Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 14 जैव-अणु

Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 14 जैव-अणु Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 14 जैव-अणु

Bihar Board Class 12 Chemistry जैव-अणु Text Book Questions and Answers

पाठ्यनिहित प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 14.1
ग्लूकोस तथा सुक्रोस जल में विलेय हैं, जबकि साइक्लोहेक्सेन अथवा बेन्जीन (सामान्य छह सदस्यीय वलय युक्त यौगिक) जल में अविलेय होते हैं। समझाइए।
उत्तर:
ग्लूकोस में पाँच -OH समूह तथा सुक्रोस में आठ -OH समूह होते हैं। ये -OH समूह जल के साथ हाइड्रोजन आबन्ध बनाते हैं। इस विस्तीर्ण अन्तराअणुक हाइड्रोजन आबन्ध के कारण ग्लूकोस तथा सुक्रोस जल में विलेय होते हैं, अपितु इनके आण्विक द्रव्यमान उच्च अर्थात् क्रमशः 180 amu तथा 342 amu हैं।

दूसरी ओर बेन्जीन (आण्विक द्रव्यमान = 78) तथा साइक्लोहेक्सेन (आण्विक द्रव्यमान = 84) कम आण्विक द्रव्यमान वाले सरल अणु होते हैं, परन्तु ये जल में अविलेय होते हैं। इसका कारण यह है कि इन यौगिकों में -OH समूह नहीं होते हैं, इसलिए इनमें जल के साथ हाइड्रोजन आबन्ध नहीं बनते।

इसके अतिरिक्त विलेयता के सामान्य नियम के अनुसार “समान समान को घोलता है।” अत: बेन्जीन तथा साइक्लोहेक्सेन जो कि अध्रुवी अणु हैं, ध्रुवी जल अणुओं में नहीं घुलते हैं।

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प्रश्न 14.2
लैक्टोस का जलअपघटन से किन उत्पादों के बनने की अपेक्षा करते हैं?
उत्तर:
जलअपघटन पर लैक्टोस मोनोसैकेराइड के दो अणु देता है। इसके उत्पाद D – ग्लूकोस तथा D – गैलेक्टोम हैं।
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प्रश्न 14.3
D – ग्लूकोस के पेन्टाएसीटेट में आप ऐल्डिहाइड समूह की अनुपस्थिति को कैसे समझाएँगे?
उत्तर:
चूँकि ग्लूकोस के पेन्टाऐसीटेट में C1 में मुक्त -OH समूह नहीं होता, अतः यह जलीय विलयन में जल अपघटित नहीं होता और ऐल्डिहाइड समूह नहीं बनता। अतः ग्लूकोस पेंटाऐसीटेट NH2OH के साथ अभिक्रिया करके ग्लकोस आक्सिम नहीं बनाता है।
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अतः ग्लूकोस पेन्टाऐसीटेट में ऐल्डिहाइड समूह नहीं होता।

प्रश्न 14.4
ऐमीनो अम्लों की गलनांक एवं जल में विलेयता सामान्यतः संगत हैलो अम्लों की तुलना में अधिक होती है। समझाइए।
उत्तर:
ऐमीनो अम्लों में ज्विटर आयन (\(\left(\mathrm{N}^{+} \mathrm{H}-\mathrm{CR}-\mathrm{CO} \overline{\mathrm{O}}\right)\)) होते हैं, जिनकी प्रकृति द्विध्रुवी होती है। प्रबल द्विध्रुवीय संयोजन के कारण ऐमीन अम्लों (ठोस) के गलनांक उच्च होते हैं।

ये जल में अधिक घुलनशील होते हैं, क्योंकि ये जल के अणुओं के साथ अन्तरा आणुविक हाइड्रोजन आबन्ध में प्रयुक्त होते हैं। दूसरी ओर हैलोअम्ल द्विध्रुवीय नहीं होते और जल के अणुओं के हाइड्रोजन आबन्ध में प्रयुक्त होते हैं किन्तु हैलोजन परमाणु के साथ नहीं। अत: हैलोअम्ल कम गलनांक वाले तथा जल में कम विलेयशील होते हैं। अतः ऐमीनों अम्ल के गलनांक एवं जल में विलेयता संगत हैलोअम्लों की तुलना में अधिक होती है।

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प्रश्न 14.5
अण्डे को उबालने पर उसमें उपस्थित जल कहाँ चला जाता है?
उत्तर:
अण्डे को उबालने पर इसमें प्रोटीनों का विकृतिकरण हो जाता है। इसमें उपस्थित जल विकृतिकृत प्रोटीनों में सम्भवतः हाइड्रोजन आबन्ध द्वारा अवशोषित या अधिशोषित हो जाता है तथा विलुप्त हो जाता है।

प्रश्न 14.6
हमारे शरीर में विटामिन C संचित क्यों नहीं होता?
उत्तर:
विटामिन C जल में विलेय होता है, अतः यह मूत्र के साथ सरलता से उत्सर्जित हो जाता है तथा शरीर में संचित नहीं होता है। अतः इसकी नियमित मात्रा लेना हमारे लिए आवश्यक है।

प्रश्न 14.7
यदि DNA के थायमीन युक्त न्यूक्लिओटाइड का जलअपघटन किया जाए तो कौन-कौन से उत्पाद बनेंगे?
उत्तर:
जलअपघटन पर, DNA से थायमीन के अतिरिक्त, दो उत्पाद 2-डिऑक्सी-D-राइबोस तथा फॉस्फोरिक अम्ल हैं।

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प्रश्न 8
जब RNA का जलअपघटन किया जाता है तो प्राप्त क्षारकों की मात्राओं के मध्य कोई सम्बन्ध नहीं होता। यह तथ्य RNA की संरचना के विषय में क्या संकेत देता है?
उत्तर:
DNA अणु में दो कुण्डलिनियों (strands) में चार पूरक क्षारक परस्पर युग्म बनाए रखते हैं; जैसे – साइटोसीन (C) सदैव ग्वानीन (G) के साथ युग्म बनाता है, जबकि थायमीन (T) सदैव ऐडेनीन के साथ युग्म बनाता है। इसलिए जब एक DNA अणु जलअपघटित होता है, तब साइटोसीन की मोलर मात्राएँ सदैव ग्वानीन के तुल्य तथा इसी प्रकार ऐडेनीन सदैव थायमीन के तुल्य होती है।

RNA में भी चार क्षारक होते हैं, जिनमें प्रथम तीन DNA के समान, परन्तु चौथा क्षारक यूरेसिल (U) होता है। चूँकि RNA में प्राप्त चारों क्षारकों (C, G, A तथा U) की मात्राओं के मध्य कोई सम्बन्ध नहीं होता है, इसलिए क्षारक-युग्मन सिद्धान्त (अर्थात् A के साथ U तथा C के साथ G का युग्म) का पालन नहीं होता है; अत: DNA के विपरीत RNA में एक कुण्डलिनी होती है।

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अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 14.1
मोनोसैकेराइड क्या होते हैं?
उत्तर:
मोनोसैकेराइड:
वे कार्बोहाइड्रेट जिनको पॉलिहाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड अथवा कीटोन के और अधिक सरल यौगिकों में जल-अपघटित नहीं किया जा सकता, मोनोसैकेराइड कहलाते हैं। लगभग 20 मोनोसैकेराइड प्रकृति में ज्ञात हैं। इसके कुछ सामान्य उदाहरण ग्लूकोस, फ्रक्टोस, राइबोस आदि हैं।

कार्बन परमाणुओं की संख्या एवं प्रकार्यात्मक समूह के आधार पर मोनोसैकेराइड को पुन: वर्गीकृत किया जा सकता है। यदि मोनोसैकेराइड में ऐल्डिहाइड समूह है, तो उसे ऐल्डोस और यदि उसमें कीटों का समूह है, तो उसे कीटोस कहते हैं। मोनोसैकेराइड में निहित कार्बन परमाणुओं की संख्या को भी नाम से सम्मिलित किया जाता है, जो कि निम्नांकित सारणी में दिए गए उदाहरणों से स्पष्ट है।

सारणी: विभिन्न प्रकार के मोनोसैकेराइड –
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प्रश्न 14.2
अपचायी शर्करा क्या होती है?
उत्तर:
वे सभी कार्बोहाइड्रेट जो फेहलिंग विलयन को Cu2O के लाल अवक्षेप में अथवा टॉलेन अभिकर्मक को धात्विक Ag में अपचयित कर देते हैं, अपचायी शर्करा कहलाते हैं। सभी मोनोसैकेराइड (ऐल्डोस तथा कीटोस दोनों) तथा डाइसैकेराइड, सुक्रोस को छोड़कर, अपचायी शर्करा होते हैं।

प्रश्न 14.3
पौधों में कार्बोहाइड्रेटों के दो मुख्य कार्यों को लिखिए।
उत्तर:

  1. पौधों की कोशिका भित्ति सेलुलोस की बनी होती हैं।
  2. पॉलिसैकेराइड स्टार्च पौधों में प्रमुख संचित खाद्य पदार्थ के रूप में होता है।

प्रश्न 14.4
निम्नलिखित को मोनोसैकेराइड तथा डाइसैकेराइड में वर्गीकृत कीजिए:
राइबोस, 2-डिऑक्सीराइबोस, माल्टोस, गैलेक्टोस, फ्रक्टोस तथा लैक्टोस
उत्तर:
मोनोसैकेराइड:
राइबोस, 2-डिऑक्सी- राइबोस, गैलेक्टोस तथा फ्रक्टोस।

डाइसैकेराइड:
माल्टोस, लैक्टोस।

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प्रश्न 14.5
ग्लाइकोसाइडी बन्ध से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
डाइसैकेराइड तनु अम्ल तथा एन्जाइम की उपस्थिति में जलअपघटन द्वारा समान अथवा असमान मोनोसैकेराइड्स के दो अणु देते हैं। दोनों मोनोसैकेराइड इकाइयाँ, जल के एक अणु के निष्कासन के उपरान्त बने ऑक्साइड बन्ध द्वारा जुड़ी रहती हैं। परमाणु के द्वारा दो मोनोसैकेराइड इकाइयों में इस प्रकार के आबन्ध को ग्लाइकोसाइडी बन्ध (glycosidic linkage) कहते हैं।
उदाहरणार्थ:
सुक्रोस एक सामान्य डाइसैकेराइड है, जो जलअपघटन पर सममोलर मात्रा में D-(+)-ग्लूकोस तथा D-(-)-फ्रक्टोस देता है।
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ये दोनों मोनोसैकेराइड इकाइयाँ α-ग्लूकोस के C1 तथा β-ग्लूकोस C2 के मध्य ग्लाइकोसाडी बन्ध द्वारा जुड़ी रहती हैं। चूँकि ग्लूकोस तथा फ्रक्टोस का अपचायक समूह ग्लाइकोसाइडी बन्ध निर्माण में प्रयुक्त होता है; अत: सुक्रोस एक अनअपचायी शर्करा है।
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प्रश्न 14.6
ग्लाइकोजन क्या होता है तथा ये स्टार्च से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
ग्लाइकोजन (Glycogen):
प्राणी शरीर में कार्बोहाइड्रेट, ग्लाइकोजन के रूप से संगृहीत रहता है। चूंकि इसकी संरचना ऐमिलोपेक्टिन के समान होती है; अत: इसे प्राणी स्टार्च भी कहा जाता है एवं यह ऐमिलोपेक्टिन से अधिक शाखित होता है। यह यकृत मांसपेशियों तथा मस्तिष्क में उपस्थित रहता है। जब शरीर को ग्लूकोस की आवश्यकता होती है, एन्जाइम ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में तोड़ देते हैं। ग्लाइकोजन यीस्ट तथा कवक में भी मिलता है।

स्टार्च (Starch):
स्टार्च पौधों में मुख्य संगृही पॉलिसैकेराइड है। यह मनुष्यों के लिए आहार का मुख्य स्रोत है। दाल, जड़, कन्द तथा कुछ सब्जियों में स्टार्च प्रचुर मात्रा में मिलता है। यह 4-ग्लूकोस का बहुलक है तथा दो घटकों ऐमिलोस तथा ऐमिलोपेक्टिन से मिलकर बनता है। ऐमिलोस जल में घुलनशील अवयव है तथा यह स्टार्च का 15-20% भाग निर्मित करता है। रासायनिक रूप से ऐमिलोस 200-1000 C-D (+)-ग्लूकोस इकाइयों की अशाखित श्रृंखला होती है, जो C1 – C4 ग्लाइकोसाडी बन्ध द्वारा जुड़ी रहती हैं।
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ऐमिलोपेक्टिन जल में अविलेय होती है तथा यह स्टार्च का 80-85% भाग बनाती है। यह तथा ग्लाइकोजन दोनों α-D (+)-ग्लूकोस इकाइयों की शाखित श्रृंखला होती है, जिसमें C1 – C4 ग्लाइकोसाइडी बना होते हैं, जबकि शाखित C1 – C6 ग्लाइकोसाइडी बन्ध द्वारा होता है।

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प्रश्न 14.7
(अ) सुक्रोस तथा (ब) लैक्टोस के जलअपघटन से कौन-से उत्पाद प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
सुक्रोस तथा लैक्टोस दोनों डाइसैकेराइड हैं। सुक्रोस जलअपघटन पर ग्लूकोस तथा फ्रक्टोस का एक-एक अणु देता है, जबकि लैक्टोस जलअपघटन पर ग्लूकोस तथा गैलेक्टोस का एक-एक अणु देता है।
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प्रश्न 14.8
स्टार्च तथा सेलुलोस में मुख्य संरचनात्मक अन्तर क्या है?
उत्तर:
स्टार्च दो घटकों ऐमिलोस तथा ऐमिलोपेक्टिन से मिलकर बनता है। ऐमिलोस α-D-ग्लूकोस का रेखीय बहुलक होता है, जबकि सेलुलोस β-D-ग्लूकोस बनी रेखीय बहुलक पॉलीसैकेराइड होता है। ऐमिलोस में एक ग्लूकोस इकाई का 9 अन्य ग्लूकोस इकाई के C4 से α-ग्लाइकोसाइडी बन्ध द्वारा होता है। पॉलीसैकेराइड में इन्हें निम्न चित्र से दर्शाया जा सकता है:
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सेलुलोस सेलुलोस, β-D-ग्लूकोस से बनी ऋजु श्रृंखलायुक्त पॉलिसैकेराइड है, जिसमें एक ग्लूकोस इकाई के C1 तथा दूसरी ग्लूकोस इकाई के C4 के मध्य ग्लाइकोसाइडी बन्ध बनता है।

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प्रश्न 14.9
क्या होता है जब D – ग्लूकोस की अभिक्रिया निम्नलिखित अभिकर्मकों से करते हैं?

  1. HI
  2. ब्रोमीन जल
  3. HNO3

उत्तर:
1. यह HI के साथ अधिक गर्म किए जाने पर n-हेक्सेन बनाता है जिससे ज्ञात होता है कि सभी कार्बन परमाणु एक सीधी श्रृंखला में जुड़े रहते हैं।
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2. ग्लूकोस ब्रोमीन जल जैसे दुर्बल आक्सीकरण कर्मक द्वारा आक्सीकरण से छह कार्बन परमाणुयुक्त कार्बोक्सिलिक अम्ल (ग्लूकोनिक अम्ल) देता है। यह सिद्ध करता है कि ग्लूकोस का कार्बोनिल समूह एल्डिहाइड समूह के रूप में उपस्थित है।
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3. ग्लूकोस तथा ग्लूकोनिक अम्ल दोनों ही नाइट्रिक अम्ल द्वारा आक्सीकरण से एक डाइकार्बोक्सिलिक अम्ल, सैकेरिक अम्ल बनाते हैं। यह ग्लूकोस में प्राथमिक ऐल्कोहॉलिक समूह की उपस्थिति को दर्शाता है।
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प्रश्न 14.10
ग्लूकोस की उन अभिक्रियाओं का वर्णन कीजिए जो इसकी विवृत श्रृंखला संरचना के द्वारा नहीं समझाई जा सकतीं।
उत्तर:
निम्नलिखित अभिक्रियाएँ ग्लूकोस को विवृत श्रृंखला संरचना के द्वारा नहीं समझाई जा सकती हैं, इन्हें बॉयर ने प्रस्तावित किया था –

1. ऐल्डिहाइड समूह उपस्थित होते हुए भी ग्लूकोस 2, 4-DNP परीक्षण तथा शिफ-परीक्षण नहीं देता एवं यह NaHSO3 के साथ हाइड्रोजन सल्फाइड योगज उत्पाद नहीं बनाता।

2. ग्लूकोस का पेन्टाऐसीटेट, हाइड्रॉक्सिऐमीन के साथ अभिक्रिया नहीं करता जो मुक्त -CHO समूह की अनुपस्थिति को इंगित करता है।

3. जब D-ग्लूकोस को शुष्क हाइड्रोजन क्लोराइड गैस की उपस्थिति में मेथेनॉल के साथ अभिकृत कराया जाता है, तब यह दो समावयव मोनोमेथिल व्युत्पन्न देता है, जिन्हें α-D-ग्लूकोसाइड तथा मेथिल β-D-ग्लूकोसाइड के नाम से जाना जाता है। ये ग्लूकोसाइड फेहलिंग विलयन को अपचयित नहीं करते तथा हाइड्रोजन सायनाइड अथवा हाइड्रॉक्सिलऐमीन के साथ अभिक्रिया नहीं करते हैं तथा मुक्त -CHO समूह की अनुपस्थिति को इंगित करते हैं।

प्रश्न 14.11
आवश्यक तथा अनावश्यक ऐमीनो अम्ल क्या होते हैं? प्रत्येक प्रकार के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
ऐमीनो अम्ल जो जीवों के स्वास्थ्य तथा उनकी वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं, परन्तु शरीर में संश्लेषित नहीं होते हैं, आवश्यक ऐमीनो अम्ल कहलाते हैं; जैसे-वैलीन, ल्यूसीन, आर्जिनीन आदि।

अनावश्यक ऐमीनो अम्ल:
ऐमीनों अम्ल जो जीवों के स्वास्थ्य तथा उनकी वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं तथा शरीर में संश्लेषित हो सकते हैं, अनावश्यक ऐमीनो अम्ल कहलाते हैं; जैसे-ग्लाइसीन, ऐलैनीन, ऐस्पार्टिक अम्ल आदि।

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प्रश्न 14.12
प्रोटीन के सन्दर्भ में निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए:

  1. पेप्टाइड बन्ध
  2. प्राथमिक संरचना
  3. विकृतीकरण।

उत्तर:
1. पेप्टाइड बन्ध:
रासायनिक रूप से पेप्टाड आबन्ध, -COOH समूह तथा -NH2 समूह के मध्य बना एक आबन्ध होता है। दो एक जैसे अथवा भिन्न ऐमीनो अम्लों के अणुओं के मध्य अभिक्रिया एक अणु के ऐमीनों समूह तथा दूसरे अणु के कार्बोक्सिल समूह के मध्य संयोग से होती है जिसके फलस्वरूप एक जल का अणु मुक्त होता है तथा पेप्टाइड आबन्ध -CO-NH- बनता है।

चूँकि उत्पाद दो ऐमीनो अम्लों के द्वारा बनता है; अत: इसे डाइपेप्टाइड कहते हैं। उदाहरणार्थ-जब ग्लाइसीन का कार्बोक्सिल समूह, एलैनीन के ऐमीनो समूह के साथ संयोग करता है तो हमें एक डाइपेप्टाइड, ग्लाइसिलऐलैनीन प्राप्त होता है।
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2. प्राथमिक संरचना:
प्रोटीन में एक अथवा अनेक पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएँ उपस्थित हो सकती हैं। किसी प्रोटीन के प्रत्येक पॉलिपेप्टाइड में ऐमीनो अम्ल एक विशिष्ट क्रम में संयुक्त होते हैं। ऐमीनो अम्लों का यह विशिष्ट क्रम प्रोटीन्स की प्राथमिक संरचना बनाता है। प्राथमिक संरचना में किसी भी प्रकार का परिवर्तन अर्थात् ऐमीनो अम्लों के क्रम में परिवर्तन से भिन्न प्रोटीन उत्पन्न होते हैं।

3. विकृतीकरण:
जैविक निकाय में पाई जाने वाली विशेष त्रिविमा संरचना तथा जैविक सक्रियता वाले प्रोटीन, प्राकृत प्रोटीन कहलाते हैं। जब प्राकृत प्रोटीन में भौतिक परिवर्तन करते हैं; जैसे-ताप में परिवर्तन अथवा रासायनिक परिवर्तन करते हैं (जैसे – pH में परिवर्तन आदि किया जाता है) तो हाइड्रोजन आबन्धों में अस्त-व्यस्तता उत्पन्न हो जाती है, जिसके कारण गोलिका (ग्लोब्यूल) खुल जाती है तथा हेलिक्स अकुण्डलित हो जाती है तथा प्रोटीन अपनी जैविक सक्रियता को खो देता है।

इसे प्रोटीन का विकृतीकरण कहते हैं। विकृतीकरण के दौरान 2° तथा 3° संरचनाएँ नष्ट हो जाती हैं, परन्तु 1° संरचना अप्रभावित रहती है। उबालने पर अण्डे की सफेदी का स्कन्दन विकृतीकरण का एक सामान्य उदाहरण है। एक अन्य उदाहरण दही का जमना है, जो दूध में उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा लैक्टिक अम्ल उत्पन्न होने के कारण होता है।

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प्रश्न 14.13
प्रोटीन की द्वितीयक संरचना के सामान्य प्रकार क्या हैं?
उत्तर:
किसी प्रोटीन की द्वितीयक संरचना का सम्बन्ध उस आकृति से है, जिसमें पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला विद्यमान होती है। यह दो भिन्न प्रकार की संरचनाओं में विद्यमान होती हैं – α-हेलिक्स तथा β-प्लीटेड शीट संरचना । ये संरचनाएँ पेप्टाइड आबन्ध के image 13 समूह के मध्य हाइड्रोजन आबन्ध के कारण पॉलिपेप्टाइड की मुख्य श्रृंखला के नियमित कुण्डलन में उत्पन्न होती हैं।

प्रश्न 14.14
प्रोटीन की -हेलिक्स संरचना के स्थायीकरण में कौन-से आबन्ध सहायक होते हैं?
उत्तर:
α-हेलिक्स संरचना एक ऐसी संरचना है, जिसमें पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला में सभी सम्भव हाइड्रोजन आबन्ध बन सकते हैं। इसमें पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला दक्षिणावर्ती पेंच के समान मुड़ी रहती है फलस्वरूप प्रत्येक ऐमीनों अम्ल के अवशिष्ट का -NH समूह, कुण्डली के अगले मोड़ पर स्थित >C = 0 समूह के साथ हाइड्रोजन आबन्ध बनाता है।

प्रश्न 14.15
रेशेदार तथा गोलिकाकार (globular) प्रोटीन को विभेदित कीजिए।
उत्तर:
1. रेशेदार प्रोटीन (Fibrous Proteins):
जब पॉलिपेप्टाइड शृंखलाएँ समानान्तर होती हैं तथा हाइड्रोजन एवं डाइसल्फाइड आबन्धों द्वारा संयुक्त रहती हैं तो रेशासम (रेशे जैसी) संरचना बनती है। इस प्रकार के प्रोटीन सामान्यतः जल में अविलेय होते हैं। रेशेदार प्रोटीन जन्तु ऊतकों के प्रमुख संरचनात्मक पदार्थ होते हैं। कुछ सामान्य उदाहरण किरेटिन (बाल, ऊन तथा रेशम में उपस्थित) तथा मायोसिन (मांसपेशियों में उपस्थित) आदि हैं।

2. गोलिकाकार प्रोटीन (Globular Proteins):
जब पॉलिपेप्टाइड की श्रृंखलाएँ कुण्डली बनाकर गोलाकृति प्राप्त कर लेती हैं तो ऐसी संरचनाएँ प्राप्त होती हैं। ये सामान्यत: जल में विलेय होती हैं; क्योंकि इनके अणु दुर्बल अन्तराअणुक बलों द्वारा जुड़े रहते हैं। इन्सुलिन तथा ऐल्बुमिन इनके सामान्य उदाहरण हैं।

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प्रश्न 14.16
ऐमीनो अम्लों की उभयधर्मी प्रकृति को आप कैसे समझाएँगे?
उत्तर:
ऐमीनो अम्ल सामान्यत:
रंगीन क्रिस्टलीय टोस होने हैं। ये जल-विलेय तथा उच्च गलनांकी ठोस होते हैं, जो सामान्य ऐमीनो तथा कार्बोक्सिलिक अम्लों की भाँति व्यवहार नहीं करते. अपितु लवणों की भाँति गुण दर्शाते हैं। इसका कारण एक ही अणु में अम्लीय (कार्बोक्सिल समूह) तथा क्षारकीय (ऐमीनो समूह) समूहों की उपस्थिति है।

जलीय विलयन में कार्बोक्सिल समूह एक प्रोटॉन मुक्त कर सकता है, जबकि एमीनो समूह एक प्रोटॉन ग्रहण कर सकता है, जिसके फलस्वरूप एक द्विध्रुवीय आयन बनता है, जिसे ज्विटर आयन अथवा उभयविष्ट आयन कहते हैं। यह उदासीन होता है परन्तु इसमें धनावेश तथा ऋणावेश दोनों ही उपस्थित है।
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उभयविष्ट आयनिक रूप में ऐमीनो अम्ल उभयधर्मी प्रकृति दर्शाते हैं तथा वे अम्लों एवं क्षारकों दोनों के साथ अभिक्रिया करते हैं।

प्रश्न 14.17
एन्जाइम क्या होते हैं?
उत्तर:
एन्जाइम जैव-उत्प्रेरक होते हैं। जीवधारियों में होने वाली विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाओं में समन्वयन के कारण ही जीवन सम्भव होता है। उदाहरणार्थ: भोजन का पाचन, उपयुक्त अणुओं का अवशोषण तथा अन्ततः ऊर्जा का उत्पादन। इस प्रक्रम में अभिक्रियाएँ एक अनुक्रम में होती हैं तथा ये सभी अभिक्रियाएँ शरीर में मध्यम परिस्थितियों में सम्पन्न होती हैं। यह कुछ जैव-उत्प्रेरकों की सहायता से होता है।

इन्हीं जैव-उत्प्रेरकों को एन्जाइम कहा जाता है। लगभग सभी एन्जाइम गोलिकाकार प्रोटीन होते हैं। एन्जाइम किसी विशेष अभिक्रिया अथवा विशेष क्रियाधार के लिए विशिष्ट होते हैं अर्थात् प्रत्येक एन्जाइम केवल एक रासायनिक अभिक्रिया को उत्प्रेरित करता है। ये अत्यन्त क्रियाशील होते हैं। इनकी अत्यन्त सूक्ष्म मात्रा की आवश्यकता होती है। ये अनूकूलतम ताप (25° – 40°C) और अनूकूलतम pH (6 – 7.7) पर सबसे अच्छा कार्य करते हैं।

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प्रश्न 14.18
प्रोटीन की संरचना पर विकृतीकरण का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
विकृतीकरण के दौरान प्रोटीन की 2° तथा 3° संरचनाएँ नष्ट हो जाती हैं, परन्तु 1° संरचना अप्रभावित रहती है! विकृतीकरण के कारण गोलिकाकार प्रोटीन रेशेदार प्रोटीन में परिवर्तित हो जाती है, जिससे उनकी जैविक प्रकृति नष्ट हो जाती है। उबालने पर अण्डे की सफेदी का स्कंदन, दही का जमना आदि उदाहरण हैं।

प्रश्न 14.19
विटामिन्स को किसी प्रकार वगीकृत किया गया है? रक्त के थक्के जमने के लिए जिम्मेदार विटामिन का नाम दीजिए।
उत्तर:
जल तथा विलेय के आधार पर विटामिन्स को दो समूहों में वगीकृत किया गया है:
1. वसा विलेय विटामिन:
इस वर्ग में उन विटामिनों को रखा गया है, जो वसा तथा तेल में विलेय होते हैं परन्तु जल में अविलेय। ये विटामिन A, D, E तथा K हैं। ये यकृत तथा एडीपोस ऊतक में संग्रहित रहते हैं।

2. जल में विलेय विटामिन:
B वर्ग के विटामिन तथा विटामिन C जल में विलेय होते हैं, अतः इन्हें एक साथ इस वर्ग में रखा गया है। जल में विलेय विटामिनों की पूर्ति हमारे आहार में नियमित रूप से होनी चाहिए क्योंकि ये आसानी से मूत्र के साथ उत्सर्जित हो जाते हैं तथा हमारे शरीर में (विटामिन B12 के अतिरिक्त) संचित नहीं किया जा सकता है। रक्त के थक्के जमने के लिए विटामिन K उत्तरदायी होता हैं।

प्रश्न 14.20
विटामिन A और C हमारे लिए आवश्यक क्यों हैं? उनके महत्त्वपूर्ण स्रोत दीजिए।
उत्तर:
विटामिन A हमारे लिए आवश्यक है क्योंकि इसकी कमी से जीरॉफ्थैल्मिया (आँख के कॉर्निया का कठोरीकरण) तथा रात्रि-अन्धता रोग हो जाते हैं। इसके महत्त्वपूर्ण स्रोत मछली के यकृत का तेल, गाजर, मक्खन तथा दूध हैं। विटामिन C हमारे लिए आवश्यक है; क्योंकि इसकी कमी से स्कर्वी (मसूडों से रक्त बहना) तथा पायरिया (दाँतों का ढीलापन तथा रक्त-स्राव) रोग हो जाते हैं। इसके महत्वपूर्ण स्रोत नींबूवंशीय (सिट्रस) फल, आँवला तथा हरे पत्ते वाली सब्जियाँ हैं।

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प्रश्न 14.21
न्यूक्लीक अम्ल क्या है? इनके दो महत्त्वपूर्ण कार्य लिखिए।
उत्तर:
ऐसे वे जैव-अणु जो सभी जीवित कोशिकाओं के नाभिकों में न्यूक्लिओप्रोटीन अथवा क्रोमोसाम के रूप में पाए जाते हैं, न्यूक्लीक अम्ल कहलाते हैं। न्यूक्लीक अम्ल मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-डऑक्सीराइबोस न्यूक्लीक अम्ल (DNA) तथा राइबोसन्यूक्लीक अम्ल (RNA)। चूँकि न्यूक्लीक अम्ल न्यूक्लिओटाइडों की लम्बी श्रृंखला वाले बहुलक होते हैं; अतः इन्हें पॉलिन्यूक्लिओटाइड भी कहते हैं।

न्यूक्लीक अम्लों के दो जैविक कार्य निम्नवत् हैं:

1. DNA आनुवंशिकता का रासायनिक आधार है तथा इसे आनुवंशिक सूचनाओं के संग्राहक के रूप में जाना जाता है। DNA लाखों वर्षों से किसी जीव की विभिन्न प्रजातियों की पहचान बनाए रखने के लिए विशिष्ट रूप से उत्तरदायी है। कोशिका विभाजन के समय एक DNA अणु स्वप्रतिकरण (self-replication) में सक्षम होता है तथा पुत्री कोशिका में समान DNA रज्जुक का अन्तरण होता है।

2. न्यूक्लीक अम्ल (DNA तथा RNA) का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य कोशिका में प्रोटीन का संश्लेषण है। वास्तव में कोशिका में प्रोटीन का संश्लेषण विभिन्न RNA अणुओं द्वारा होता है, परन्तु किसी विशेष प्रोटीन के संश्लेषण का सन्देश DNA में उपस्थित होता है।

प्रश्न 14.22
न्यूक्लिओसाइड तथा न्यूक्लिओटाइड में क्या अन्तर है?
उत्तर:
किसी क्षारक के शर्करा की 1 स्थिति पर जुड़ने से निर्मित इकाई को न्यूक्लिओसाइड कहते हैं। अत: सामान्य रूप में न्यूक्लिओसाइड को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-शर्करा-क्षारक। उदाहरणार्थ-निम्नलिखित संरचना (क) न्यूक्लिओसाइड को प्रदर्शित करती है:
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न्यूक्लिओटाइड में न्यूक्लीक अम्ल के तीनों मुख्य यौगिक अर्थात् एक फॉस्फोरिक अम्ल समूह, एक पेन्टोस शर्करा तथा एक नाइट्रोजनी क्षारक होते हैं। इन्हें पेन्टोस शर्करा के C5 – OH समूह के फॉस्फोरिक अम्ल द्वारा एस्टरीकरण से प्राप्त किया जाता है। उदाहरणार्थ–उपर्युक्त संरचना (ख) न्यूक्लिओटाइड को प्रदर्शित करती है। प्यूरीन तथा पिरिमिडीन न्यूक्लिओटाइड में पाये जाने नाइट्रोजन युक्त क्षारक हैं।

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प्रश्न 14.23
DNA के दो रज्जुक समान नहीं होते, अपितु एक-दूसरे के पूरक होते हैं। समझाइए।
उत्तर:
DNA अणु में दो रज्जुक, एक रज्जुक के प्यूरीन क्षारक तथा अन्य के पिरिमिडीन क्षारक के मध्य या इसके विपरीत के मध्य हाइड्रोजन आबन्धों के द्वारा जुड़े रहते हैं। क्षारकों के विभिन्न आकारों एवं ज्यामितियों के कारण DNA में एकमात्र सम्भव युग्मन G (ग्वानीन) तथा C (साइटोसीन) के मध्य तीन हाइड्रोजन आबन्धों द्वारा हो सकता है। दूसरे शब्दों में क्षारकों A (ऐडेनीन) तथा T (थायमीन) के मध्य दो हाइड्रोजन-आबन्धों द्वारा युग्मन सम्भव होता है।
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इस क्षारक-युग्मन सिद्धान्त के कारण एक रज्जुक में क्षारकों का अनुक्रम दूसरे रज्जुक में क्षारकों के अनुक्रम को स्वत: व्यवस्थित कर देता है। अत: DNA के दो रज्जुक समान नहीं होते, अपितु एक-दूसरे के पूरक होते हैं।
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प्रश्न 14.24
DNA तथा RNA में महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक एवं क्रियात्मक अन्तर लिखिए।
उत्तरः
संरचनात्मक अन्तर:
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क्रियात्मक अन्तर:
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प्रश्न 14.25
कोशिका में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के RNA कौन-से हैं?
उत्तर:
कोशिका में पाये जाने वाले तीन प्रकार के RNA होते हैं, जो इस प्रकार है:

  1. संवेशवाहक RNA (m-RNA)
  2. राइबोसोमल RNA (r-RNA)
  3. स्थानान्तरण RNA (r-RNA)

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