BSEB Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता
Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
Bihar Board Class 9 Science जीवों में विविधता InText Questions and Answers
प्रश्न श्रृंखला # 01 (पृष्ठ संख्या 91)
प्रश्न 1.
हम जीवधारियों का वर्गीकरण क्यों करते हैं ?
उत्तर:
अध्ययन को सरल बनाने तथा विभिन्न जीवों के मौलिक सम्बन्ध को स्पष्ट करने के लिए जीवधारियों का वर्गीकरण करते हैं।
प्रश्न 2.
अपने चारों ओर फैले जीव रूपों की विभिन्नता के तीन उदाहरण दें ?
उत्तर:
चिड़िया, छिपकली एवं चूहा।
प्रश्न श्रृंखला # 02 (पृष्ठ संख्या 92)
प्रश्न 1.
जीवों के वर्गीकरण के लिए सर्वाधिक मूलभूत लक्षण क्या हो सकता है ?
(a) उनका निवास स्थान
(b) उनकी कोशिका संरचना।
उत्तर:
(b) उनकी कोशिका संरचना।
प्रश्न 2.
जीवों के प्रारम्भिक विभाजन के लिए किस मूल लक्षण को आधार बनाया गया है ?
उत्तर:
जीवों के प्रारम्भिक विभाजन के लिए कोशिका की प्रकृति (कोशिकीय संरचना एवं कार्य) को आधार माना गया है। ऐसी कोशिकाएँ जिनमें झिल्ली युक्त केन्द्रक एवं कोशिकांग पाये जाते हैं, उसे यूकैरियोटिक कोशिका तथा जिसमें इनका अभाव होता है, प्रोकैरियोटिक कोशिका कहते हैं।
प्रश्न 3.
किस आधार पर जन्तुओं एवं वनस्पतियों को एक-दूसरे से भिन्न वर्ग में रखा जाता है ?
उत्तर:
प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाने की क्षमता रखने वाले जीवों को वनस्पति वर्ग में तथा अन्य जीवों से अपना भोजन ग्रहण करने वाले जीवों को जन्तु वर्ग में रखा गया है। इसके अतिरिक्त गमन की सामर्थ्य पौधों एवं जन्तुओं को एक-दूसरे से विभेदित करती है।
प्रश्न श्रृंखला # 03 (पृष्ठ संख्या 93)
प्रश्न 1.
आदिम जीव किन्हें कहते हैं ? ये तथाकथित उन्नत जीवों से किस प्रकार भिन्न हैं ?
उत्तर:
ऐसे जीव जिनकी शारीरिक संरचना साधारण होती है तथा उसमें प्राचीन काल से लेकर आज तक कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है, आदिम जीव कहलाते हैं। जबकि उन्नत जीवों की शारीरिक संरचना जटिल होती है तथा इनमें अपने वातावरण के अनुसार अनेक परिवर्तन हो चुके होते हैं। उदाहरण के लिए अमीबा की संरचना केंचुए की तुलना में आदिम होती है।
प्रश्न 2.
क्या उन्नत जीव और जटिल जीव एक होते हैं ?
उत्तर:
हाँ, यह सत्य है कि उन्नत जीवों की शारीरिक संरचना जटिल होती है। चूँकि विकास के दौरान जीवों में जटिलता की सम्भावना बनी रहती है अतः समय के साथ उन्नत जीवों को जटिल जीव कहा जा सकता है।
प्रश्न श्रृंखला # 04 (पृष्ठ संख्या 96)
प्रश्न 1.
मोनेरा अथवा प्रोटिस्टा जैसे जीवों के वर्गीकरण के मापदण्ड क्या हैं ?
उत्तर:
मोनेरा अथवा प्रोटिस्टा जैसे जीवों के वर्गीकरण का मापदण्ड उनमें संगठित केन्द्रक एवं झिल्ली युक्त कोशिकांगों की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति है। मोनेरा के सदस्यों में संगठित केन्द्रक एवं झिल्ली युक्त कोशिकांगों का अभाव होता है। ये प्रोकैरियोट्स कहलाते हैं; जैसे-जीवाण, नील-हरित शैवाल आदि। जबकि प्रोटिस्टा के सदस्यों में संगठित केन्द्रक एवं झिल्ली युक्त कोशिकांग पाये जाते हैं। ये यूकैरियोटिक संरचना प्रदर्शित करते हैं; जैसे-डाइएटम, प्रोटोजोआ आदि।
प्रश्न 2.
प्रकाश-संश्लेषण करने वाले एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव को आप किस जगत् में रखेंगे ?
उत्तर:
प्रकाश-संश्लेषण करने वाले एककोशिक यूकैरियोटी जीव को जगत् प्रोटिस्टा में रखा गया है।
प्रश्न 3.
वर्गीकरण के विभिन्न पदानुक्रमों में किस समूह में सर्वाधिक समान लक्षण वाले सबसे कम जीवों को और किस समूह में सबसे ज्यादा संख्या में जीवों को रखा जायेगा?
उत्तर:
वर्गीकरण के विभिन्न पदानुक्रमों में जाति के अन्तर्गत सर्वाधिक समान लक्षण वाले सबसे कम संख्या में जीवों को रखा गया है जबकि जगत् के अन्तर्गत सबसे अधिक संख्या में।
प्रश्न श्रृंखला # 05 (पृष्ठ संख्या 99)
प्रश्न 1.
सरलतम पौधों को किस वर्ग में रखा गया है ?
उत्तर:
पौधों के वर्ग थैलोफाइटा में सरलतम पौधों को रखा गया है। ये पौधे जड़, तना तथा पत्तियों में विभेदित नहीं होते हैं।
प्रश्न 2.
टेरिडोफाइट और फैनरोगैम में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
टेरिडोफाइट्स में नग्न भ्रूण पाये जाते हैं जो स्पोर्स कहलाते हैं। इन पौधों में जननांग अप्रत्यक्ष होते हैं तथा बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती जबकि फैनरोगैम्स में जनन ऊतक पूर्ण विकसित एवं विभेदित होते हैं तथा जनन प्रक्रिया के पश्चात् बीज उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 3.
जिम्नोस्पर्म और एन्जियोस्पर्म एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं ?
उत्तर:
जिम्नोस्पर्स नग्न बीज उत्पन्न करने वाले पौधे हैं। इनमें पुष्प उत्पन्न नहीं होते हैं जबकि एन्जियोस्पर्स में बीज फल के अन्दर बन्द रहते हैं। बीजों का विकास अण्डाशय के अन्दर होता है जो बाद में फल बन जाता है। इन पौधों में पुष्प भी उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न श्रृंखला # 06 (पृष्ठ संख्या 105)
प्रश्न 1.
पोरीफेरा और सीलेण्ट्रेटा वर्ग के जन्तुओं में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
पोरीफेरा वर्ग के जन्तु छिद्रयुक्त, अचल जीव हैं जो किसी आधार से चिपके रहते हैं। इनमें कोशिकीय स्तर का शारीरिक संगठन पाया जाता है जबकि सीलेण्ट्रेटा वर्ग के जन्तु एकाकी तथा समूह दोनों में ही पाये जाते हैं। इनका शारीरिक संगठन ऊतकीय स्तर का होता है।
प्रश्न 2.
एनीलिडा के जन्तु आर्थोपोडा के जन्तुओं से किस प्रकार भिन्न हैं ?
उत्तर:
(1) एनीलिडा के जन्तुओं का शरीर अनेक समान खण्डों में बँटा होता है जबकि आर्थोपोडा के जन्तुओं का शरीर कुछ निश्चित खण्डों में विभेदित होता है, जिस पर जुड़े हुए पैर पाये जाते हैं। शरीर पर प्रायः काइटिन का बना कठोर कंकाल पाया जाता है।
(2) एनीलिडा के जन्तुओं में रक्त परिसंचरण तन्त्र बन्द प्रकार का होता है। अर्थात् रक्त बन्द नलियों में बहता है जबकि आर्थोपोडा के जन्तुओं में रक्त परिसंचरण तन्त्र खुला प्रकार का होता है अर्थात् रक्त देहगुहा में भरा रहता है।
प्रश्न 3.
जल-स्थलचर और सरीसृपों में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
1. जल-स्थलचर जल तथा स्थल दोनों पर रहने के लिए अनुकूलित होते हैं। परन्तु अण्डे देने के लिए जल की आवश्यकता होती है जबकि सरीसृप सामान्यतः स्थल पर रहते हैं लेकिन जल में भी रह सकते हैं, लेकिन इन्हें अपने अण्डे स्थल पर आकर ही देने होते हैं।
2. जल-स्थलचरों की त्वचा पर शल्क नहीं पाये जाते। इस पर श्लेष्म ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं जबकि सरीसृपों का शरीर शल्कों द्वारा ढका होता है।
3. जल स्थलचरों में श्वसन क्लोम या त्वचा या फेफड़ों द्वारा होता है जबकि सरीसृपों में श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है।
प्रश्न 4.
पक्षी वर्ग और स्तनी वर्ग के जन्तुओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:
- पक्षी वर्ग के जन्तुओं में अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित होते हैं जो उड़ने में सहायक हैं जबकि स्तनी वर्ग के जन्तुओं में अग्रपाद हाथों या पैरों के रूप में होते हैं तथा वस्तुओं को पकड़ने या दौड़ने में सहायक हैं।
पक्षी वर्ग के जन्तुओं का शरीर परों से ढका होता है जबकि स्तनी वर्ग के जन्तुओं के शरीर पर बाल पाये जाते हैं।
पक्षी वर्ग के जन्तु अण्डे देते हैं जबकि स्तनी वर्ग के जन्तु शिशुओं को जन्म देते हैं। हालांकि कुछ स्तनी; जैसे-इकिड्ना एवं प्लेटिपस अण्डे भी देते हैं।
स्तनी वर्ग के जन्तुओं में बाह्य कर्ण तथा दुग्ध ग्रन्थियाँ भी पायी जाती हैं जबकि इन संरचनाओं का पक्षी वर्ग के जन्तुओं में अभाव होता है।
क्रियाकलाप 7.1 (पृष्ठ संख्या 90)
प्रश्न 1.
क्या एक देसी गाय जर्सी गाय जैसी दिखती है ?
उत्तर:
नहीं। प्रश्न-क्या सभी देसी गायें एक जैसी दिखती हैं ? उत्तर- नहीं।
प्रश्न 2.
क्या हम देसी गायें के झुण्ड से जर्सी गाय को पहचान सकते हैं ?
उत्तर:
हाँ।
प्रश्न 3.
पहचानने का हमारा आधार क्या होगा ?
उत्तर:
देशी गाय का शरीर हल्का व छरहरा होता है। इसका टाँट ऊँचा एवं अयन कसा हुआ होता है। जबकि जर्सी गाय का शरीर भारी व ढीला होता है। इसका टाँट सपाट तथा अयन बड़ा एवं लटका हुआ होता है।
क्रियाकलाप 7.2 (पृष्ठ संख्या 99)
प्रश्न 4.
क्या ये जड़ें मूसला हैं या फिर रेशेदार ?
उत्तर:
चने, मटर एवं इमली में मूसला जड़ें हैं तथा गेहूँ एवं मक्का में रेशेदार।
प्रश्न 5.
क्या पत्तियों में समानान्तर अथवा जालिकावत् शिरा विन्यास है ?
उत्तर:
गेहूँ एवं मक्का की पत्तियों में समानान्तर शिरा विन्यास है जबकि चना, मटर एवं इमली की पत्तियों में जालिकावत् | शिरा विन्यास।
प्रश्न 6.
इन पौधों के फूलों में कितनी पंखुड़ियाँ हैं ?
उत्तर:
चना, मटर एवं इमली के प्रत्येक फूल में 5-5 पंखुड़ियाँ हैं जबकि गेहूँ एवं मक्का के फूल में लोडीक्यूल्स के रूप में दो-दो पंखुड़ियाँ हैं।
प्रश्न 7.
क्या आप एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री पौधों के और अधिक लक्षण अपने अवलोकन के आधार पर लिख सकते हैं ?
उत्तर:
(1) एकबीजपत्री पौधों की पत्तियाँ समद्विपाश्विक प्रकार की होती हैं जबकि द्विबीजपत्री पौधों की पृष्ठधारी प्रकार की।
(2) सामान्यतः एकबीजपत्री पौधों की पत्तियों की ऊपरी एवं निचली दोनों सतहों पर स्टोमेटा उपस्थित होते हैं जबकि द्विबीजपत्री पौधों की केवल निचली सतह पर स्टोमेटा पाये जाते हैं।
क्रियाकलाप 7.4 (पृष्ठ संख्या 106)
प्रश्न 8.
किन्हीं पाँच जन्तुओं और पौधों के वैज्ञानिक नाम का पता लगाइए। क्या इनके वैज्ञानिक नामों और सामान्य नामों में कोई समानता है ?
उत्तर:
जन्तु
- मेढ़क-राना टिग्रिना
- बाघ-पैन्थेरा टाइग्रिस
- मोर-पैवो क्रिस्टेटस
- शुतुरमुर्ग-स्ट्रथियो कैमेलस
- हाथी-एलिफस मैक्सीमस
पौधे
- गेहूँ-ट्रिटिकम एस्टाइवम
- मक्का-जीआ मेज
- सरसों-बॅसिका कैम्पेस्ट्रिस
- मटर-पाइसम सैटाइवम
- मूली-रेफेनस सैटाइवस
वैज्ञानिक नामों और सामान्य नामों में कोई समानता नहीं है।
Bihar Board Class 9 Science जीवों में विविधता Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
जीवों के वर्गीकरण से क्या लाभ है ?
उत्तर:
- जीवों के वर्गीकरण से उनका अध्ययन सरल बनता है तथा विभिन्न जीवों के मौलिक सम्बन्ध सरलता से स्पष्ट हो जाते हैं।
- वर्गीकरण जीवों की विविधता को स्पष्ट करने में सहायक है।
- वर्गीकरण द्वारा किसी समूह विशेष का अध्ययन करने पर उस समूह के सभी जीवों के सामान्य लक्षणों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
- इसके द्वारा ही जैव विकास को समझने में सहायता मिलती है।
प्रश्न 2.
वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारण के लिए दो लक्षणों में से आप किस लक्षण का चयन करेंगे?
उत्तर:
वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारण के लिए दो लक्षणों में से हम आधारभूत लक्षण का चयन करेंगे। उदाहरण के लिए पौधे जन्तुओं से गमन, क्लोरोप्लास्ट तथा कोशिका भित्ति की अनुपस्थिति के कारण भिन्न हैं। लेकिन इनमें से केवल गमन ही आधारभूत लक्षण माना जायेगा जो पौधों तथा जन्तुओं को आसानी से विभेदित कर सकता है।
ऐसा इस कारण है कि पौधों में गमन के अभाव में अनेक संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं, जैसे सुरक्षा हेतु कोशिका भित्ति की उपस्थिति तथा भोजन निर्माण हेतु क्लोरोप्लास्ट की उपस्थिति। अतः ये सभी लक्षण गमन की पूर्ति के लिए ही बने हैं। इसलिए गमन ही आधारभूत लक्षण है। अतः इसका चयन पदानुक्रम निर्धारण के लिए उचित है।
प्रश्न 3.
जीवों के पाँच जगत् में वर्गीकरण के आधार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ह्वीटेकर ने पाँच जगत् वर्गीकरण प्रतिपादित किया। उनके द्वारा प्रतिपादित पाँच जगत् हैं-मोनेरा, प्रोटिस्टा, फंजाई, प्लांटी तथा एनीमेलिया। उनके ये समूह कोशिकीय संरचना, पोषण के स्रोत और तरीके तथा शारीरिक संगठन के आधार पर बनाये गये
(1) सबसे पहले उन्होंने संगठित केन्द्रक तथा झिल्लीयुक्त कोशिकांगों के आधार पर जीवों को दो भागों में बाँटा-प्रोकैरियोट्स तथा यूकैरियोट्स। यह विभाजन जगत् मोनेरा का आधार बना जिसके अन्तर्गत सभी प्रोकैरियोटस को रखा गया है।
(2) इसके बाद यूकैरियोट्स को एककोशिकीय तथा बहुकोशिकीय के आधार पर बाँटा गया। एककोशिकीय यूकैरियोट्स को प्रोटिस्टा के अन्तर्गत रखा गया तथा बहुकोशिकीय यूकैरियोट्स के अन्तर्गत फंजाई, प्लांटी तथा एनीमेलिया को सम्मिलित किया।
(3) अब इनमें से एनीमेलिया को कोशिका भित्ति की अनुपस्थति के कारण पृथक् कर लिया गया।
(4) शेष बचे फँजाई एवं प्लांटी को पोषण विधि के आधार पर अलग कर दिया गया। फंजाई में विषमपोषी पोषण पाया जाता है जबकि प्लांटी में स्वपोषी पोषण इस प्रकार पाँच जगत् वर्गीकरण की आधारशिला रखी गई।
प्रश्न 4.
पादप जगत् के प्रमुख वर्ग कौन-से हैं ? इस वर्गीकरण का क्या आधार है ?
उत्तर:
पादप जगत् के प्रमुख वर्ग हैं-थैलोफाइटा, ब्रायोफाइटा, टेरिडोफाइटा, जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म। इस वर्गीकरण में प्रथम स्तर का वर्गीकरण इस तथ्य पर आधारित है कि पादप शरीर के मुख्य घटक पूर्णरूपेण विकसित तथा विभेदित हैं अथवा नहीं। वर्गीकरण के अगले स्तर में पादप शरीर में जल और अन्य पदार्थों को संवहन करने वाले विशेष ऊतकों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति है। तत्पश्चात् यह देखा गया कि पौधों में बीज धारण की क्षमता है या नहीं। यदि बीज धारण की क्षमता है तो क्या बीज फल के अन्दर विकसित हुए हैं या नहीं।
प्रश्न 5.
जन्तुओं और पौधों के वर्गीकरण के आधारों में मूल अन्तर क्या है ?
उत्तर:
पौधों के वर्गीकरण का आधार है –
- विभेदित/अविभेदित पादप शरीर।
- संवहनी ऊतकों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति।
- बीजों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति।
- नग्न बीज अथवा फल के अन्दर बन्द बीज।
जन्तुओं के वर्गीकरण के निम्न आधार हैं सर्वप्रथम जगत् एनीमेलिया को नोटोकॉर्ड की उपस्थिति और अनुपस्थिति के आधार पर दो भागों-कॉर्डेटा तथा नॉन-कॉर्डेटा में बाँटा गया है।
नॉन-कार्डेटा में नोटोकार्ड अनुपस्थित होती है। इनको निम्न लक्षणों के आधार पर पुनः उपवर्गों में बाँटा गया है
- कोशिकीय/ऊतक स्तर का शरीर गठन
- देहगुहा की उपस्थिति/अनुपस्थिति
- शरीर की सममिति का प्रकार
- देहगुहा के विकास के प्रकार
- वास्तविक देहगुहा के प्रकार
उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर नॉन-कॉर्डेटा को संघों- पोरीफेरा, सीलेण्ट्रेटा, प्लेटीहेल्मिन्थीज, निमेटोडा, एनीलिडा, आर्थोपोडा, मोलस्का तथा इकाइनोडर्मेटा में बाँटा गया है।
कॉर्डेटा के सभी सदस्यों में नोटोकॉर्ड पायी जाती है। कुछ जन्तुओं जैसे बैलेनोग्लोसस, एम्फिऑक्सस एवं हर्डमानिया में नोटोकार्ड या तो अनुपस्थित होती है या पूरी लम्बाई में नहीं होती, इस कारण इन जन्तुओं को एक पृथक् उपसंघ-प्रोटोकॉर्डेटा में रखा गया है तथा शेष सभी जन्तु जिनमें पूर्ण विकसित नोटोकार्ड होती है, उप-संघ-कशेरुकी के अन्तर्गत रखे गये हैं। उपवर्ग कशेरुकी को पाँच वर्गों-मत्स्य, जल-स्थलचर, सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारी में विभाजित किया गया है।
प्रश्न 6.
वर्टीब्रेटा (कशेरुक प्राणी) को विभिन्न वर्गों में बाँटने के आधार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वर्टीब्रेटा को पाँच वर्गों-मत्स्य, जल-स्थल चर, सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारी में बाँटा गया है।
(1) वर्ग-मत्स्य-इस वर्ग में जीवों का शरीर धारारेखीय होता है। श्वसन क्लोम द्वारा होता है। ये असमतापी जीव हैं जिनका हृदय द्विकक्षीय होता है। जैसे-विभिन्न प्रकार की मछलियाँ।
(2) वर्ग-जल-स्थलचर-ये जीव जल एवं स्थल दोनों में रहने के लिए अनुकूलित होते हैं। त्वचा चिकनी होती है जिस पर श्लेष्म ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं। इनका हृदय कक्षीय होता है। अण्डे देने के लिए जल आवश्यक होता है।
(3) वर्ग-सरीसृप-इनका शरीर शल्कों द्वारा ढका होता है। इनका हृदय,सामान्यतः त्रिकक्षीय (मगरमच्छ का चार कक्षीय) होता है। सामान्यतः स्थल पर रहते हैं लेकिन जल में भी रह । सकते हैं। किन्तु अण्डे स्थल पर ही देते हैं। उदा.-छिपकली, सर्प, कछुए आदि।
(4) वर्ग-पक्षी-इनका शरीर परों से ढका होता है। अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित होते हैं। हृदय चार कक्षीय होता है। उदा.-विभिन्न पक्षी; जैसे-कबूतर, मैना आदि।
(5) वर्ग-स्तनी-शरीर पर बाल पाये जाते हैं। शिशुओं को जन्म देते हैं। इकिड्ना तथा प्लेटिपस अण्डे देते हैं। बाह्य कर्ण होते हैं। नवजात के पोषण हेतु स्तन ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं। हृदय चार कक्षीय होता है। उदा.- गाय, बकरी, मनुष्य आदि।