमश: अकाल, जलकाल और तिनकोण कहते हैं। कभी-कभी तीनों की कमी एक साथ हो जाती है तब इसे त्रिकाल कहते हैं।
- सूखे के बाद होनेवाले अकाल के कारण मानवों एवं पशुधन का भारी मात्रा में पलायन आरंभ हो जाता है।
- सन् 1987 में भारत के आंध्रप्रदेश, गुजरात, हिमाचल, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश आदि 12 राज्यों में भयंकर सूखा पड़ा था।
- सन् 2002 में मानसूनी वर्षा के न होने से भारत के मध्यवर्ती पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में भयंकर सूख पड़ा।
प्रश्न 7.
चक्रवात आने पर करणीय एवं अकरणीय कर्मों का विवरण कीजिए।
उत्तर:
अग्रिम सूचना और सलाह के लिए रेडियो सुनते रहिए। बचाव के लिए पर्याप्त समय दीजिए चक्रवात कुछ घंटों में मार्ग की दिशा, गति तथा तीव्रता बदल सकता है। अतः नवीनतम सूचना के लिए रेडियो को निरंतर चलाए रखिए। यदि आपके क्षेत्र के लिए तूफानी पवनों या प्रबल झंडा की भविष्यवाणी की गई हो तो खुले तख्ते, नालीदार, टीन, खाली डिब्बे या ऐसी ही अन्य वस्तुएँ, जो पवन के साथ उड़कर खतरा बन सके, बांध दीजिए या स्टोर में रख दीजिए।
खिड़कियों को टूटने से बचाने के लिए उन्हें बंद रखिए। निकट के सुरक्षित स्थान में चले जाइए या किसी अधिकार प्राप्त सरकारी संस्था के आदेश पर क्षेत्र को छोड़ दीजिए। जब तूफान आ ही जाए, तो घर के अंदर रहिए। अपने घर के सबसे मजबूत भाग में शरण लीजिए।
रेडियो सुनिए और निर्देशों का पालन कीजिए। यदि छत उड़ने लगे, तो मकान के सुरक्षित भाग की खिड़की को खोल दीजिए। यदि आप खले में फंस गए हैं, तो शरण खोजिए। तूफान के दौरान पवनों के शान्त होने पर घर से बाहर या पुलिन (beach) पर मत जाइए। चक्रवातों के साथ प्रायः या झील में ऊँची-ऊंची लहरें उठती हैं।
प्रश्न 8.
बाढ़ आने पर करणीय एवं अकरणीय कर्मों का विवरण कीजिए।
उत्तर:
अग्रिम सूचना और सलाह के लिए रेडियो सुनिए। बिजली के सभी उपकरण बंद कर दीजिए। घर के सभी कीमती सामान और कपडे बाढ के पानी की पहुँच से दूर रखिए। ऐसा तभी कीजिए जब बाढ की चेतावनी मिली हो या आपको आशंका हो कि बाढ़ का पानी आपके घर में घुस जायगा। वाहनों, फार्म के पशुओं तथा आसानी से उठाई जा सकने वाली वस्तुओं को निकट की ऊँची – भूमि पर पहुँचा दीजिए। खतरनाक प्रदूषण को रोकिए।
सभी कीटनाशकों को पानी की पहुँच से दूर रखिए। यदि आपको घर छोड़ना पड़े तो बिजली और गैस बंद कर दीजिए। घर छोड़ने की मजबूरी में सभी बाहरी खिड़कियों और दरवाजों पर ताले लगा दीजिए। यदि आप बच सकते हैं, तो बाढ़ के पानी में पैदल या कार में बैठकर प्रवेश मत कीजिए। अपने आप बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र के इधर-उधर मत घूमिए ।
प्रश्न 9.
भारत के प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं का वर्गीकरण कर किसी एक का वर्णन करें।
उत्तर:
प्राकृतिक आपदा, महाविनाशकारी, अप्रत्याशित और अनियंत्रणीय परिघटना है। ये आपदायें –
- जैव
- भू-वैज्ञानिक
- भूकंपीय
- जल विज्ञान या मौसमी दशाएँ या प्राकृतिक पर्यावरण की प्रतिक्रियाएँ होती है?
भूकंप, चक्रवाती तूफान, आकस्मिक बाढ़, बादलों का फटना, सूखा आदि प्राकृतिक आपदायें कही जाती हैं। चक्रवात-600 किमी. या इससे अधिक व्यास तफानों में सबसे विनाशक या भयंकर होते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप संसार में चक्रवातों द्वारा सर्वाधिक दुष्प्रभावित क्षेत्र है। उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति के विषय में कोई भी सर्वमान्य सिद्धांत नहीं बना है। जब कमजोर रूप से विकसित कम उबाव के क्षेत्र में चारों ओर तापमान की क्षतीज प्रवणता बहुत कम होती है तब उष्ण कटिबंधीय चक्रवात बन सकता है।
अधिकांशतः चक्रवातीय क्षति, तेज पवनों, मुसलाधार वर्षा और समुद्र में उठने वाली ऊँची तूफानों ज्वारीय लहरों के द्वारा होती है। पवनों की तुलना में चक्रवातीय वर्षा के कारण आई बाढ अधिक विनाशकारी होती है। वर्तमान संयम में चक्रवातों की चेतावनी व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार होने से तथा प्रर्याप्त और सामूहिक कार्यवाही से चक्रवात में मरने वालों की संख्या में कमी आयी है।
प्रश्न 10.
चक्रवात किसे कहते हैं? चक्रवातों द्वारा क्षति का वर्णन करें।
उत्तर:
चक्रवात (Cyclones) – 600 किमी या इससे अधिक व्यास वाले चक्रवात, पृथ्वी के वायुमंडलीय तूफानों में सबसे अधिक विनाशक और भयंकर होते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप संसार में चक्रवातों द्वारा सबसे अधिक दुष्प्रभावित क्षेत्र हैं। संसार में अपने वाले चक्रवातों में से 6 प्रतिशत यहीं आते हैं।
उत्पत्ति – जब कमजोर रूप से विकसित कम दबाव के क्षेत्र के चारों ओर तापमान की क्षैतिज प्रवणता बहुत अधिक होती है, तब उष्ण कटिबंधीय चक्रवात बन सकता है। चक्रवात ऊष्मा का इंजिन है तथा इसे सागरीय तल से ऊष्मा मिलती है। संघनन के बाद मुक्त ऊष्मा, चक्रवात के लिए गतिज ऊर्जा (kinetic energy) में बदल जाती हैं।
चक्रवात की उत्पत्ति की निम्नलिखित अवस्थाएँ हैं –
- महासागरीय तल का तापमान 26° से अधिक।
- बंद समदाब रेखाओं का आविर्भाव।
- निम्न वायु दाब, 1,000 मि.बा. से कम होना।
- चक्रीय गति के क्षेत्रफल, प्रारम्भ से इसके अर्धव्यास 30 से 50 किमी फिर क्रमश: 100200 किमी और 1,000 किमी तक भी बढ़ जाते हैं।
- ऊर्ध्वाधर रूप में पवन की गति का प्रारम्भ में 6 किमी की ऊँचाई तक बढ़ना तथा इसके बाद और भी ऊँचा उठाना।
चक्रवातों द्वारा क्षति-प्रभंजन की गति वाली पवनों, प्रभंजन की लहरों तथा मूसलाधार वर्षा से उत्पन्न बाढ़ों के कारण ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। अधिकतर तूफान अत्यन्त तेज पवनों और तूफानी लहरों के द्वारा भारी क्षति पहुँचाते हैं । पर्वतीय क्षेत्रों में ढाल पर अत्यन्त तीव्रता से बहने वाला वर्षा जल अपने सामने आने वाली हर वस्तु को अपनी चपेट में लेकर भारी नुकसान करता है।
तूफानी लहरों की तीव्रता, पवन की गति, दाब प्रवणता, समुद्र की तली की स्थलाकृतियाँ तथा तटरेखा की बनावट पर निर्भर करती है। अनेक क्षेत्रों में चक्रवातों की चेतावनी व्यवस्था के बावजूद, ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात धन-जन को अपार क्षति पहुँचाते हैं।