Bihar Board Class 8 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 3 Chapter 12 विक्रमशिला Text Book Questions and Answers, Summary.
BSEB Bihar Board Class 8 Hindi Solutions Chapter 12 विक्रमशिला
Bihar Board Class 8 Hindi विक्रमशिला Text Book Questions and Answers
प्रश्न – अभ्यास
पाठ से
प्रश्न 1.
विक्रमशिला नामकरण के संदर्भ में जनश्रुति क्या है ?
उत्तर:
विक्रमशिला नामकरण के संदर्भ में जनश्रुति है कि विक्रम नामक यक्ष का दमन कर यहाँ बिहार (भ्रमण योग भूमि) बनाया गया। जिसके कारण इस भू-भाग का नाम विक्रमशीला रखा गया ।
प्रश्न 2.
विक्रमशीला कहाँ अवस्थित है ?
उत्तर:
विक्रमशीला बिहार राज्य के भागलपुर जिला में कहलगाँव के पास अंतिचक गाँव में अवस्थित है।
प्रश्न 3.
यहाँ के पाठ्यक्रम में क्या-क्या शामिल था?
उत्तर:
यहाँ के पाठ्यक्रम में तंत्र शास्त्र, व्याकरण न्याय, सृष्टि-विज्ञान, शब्द-विद्या, शिल्प-विद्या, चिकित्सा-विद्या, सांख्य, वैशेषिक, अध्यात्म विद्या विज्ञान, जादू एवं चमत्कार विद्या शामिल थे।
पाठ से आगे
प्रश्न 1.
परिभ्रमण के दौरान आप इस स्थल का चयन करना क्यों पसंद करेंगे?
उत्तर:
परिभ्रमण के दौरान इस स्थल का चयन हम इसलिए करेंगे क्योंकि यह स्थान ऐतिहासिक है। यहाँ कभी आर्यभट्ट जैसे विश्वविख्यात खगोलशास्त्री ने अध्ययन कर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाया था । अतः शिक्षार्थियों के लिए यह स्थल नमन करने योग्य है।
प्रश्न 2.
इस विश्वविद्यालय को आधुनिक बनाने के लिए आप क्या-क्या सुझाव देंगे?
उत्तर:
इस विश्वविद्यालय को आधुनिक बनाने के लिए हमारा सुझाव है कि इस विश्वविद्यालय को समृद्ध करें । ज्ञान-विज्ञान का अध्यापन आधुनिक ढंग से करवाया जाये । समृद्ध पुस्तकालय समृद्ध प्रयोगशाला का होना अनिवार्य
प्रश्न 3.
तंत्र विद्या के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
तंत्र-विद्या को जानने वाले तांत्रिक कहलाते हैं। इस विद्या से आसानीपूर्वक कोई कार्य शीघ्र कर लिया जाता है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित संस्थाओं को उनकी श्रेणी के अनुसार बढ़ते क्रम में सजाइए।
उत्तर:
- प्रारम्भिक विद्यालय,
- प्राथमिक विद्यालय,
- माध्यमिक विद्यालय,
- महाविद्यालय,
- विश्वविद्यालय।
व्याकरण
संधि : दो वर्गों के मेल से होनेवाले परिवर्तन को संधि कहते हैं। जैसे-पुस्तक + आलय = पुस्तकालय अ + आ = आ,
संधि के तीन भेद होते हैं-
- स्वर संधि,
- व्यंजन संधि,
- विसर्ग संधि ।
स्वर संधि : दो स्वर वर्णों के मेल से होने वाले परिवर्तन को ‘स्वर संधि’ कहते हैं।
जैसे-विद्या + अर्थी = विद्यार्थी, आ + अ = आ।
व्यंजन संधि : व्यंजन वर्ण के साथ स्वर अथवा व्यंजन वर्ण के मेल से होने वाले परिवर्तन को ‘व्यंजन संधि’ कहते हैं। जैसे दिक् + गज = दिग्गज।
विसर्ग संधि : विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं। जैसे-मनः + रथ =, मनोरथ
प्रश्न 1.
ऊपर दी गई जानकारी के आधार पर संधि-विच्छेद कर संधि का नाम लिखिए।
प्रश्नोत्तर :
- अतिशयोक्ति = अतिशय + उक्ति = स्वर संधि
- सर्वाधिक = सर्व + अधिक = स्वर संधि
- परीक्षा = परि + इच्छा = व्यञ्जन संधि
- उल्लेखनीय = उत् + लेख + अनीय = स्वर संधि
- पुस्तकालय = पुस्तक + आलय = स्वर संधि
- शोधार्थी = शोध + अर्थी = स्वर संधि
- विद्यार्थी = विद्या + अर्थी = स्वर संधि
- प्रत्येक = प्रति + एक = स्वर संधि
- नवागत = नव + आगत = स्वर संधि
- उच्चादर्श = उच्च + आदर्श = स्वर संधि
- नामांकित = नाम + अंकित = स्वर संधि
- अवलोकितेश्वर = अवलोकित + ईश्वर = स्वर संधि
प्रश्न 2.
ऊपर बॉक्स में दी गई जानकारी के आधार पर निम्नलिखित शब्दों का समास बताइए
प्रश्नोत्तर:
- अभेद्य = नज समास ।
- अखण्ड = नत्र समास. ।
- पथरघट्टा = तत्पुरुष समास ।
- द्वारपंडित = तत्पुरुष समास ।
- कुलपति = तत्पुरुष समास ।
- शिक्षा केन्द्र = तत्पुरुष समास ।
- देश-विदेश = द्वन्द्व समास ।
- अलौकिक = नब समास ।
प्रश्न 3.
संधि और समास में अंतर बताइए।
उत्तर:
संधि और समास में निम्नलिखित अंतर है
- संधि में दो वर्णों का मेल होता है । जैसे देव + आलय = देवालय समास में दो पदों का मेल होता है। गंगाजल ।
- संधि में वर्ण मेल से वर्ण परिवर्तन होते हैं। समास में दो पदों (शब्दों) के बीच का कारक के चिह्न (विभक्ति) का लोप हो जाता है। जैसे-गंगा का जल = गंगाजल ।
गतिविधि
प्रश्न 1.
विक्रमशिला विश्वविद्यालय के भाँति प्राचीन काल में भारत में ‘नालंदा, तक्षशिला आदि विश्वविद्यालय शिक्षा के केन्द्र से उसके सम्बन्ध में शिक्षक से जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 2.
सहपाठियों एवं अध्यापकों के साथ विक्रमशिला का परिभ्रमण कीजिए एवं वहाँ प्राप्त पुरातात्त्विक सामग्रियों की एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
विक्रमशिला Summary in Hindi
संक्षेप–विश्वविद्यालय महान खगोल शास्त्री “आर्यभट्ट” एवं तिब्बत ‘ में बौद्ध धर्म तथा लामा सम्प्रदाय के संस्थापक ‘अतिश दीपंकर’ की विद्यास्थली विक्रमशीला प्राचीन भारत को ज्ञान-विद्या के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठता प्रदान करने वाली विश्वविद्यालय में एक था।
बिहार राज्य के भागलपुर जिला में कहलगांव के पास अंतीचक गाँव में इसकी स्थापना आठवीं शदी के मध्य पालवंश के प्रतापी राजा धर्मपाल ने किया था जो बौद्धिक शक्ति प्रधान स्थली होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर
चमकने लगा। अपने आचार्यों के विक्रमपूर्ण आचरण के कारण तथा अखंडशील सम्पन्नता के कारण ही इस विश्वबिद्यालय का नाम विक्रमशीला पड़ा। यह भी किंवदंति है कि विक्रम नामक यक्ष को दमन कर इस स्थान को विहार (भ्रमण) के लायक बनाया गया।
इस प्रांगण में ‘छ: महाविद्यालय प्रत्येक महाविद्यालय के गेट पर “द्वार पण्डित” नियुक्त थे। जो तंत्र, योग, न्याय, काव्य और व्याकरण में पारंगत थे। वे महाविद्यालय में दाखिला पाने के पूर्व महाविद्यालय के द्वार पर ही मौखिक परीक्षा लेते थे। जो छात्र द्वार पण्डितों के प्रश्नों का उत्तर दे देते । वही विक्रमशीला विश्वविद्यालय के छात्र के रूप में दाखिला पाते थे।
इस विश्वविद्यालय में समृद्ध पुस्तकालय जहाँ तत्र, तर्क, दर्शन और बौद्ध दर्शन से संबंधित ग्रंथों का विशाल संग्रह मौजूद था। अधिकृत आचार्य और शोधार्थी द्वारा पाण्डुलिपियों को तैयार किया जाता था। राजा गोपाल के समय अष्टशाहस्रिका प्राज्ञ पारमिता नामक प्रसिद्ध ग्रंथ यही तैयार किया गया था जो आज भी ब्रिटिश म्युजियम, लंदन में धरोहर रूप में रखा हुआ है।
यहाँ धन-शील, धैर्य, वीर्य, ध्यान, पाज्ञा, कौशल्य प्राणिधान बल एवं ज्ञान -10 परिमिताओं में पारंगत करवाकर छात्र को महामानव बना दिया जाता था। . दसवीं-ग्यारहवीं सदी तक यह पूर्वी एशिया महादेश का ज्ञान-दान का सबसे बड़ा केन्द्र बन चुका था।
छात्रों के लिए प्रथम वर्ग ‘भिक्षु वर्ग’ था । यहाँ का छात्र बन जाना ही गौरव की बात मानी जाती थी। देश-विदेश में राजा-महाराजाओं से यहाँ के ही छात्र सम्मान पुरस्कार का हकदार बन जाते थे।
यहाँ तंत्र, व्याकरण, न्याय, सृष्टि-विज्ञान, शब्द-विद्या, शिल्प-विद्या, ” चिकित्सा-विद्या, सांख्य, वैशेषिक, आत्मविद्या, विज्ञान, जादू एवं चमत्कार विद्या इस विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में सम्मलित थे। अध्यापन का मध्यम संस्कृत भाषा थी।
तेरहवीं सदी के आरम्भ में तुर्कों के आक्रमण के कारण इस विश्वविद्यालय का विनाश हो गया। तुर्कों ने इसे भ्रमवश किसी का किला मानकर इसे तहस-नहस कर दिया था। यह बात “तबाकत-ए-नासीरी” नामक ग्रंथ में सम्यक् रूप से वर्णित है।
वर्तमान सरकार की सकारात्मक सोच और पुरातात्विक विभाग के प्रयास से गुमनाम यह विश्वविद्यालय पुनः सुर्खियों में आ रहा है। खुदाई के बाद 50 फीट ऊँची एवं 73 फीट चौड़ी इमारत के रूप में चैत्य प्राप्त हुए हैं। भूमि स्पर्श की मुद्रा में साढ़े चार फीट की भगवान बुद्ध
की मूर्ति, पदमासन पर बैठे अवलोकितेश्वर की कांस्य प्रतिमा, पद्मपाणि, मैत्रेय की प्रतिमा तथा क्षतिग्रस्त कुछ सीलें उपलब्ध हुए हैं। शैक्षणिक परिभ्रमण के दृष्टिकोण से यह स्थान दर्शनीय एवं ज्ञानवर्धक