Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 1 पद्य खण्ड Chapter 9 रूको बच्चों Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.
BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions पद्य Chapter 9 रूको बच्चों
Bihar Board Class 9 Hindi रूको बच्चों Text Book Questions and Answers
प्रश्न 1.
कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है, उसे व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
रुको बच्चो रुको सड़क पार करने से पहले रुको। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि बच्चो जो भारत के भविष्य हैं उन्हें सड़क पार करने से रोक रहा है। कहने का भाव यह है कि भारतीय शासन व्यवस्था के प्रति कवि का विचार तीखापन भाव लिए हुए है। अत: बच्चों के माध्यम से सड़क की स्थिति, उस पर गुजरती हुई तेज रफ्तार में गाड़ियों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए उनकी विसंगतियों पर भाव केन्द्रित करता है।
कवि कहता है-ऐ बच्चो रुको, देखो, इस व्यवस्था में कितना उहा-पोह है। अव्यवस्था है। अराजकता है। देश का फालतू वक्त बर्बाद किया जा रहा है। कार में बैठे सफेदपोश ये लोकसेवक नहीं हैं ये भ्रष्टाचारी हैं इन्हें देश की चिन्ता नहीं है, अपनी चिंता एवं सुख-सुविधा में ही ये व्यस्त हैं।
कवि की उपरोक्त दो पंक्तियों में देश की वर्तमान स्थिति का यथार्थ चित्र छिपा हुआ है। देश में भ्रष्टाचार, व्यभिचार का बोलबाला है। कर्त्तव्यच्युत ये लोकसेवक आज राष्ट्र के शोषण में लगे हुए हैं। इन्हें तनिक भी लोक-लाज नहीं है। राष्ट्र की प्रगति जनता की चिंता न कर ये अपने व्यक्तिगत हित में लिप्त हैं।
प्रस्तुत पंक्तियों में हमारी शासन व्यवस्था के नंगेपन को उकेरा गया है। उनकी बेहयाई और मोटी चमड़ी के सुन्नापन पर प्रकाश डाला गया है। ये हमारे लोक सेवक अपने दायित्व निर्वाह में असफल रहे हैं। उन्हें अपने स्वार्थ-पूर्ति में इतनी जल्दीबाजी है कि दूसरी समस्या या बातों की ओर ध्यान ही नहीं जाता।
बच्चों को राह पार करने से रोकने के पीछे यह भाव छिपा है कि ये भारत के भविष्य हैं। कहीं अंधी रफ्तार में ये दब-कुचल न जाएँ इसकी कवि को चिंता है। इसी कारण उन्हें सतर्क करते हुए भविष्य में अपना सुपथ गढ़ने की सलाह देता है।
बच्चे रुककर, सँभलकर सोच-विचारकर आगे बढ़ें और शासन तथा व्यवस्था की अंधी दौड़ का हिस्सा न बनें।
जिस प्रकार आज के सेवक अपनी कर्त्तव्यनिष्ठता को भूल गए हैं ये बच्चे कल अपने भी जीवन में ऐसी ही भूल नहीं करें। ये एक सच्चे नागरिक और लोकसेवक की भूमिका अदा करें यही सीख.कवि भारतीय बच्चों को अपनी कविता के द्वारा देना चाहता है।
प्रश्न 2.
“उस अफसर को कहीं पहुँचने की कोई जल्दी नहीं है। वो बारह या कभी-कभी तो इसके भी बाद पहुंचता है अपने विभाग में।” कवि यह कहकर व्यवस्था की किन खामियों को बताना चाहता है।
उत्तर-
प्रस्तुत क्तियों में कवि, भारतीय लोक व्यवस्था के बिगड़े हुए रूप को चित्रित करते हुए तीखा व्यंग्य करता है। कवि कहता है कि आजादी के बाद हमारी शासन प्रणाली में खामियाँ ही खामियाँ दिखाई पड़ती हैं। जो जिस विभाग में बड़े पद पर पदस्थापित अफसर हैं उन्हें अपने कर्तव्य का ज्ञान ही नहीं है। वे अपने कर्तव्य पथ से च्युत हो चुके हैं। समय पर कार्यालय नहीं पहुँचते हैं। कभी भी बारह बजे के पर्व ये कार्य-स्थल पर नहीं पहुँचते। इनकी लापरवाही और करता से सारा देश अराजक स्थिति में जीने को विवश है। प्रगति के सारे कार्यक्रम ठप्प हैं। विकास की जगह भ्रष्टाचार का बोलबाला है। इनकी टेबुल पर रखी हुई काम की फाइलें धूल फांक रही है। कार्य-निष्पादन में दिनों, महीनों, बरसों लग जाता है। धीमी गति की इनकी कार्यशैली से राष्ट्र पतन की ओर जा रहा है।
इन्हें लोक-लाज भी नहीं ये बेशर्मी लोग रात-दिन अपना ही व्यक्तिगत हित में निमग्न हैं। इन्हें देश और जनता की चिंता नहीं। यहाँ भ्रष्टाचार, अराजकता और कर्तव्यहीनता की ओर कवि ने सबका ध्यान आकृष्ट करते हुए तीखा व्यंग्य किया है। आज पूरी नौकरशाही आकंठ. – भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। देश और जनता निराशा के साये में जी रही है देश संक्रमण काल से गुजर रहा है। आजादी के पूर्व लोगों का जो सपना था वह आज चूर-चूर हो गया है। अफसर की शान-बान के आगे जनता बौनी बनी हुई है। जनता के श्रम और उसकी गाढ़ी कमाई पर ये नेता और अफसर गुलछर्रे उड़ा रहे हैं। इन्हें ईमानदारी और नैतिकता की जरा भी परवाह नहीं।
काश! ये जरा भी शांत भाव से चिंतन करते। अपने कर्तव्य और सेवा भाव के प्रति जागरूक होते तो आज कवि को व्यंग्य करने के साथ वर्तमान दशा पर क्षोभ प्रकट करने का अवसर नहीं मिलता।
इस प्रकार अपनी कविताओं के तीखे धार से कवि ने प्रशासक वर्ग को . बार-बार चिन्हित करते हुए यथार्थ का चित्रण सफलतापूर्वक किया है।
प्रश्न 3.
न्याय व्यवस्था पर कवि के द्वारा की गई टिप्पणी पर आपकी प्रतिक्रिया क्या है? लिखें:
उत्तर-
रुको बच्चो शीर्षक कविता में राजेश जोशी जी ने न्याय व्यवस्था पर करारा चोट किया है। भारतीय न्यायपालिका का जो चरित्र है वह काफी दुखद और चिंतनीय है। कवि कहता है कि रुको बच्चो! रुको! उस न्यायाधीश की कार को निकल जाने दो। किसकी है हिम्मत ‘जो इन न्यायाधीशों से प्रश्न कर सके कि जितनी तेज रफ्तार से आप कार चला रहे हैं उतनी रफ्तार में न्याय कार्य क्यों नहीं संपन्न होता। जनता के बीच नारा उछाला जाता है कि न्याय में देरी होने से असंतोष बढ़ता है जबकि न्याय व्यवस्था ठीक उसके उल्टा है। यहाँ केवल बोलने के लिए नारा *सेमिनारों चाहे भाषण में जोर-जोर से उछाला जाता है, जबकि प्रयोग में उसे अमली जामा नहीं पहनाया जाता।
निचली अदालत से लेकर ऊपरी अदालत तक न्याय के लिए मनुष्य चक्कर काटते-काटते थक जाता है फिर भी उसे राहत नहीं मिलती। भारतीय अदालत में वर्षों से लंबित अनेक मुकदमे पड़े हैं जिन्हें न्याय की प्रतीक्षा है। लेकिन क्या यह संभव है? अर्थात नहीं। भारतीय न्यायपालिका का स्वरूप विकृत हो चुका है। इसी कारण राजेश जोशी जी ने अपनी व्यंग्यात्मक कविताओं में उसके यथार्थ स्वरूप का चित्रण किया है। भारतीय न्यायपालिका न्याय करने में काफी देरी करती है। पैसे पैरवी और शक्ति का अपव्यय सदैव होता रहा है। आम आदमी को न्याय नहीं मिल पाता।
देश में भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहराई तक जम चुकी हैं फिर भी कोई उपाय नहीं है कि उससे सभी निजात पा सके। भारतीय लोकतंत्र का यह स्तम्भ अत्यंत ही कमजोर और लाचार है। इस प्रकार न्यायपालिका के पक्ष पर स्पष्ट चिंतन करते हए राजेश जी ने उसके सही और विकत चेहरे को चित्रित किया है जिसमें न्याय की कहीं भी गुंजाइश नहीं।
न्यायपालिका त्वरित गति से न्याय दिलाने में असमर्थ है। आम आदमी का कोई महत्व नहीं। लोकतंत्र के लिए यह खतरनाक संकेत है-न्यायपालिका द्वारा न्याय निष्पादन में बिलंब का होना।
राजेश जोशी ने अपनी व्यंग्यात्मक कविताओं के द्वारा लोकतांत्रिक व्यवस्था के कुरूप चेहरे को चित्रित कर सबको सावधान किया है।
प्रश्न 4.
तेज चाल से चलना किसके प्रशिक्षण का हिस्सा है और क्यों?
उत्तर-
‘रुको बच्चो’ कविता राजेश जोशी द्वारा रचित है। इस कविता में, व्यंग्य द्वारा कवि ने लोकतंत्र के शासन व्यवस्था पर करारा प्रहार किया है।
इस कविता में तेज चाल से चलना पुलिस अफसर के प्रशिक्षण से जुड़ा हुआ है। भारतीय पुलिस प्रशासन का चेहरा साफ-सुथरा नहीं है। इस विभाग का निर्माण सुरक्षा और शांति स्थापना के लिए हुआ था किन्तु आज उनके कर्म में विसंगतियाँ पाई जाती हैं।
पुलिस अफसर पैदल रहें चाहे कार में उनके चलने में धीमापन नहीं दिखता। वे ऐसा चलते हैं कि उनके चाल-ढाल से एक प्रकार का रोब-दाब और भय प्रकट होता है। ये भारतीय नागरिकों के पहरूआ के रूप में न दिखकर शोषक और अत्याचारी के रूप में दिखाई पड़ते हैं।
पुलिस अफसर की गाड़ी कहीं भी किसी प्रकार की घटना घटती है वहाँ सबसे बाद में पहुँचती है। कहने का आशय यह है कि वे अपनी जिम्मेवारी से लापरवाह रहते हैं। इतना शिक्षण-प्रशिक्षण के बावजूद भी वे अपनी कर्त्तव्यनिष्ठता का परिचय नहीं देते। वे शोषक और क्रूर मनुष्य के रूप में समाज के सामने प्रकट होते हैं। उन पर नैतिकता और ईमानदारी की जिम्मेवारी डाली गयी है किन्तु ये निरंकुश रूप में अपने को रखते हुए अमानवीय व्यवहार द्वारा जनता को भयभीत किए रहते हैं। र इस प्रकार राजेश जोशी ने अपनी कविता के द्वारा भारतीय पुलिस एवं पुलिस प्रशासन के कुरूप चेहरे को चित्रित किया है।
उदार छवि से युक्त त्वरित न्याय, सुरक्षा, अमन-चैन के लिए उन्हें काम करना . चाहिए वहाँ वे विपरीत चरित्र के रूप में पेश आते हैं।
इस प्रकार भारतीय प्रशासन का एक स्तम्भ व्यवस्थापिका भी है। आज वह भी जर्जर स्थिति में है। भारतीय बच्चों को आगाह करते हुए कवि उन्हें लोकतंत्र के सच्चे सेवक के रूप में स्वयं को गढ़ने की सलाह देता है।
प्रश्न 5.
मंत्री की कार के आगे-आगे साइरन क्यों बजाया जाता है?
उत्तर-
मंत्री की कार के आगे-आगे साइरन बजाने के पीछे भय की आशंका रहती है। राजेश जोशी ने मंत्री के चरित्र का चित्रण करते हुए उनकी कार्यशैली पर तीखा व्यंग्य किया है।
कवि कहता है कि भय से उनकी गाड़ी तेज रफ्तार से भागी जाती है और आगे-आगे साइरन सबको सचेत और सड़क छोड़कर दूर रहने की ओर संकेत करता है।
इन काव्य पंक्तियों में राजेश जोशी जी ने साइरन को एक संकेत के रूप में। प्रयोग किया है। भारतीय लोकतंत्र आज खतरे में है। ये शासक वर्ग अपने स्वार्थ, में इतना लिप्त है कि इन्हें देश या जनता की चिंता नहीं। केवल अपनी सुरक्षा और सुख की चिंता है। अपनी सुरक्षा के लिए ये इतना चिंतित है कि जब-जब इन्हें किसी काम के बहाने बाहर निकलना पड़ता है तो आगे-आगे साइरन की आवाज सबको सड़क से हटकर दूर रहने की ओर इंगित करती है। इस प्रकार उपरोक्त पंक्तियों में मंत्री के भय की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कवि ने उनके जीवन चरित्र और कार्यशैली पर करार प्रहार किया है। जनता के सुख-दुख से बेपरवाह ये मंत्री निजी सुख-सुविधा में लीन हैं।
व्याख्याएँ
प्रश्न 6.
(क) “सुरक्षा को एक अंधी रफ्तार की दरकार है।”
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक में “रूको बच्चो” काव्य-पाठ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ने व्यंग्यात्मक लहजे में भारतीय शासकों की क्रूरतम चरित्र को उजागर किया है। यह प्रसंग लोक-प्रशासन से जुड़ा हुआ है।
प्रस्तुत पंक्तियों के द्वारा कवि कहना चाहता है कि आज के मंत्री रूपी शासक अपने स्वार्थ में इतना अंधा हो गए हैं कि तेज रफ्तार से चलती इनकी कार के पीछे कब कौन आ जाएगा और अनर्थ हो जाएगा, इसका इन्हें ख्याल ही नहीं है। कवि के कहने का मूल भाव यह है कि भावी पीढ़ी के लिए इनके हृदय में न संवेदना है, न ममता है। उनकी प्रगति के लिए न कोई योजना है न कोई प्रगतिशील विचार भी। कि राष्ट्रहित की इन्हें चिंता ही नहीं। इसीलिए. कवि भारत के भविष्य आज के जो बच्चे हैं उन्हें सचेत करते हुए कहता है कि तुम अपने कर्तव्य पथ से विचलित मत होना। कल तुम्हारे ही कंधों पर राष्ट्र का भार है।
अपने प्रतीक प्रयोगों द्वारा कवि कहना चाहता है कि ऐ बच्चो, रुककर, सँभलकर, सोच-विचारकर आगे बढ़ो। इस शासन तथा व्यवस्था की अंधी दौड़ का हिस्सा मत बनो।
प्रश्न 6.
(ख) “कई बार तो पेशी दर पेशी चक्कर पर चक्कर काटते/ऊपर की अदालत तक पहुँच जाता है आदमी।” ।
उत्तर-
रुको बच्चो काव्य पाठ से उपरोक्त पंक्तियाँ ली गई हैं। इसका प्रसंग भारतीय न्यायपालिका से जुड़ा हुआ है।
प्रस्तुत कविता की पंक्तियों में राजेश जोशी ने न्यायपालिका की धीमी गति के न्याय और निरंकुश व्यवहार पर तीखा व्यंग्य किया है।
कवि अपनी भावनाओं को कविता के द्वारा प्रकट करते हुए कहता है कि भारतीय न्यायपालिका की स्थिति भी चिंतनीय है। कई बार आम आदमी न्याय पाने के लिए निचली अदालत से लेकर ऊपरी अदालत तक जीवन भर चक्कर काटता रह जाता है लेकिन उसे समयानुकूल न्याय नहीं मिल पाता। कवि अत्यंत भी क्षुब्ध है-ऐसी अराजक व्यवस्था से। न्याय में त्वरित गति होनी चाहिए वहीं दीर्घसूत्रता दिखाई पड़ती है। न्याय काफी विलंब से मिलता है। कभी-कभी निराशा भी हाथ लगती है। इस प्रकार, हमारी न्याय व्यवस्था लचर स्थिति में है। पैसा और पैरवी का भी बोलबाला है। न्याय का पजारी न्याय कर पाने में असमर्थ है। वह भी भ्रष्टाचार में लिप्त है। उसके चरित्र में भी कई प्रकार की विसंगतियाँ दृष्टिगत होती हैं।
प्रश्न 7.
लेकिन नारा लगाने या सेमिनारों में/बोलने के लिए होते हैं ऐसे वाक्य-कौन से वाक्य? उदाहरण देकर बतलाइए।
उत्तर-
“न्याय में देरी न्याय की अवहेलना है” नारा से देश गुंजायमान हो उठता है किन्तु कहीं भी इसे व्यावहारिक रूप में हम नहीं देख पाते हैं।
केवल नारा देकर जनता को सदा से भरमाया जाता है। उन्हें सही मार्ग से बरगलाया जाता है। उन्हें दिभ्रमित किया जाता है। सही रूप से न्याय शीघ्रताशीघ्र उन्हें समयानुकूल नहीं मिल पाता। जीवन भर निचली अदालत से लेकर ऊपरी अदालत तक वे दौड़ते-दौड़ते थक जाते हैं फिर भी न्याय सुलभ नहीं हो पाता। भारतीय जनता की स्थिति अत्यंत ही दु:खद है।
भारतीय लोक व्यवस्था में ऐसे लुभावने नारे केवल सेमिनारों चाहे भाषणों में प्रयोग किए जाते हैं किन्तु जीवन में उन्हें व्यवहारिक रूप में प्रस्तुत या प्रयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार इन नारों का. मूल्य नहीं रह जाता क्योंकि वे भरमाने के लिए उपयोग किए जाते हैं। इन्हें जमीन पर यथार्थ रूप में नहीं उतारा जाता। यही बिडंबना है-हमारी भारतीय न्याय व्यवस्था की। न्याय में देरी न्याय की अवहेलना जैसे नारे को केवल कहने से उसकी सार्थकता सिद्ध नहीं होगा। जबतक उसे मूर्त रूप देकर जीवन के क्षेत्र में व्यावहारिक रूप से प्रयोग नहीं किया जाय।
प्रश्न 8.
घटना स्थल पर बाद में कौन पहुँचता है और क्यों?
उत्तर-
‘रुको बच्चो’ काव्य पाठ से ये पंक्तियां ली गई हैं। उन पंक्तियों में राजेश जोशी जी ने पुलिस अफसर के चरित्र को उद्घाटित किया है।
पुलिस अफसर अपने व्यवहार में क्रूरतम एवं शोषक का रूप प्रकट करते हैं, साथ ही उनकी जीवन-शैली भाग-दौड़ की होती है। वे हमेशा तेज रफ्तार से चलते हैं। रोब-दाब का भाव प्रकट करते हुए जनता के साथ उनका व्यवहार रुखा सा होता है। – कहीं भी कोई किसी प्रकार की घटना घट जाती है, उस समय वे वहाँ नहीं पहँचकर काफी बिलंब से पहँचते हैं।
इन पंक्तियों के द्वारा कवि के कहने का भाव यह है कि वे अपने कर्त्तव्य के प्रति लापरवाह रहते हैं। वे सदैव बिलंब और बेपरवाह भाव से घटना स्थल का मुआयना करते हैं। उन्हें अपनी कर्तव्यनिष्ठा का ख्याल नहीं रहता। उनका. चरित्र एक लोक सेवक का न होकर क्रूर शासक का झलकता है। कहीं भी कभी भी वे अपने उच्च आदर्शों को प्रस्तुत नहीं करते। सदैव एक गैर जिम्मेवार अफसर के रूप में समाज में अपनी छवि रखते हैं। यही कारण है कि कवि ने उनके कुरूप चेहरे पर तीखा व्यंग्य किया है। उनका व्यवहार अमानवीय होता है इसमें उन्हें बदलाव लाना होगा।
प्रश्न 9.
तेज रफ्तार से जाने वालों पर कवि की क्या टिप्पणी है?
उत्तर-
“रुको बच्चो” काव्य पाठ में राजेश जोशी जी ने तेज रफ्तार से जानेवाले भ्रष्ट अफसर, अक्षम्य न्यायाधीश, शोषक रूप में गैर जिम्मेवार पुलिस अफसर और मंत्री के विकृत चेहरे और कर्तव्यहीनता की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करते हुए तीखा व्यंग्य किया है।
कवि ने भारतीय लोक व्यवस्था में अफसर का क्या कर्त्तव्य होना चाहिए इस पर ध्यान खींचा है। यहाँ की न्यायपालिका कैसी हो? न्याय प्रक्रिया किस प्रकार की हो इस पर भी तीखा व्यंग्य करते हुए यथार्थ स्थिति का चित्रण किया है।
पुलिस अफसर की राष्ट्र की सुरक्षा शांति व्यवस्था में क्या भूमिका होनी चाहिए? जनता के साथ उनका कैसा व्यवहार होना चाहिए इस पर करारा प्रहार किया है।
ठीक उपरोक्त लोगों की भाँति ही भारतीय मंत्रियों की जीवन-शैली और उनके क्रिया-कलापों का यथार्थ चित्रण करते हुए राजेश जोशी ने सम्यक् प्रकाश डाला है। राजेश जोशी एक प्रखर व्यंग्य कवि हैं अत: उनकी कविताओं की धार भी तेज है।
राजेश जोशी ने तेज रफ्तार से चलने वाले भ्रष्ट अफसर, न्यायाधीश, पुलिस अफसर और मंत्रियों के काले-कारनामों का कच्चा चिट्ठा खोला है। ये सच्चे लोकसेवक के रूप में नहीं दिखते बल्कि भ्रष्ट लोक सेवक के रूप में समाज और राष्ट्र के लिए कलंक हैं।
जहाँ भ्रष्ट अफसर अपनी कर्तव्यनिष्ठता के प्रति सजग न होकर लापरवाह अफसर के रूप में चित्रित है। उसके टेबुल पर फाइलें धूल फाँक रही हैं लेकिन दिनों, महीनों, बरसों, कार्य निष्पादन में समय लग जाता है।
ठीक उसी प्रकार निचली अदालत हो चाहे ऊपरी अदालत सब जगह ष्टाचार का बोलबाला है। न्याय में देरी न्याय की अवहेलना है जैसे नारे निरर्थक . सिद्ध होते हैं। जीवन- पर्यंत आम आदमी न्याय पाने में विफल रहता है, धन, बल और समय की क्षति होती रहती है लेकिन न्यायालय अपनी धीमी गति को नहीं छोड़ता। न्याय में त्वरित गति नहीं आ पाती।
पुलिस अफसर की भी कार्य शैली विश्वसनीय नहीं। वे भ्रष्ट रूप में जनता के सामने आते हैं। पैसे और पैरवी के कारण वे न्याय नहीं कर पाते।
किसी घटना के पूर्व नहीं बाद में वे वहाँ पहुँचते हैं जो गैर जिम्मेवारी का परिचायक है।
ठीक उसी प्रकार मंत्रियों की भी स्थिति है। वे अपने स्वार्थ और परिवार की सुविधा के लि! इतने संकीर्ण बन जाते हैं कि प्रशासन व्यवस्था चरमरा जाती है। इन्हें जनता की समस्याएँ दिखाई ही नहीं पड़ती। राष्ट्रहित और समाज हित की बातें इनके लिए बेमानी सी लगती है। इनकी ऐसी स्थिति हो जाती है-जैसे एक अंधे व्यक्ति की होती है। कभी, सुख-सुविधा और स्वार्थ में ये अंधे बन जाते हैं। इनके भ्रष्टाचारी चरित्र के कारण जनता कष्ट झेलती है। राष्ट्र की प्रगति रुक जाती है।
इसी कारण राजेश जोशी जी ने भारत के भविष्य जो आज के बच्चे हैं उन्हें सचेत करत हए आगाह किया है क्योंकि कल राष्ट्र की जिम्मेवारी उन्हीं के कंधों पर आने वाली है।
आज के बच्चे शासन तथा व्यवस्था की अंधी दौड़ का हिस्सा न बनें। काफी सोच-समझकर अपनी दिशा ग्रहण करें और कल के लिए अपने को सक्षम रूप में प्रस्तुत करें।
प्रश्न 10.
कविता में बच्चों को किस बात की सीख दी गई है क्यों?
उत्तर-
“रुको बच्चो” कविता राजेश जोशी द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण कविता है। इसमें भारतीय लोक-प्रशासन के कुरूप चेहरे को उकेरते हुए कवि ने बच्चों को भविष्य के लिए आगाह किया है क्योंकि कल के राष्ट्र के वे ही भविष्य हैं। कल उन्हीं के कंधों पर राष्ट्र का भार पड़ेगा। अतः वर्तमान शासकों, अफसरों, न्यायाधीशों एवं पुलिस अफसरों के जीवन-चरित्र के कुरूप पक्ष का चित्रण करते हुए कवि ने राष्ट्र के भविष्य आज के बच्चों को एक नयी सीख दी है। वह सीख है जीवन में ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठता, त्याग, सेवा और जिम्मेवारी को समझना। उसके प्रति सजग रहना। भावी प्रशासन-शासन व्यवस्था की खामियों को कवि ने यथार्थ चित्रण किया है और सबको सचेत भी किया है। कवि ने बच्चों को कहा है कि ऐ बच्चो। शासन तथा व्यवस्था की अंधी दौड का हिस्सा मत बनो। तम रुक-रुककर सँभल-सँभलकर, सोच विचार कर आगे बढ़ो और राष्ट्र की सेवा के लिए योग्य बनो कल के तुम्ही राष्ट्र निर्माता बनोगे।
नीचे लिखे पद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें।
1. रुको बच्चो रुको
सड़क पार करने से पहले रुको
तेज रफ्तार से जाती इन गाड़ियों को गुजर जाने दो
वो जो सर से जाती सफेद कार में गया
उस अफसर को कहीं पहुँचने की कोई जल्दी नहीं है
वो बाहर या कभी-कभी तो इसके बाद भी पहुँचता है अपने विभाग
में
दिन महीने और कभी-कभी तो बरसों लग जाते हैं
उसकी टेबिल पर लमी जरूरी फाइल को खिसकने में
(क) कवि और कविता के नाम लिखें।
(ख) कवि यहाँ बच्चों से क्या कहता है?
(ग) कवि के अनुसार सफेद कार से यात्रा करते कौन निकल कर कहाँ गया है?
(घ) यहाँ किस कार्यालय की दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली की चर्चा की गई है? और किस रूप में?
(ङ) प्रस्तुत पद्यांश में वर्णित कवि के उद्देश्य की चर्चा करें।
उत्तर-
(क) कवि-राजेश जोशी, कविता-रुको बच्चो
(ख) कवि यहाँ बच्चों से सड़क पार करने से पहले रुकने के लिए कहता है, क्योंकि सड़क पर अफसरों की गाड़ियाँ तेज रफ्तार से गुजर रही हैं। ‘बच्चे यदि नहीं रुकेंगे तो संभव है कि तेज रफ्तार से चलती उन गाड़ियों से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाएँ या उन गाड़ियों से कुचलकर मर जायें।
(ग) कवि के अनुसार सफेद कार से यात्रा करनेवाला व्यक्ति कोई प्रशासनिक पदाधिकारी है जो काफी जल्दीबाजी में है और जिसे जल्द ऑफिस पहुँचना है। हालाँकि उस ऑफिसर को कहीं पहुँचने की कोई जल्दी नहीं है और उसके ऑफिस में ढेर सारे कार्य संपन्न होने की प्रतीक्षा में हैं। उसे उन विर्लोबत कार्यों को पूरा करने के कोई चिंता नहीं है, लेकिन वह तेज रफ्तार में गाड़ी को भगाये चला जा रहा है। तेज रफ्तार से कार्य में चलना उसके लिए आम बात है।
(घ) यहाँ कवि ने सरकारी दफ्तार की दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली पर व्यंग्य किया है। सरकारी दफ्तर के लिए यह आम बात है कि उससे जुड़े अफसर कभी कार्यालय में समय पर नहीं पहुँचते। उन अफसरों को काम करने में कोई जल्दी नहीं रहती है। उनके टेबिल पर फाइलों के ढेर लगे रहते हैं। वे सारी-की-सारी फाइलें कई दिनों, कई महीनों और कभी-कभी कई वर्षों से उसी स्थिति में पड़ी हुई हैं।
(ङ) प्रस्तुत पद्यांश में सरकारी प्रशासकीय पदाधिकारियों की तथा सरकारी दफ्तरों की दुर्दशा की ओर इंगित करना कवि का एकमात्र उद्देश्य है। कवि ने यहाँ यह बताया है कि ये प्रशासकीय पदाधिकारी न तो समय पर दफ्तर जाते हैं और यदि वहाँ किसी तरह पहुँच भी जाते हैं तो वहाँ बैठकर अपने दायित्व का पालन नहीं करते। नतीजा यह होता है कि उनके टेवुल पर फाइलों की ढेर लग जाता है जो महीनों तथा बरसों बाद निष्पादित हो पाता है।
2. रुको बच्चो!
उस न्यायाधीश की लार को निकल जाने दो
कौन पूछ सकता है उससे कि तुम जो चलते हो इतनी तेज कार में
कितने मुकदमें लंबित हैं तुम्हारी अदालत में कितने साल से
कहने को कहा जाता है कि न्याय में देरी न्याय की अवहेलना है
लेकिन नारा लगाने या सेमिनारों में
बोलने के लिए होते हैं ऐसे वाक्य
कई बार तो पेशी-दर-पेशी चक्कर पर चक्कर काटते
ऊपर की अदालत तक पहुँच जाता है आदमी
और नहीं हो पाता है इनकी अदालत का फैसला
(क) कवि एवं कविता के नाम लिखें।
(ख) कवि किनकी कार को जाते हुए देखकर बच्चों को सड़क पार करने से रोकता है, और क्यों?
(ग) कवि इस पद्यांश में न्यायाधीश महोदय की कार्य-प्रणाली पर क्या टिप्पणी करता है?
(घ) प्रस्तुत पद्यांश में कवि किसकी कार्य-प्रणाली पर क्या व्यंग्य करता है?
(ङ) ‘ऊपर की अदालत से’ कथन से कवि का क्या अर्थ है? नीचे की अदालत के बारे में कवि ने यहाँ क्या कहा है?
उत्तर-
(क) कवि-राजेश जोशी, कविता-रुको बच्चो
(ख) प्रस्तुत पद्यांश में कवि न्यायाधीश की कार को जाते हुए देखकर बच्चों को सड़क पार करने से रोकता है। इस संदर्भ में कवि यह कहता है कि तेज गति वाली कार से गुजरनेवाले इस न्यायाधीश महोदय से कोई पूछने का यह साहस नहीं कर सकता है कि वे इतनी तेज रफ्तार में कार से क्यों जा रहे हैं। ऐसी बात नहीं है कि उन्हें इस बात की जल्दबाजी है कि वे न्यायालय में सही समय पहुंचे। उनकी अदालत में बरसों से कितने मुकदमे लंबित हैं।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश में कवि यह बताना चाहता है कि न्यायालय भी दोषपूर्ण कार्य-शैली का शिकार हो गया है। वहाँ न्यायाधीश महोदय की अदालत में कई मुकदमे वर्षों से लंबित है। स्थिति तो ऐसी बदतर है कि कुछ मुकदमें ऐसे हैं जिनमें व्यक्ति दौड़ते-दौड़ते इस अदालत में न पहुँचकर ऊपर की अदालत (परलोक) में पहुँच जाता है।
(घ) प्रस्तुत पद्यांश में कवि न्यायपालिका की कार्य-प्रणाली पर तीखा चोट करता है। कवि के अनुसार यह विभाग भी सरकारी अन्य विभागों की तरह भष्टाचार और निष्क्रियता का प्रबल शिकार हो गया है। वहाँ ऐसी दुर्दशा है कि अनगिनत मुकदमे महीनों से नहीं, अपितु कई वर्षों से लंबित हैं। कहने के लिए न्याय विभाग यह चिल्लाकर कहता है कि देर से मिला न्याय न्याय नहीं होता, लेकिन स्थिति यहाँ इतनी बुरी है कि कुछ मुकदमों में दौड़ते-दौड़ते व्यक्ति परलोक की अदालत में पहुँच जाता है और इस अदालत का फैसला सुन नहीं पाता।
(ङ) ऊपर की अदालत से मतलब है ‘यमराज का न्यायालय’, अर्थात ‘मृत्यु की प्राप्ति’। हमारे यहाँ यह बात चलती है कि मनुष्य मरने के बाद यमराज की अदालत में यम के द्वारा पहुँचाया जाता है और वहीं उसके द्वारा किये गये कर्मों का लेखा-जोखा होता है। यहाँ की अदालत के बारे में कवि यह व्यंग्य करता है कि यहाँ किस मुकदमा का निपटारा कब होगा और किसमें कितना समय लगेगा यह कहना असंभव सा है।
3. रुको बच्चो, सड़क पार करने से पहले रुको
उस पुलिस अफसर की बात तो बिलकुल मत करो
वो पैदल चले या कार में ।
तेज चाल से चलना उसके प्रशिक्षण का हिस्सा है
यह और बात है कि जहाँ घटना घटती है
वहाँ पहुँचता है वो सबसे बाद में
(क) कवि और कविता के नाम लिखें।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने शासन के किस विभाग पर क्या टिप्पणी की है?
(ग) तेज चाल से चलना किसके प्रशिक्षण का हिस्सा है? इसे स्पष्ट करें।
(घ) यहाँ कवि ने पुलिस की कार्य-प्रणाली पर क्या टिप्पणी की है? क्या आप उससे सहमत हैं?
(ङ) दिए गए पद्यांश की अंतिम दो पंक्तियों का अभिप्राय लिखें।
उत्तर-
(क) कवि-राजेश जोशी, कविता-रुको बच्चो
(ख) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने पुलिस विभाग की दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली पर टिप्पणी की है। कहने के लिए तो पुलिस विभाग के अफसर भी तेज रफ्तार कार में चलकर अपने जुड़े कार्यों को समय पर निष्पादित करने की बात करते हैं। लेकिन, यह बात स्पष्ट है कि वे पैदल चले या कार में, इससे उनके कार्य पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। उनका तो तेज चाल में चलने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। यह बात तो जगजाहिर-सी है कि पुलिस कभी भी वारदात-स्थल पर सबसे बाद में ही पहुँचती है।
(ग) तेज चाल से चलना पुलिस विभाग के अफसरों का प्रशिक्षण है। उन अफसरों को तेज चाल से चलने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वे दौड़कर या तेज चाल में चलकर अपराधियों को पकड़ सकें और वारदात-स्थल पर उचित समय पर पहुँच सके। लेकिन, ऐसा होता कहाँ है? स्थिति तो इसके विपरीत है। पुलिस अपराधियों को अब पकड़ती कहाँ है! वह तो महीनों उनके बारे में पता लगाती है और वारदात-स्थल पर बहुत बाद में पहुँचती है।
(घ) यहाँ कवि ने पुलिस की कार्य-प्रणाली पर यह टिप्पणी की है कि पुलिस अधिकारी अपने कार्य के प्रति वफादार नहीं है, विभागीय नौकरी से जुड़न के पहले उन्हें दौड़ने, कूदने, फाँदने, जल में तैरने तथा घुड़सवारी करने आदि क प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे सक्रिय और आलस्य-मुक्त होकर अपने दायित्व का पालन करें। लेकिन, स्थिति इसके ठीक विपरीत है। यह विभाग तो निष्क्रियता की चादर ओढ़कर आराम से मनोवांछित जगह पर पड़ा रहता है। यदि उन्हें किसी अपराधी और उसके द्वारा किये गये वारदात की सूचना मिलती है तो वे वहाँ काफी इत्मीनान से सबसे बाद में पहुँचने का कष्ट करते हैं।
(ङ) इन दो पंक्तियों में कवि ने पुलिस की निष्क्रियता की चर्चा की है। कवि · यहाँ बताना चाहता है कि पुलिस विभाग अपने दायित्व-पालन की दिशा में काफी निष्क्रिय हो गया है। उनमें दायित्व-पालन की मानसिकता और दायित्व-पालन की इच्छा का घोर अभाव हो गया है। यही कारण है कि अपराधी उनकी पकड़ और पहुँच से बाहर हो गये हैं और अपराध-स्थल पर समय से पहुँचना उनके लिए असंभव-सा हो गया है।
4. रुको बच्चो रुको
साइरन बजाती इस गाड़ी के पीछे-पीछे
बहुत तेज गति से आ रही होगी किसी मंत्री की कार
नहीं नहीं उसे कहीं पहुंचने की कोई जल्दी नहीं है
उसे तो अपनी तोंद के साथ कुर्सी से उठने में लग जाते हैं कई मिनट
उसकी गाड़ी तो एक भय में भागी जाती है इतनी तेज
सुरक्षा को एक अंधी रफ्तार की दरकार है.
रुको बच्चो इन्हें गजर जाने दो।
इन्हें जल्दी जाना है
क्योंकि इन्हें कहीं नहीं पहुँचना है।
(क) कवि एवं कविता के नाम लिखें।
(ख) साइरन का बजना सुनकर कवि बच्चों से क्या कहकर रुकने के लिए कहता है?
(ग) कवि मंत्री महोदय से जुड़ी किस बात की और क्या कहकर हँसी उड़ाता है?
(घ) “सुरक्षा को अंधी रफ्तार की दरकार है।”-इस कथन को स्पष्ट करें।
(ङ) यहाँ कवि ने किसकी कार्य-प्रणाली पर क्या कहकर व्यंग्य किया है।
उत्तर-
(क) कवि-राजेश जोशी, कविता-रुको बच्चो
(ख) साइरन का बजना सुनकर कवि बच्चों से यही कहता है कि साइरन बजाती किसी मंत्री की कार बहुत तेजी से आ रही है तुम्हें रुककर उस कार के निकल जाने देना है। यदि बच्चे ऐसा नहीं करेंगे तो वे मंत्री की कार से धक्का खाकर बुरी तरह दुर्घटनाग्रस्त हो जाएंगे। इस संदर्भ में कवि कहता है कि मंत्री महोदय को कहीं पहुँचने की जल्दबाजी नहीं है। वे तो केवल रोब और शान के लिए गाड़ी से तेज रफ्तार में गुजरते हैं।
(ग) इस संदर्भ में कवि यह चर्चा करता है कि मंत्री महोदय तेजी और फुरती से कैसे काम कर पायेंगे। उनकी तोंद ही बहुत बड़ी है जो उनके लिए काफी बोझिल है। उसके बोझ के कारण मंत्री महोदय को कुर्सी से उठने में कई मिनट लग जाते है और वे बेचारे उठने और बैठने की प्रक्रिया में घोर संकट से पीड़ित हो जाते हैं। उनकी कार तो डर के मारे तेज गति से भागती रहती है।
(घ) इस कथन के माध्यम से कवि इस तथ्य को उद्घाटित करता है कि आज की शासन-व्यवस्था ऐसी है कि अफसरों, न्यायाधीशों, पुलिस पदाधिकारियों तथा नेताओं आदि वरिष्ठ और महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए उनकी वाहिका यानी गाड़ी को तेज रफ्तार से चलाना जरूरी हो गया है। वास्तविक स्थिति यह है कि इन तथाकथित महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों को कहीं आने-जाने में कोई जल्दी नहीं होती। ये तो लोगों के मन में भय, रोब और शान-शौकत जमाने तथा दिखलाने के लिए तेज रफ्तार में गाड़ी को दौड़ाते हुए चलते रहते हैं। उनकी गाड़ियों की यह तेज रफ्तार ‘अंधी रफ्तार’ कही जाती है। इस अंधी रफ्तार के मूल में उनके सुरक्षा की बात की जाती है।
(ङ) यहाँ कवि ने आज के राजनेताओं खासकर मंत्री महोदयों की खोखली, दिखावटी और निष्क्रियतापूर्ण कार्य-प्रणाली पर व्यंग्य किया है। मंत्री महोदय की कार साइरन बजाती हुई काफी तेजी से गुजरती है। उसका यह मतलब नहीं है कि उन्हें किसी अपेक्षित कार्य के निष्पादन के लिए समय पर पहुँचना है। उनकी कार तेज गति में इसलिए भगायी जाती है कि वे अबाधित और सुरक्षित स्थिति में गंतव्य स्थान तक पहुँच जायें और समाज में उनका भय. गेव-दाब तथा शान-शौकत बना रहे।