Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 13 पौष्टिक आहार : उचित चयन, तैयारी, पकाना तथा संग्रह Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 13 पौष्टिक आहार : उचित चयन, तैयारी, पकाना तथा संग्रह
Bihar Board Class 11 Home Science पौष्टिक आहार : उचित चयन, तैयारी, पकाना तथा संग्रह Text Book Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है –
(क) अंडा
(ख) दाल
(ग) पालक
(घ) सोयाबीन
उत्तर:
(घ) सोयाबीन
प्रश्न 2.
40% प्रोटीन पाया जाता है।
(क) सोयाबीन
(ख) दाल
(ग) दूध
(घ) मूंगफली
उत्तर:
(क) सोयाबीन
प्रश्न 3.
राइबोप्लोबिन और फॉलिक अम्ल में विटामिन काफी मात्रा में पाया जाता है।
(क) विटामिन ‘A’ में
(ख) विटामिन ‘B’ में
(ग) विटामिन ‘C’ में
(घ) विटामिन ‘D’ में
उत्तर:
(ग) विटामिन ‘C’ में
प्रश्न 4.
वयस्क पुरुष-शरीर भार होता है –
(क) 50 किग्रा
(ख) 60 किग्रा
(ग) 80 किग्रा
(घ) 90 किग्रा
उत्तर:
(ख) 60 किग्रा
प्रश्न 5.
वयस्क स्त्री भार कि. ग्रा. होता है.
(क) 60 किग्रा
(ख) 50 किग्रा
(ग) 40 किग्रा
(घ) 70 किग्रा
उत्तर:
(ग) 40 किग्रा
प्रश्न 6.
कार्टिलेज से अस्थियों में परिवर्तित होने की क्रिया को कहते हैं। [B.M.2009A]
(क) कैल्सिकरण
(ख) गम्यता
(ग) निर्जलीकरण
(घ) अवशोषण
उत्तर:
(क) कैल्सिकरण
प्रश्न 7.
भाप द्वारा पकाया गया भोजन – [B.M.2009A]
(क) स्वादहीन होता है।
(ख) स्वास्थ्य के लिए उत्तम है
(ग) कच्चा होता है
(घ) हल्का होता है
उत्तर:
(ख) स्वास्थ्य के लिए उत्तम है
प्रश्न 8.
भोजन पकाने से क्या बदलाव आता है ? [B.M.2009A]
(क) भोजन में भौतिक बदलाव आता है
(ख) भोजन स्वादिष्ट एवं सुपाच्य हो जाता है
(ग) पोषक मूल्य घट जाता है
(घ) सुरक्षित रहता है
उत्तर:
(ख) भोजन स्वादिष्ट एवं सुपाच्य हो जाता है
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
शीघ्र नष्ट होने वाले दो पदार्थों के नाम बताएँ।
उत्तर:
1. दूध
2. मांस।
प्रश्न 2.
शीघ्र नष्ट न होने वाले खाद्य पदार्थ कौन-से हैं ?
उत्तर:
अनाज, दालें, तेल, घी, नमक इत्यादि।
प्रश्न 3.
खाद्य पदार्थ खरीदते समय ध्यान रखने योग्य कोई दो बातें बताइए।
उत्तर:
1. खाद्य पदार्थ आवश्यकतानुसार ही खरीदें।
2. संग्रह के लिए उपलब्ध स्थान के अनुसार सामग्री खरीदें।
प्रश्न 4.
शीघ्र नष्ट होने वाले पदार्थ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
सामान्य ताप पर रखे जाने पर इन खाद्य पदार्थों के 3 दिन में ही रंग-रूप में परिवर्तन आने लगता है क्योंकि यह शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।
प्रश्न 5.
खाद्य पदार्थ दूषित कब माना जाता है ?
उत्तर:
जब निम्नलिखित परिवर्तन पाए जाएँ:
- रंग
- स्वाद
- गंध
- दिखावट
- रचना
- सघनता
- आकार
- पोषण मूल्य।
प्रश्न 6.
खाद्य संदूषण को प्रभावित करने वाले चार कारक बताइए।
उत्तर:
- जीवाणु तथा एन्जाइमों की उपस्थिति।
- रासायनिक क्रियाएँ।
- बाह्य चोट।
- चूहों, कीड़ों, झींगुरों द्वारा नुकसान या अजैविक संदूषण।
प्रश्न 7.
खाद्य संदूषण की सहायतार्थ परिस्थितियाँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर:
- जैविक खाद्य पदार्थ
- अनुरूप तापमान
- नमी/पानी
- हवा।
प्रश्न 8.
खाद्य परिरक्षण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
जब किसी खाद्य पदार्थ को लम्बे समय तक –
1. रोगवाहक जीवाणुओं व रासायनिक पदार्थों के प्रभाव से मुक्त रखा जा सके।
2. उनके रंग, रचना, स्वाद, सुगंध व पोषण मूल्य बनाये रखा जा सके तो उसे खाद्य परिरक्षण कहते हैं।
प्रश्न 9.
पौष्टिक तत्त्वों के स्तर को बढ़ाने के क्या उपाय हैं ?
उत्तर:
पोषक तत्त्वों का स्तर निम्नलिखित तीन उपायों से बढ़ाया जा सकता है:
- अंकुरण (Germination)
- खमीरीकरण या किण्वन (Fermentation)
- मिला-जुलाकर पकाना (Combination)
प्रश्न 10.
पोषण प्रक्रिया बढ़ाने का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
पोषण को मिलने वाली मात्रा और स्तर में सुधार करना। ये उपाय घर पर या औद्योगिक स्तर पर किए जा सकते हैं।
प्रश्न 11.
आपने दो महीने पहले 50 किलो चावल खरीदा था। आपको यह कैसे पता चलेगा कि यह खराब हो गया है। इसके खराब होने के दो कारण बताएँ।
उत्तर:
- चावल में नमी
- ड्रम में नमी
- चावल में पहले से ही कीड़ा लगा हो
- गर्म अंधेरे वाली जगह पर संगृहीत हो।
प्रश्न 12.
खिचड़ी सादे चावलों से ज्यादा पौष्टिक क्यों है ? एक और व्यंजन का नाम लिखें जिसमें यही सिद्धांत पाया जाता हो।
उत्तर:
खिचड़ी में अच्छी किस्म का प्रोटीन पाया जाता है जिसको मिला जुलाकर खाने वाला सिद्धान्त है। अन्य उदाहरण जैसे –
1. अनाज + दाल
2. अनाज + दूध
3. अनाज + सब्जियाँ।
व्यंजन-दलिया, डोसा, रायता, डोकला, भरवां पराठा।
प्रश्न 13.
दो सुविधाजनक खाद्य पदार्थों के नाम बताएँ। अपने प्रतिदिन के भोजन में इन्हें खाने से एक लाभ व एक हानि लिखें।
उत्तर:
सुविधाजनक खाद्य पदार्थ-बोतलबन्द या डिब्बा बंद सुरक्षित पदार्थ, जैसे-जैम, जैली, अचार, चटनी, फल-चैरी और फलों का रस।
लाभ –
- समय की बचत
- ईंधन की बचत
- आसानी से संगृहीकरण किया जा सकता है
- मेहनत कम लगती है 5. देर तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
हानियाँ:
- यह महंगे होते हैं।
- खाद्य परिरक्षकों तथा रासायनिक पदार्थों का हानिकारक प्रभाव
- कम पौष्टिक होना।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
खाद्य पदार्थों को उनके नष्ट होने के समय का किन आधारों पर वर्गीकरण किया जा सकता है ?
उत्तर:
- विकारीय अथवा शीघ्र नष्ट होने वाले खाद्य पदार्थ (Perishable foods): दूध, दूध से बने पदार्थ, हरी पत्तेदार सब्जियाँ आदि।
- अविकारीय अथवा नष्ट न होने वाले खाद्य पदार्थ (Non perishable foods): गेहूँ, दालें, चावल, तेल, घी, आदि।
- अर्ध-विकारीय अथवा नष्ट न होने वाले खाद्य पदार्थ (Semi-perishable foods): मैदा, सूजी, बेसन, मक्खन आदि।
- सुविधाजनक खाद्य पदार्थ (Convenience foods): दूध पाउडर, जमे हुए खाद्य पदार्थ, डिब्बाबन्द खाद्य पदार्थ, डबल रोटी आदि।
प्रश्न 2.
सुविधाजनक खाद्य पदार्थ किसे कहते हैं ?
उत्तर:
सुविधाजनक खाद्य पदार्थ (Convenience Foods): ऐसे पदार्थ जिससे महिला को किसी भी समय परिवार को भोजन देने की सुविधा की सामर्थ्य हो, सुविधाजनक खाद्य-पदार्थ कहलाते हैं। खाद्य पदार्थ को पहले से तैयार, आधे पके या पकाने की आवश्यकता नहीं होती, केवल गर्म करने पड़ते हैं। शीघ्र नष्ट होने वाले पदार्थों को साफ करके बनाकर जमा दिया जाता है तथा इस प्रकार वह सुविधाजनक खाद्य पदार्थ बन जाते हैं।
ये पदार्थ हैं –
- बोतल बन्द या डिब्बा बंद सुरक्षित पदार्थ, जैसे जैम, जैली, अचार, चटनी, फल, चैरी और फलों का रस।
- साग, पुलाव, पालक-पनीर, मटर-पनीर इत्यादि।
- सूखे हुए खाद्य पदार्थ जैसे दूध का पाउडर, खोआ, सूप का सूखा पाउडर, गाढ़े रस के सत्तु इत्यादि।
जमे हुए पदार्थ-मटर, गाजर, टमाटर, भिंडी और फूलगोभी आदि। आज के समय में भिन्न-भिन्न कंपनियाँ कई प्रकार के खाद्य बाजार में ला रही हैं। __तुरत प्रयोगार्थ जमे हुए तैयार खाद्य पदार्थ भी मिलते हैं, जैसे कटलेट, कबाब, सीख, सलामी, चटनियाँ इत्यादि।
प्रश्न 3.
मसाले खरीदते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखेंगे?
उत्तर:
- जहाँ तक सम्भव हो, साबुत मसाले ही खरीदें।
- यदि पिसे हुए खरीदने हों तो खुले मसाले न खरीदें, पैकेट बन्द ही खरीदें।
- विश्वसनीय नाम व साख के मसाले खरीदें।
- पैकेट पर एगमार्क (Agmark) की मोहर लगे मसाले ही खरीदें।
- रंग व स्वाद परख कर ही मसाले खरीदें, यदि मसाला पुराना है तो सुगन्ध नहीं आएगी।
- विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें, कम मात्रा में खरीदें ताकि उनकी सुगन्ध बनी रहे।
प्रश्न 4.
सूखे मेवों को खरीदने से पूर्व इनका निरीक्षण कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर:
- सूखे मेवे साफ प्राकृतिक रंग व चमक वाले होने चाहिए।
- दाग, धब्बे, कीड़े, मिट्टी, पत्थर न हों।
- सिकुड़े हुए न हों।
- क्रय करने से पूर्व इन्हें तोड़ कर इनकी गिरी का निरीक्षण कर लेना चाहिए। यदि उनमें किसी प्रकार का जाला अथवा कीड़ा लगा हो तो उन्हें नहीं खरीदना चाहिए।
- फफूंदी के लिए भी इनका निरीक्षण करना आवश्यक है क्योंकि सूखे मेवों में फफूंदी विषैला पदार्थ उत्पन्न करती है जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक होता है।
प्रश्न 5.
दूध संग्रह (Storage of Milk) करते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगी?
उत्तर:
दूध एक शीघ्र नष्ट होने वाला खाद्य पदार्थ है। अतः इसे उचित प्रकार से संगृहित किया जाना चाहिए।
- दूध को उबाल कर ठण्डा करके ठण्डे स्थान पर रखें।
- यदि फ्रिज नहीं है तो गर्मियों में 5-6 घण्टे पश्चात् दोबारा उबाल कर रखने से दूध खराब नहीं होता।
- पुराने दूध को ताजे दूध में नहीं मिलाना चाहिए।
- तेज गन्ध वाले पदार्थों जैसे प्याज, लहसुन, खरबूजा आदि से दूध को दूर रखें क्योंकि यह गन्ध को बहुत जल्द ग्रहण कर लेता है।
प्रश्न 6.
भोजन पकाने के सिद्धांत का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भोजन पकाने के सिद्धांत (Principles of Cooking): प्रतिदिन के पकाने के लिए वैज्ञानिक सिद्धांतों के प्रयोग से परिवार के हर सदस्य का स्वास्थ्य सुनिश्चित किया जाता है। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि हम इन सिद्धांतों को बेहतर समझें और उपभोक्ता की जानकारी के लिए अध्ययन करें।
पकाने के सिद्धान्त निम्न हैं –
1. सुगंध को सुरक्षित रखना (To keep ‘Flavour in’): जब आप खाद्य पदार्थों को ढंककर या खुले में वसा माध्यम में पकाते हैं जैसे कि पकौड़े, कटलट, आलू चिप्स आदि तो खाद्य की सुगंध उसकी कड़क परत के अन्दर ही रह जाती है। यह खाद्य पदार्थों को स्वादिष्ट बना देती है तथा पाचक द्रव को सावित होने में सहायता होती है, जिससे पोषक तत्त्वों का बेहतर प्रयोग हो जाता है।
2. सुगंध को बाहर निकालना (To keep ‘Flavour out’): कभी-कभी खाने को पकाया जाता है ताकि उसकी सुगंध ग्रेवी व तरल में चली जाए, जैसे मीट करी, समग्र सब्जियों व मटन ब्रोध आदि धीमे-धीमे पकाया जाना, खाने के आकार को भी बदल देता है। पानी में घुलनशील पोषक तत्त्व तरी में आ जाते हैं, जो पौष्टिक होने के अतिरिक्त स्वादिष्ट भी होते हैं।
3. उचित पकाने के तरीकों द्वारा अधिक से अधिक पौष्टिक खाना बनाना-प्रोटीन, कार्बोज व वसा जैसे पोषक तत्त्वों पर पकाने के प्रभाव का अध्ययन आवश्यक है।
प्रश्न 7.
खाद्य परिरक्षण प्रश्न (Food Preservation) के महत्त्व, लाभ बताइए।
उत्तर:
खाद्य परिरक्षण के निम्नलिखित लाभ हैं –
- ताजे खाद्य पदार्थ अधिक स्थान घेरते हैं, जैसे हरी पत्तेदार सब्जियाँ। इनके भार तथा घनत्व में कमी लाने के लिए इन्हें परिरक्षित करना चाहिए।
- परिरक्षित खाद्य पदार्थ भोजन में विभिन्नता लाते हैं।
- परिरक्षित खाद्य पदार्थों के आवागमन में सुविधा होती है।
- पोषण की दृष्टि से परिरक्षित खाद्य पदार्थों के प्रयोग से भोजन को पूर्णतः संतुलित बनाया जा सकता है।
- खाद्य पदार्थों के परिरक्षण की विधिया सीखकर बचे हुए खाली समय का सदुपयोग किया जा सकता है।
प्रश्न 8.
मिलाने-जुलाने से खाद्य पदार्थ पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
पोषक मान में वृद्धि –
- एक-दूसरे का पूरक होने के कारण सभी पौष्टिक तत्त्वों की प्राप्ति शरीर को हो जाती है।
- दो अंशतः या पूर्ण प्रोटीनों के सम्मिश्रण से पूर्ण प्रोटीन की प्राप्ति हो जाती है।
उदाहरण के लिए, अनाजों में लाइसिन (आवश्यक अमीनो अम्ल) कम मात्रा में तथा अन्य सभी उपयुक्त मात्रा में होते हैं। दालों में आवश्यक अमीनो अम्ल, मिथायोनिन कम मात्रा में तथा अन्य सभी उपयुक्त मात्रा में होते हैं, अतः इनका मिश्रण खाने से वे एक-दूसरे के पूरक का कार्य करते हुए लाइसिन मिथायोनिन सहित अन्य सभी आवश्यक अमीनो अम्लों की पूर्ति हो जाती है।
प्रश्न 9.
खमीरीकरण से खाद्य पदार्थों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
पोषक मान में वृद्धि –
- खाद्य पदार्थों में उपस्थित विटामिन B समूह (विशेष रूप से थायमिन) (B), राइबोफ्लेविन (B) तथा निकोटिनिक अम्ल (B) की मात्रा बढ़ कर दुगनी हो जाती है।
- लौह तत्त्व अपने संयोजी बंधनों से मुक्त होकर शरीर को सरल रूप में उपलब्ध हो जाता है।
- विटामिन ‘सी’ की मात्रा में भी वृद्धि हो जाती है।
प्रश्न 10.
अंकुरण की प्रक्रिया से क्या लाभ हैं ?
उत्तर:
लाभ:
- विटामिन बी समूह के विटामिनों की मात्रा दुगनी हो जाती है। नायसिन भी 48 घंटों में 50-100 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
- अनाजों तथा दालों में लोहा रासायनिक यौगिक के रूप में होता है तथा शरीर उसे पूर्णतः अवशोषित करने में समर्थ नहीं होता, परन्तु अंकुरण के कारण लोहा अपने यौगिकों से पृथक् होकर स्वतंत्र हो जाता है जिसका शरीर आसानी से उपयोग कर पाता है।
- विटामिन ‘सी’ (एस्कॉर्बिक एसिड) जो सूखी दाल में न के बराबर होता है, अंकुरण से 24 घण्टे में 7-8 मिग्रा., 48 घण्टे में 10-12 मिग्रा. तथा 72 घण्टे में 12-14 मिग्रा. प्रति 100 ग्राम तक हो जाता है।
- कुछ पॉलीसैक्राइड्स तथा डाइसैक्राइड्स सरलतम रूप (मोनोसैक्राइड्स) में बदल जाते हैं जो खाद्य पदार्थ को पाचनशील बनाते हैं। उदाहरण के लिए स्टार्च का सूक्रोज, फ्रक्टोज तथा ग्लूकोज में बदलना।
- अंकुरण के कारण अनाजों व दालों की ऊपरी परत फट जाती है तथा उन्हें पकाना सरल हो जाता है तथा कम समय लगता है।
- अंकुरण के द्वारा खाद्य पदार्थों में उपस्थित पोषण विरोधी तत्त्व नष्ट हो जाते हैं तथा पोषक तत्त्वों के उपयोग को बढ़ाते हैं।
- भोजन ज्यादा स्वादिष्ट तथा आकर्षक बन जाता है।
प्रश्न 11.
खाद्य पदार्थों को मिला-जुला कर खाने से क्या लाभ है? .
उत्तर:
सभी खाद्य पदार्थों में सभी पौष्टिक तत्त्व उपस्थित नहीं होते हैं परन्तु प्रत्येक में कोई न कोई तत्त्व अवश्य होता है। शारीरिक आवश्यकताओं के अनुसार यदि इन खाद्य पदार्थों का चयन करके मिश्रित रूप से खाया जाए तो न केवल हम पौष्टिक आहार की प्राप्ति कर सकते हैं वरन् धन तथा श्रम भी बचा सकते हैं।
प्रश्न 12.
डोसे का पौष्टिक मान अधिक होता है। वे विधियाँ बताइए जिसके द्वारा यह पौष्टिक मान बढ़ाया गया है। प्रत्येक का एक पौष्टिक तत्त्व लिखें जो बढ़ा हो।
उत्तर:
डोसा बनाते समय दो विधियाँ –
1. मिला-जुलाकर खाना
2. खमीरीकरण प्रयोग में लाया जाता है जिससे इसका पौष्टिक मान बढ़ता है। मिला-जुला कर खाने से प्रोटीन की किस्म बेहतर हो जाती है तथा खमीरीकरण से विटामिन बी कम्पलेक्स समूह (B-complex) तथा विटामिन सी (Vitamin C) की मात्रा बढ़ जाती है।
प्रश्न 13.
प्रेशर कूकर द्वारा भोजन पकाने की विधियों के चार लाभ लिखें।
उत्तर:
वाष्प के दबाव द्वारा (Pressure Cooking):
- प्रेशर कूकर में भोजन बनाने से समय, ईंधन व श्रम की बचत होती है।
- प्रेशर कूकर के साथ मिले सेपरेटर (Separater) से अलग तरह के भोजन एक साथ पकाए जा सकते हैं।
- प्रेशर कूकर में खाना बनाने से भोजन के पोषक तत्त्व सुरक्षित रहते हैं।
- कूकर में ताप व भाप भोजन में प्रवेश कर उसे जल्दी पका देते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भोजन पकाने का खाद्य पदार्थों की पौष्टिकता पर क्या प्रभाव पड़ता है ? [B.M. 2009A]
उत्तर:
भोजन में विभिन्नता स्वाद, सुगंध और आकर्षण लाने के लिए तथा भोजन को पाचनशील बनाने के लिए उसे पकाना आवश्यक हो जाता है। भोजन पकाना एक कला है, जो हमारी ‘संस्कृति’ का महत्त्वपूर्ण अंग है। भोजन को विभिन्न विधियों द्वारा पकाया जाता है पकाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसमें उपस्थित पोषक तत्त्व नष्ट न हो। भोजन पकाने पर कुछ पौष्टिक तत्त्व विघटित होकर आसानी से पचने योग्य हो जाते हैं कुछ कड़े होकर अपचित हो जाते हैं तथा कुछ नष्ट हो जाते हैं। खाद्य पदार्थों को पकाने में प्रयुक्त हुए ताप से विभिन्न पौष्टिक तत्त्वों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है।
1. कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate): आद्र ताप पर खाद्य पदार्थ में उपस्थित स्टार्च मुलायम हो जाती है, कोशिकाएँ फट जाती हैं और स्टार्च बाहर निकल जाता है जबकि शुष्क ताप पे पकाने पर स्टार्च डेक्सटिन में बदल जाता है और अधिक पाचनशील हो जाता है। चीनी, गुड़ शक्कर आदि गर्म होकर पिघल कर भूरे रंग का हो जाता है।
2. प्रोटीन (Protein): पंकने पर प्रोटीन अधिक पाचनशील हो जाते हैं। ताप से अंडे का प्रोटीन और दूध का प्रोटीन जम जाता है। माँस में उपस्थित प्रोटीन कोलेजन और इलास्टिन अघुलनशील शीघ्र होते है तथा ये शुष्क ताप द्वारा कड़ी हो जाते हैं। दालों में पाई जाने वाली प्रोटीन पकाने पर अधिक पौष्टिक तथा पाचनशील हो जाता है।
3. वसा (Fats): पकने पर वसा पर कोई अधिक प्रभाव न पड़ता है केवल इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वयत्युक पदार्थ को उचित ताप पर रखा जाय एवं सुनहरी रंग होने पर ताप से हटा लिया जाए।
4. विदामिन्स (Vitamins): पकाने पर विटामिन ‘सी’ सबसे अधिक नष्ट होते हैं अतः विटामिन ‘सी’ युक्त फल एवं सब्जियों को ताजा ही प्रयुक्त किया जाना चाहिए, विटामिन ‘बी’ समूह पकाने पे ताप द्वारा नष्ट हो जाता है साथ ही विटामिन ‘ए’ ‘डी’ ‘ई’ कुछ मात्रा में वसा में घूल जाते हैं।
5. खनिज लवण (Minerals): सामान्यतः पकने पर खनिज लवण पर प्रभाव नहीं पड़ता है किन्तु यदि भोज्य पदार्थ को पकाने के बाद उनका पानी फेंक दिया जाए तो बहुत से खनिज नष्ट हो जाते हैं। अतः खाद्य पदार्थों को वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर पकाना चाहिए ताकि पोषण मान उपस्थित रहे और पोषक तत्त्व कम-से-कम बर्बाद हो साथ ही जहाँ तक संभव हो बिना पालीस किया चावल, साबूत दाल, चोकर सहित अनाज का ही प्रयोग करना चाहिए।
प्रश्न 2.
खाद्य पदार्थों के चयन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ? विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर:
खाद्य पदार्थों के चयन को प्रभावित करने वाले कारक-जैसा खाओगे अन्य, वैसा होगा मन। कोई भी व्यक्ति अपौष्टिक खुराक पर कुछ समय तक बच जाएगा परन्तु शीघ्र ही उसका स्वास्थ्य गिरना शुरू हो जाता है। इसके परिणाम होंगे, कुपोषण, कमी के रोग, रोगग्रस्तता, शीघ्र व असामयिक मृत्यु।
आपके खाद्य पदार्थों के चयन को प्रभावित करने वाले कुछ कारक निम्नलिखित हैं –
1. माध्यम (Media): खाद्य पदार्थों के उत्पादक विज्ञापनों पर काफी पैसा खर्च करते हैं ताकि वह अपने पदार्थों को प्रचार करके उसकी मांग बढ़ा सकें। यह प्रचार जनता को मोहने के लिए व आकर्षित करने के लिए किया जाता है। आपको ऐसे कई विज्ञापनों के बारे में पता होगा जिन्हें दूरदर्शन, रेडियो पर देखते/सुनते हैं।
- कौन-सा खाद्य-पदार्थ वृद्धि के लिए आवश्यक होगा?
- ऊर्जा और बल के लिए आपको क्या लेना चाहिए?
- पकाने के कौन-से तेल में PUFA की मात्रा अधिक होती है ?
- अपनी चाय/कॉफी के लिए कौन-सा दूध पाउडर प्रयोग करना चाहिए?
- ऊपर लिखित उदाहरणों की तरह बहुत कुछ और भी हैं।
- उत्पादक समय व ऊर्जा बचाने की भी बात करते हैं, जैसे-मिनट में तैयार आदि।
2. सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्य (Cultural and family food values): इनका प्रभाव आपके भोजन पर प्रत्यक्ष रूप से होता है। अंडे, दूध, मांस और दूसरे अच्छे पदार्थ जीविका कमाने वाले को तथा परिवार के पुरुष सदस्यों को दिये जाते हैं। परिवार के दूसरे सदस्यों में शेष भाग बाँटा जाता है। कुछ राज्यों में दालें, ताजे फल और सब्जियाँ गर्भवती और स्तनपान करवाने वाली महिलाओं को नहीं दिया जाता।
ऐसे सांस्कृतिक रीति-रिवाज मातृत्व स्तर को नीचे गिरा देते हैं। कई परिवारों में मांसाहारी भोजन को खाने पर अधिक जोर दिया जाता है। सब्जियाँ काफी मात्रा में विटामिन और खनिज लवण देती हैं और इसके अतिरिक्त रूक्षांश भी देती हैं जो शारीरिक प्रक्रिया को नियंत्रित करने में सहायता देता है। यह वांछनीय है कि मूल्यों को भूलकर आगे बढ़ें। मिश्रित, ऋतु के अनुसार खाद्य पदार्थ कम दाम पर अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करते हैं।
3. मित्रसमूह वर्ग (Peer Group): मित्रसमूह का विशेषकर किशोरों की खाने-पीने की आदतों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। विकासशील बच्चों में चॉकलेट, शीतल पेय और पीजा, बर्गर आदि खाने की अधिक इच्छा होती है। अक्सर ये सब खाद्य पदार्थ पौष्टिक नहीं होते हालांकि इन पर काफी पैसे खर्च किए जाते हैं। यह अक्सर देखने में आया है कि बच्चे अपने मित्रों के साथ वह सब कुछ खा लेते हैं जो उनको स्वादिष्ट नहीं लगता। पोषण के अध्ययन से मित्रसमूह में खाने के चयन में बुद्धिमत्ता आती है।
4. आर्थिक कारण (Economical Factors): एक बुद्धिमत्ती गृहस्वामिनी अपने परिवार के लिए किफायती दामों पर संतुलित आहार का चयन करती है। उसे ऋतु के अनुसार खाद्य पदार्थों की उपलब्धि, उनकी पौष्टिक क्षमता के बारे में सब कुछ पता होता है। वह इनके लिए वही पदार्थ चयन करती है जिससे घर के लोगों को फायदा हो।
जैसे-खीर के लिए टूटे चावल और जैम बनाने के लिए सेब। एक बुद्धिमत्ती मां विशेष मौकों के लिए स्वादिष्ट भोजन घर पर बनाना अधिक पसंद करती है बजाय इसके कि बाहरी होटलों से महंगा खाना मंगाकर खाया जाए। कीमत, मात्रा, समय, ऊर्जा और ईंधन, हर ओर किफायत का ध्यान रखना चाहिए।
प्रश्न 3.
खाना पकाने के कौन-कौन-से कारण हैं ?
उत्तर:
खाना पकाने के कारण (Reasons of Cooking Food) :
1. भौतिक और रासायनिक परिवर्तन-पकाने से मांस में प्राकृतिक (भौतिक) बदलाव आता है जिससे इसे खाना आसान हो जाता है। कच्चा मांस खाया नहीं जाता। पकाने से इसका रंग और आकार भी बदल जाता है। आलू, मांस आदि में रासायनिक बदलाव भी आ जाता है। पकाने के बाद वे अधिक मीठे हो जाते हैं। स्टार्च कोशिकाएं फट जाती हैं और सारी मात्रा खाने के योग्य हो जाती हैं।
2. पाचन शक्ति बढ़ जाती है-सख्त खाद्यान्न जैसे सूखे बीज, मटर इत्यादि को नर्म करने के लिए पकाया जाता है। पाचक रस नर्म बीज के अन्दर पहुंच जाता है। यह प्रोटीन और कार्बोज का पूरा उपयोग सुनिश्चित कर लेता है।
3. स्वाद, सुगंध और रुचि में परिवर्तन-पकाने पर शकरकन्द का स्वाद बदल जाता है। मछली और मांस के गन्ध में बेहद सुधार हो जाता है अर्थात् उसकी सुगंध अच्छी हो जाती है तथा अधिक रुचिकर बन जाती है।
4. पोषक तत्त्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है-दालों, फलियाँ और सोयाबीन में रोधक ट्राइपसिन होता है। सूखे या नम पकाने पर यह नष्ट हो जाता है तथा पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है।
5.खाद्य पदार्थ को सुरक्षित बनाता है और भण्डारण समय बढ़ जाता है-कच्चा खाद्य पदार्थ खराब होना शुरू हो जाता है तथा शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। जैसे टमाटर । अगर आप इसको पका लें तो चटनी के रूप में लम्बी अवधि तक खराब नहीं होता। .. जीवाणु की उपस्थिति के कारण दूध फट जाता है। उबालने से वे जीवाणु मर जाते हैं और दूध के खराब होने की अवधि बढ़ जाती है।
6.भिन्नता के लिए पकाना-एक ही प्रकार का खाना खाते-खाते मन ऊब जाता है। पकाने से एक ही खाद्य पदार्थ को विभिन्न रूपों से खाया जा सकता है। जैसे गेहूँ का दलिया, चपाती, पराठा, पूरी-कचौरी और बिस्कुट आदि के रूप में खाया जाता है। पकाने से एक प्रकार से खाने से छुट्टी मिलती है।
प्रश्न 4.
खाद्य पदार्थों का किस प्रकार चयन, क्रय एवं संग्रह करेंगे?
उत्तर:
1. नष्ट होने वाले भोज्य पदार्थों का चयन, क्रय व संग्रह-इसके अन्तर्गत सब्जी, फल, जन्तुजन्य खाद्य पदार्थ जैसे-दूध, मछली, मीट आदि आते हैं। इन खाद्य पदार्थों से हमें प्रोटीन, विटामिन व खनिज लवण प्राप्त होते हैं।
चयन व क्रय (Selection & Purchase) :
1. दूध (Milk): कई प्रकार के दूध बाजार में उपलब्ध हैं। गर्मी पाकर दूध शीघ्र खराब होता है। ताजा दूध की सुगन्ध व स्वाद उत्तम होते हैं व रंग सफेद होता है। बासी दूध की सुगन्ध व स्वाद घटिया होते हैं। दूध का उपयोग करने से पहले उसे उबाल लेना चाहिए।
2. पनीर (Cheese): पनीर में नमी अधिक होती है। इसे स्वच्छ स्थान से ही खरीदना चाहिए व खरीदने के पश्चात् जल्दी ही उपयोग में ले लेना चाहिए। पनीर को छूकर देखें। यह सख्त व पीला न हो।
3. मक्खन (Butter): मक्खन में 11 से 16% नमी होती है। कमरे के तापक्रम पर यह जल्दी ही खराब हो जाता है। घर में बने मक्खन में नमी और भी ज्यादा होती है। नमक वाला प्रोसेस्ड मक्खन कुछ दिन रखा जा सकता है।
पशुजन्य पदार्थ (Animal Product):
1. अण्डा (Egg): यदि अण्डे को प्रकाश, जैसे जलती मोमबत्ती के सामने रखकर देखें तो उसमें उपस्थित वायु कोष (Air cell) छोटा पाएँगे। अण्डों के व्यापारियों द्वारा वर्गीकरण साइज के अनुसार किया जाता है। पुराने अण्डे में वायुकोष बड़ा होता है।
यदि पानी में डालने पर अण्डा ऊपर तैरने लगता है तो इसका अर्थ. अण्डा अन्दर से खराब है। अण्डा ऐसा खरीदें जो ऊपर से साफ व साबुत हो। टूटे अण्डों में जीवाणु प्रवेश पा जाते हैं। ऊपर लगी गन्दगी में उपस्थित जीवाणु साबुत अण्डे के अन्दर प्रवेश पा जाते हैं।
2. मछली (Fish):
- ताजा मछली का मांस ठोस हो।
- ऊपर की पर्त (Scales) कसी हुई व त्वचा भी जुड़ी होनी चाहिए।
- अगर मछली पर अंगुली से दबाव डालें तो गड्ढा नहीं पड़ता।
- अगर पानी में मरी मछली डालें तो वह डूब जाती है।
- खरीदते समय देखें कि मछली का गलफड़ा (Gills) चमकीले लाल रंग का हो।
- आँखें चमकीली हों।
- यदि छूने पर लसलसी हो तो इसका अर्थ है कि मछली फ्रिज या बर्फ पर नहीं रखी थी व बासी पड़ने लगी है।
- मछली में किसी प्रकार की गन्ध नहीं होनी चाहिए।
3. मांस (Meat): मांस का रंग चमकीला लाल रंग का होना चाहिए। स्पर्श करने पर चिकना व रेशे महीन प्रतीत होने चाहिए। उसके ऊपर लगा वसा सफेद एवं दृढ़ होना चाहिए। गहरे रंग का मोटे रेशे वाला, पीली नारंगी रंग के वसे वाला व स्पर्श पर अत्यधिक नर्म मांस उपयोग के लिए अच्छा नहीं होता।
मांस निम्न पशु के हो सकते हैं –
एक साल तक भेड़ का मांस (Lambs Meat)। एक साल के ऊपर वाली भेड़ का मांस (Mutton)। सूअर का मांस (Pork)। गाय का मांस (Beef)। पोर्क मांस में छोटे जानवर के मांस का रंग भूरे से गुलाबी रंग का हो सकता है परन्तु बड़े जानवर के मांस का रंग गहरे लाल रंग का होता है। सूअर के मांस को खाने से उसमें उपस्थित जीवाणु (Round worm) शरीर में प्रवेश पाकर Trichinosis नामक रोग उत्पन्न करता है इसलिए इसे अच्छी तरह पकाना चाहिए क्योंकि ऊँचे तापक्रम पर यह जीवाणु नष्ट हो जाता है। मांस सदैव साफ, स्वच्छ दुकानों से ही खरीदें। खास कर ऐसी दुकानों से जहाँ इसे ठण्डा रखने का साधन हो।
सब्जियाँ और फल (Vegetebles and Fruit): सब्जियों व फलों से भोजन रंग, बनावट व सुगन्ध के कारण अधिक आकर्षक हो जाता है। फल व सब्जियों से आहार में खनिज लवण व बी समूह के विटामिनों के अतिरिक्त विटामिन ए व सी भी पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है। फल व सब्जियाँ अधिक दिनों तक रखे नहीं जा सकते।
सब्जियाँ (Vegetables):
1. पत्ते वाली सब्जियाँ (Leafy Vegetables): इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के खाद्य आते हैं। जैसे-बथुआ, पालक, सरसों, हरा धनियाँ, मेथी आदि।
- पत्ते वाली सब्जी का रंग गहरा हरा हो, पीलापन लिये न हो।
- पत्तियाँ चमकदार व चिकनी हों व मुरझाई न हों।
- पत्तियाँ कीड़ों द्वारा खाई हुई या कीटाणुयुक्त नहीं होनी चाहिए।
- पत्तियाँ आधी टूटी या मिट्टी लगी भी नहीं होनी चाहिए।
2. अन्य सब्जियाँ (Other Vegetables): इनके अन्तर्गत बैंगन, खीरा, लौकी, भिण्डी, टमाटर, मटर, फूलगोभी, बन्दगोभी आदि आते हैं।
- ठोस, नमकीले रंग की हों।
- कीड़े या चोट नहीं लगे हों।
- जरूरत से ज्यादा न पकी हों।
- सूखी, मुरझाई, बेरंगी सब्जियाँ न खरीदें।
- फल वाली सब्जियाँ रसदार होनी चाहिए।
सब्जी के आकार देखकर सबसे बड़ी सब्जी न उठाएँ। मध्यम आकार की सब्जी अच्छी रहती है। इसके अतिरिक्त जिस प्रकार की विधि से बनानी है उस पर भी चयन निर्भर करेगा। टमाटर सलाद के लिए बड़े व ठोस होने चाहिए, परन्तु सब्जी में डालने के लिए छोटे आकार के भी चलेंगे।
3. फल (Fruits): कई फल सब्जियों की तरह उपयोग में आते हैं, जैसे टमाटर। गहरे पीले-नारंगी फलों में विटामिन ए अधिक होता है। आंवला, अमरूद, अनानास में विटामिन सी की मात्रा अधिक है।
- फल ताजे, पके, भारी, ठोस तथा चमकदार होने चाहिए।
- वे अत्यधिक पके न हों तथा फफूंदी आदि न लगी हो।
- सड़े व दागी फल न खरीदें।
- फल हरे व अधिक कच्चे भी न हों।
खट्टे रसदार फल जैसे संतरा, मौसमी आदि पतले छिलके वाले तथा मध्य आकार के अनुपात में हों तो ऐसे फल अधिक रसदार होते हैं। अन्य फलों में सेब, अनानास, अंगूर आदि आते हैं। केले पीले, थोड़े सख्त खरीदें व कमरे के तापक्रम पर पकने दें। पकने के पश्चात् केले बहुत जल्दी सड़ने लगते हैं। सेब अब पूरे साल ही उपलब्ध होते हैं। अच्छे सेब दृढ, चमकीले रंग के व भारी होते हैं। सेब को लम्बे समय तक रखने से वे बेस्वाद, सुगन्धरहित व भार में हल्के हो जाते हैं। अंगूर रस से भरे, मोटे, चमकीले, टहनी से लगे व लम्बे होने चाहिए।
अनानास अच्छे आकार का, सुगन्ध से भरपूर, पीले रंग का पका हुआ होना चाहिए। पके होने की जाँच करने के लिए उसके ऊपर की पत्तियों को खींच कर देखें। यदि पत्तियाँ आसानी से खिंच जाए तो समझें कि अनानास पका हुआ है। फल हमेशा मौसम में ही खरीदें। बेमौसम के फलों का स्वाद अच्छा नहीं होता तथा शीतगृहों में पड़े रहने के कारण पौष्टिकता भी कम हो जाती है। संग्रह (Storage) खाद्य पदार्थ एन्जाइम व जीवाणुओं के कारण खराब होता है। एक खराब खाद्य पदार्थ को उसकी खट्टी दुर्गन्ध, ऊपर उगी सफेद पर्त तथा लिसलिसे स्पर्श से पहचाना जा सकता है। निम्न तापक्रम खराब होने की क्रिया को कम कर देता है।
1. दूध (Milk): दूध को उबाल कर ठण्डा करके बर्तन को ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए। गर्मी पाकर दूध शीघ्र खराब हो जाता है। गर्मी के कुप्रभाव से बचने के लिए दूध के बर्तन को पानी से भरी परात में रखना चाहिए। ढक्कन पर गीला रूमाल डाल दें। रेफ्रीजरेटर व आइस बाक्स में भी दूध सुरक्षित रहता है। उबला दूध 12 – 24 घण्टे कमरे के तापक्रम पर रखा जा सकता है।
2. पनीर: पनीर सख्त न हो जाए इसलिए उसे चिकनाई का असर न होने वाले कागज में रखना चाहिए। यह भी जल्दी खराब हो जाता है। इसलिए बर्फ या फ्रिज में दो सप्ताह तक रख सकते हैं।
3. मक्खन: इसे भी मक्खन के कागज या बर्तन में ढंककर ठण्डे स्थान पर दो सप्ताह तक बिना खराब हुए रखा जा सकता है।
4. पशु जन्य खाद्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, कीमा आदि शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। इन्हें जमाव बिन्दु से कुछ कम तापक्रम पर थोड़े समय के लिए रखा जा सकता है। मांस खरीदते समय यह देखें कि दुकान पर
- मांस लटका हो ताकि उसे हवा लगती रहे।
- मक्खियों से बचाने की व्यवस्था हो। मलमल के थैले में लटकाना उचित होगा। थैला मांस से स्पर्श करता हुआ नहीं हो।
- घरों में रेफ्रीजरेटर में ही रखें।
अण्डों को भी ठण्डे स्थान पर फ्रिज में ही रखें।
फल एवं सब्जियाँ: फल और सब्जियाँ ताजा ही प्रयोग में लाना चाहिए। उन्हें टोकरियों में पृथक् फैलाकर रखें। जिस स्थान पर रखें, वह हवादार हो । आलू, प्याज जैसी जड़दार सब्जियाँ ठण्डे तथा अंधेरे स्थान पर रखें जिससे अंकुर न फूटे। फ्रिज में यदि सब्जियाँ खुली रखी जाती हैं तो वह आकार में छोटी होकर झुरियोंदार हो जाती हैं । फ्रिज में क्रिसपर (Crisper) वाले भाग में सब्जियों व फल को सुखाकर थैलियों में डालकर रखें।
II अर्द्ध नष्ट होने वाले खाद्य पदार्थ (Semi-Perishable Foods): इसके अन्तर्गत निम्नलिखित भोज्य पदार्थ आते हैं :
1. अनाज-अनाज के अन्तर्गत गेहूँ व उससे बने अन्य पदार्थ आते हैं, जैसे-मैदा, सूजी, आटा, दलिया आदि। यह सब गेहूँ को पीसकर बनाया जाता है। गेहूँ पीसने से उसकी ऊपरी सतह का ज्यादा क्षेत्र वातावरण के संपर्क में आता है। पकाने में समय कम लगता है और संग्रह कम समय के लिए कर सकते हैं।
साबुत गेहूँ को एक साल या अधिक समय तक संग्रह कर सकते हैं परन्तु उससे बने पदार्थ, जैसे-रवा, मैदा आदि को दो सप्ताह से कुछ महीनों तक ही रखा जा सकता है। दलिया एक पौष्टिक आहार है। एक अच्छा गुण (Quality) वाला दलिया स्वाद में मीठा, फफूंदी व दुर्गन्धरहित होता है परन्तु रखने पर इसमें जल्दी कीड़े पड़ जाते हैं।
सूजी के कण कई प्रकार के होते हैं। बहुत ही महीन कण वाली सूजी हलवा बनाने के उपयोग में लाई जाती है। थोड़े मोटे कण वाली सूजी उपमा, चिड़वा बनाने के काम में आती है। चयन करते समय कणों की एकरूपता, कणों का जाले से बंधना, पत्थर व गेहूँ के छिलके की अनुपस्थिति देखनी चाहिए। मैदे में कम प्रोटीन, लोहा, व बी समूह के विटामिन पाए जाते हैं। इसे सूजी से भी कम समय के लिए संग्रह कर सकते हैं। अच्छे गुण वाला मैदा सफेद, कीड़े रहित होता है। इसके कण आपस में जुड़कर ढीले नहीं बन जाने चाहिए।
चावल से चिड़वा व फूलिया (Rice fibres, rice puffs) बनाए जाते हैं। फूलिया काफी समय तक रखी जा सकती है। यह कुरमुरी, कंकड़ रहित, मिट्टी रहित होनी चाहिए। चिड़वा सफेद, कुरकुरा, कीड़े रहित व गन्दगी रहित होना चाहिए। अनाज में बहुधा कीड़े लग जाते हैं जो इन्हें काट देते हैं और पोषक तत्त्व को बिल्कुल नष्ट कर देते हैं।
कीड़े लग जाने से अनाज का भार भी कम हो जाता है। हमारे देश में अनाज का प्रमुख स्थान है। चावलों के लिए तो यह प्रसिद्ध है कि वह जितना पुराना होता है, उतना ही स्वादिष्ट तथा अच्छा बनता है। भारतीय ऐसा चावल पसंद करते हैं जो पकने के पश्चात् दाना-दाना अलग दिखाई दे। गेहूँ बहुत पुराना बढ़िया नहीं माना जाता। मार्च और अप्रैल के महीनों में जब गेहूँ की फसल होती है, तब बहुत से घरों में एक साल तक के लिए गेहूँ जमा कर लिया जाता है।
अनाज चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें –
- दिखावट।
- छूकर अनुभव करना।
- रंग।
- विभिन्न जाति या प्रकार।
- सुगन्ध।
- मिलावट, मिट्टी आदि।
- कीड़े।
- कीमत।
अनाज के कणों में एकरूपता होनी चाहिए। साफ, टूटे टुकड़ों की अनुपस्थिति, कीड़ेरहित, मिट्टी, कंकड़, रेत, तिनकेरहित अनाज के कुछ दाने मुँह में डाल कर चबाने से यदि दाना सख्त तथा मीठा है तो अनाज की किस्म अच्छी है। नमीयुक्त एवं कड़वे स्वाद के अनाज को नहीं खरीदना चाहिए। सूजी, मैदा आदि अधिक मात्रा में नहीं खरीदना चाहिए क्योंकि इनमें कीड़े पड़ जाते हैं।
2. दाल (Pulse): दालों में अरहर, चना, उड़द आदि दालें आती हैं। इन्हें भी अनाजों के समान देखकर चयन करना चाहिए। दालें साबुत और दली आती हैं। सूखे डिब्बों में भर कर रखें। नमी में बहुत जल्दी खराब हो जाती हैं।
3. वसा व तेल-घी का उपयोग हलवा, तड़का आदि के लिए किया जाता है। मक्खन, डबल रोटी या बेकिंग में उपयोग होता है। तेल सब्जियों के पकाने, तलने आदि के काम में आता है। हर प्रान्त में भिन्न प्रकार का चिकना पदार्थ पकाने के काम में आता है। बंगाल में सरसों का तेल, केरल में नारियल का तेल, गुजरात में मूंगफली का तेल उपयोग में ज्यादा आता है।
वसा या तेल खरीदते समय
- सुगन्ध
- वास्तविक रंग
- अन्य किसी तेल का मिश्रण
- गन्दगी
- दुकान पर सफाई से रखा देखकर ही लेना चाहिए।
तेल, घी खुला न लेकर बन्द डिब्बे में ही खरीदना चाहिए क्योंकि खुली चीजों में मिलावट आसानी से की जा सकती है।
संग्रह (Storage): कई घरों में एक भण्डार गृह होता है।
भण्डार (Store Room): घर में संग्रहीकरण हेतु एक भण्डार गृह का होना आवश्यक है। इसमें नमी नहीं होनी चाहिए अन्यथा वस्तुएँ खराब हो जाएँगी। दीवारों पर यदा-कदा सफेदी कराते रहना चाहिए। भण्डार गृह में वायु तथा धूप आने का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। फर्श पक्का होना चाहिए। कच्चे फर्श पर ईंटें या लकड़ी के तख्ने रखकर उस पर डिब्बे, कनस्तर आदि रखने चाहिए।
उसमें अलमारियाँ, एक मेज, तराजू तथा एक हिसाब लिखने की पुस्तिका भी होनी चाहिए। दाल के लिए ऐसे डिब्बें हों जिनमें वायु प्रवेश न कर सके। आटे के लिए कनस्तर तथा गेहूँ के लिए टंकी होनी चाहिए। डिब्बों, कनस्तरों व टंकियों पर पेण्ट कर देना चाहिए तथा उनमें रखी वस्तु के नाम का लेबिल लगाना चाहिए ताकि इन्हें निकालने में सुविधा रहे।
1. अनाज (Cereals): गेहूँ को सुरक्षित रखने के लिए सर्वप्रथम धूप में भली-भाँति सुखा लेना चाहिए तथा ड्रम में भरते समय छाया में सूखी हुई नीम की पत्तियाँ डाल देनी चाहिए। इससे गेहूँ में घुन नहीं लगता। नीम की पत्तियाँ कीटाणुनाशक एवं नि:संक्रामक होती हैं। यदि नीम की पत्ती न हो तो कीटाणुनाशक औषधि डाल कर सुरक्षित रखा जा सकता है परन्तु प्रयोग में लाने से पूर्व धोकर सुखा लेना चाहिए जिससे कीटाणुनाशक औषधि का असर न हो।
आटा अधिक नहीं खरीदना चाहिए क्योंकि अधिक रहने पर उसमें सीलन आ जाती है और कीड़े पड़ जाते हैं। आटे को सदैव ढककर सूखे स्थान पर रखना चाहिए। नया आटा लाने से पूर्व पुराने को काम में ले लेना चाहिए। चावल इल्लियों द्वारा नष्ट होता है। इनमें गुच्छियाँ बंध जाती हैं। सुरक्षा के लिए हल्दी व तेल का प्रयोग किया जाता है। ऐसा करने से कीड़े चावल को खराब नहीं करते । चावल को धूप में नहीं सुखाना चाहिए। इससे यह टूट जाता है।
2. दाल (Pulse): प्राय: दालों को भी पूरे मास की आवश्यकतानुसार खरीदा जाता है। साबुत दाल को दलने से पूर्व साफ करके तेल और पानी लगाकर रात भर बोरी या अन्य कपड़े में रख देना चाहिए। दूसरे दिन 3-4 घण्टे तक धूप में सुखाकर दल लेना चाहिए। दाल को संग्रह करने से पूर्व छाँट, फटककर दिन भर तेज धूप में सुखाना चाहिए ताकि नमी न रहे। कीड़ों से बचाने के लिए हींग के टुकड़े रख देने चाहिए। फिर इन्हें सूखे डिब्बों में भली प्रकार बन्द करके रखना चाहिए। डिब्बा हवा बन्द (Air tight) हो व नमी वाले स्थान पर न रखें। समय-समय पर दालों का निरीक्षण करते रहें।
3. शक्कर (Sugar): शक्कर शीघ्रता से खराब नहीं होती । इसलिए इसे पर्याप्त मात्रा में खरीद सकते हैं। इसे नमी से दूर रखना चाहिए । इसे इस प्रकार सुरक्षित बर्तन में रखना चाहिए कि चींटियाँ व कीड़े-मकोड़े प्रवेश न कर सकें।
4. चाय तथा कॉफी (Tea and Coffee): इसके लिए किसी ऐसे बर्तन की आवश्यकता है जिसमें वायु प्रवेश नहीं कर सके । इसे नमी से बचाने के लिए टिन या प्लास्टिक के डिब्बे में रखना चाहिए।
5. घी (Ghee): घी को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने के लिए उसे खूब गरम करके छान कर छाछ निकाल दें। तत्पश्चात् उसमें थोड़ा-सा नमक का ढेला डालकर किसी बर्तन में संगृहीत कर सकते हैं। इसे शीतल हवादार स्थान पर रखना चाहिए। अधिक गर्मी से इसका स्वाद बिगड़ जाता है।
6. मसाले (Spices): साधारणतः हल्दी, धनिया, लाल मिर्च आदि मसाले घर में प्रयुक्त किए जाते हैं। सभी मसालों को बाजार से खरीदने के बाद भली प्रकार साफ करना चाहिए । इसके बाद उन्हें आवश्यकतानुसार तब तक कड़ी धूप में सुखाना चाहिए जब तक कि उनमें से नमी पूर्णतः न निकल जाए। तत्पश्चात् उन्हें कूटकर सूखे व ढक्कनदार बर्तनों में रखना चाहिए । धनिया को सुरक्षित रखने के लिए उसमें हींग की डेली डाल देनी चाहिए। मिर्च को जाले से सुरक्षित करने के लिए एक किलो पीसी मिर्च में 100 ग्राम पीसा नमक मिला दें। हल्दी समय-समय पर सुखाते रहें। मसालों को नमी से हमेशा बचाते रहें।
III. अनाशवान भोज्य पदार्थ (Non-Perishable Foods): डिब्बा बन्द खाद्य पदार्थ के लिए ISI: FPO अथवा Agmark वाले खाद्य पदार्थों पर दिए गए पैकिग की तारीख देखकर ही खरीदना चाहिए। सुविधा वाले खाद्य-पदार्थों का क्रय-इन खाद्य पदार्थों का सोच-विचार कर चयन करने के पश्चात् इन्हें क्रय करना होता है। क्रय करते समय कई बातों का ध्यान रखना आवश्यक है जिनका उल्लेख नीचे किया गया है:
1. डबल रोटी तथा अन्य सेंके हुए पदार्थ (Bakery Products): इन्हें हमेशा साफ, विश्वसनीय दुकानों से खरीदना चाहिए। क्रय करने से. पूर्व उनकी ताजगी का निरीक्षण कर लेना चाहिए। बासी सेंके हुए पदार्थ कदापि नहीं खरीदने चाहिए क्योंकि एक या दो दिन के भीतर अनुचित परिस्थितियों में फफूंदी इन पर उगने लगती है। प्रारम्भ में यह फफूंदी बहुत कम मात्रा में होने के कारण स्पष्ट दिखाई नहीं देती परन्तु खाने पर शरीर के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती है। यदि डबल रोटी को फ्रीज में रखना हो तो एक दिन की पुरानी डबल रोटी लेनी चाहिए क्योंकि ताजी डबल रोटी फ्रिज में रखने से गीली-गीली (Soggy) हो जाती है।
2. डिब्बा बन्द खाद्य पदार्थ (Canned foods): डिब्बा बन्द खाद्य पदार्थ, जैसे-जैम, जैली, मांस, फल, सब्जियाँ आदि क्रय करते समय डिब्बे का निरीक्षण करना चाहिए। यदि डिब्बा कहीं से फूला हुआ या पिचका हुआ हो तो उसे कभी भी नहीं खरीदना चाहिए क्योंकि वह डिब्बा बन्द खाद्य पदार्थ के खराब होने का सूचक है। डिब्बे पर दी हुई खराब होने की सम्भावित तिथि को अवश्य पढ़ना चाहिए। जिन पदार्थों की तिथि निकल चुकी हो या निकट भविष्य में हो उन्हें क्रय नहीं करना चाहिए। शीशे, प्लास्टिक एवं पालीथिन में पैक किए गए खाद्य पदार्थों को बाहर से देखा जा सकता है। अतः इनका निरीक्षण करने के पश्चात् इन्हें खरीदना चाहिए।
3. पापड़, चिप्स अथवा सूप, डोसा आदि के तैयार पाउडर-इन खाद्य पदार्थों को खरीदने से पूर्व इनके लेबल पर दिए गए निर्देशों से भली प्रकार परिचित हो जाना चाहिए । इनकी खराब होने की सम्भावित तिथि को पढ़कर ही इन्हें खरीदना चाहिए। क्रय करने से पूर्व यह देख लेना चाहिए कि इनके पैकेट अच्छी तरह से बन्द हैं या नहीं। फटे हुए, पुराने पैकेटों को खरीदना उचित नहीं है क्योंकि इनके शीघ्र खराब होने का भय रहता है।
4. जमे हुए खाद्य पदार्थ (Frozen foods): जमे हुए खाद्य पदार्थ केवल उतनी ही मात्रा में खरीदने चाहिए जितनी मात्रा में उन्हें घर पर सुरक्षित फ्रीज में रखा जा सके। इन्हें अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए। क्रय करने के तुरत बाद ही प्रयोग में लाने तक इन्हें इसी जमी हुई दशा में रखनी चाहिए। एक बार जमे हए पदार्थ को बाहर निकालने पर प्रयोग कर लेना चाहिए क्योंकि यह कमरे के तापमान पर शीघ्र ही नष्ट होने लगते हैं। हमारे देश में कम साधनों की उपलब्धि के कारण इनका प्रचलन बहुत कम है।
सुविधा वाले खाद्य पदार्थों का संग्रह (Storage): सुविधा वाले खाद्य पदार्थों को खरीदने के पश्चात् उनका संग्रह करना भी आवश्यक है। डबल रोटी तथा सेंके हुए पदार्थों को अधिक समय के लिए संग्रह नहीं करना चाहिए क्योंकि इनमें उपस्थित नमी के कारण इनके खराब होने का भय बना रहता है। जहाँ तक सम्भव हो इन्हें ताजा खरीदकर ही प्रयोग करना चाहिए। यदि इन्हें संग्रह करना पड़े तो किसी चीज में भली प्रकार लपेट कर किसी ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए। डबल रोटी का मिट्टी या चीनी-मिट्टी के बर्तन में रखना चाहिए। धातु के बर्तन में रखने से रोटी पसीजकर धातु की दुर्गन्ध से युक्त हो जाती है।
बर्तन के ऊपर हवादार ढक्कन होना चाहिए. ताकि उसे मक्खियों से बचाया जा सके। पापड़, चिप्स तथा अन्य सूखे हुए पदार्थों या मिश्रणों को पालीथिन के पैकेटों में किसी साफ स्थान पर रखना चाहिए। इन्हें आवश्यकता से बहुत अधिक मात्रा में नहीं खरीदना चाहिए क्योंकि इनके खराब होने का भय रहता है। डिब्बा बन्द खाद्य पदार्थों को फ्रिज में रखना चाहिए तथा एक बार खोलने के पश्चात् इन्हें शीघ्र ही प्रयोग कर लेना चाहिए। जमे हुए खाद्य पदार्थों को जमे हुए रूप में ही संगृहीत करना चाहिए। यदि इन्हें जमी हुई स्थिति में न रखा जा सके तो शीघ्र ही इनका प्रयोग कर लेना आवश्यक है। इन खाद्य पदार्थों को खरीदने की तिथि इन पर लिख देनी चाहिए तथा इनका निरीक्षण करते रहना चाहिए। खराब होने से पूर्व इनका उपयोग कर लेना चाहिए।
प्रश्न 5.
खाद्य संदूषण को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तारपूर्वक समझाइए। [B.M.2009A]
उत्तर:
खाद्य पदार्थ जीवाणुओं तथा उनमें उपस्थित एन्जाइमों के कारण संदूषित होते हैं। खाद्य पदार्थ में तथा उसके आस-पास के वातावरण में होने वाले रासायनिक परिवर्तन उसे दूषित करते हैं। खाद्य पदार्थों को बाह्य चोट भी उनके खराब होने का एक कारण है। खाद्य पदार्थों : को संदूषित करने वाले कारकों की सूची बना सकते है सूची निम्न है –
- जीवाणु तथा एन्जाइमों की उपस्थिति।
- रासायनिक क्रियाएँ।
- बाह्य चोट।
- चूहों, कीड़ों, झींगुरों द्वारा नुकसान या अजैविक संदूषण।
1. जीवाणु तथा एन्जाइमों द्वारा संदूषण (Bacterial / Enzymatic Spoilage): कुछ जावाण तो खाद्य पदार्थों में प्राकृतिक रूस से ही पाये जाते हैं और कुछ फसल कटने, यातायात, सग्रहण, हम्तन व पकाने के समय खाद्य पदार्थों में प्रवेश कर जाते हैं। ये जीवाणु हैं बैक्टीरिया, उत्प्रेरक, खमीर, फफूंदी आदि। जैव प्रक्रियाओं में कुछ मात्रा में एन्जाइम की उत्पत्ति होती है।
कुछ बैक्टीरिया औरों की अपेक्षा अधिक तेजी से बढ़ते हैं। जल्द ही इनकी संख्या भोज्य पदार्थ में अत्यधिक बढ़ जाती है। अधिकतर बैक्टीरिया कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों में ही अपने नए वातावरण में पूर्ण रूप से ढल जाते हैं। इसलिए आपको यह निश्चित कर लेना चाहिए कि खरीदे हुए खाद्य पदार्थ को चार घंटों में ही खाने से पहले गर्म करना है या ठंडा।
एन्जाइम खाद्य पदार्थों का अभिन्न अंग है। हम जानते हैं कि टमाटर/आम का पकना एन्जाइम के कारण ही होता है। एन्जाइम क्रियाशील होने पर खाद्य पदार्थ के रंग, स्वाद, सुगंध व रचना में परिवर्तन आने लगते हैं। इनके अधिक समय तक क्रियाशील रहने पर खाद्य पदार्थ अत्यधिक पक कर सड़ने लगते हैं। एन्जाइम क्रिया द्वारा लाए गए इच्छित परिवर्तन ‘सकारात्मक’ कहलाते हैं जबकि अनैच्छिक परिवर्तन जिससे भोज्य पदार्थ सड़ने लगते हैं ‘नकारात्मक’ कहलाते हैं।
2. रासायनिक व जैव-रासायनिक संदूषण (Chemical/Biochemical Spoilage): कीटनाशकों, रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग से भी खाद्य पदार्थों में संदूषण हो सकता है। जबकि जैव-रासायनिक संदूषण; जीवाणुओं द्वारा उत्पादित विष तथा उनकी जैव-क्रियाओं के अवशेषों द्वारा उत्पन्न होता है।
3. बाह्य चोट द्वारा खाद्य पदार्थों में संदूषण-प्रकृति ने खाद्य पदार्थों को सुरक्षा कवच प्रदान किए हैं। ये हमारी त्वचा की भाँति ही कार्य करते हैं। आहार हस्तन के गलत तरीकों से ये कवच खराब हो जाते हैं। साथ ही बाह्य चोट खाद्य पदार्थ की रचना तथा दिखावट पर भी प्रभाव डालती है। इससे खाद्य पदार्थ जल्दी खराब होते हैं तथा उनका क्रय मूल्य भी कम होता जाता है।
4. चूहों, कीड़ों, झींगुरों द्वारा अजैविक खाद्य संदूषण (Rats, Insects, Non Biological Spoilage of food): चूहे फसलों को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं। चूहों के मल-मूत्र से होने वाले संक्रमण को “स्पाइरोचीटल संक्रमण” कहते हैं। कीड़े अनाज में छेद करके उसके कार्बोज को खा जाते हैं। इन छेद वाले दानों में से बदबू-सी आने लगती है और यह खाने के योग्य नहीं होते। झींगुरों के लार से अनाज के दाने चिपके हुए-से दिखाई देते हैं। इनसे अनाज में बदबू पैदा हो जाती है। चूहे, कीड़े व झींगुर खाद्य फसलों को प्रति वर्ष काफी नुकसान पहुंचाते हैं।
प्रश्न 6.
संदूषण को प्रभावित करने वाली परिस्थितियाँ (Situations helping in food spoilage) कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर:
संदूषण को प्रभावित करने वाली परिस्थितियाँ इस प्रकार हैं –
1. जैविक खाद्य पदार्थ
2. अनुरूप तापमान
3. नमी/पानी
4. हवा और
5. अनुरूप pH
1. जैविक खाद्य पदार्थों की उपलब्धता (Availability of Biological Foods): सभी जीवित प्राणियों की भाँति जीवाणुओं को भी जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। बैक्टीरिया सूक्ष्म-जीव होते हैं, इसलिए उन्हें बहुत थोड़ा भोजन चाहिए। थोड़ा-बहुत प्रोटीन, वसा तथा कार्बोहाइड्रेट, चाकू के किनारे पर लगा खाद्य पदार्थ, सब्जी काटने के बोर्ड पर अथवा डिब्बों के किनारों पर थोड़ा बहुत लगा खाद्य पदार्थ उनके लिए दावत के समान हैं। इसलिए खाद्यं पदार्थों के संपर्क में आने वाले सभी उपकरण अच्छी तरह से साफ होने चाहिए। साथ ही खाद्य संग्रहण तथा खाद्य हस्तन स्वच्छता के नियमों के अनुसार ही करना चाहिए।
2. अनुरूप तापमान (Favourable Temperature): विभिन्न बैक्टीरिया की वृद्धि के लिए अलग-अलग तापमान की आवश्यकता होती है। साइक्रोफिलिक (Psychrophilic) बैक्टीरिया शीतल तापमान पर बढ़ते हैं। माइक्रोफिलिक (Microphilic) बैक्टीरिया हमारे सामान्य तापमान पर बढ़ते हैं। गर्मी पसंद करने वाले बैक्टीरिया को थर्मोफिलिक (Thermophilic) कहते हैं, क्योंकि ये अत्यधिक गर्म तापमान लगभग 140°F तक सह सकते हैं, खाद्य पदार्थों को संदूषित करने वाले बैक्टीरिया अधिकतर 70°F-80°F में वृद्धि करते हैं। यदि खाद्य पदार्थ में बैक्टीरिया की. संख्या व तापमान कम है तो वह अधिक समय तक रखा जा सकता है। खाद्य पदार्थ जितने समय के लिए स्वादिष्ट व खाने योग्य (फसल कटने के समय से लेकर, सुरक्षित करने के बाद खाने तक) रहते हैं, उसे उसकी ‘शैल्फ लाइफ’ कहते हैं।
3. नमी, पानी की उपलब्धता (Moist/Water Availability): सभी जीवित पदार्थों के जीवन के लिए पानी की आवश्यकता होती है। ताजे खाद्य पदार्थों में अधिक नमी होती है जो जीवाणुओं की वृद्धि में सहायता करती है। जीवाणु में एन्जाइम उसकी कोशिका से निकलकर खाद्य पदार्थ से मिलकर फिर वापस कोशिका में आ जाते हैं।
यह प्रक्रिया निरन्तर जीवाणुओं की वृद्धि के साथ-साथ चलती रहती है। दुग्ध पाउडर, सूप-पाउडर, व सूखे अनाज देर तक खाने योग्य रहते हैं क्योंकि उनमें कुछ सूक्ष्म जीव तो हैं किन्तु उनमें नमी जो कि इसे सूक्ष्म जीवों की वृद्धि में सहायक है, नहीं होती। इसी प्रकार अचार व जैम में नमक व चीनी डालने से सूक्ष्मजीवियों को नमी नहीं मिल पाती और उनकी वृद्धि नहीं होती।
4. हवा की उपलब्धता (Availability of Air): हवा सभी जीवों के जीवन का अभिन्न अंग है। सूक्ष्म जीवों को अपनी वृद्धि के लिए वायु की आवश्यकता होती है। यदि उन्हें हवा न मिले तो उनकी प्रक्रिया धीमी हो जाती है। बोतल बंद, डिब्बा बंद व बाँधे हुए खाद्य पदार्थों में हवा प्रवेश नहीं कर पाती, किंतु कुछ अत्यधिक विषाक्त जीवाणु बिना हवा के भी जीवित रह सकते और इनके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
5. अनुरूप खाद्य pH की उपलब्धता (Availability of Required pH): खाद्य पदार्थों में pH खाद्य संदूषण को प्रभावित करती है। pH पदार्थों की अम्लता व क्षारता को बताती है। pH-7 होने का तात्पर्य है कि खाद्य पदार्थ उदासीन है। अधिक जीवाणु उन खाद्य पदार्थों को संदूषित करते हैं जिनके माध्यम pH-7 के आसपास हो, जैसे प्रोटीन व मांसाहारी खाद्य पदार्थ, नींबू का रस, सिरका, खटाई इत्यादि खाद्य पदार्थ pH को कम करते हैं तथा उन खाद्य पदार्थों को संदूषण से बचाते हैं। खमीर कम pH वाले खाद्य पदार्थों पर हमला करते हैं जिनमें चीनी होती है, जैसे जैम आदि। ये चीनी से जीवित रहने के लिए ऊर्जा प्राप्त करते हैं और उसे एल्कोहल व.CO2 में बदल देते हैं। खमीर के इस गुण को शराब बनाने के उद्योग में भरपूर प्रयोग में लाया जाता है।
प्रश्न 7.
भोजन पकाने की विधियों का उल्लेख करते हुए उनके लाभ-हानि बताइए।
उत्तर:
भोजन पकाने की विधियाँ (Methods of food preparation): भोजन पकाने के लिए कई विभिन्न प्रकार की विधियों का प्रयोग किया जाता है। परन्तु सभी विधियों में ताप की आवश्यकता होती है।
पकाने के माध्यम के आधार पर इन विधियों को हम दो मुख्य भागों में बांटते है –
- आई ताप द्वारा पकाना (Moist Heat)।
- शुष्क ताप द्वारा पकाना (Dry Heat)।
1.आर्द्र ताप द्वारा पकाना-आई ताप द्वारा पकाने के लिए माध्यम के रूप में जल का प्रयोग किया जाता है। इस वर्ग के अन्तर्गत निम्न विधियाँ आती हैं
(a) उबालना (Boiling)
(b) भाप से पकाना (Steaming)।
(c) धीमी आग पर पकाना या स्टूयिंग (Stewing)
(a) उबालना-इस विधि में खाद्य पदार्थ को जल के सीधे सम्पर्क में लाकर पकाया जाता है। यह भोजन पकाने की सरल विधि है। पकाने की विधि-किसी बर्तन में जल लेकर उसमें खाद्य पदार्थ डालकर, आग पर रखकर तब तक उबाला जाता है, जब तक गल न जाए। उबालने की विधि में ताप 100° सेंटीग्रेड या 212° फारेनहाइट होना चाहिए। पानी गर्म होने पर जब उसकी सतह पर बुलबुले उठने लगे तो समझना चाहिए कि पानी में उबाल आने लगा है। जब पानी उबलने लगे तो आग धीमी कर देनी चाहिए और खाद्य पदार्थ के गलने पर आग बन्द कर देनी चाहिए।
उबालने के लाभ (Advantages of Boiling): खाद्य पदार्थ को उबाल कर पकाने से निम्न लाभ हैं –
1. खाद्य पदार्थ सुपाच्य होना (Easy to digest): पानी में उबाला गया खाद्य पदार्थ गलने पर सुपाच्य हो जाता है। यह आसानी से पक जाता है तथा रोगियों के लिए विशेषकर श्रेष्ठ समझा जाता है।
2. खाद्य पदार्थ पौष्टिक होना (Making the food Nutritious): यदि उबालने की विधि का ठीक ढंग से प्रयोग किया जाए तो खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता बनी रहती है।
उबालने से हानियाँ (Losses due to Boiling):
खाद्य पदार्थों को जहाँ उबालकर पकाने से लाभ हैं, वहाँ कुछ हानियाँ भी हैं –
1. खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता में कमी होना (Loss of nutritive value of foods): खाद्य पदार्थों को उबालने से उनके कुछ पोषक तत्त्व, स्वाद एवं सुगन्ध जल में आ जाते हैं जिससे खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता बनाए रखने के लिए उन्हें छिलकों सहित पर्याप्त जल में ही उबालना चाहिए तथा जिस जल में यह उबाले जाएँ उसे सूप बनाने, आटा गूंथने आदि के काम में लाना चाहिए।
उबालने की विधि से खाद्य पदार्थ में उपस्थित जल में घुलनशील विटामिन जैसे बी समूह के विटामिन और विटामिन सी तथा कुछ खनिज लवपानी में आ जाते हैं तथा इस पानी को फेंक देने से ये पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता को बनाए रखने के लिए उबालते समय उसे ढंककर रखना चाहिए। ढंककर पकाने से उबालने की विधि में कम समय लगता है तथा पानी कम सूखता है।
2. खाद्य पदार्थ का रंग नष्ट होना (Loss of colour of food): उबालने की विधि में कुछ मात्रा में खाद्य पदार्थों का रंग भी नष्ट हो जाता है। विशेषकर हरी पत्तेदार सब्जियों को ढंककर पर्याप्त जल में पकाने से उनका रंग कम नष्ट होता है। उबालने की विधि द्वारा चावल, दालें, सब्जियाँ, सूप आदि बनाए जाते हैं।
(b) भाप से पकाना (Steaming): इस विधि में जल के स्थान पर पकाने का कार्य भाप के माध्यम से किया जाता है। इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थ को पकाने में समय अधिक लगता है परन्तु खाद्य पदार्थ अधिक सुपाच्य एवं हल्का हो जाता है तथा उसमें उपस्थित पोषक तत्त्व कम मात्रा में नष्ट होते हैं । इस विधि द्वारा पकाया हुआ भोजन रोगियों के लिए भी श्रेष्ठ माना जाता है। भाप द्वारा पकाने की विधि में खाद्य पदार्थ को भाप के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्पर्क में लाकर पकाया जाता है। भाप द्वारा खाद्य पदार्थों को तीन विधियों द्वारा पकाया जाता है
- प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा पकाना (Direct Steaming)
- अप्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा पकाना (Indirect Steaming)
- 9474 o Gala GRT 400191 (Pressure Steaming)
1. प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा पकाना (Direct Steaming): इस विधि में खाद्य पदार्थ को भाप के सीधे सम्पर्क से पकाया जाता है। विधि-किसी बर्तन में पानी उबाला जाता है तथा उस पर छलनी में खाद्य पदार्थों को रखकर बर्तन को ढक्कन से ढंक देते हैं। पानी से भाप निकलकर छलनी के छिद्रों द्वारा खाद्य पदार्थ के सम्पर्क में आती है और वह खाद्य पदार्थ पक जाता है। यदि जाली न हो तो किसी पतले कपड़े में खाद्य पदार्थों को बाँधकर बर्तन में लटकाया जा सकता है।
बाजार में कुछ विशेष प्रकार के स्टीमर भी मिलते हैं। इसमें ढक्कनदार बर्तन होता है तथा ढक्कन में जालीदार थाली सी लगी होती है। जिस पर खाद्य पदार्थों को रखकर पकाया जाता है। कई स्टीमर में दो या अधिक जाली भी होती है जिससे उनमें एक ही समय में एक साथ दो या तीन खाद्य पदार्थों को.पकाया जा सकता है। भाप के सीधे सम्पर्क में आने के कारण इन खाद्य पदार्थों में से जल में घुलनशील विटामिन बी तथा सी नष्ट हो जाते हैं।
2. अप्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा पकाना (Indirect Steaming): इस विधि में खाद्य पदार्थ को भाप के सीधे सम्पर्क में नहीं लाया जाता है। विधि-किसी बर्तन में पानी को उबालने के लिए आग पर रखते हैं। किसी अन्य छोटे बर्तन में खाद्य पदार्थ को रखकर उस बड़े बर्तन में रख दिया जाता है तथा ढक्कन बन्द कर देते हैं। पानी द्वारा बनी भाप छोटे बर्तन में रखे पदार्थों को गर्म करती है तथा पदार्थ अपने जलांश द्वारा पक जाते हैं।
उदाहरण के लिए कस्टर्ड या पुडिंग बनाते समय दूध, अण्डे आदि के मिश्रण को छोटे बर्तन में रखकर इस बर्तन का मुंह ढक्कन या बटर पेपर (Butter Paper) से भली प्रकार बन्द करके किसी पानी से भरे बर्तन में रख देते हैं तथा इस पानी को उबालते हैं और दूध का मिश्रण पक जाता है। इस विधि में क्योंकि खाद्य पदार्थ केवल अपने जलांश द्वारा ही पकता है तथा पानी या भाप के सम्पर्क में नहीं आता है, अतः इनमें से विटामिन और खनिज लवण बहुत कम मात्रा में नष्ट होते हैं।
3. भाप के दबाव द्वारा पकाना (Pressure Steaming): इस विधि में भाप द्वारा बने दबाव की सहायता से खाद्य पदार्थ को पकाया जाता है। दबाव में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ ताप में भी बढ़ोतरी आ जाती है। कई बार किसी खाद्य पदार्थ को जल्दी उबालने के लिए बर्तन के ढक्कन पर कोई भारी वस्तु रखकर दबाव को अधिक किया जाता है जिससे पानी से बनी भाप बाहर न निकलने के कारण अन्दर दबाव अधिक कर देती है जिससे ताप अधिक हो जाता है और वह खाद्य पदार्थ जल्दी पक जाता है।
आजकल भाप के दबाव द्वारा पकाने के लिए प्रेशर कूकर (Pressure Cooker): का प्रयोग किया जाता है। प्रेशर कूकर का ढक्कन बाहर नहीं निकला होता है जिससे भाप अन्दर दबाव को बढ़ाती है जिससे खाद्य पदार्थ जल्दी पक जाता है। प्रेशर कूकर में विभिन्न खाद्य पदार्थों को उनकी क्षमता के अनुसार भिन्न-भिन्न दबाव पर पकाया जाता है।
इसमें 5, 10 और 15 पौंड दबाव किया जा सकता है। 15 पौंड के दबाव पर प्रेशर कूकर के अन्दर का ताप लगभग 250° फारेनहाइट होता है। यह देखा गया है कि प्रत्येक 20 फारेनहाइट ताप की वृद्धि करने पर खाद्य पदार्थ पकाने का समय लगभग आधा हो जाता है। इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थ के पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते हैं।
भाप द्वारा पकाने के लाभ (Advantages of Boiling):
भाप द्वारा पकाने के कई लाभ हैं:
1. खाद्य पदार्थ सुपाच्य होना (Making the food easy to digest): भाप द्वारा पकाया गया भोजन हल्का एवं सुपाच्य होता है। यही कारण है कि रोगियों एवं वृद्धों के लिए भोजन पकाने की इस विधि का प्रयोग किया जाता है।
2. खाद्य पदार्थ पौष्टिक होना (Making the food stuff Nutritious): इस विधि द्वारा पकाए गए भोजन के पोषक तन्व नष्ट नहीं होते और खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता बनी रहती है विशेषकर अप्रत्यक्ष भाप द्वारा पकाने एवं भाप के दबाव द्वारा पकाने की विधि सर्वोत्तम मानी जाती है।
3. ईंधन की बचत (Saving of fuel): भाप के दबाव द्वारा पकाने से भोजन शीघ्र बन जाता है तथा ईंधन की बचत होती है।
4. खाद्य पदार्थ के रंग व रूप में परिवर्तन न होना: खाद्य पदार्थ का रंग व रूप वैसा ही बना रहता है।
(C) धीमी आग पर पकाना या स्टूयिंग (Cooking slow heat or stewing): इस विधि में खाद्य पदार्थ को जल के सीधे सम्पर्क से पकाया जाता है।
विधि: जिस खाद्य पदार्थ को स्टूय बनाना हो, उसे छीलकर उसके बारीक-बारीक टुकड़े करके किसी बर्तन में लेकर इतना पानी डालें कि खाद्य पदार्थ भली प्रकार पक जाए । फिर इसे धीमी-धीमी आग पर खाद्य पदार्थ को गलने तक पकाते रहें। उदाहरण के लिए सेब का स्ट्रय बनाने के लिए सेब को छीलकर उसके बारीक-बारीक टुकड़े काट कर उसमें पर्याप्त मात्रा में पानी डाल कर और थोड़ी-सी चीनी डालकर धीमी-धीमी आग पर पकाते रहें। जब सेब गल जाए तो उसे उसमें उपस्थित पानी-रसे के साथ ही परोसें।
स्टूयिंग करने से लाभ (Advantages of Stewing):
- खाद्य पदार्थ सुपाच्य होना-इस विधि से चूँकि खाद्य पदार्थ धीमी-धीमी आग पर अधिक समय के लिए पकाते हैं, अतः वह सुपाच्य हो जाता है।
- खाद्य पदार्थ पौष्टिक होना-खाद्य पदार्थ जिस पानी में पकाया जाता है, उसे साथ ही परोस देते हैं। अत: खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता बनी रहती है।
- श्रम की बचत-इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थ पकाने से श्रम कम लगता है तथा खाद्य पदार्थ के जलने का भय नहीं होता है।
- ईंधन की बचत-धीमी-धीमी आग पर पकाने के कारण ईंधन की बचत होती है।
स्टूयिंग से हानियाँ (Disadvantages of Stewing) :
1. अधिक समय लगना-इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थ बहुत धीमी-धीमी आग पर पकाया जाता है जिससे समय अधिक लगता है।
2. दाँतों का कम कार्य-इस विधि द्वारा पकाए गए भोजन को खाने के लिए दाँतों को कम कार्य करना पड़ता है। अतः दाँतों के काटने की क्रिया एवं लार रस द्वारा आशिक पाचन की कमी रहती है।
2. शुष्क ताप द्वारा पकाना (Dry Heat): शुष्क ताप द्वारा पकाने के लिए माध्यम के रूप में वायु एवं चिकनाई का प्रयोग किया जाता है। इस वर्ग के अन्तर्गत निम्न विधियाँ आती हैं
(क) वायु को माध्यम के रूप में प्रयोग करके निम्न विधियों का प्रयोग करते हैं –
- भूनना (Roasting)
- अंगीठी पर भूनना (Grilling)
- सेंकना (Baking)
(ख) चिकनाई को माध्यम के रूप में प्रयोग करके निम्न विधियों का प्रयोग करते हैं
तलना (Frying):
यह दो प्रकार की होती है:
- उथली विधि (Shallow frying)
- गहरी विधि (Deep frying)
(क) वायु को माध्यम के रूप में प्रयोग करना :
1. भूनना (Roasting): इस विधि में खाद्य पदार्थ सीधा आग के सम्पर्क में नहीं आता है, शुष्क गर्म वायु माध्यम का कार्य करती है। भूनने की विधि में खाद्य पदार्थ को गर्म रेत या राख में दबा दिया जाता है। इस विधि द्वारा आलू, शकरकंद, मूंगफली, अरबी आदि भूने जाते हैं। रेत को भट्टी में गर्म करके या अंगीठी के नीचे जो गर्म-गर्म राख निकलती है उसमें खाद्य पदार्थ को दबाकर भूना जाता है। इस विधि द्वारा भोजन छिलकों सहित पकाना चाहिए तथा भूनने के पश्चात् उसे साफ करके छिलका अलग कर देना चाहिए।
भूनने से लाभ (Advantages of Roasting) :
खाद्य पदार्थ पौष्टिक होना-जब खाद्य पदार्थ छिलके सहित भूना जाता है तो उसकी पौष्टिकता बनी रहती है और कोई भी पोषक तत्त्व बाहर नहीं निकलता है।
भूनने से हानियाँ-(Disadvantage of Roasting):
- कई बार खाद्य पदार्थ अधिक गर्म रेत या राख के कारण जल जाता है।
- यदि रेत या राख गर्म न हो तो खाद्य पदार्थ कच्चे रहने की सम्भावना रहती है।
- यदि खाद्य पदार्थ को बराबर उल्टा-पुल्टा न जाए तो वह कहीं से कच्चा और कहीं से पक जाता है।
2. अंगीठी पर भूनना (Grilling): इस विधि में खाद्य पदार्थ को आग के सीधे सम्पर्क में लाकर पकाया जाता है तथा शुष्क वायु ही माध्यम का कार्य करती है। जिस खाद्य पदार्थ को ग्रिलिंग द्वारा पकाना हो उसे आग पर रख दिया जाता है तथा उसे थोड़े-थोड़े समय के बाद उलटते-पलटते रहते हैं जिससे वह चारों ओर से बराबर-बराबर पक जाए।
साबुत खाद्य पदार्थों को ग्रिल करने के लिए उन पर थोड़ा सा घी या तेल लगा देते हैं जिससे वह एकदम जले नहीं और उनका रंग बना रहे। ग्रिलिंग करने के लिए एक विशेष प्रकार का उपकरण जिसे ग्रिल कहते हैं, का प्रयोग किया जाता है। ग्रिल में खाद्य पदार्थ रखने से पहले इसके चारों ओर चिकनाई लगा देते हैं जिससे खाद्य पदार्थ इन पर नहीं चिपके। ग्रिल को उलटने-पलटने के लिए इन पर हत्थे लगे होते हैं।
बैंगन, मछली, मुर्गी आदि खुली आग पर भूने जाते हैं। सींक कबाब बनाने के लिए मांस के तैयार मिश्रण को सींक में पिरोकर घी लगाकर खुली आग पर भूना जाता है। खुली आग पर भूनने के लिए भी खाद्य पदार्थ को छिलका सहित भूनना चाहिए अन्यथा पौष्टिक तत्त्व काफी मात्रा में नष्ट हो जाते हैं। इस विधि द्वारा पकाने से लाभ और हानियाँ भूनने की विधि से होने वाले लाभ और हानियों जैसी हैं।
3. सेंकना (Baking): इस विधि से भी पकाने के लिए माध्यम के रूप में शुष्क वायु का प्रयोग किया जाता है। सेंकने के लिए तन्दूर या भट्टी का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में गर्म वायु से पूरी भट्टी का तापक्रम एक-सा हो जाता है। किसी भी पदार्थ को लेकर उसे गर्म भट्टी में रख देते हैं और भट्टी का मुँह बन्द कर देते हैं। वायु गर्म होकर खाद्य पदार्थ के चारों ओर घूमती है और उसे पका देती है।
इस विधि द्वारा केक, पेस्ट्री, बिस्कुट, नानखटाई, डबल रोटी आदि बनाये जाते हैं। साधारणतया भट्टी का तापमान 250° फारेनहाइट से लेकर 500° फारेनहाइट का होता है तथा प्रत्येक खाद्य पदार्थ को पकाने के लिए अलग-अलग ताप उचित रहता है। आजकल बिजली की भट्टी (Electric Oven) भी बाजार में उपलब्ध हैं जिनमें तापमान को आवश्यकतानुसार नियन्त्रित किया जा सकता है।
सेंकने के लाभ (Advantages of Baking) :
1. भोजन हल्का व सुपाच्य हो जाता है।
2. इस विधि द्वारा पकाए गए भोजन स्वादिष्ट होते हैं।
सेंकने से हानियाँ (Disadvantages of Baking): कई बार भट्टी का तापमान बहुत अधिक होने पर खाद्य पदार्थ ऊपर से तो बना हुआ प्रतीत होता है परन्तु अन्दर से कच्चा रह जाता है।
(ख) चिकनाई को माध्यम के रूप में प्रयोग करना :
तलना-तलने की विधि से खाद्य पदार्थ के पकाने का प्रमुख माध्यम कोई भी स्निग्ध पदार्थ होता है। अधिकतर घी या तेल का प्रयोग किया जाता है। इससे भोजन अन्य विधियों की अपेक्षा शीघ्रता से बनता है। स्निग्ध पदार्थ को गर्म करके उसमें खाद्य पदार्थ डाला जाता है जिससे खाद्य पदार्थ की ऊपरी परतें कड़ी हो जाती हैं और ताप के कारण वह भीतर से भी पक जाता है।
तलने के लिए मुख्यतः दो विधियों का प्रयोग करते हैं –
1. उथली विधि
2. गहरी विधि।
1. उथली विधि (Shallow frying): इस विधि में खाद्य पदार्थ को कम घी या तेल में तला जाता है। किसी भी गहरे बर्तन जैसे तवे, फ्राइंग पैन (Frying pan) आदि में घी या तेल गर्म करके उनमें खाद्य पदार्थ डालकर पकाते हैं। जब खाद्य पदार्थ एक तरफ से पक जाता है तो उसे पलट कर दूसरी तरफ से पकाते हैं। इसमें घी या तेल उतनी ही मात्रा में प्रयोग किए जाते हैं जितना कि आसानी से सोख सकें। घी व चिकनाई के कारण खाद्य पदार्थ बर्तन से चिपकता नहीं है। इस विधि द्वारा पराठे, पूड़ी डोसा आदि पकाये जाते हैं।
2. गहरी विधि (Deep-frying): इस विधि में पर्याप्त मात्रा में घी या तेल का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए प्रायः कड़ाही का प्रयोग किया जाता है। जब वह एक तरफ से पक जाता है तो झरनी या पोनी की सहायता से उले पलट देते हैं और दूसरी तरफ से भी पका लेते हैं। तलने के लिए घी का उचित ताप होना आवश्यक है क्योंकि कम ताप पर तलने से, खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में वसा सोख लेता है और देर में पकता है तथा अधिक ताप पर तलने से पदार्थ जल जाता है और वसा भी जल जाती है।
तलने के लाभ (Advantages of frying) :
- खाद्य पदार्थ बहुत शीघ्र पक जाता है।
- खाद्य पदार्थ स्वादिष्ट हो जाता है।
- खाद्य पदार्थ से पोषक तत्त्व कम मात्रा में बाहर निकलते हैं।
तलने से हानियाँ (Disadvantages of frying):
- खाद्य पदार्थ में वसा होने के कारण वह शीघ्र नहीं पचता अर्थात् भारी हो जाता है।
- खाद्य पदार्थ की ऊपरी परत कड़ी हो जाती है।
- तले खाद्य पदार्थ रोगियों एवं बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।
- इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थ महंगे पड़ते हैं।
प्रश्न 8.
खाद्य परिरक्षण की विधियाँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर:
परिरक्षण की घरेलू विधियों द्वारा खाद्य पदार्थों को छोटे पैमाने पर परिवार में प्रयोग के लिए परिरक्षित किया जा सकता है। गृह विज्ञान के छात्र प्रयोगशाला में इन विधियों को सीख सकते हैं। व्यावसायिक पैमाने पर खाद्य पदार्थों की बड़ी मात्रा को सुव्यवस्थित व उचित उपकरणों से लैस फैक्ट्रियों में परिरक्षित किया जा सकता है। व्यावसायिक तौर पर परिरक्षण का प्रयोग मुनाफा पाने के लिए किया जाता है। वह उद्योग/फैक्ट्रियाँ खाद्य कानूनों व योग्य संस्थाओं के नियमों से . बाध्य होती हैं। – परिरक्षण के नियम घरेलू व व्यावसायिक क्षेत्र में एक समान रहते हैं।
1. विसंक्रमण (Asepsis): विसंक्रमण का अर्थ है उन परिस्थितियों को हटाना जो खाद्य पदार्थ के संदूषण में सहायता करती हैं। यह अत्यावश्यक है कि खाद्य पदार्थ को फसल काटने से लेकर, एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने, संग्रह करने, पकाने तथा अंततः खाने तक सुरक्षित रखा जाए। स्वच्छ वातावरण तथा साफ-सुथरे खाद्य हस्तन से खाद्य संदूषण को न्यूनतम किया जा सकता है। जीवाणु संख्या में कमी लाकर खाद्य पदार्थ को लंबे समय तक परिरक्षित किया जा सकता है। इस संदर्भ में प्रयुक्त परिरक्षण का नियम निम्नलिखित है-सूक्ष्मजीवियों को हटाना।
2. छीलना, पकाना तथा कीटाणु हनन (Peeking, Cooling & Disinsecting): खाद्य पदार्थ को उबलते पानी में थोड़ी देर तक रखकर उनके एन्जाइम निष्क्रिय किये जाते हैं। इससे एन्जाइमों की क्रियाशीलता को कम करके खाद्य पदार्थ को खराब होने से बचाया जाता है। इस. प्रक्रिया में ‘एन्जाइमों की निष्क्रियता’ का नियम प्रयोग में लाया जाता है। खाना पकाने की सूखी व गीली विधियों से कुछ जीवाणु को नष्ट किया जा सकता है। पके हुए खाद्य पदार्थ की सुरक्षा उन्हें पकाते समय के तापमान व पकाने की अवधि पर निर्भर करती है। अधिक तापमान पर लम्बे समय तक पकाने से जीवाणु संख्या में काफी कमी लाई जा सकती है।
यह परिरक्षण की ‘जीवाणुनाशक’ विधि है। कीटाणु हनन का अर्थ है सभी एन्जाइमों, सूक्ष्मजीवियों व उनके अंडों का हनन। यह घर में प्रेशर कूकर में भोजन पकाने से संभव हो सकती है। क्या आप प्रेशर कूकर में पकाने की विधि जानती हैं ? व्यावसायिक स्तर पर आवों के प्रयोग से कीटाणु हनन किया जाता है। इस प्रकार के खाद्य पदार्थ सूक्ष्मजीवियों से पूर्णतः मुक्त होते हैं।
3. स्वच्छ एवं स्वास्थ्यवर्धक खाद्य हस्तन (Handling of clean & healthy food): यह परिरक्षण की एक प्रक्रिया ही नहीं अपितु खाद्य हस्तन की आवश्यकता भी है। खाद्य पदार्थ से संबंधित व्यक्तिगत स्वच्छता. रसोईघर एवं सभी उपकरण साफ एवं स्वच्छ होने चाहि ताकि सूक्ष्मजीवी आदि भोजन के संपर्क में आकर उसे संदूषित न कर पाएँ। हम जानते हैं कि विसंक्रमित परिस्थितियाँ खाद्य परिरक्षण की नीव हैं।
4. ठंडा करना (Refrigeration): यह खाद्य पदार्थों को कम तापमान पर रखकर परिरक्षित करने की प्रक्रिया है। जीवाणु एवं एन्जाइमों की क्रियाशीलता कम तापमान पर धीमी होती है। यह खाद्य परिरक्षण में ऊष्मा कम करने का नियम है जो क्रियाशीलता में आवश्यक है। विभिन्न प्रकार के रेफ्रीजरेटर व गहरे फ्रीजर जो तापमान को निश्चित करते हैं, बाजार में उपलब्ध हैं। शीघ्र नष्ट होने वाले खाद्य पदार्थ फ्रीजर में रखने चाहिए। पकाया हुआ खाना सदैव ढंककर फ्रिज की ऊपरी शेल्फों पर रखना चाहिए।
ताजे फल एवं सब्जियाँ ‘फ्रिज बैग’ में रखने चाहिए जो उनकी नमी व ताजगी बनाए रखते हैं। फ्रिज में अत्यधिक सामान नहीं रखना चाहिए। ठंडी शीतल हवा यदि फ्रिज में घूमती है तो खाद्य पदार्थ लम्बे समय तक ताजा रखा जा सकता है। गाँवों में लोग खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक परिरक्षित रखने के लिए वे खाद्य पदार्थों को गीले कट्टों में या बर्फ की पेटी में तथा ठंडे स्थान पर रखकर थोड़े समय के लिए परिरक्षित रखते हैं।
5. सुखाना (Drying): इस प्रक्रिया में खाद्य पदार्थ की नमी को हटाया जाता है। सदियों से खाद्य पदार्थों को धूप में रखकर परिरक्षित किया जाता रहा है। विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे हरी पत्तेदार सब्जियाँ, मटर, मछली, टमाटर, आडू आदि को वर्षों से सुखाया जाता रहा है, किन्तु आजकल हम खाद्य पदार्थों को कम समय में निश्चित परिस्थितियों व नवीनतम तकनीकों से सुखा सकते हैं।
इस प्रकार सुखाए गए खाद्य पदार्थ का रंग, स्वाद, सुगंध व पोषण मूल्य नष्ट नहीं होते। खाद्य पदार्थों को अपूर्ण रूप से भी सुखाया जा सकता है, जैसे खोआ, कंडेंस्ड दूध, टमाटर की प्यूरी आदि। अपूर्ण रूप से सुखाये गए खाद्य पदार्थों में नमक/चीनी की मात्रा अधिक होगी। इस माध्यम से सूक्ष्मजीवी क्रियाशील नहीं हो पाते। इस प्रक्रिया में प्रयुक्त परिरक्षण का यह नियम है, नमी/पानी को हटाना।
6. पैकिंग, डिब्बा बंद व बोतल बंद करना (Packing and Canning): इन प्रक्रियाओं से सूक्ष्मजीवियों को हवा उपलब्ध नहीं होती। घरेलू तौर पर हवा बंद डिब्बों में रखे खाद्य पदार्थों का संदूषण न्यूनतम होता है। व्यावसायिक पैमाने पर हवा की उपलब्धता कम करने के अनेक उपाय हैं। किन्तु हवा के बिना जीवित रहने वाले जीवाणुओं से डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ विषाक्त हो सकते हैं। नई तकनीकों द्वारा पैक किए गए खाद्य पदार्थों में हवा के स्थान पर अप्रवृत गैसें भरी जाती हैं।
7. pH को बदलने के लिए रसायनों का प्रयोग:
1. अचार बनाना (Pickles): खट्टे-मीठे स्वाद के अचार व चटनियाँ बनाना भारतीय घरों में प्रचलित है। अचार तेल या तेल के बिना भी बनाए जा सकते हैं। खाद्य पदार्थ पर तेल की सतह उसमें हवा का आवागमन रोक देती है। अम्लीय खाद्य पदार्थों, जैसे आम, नीबू आदि के अचार बनाए जा सकते हैं। सिरका, नींबू का रस, सिट्रिक एसिड व एसिटिक एसिड का प्रयोग सब्जियों का अचार बनाने में किया जाता है।
अचार बनाते समय, पिसी हुई राई के प्रयोग से, खमीरीकरण की प्रक्रिया से अम्लता बढ़ जाती है। अम्लीय खाद्य पदार्थों की pH कम होने के कारण ये देर तक खराब नहीं होते। अचार व चटनियों में नमक प्रचुर मात्रा में प्रयुक्त होता है। यह जीवाणुओं तक नहीं पहुंचने देता। अचार व चटनियों में मसालों के प्रयोग से विसंक्रमण किया जाता है। अचार खाद्य पदार्थ को लम्बे समय तक परिरक्षित रख सकते हैं, क्योंकि इसमें परिरक्षण के विभिन्न नियमों का प्रयोग करते हैं। ये नियम हैं
(क) नमक का प्रयोग – आर्द्रता हटाना
(ख) अम्लीय पदार्थ मिलाना – pH में बदलाव लाना
(ग) तेल का प्रयोग – हवा उपलब्ध न होने देना
(घ) मसालों का प्रयोग – संक्रमण के कारक हटाना।
2. जैम, जैली व मारमलेड बनाना (Zam, Zelly, Marmalade): इसमें चीनी का प्रयोग किया जाता है। अधिक चीनी नमी को सोखकर जीवाणुओं तक नमी नहीं पहुँचने देती। अम्लीय पदार्थ pH को कम करके जैम आदि को जीवाणुओं से उत्पन्न संदूषण से बचाया जा सकता है। मीठे माध्यम में कभी-कभी फफूंदी आदि से संदूषण हो सकता है। अतः सभी जैम इत्यादि संक्रमित हवा बंद बोतलों में ही संगृहीत किये जाने चाहिए। आप प्रयोगशाला में कुछ घरेलू खाद्य परिरक्षण की विधियाँ सीखें। खाद्य परिरक्षण की कुछ नवीनतम तकनीकें हैं : डीहाइड्रोफ्रीजिंग, प्रकाशमान करना, फ्रीजड्राइंग तथा एंटीबाइटिक के प्रयोग द्वारा।
प्रश्न 9.
पाक क्रियाओं का भोजन घटकों पर क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर:
“बहुत-से भोज्य पदार्थ अपनी स्वाभाविक स्थिति में मनुष्य के खाने के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। उन्हें खाने के योग्य बनाने के लिए जो क्रिया अपनायी जाती है, वह पाक क्रिया कहलाती है।” प्रत्येक खाद्य-पदार्थ की ताप-ग्रहणता अलग-अलग होती है। अनेक आन्तरिक गुणों पर ताप का पृथक्-पृथक् प्रभाव पड़ता है। ताप की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप ही भोज्य पदार्थों के स्वाद में वृद्धि होती है तथा उसके स्वरूप में परिवर्तन होता है। भोज्य तत्त्वों अर्थात् वसा, प्रोटीन, श्वेतसार, खनिज लवण, विटामिन आदि पर ताप का निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है :
(क) खाद्य पदार्थों के रंग में परिवर्तन (Colour changes)।
(ख) खाद्य पदार्थों की सुगन्ध में परिवर्तन (Flavour changes)।
(ग) खाद्य पदार्थों की प्रकृति में परिवर्तन (Texture changes)।
(क) खाद्य पदार्थों के रंग में परिवर्तन-खाद्य पदार्थों को पकाने पर उनके रंग में कई परिवर्तन आते हैं। कुछ परिवर्तन ऐसे होते हैं जिनसे वह पकने के पश्चात् अधिक आकर्षित हो जाते हैं तथा कुछ खाद्य पदार्थों में ऐसे परिवर्तन आते हैं कि उनका प्राकृतिक रंग नष्ट हो जाता है और वह पहले की भाँति आँचों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाते हैं। उदाहरण के लिए फलों और सब्जियों के चमकीले आकर्षक रंग पकने के पश्चात् कुछ मात्रा में नष्ट हो जाते हैं तथा चमकहीन हो जाते हैं। इसके विपरीत राजमा आदि पकने के पश्चात् लाल रंग के हो जाते हैं और उनका रंग पहले की अपेक्षा अधिक आकर्षक हो जाता है।
(क) खाद्य पदार्थों के रंग में परिवर्तन-खाद्य पदार्थों के रंगों पर निम्न प्रकार से प्रभाव पड़ता है :
1. क्लोरोफिल (Chlorophyll): सब्जियों तथा फलों में हरा रंग उनमें उपस्थित क्लोरोफिल के कारण होता है। पकाने के ताप एवं माध्यम के pH के कारण इस हरे रंग में विशेषकर हरी पत्तेदार सब्जियों में परिवर्तन आते हैं। इनका रंग पकाने पर पहले कुछ गहरा तथा अधिक पकाने पर भूरा हो जाता है। यदि हरी सब्जियों को पकाते समय माध्यम अम्लीय हो तो इनका रंग जल्दी ही भूरा हो जाता है परन्तु क्षारीय माध्यम में इनके रंग में अधिक परिवर्तन नहीं होता और गहरा हरा ही रहता है।
यही कारण है कि हरी सब्जियों के रंग को बनाए रखने के लिए कई बार पकाते समय उनमें कुछ खाने वाला सोडा डाल देते हैं जिससे माध्यम क्षारीय हो जाए और उनके रंग में परिवर्तन न हो, परन्तु खाने वाले सोडे या बेकिंग सोडे के प्रयोग से खाद्य पदार्थ में उपस्थित थायमिन और विटामिन सी की काफी मात्रा नष्ट हो जाती है। हरी पत्तेदार सब्जियों के उत्तम रंग को बनाए रखने के लिए पहले कुछ मिनटों के लिए उन्हें ढकना नहीं चाहिए और खुले बर्तन में ही पकाना चाहिए।
2. कैरोटीनॉयड्स (Carotenoids): सब्जियों या फलों का लाल रंग कैरोटीनॉयड्स के कारण होता है। जब लाल सब्जियाँ या फल जैसे गाजर, आडू आदि को पकाया जाता है तो इनका लाल रंग पानी में बाहर आ जाता है और यह स्वयं पीले रंग के हो जाते हैं। अम्लीय माध्यम में इनका लाल रंग वैसा ही रहता है तथा क्षारीय माध्यम में इनका रंग नीलेपन पर आ जाता है। अतः लाल रंग की गाजर, आडू आदि को पकाते समय थोड़ा सा नींबू डालकर माध्यम को अम्लीय करने से उनका रंग वैसा का वैसा ही बना रहता है।
3. फ्लेवोनॉयड्स (Flevonoids): सब्जियों या फलों का पीला रंग फ्लेवोनॉयड्स के कारण होता है। जब हल्के पीले रंग वाले फल या सब्जियों जैसे प्याज, सेब आदि को क्षारीय पानी में धोते हैं और पकाते हैं तो उनका रंग गहरा पीला या भूरा हो जाता है, अतः इसके क्षारीय माध्यम के प्रभाव को हटाने के लिए इसमें थोड़ा-सा नींबू का रस या टाटरी डाल दी जाती है।
कई बार पानी क्षारीय होने के कारण उसमें पकाए गए चावल पीले हो जाते हैं। इस पीलेपन को चावल पकाते समय उसमें थोड़ा-सा नीबू का रस या टाटरी डालकर रोका जा सकता है।
4. मायोग्लोबिन एवं हीमोग्लोबिन (Mayoglobin and Haemoglobin): मांस का लाल रंग उसमें उपस्थित मायोग्लोबिन एवं हीमोग्लोबिन के कारण होता है। पकाने के ताप द्वारा यह लाल रंग भूरे रंग में बदल जाता है। यही कारण है कि पके हुए मांस का रंग भूरा होता है।
(ख) खाद्य पदार्थों की सुगन्ध में परिवर्तन (Changes in flavour of foods): पकाने पर खाद्य पदार्थों की सुगन्ध में काफी परिवर्तन आता है तथा यह परिवर्तन उस खाद्य पदार्थ की प्राकृतिक सुगन्ध, उसमें डाले गए मिर्च-मसालों या अन्य पदार्थों पर निर्भर करती है। अच्छी सुगन्ध वाले खाद्य पदार्थ हमारी ज्ञानेन्द्रियों को उत्तेजित करते हैं तथा मुँह में लार रस स्रावित होने लार रस भोजन में उपस्थित कार्बोज के पाचन में सहायता करता है। पकाने पर खाद्य पदार्थों की सुगन्ध में परिवर्तन उनमें हुए कई भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तनों के कारण होता है।
कच्चे मांस, मछली एवं मुर्गे की गन्ध अच्छी नहीं लगती परन्तु पकने के पश्चात् मिर्च-मसालों की सुगन्ध के कारण उसमें जो सुगन्ध उत्पन्न होती है, उसके कारण वही मांस अच्छा लगने लगता है। कॉफी की विशेष सुगन्ध, कॉफी के बीजों को भूनने और पीसने पर ही उत्पन्न होती है अन्यथा कच्चे कॉफी के बीजों में कोई सुगन्ध नहीं होती है।
खाद्य पदार्थों की प्राकृतिक सुगन्ध को बनाए रखने के लिए उन्हें आवश्यकता से अधिक नहीं पकाना चाहिए, ठीक ताप पर पकाना चाहिए तथा जहाँ तक सम्भव हो, मिर्च-मसाले खाद्य पदार्थ के पकने के पश्चात् ही डालने चाहिए। यदि मिर्च-मसाले जल्दी डाल दिए जाएँ तो खाद्य पदार्थ की प्राकृतिक सुगन्ध पर कुप्रभाव पड़ता है।
(ग) खाद्य पदार्थों की प्रकृति में परिवर्तन (Changes in nature of foods): पकाने से खाद्य पदार्थ की प्रकृति पर बहुत प्रभाव पड़ता है। कुछ खाद्य पदार्थ पकाने के ताप द्वारा मुलायम हो जाते हैं तो कुछ खाद्य पदार्थ ताप द्वारा कड़े हो जाते हैं। प्रत्येक खाद्य पदार्थ अपनी एक विशेष प्रकृति के कारण ही अच्छा लगता है।
1. कार्बोज (Carbohydrates): कार्बोज स्टार्च एवं शर्करा के रूप में ग्रहण की जाती है। जब कच्ची अवस्था में स्टार्च को ग्रहण किया जाता है तो वह आसानी से नहीं पचता । शुष्क ताप या बेकिंग की विधि को डेक्सट्रीन में परिवर्तित करती है जो कि शीघ्र व सरलता से पचने वाला होता है। उबलने की क्रिया द्वारा श्वेतसार के कण अधिक मुलायम होकर फूल जाते हैं। द्रवणांक बिन्दु (Boiling Point) पर पहुँचने पर सेल्यूलोज का आवरण फट जाता है तथा श्वेतसार निकलकर द्रव पदार्थ में मिल जाता है।
द्रव पदार्थ गाढ़ा हो जाता है। यही कारण है कि किसी तरल खाद्य पदार्थ को गाढ़ा करने के लिए मैदे या किसी अन्य स्टार्च का प्रयोग किया जाता है। शुष्क उष्णता से शक्कर जलकर भूरे रंग की शक्कर (Caramel Sugar) बन जाती है तथा और अधिक गर्म होने पर जल जाती है। आर्द्र विधि में गन्ने की शक्कर द्वारा मुरब्बे इत्यादि बनाए जाते हैं।
2. प्रोटीन (Protein): ताप द्वारा कुछ वानस्पतिक प्रोटीन के पौष्टिक मूल्य में वृद्धि होती है तथा भोज्य पदार्थों को पकाने से अधिक पाचनशील बन जाते हैं । उबला दूध कच्चे दूध की अपेक्षा अधिक पाचनशील है। इसका कारण उबले हुए दूध पर रेनिन की क्रिया से जठर में वह सरल प्रकार के दही के कणों के रूप में फटती है और इस क्रिया द्वारा वह शीघ्र पच जाता है।
प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं –
(अ) घुलनशील
(ब) मांसपेशीय
(अ) घुलनशील प्रोटीन दूध, रक्त प्लाज्मा और अण्डे की सफेदी में पाया जाता है। जब इन्हें गर्म करते हैं तो उनकी रचना में अन्तर आ जाता है। ताप में घुलनशील प्रोटीन जमकर ठोस (Coagulate) हो जाता है। जब अण्डे को अधिक. उबाला जाता है तो उसकी सफेदी का ऐल्ब्यूमिन घुलनशीलता के गुण को त्याग कर सख्त अघुलनशील ठोस पदार्थ का रूप धारण कर लेता है। इसलिए अण्डा चाहे उबाला जाए या फेंटकर घी में पकाया जाए परन्तु पकाने की क्रिया में तापक्रम कम ही होना चाहिए नहीं तो उसका प्रोटीन कड़ा हो जाएगा।
(ब) मांसपेशियों का प्रोटीन लचीले (elastic) रेशों से बना होता है। पकाने से ये रेशे सिकुड़ जाते हैं। यह आम धारणा है कि पकाने से मांस के प्रोटीन का अभिपचन अधिक सरल हो जाता है। परन्तु ऐसा नहीं है, पकाने से केवल मांसपेशियों के रेशों को घेरे हुए संयोजक ऊतकों (Connective tissues) के मजबूत रेशे नरम व कमजोर हो जाते हैं जिससे पाचक रस प्रोटीनों तक सरलता से पहुँच सकता है। मछली मांस की भाँति पकाने से अधिक पाचनशील हो जाती है। इसके संयोजक ऊतक ताप से छिन्न-भिन्न हो जाते हैं जिससे वह नरम हो जाते हैं। ताप से एक और लाभ होता है कि पकाने में मछली में वह एन्जाइम नष्ट हो जाता है जो थायमिन को नष्ट करता है।
3. वसा (Fats): साधारण पकाने में वसा की रासायनिक रचना और उसके पोषक मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होता। जमा हुआ वसा पिघल जाता है और जलांश बुलबुले को आवाज के साथ बाहर निकल जाता है। अधिक गर्म करने पर उसमें से अधिक धुआँ निकलता है और वह जलने लगता है। अत्यधिक ताप पर गर्म करने पर ग्लिसरॉल और स्निग्ध अम्ल तत्त्व विभक्त हो जाते हैं तथा उसमें से एकरोलीन (Acrolein) नामक तत्त्व धुएँ के रूप में निकलता है जो गले. में खरखराहट व अपच उत्पन्न करता है। एकरोलीन अश्रु गैस का कार्य करती है जिससे नेत्रों में कष्ट होता है। जब वसा को बहुत समय तक गर्म किया जाता है तो उसका ऑक्सीकरण हो जाता है। इससे वसा का स्वाद बिगड़ जाता है। ऑक्सीकृत वसा में विटामिन ई नष्ट हो जाता है।
4. खनिज लवण (Mineral Salts): यदि भोज्य पदार्थों को पकाने के बाद उसके पानी को फेंक दिया जाता है तो बहुत से खनिज लवण (मैग्नीशियम, पोटैशियम और सोडियम) नष्ट हो जाते हैं। यदि कठोर जल में सब्जी को उबाला जाता है तो उसका कैल्शियम सब्जी में भी आ जाएगा। पकाने की क्रिया द्वारा लौह लवण आसानी से प्राप्त किया जाता है।
यदि पकाई जाने वाली वस्तु को लोहे की कढ़ाई में पकायी जाए तो लौह लवण की मात्रा में और अधिक वृद्धि हो जाती है। जड़दार तरकारियों को छिलके सहित उबालने से उसमें भोज्य तत्त्वों की मात्रा नष्ट नहीं होती क्योंकि तरकारियों के छिलके ऐसे तत्त्वों से बने होते हैं जिनमें से तत्त्वों का आदान-प्रदान नहीं हो पाता।
5. विटामिन (Vitamins): विटामिन-ए और डी वसा में घुलनशील तथा जल में अघुलनशील हैं इसलिए सब्जियों को उबालकर पकाने से यह नष्ट नहीं होते, परन्तु घी में तलकर भोज्य पदार्थ बनाने से विटामिन ए नष्ट हो जाता है। विटामिन डी आँच तथा रोशनी के प्रति स्थिर होने के कारण उष्णता से प्रभावित नहीं होता। विटामिन बी जल में अत्यधिक घुलनशील – होता है इसलिए जल में पकाए हुए भोजन में विटामिन बी का बहुत बड़ा भाग जल में ही घुल जाता है।
ऊँचे तापक्रम पर भोज्य पदार्थ पकाने से विटामिन बी अधिक मात्रा में नष्ट हो जाता है। इसके अतिरिक्त बेकिंग पाउडर में क्षार के कारण भी यह विटामिन शीघ्र नष्ट हो जाता है। धूप में दूध को खुला रखने से राइबोफ्लेविन का कुछ अंश नष्ट हो जाता है। विटामिन सी जल में घुलनशील है और ऊँचे ताप पर नष्ट हो जाता है। भोज्य पदार्थ को जल में घोलकर पकाने से यह घुले हुए जल में घुल जाता है। भोज्य पदार्थ उबालने पर उसके जल को फेंकने से इसकी हानि होती है। हरी पत्तेदार सब्जियों में एक एन्जाइम होता है। जो विटामिन सी को नष्ट कर देता है। इस विटामिन का तनिक से ताँबे की उपस्थिति में भी नाश हो जाता है।
भोजन पकाते समय कुछ सब्जियों में विटामिन की हानि –
प्रश्न 10.
खाद्य पदार्थों को पकाते समय किन नियमों का पालन करना चाहिए?
अथवा
खाना पकाते समय पौष्टिक तत्त्वों का ह्रास न हो तथा उन्हें बचाया जा सके, कोई आठ तरीके सुझाएँ।
उत्तर:
खाद्य पदार्थों को पकाते समय हमें निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए –
1. अनाज एवं दालें (Cereals & pulses):
(i) आटे को चोकर सहित प्रयोग करना चाहिए क्योंकि चोकर गेहूँ के दाने की ऊपरी परत होती है और इसमें बी समूह के विटामिन उपस्थित होते हैं। चोकर का प्रयोग न करने से यह विटामिन व्यर्थ हो जाते हैं।
(ii) चावल को कम-से-कम पानी में धोना चाहिए तथा पर्याप्त पानी में भिंगो कर उसी पानी में पकाना चाहिए । बी समूह के विटामिन जो चावल की ऊपरी परत में होते हैं, जल में घुल जाते हैं और यदि इस पानी को फेंक दिया जाए तो यह विटामिन भी व्यर्थ हो जाते हैं।
(iii) दालों को पर्याप्त जल में ही पकाना चाहिए तथा इनको जल्दी गलाने के लिए खाने वाले सोडे का प्रयोग कदाचित् नहीं करना चाहिए क्योंकि सोडे के प्रयोग से माध्यम क्षारीय हो जाने के कारण विटामिन काफी मात्रा में नष्ट हो जाते हैं।
(iv) जहाँ तक सम्भव हो, पकाने के लिए प्रेशर कूकर का प्रयोग करना चाहिए जिससे पौष्टिक तत्त्व नष्ट नहीं होते तथा भोजन जल्दी पक जाता है।
2. सब्जियाँ (Vegetables):
(i) सब्जियों को काटने, छीलने से पहले धो लेना चाहिए अन्यथा काफी मात्रा में जल में घुलनशील विटामिन नष्ट हो जाते हैं।
(ii) सब्जियों का छिलका पतला-पतला उतारना चाहिए क्योंकि मोटे छिलके के साथ बहुत से खनिज लवण और विटामिन भी व्यर्थ हो जाते हैं।
(iii) सब्जियों को हमेशा बड़े-बड़े टुकड़ों में काटना चाहिए जिससे इनकी कम सतह वायु के सम्पर्क में आए तथा ऑक्सीकरण की क्रिया द्वारा अधिक विटामिन ऑक्सीकृत होकर नष्ट न हों।
(iv) सब्जियों को पकाने से बहुत समय पूर्व काट कर नहीं रखना चाहिए। यदि पकाने से बहुत समय पूर्व इन्हें काट कर रख देंगे तो ऑक्सीकरण अधिक होगा और विटामिन अधिक मात्रा में नष्ट होंगे।
(v) सब्जियों को पकाते समय कम-से-कम पानी का प्रयोग करना चाहिए तथा किसी भी दशा में पकाने के लिए प्रयुक्त किए गए पानी को फेंकना नहीं चाहिए। यदि किसी कारणवश पानी अधिक हो जाए तो उसे किसी अन्य कार्य के लिए प्रयोग में लाना चाहिए।
(vi) हरी पत्तेदार सब्जियों में जलांश काफी होता है। अतः जहाँ तक सम्भव हो, इन्हें बिना पानी के ही पकाना चाहिए।
(vii) सब्जियों को पकाने के लिए उबलते हुए पानी में डालना अधिक उचित है क्योंकि उच्च ताप पर एन्जाइम नष्ट हो जाते हैं और विटामिन ऑक्सीकृत नहीं होते तथा नष्ट होने से बच जाते हैं।
(viii) सब्जियों को सदैव ढंक कर पकाना चाहिए परन्तु हरी पत्तेदार सब्जियों के उत्तम रंग को बनाए रखने के लिए इन्हें केवल कुछ मिनटों तक खुला पकाना चाहिए और फिर ढंक देना चाहिए।
(ix) पकाने के पश्चात् सब्जियों को बार-बार गर्म नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से बहुत से विटामिन नष्ट हो जाते हैं।
(x) कछ मात्रा में सलाद के रूप में कच्ची सब्जियों का अवश्य प्रयोग करना चाहिए जिससे । पोषक तत्त्वों के साथ-साथ भोजन आकर्षक एवं स्वादिष्ट भी लगे।
3. फल (Fruits):
- फलों को कच्चा ही प्रयोग में लाना चाहिए। केवल रोगियों को या बच्चों को फलों का स्ट्यू बनाकर दिया जाना चाहिए।
- जिन फलों के छिलकों को प्रयोग में लाया जा सके, उन्हें छिलकों सहित ही खाना चाहिए या उनके छिलकों को किसी और रूप में प्रयोग में लाना चाहिए।
- फलों को खाते समय ही काटना चाहिए तथा काटकर नहीं रखना चाहिए।
- फलों को ताजा ही खा लेना चाहिए क्योंकि बासी फल की पौष्टिकता कम हो जाती है और इसमें उपस्थित पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
4. दूध (Milk):
- दूध को धूप के सीधे सम्पर्क में नहीं रखना चाहिए। इसे अंधेरे तथा ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए।
- दूध को आवश्यकता से अधिक नहीं उबालना चाहिए।
5. अंडे (Eggs):
- अण्डों को बहत अधिक ताप तथा बहत अधिक समय तक नहीं पकाना चाहिए।
- अण्डों को पोंछकर ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए।
6. मांस, मछली, मुर्गा आदि (Meat, fish, chicken) :
- इन्हें पर्याप्त जल में ही पकाना चाहिए तथा पकाने के लिए प्रयुक्त जल को फेंकना नहीं चाहिए ।
- इन्हें बहुत अधिक ताप पर नहीं पकाना चाहिए क्योंकि अधिक ताप पर प्रोटीन कड़ा होकर अपचय हो जाता है।
7.चाय, कॉफी आदि (Tea, Coffee):
- इन्हें बनाते समय पानी के साथ उबालना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करने से कुछ हानिकारक तत्त्व इनमें आ जाते हैं ।
- पहले से बनी हुई चाय को गर्म करके प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।
प्रश्न 11.
भोजन के पौष्टिक मान बढ़ाने के क्या-क्या लाभ हैं ?
उत्तर:
लाभ (Advantages): किसी व्यक्ति को पोषण आहार का ज्ञान हो तो वह कम मूल्य में भी पौष्टिक आहार प्राप्त कर सकता है।
1. आहार का मिश्रण-चावल व दालों को समुचित तालमेल में प्रयोग करने से दालों में उपस्थित अधिक लाइसिन चावल में कमी को पूर्ण कर देता है जिससे दोनों खाद्य पदार्थों चावल व दाल की शरीर में उपयोगिता बढ़ जाती है।
2. खाद्य पदार्थों का अधिक सुपाच्य होना-विभिन्न विधियों के प्रयोग से खाद्य पदार्थ अधिक सुमपाच्य हो जाते हैं। खाद्य पदार्थों में उपस्थित पोषक तत्त्वों की रासायनिक संरचना में कुछ ऐसे परिवर्तन आते हैं कि यह पाचक रसों से जल्दी विघटित होकर छोटी आंत से सरलतापूर्वक अवशोषित हो जाते हैं। उदाहरण के लिए अंकुरण की क्रिया में दालों में उपस्थित कार्बोज में कुछ ऐसे रासायनिक परिवर्तन आते हैं जिससे कार्बोज अधिक पाचनशील हो जाते हैं तथा अंकुरित दाल. कच्ची खाने पर भी पच जाती है।
3. सीमित व्यय में अधिक पौष्टिक तत्त्व प्राप्त होना-भारतीय जनता की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्हें संतुलित आहार प्राप्ति हेतु सभी खाद्य पदार्थों के सेवन के लिए नहीं कहा जा सकता है। अत: आज के युग की माँग है कि अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार उपलब्ध खाद्य पदार्थों का ही पौष्टिक मान बढ़ाया जाए।
4. खाद्य पदार्थ अधिक स्वादिष्ट होना-पौष्टिक मान बढ़ाने के लिए विभिन्न विधियों के प्रयोग से खाद्य पदार्थ अधिक स्वादिष्ट हो जाते हैं तथा व्यक्ति इन्हें अधिक रुचि से खाते हैं। उदाहरण के लिए चावल और उड़द की दाल से बना डोसा, चावल और दाल की खिचड़ी आदि से अधिक स्वादिष्ट लगता है। इसी प्रकार चने की दाल का बड़ा, चने की दाल से अधिक स्वादिष्ट लगता है।
प्रश्न 12.
खाद्य पदार्थों के पोषण मान बढ़ाने की कौन-कौन-सी विधियाँ हैं ?
उत्तर:
खाद्य पदार्थों के पोषण मान बढ़ाने की विधि-भोजन का पौष्टिक मान निम्न प्रकार से बढ़ाया जा सकता है:
- भोज्य पदार्थों के पौष्टिक मूल्य को बढ़ाना (Enchanging the nutritive value of foods)
- भिन्न प्रकार के भोज्य समूह को मिलाकर (Nutritious Combination of different kind of food stuffs)
- भोजन पकाते समय पौष्टिक तत्त्वों को बचाकर रखना (Adopting methods of cooking which helps to conserve nutrient losses)
- भोज्य पदार्थों को खरीदते समय सावधानी (Better buying of Foods)
1. भोजन का पौष्टिक मूल्य बढ़ाना:
अंकुरण (Germination): भोजन का पौष्टिक मूल्य बढ़ाने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण विधि है। अन्न व दालों दोनों को ही अंकुरित कर सकते हैं। भोजन में अन्न का प्रमुख स्थान है। अन्न से शरीर को ऊर्जा एवं आवश्यक पोषक तत्त्व आसानी से मिल जाते हैं। दालों का उपभोग भी लगभग सभी व्यक्ति करते हैं। यह शाकाहारी लोगों के लिए प्रोटीन प्राप्ति का अच्छा साधन है।
अंकुरण करने की विधि (Method of Sprouting):
1. अनाज या दाल को बीनकर धो लें। अन्दाज से पानी डालकर 10 से 12 घण्टे तक भिंगों दें।
2. भीगे हुए दाल या अनाज को गीले या मलमल के कपड़े में ढीला बाँध दें। 24-28 घण्टे में अंकुर निकल सकते हैं। बीच-बीच में नमी रखने के लिए पानी छिड़कते रहें। नमी व गर्मी के कारण अंकुर निकल आएँगे। अंकुर निकलने का समय वातावरण के तापमान पर निर्भर करता है। गर्म मौसम में अंकुरण जल्दी निकलते हैं। ठण्डे में समय अधिक लगता है। अंकुरित दाल व अन्न को विभिन्न तरीकों से उपयोग करके भोजन को पौष्टिक एवं स्वादिष्ट बना सकते हैं।
उपयोग:
- गेहूँ के आटे में कुछ मात्रा में अंकुरित दालों अथवा बाजरे के आटे को मिला देने से आहार की पौष्टिकता बढ़ जाती है।
- अंकुरित गेहूँ को छाया में सुखा कर हल्का भून कर दलिया बना लें। यह बच्चों को दे सकते हैं।
- अंकुरित दालों एवं रागी इत्यादि को सुखाकर, हल्का भूनकर पीसकर छान लें। यह आटा दूध व चीनी मिलाकर छोटे बच्चों को खिलाइए।
- अंकुरित दालों को नीबू का रस व नमक मिला कर कच्चा भी खाया जा सकता है।
अंकुरण से लाभ (Advantages of Germination) अंकुरित करने से दालों में पाए जाने वाले रासायनिक एन्जाइम्स क्रियाशील हो जाते हैं और दालों की पौष्टिकता को बढ़ा देते हैं।
1. विटामिनों की बढ़ोतरी (Increase in Vitamins): दालों व अनाजों में विटामिन सी लगभग न के बराबर होता है। केवल 24 घण्टे अंकुरित करने से विटामिन सी काफी मात्रा में उत्पन्न हो जाता है। अंकुरण के पश्चात् विटामिन सी दस गुना बढ़ जाता है। यह विटामिन हमारी त्वचा व मसूढ़ों की मजबूती बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है। नायसिन व बी कम्पलेक्स के अन्य विटामिन 2.3 गुना बढ़ जाते हैं।
अंकरित करने से पौष्टिकता पर प्रभाव –
चना 100 ग्राम
2. खनिज लवणों की अधिक प्राप्ति-यह देखा गया है कि दालों में कुछ ऐसे पदार्थ होते हैं जो पौष्टिक तत्त्वों को ग्रहण करने में बाधा डालते हैं। ऐसे पदार्थ अंकुरित करने पर नष्ट हो जाते हैं। पचने योग्य लोहे खनिज की मात्रा बढ़ जाती हैं।
3. पोषण विरोधी तत्त्वों का नष्ट होना-खाद्य पदार्थों में कुछ पोषण विरोधी तत्त्व होते हैं जो विशेष तत्त्वों के उपभोग में बाधा डालते हैं। अंकुरण की प्रक्रिया के दौरान ये. नष्ट हो जाते हैं। पोषक तत्त्व शरीर में उपयोग हो जाता है।
4. खाद्य पदार्थ अधिक पाचनशील-दालों में उपस्थित प्रोटीन अंकुरण के बाद आसानी से पच जाता है। कठिनाई से पचने वाली दालें जैसे कि सोयाबीन, अंकुरण के बाद आसानी से पच जाती हैं।
5. खाद्य पदार्थों का पकने में कम समय लगना-अंकुरण के दौरान दालों का बाहरी छिलका ढीला पड़ जाता है। परिणामस्वरूप दालें शीघ्र पक जाती हैं।
6. बच्चों के लिए एक पौष्टिक आहार-अंकुरित दालों को बच्चों के भोजन में निःसंकोच दिया जा सकता है। क्योंकि अंकुरित करने से वायु बनाने वाले पदार्थ कम हो जाते हैं।
7. ईंधन की बचत-अंकुरित दालें शीघ्र पक जाने के कारण ईंधन की बचत भी होती है।
खमीरीकरण (Fermentation): इस विधि द्वारा अनुकूल वातावरण से खाद्य पदार्थों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले कुछ विशेष प्रकार के वांछनीय (Desirable) जीवाणु तेजी से बढ़ते हैं। ये जीवाणु सूक्ष्म होते हैं। वायुमण्डल की भाँति यह मिट्टी में विद्यमान रहते हैं। इन्हीं जीवाणुओं के कारण फलों के रस, तरल पदार्थ, शर्करा, आटा आदि में खमीरीकरण की क्रिया होती है।
यह वायु के बुलबुलों के रूप में दिखाई देता है तथा खाद्य पदार्थों के स्वाद में भी अन्तर आ जाता है। जीवाणु उपयुक्त स्थल व तापक्रम पाने से 90°F से 102°F पर) अत्यधिक क्रियाशील हो जाता है। खमीरीकरण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस बाहर निकलती है जो कि बुलबुलों के रूप में दिखाई देता है।
खमीरीकरण की विधि (Method of Fermentation):
- खमीर उठाने के लिए अनाज व दालों को पानी में भिंगों देते हैं।
- फिर महीन पिट्ठी पीस लें। जितना बारीक खाद्य पदार्थों को पीसा जाएगा, उतना अच्छा खमीर उठेगा।
- पिट्ठी को एक बड़े बर्तन में डाल कर थोड़ा-सा नमक या चीनी मिलाकर रख दें। नमक व शक्कर खमीर उठाने में सहायता करते हैं। इस क्रिया में जीवाणु कार्बन डाइऑक्साइड बनाते हैं जिससे पिट्ठी साधारण मात्रा में दुगनी या तिगुनी बढ़ जाती है। अतः पिट्ठी को बड़े बर्तन में रखते हैं ताकि बर्तन से बाहर न निकले।
- पिट्ठी को अच्छी तरह फेंट कर खमीर उठाने के लिए रखें। गर्मी के दिनों में खमीर जल्दी उठता है। सर्दी के मौसम में खमीर जल्द उठाने के लिए पिट्ठी में थोड़ा-सा दही भी मिला सकते हैं। बर्तन को चारों ओर से मोटे कपड़े से लपेट कर रखना चाहिए।
- अनाज व दालों में प्रायः खमीर उठाया जाता है। कभी-कभी दाल व अनाज को अलग-अलग खमीर उठाते हैं और कभी दोनों को मिलाकर। अनाज व दाल के मिश्रित घोल में खमीर उठायें तो अच्छा रहता है क्योंकि इससे स्वाद बढ़ जाता है।
खमीरीकरण से लाभ (Advantages of Fermentation): खमीर उठाने की क्रिया में भोज्य पदार्थ में कुछ परिवर्तन आ जाते हैं जिनके कारण भोज्य पदार्थ अधिक पौष्टिक हो जाते हैं ।
- खाद्य पदार्थ का पोषक मान बढ़ता है-इस क्रिया से निकोटिनिक अम्ल तथा राइबोफ्लेविन बढ़ जाते हैं।
- खाद्य पदार्थ का अधिक पाचनशील होना-खमीर की प्रक्रिया में जीवाणुओं द्वारा एन्जाइम बनाते हैं। इनके द्वारा शर्करा तथा प्रोटीन का आशिक पाचन हो जाता है।
- अधिक प्रोटीन-खमीर से दालों में उपस्थित, ट्रिपसिन प्रतिरोधक भी खण्डित हो जाता है, जिससे शरीर को अधिक मात्रा में प्रोटीन उपलब्ध हो जाता है।
- खनिज लवण, लोहे की अधिक प्राप्ति-खमीरीकरण द्वारा खाद्य पदार्थ में उपस्थित लोहे की सम्पूर्ण मात्रा हमें आसानी से उपलब्ध हो जाती है।
- खाद्य पदार्थ का अधिक स्वादिष्ट होना-भोज्य पदार्थ का स्वाद तथा बनावट भी अच्छी हो जाती है। खमीरीकरण द्वारा भोज्य पदार्थ में खटास आ जाती है। उदाहरण भठूरे, इडली, डोसा, कांजी आदि।
खमीर का उपयोग (Uses of Fermentation) :
- डबल रोटी बनाने में यीस्ट या खमीर का उपयोग होता है।
- अंकुरित जौ (Barley) से बीयर (Beer) बनाई जाती है। जौ को पानी में भिंगोकर उचित ताप में अंकुरित कराते हैं। इसका स्टार्च विकारों के कारण शक्कर में बदल जाता है
- अंगूर के रस के यीस्ट द्वारा खमीरीकरण से शराब बनाई जाती है। खमीर घर में बनाया जा सकता है तथा बाजार में भी खमीर के पैकेट मिलते हैं जिनकी सहायता से कई खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं।
II. भोजन का मिश्रण (Combination of Foods): यदि भोजन भोज्य समूहों के खाद्यों से मिलाकर तैयार किया जाए तो वह संतुलित और उत्तम श्रेणी का हो जाता है। उदाहरण के लिए अगर गेहूँ का आटा, दाल का आटा और मूंगफली का आटा मिलाकर भोजन का मिश्रण तैयार किया जाए और उस मिश्रण की रोटियाँ बनाई ज्ञाएँ तो उसका प्रोटीन दूध के प्रोटीन के समान गुणकारी बन जाता है।
लाभ (Advantages):
1. प्रोटीन की उपयोगिता बढ़ाना-विभिन्न खाद्य पदार्थों को मिला-जुला कर प्रयोग करने से उनमें उपस्थित प्रोटीन की उपयोगिता बढ़ जाती है। हम पिछले अध्यायों में पढ़ चुके हैं कि प्रोटीन की किस्म या उपयोगिता उनमें उपस्थित अनिवार्य अमीनो अम्लों पर निर्भर करती है। जिन खाद्य पदार्थों में अधिक अनिवार्य अमीनो अम्ल पाए जाते हैं वह खाद्य पदार्थ प्रोटीन के उतने ही अच्छे साधन माने जाते हैं। खाद्य पदार्थों विशेषकर वानस्पतिक खाद्य पदार्थों में कोई अमीनो अम्ल अधिक मात्रा में उपस्थित होता है तो कोई दूसरा अमीनो अम्ल बहुत कम मात्रा में या बिल्कुल नहीं होता है।
ऐसी स्थिति में एक खाद्य पदार्थ की कमी को दूसरी खाद्य पदार्थ द्वारा पूरा किया जा सकता है। उदाहरण के लिए अनाजों में अमीनो अम्ल लाइसिन तथा दालों में अमीनो अम्ल मिथायोनिन कम मात्रा में पाए जाते हैं और अनाजों में अमीनो अम्ल मिथायोनिन तथा दालों में अमीनो अम्ल लाइसिन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। अतः जब अनाजों और दालों के मिश्रण. का प्रयोग करते हैं तो उनमें दोनों ही अनिवार्य अमीनो अम्ल उचित मात्रा में हो जाते हैं।
2. खाद्य पदार्थ का पौष्टिक मान बढ़ाना-इस अनाज और दाल के मिश्रण में यदि सब्जियों का प्रयोग भी किया जाए तो सब्जियों में पाए जाने वाले खनिज लवण और विटामिन भी उचित मात्रा में प्राप्त हो जाते हैं।
3. पकाने में कम समय लगना-यदि हम खाद्य पदार्थों को अलग-अलग पकाएं तो उन्हें तैयार करने में अधिक समय लगता है। जब गृहिणी नौकरी करती हो या किसी कारणवश उसके पास समय कम हो तो विभिन्न खाद्य पदार्थों को मिला-जुला कर पकाने से समय तो कम लगता ही है, पोषक तत्त्व भी अधिक मात्रा में प्राप्त हो जाते हैं।